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कहानी: पहला प्यार

मेरा भारत महान. और भी बड़ेबड़े देश हैं जो हम से ज्यादा विकसित, धनी, सुखी और समृद्ध हैं मगर फिर भी महान नहीं हैं. महान तो सिर्फ और सिर्फ मेरा भारत है.
बदलती फिजां के साथ प्यार की बयार बदल गई है. पहले तो लड़कालड़की को पहली ही नजर में प्यार हो जाया करता था पर आज ई टेक्नोलाजी के दौर में अब ‘पहला प्यार’ केवल चौथी बार ही नहीं बल्कि ‘अनलिमिटेड टाइम्स’ होने लगा है. ‘वेलेनटाइन डे’ पर पहले प्यार की महिमा बताता भरत चंदानी का व्यंग्य.

मेरा भारत महान. और भी बड़ेबड़े देश हैं जो हम से ज्यादा विकसित, धनी, सुखी और समृद्ध हैं मगर फिर भी महान नहीं हैं. महान तो सिर्फ और सिर्फ मेरा भारत है.

प्राचीनकाल में तो मेरा भारत और ज्यादा महान था. गौरवशाली साम्राज्य, ईमानदार इतिहास, सच्ची वीर परंपराएं, समृद्ध शासक, विशाल नागरिक, सोने की चिडि़या और घीदूध की नदियां… लगता है कुछ घालमेल हो गया लेकिन ऐसा ही कुछकुछ हुआ करता था. मगर आज के समय में, टूटीफूटी परंपराएं, सड़ा हुआ देश, भ्रष्ट जनता, गरीब नेता, गड़बड़ भूगोल और इतिहास का पता नहीं. कुल मिला कर जोजो अच्छा है वह पुराने जमाने में हो चुका, अभी तो जो भी नया है सब सत्यानाश.

मुझे तो सख्त अफसोस होता है कि मैं आज के समय में क्यों हूं, भूतकाल में क्यों न हुआ? बस, यही सोच कर संतोष होता है कि अभी जोजो बुरा है वह भी प्राचीन होने के बाद अच्छा हो जाएगा. ऐसे में जबकि जिंदगी जिल्लत ही जिल्लत है और हर चीज की किल्लत ही किल्लत है, एक चीज यहां ऐसी है जो पहले बड़ी दुर्लभ हुआ करती थी मगर आज उस की भरमार है और वह है प्रेम.

जी हां, आज हमारे पास प्रेम हमेशा हाजिर स्टाक में उपलब्ध रहता है. उस जमाने में कभी 100-50 साल में कोई एक मजनूं और एकाध लैला भूलेभटके ही होती थी, जो आपस में प्यार करते थे और बाकी लोग अजूबे की तरह उन्हें देखते थे कि ये लोग कर क्या रहे हैं और आखिर कब तक ऐसा करते रहेंगे? जिन की समझ में नहीं आता था वे उन्हें पत्थर उठा कर मारने लगते थे और जो अहिंसावादी थे वे बैठ कर उन के प्रेम की कहानियां लिखते थे. मगर आज गलीकूचों में प्रेम की ब्रह्मपुत्र बह रही है. यहां की हर छोरी लैला हर छोरा मजनूं. गांवगांव, शहरशहर, यहां, वहां, जहां, तहां, मत पूछो कहांकहां हीररांझा छितरे पड़े हैं. डालडाल रोमियो हैं तो पातपात जूलियट. बिजली के खंभों पर, टेलीफोन के तारों पर, जगहजगह लैला और मजनूं उलटे लटके पड़े हैं जितने जी चाहे गुलेल मार कर तोड़ लो.

किसी से भी यह सवाल पूछो कि आजकल क्या कर रहे हो? तो जवाब मिलता है, ‘‘प्यार कर रहा हूं.’’ कोई कालिज की कैंटीन में तो कोई हवाई झूले में, कोई गली के पिछवाड़े तो कोई कंप्यूटर पर ही. इंटरनेट पर तो प्यार करना बड़ा आसान है. एक मेल, फीमेल को ई मेल करता है, बदले में फीमेल भी मेल को ई मेल करती है और दोनों का मेल हो जाता है. शादियां भी इंटरनेट पर ही तय हो जाती हैं. कुछ दिनों बाद तो उन दोनों को मिलने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी, कंप्यूटर पर ही डब्लूडब्लूडब्लू डाट मुन्नामुन्नी डाट काम हो जाएगा.

पहले एक शीरीं हुआ करती थी जो एक फरहाद से प्यार किया करती थी और वह कमअक्ल मरते दम तक उसी से प्यार करती थी. मुगल साम्राज्य के पतन के बाद से ले कर जितेंद्र, श्रीदेवी की फिल्मों तक प्रेम के त्रिकोण बनने लगे थे, जिस में एक जूलियट के पीछे 2 रोमियो एकसाथ बरबाद हो जाते थे या फिर 2 महीवाल एक ही सोहणी को गलत रास्ते पर ले जाने की कोशिश किया करते थे, मगर अब तो त्रिकोण भी बीती बात हो गई, आजकल तो प्रेम के षट्कोण बनते हैं यानी 1 लैला, अकेली 5-5 मजनुओं को अपने घर के चक्कर कटवाती है और अंत में उन सब को ठेंगा दिखा कर किसी फरहाद से शादी कर लेती है.

उस जमाने में एक पहली नजर का प्यार होता था जो वाकई पहली नजर में हो जाया करता था लेकिन अब किसे उस की फिक्र है. अब तो हर नजर, प्यार की नजर है. इसी तरह एक होता था ‘पहला प्यार’, जो जीवन में किसी एक से एक ही बार होता था और भुलाए नहीं भूलता था, मगर आजकल तो पहला प्यार ही कई बार हो जाता है. राज की बात यह है कि मुझे भी यह कमबख्त ‘पहला प्यार’ 4 बार हो चुका है और पिछले सीजन में जब यह मुझे चौथी बार हुआ तभी मैं समझ गया था कि यह भी आखिरी बार नहीं है. मतलब अभी तो यह अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है.

जिधर नजर डालो प्यार ही प्यार, नफरत का तो कहीं नामोनिशान नहीं. मुंबई की पूरी फिल्म इंडस्ट्री पिछले 100 साल से इसी प्रेम के दम पर दारूमुर्गा उड़ा रही है. हर फिल्म में और कुछ चाहे हो न हो, मगर 1 लड़का और 1 लड़की जरूर होते हैं जो अंत में कभी मिल पाते हैं कभी बिछड़ जाते हैं पर प्यार जरूर करते हैं.

100 साल से यही विचार चलता चला आ रहा है कि जिसे हम प्यार समझ रहे हैं क्या यही प्यार है? या फिर प्यार वह है जिसे हम प्यार नहीं समझ रहे हैं? जवान लड़का चाय की पत्ती लेने घर से निकला और कुत्तों के क्लीनिक में घुस गया, यह इश्क नहीं तो और क्या है? जवान लड़की, लड़के से शिकायत करती है, ‘‘दिल में दर्द रहता है, मुझे भूख नहीं लगती, प्यास नहीं लगती, सारा दिन तड़पती हूं, सारी रात जगती हूं, जाने क्या हुआ मुझ को…?’’

किसी पत्नी ने पति से कहा होता तो डाक्टर और अस्पताल के खर्च के बारे में सोच कर बेचारे का दिल बैठ जाता लेकिन प्रेमी का दिल खड़ा हो कर उछलने लगता है कि चलो, अपना जुगाड़ बैठ गया. उधर दर्शक भी समझ जाते हैं कि इसे ‘फाल इन लव’ कहते हैं. लड़का और लड़की प्यार में गिर गए, अब ये दोनों गिरी हुई हरकतें करेंगे. लड़की 16 साल और 1 दिन की हुई नहीं कि उसे मोहब्बत हो जाती है, कोईकोई तो साढ़े 15 साल में ही उंगली में दुपट्टा लपेटना शुरू कर देती है.

खुदा न खास्ता अगर किसी लड़के या लड़की की 17 साल उम्र हो जाने पर भी कोई लफड़ा नहीं हुआ तो फिल्मी मांबाप चिंतित हो जाते हैं कि ‘बच्चा’ कहीं असामान्य तो नहीं है और किसी अच्छे डाक्टर से चेकअप करवाने की जरूरत महसूस करने लगते हैं. लड़का जब अपने बाप को यह खबर सुनाता है कि उस का किसी पर दिल आ गया है तो बाप यों खुशी से उछल पड़ता है मानो उसे विदेश में पढ़ाई के लिए स्कालरशिप मिली हो. फिर वह उसे लड़की को भगाने के लिए प्रेरित करता है और जब लड़का, लड़की को ले भागता है तो वह गर्व से अपना सीना फुला कर कहता है, ‘आखिर बेटा किस का है?’

प्रेम के मामले में हो रही तरक्की के मद्देनजर आने वाले समय में हमारे घरों के अंदर के दृश्य बड़े मजेदार होंगे. आइए, जरा एकदो काल्पनिक दृश्यों का वास्तविक आनंद लें.

दृश्य : एक

कमरा वास्तुशास्त्र के अनुसार बना हुआ है. दक्षिणमुखी कमरे के बीचोबीच, वाममुखी सोफे पर चंद्रमुखी लड़की की सूरजमुखी मां और ज्वालामुखी बाप बैठे हैं. बाप परेशान है, ‘‘बात क्या है? तुम दोनों मांबेटी आखिर मुझ से क्या छिपा रही हो?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? आप ही के लाड़प्यार ने इसे बिगाड़ा है और अब पूछते हो कि हुआ क्या, जब इस ने हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’

‘‘पहेलियां मत बुझाओ, साफसाफ बताओ कि इस ने क्या किया है?’’

‘‘और क्या करेगी? आज जब पड़ोस वाली मिसेज भटनागर ने मुझे ताना मारा तब मुझे पता चला कि इस कलमुंही का एक भी ब्वायफ्रेंड नहीं है. नाक कटा दी इस ने हमारी. शहर के लोग क्या सोचते होंगे हमारे बारे में कि कितने बैकवर्ड हैं हम लोग.

‘‘ऊपर से मिसेज भटनागर मुझे जलाने के लिए अपनी दोनों बेटियों को ले कर आई थीं और वह इतराएं भी क्यों न, आखिर उन की दोनों बेटियां अब तक 2-2 ब्वायफ्रेंड बदल चुकी हैं और इस करमजली के कारण आज मैं 40 प्रतिशत जली हूं.’’

‘‘क्यों बेटी, जो मैं सुन रहा हूं क्या यह सच है?’’

‘‘नहीं, डैड…हां, डैड…पता नहीं, डैड.’’

‘‘देखो, मुझे हां या ना में सीधा जवाब चाहिए. क्या बात है बेटी, क्या तुम्हें कोई लाइन नहीं मारता?’’

‘‘म…म…मारता है मगर उस के पास सेलफोन और बाइक नहीं है.’’

‘‘बस, इतनी सी बात. तुम उसे लाइन देना शुरू कर दो. सेलफोन मैं उसे प्रजेंट कर दूंगा और तुम उसे प्यार से समझाना कि वह एक बाइक आसान किश्तों में खरीद ले.’’

‘‘ल…लेकिन डैड…’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. मैं कोई बहाना सुनना नहीं चाहता. अगली बार जब तुम मेरे सामने आओ तो अपने ब्वायफ्रेंड के साथ ही आना, अगर ऐसा नहीं हुआ तो आइंदा तुम घर के बाहर ही रहोगी. तुम्हारा खाना, पीना और कमरे के अंदर घुसना बिलकुल बंद.’’

दृश्य : दो

कमरे की स्थिति तनावपूर्ण पर नियंत्रण में है. बाप बेटे पर गरम हो रहा है. मां दोनों में बीचबचाव कराती है, ‘‘अजी, मैं कहती हूं जब देखो आप मेरे लाडले के पीछे ही पड़े रहते हैं, अब इस ने ऐसा क्या कर दिया?’’

‘‘अरे, मुझ से क्या पूछती हो, पूछो अपने इस लाडले से, 2 साल से कालिज में है पर आज तक एक लड़की नहीं पटा सका, ऊपर से जबान लड़ाता है कि मुझे पढ़ाई से फुर्सत नहीं. सुना तुम ने? मैं ही जानता हूं कि कैसे मैं अपना पेट काट- काट कर इस के लिए फीस जुटाता हूं. इसी की उम्र के और लड़के रात में 2-2 बजे लौटते हैं अपनी ‘डेट’ के साथ और यह महाशय, इन्हें पढ़ाई से फुर्सत नहीं है.’’

‘‘हाय राम, बेटा, मैं यह क्या सुन रही हूं. देखो, तुम तो खुद समझदार हो, यह पढ़ाईवढ़ाई की जिद छोड़ दो, उस के लिए तो सारी उम्र पड़ी है. यही समय है जब तुम लड़कियों पर ध्यान दे कर अपना भविष्य संवार सकते हो.’’

‘‘इस तरह प्यार से समझाने पर यह नहीं समझने वाला. इस कमबख्त के सिर पर तो कैरियर बनाने का भूत सवार है. यह क्या समझेगा मांबाप के अरमानों को. पिछले हफ्ते जानती हो इस ने क्या किया? इसे किताबों के लिए मैं ने पैसे भेजे तो ये उन से सचमुच में किताबें खरीद लाया, किताबी कीड़ा कहीं का.’’

किताबी कीड़ा क्या करता? बेचारा चुपचाप सिर झुकाए सुनता रहा. प्रेम की ऐसी मारामारी, प्यार की ऐसी भरमार, इश्क, मोहब्बत का ऐसा जनून, न भूतो न भविष्यति. साल में एक पूरा दिन तो अब प्यार के नाम रिजर्व है ‘वेलेंटाइन डे’ के नाम से. अब वह रूखासूखा जमाना नहीं रहा जब प्रेम की उन्हीं घिसीपिटी 10-5 कहानियों को सारे लेखक अपनीअपनी शैली में घुमाफिरा कर लिखते थे…अब तो मैं :

‘‘सब धरती कागद करौं,

लेखनी सब बनराय,

सात समुंदर मसि करौं,

हरि गुन लिखा न जाय.’’

सारी धरती को कागज बना लूं, वन के सभी वृक्षों को कलम और सारे समुद्रों को स्याही में बदल दूं फिर भी जितनी प्रेम की कहानियां हैं पूरी नहीं लिख पाऊंगा. इस से तो बेहतर होगा कि इतना सारा कागज, कलम और स्याही बेच कर मैं करोड़पति हो जाऊं और मल्लिका शेरावत से पूछूं, ‘‘मेरे साथ डेट पर चलोगी?’’
 
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