कहानी: भूल सुधार
उस परिवार के लिए विनय की पदप्रतिष्ठा व रोबदाब का पलड़ा उन को मिलने वाले प्रस्तावों के मुकाबले काफी भारी था.
मीता यह सुन कर सन्न रह गई कि उस की सहेली ने पार्क स्ट्रीट के एक रेस्तरां में विजय को नशे में धुत्त, एक लङकी को बांहों में ले कर नाचते देखा था. किसी लङकी के साथ इस तरह नाचने में इतनी बुराई नहीं थी, मगर लङकी भले घर की नहीं लगती थी व दोनों ही नशे में बेहूदा हरकतें कर रहे थे. यहां तक कि रेस्तरां के मैनेजर को भी उन्हें वहां से हटाना पड़ा था. गालियां बकते व मैनेजर को धमकाते हुए विजय लङखड़ाता हुआ अपने साथियों को ले कर रेस्तरां से बाहर निकल गया था.
सहेली तो अपना कर्तव्य पूरा कर चली गई, पर मीता सोच में डूब गई,’कहां गलती रह गई… उन लोगों ने तो अपने बच्चों के लिए जीवन की सब सुविधाएं मुहैया की थीं. अच्छे पब्लिक स्कूलों में उन्हें पढ़ाया था. बच्चों का काम करने के लिए हर समय नौकर या कामवाली घर में रहती थी. अच्छे से अच्छा खाना व बढ़िया कपड़े उन के लिए लाए जाते. फिर ऐसा क्यों हुआ?’
कुछ उड़तीउड़ती बातें उस ने लीना के विषय में भी सुनी थीं, पर उसे अपने पति की अच्छे पद से जलने वाले लोगों की नीच सोच की उपज समझ कर उस ने अधिक ध्यान नहीं दिया था. उस ने लीना को हमेशा अपने सैमिनार, ट्यूटोरियल के कालेज अथवा यूनिवर्सिटी के चक्कर लगाते या फिर अपनी किताबों में ही डूबे देखा था. उस का उलटेसीधे चक्करों में पङने का तो सवाल ही नहीं उठता था.
वैसे भी दोनों बच्चे बढ़िया उच्चारण के साथ धाराप्रवाह इंग्लिश बोलते थे, कांटेछुरी से खाना खाते थे. उन के ये बढ़िया तौरतरीके दूसरे बच्चों के मांबाप के लिए जलन का कारण हो सकते थे. मीता व उस के पति विनय को अपनी आधुनिक व सुंदर बच्चों पर बहुत गर्व था.
विजय इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ता था. पढ़ाई में दोनों बच्चे तेज थे. पर अब यह क्या सुनने को मिल रहा था…
शाम को विनय औफिस से आते ही सोफे पर लेट गया. मीता ने माथे पर हाथ फेरा, कहीं बुखार तो नहीं. विनय ने लंबी सांस ले कर उस का हाथ धीरे से हटा दिया, ‘‘बुखारवुखार कुछ नहीं, यों ही सिरदर्द है.’’
‘‘बाम मल देती हूं, आप लेट जाइए.’’
‘‘बाम से कुछ नहीं होगा,’’ विनय सीधे हो कर बैठ गया. बोला, ‘‘जानती हो, आज गोल पार्क में क्या हो रहा था? कुछ आवारा से छोकरे एक गरीब रेहङीवाले को मुफ्त कबाब न खिलाने पर पीट रहे थे. उस की दुकान का सत्यानाश कर दिया उन्होंने और उस की सारी कमाई भी छीन ली.’’
‘‘किसी ने रोका नहीं.’’
‘‘अरे, आम लोग अपनी जान खतरे में क्यों डालें? जब तक पुलिस आई वे बम फेंक कर भाग गए. मैं भी गाड़ी घुमा कर दूसरे रास्ते से आया.’’
‘‘ये सब तो यहां आम बातें हैं. आप क्यों परेशान होते हैं?’’
‘‘यह साधारण बात नहीं है, मीता,’’ विनय ने उसे गहरी नजरों से देखा, ‘‘उन लङकों में लालकाले चैक की शर्ट व बिस्कुटी रंग की जींस पहने एक लङका भी था. यही कपड़े तुम पिछले सप्ताह विजय के लिए न्यू मार्केट से खरीद कर लाई थीं न?’’
मीता कांप उठी. तो उस की सहेली ने झूठ नहीं कहा था. विजय बुरे लङकों की संगति में पड़ गया है, यह साफ था. अचानक उसे अपने पर्स व अलमारी से गायब होते रुपयों का भी ध्यान आया, जिन के लिए वह कामवाली को धमका चुकी थी और उसे निकाल चुकी थी. वह व्यर्थ ही उन गरीबों पर आरोप लगा रही थी. जाहिर है, विजय अपने आवारा साथियों पर उड़ाने के लिए उस के पर्स पर हाथ साफ कर रहा था.
धीमे स्वर में उस ने विनय को दिन में अपनी सहेली से सुनी घटना के बारे में भी बताया. तभी फोन की घंटी बजी. मीता ने फोन उठाया,”हैलो, लीना है?’’
कुछ सोच कर मीता ने कहा, ‘‘हां, लीना ही बोल रही हूं.’’
‘‘ओह, मेरी जान, कल शाम विक्टोरिया के सामने मिलो.’’
‘‘लेकिन, मां…’’
मीता अधिक नहीं बोली. वह नहीं चाहती थी कि दूसरी ओर से बोलने वाला लङका उस की आवाज पहचान जाए. वह मामले की जड़ तक पहुंचना चाहती थी.
‘‘अरे, मां को गोली मारो, ऐक्सट्रा क्लास लगने का बहाना बना कर निकल जाना. पहले भी तो ऐसा कई बार कर चुकी हो.’’
‘‘अच्छा,’’ मीता धीरे से बोली.
‘‘ठीक 5 बजे, बाएं वाले दरवाजे पर,’’ कह कर उधर से फोन बंद कर दिया गया. विनय भी सारी बातें सुन रहा था.
दोनों मौन बैठे रहे. मीता ने पति से कहा, ‘‘कुछ कीजिए न, ऐसे चुप बैठे रहने से कैसे काम चलेगा.’’
‘‘अब क्या करने को रह गया है? दोनों बच्चे हाथ से निकल गए हैं. मैं तो अपने औफिस के काम से अकसर दौरे पर रहता हूं. लगता है, तुम घर का खयाल नहीं रखतीं. दिनरात लेडीज क्लब व किट्टी पार्टी के चक्करों में घर से गायब रहती हो.’’
‘‘हां, अब सारा दोष मेरा ही है. तुम भी तो शनिवार की रात ताश मंडली जमा कर रविवार सवेरे तक व्यस्त रहते हो और साथ मुझे भी घसीट ले जाते हो. जवान बेटे के सामने घर में खुलेआम शराब की बोतल खोल कर बैठ जाते हो. इन सब से तो घर में बड़ा सुधार होता है न.’’
एकदूसरे पर दोषारोपण के बाद दोनों ने ठंडे मन से विचार किया. दोनों को ध्यान आया कि उन्हें अपने बच्चों के मित्रों, कालेज के समय व लीना के विषय में किसी भी बात का पता नहीं था. शुरू में 1-2 बार लीना व विजय ने अपने मित्रों को खाने पर बुलाने को कहा भी था, पर समय न होने के कारण मीता टाल गई थी. फिर दोनों को रुपए दे कर कह दिया था कि रेस्तरां में ही खाना खिला देना.
दोबारा जब लीना ने चाय पार्टी के लिए अपनी सहेलियों को बुलाया तो मीता नौकर को आवश्यक निर्देश दे कर नारी स्वतंत्रता पर एक नेता का भाषण सुनने महिला क्लब की बैठक में चली गई थी.
अब ठोकर लगने पर दोनों की आंखें खुल गईं. मीता उठ कर लीना के कमरे में गई. पाठ्यक्रम की मोटीमोटी किताबों पर धूल जमी थी, मानो किसी ने उन्हें छुआ ही न हो. एक दराज में अश्लील साहित्य भरा था.
मीता ने विनय को सलाह दी कि अगली शाम वह उस लङके को जा कर देखे तो सही. शायद वह लीना के सुयोग्य वर ही हो. विनय मान गया, पर दोनों जानते थे कि यह उन का भ्रम मात्र है कि वह लङका योग्य पात्र होगा.
दूसरे दिन विनय विक्टोरिया मैमोरियल के बाएं फाटक पर चहलकदमी करते उस हिप्पीनुमा लङके को देख आया. एक ही दिन में उस की आयु के 10 साल बढ़ गए थे.
कहां वह लीना के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी या निजी फर्म का कोई मैनेजर खोज रहा था और कहां भुट्टा चबाता, मैलेकुचैले कपड़ों में गंधाता यह हिप्पी.
लीना को डांटनेधमकाने का अब कोई लाभ नहीं था. इस तरह तो वह घर से भाग सकती थी. विनय ने मीता को समझाया कि पानी सिर से काफी ऊंचा हो गया है, पर शायद ध्यान देने से अब भी बिगड़ी बात बन सकती है. बच्चों को सही राह पर लाने का प्रयास अभी भी किया जा सकता है.
मीता ने लीना के साथ खूब गपशप करने की कोशिश की. लीना अपने कमरे में मां की उपस्थिति से बोर ही होती, पर मीता ने उस का पीछा नहीं छोड़ा.
एक दिन बाजार खरीदारी में मदद करने के लिए भी उस ने लीना से कहा. लीना ने भी सोचा कि मां को बाजार में ही छोड़ कर फिल्म चली जाएगी. पर मीता ने उस से साङियां पसंद करने को कहा, ‘‘बेटी, मेरी पसंद तो पुरानी हो गई है, तुम्हीं जरा नए जमाने की साङियां चुन दो.’’
वहीं दुकान में आग्रह कर उस ने लीना को अच्छे चड़ीदार कुरते व कमीजसलवार के सैट भी खरीदवा दिए. पहले तो लीना ने नाकभौं चढ़ाई, पर फिर मां का मन रखने के लिए ट्रायल रूम में जा कर अपनी मैली जींस व हाल्टर टौप बदल कर आ गई. अपने व्यक्तित्व के इस नए निखार पर वह स्वयं हैरान रह गई.
मैले कपड़े उतार कर वह खुद भी आराम का अनुभव कर रही थी. अगले कुछ दिनों में मां की बढ़िया रेशमी साङियां भी पहन कर देखीं. नरम रेशमी कपड़े का स्पर्श खुरदरी जींस और डायनस के बाद बड़ा सुखद लगा. मांबाप के साथ वह एकआध पार्टी में भी गई. कालेज के फक्कड़ों के स्थान पर सभ्य लेकिन आधुनिक लोग अच्छे लगे.
उधर विनय ने विजय की ओर अधिक ध्यान देना प्रारंभ किया. वह उस से उस के कालेज और पढ़ाई के विषय में चर्चा करता. विजय को अच्छा तो न लगता, पर खुलेआम वह पिता का अनादर न करता.
अभी वह पूरी तरह नहीं बिगड़ा था और फिर अच्छे संस्कार तो कहीं दबेढके थे ही, जिन पर बुरी संगत की धूल भी जमी हुई थी. इसी धूल को विनय खुरचने का प्रयास कर रहा था.
एक दिन विनय उस के कमरे में स्टीरियो सुनने जा पहुुंचा. साथ में फ्रिज से बीयर की बोतल भी निकाल ली. एक गिलास में बीयर डाल उसे विजय की ओर बढ़ा दिया. विजय हड़बड़ा गया, ‘‘नहीं… नहीं, पापा, मैं तो यह नहीं पीता.’’
‘‘अच्छा,’’ विनय ने हैरानी का नाटक किया. ‘‘आजकल तो लङके 10वीं तक पहुंचतेपहुंचते ही बिगड़ जाते हैं और मांबाप के सामने बैठ कर खूब शराबसिगरेट पीते हैं. मुझे बड़ी खुशी हुई कि मेरा बेटा इन सब ऐबों से परे है. लो, आज से मैं भी इसे छोड़ देता हूं,’’ कह कर विनय ने बोतल कूड़ेदान में फेंक दी.
विजय ने भी चुपचाप सिगरेट की डब्बी, जो खिङकी के परदे के पास पड़ी थी, आहिस्ता से सरका कर बाहर गली में गिरा दी. विनय ने देख कर भी अनदेखा कर दिया. कुछ देर तक तो वह विजय का कानफोड़ू अंगरेजी संगीत सुनता रहा, फिर अपने कमरे में जा कर आनंद शंकर के रिकौर्ड किया पेन ड्राइव उठा लाया.
‘‘ये मैं ने खरीदे थे. रामलालाजी की बेटी इन की बड़ी प्रशंसा कर रही थी. जरा लगाओ तो.’’
अनिच्छा से विजय ने पेन ड्राइव लगाया. भारतीय व विदेशी संगीत का अनोखा संगम सुन कर वह मुग्ध हो गया. चीखचिल्लाहट भरे संगीत के अभ्यस्त कान सितार का मधुर स्वर सुन कर मस्त हो गई. इस संगीत के साथ हाथपैर फेंकफेंक कर मटकने के स्थान पर आंख बंद कर आराम से सुनने को मन चाहता था.
‘‘यह तो बहुत मस्त है, पापा. मैं तो समझा था, आप क्लासिकल म्यूजिक के रिकौर्ड लाए होंगे.’’
‘‘अरे, नहीं, वे तो मेरे पल्ले ही नहीं पड़ते, उन्हें समझने के लिए तो संगीत की पर्याप्त जानकारी होना आवश्यक है.’’
अनजाने ही विनय विजय को राजनीतिक चर्चा, फुटबाल, क्रिकेट और ताजा घटनाओं में घसीट लेता. इस तरह विजय का बाहर जाना काफी कम हो गया. खाने की मेज पर भी रात को विभिन्न विषयों पर मातापिता और बच्चों में खूब चर्चा होती व कई बार बहस भी हो जाती, पर सब इसे सामान्य रूप में लेते.
एक दिन पीढ़ियों के अंतर पर बहस होने लगी. बिना कोई व्यक्तिगत प्रहार किए विनय ने विजय व लीना को समझाया, ‘‘मांबाप जानबूझ कर कभी बच्चों की उपेक्षा नहीं करते. अब मुझे ही लो.
‘‘पिछले 2 सालों से मैं कंपनी का सब से बड़ा अधिकारी हूं. मेरी जिम्मेदारियां बहुत बढ़ गईं, सो मैं तुम लोगों को अधिक समय नहीं दे सका. और फिर मुझे दौरे भी बहुत करने पड़ते हैं.
‘‘यह सब तुम लोगों की सुखसुविधा के लिए ही तो करता हूं. तुम्हारी मां को भी मेरी पत्नी होने के नाते अनेक सामाजिक संस्थाओं में जाना पड़ता है. कभी शायद हम लोगों ने लापरवाही भी बरती हो, पर वह तो इसीलिए कि हमें तुम दोनों पर विश्वास है. हमें मालूम है कि अच्छी शिक्षा तुम्हें कभी भटकने नहीं देगी.’’
तनाव के कारण मीता की मुट्ठियां भिची हुई थीं. लीना और विजय ने झुके हुए सिर उठा कर कहा, ‘‘आप ठीक कहते हैं, पापा, हम कभी आप का सिर नीचा नहीं होने देंगे.’’
‘‘अरे, सिर क्या नीचा होगा. तुम दोनों का तो मैं प्रबंध करने वाला हूं,’’
वह लीना से बोला, ‘‘आनंदजी का बेटा तो तुम ने पिछली पार्टी में देखा ही था. उन्हीं के घर से तुम्हारे लिए रिश्ता आया है. वह एक कंपनी में डिवीजनल इंजीनियर है. तुम्हीं बताओ, उन्हें क्या उत्तर दूं?’’
शरम से लाल होती लीना ‘धत्’ कह कर अपने कमरे में भाग गई.
मध्यवर्गीय आनंद परिवार से रिश्ता विनय ने स्वयं मांगा था क्योंकि लङका बहुत अच्छा था और उस परिवार के लिए विनय की पदप्रतिष्ठा व रोबदाब का पलड़ा उन को मिलने वाले प्रस्तावों के मुकाबले काफी भारी था.
‘‘और, बरखुरदार, तुम्हारे लिए भी मैं ने एक प्रबंध किया है,’’ वह विजय की ओर मुखातिब हुआ, ‘‘तुम्हारी 2 महीने की छुट्टियां हैं. मेरा एक ठेकेदार मित्र है जो बहुमंजिली इमारतें बनवाता है. उसे किसी विश्वसनीय आदमी की जरूरत है. उस के पास 2 महीने काम कर लो. तुम्हारा प्रशिक्षण भी हो जाएगा और तुम्हें ओवरसियर का वेतन भी मिलेगा. मैं तो अब लीना की शादी के इंतजाम के लिए पैसे की व्यवस्था में लगा हूं.’’
‘‘ठीक है, पिताजी, इस तरह मैं भी लीना को अपनी कमाई के पैसों से अच्छा सा उपहार दे सकूंगा.’’
‘‘अरे भई, एक बार तुम इंजीनियर बन गए तो फिर तुम्हारी कमाई से ही घर चलेगा. मैं तो अवकाश ग्रहण कर आराम करूंगा.’’
तीनों हंसने लगे. मीता की भिची मुट्ठियां आहिस्ताआहिस्ता खुल गई थीं और विनय के ठहाके सारे घर में गूंज रहे थे. - आदर्श