कहानी: सबक
शिप्रा की शह पा कर ब्रजेश उस के जीवन में किसी घुसपैठिए की तरह घुसता चला गया और शिप्रा भी उस के दिए उपहारों से स्वयं को गौरवान्वित महसूस करती रही. लेकिन जब ब्रजेश ने अपने उपहारों का मोल शिप्रा से वसूलना चाहा तो...
कौलबेल जोर से किरकिराई. शिप्रा उस समय बाथरूम में कपड़े धो रही थी. दरवाजे पर आ कर उस ने पूछा, ‘‘कौन?’’
बाहर डाकिया था. वह दरवाजे के नीचे से पत्र खिसका कर जा चुका था. पत्र ले कर शिप्रा अंदर कमरे में आ गई. प्रवीण का पत्र था. उस ने लिखा था कि वह जल्द ही विवाह करने वाला है. शिप्रा को यह जान कर खुशी हुई.
कपड़े साफ करने के बाद शिप्रा नहाधो कर शृंगार मेज के पास जा खड़ी हुई. कमल से खिले अपने रूप को देख कर वह खुद शरमा गई. फिर उस ने अलमारी से साड़ी और उसी से मेल खाता बालिश्त भर का ब्लाउज निकाल लिया. उस ने नाभि के नीचे साड़ी बांधी, फिर सिर के खुले बालों को जूड़े में समेट लिया.
सजधज कर शिप्रा अपनेआप को आईने में देखने लगी. उसे लगा कि मध्यकालीन नायिकाएं भी इसी प्रकार प्रिय से मिलन के लिए सजतीसंवरती होंगी.
शिप्रा को कालेज के दिनों की याद आ गई. जब डा. रमाकांत नायकनायिका भेद पढ़ाते समय खूब रस लिया करते थे और नायिकाओं के रसीले उदाहरण देते थकते नहीं थे.
ऐसे में शिप्रा को ब्रजेश की याद आने लगी. वह वही ब्रजेश था जो पहली ही मुलाकात में उस का दीवाना हो गया था. लेकिन अगले ही क्षण उस के जेहन से ब्रजेश की याद काफूर हो गई.
शिप्रा में संजनेसंवरने की यह आदत जी ब्लाक की ममता सरीन ने डाली है. एक दिन वह रस लेले कर बताने लगी कि किस प्रकार चूडि़यां पहनाते हुए एक मनिहार चुपचाप उस की कलाइयों के स्पर्श का सुख महसूस करता रहा था और वह भी उस के स्पर्श के सुख को लूटती रही थी.
उस रोज समाज केंद्र भवन में बस्ती की महिलाएं सिलाईकढ़ाई करती हुई आपस में गपशप कर रही थीं. तभी किसी ने प्यारमुहब्बत का प्रसंग छेड़ दिया था. ब्लाउज काटती हुई रेखा ने आंखें मटका कर कहा था, ‘अरी, हम आखिर किस के लिए सजतीसंवरती हैं? यही न कि कोई हमें देखे और अपना दिल थाम कर लंबीलंबी आहें भरे.’
शिप्रा पर धीरेधीरे उस सोहबत का असर पड़ने लगा था. उस दिन विवेक के काम पर जाने के बाद वह शीशे के सामने जा खड़ी हुई थी. सजनेसंवरने में शिप्रा ने पूरा एक घंटा लगा दिया था. अपने ही रूप को शीशे में बारबार देख कर तथा पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद खरीदारी के लिए वह घर से बाजार चल दी थी. हाथ में पर्स लिए वह जिस ओर जाती, लोग दिल थाम कर रह जाते. वह जिस भी शोरूम के पास खड़ी होती, वहां का दुकानदार उसे देखता ही रह जाता.
‘आइए न मैडम,’ ब्रजेश ने शोरूम से बाहर आ कर उस का स्वागत किया था, ‘हमारे यहां आप का स्वागत है, पधारिए.’
‘जी,’ शिप्रा को भी उस का रूप और व्यवहार भा गया था.
‘आइए, अंदर तो आइए,’ कहता हुआ वह एक ओर हट गया था.
ब्रजेश के हटते ही वह अंदर चली आई थी. वह मुसकरा दिया था. उस के पिता ने चश्मे के ऊपर से उन दोनों की ओर देखा था.
‘कल ही तो हमारे यहां बेंगलुरु से बेहतरीन साडि़यां आई हैं,’ ब्रजेश ने उस के आगे ढेर सारी साडि़यां फैला दी थीं.
शिप्रा उन साडि़यों को देखती ही रह गई. साडि़यां एक से बढ़ कर एक सुंदर थीं. ब्रजेश की नजरें शिप्रा की जूतियों पर थीं, ‘कितनी सुंदर हैं.’
प्रशंसा के दो शब्द सुन कर शिप्रा का चेहरा खिल उठा था. उस का मन हुआ कि वह कहे, ‘पहनने वाली भी तो कम सुंदर नहीं है,’ लेकिन प्रकट में वह मुसकरा कर ही रह गई थी.
‘कहिए, कौन सी दूं?’ ब्रजेश ने शिप्रा से पूछा था.
तभी दुकान का नौकर 2 ठंडे पेय की बोतलें ले आया था. दोनों उसे पीने लगे. शिप्रा ने बोतल नीचे रख कर कहा था, ‘देखिए, मेरे पास पैसे कम हैं.’
‘आप पैसों की चिंता छोडि़ए,’ ब्रजेश उसे आश्वस्त करने लगा, ‘आप तो पसंद की बात कीजिए.’
ब्रजेश के पिता ने भी बेटे का ही समर्थन करते हुए कहा था, ‘रुपए अभी न सही, पहली को दे देना, बेटी. अपनी ही बस्ती में तो रहती हो.’
ब्रजेश उस की पसंद की गई साड़ी को पैक कर उसी के साथ दुकान से बाहर निकल आया था. उस के साथ चलते हुए उस ने कहा था, ‘आप चाहें तो साड़ी की चर्चा विवेकजी से न करें.’
‘वह क्यों?’ वह उस की बात नहीं समझ पाई थी. उसे आश्चर्य हुआ था कि उस के पति को यह कैसे जानता है. शिप्रा ने पूछा भी था, ‘आप…?’
‘मुझे ब्रजेश कहते हैं,’ उस ने अपना परिचय देते हुए बताया था, ‘हम दोनों ने बीकौम एकसाथ ही किया था.’
‘ओह,’ वह हंस दी थी, ‘तो आप दोनों क्लासफैलो रहे हैं?’
‘जी,’ आंखों में प्रेमभाव ला कर ब्रजेश ने कहा, ‘इस रिश्ते से आप मेरी भाभी लगती हैं.’
शिप्रा शर्मसार हो गई थी. चौराहे से ब्रजेश दुकान की ओर लौट गया था. वह भी अपनी बस्ती की ओर चल दी थी.
ब्रजेश के साथ इस मुलाकात के बाद ही शिप्रा में सजनेसंवरने की ललक ज्यादा बढ़ने लगी थी. एक दिन विवेक ने भी कहा था कि अनारकली बाजार में उस के मित्र ब्रजेश की कपड़े की दुकान है. लेकिन उस ने कभी भी पति से ब्रजेश की चर्चा नहीं की.
शिप्रा की शह पा कर ब्रजेश उस के जीवन में किसी घुसपैठिए की तरह घुसता चला गया. जब भी कभी वह उस के पास आता, उस के लिए कुछ न कुछ उपहार ले कर आता.
कल ही शिप्रा ने ब्रजेश से कहा था, ‘ब्रजेशजी, आप तो हमें कर्ज से गले तक लाद रहे हैं. हम लोग इतना कर्ज कहां से दे पाएंगे?’
‘वाह भाभी, तुम भी खूब हो,’ ब्रजेश ने हंसते हुए कहा था, ‘आखिर विवेक भाई किस के लिए कमाते हैं?’
‘फिर भी.’
‘अरे, हम आप से तगादा तो कर नहीं रहे,’ ब्रजेश बोला था, ‘विवेक भाई, हर पहली को कुछ रुपए चुकाते हैं. आप को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.’
इस पर शिप्रा चुप हो गई थी. ब्रजेश की बातों पर उसे विश्वास होने लगा था.
ब्रजेश घर से जातेजाते कह गया था, ‘भाभी, कल आप के लिए एक ऐसी साड़ी ले कर आऊंगा जो बनारस से आई है और बेशकीमती है.’
‘अच्छा,’ वह मुसकरा कर बोली थी.
शिप्रा बालकनी में खड़ी हुई कलाई पर बंधी घड़ी को देखने लगी. शाम के
4 बजने को थे. ब्रजेश आता ही होगा, यह सोच कर वह बस्ती की पतली सड़क की ओर देखने लगी. सामने से सचमुच ही ब्रजेश लंबेलंबे डग भरता हुआ उन्हीं के ब्लौक की ओर चला आ रहा था. शिप्रा ने फौरन रसोई में जा कर चाय के लिए पानी चढ़ा दिया.
कौलबेल बजते ही शिप्रा दरवाजे की ओर लपकी. मुसकरा कर उस ने ब्रजेश का स्वागत किया और बोली, ‘आप की बड़ी लंबी उम्र है. हम आप को याद ही कर रहे थे.’
ब्रजेश सोफे पर बैठा तो शिप्रा उस के लिए चाय ले आई. दोनों चाय पीने लगे. चाय के कप को एक ओर रख कर ब्रजेश ने हाथ का पैकेट मेज पर रख उसे खोलते हुए कहा, ‘आज तो मैं आप के लिए ऐसा तोहफा लाया हूं जो केवल आप के लिए ही है. इसे पहनने के बाद आप के रूप पर चारचांद लग जाएंगे.’
साड़ी को देख कर शिप्रा की आंखें फटी की फटी रह गईं. गुलाबी रंग की वह साड़ी सच में हजारों में एक थी. उस पर जड़े हुए सलमासितारे आंखों को चकाचौंध कर रहे थे.
उस साड़ी को हाथ में ले कर शिप्रा न जाने क्याक्या सोचने लगी.
‘लाओ भाभी, इस तोहफे को मैं अपने ही हाथों से पहना दूं.’
ब्रजेश के इस व्यवहार से शिप्रा घबराने लगी. उस ने सोचा, किसी अन्य पुरुष के हाथों वह साड़ी कैसे पहनेगी? पति के मित्र से उसे इस प्रकार के व्यवहार की आशा नहीं थी. वह सोफे से उठ गई. उसी के साथ ब्रजेश भी उठ गया. लेकिन ब्रजेश तो जैसे पहले से ही कुछ निश्चय कर के आया था. इस बार उस के हाथ शिप्रा की ओर बढ़ने लगे. वह किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में थी. ब्रजेश ने दुस्साहस कर के उस की कलाई पकड़ ली.
शिप्रा ने आव देखा न ताव, उस ने ब्रजेश के सिर पर पेपरवेट से प्रहार कर दिया, लेकिन ब्रजेश ने अपने को बचा लिया और वहशियों जैसा व्यवहार करते हुए बोला, ‘आज तो मैं तुम्हारे साथ अपने अरमान पूरे कर के ही रहूंगा.’
‘बदमाश,’ कमर पर दोनों हाथ रख शिप्रा बिफर उठी, ‘तू ने मुझे बाजारू औरत समझ रखा है क्या? तेरे घर में मांबहनें नहीं हैं. मुझे कमजोर औरत न समझना. चुपचाप यहां से चला जा अन्यथा वह दुर्गति करूंगी कि पूरा महल्ला तमाशा देखेगा.’
ब्रजेश को ऐसी उम्मीद न थी. वह गरदन लटकाए चुपचाप बाहर जाने लगा. तभी शिप्रा उस की लाई हुई साड़ी पीछे से फेंकती हुई बोली, ‘इस कफन को भी तो ले जा.’
ब्रजेश ने वह साड़ी उठा ली. शिप्रा ने उस की लाई हुई और भी साडि़यां उस की ओर फेंक दीं, जिन्हें वह जल्दी से समेट कर चला गया.
इस हादसे से शिप्रा की सांस तेज हो आई. वह अपनी उखड़ी सांस पर काबू पाने के लिए बैडरूम में जा कर लेट गई.
थोड़ी देर आराम करने तथा स्थिति सामान्य होने के बाद शिप्रा उठी और शृंगार मेज के सामने जा खड़ी हुई. अब उस का रूप ही उस की आंखों में चुभन पैदा करने लगा था. ऐसा रूप भी किस काम का जो दूसरों को अपनी ओर खींचे. वह शृंगार मेज के सामने से हट गई.
साड़ी उतार कर उस ने धुली हुई एक सादी धोती पहन ली और आईने के सामने जा खड़ी हुई. अब वह और भी अच्छी लग रही थी, पर इस बार देखने का नजरिया भिन्न था. रसोई में जा कर पति के लिए चाय, नाश्ता बनाने लगी क्योंकि उन के आने का समय हो रहा था. वह बालकनी में खड़ी हो कर विवेक का बेसब्री से इंतजार करने लगी. शिप्रा ने देखा, बस्ती की पतली सड़क पर ब्रजेश तेजी से बाजार की ओर जा रहा था. उसे देख कर शिप्रा को लगा कि उस धूर्त को आज उसे अच्छा सबक सिखा दिया है. भविष्य में सावधान रहने के लिए उस ने वहीं अपने दोनों कान पकड़ लिए. -शीतांशु भारद्वाज