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यूपी बीजेपी जिलाध्‍यक्षों का ऐलान आज, दर्जन भर जिलों में नहीं बन पाई सहमति

ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. भाजपा संगठन चुनावों में घमासान अभी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। दो महीने की कशमकश के बाद प्रदेश चुनाव अधिकारी ने रविवार को जिलाध्यक्षों के नामों का ऐलान करने के निर्देश दिए हैं। चुनाव अधिकारियों, पर्यवेक्षकों और पदाधिकारियों की कड़ी निगरानी में जिला स्तर से अध्यक्ष के नामों का ऐलान किया जाएगा लेकिन सूत्रों का कहना है कि अब भी करीब एक दर्जन जिले ऐसे हैं, जहां नामों को लेकर सहमति नहीं बन पाई है। हो सकता है, इन जिलों में जिलाध्यक्ष के नामों का ऐलान न हो पाए।भाजपा संगठन चुनाव अक्टूबर में शुरू हुआ था। तब यह दावा किया जा रहा था कि नए साल की शुरुआत में पार्टी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिल जाएगा लेकिन अभी तक जिलाध्यक्षों का चुनाव ही पूरा नहीं हो पाया है। पहले तो मंडल अध्यक्ष चुनाव में ही काफी वक्त लग गया। मंडल अध्यक्षों के नामों का ऐलान ही जनवरी में हो पाया। उस समय कहा गया था कि जिलाध्यक्षों का चुनाव जनवरी अंत तक पूरा कर लिया जाएगा लेकिन वह दो महीने बाद रविवार को होगा।
जिलाध्यक्ष के नामों की घोषणा के लिए प्रदेश चुनाव अधिकारी डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने निर्देश जारी कर दिए हैं। उन्होंने कहा है कि चयनित अध्यक्षों की लिस्ट शनिवार तक तैयार कर ली जाए। उसके बाद 16 मार्च को जिलों में इन नामों का ऐलान किया जाएगा। सभी जिला चुनाव अधिकारी, चुनाव पर्यवेक्षक को पहले से जिला आवंटित कर दिया गया है, जहां वे जाएंगे। उनको 15 मार्च की रात में ही संबंधित जिले में रवाना कर दिया गया।

चुनाव पर्यवेक्षक अपने अलॉट किए गए एक ही जिले में रहेंगे। बाकी वरिष्ठ पदाधिकारियों और मंत्रियों को भी भेजा गया है। प्रदेश स्तर पर खुद प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश चुनाव प्रभारी, महामंत्री संगठन प्रदेश स्तर से ऑनलाइन मॉनिटरिंग करेंगे। इसके लिए प्रदेश कार्यालय में एक टास्क सेंटर बनाया गया है। सभी जिला कार्यालयों में कैमरे लगाए गए हैं। इनको प्रदेश कार्यालय से जोड़ा गया है।

कई जिलों में सहमति नहीं
भाजपा में संगठन की दृष्टि से प्रदेश में 98 जिले हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अब भी करीब एक दर्जन जिले ऐसे हैं, जिनमें अभी जिलाध्यक्ष के नामों पर सहमति नहीं बन सकी है। उनको छोड़कर बाकी का ऐलान रविवार को हो सकता है। इनमें पांच जिले तो वे हैं, जहां मंडलीय पदाधिकारियों का ही चुनाव नहीं हो सका था। इनमें अयोध्या नगर और ग्रामीण, कानपुर उत्तरी और लखीमपुर शामिल हैं। इसके अलावा कुछ जिले ऐसे हैं जहां जिलाध्यक्ष के नामों पर सहमति नहीं बन पा रही।

क्या है घमासान की वजह?
जब संगठन चुनाव शुरू हुए थे तब पदाधिकारियों ने सोचा था कि यह काम आसानी से हो जाएगा। चूंकि पार्टी सत्ता में है और लगातार इसमें अपनी जगह बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी है। ऐसे में जिला अध्यक्ष का पद पाने के लिए काफी मारामारी है। सूत्रों के अनुसार, पर्यवक्षकों और पदाधिकारियों की कड़ी निगरानी के बावजूद जिला अध्यक्ष चुनाव के दौरान काफी शिकायतें भी आई थीं।

कई शिकायतें केंद्रीय स्तर तक पहुंची थीं। खासतौर से 60 फीसदी पद दलित, ओबीसी और महिलाओं को देने के लिए कहा गया था लेकिन ज्यादातर जिलों से उनके नाम ही नहीं भेजे गए। इस पर केंद्रीय पदाधिकारियों ने दलित, ओबीसी और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के निर्देश दिए। वहीं, दूसरे पक्ष का मानना था जब नामांकन ही नहीं हुआ तो कैसे दूसरे नाम जोड़ लिए जाएं। कई जिलों से लेन-देन कर अध्यक्ष बनाए जाने की भी शिकायतें आई थीं। वरिष्ठ पदाधिकारी भी पार्टी में अपनी मजबूती के लिए अपनों की जिलों में भागीदारी बढ़ाना चाहते हैं।
 
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