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कहानी: खिड़की

पंडितजी के पूजापाठ, टोटकों में पूरी तरह उलझ चुकी थी बरखा. हर समस्या का उसे एक ही उपाय दिखता, वे थे पंडितजी. लेकिन पंडितजी ने ही उस की नैया डुबो दी.
पंडितजी के पूजापाठ, टोटकों में पूरी तरह उलझ चुकी थी बरखा. हर समस्या का उसे एक ही उपाय दिखता, वे थे पंडितजी. लेकिन पंडितजी ने ही उस की नैया डुबो दी.

बरखा आज कुछ ज्यादा ही व्यस्त थी. अपने बगीचे से फूल, बेलपत्तियां तोड़, आरती की थाल सजा कर पूजापाठ करने के बाद बेटी वैदेही को आवाज दे रही थीं. आज तरहतरह के पकवान बनाने थे, विशेष पूजा जो थी. खानदानी पुरोहित विश्वकर्मा कुछ ही देर में बरखा के घर में पधारने वाले थे.

ब्राह्मण भोजन एवं दान, पंडितजी को नकद 51,000 रुपए के साथ मसलिन सिल्क की धोती और कोसा सिल्क का कुरता, साथ में अनाज फलादि तो हैं ही. ड्राइफ्रूट और मिठाई के डब्बे न दें तो पंडितजी की खातिरदारी अधूरी रह जाए. बरखा की भक्ति के क्या कहने. तभी तो उन्होंने अपने पति वल्लभ से छिपा कर एक पुरानी सोने की अंगूठी भी विश्वकर्मा के लिए निकाल रखी है. ये पंडितजी खानदानी गुरु हैं. उन की कृपा से पति वल्लभ का व्यवसाय और फलेगाफूलेगा.

पति ने एक एजेंसी ले रखी है, अच्छी नहीं चल रही. उन का बेटा 12वीं में है, उस का पढ़ाई में मन नहीं लगता. बेटी का स्नातक के बाद एमटैक इंजीनियर अरुण से शादी की बात जम जाए तो सोने की एक अंगूठी क्या चीज है.
बरखा की इस घर में तूती बोलती है. उन को कुछ कोई कहे, मजाल क्या.
पति वल्लभ कुछ आलसी किस्म के हैं, अपने में ही मस्त. महंगी शराब के शौकीन और नए गैजेटों के दीवाने.
वल्लभ के शौक ऐसे थे कि उन की आय से ज्यादा पैसे उन में व्यय हो जाते.
बरखा के लिए पंडितजी रामबाण थे.
पति में समझदारी आए, बेटे का पढ़ने में मन लगे और बेटी को अच्छा वर मिले, इन्हीं आशाओं में बरखा पंडितजी के बताए टोटके अपनाती रहती. कभीकभार पति या बेटे में कुछ परिवर्तन देख वह उत्साहित हो जाती, कि हो न हो यह पंडितजी के बताए उपायों का ही कमाल है.

बरखा को पूरा विश्वास था कि पंडितजी की कृपा के कारण ही पति को बैंक से लोन मिल गया और ऊपर 2 कमरे, रसोई, बाथरूम, बालकनी आदि बनवा कर किराए पर दिया जा सका. इस से थोड़ी सहूलियत हो गई, वरना पति के इस एजेंसी के भरोसे तो कुछ नहीं होने को था. अब बरखा ने पंडितजी से एक और कृपा करने की प्रार्थना की है. किसी तरह उन्हीं के ही घर में किराए पर रहने वाले इंजीनियर लड़के से उस की बेटी वैदेही की जोड़ी जमा दें.

पहले तो पंडितजी राजी नहीं थे, लड़का लड़की से छोटी जाति का है, हां, उन के पास हर पाप, हर मुसीबत की काट तो है, लेकिन इस के लिए जुगत करनी पड़ती है.

बरखा को पंडितजी ने अलग से अपने घर बुलवा कर कुछ उपाय बताए, कहा, ‘आप किसी मंदिर या ब्राह्मण को 5 बोरी अनाज, 5 लिटर गाय का घी, 5-5 किलो काजूकिशमिश दान करें और किसी ब्राह्मण वंश की नईनवेली दुलहन को लाल बनारसी साड़ी दान में दें तो मैं एक अनुष्ठान द्वारा लड़के पर से छोटी जाति का साया हटा दूंगा. फिर आप की बेटी की शादी उस लड़के से आसानी से हो जाएगी.’
‘जी, पंडितजी. पर बाहर कहां मंदिर या ब्राह्मण ढूंढ़ूं, आप तो हैं न.’
‘सो, आप की जैसी मरजी.’
बरखा को यह लड़का बेहद पसंद था. बिल्डर पिता का इकलौता वारिस, खुद का भी महीने का 70 हजार रुपए का पैकेज. 3 साल की नौकरी में ही काफी दमखम रखने लगा है यह लड़का अरुण. अपनी सामान्य सी बेटी के लिए यह लड़का किसी हीरे से कम नहीं था. बरखा ने पंडितजी को ही सारा सामान देदिला कर कर्तव्य खत्म कर लिया. पंडित ने सामान तो रखा ही, अपने बेटे की नई शादी से घर आई दुलहन को अपनी तरफ से लाल बनारसी दान दे दी.

हां, पंडितजी बरखा से यह कहना न भूले कि बरखा को ज्यादा पुण्य का भाग मिले, इसलिए उन की दी हुई साड़ी खुद की बहू को उन्होंने दे दी.

बरखा पंडितजी की इस दयादृष्टि पर फूली नहीं समाई. अब तो जरूर ही बरखा की मनोरथ पूरी होगी. पंडितजी की सलाह पर बरखा अपनी बेटी को अरुण के कमरे में टिफिन ले कर भेजने लगी थी. अरुण ज्यादा घूमनेफिरने का शौकीन नहीं था. 8 बजे औफिस से आ कर वह घर पर ही शांति से विश्राम करता, पढ़ता या कंप्यूटर पर काम करता. ऐसे में समय काटने के लिए वैसे ही वैदेही का उस के पास आना उसे अच्छा लगने लगा था.

अपनी मां की शह और परामर्श से वैदेही अरुण के परिवार और उस की रुचि की जानकारी लेती हुई उस के करीब होती गई. 28 साल का अरुण उस के इस तरह खुद से करीब आने पर अपने पर काबू न रख पाया. एक उम्र का दौर, एक जरूरत चाहतों की, वे दोनों सीमाओं की लकीरें लांघते रहे.

एक दिन वैदेही ने पिता वल्लभ को मां से कहते सुना.
‘बेटी को जबतब उस लड़के के पास भेज रही हो, उस का पिता धनी है. वे भला हम से क्यों रिश्ता जोड़ेंगे? और फिर तुम्हें तो जाति की भी पड़ी रहती है, अब तो लड़का हम से कम है जाति में, फिर?’

‘अजी, जाति तब मानती हूं जब सामने वाला इतना धनी न हो. सोचो जरा, एक तो इकलौता लड़का, खुद ही इतना कमाता है, ऊपर से बिल्डर पिता का इतने करोड़ों का कारोबार. जाति के पीछे क्यों मरूं?’

‘ठीक है, माना जाति गई लालच की दुकान पर तेल लेने, लेकिन शादी होगी कैसे? उस के परिवार को राजी करना जरूरी नहीं?’

‘क्यों न होंगे वे राजी? पंडितजी किसलिए हैं? इतने टोटके करवाते हैं मुझ से?’
‘हां, तभी तो सारा दिन तेलसिंदूर पोत कर कभी पीपल, कभी वट के पेड़ में धागे बांधती रहती हो. गाय को तिलगुड़, कुत्ते को रोटी और कौए को चावल खिलाती हो. पेड़पौधों पर मंत्र पढ़पढ़ कर पानी छिड़कती रहती हो. तरहतरह के मंदिरों में जाजा कर नारियल चढ़ाती रहती हो.’
‘तो तुम कौन से दूध के धुले हो, शराब में पैसे नहीं उड़ाते?’
‘हां उड़ाता हूं, शौक करता हूं, तुम्हारी तरह खुद को धोखे में नहीं रखता कि शराब पीने से मैं अमीर हो जाऊंगा या मेरी बेटी की उस अमीर लड़के से शादी हो जाएगी.
‘तुम्हें गाय को या कुत्ते को या जानवरों को खिलाने का शौक है तो खिलाओ. उन की भूख मिटाने के लिए खिलाओ. अपने फायदे की सोच कर वह भी यह कि ऐसा करने से तुम्हारी बेटी को वह मिल जाएगा. यह तो दिमागी बीमारी है.’
‘तो क्या तुम्हारी एजेंसी अब पहले से अच्छी नहीं चल रही?’
‘चल रही है, एक नया होनहार लड़का आया है, इसलिए. तुम्हारे टोटके से बिलकुल भी नहीं. अब हम और ग्राहकों को ढूंढ़ने लगे हैं. होम सर्विस देने लगे हैं.’
‘और यह लड़का आया कहां से?’
‘विज्ञापन से.’
‘विज्ञापन देने से नहीं, तुम्हारे विज्ञापन से नहीं, पंडितजी ने मुझे लाल कपड़े में
3 चांदी के सिक्के बांध नदी में बहाने को कहा था, इसलिए.’
‘नदी में? यहां कौन सी नदी है नजदीक?’
‘पंडितजी के घर के सामने बने पोखर में, पंडितजी ने ही कहा, कहां बेचारी नदी ढूंढ़ने जाओगी, मेरे घर के सामने का पोखर बहुत ही पवित्र है.
‘कितना खयाल रखते हैं, पंडितजी.’
‘वह पोखर कहां? पानी का गड्ढा है जिस में पंडितजी फूलपत्तियां फेंकते हैं.’
‘हां वहीं, वहीं, डाले मैं ने चांदी के सिक्के.’
‘समझ. मेरी जमापूंजी खाली कर के मुझे धनी बनाने में लगी हो. रोना लिखा है आगे.’
‘रोएं मेरे दुश्मन.’
वैदेही अब तक चुपचाप सब सुन रही थी. मां के इस पुख्ता विश्वास ने बेटी को बड़ा मनोबल दिया. वह भी टोटकों के सहारे अपने ऊंचे सपनों को पूरा कर लेने का नया सपना संजोने लगी.
वैदेही नाम के ‘खिलौने’ से खेलते अरुण के दिन अच्छे ही कट रहे थे. साल बीत कर दूसरा साल लगा तो एक दिन अचानक वैदेही की तबीयत बिगड़ी.

जांच से खबर लगी कि वैदेही प्रैग्नैंट है. बरखा पहले तो घबराई, लेकिन बाद में उसे एक नई राह मिल गई, सोचा, ‘बेटी के अबौर्शन को रोक कर लड़के के घरवालों पर शादी के लिए दबाव बनाया जाए. बेटे को फंसता देख उन के पैसे की अकड़ काम नहीं आएगी और लड़की की इज्जत से खेलने की कीमत शादी कर के चुकानी पड़ेगी.’

अभिशाप में छिपे वर को पहचान बरखा ने बेटी को अबौर्शन के लिए बिलकुल मना कर दिया. उसे अच्छी तरह यह भी समझ दिया कि वह बच्चे की दुहाई दे कर अरुण पर तुरंत शादी का दबाव बनाए.

बरखा अबौर्शन के लिए वल्लभ की बात अनसुनी कर सीधे पंडितजी के पास पहुंच गई. पंडितजी को आगे की इन बातों का सरसरी तौर पर अंदेशा था ही, आखिर उस का तकाजा और बड़ों की शह पर ये नजदीकियां. उन्होंने बरखा को सुझाव दिया, ‘‘आप लड़के पर लड़की के द्वारा इस चार्ज पर केस करवाओ कि शादी के झांसे में लड़का सालभर से लड़की का शारीरिक शोषण करता रहा. अब शादी से मुकर रहा है.’’
‘‘पर पंडितजी, इस में लड़का कुछ कह नहीं सकता. उस के परिवार वाले तो धमका रहे हैं हमें.’’
‘‘अरे, केस तो करो. फिर देखना कोर्ट से आदेश मिलते ही कैसे आते हैं वे शादी करवाने और नहीं भी हुई शादी तो गर्भवती कर छोड़ने के लिए लाखों का मुआवजा तो मिलेगा ही.’’
‘‘जी पंडितजी, आप कितना सोचते हैं.’’
‘‘मैं खुद इस बार जोरदार यज्ञ करूंगा. आप इस यज्ञ के लिए बस 51 हजार रुपए और दे देना और कुछ देने की जरूरत नहीं.’’
‘‘पंडितजी अभी तो हाथ बहुत खाली हैं, कुछ कम कर दें तो…’’
‘‘अरे, आप इतनी कुलीन, शालीन और भक्त स्त्री हैं, फिर भी पैसे के लिए सौदेबाजी कर रही हैं. हम तो भक्त की नीतिश्रद्धा को देखते हुए ईश्वर तक आप की बात पहुंचाते हैं. आप की श्रद्धा कम होगी तो ईश्वर तक बात पहुंचेगी ही नहीं. फिर बेटी आप की महलों की रानी बनेगी, आप भी दूध में नहाओगी. आप अभी गरीब पंडित का हिस्सा कम कर रही हो?’’
‘‘नहींनहीं पंडितजी. आप दुखी और क्रोधित मत होना. ठीक है, मैं वल्लभजी के साथ जौइंट अकाउंट से कुछ निकालने की कोशिश करूंगी. आप थोड़ा मंत्र पढ़ देना. उन्हें ध्यान न रहे, पता न चले.’’
‘‘खुश रहो देवी. मैं तुम्हारे लिए अवश्य ही मंत्रोच्चार करता रहूंगा.’’
साल बीतते बरखा के घर का हाल बिलकुल बदल चुका था. वैदेही ने एक बेटी को जन्म दिया था. बरखा ही उसे संभाल रही थी.

अरुण के पिता को जब बरखा का बेटी की शादी को ले कर पत्र मिला तो वे रायपुर से सीधे उन के घर आ धमके. साथ में, कई अन्य लोग भी थे. बेटे को तो सामान सहित कुछ दिनों की छुट्टी ले कर साथ लिवा ले ही गए, बरखा को चेतावनी दी कि अब वे इस केस का नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहें.

जब शादी का झांसा दे कर रेप करने का चार्ज लगा, केस फाइल कर दिया गया था, वैदेही के लिए हर पल डरावना था जैसे कि मगरमच्छ के खुले जबड़े के सामने उसे तैरने के लिए छोड़ दिया गया हो.

इधर पंडित विश्वकर्माजी से जबजब बरखा अपनी परेशानी बताती, वे पूजापाठ अंगूठी, जड़ीबूटी आदि के नाम पर खूब पैसे मांगते. बरखा भी क्या करे. पहले लालच का फंदा, फिर लालच से निकलने का फंदा. गले की हड्डी बन गई थी पंडित का लालच.

वैदेही इन महीनों में टूट सी गई. उसे अपनेआप पर बड़ा तरस आता. उस की सहेलियां दिमाग की दुरुस्त थीं. कुछ नौकरियां कर रही थीं, कुछ पोस्ट ग्रेजुएशन. आज वे कितनी चैन से थीं और वैदेही कोर्ट के चक्कर लगालगा कर एडि़यां घिस रही थी. बीए में भी बहुत कम अंक आए थे क्योंकि वह तो अरुण के प्रेमजाल में डूबी थी.

पंडित विश्वकर्मा के बारे में अरुण के बिल्डर पिता को जैसे ही पता चला, वे पहुंच गए उन के घर. एक लाख का चैक दे कर कहा, ‘‘बरखा और उस के परिवार की बुद्धि ऐसी भ्रष्ट कर दो कि उन का सारा आत्मविश्वास खत्म हो जाए. वे पूरी तरह टूट जाएं और केस में उलटासीधा दांव चलें.’’ विश्वकर्माजी के टोटकों और चोंचलों का तो बस एक ही मकसद था, वह था धन. जब वह अरुण के पिता से आ रहा तो बरखा के 20-30 हजार को कौन पूछे. बस, तब से बरखा के टोटकों की गति धीमी पड़ गई है. उधर पंडितजी के उलटे परामर्श से कई बार बरखा ने केस के मामले में गलत बयान भी दे डाले.

वैदेही के पिता ने एक सीनियर वकील ढूंढ़ा तो था लेकिन उन की फीस ज्यादा थी. उन्होंने वल्लभजी को कुंदन के पास भेजा. 30 साल का यह युवक बड़ा ही मेधावी और तार्किक था. सीनियर वकील ने ही वल्लभजी से कहा कि वे कुंदन से मदद लें भले ही 4 साल ही हुए हैं उस की प्रैक्टिस में लेकिन वह किसी अनुभवी वकील से कम नहीं.’’ फीस कम थी उस की. सो, कुंदन ही इन का केस देख रहा था.

उस रोज कोर्ट में वर्डिक्ट आने के बाद वैदेही टूट सी गई थी. कुंदन ने उसे अपने औफिस में बुला कर बैठाया, कहा, ‘‘तुम ने केस फाइल करने से पहले यह नहीं सोचा कि यह कितना कमजोर केस है. मुंबई हाईकोर्ट के नवीनतम आदेश के अनुसार कोई भी लड़की, जो बालिग है और अपनी मरजी से संबंध बनाया हो, शादी के दबाव में लड़के पर रेप का चार्ज नहीं लगा सकती. एक लड़की को भी इस संबंध की जिम्मेदारी उठानी चाहिए. जहां धोखे से संबंध बनाए गए हों, तब बात अलग है.

‘‘एक तो तुम 22 साल की पूर्ण वयस्क, स्नातक पढ़ी, तिस पर लड़का तुम्हारे घर का किराएदार, जहां तुम अपने मातापिता के साथ रहती हो, शादी का ?ांसा दे कर रेप कर रहा है. यह तो साफ केस है उस के पिता के रुतबे और उस के पैसे को देख शादी के लिए फांसने का. कानून अंधा तो होता है पर इसलिए कि अमीरगरीब, स्त्रीपुरुष, ऐसे किसी भेदभाव को न देखे, ऐसा अंधा नहीं कि अन्याय का चेहरा न देख सके. मेरे सीनियर ने कहा था, इसलिए यह केस लिया था मैं ने.’’
‘‘मुझ से गलती हो गई पर जज साहब उसे मुआवजे को तो बोल सकते थे. मुझे ही समझाइश देने लगे.’’
‘‘क्यों देगा वह मुआवजा? आनंद दोनों ने मिल कर उठाया.’’
अचानक कुंदन थम गया. उसे एहसास हुआ कि उसे लड़की को प्रत्यक्ष जलील नहीं करना चाहिए.

वैदेही ने सिर झुका लिया. दो बूंद आंसू उस की गोद में ढुलक पड़े. सामने बैठे कुंदन को यह दिखा तो वह अपनी कुरसी से उठ वैदेही के पीछे आ खड़ा हुआ. उस की पीठ पर सहानुभूति का छोटा सा स्पर्श रखा और पूछा.
‘‘तुम इस राह पर कैसे चल पड़ीं?’’
‘‘मेरी मां की अति महत्त्वाकांक्षा, धन के प्रति लालसा और इन सब को हासिल करने का आसान उपाय टोनेटोटके में विश्वास.’’
‘‘तुम्हें क्या जरूरत थी इन सब के पीछे पड़ने की, पढ़ीलिखी हो?’’
‘‘मां हर वक्त पंडितजी की जादुई ताकत का वर्णन करती कि उन के बताए उपायों से हम जो चाहे पा सकते हैं. मां इसी वजह से उन की हर डिमांड पूरी करती. ज्यादा पाने की होड़ में जो अपना था वह भी गंवा दिया. मैं मां की अंधश्रद्धा पर पूरा विश्वास रखती थी. अब सोचती हूं मां का या घर की पत्नी का बौद्धिक, तार्किक और विवेकी होना कितना जरूरी है.’’
‘‘तो तुम लोग हारे कैसे? टोटके ने काम नहीं किया? दरअसल टोटका नहीं, जो मनोबल पहले तुम्हें पंडितजी से मिलता था, उसे बाद में अरुण के पिता ने उन से काफी रुपयों के एवज में खरीद लिया. अब पंडित ने तुम्हें मनोवैज्ञानिक तौर पर तोड़ दिया, ऐसी बातें कहता कि तुम्हारी शक्ति क्षीण होने लगी. तुम लोगों ने केस में काफी गलत बयान भी दिए और यह सब उस पंडितजी के कहने पर. ऐसे भी मैं टोटका नियंत्रित नहीं हूं. टोटकों का मु?ा पर असर न हो सका और तुम हारे.’’ कुंदन ने हलका सा मजाक किया. दुखी होते हुए भी वैदेही मुसकराए बिना नहीं रह सकी.

कुंदन ने कुछ समझने के अंदाज में कहना जारी रखा, ‘‘दरअसल वैदेही, जिस घर की जड़ में अंधविश्वास फैला है वहां लालच, भय, बदला जैसे नकारात्मक शत्रु पैदा हो ही जाते हैं. ऐसे में बच्चों की सही परवरिश तो क्या, परिवार की जड़ें ही खोखली हो जाती हैं. ये अंधी आस्थाएं कमजोर दिलों में अमरबेल की तरह फैलती जाती हैं. ऐसे में उस व्यक्ति या परिवार का समूल नाश होना तय है.

‘‘तुम्हारे घर में तुम्हें लगता होगा कि तुम्हारी मां सब से शक्तिशाली हैं, मगर वही सब से कमजोर थीं. दिल की सच्ची रहो, बेकार का लालच न करो तो किसी टोटके और कर्मकांड की जरूरत नहीं पड़ती. सीधे रास्ते पर कोई पेंच नहीं, समझीं’’

इतने दिनों से वैदेही का कुंदन के साथ उठनाबैठना था, वह अधिकार सहित उस पर डांटडपट कर भी देता तो वैदेही उस की बातों का बुरा न मानती, बल्कि उस की बातों का अनुसरण करती. कुंदन के दिल में इन सब वजहों से वैदेही के प्रति एक अनजानी सी सहानुभूति थी.

माहौल बहुत भारी हो गया था. कुंदन ने वैदेही की ओर देख मुसकराते हुए कहा, ‘‘चलो, आज हमारी बाइक की सवारी करो, कौफी हाउस चलते हैं.’’

कुछ इधरउधर की बातों के बाद कौफी पीते हुए कुंदन ने कहा, ‘‘आगे क्या करना चाहती हो? उन्हीं माताजी की छत्रछाया में दिमागी दिवालिए के इंतजार में?

‘‘मेरी सलाह मानो, तुम्हें अपनी बच्ची की सही परवरिश के लिए आत्मनिर्भर होना जरूरी है, बच्ची को अब उन के भरोसे न छोड़ो. एक के बाद एक जेनरेशन अंधी श्रद्धा के चंगुल में फंसी रह जाएगी वरना.’’

वैदेही कुंदन के प्रति झुकाव सा महसूस करने लगी थी. इस मझधार का एक किनारा सा था कुंदन.

फिर भी वैदेही ने संभाला खुद को, पुरानी गलतियों ने उसे संभल कर व्यवहार करने का इशारा किया था.
उस ने कहा, ‘‘मैं नौकरी की तलाश करना चाहती हूं लेकिन मात्र स्नातक से आजकल क्या होता है?’’
‘‘मैं तुम्हारी मदद करूंगा. अगर आगे भी तुम मेरे साथ बनी रही तो आगे कभी भी अतार्किक बातों में न उलझोगी, ईमानदारी से मेहनत का वादा करो तो हो सकता है मैं आगे तुम्हारे और करीब हो जाऊं.’’

वैदेही कृतज्ञता से भर उठी, कहा, ‘‘मेरी परवरिश गलत हाथों में हुई. लेकिन इन महीनों में आप से नया दृष्टिकोण मिला. मैं केस भले ही हार गई लेकिन जिंदगी की जंग जीत रही हूं.’’
‘‘ठीक है, मैं कुछ दिनों में ही औफिस खोलूंगा. शाम को 3 घंटे वहां प्राइवेट प्रैक्टिस करूंगा. तुम मेरी पर्सनल असिस्टैंट के तौर पर काम करो. आगे लौ में डिप्लोमा कर लो, मैं इंतजाम कर दूंगा.’’

वेतन अभी ज्यादा तो दे नहीं पाऊंगा मगर इतना तो जरूर करूंगा कि तुम पढ़ाई और आनेजाने के खर्चे आसानी से निकाल लो. कुछ महीने अभी मां के पास रह कर मेरे पास काम शुरू करो. और हां, फालतू के सपने कभी न देखना. मेरी गर्लफ्रैंड है, हम विवाह का फैसला कर चुके हैं. यह बता दूं, हम ने कभी बिस्तर पर शाम नहीं बिताई है.

वैदेही को इस खुशी के इजहार का सही शब्द न मिला, सिर्फ चेहरे पर कुछ भाव ऐसे आएगए कि कुंदन ने अपना हाथ आगे बढ़ा टेबल पर रखे वैदेही के हाथ को थाम कर धीरे से दबाया.
एक दोस्त के भरोसे की छुअन थी. एक उम्मीदों की चहचहाहट थी जिस ने पूरब की खिड़की खोल दी थी. अब सूरज दिखने लगा था.- दीपान्विता
 
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