कहानी: खुल गई पोल
भोर की सुबह जब दुलारी अपने खेत पर गई, तो गेहूं की फसल में पानी की जरूरत को देखते हुए वह बलदेव प्रधान के ट्यूबवैल पर चली गई.
किशना जब बलजीत प्रधान की चौपाल से उठ कर घर की ओर आ रहा था, तो उस के डगमगाते कदम भी मानो उस का साथ नहीं दे रहे थे, लेकिन वह अपनेआप को दुनिया का सब से खुशनसीब इनसान और बलजीत प्रधान को बड़ा दानदाता समझता था, जो किशना जैसे लोगों को मुफ्त में दारू पिलाता है.
घर पहुंच कर दुलारी को जागती देख कर किशना बोला, ‘‘तू अभी तक सोई नहीं है?’’
‘‘अब तो तेरा इंतजार करने की आदत सी पड़ गई है,’’ दुलारी ने सहज भाव से कहा, ‘‘खाना लगाऊं या खा कर आए हो?’’
‘‘अरे मेरी दुलारो, बलजीत प्रधान इतना खिलापिला देता है कि उस के बाद जरूरत ही नहीं पड़ती. एकदम हीरा आदमी है,’’ किशना ने तारीफ के अंदाज में कहा.
‘‘वह तुझे दारू नहीं जहर पिला रहा है. उस की नजर अपने खेत पर है,’’ तीखी लेकिन दबी आवाज में दुलारी ने कहा.
‘‘अरे, अगर उसे खेत ही चाहिए तो आज किसी और का नहीं खरीद सकता है. उस के पास कौन सा पैसे की कमी है,’’ किशना ने दुलारी को डांटते हुए कहा.
‘‘वह हमारा खेत इसलिए चाहता है, क्योंकि वह उस के ट्यूबवैल के पास है. तू इतनी सी बात नहीं समझता… एक न एक दिन मैं उस की नीयत की पोल खोल कर रहूंगी, तब देखना.’’
इस के बाद किशना और दुलारी की कोई बातचीत नहीं हुई. किशना पास बिछी चारपाई पर खर्राटे मारने लगा और दुलारी अतीत की उन यादों में खो गई, जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी.
तब कितनी खुशियां थीं यहां. सभी लोग खेतिहर मजदूर थे, पर इतना कमा लेते थे कि किसी के आगे हाथ फैलाने की कभी नौबत नहीं आती थी.
सुहागरात पर जब सभी दारू के नशे में मस्त थे, तब दुलारी ने शरमा कर किशना से पूछा था, ‘क्या तू भी इन लोगों की तरह दारू पिएगा?’
तब किशना ने दुलारी को अपनी बांहों में भर कर कहा था, ‘जब तुझ में ही इतना नशा है, तो मुझे पीने की क्या जरूरत.’
समय बीतने के साथ खुशी के रूप में जब उन की बेटी बन्नो इस दुनिया में आई, तो किशना को दुलारी की जगह दारू ज्यादा अच्छी लगने लगी, भले ही इस में बलदेव प्रधान का हाथ बहुत ज्यादा था.
भोर की सुबह जब दुलारी अपने खेत पर गई, तो गेहूं की फसल में पानी की जरूरत को देखते हुए वह बलदेव प्रधान के ट्यूबवैल पर चली गई.
उस समय बलदेव प्रधान चारपाई पर लेटा हुआ था और उस का चमचा शंभू उस के पैर दबा रहा था.
दुलारी ने पास पहुंच कर घूंघट की ओट से धीरे से पूछा, ‘‘प्रधानजी, पानी कब मिलेगा?’’
‘‘अरे दुलारी, पानी क्या पूरा ट्यूबवैल तेरा है… बस एक बार मेरी बात मान ले, कसम से तेरी जिंदगी बना दूंगा,’’ अंगड़ाई लेते हुए बलदेव प्रधान ने कहा.
‘‘क्या ऐसी बातें सब के सामने की जाती हैं…’’ इठलाते हुए दुलारी ने कहा.
‘‘तू इस शंभू की चिंता मत कर. यह तो अपना ही आदमी है,’’ हवस में अधलेटा होते हुए बलदेव प्रधान ने कहा.
‘‘तो ठीक है, आज गहरी रात घर आ जाओ,’’ इतना कह कर हंसते हुए दुलारी वहां से जाने लगी.
‘‘सुनसुन… और तेरा मरद घर पर होगा,’’ बलदेव प्रधान का चमचा शंभू होशयारी दिखाते हुए बीच में बोल पड़ा.
इसी के साथ बलदेव प्रधान ने शंभू के सिर पर हलकी सी चपत जमाई और बोला, ‘‘तू इतने दिनों से हमारे साथ है. और इतना भी नहीं जानता कि किशना तो दारू का गुलाम है… दे देंगे दारू की बोतल तो पड़ा रहेगा कहीं भी.’’
घर आ कर दुलारी ने पूरी बात किशना को बताई और बोली, ‘‘मैं कहती थी न कि प्रधान बुरा आदमी है.’’
‘‘अगर ऐसी बात है दुलारी, तो मैं कभी उस के पास नहीं जाऊंगा और न ही दारू को हाथ लगाऊंगा,’’ पछताते हुए किशना ने कहा.
दुलारी चुप रही.
‘‘ठीक है दुलारी, उसे रात में आने दे, अगर लाठी मारमार कर उस को अधमरा न कर दिया तो कहना?’’
‘‘आज तू उस की चौपाल पर जरूर जाना, नहीं तो उस को शक हो जाएगा, लेकिन दारू कम पीना,’’ दुलारी ने समझाते हुए कहा.
आज बलदेव प्रधान किशना का ही इंतजार कर रहा था. उस को आया देख कर दारू की बोतल उस की ओर उछाल कर बोला, ‘‘ले किशना, आज जम कर ऐश कर.’’
पर, आज किशना से दारू गले के नीचे नहीं उतारी गई. वह बोला, ‘‘मैं घर जा कर पिऊंगा.’’
घर आ कर किशना ने बोतल एक ओर रख दी. आज उस के मन में दारू पीने की कोई कसक नहीं हो रही थी.
आज की रात गहराइयों में जा रही थी, लेकिन किशना और दुलारी की आंखों में नींद नहीं थी. तभी उन के मिट्टी से बने घर से ‘धपाक’ की आवाज आई. शायद दीवार की कुछ मिट्टी नीचे गिरी थी.
किशना आवाज की तरफ ‘चोरचोर’ की आवाज लगाता हुआ भागा और कंबल डाले हुए एक साए को कई डंडे धर दिए.
अचानक हुए हमले से साए को भी संभलने का मौका नहीं मिला. इधर दुलारी और किशना की आवाज सुन कर आसपास के लोग भी वहां आ गए.
कंबल डाले वह साया गली में भाग रहा था. किशना और महल्ले के लोग उसे खदेड़ रहे थे, तभी गली के उस छोर से बलदेव प्रधान का चमचा शंभू दारू के नशे में लड़खड़ाता हुआ चला आ रहा था. अपनी ओर आ रहे साए को देख कर वह बोला, ‘‘अरे प्रधानजी आप…’’
अब बलदेव प्रधान ने कंबल एक ओर फेंक कर शंभू से कहा, ‘‘बुड़बक, तू ने तो सारी पोल खोल कर ही रख दी…’’- अनूप सिंह