कहानी: मैंने कोई जादू नहीं किया
कोई बालों को केवल न्यूट्रीशन देने के लिए मेहंदी, अंडा, दही, नीबू आदि आजमा रहा था तो कोई खिचड़ी बालों को रंगने के लिए कैमिकल हेयरडाई का इस्तेमाल करता था.
नविता शुभांगी को मांबाबूजी समझासमझा कर हार गए लेकिन शादी के मामले में उस ने किसी की न सुनी. कोई न कोई कमी उसे हर लड़के में नजर आ जाती और झट उसे नापसंद कर देती. लेकिन भाभी ने शुभांगी को आत्ममंथन के लिए ऐसा प्रेरित किया कि… आज घड़ी की सूइयां कुछ ज्यादा ही तेज रफ्तार से भाग रही थीं. काम निबटाते हुए पता ही नहीं चला कि कब 5 बज गए. मां, बाबूजी और शुभांगी आने वाले थे. अनिकेत उन्हें लेने स्टेशन गए थे. बच्चे भी दादी, बाबा और बूआ के आने को ले कर उत्साहित थे. ‘‘रोहित, रुचि, कोई चीज इधरउधर मत फैलाना, मैं ने अभी सब ठीक किया है,’’ मैं किचन से ही उन्हें निर्देश दे रही थी. ‘‘मम्मी, हम तो स्टडी रूम में हैं, कंप्यूटर के पास,’’ रोहित ने आश्वस्त किया. तभी गाड़ी के रुकने की आवाज आई. ‘लगता है वे लोग आ गए,’ मैं ने सोचा और जल्दी से साड़ी ठीक कर पल्लू सिर पर लिया और दरवाजा खोला. बहुत दिनों बाद उन का आना हुआ था.
मैं ने सब के पैर छुए. ‘‘खुश रहो, बेटी,’’ बाबूजी ने सदा की तरह अपना स्नेहभरा आशीर्वाद दिया और बोले, ‘‘बच्चे कहां हैं, दिखाई नहीं दे रहे?’’ ‘‘अभी बुलाती हूं, बाबूजी. कंप्यूटर गेम खेल रहे हैं. कब से आप सब का इंतजार कर रहे थे,’’ कहते हुए मैं ने बच्चों को पुकारा, ‘‘रोहित, रुचि, जल्दी आओ, दादी, बाबा और बूआ आ गए.’’ बच्चे दौड़ कर आए और दादीबाबा से लिपट गए. रोहित बोला, ‘‘कैसे हैं आप, बाबा?’’ ‘‘आप जानते हैं, हमारा नया कंप्यूटर आया है,’’ रुचि आंखें मटकाती बोली. उत्साह से भरे दोनों बच्चे अपनीअपनी बातें बताने की होड़ में लगे थे, ‘‘चलो, बूआ आओ तो, आप को दिखाते हैं.’’ ‘‘अरेअरे… रुको तो, अभी सांस तो लेने दो. अभीअभी तो आए हैं. चायनाश्ते के बाद आराम से दिखाना,’’ शुभांगी बोली. लेकिन बच्चों को सब्र कहां था, बूआ को अपने साथ ले जा कर ही माने. ‘‘भाभी, मेरी चाय स्टडी रूम में ही भिजवा दीजिएगा,’’ कहती शुभांगी स्टडी रूम में चली गई.
‘‘और बहू, सब ठीक तो है?’’ मांजी ने स्नेहिल शब्दों में पूछा. ‘‘हां, मांजी, सब ठीक है, लेकिन आप पहले बताइए कि आप का बीपी अब कैसा है? बाबूजी का मोतियाबिंद का औपरेशन कब होना है?’’ ‘‘हमारा क्या है, बहू, बुढ़ापा है, कुछ न कुछ रोग लगा ही रहता है. पिछले हफ्ते बीपी फिर लो हो गया था. दवाइयां ले रही हूं. इन का मोतियाबिंद अभी पूरी तरह पका नहीं है. औपरेशन में समय लगेगा. फिर हम ठहरे सूखे पत्ते, कब टूट जाएं, क्या भरोसा.’’ ‘‘ऐसा क्यों कहती हैं, मांजी, सब ठीक हो जाएगा. अरे हां, शुभांगी के रिश्ते की बात कहीं तय हुई या नहीं?’’ मैं ने बातों का रुख दूसरी तरफ मोड़ते हुए पूछा. ‘‘अरे कहां, इस लड़की से तो मैं तंग आ गई हूं. कोई लड़का इसे पसंद ही नहीं आता. किसी में कोई कमी बताती है तो किसी में कोई. न जाने कौन सा राजकुमार चाहती है. क्या होगा इस लड़की का,’’ कहती मांजी के स्वर में बेबसी और आंखों में तैरते लाचारी के आंसू एक मां की अपनी बेटी को विदा करने की आकुलता की कहानी कह रहे थे. अपनी लाड़ली के भविष्य को ले कर उन की चिंता तर्कसंगत भी थी.
वे फिर बोलीं, ‘‘हम लोग तो हार मान चुके हैं, बहू. परसों ही रामगोपालजी रीतेश को ले कर इसे देखने आए थे. तुम तो जानती हो, नील की शादी में उन से तुम्हें भी मिलवाया था. अब तो रीतेश इंजीनियर हो गया है. अच्छेखासे खातेपीते लोग हैं. नेचर भी अच्छा है. बस, लड़के के बाल पीछे से कुछ सफेद हैं, इतनी सी बात को ले कर तुनक गई, बोली, ‘मुझे उस से शादी नहीं करनी है. मैं जानबूझ कर मक्खी नहीं निगल सकती.’ ‘‘अब तुम्हीं बताओ, बहू, किस मुंह से उन से मना करें. उन्हें तो शुभांगी पसंद भी आ गई है. अभी तो हम ने कह दिया कि शुभांगी के भैयाभाभी से राय ले कर सगाई की तारीख बताएंगे, लेकिन इस लड़की ने तो हमें दुविधा में डाल दिया है.’’ ‘‘आप परेशान न हों, मांजी, सब ठीक हो जाएगा. जो काम जब होना है, तभी होगा,’’ मैं ने धीरज बंधाते कहा. ‘‘क्या बहू, कब तक इंतजार करें.
26 साल की हो गई है. उम्र निकलते देर थोड़े ही लगती है. उम्र ढलने के साथ ही चेहरे की चमक भी चली जाती है. वक्त तो रेत की तरह मुट्ठी से फिसलता जा रहा है. अब तुम ही इसे समझाओ.’’ ‘‘आप बेफिक्र रहिए, मांजी. मैं कोशिश करूंगी,’’ मैं बोली. मैं ने कह तो दिया, लेकिन मन आशंकाओं से भरा था, जिन्हें मैं ने पूरी कुशलता से विश्वास की चादर से ढक लिया था. आज मांबाबूजी वापस जा रहे थे. मेरे आग्रह और बच्चों की जिद पर शुभांगी को यहीं छोड़ दिया. शुभांगी भी किचन में मेरे साथ हाथ बंटा रही थी, ‘‘लाइए भाभी, पूरी मैं तलती हूं.’’ ‘‘अरे, रहने दो शुभांगी, ससुराल में जा कर काम करना, अभी तो आराम करो.’’ ‘‘भाभी… आप ने भी वही टौपिक शुरू कर दिया. वहां भी घर पर दिनरात यही सुनतेसुनते मैं बोर हो गई हूं.’’ ‘‘अच्छा, सौरी बाबा, लो तलो,’’ मैं बोली. मांबाबूजी का खाना पैक किया और सब लोग उन्हें स्टेशन छोड़ने गए. हमेशा की तरह मांजी की आंखों से अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी.
उन का ममतामयी चेहरा सब के दिलों को बरबस बांधे रखता था. ‘‘अच्छा, चलते हैं, बहू,’’ रुंधे कंठ से मांजी ने कहा. ‘‘हां, मांजी. घर पहुंचते ही फोन कीजिएगा,’’ मैं बोली और गाड़ी चल पड़ी. जब तक दादीबाबा का चेहरा आंखों से ओझल नहीं हो गया, बच्चे उन्हें लगातार टाटा करते रहे. बच्चे अब अपनी बूआ के साथ मस्त हो गए थे. अगले दिन बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद घर के काम निबटाए ही थे कि शालिनी आ गई. ‘‘भाभीजी, चल रही हैं क्या मालतीजी के यहां? उन्होंने बहुत अच्छी बुनाई डाली है. देख आएं, मुझे भी साक्षी का स्वेटर बनाना है,’’ शालिनी बोली. ‘‘चलते हैं, बस, 2 मिनट रुकिए,’’ कहती मैं शुभांगी से बोली, ‘‘शुभांगी, चलो जरा, तुम्हें अपनी फ्रैंड से मिलवाती हूं.’’ मालतीजी के यहां तो मानो महफिल जमी थी. नयना और सपना भी वहीं थीं. सभी घर के कामों से निबट कर सर्दी की कुनकुनी धूप में बैठ कर स्वेटर बुनने में व्यस्त थीं. उन का मिलबैठ कर बुनना, सीखनासिखाना काबिलेतारीफ था. मैं ने शुभांगी को सब से परिचित करवाया. ‘‘और नयनाजी, शादी में जाने की आप की तैयारियां पूरी हो गईं?’’
मैं ने उत्सुकतावश पूछा. ‘‘हां भई, हो गईं. जिस की शादी है, उसे तो तैयारियां करनी ही होती हैं, पर शादी में जाने वालों की भी तैयारियां करने में बैंड बज जाते हैं,’’ नयना के इतना कहते ही सब खिलखिला कर हंस पड़ीं. वे फिर बोलीं, ‘‘बच्चों की शौपिंग तो लगता है वहां पहुंचने तक भी चलती रहेगी. मुझे बस, फेशियल करवाना है और बालों में मेहंदी.’’ ‘‘आप कौन सी मेहंदी लगाती हैं?’’ शालिनी ने उत्सुकतावश पूछा. ‘‘मैं तो शहनाज की ही मेहंदी इस्तेमाल करती हूं.’’ ‘‘लेकिन वह तो बहुत महंगी होती है,’’ मालती बोल उठीं. ‘‘महंगी तो होती है, लेकिन उस में इनग्रीडिएंट्स बहुत स्टैंडर्ड के होते हैं,’’ नयना ने उत्तर दिया तो नमिता बोलीं, ‘‘आजकल तो कितनी ही तरह की हेयरडाई मार्केट में आ गई हैं जिन्हें लगाने के बाद इंतजार ज्यादा नहीं करना पड़ता. मेहंदी में तो बहुत झंझट है.’’ हेयरडाई पर वादविवाद प्रतियोगिता का अच्छाखासा माहौल बन गया. एकएक कर के सब अपनेअपने राज के परदे उठाने लगीं कि कौनकौन किस तरह क्या इस्तेमाल करती हैं, यहां तक कि हसबैंड भी क्याक्या लगाते हैं. कोई रीठा, आंवला, शिकाकाई पाउडर के पक्ष में था तो कोई हर्बल हेयरडाई के.
कोई बालों को केवल न्यूट्रीशन देने के लिए मेहंदी, अंडा, दही, नीबू आदि आजमा रहा था तो कोई खिचड़ी बालों को रंगने के लिए कैमिकल हेयरडाई का इस्तेमाल करता था. बातोंबातों में पता यह चला कि अधिकांश लोगों के बाल खिचड़ी थे. जिन की जोडि़यां देख कर लगता था इन में कोई कमी नहीं है, वे एकदूजे के लिए परफैक्ट हैं, उन के वैल मैंटेंड रहने के पीछे भी राज छिपा था, जिस का मुझे भी आज ही पता लगा था. क्योंकि ये लोग बालों की सफेदी दिखने से पहले ही दोबारा रैग्यूलरली हेयरडाई का इस्तेमाल कर लेते थे. इन रहस्यों से परदा हटने पर मेरे विचारों में जो मंथन चल रहा था, उस से मेरी तंद्रा टूटी तो मैं ने बातें करते सुना, ‘भई, यहां का तो पानी ही खराब है. जब हम यहां ट्रांसफर हो कर आए थे तो बिलकुल काले बाल थे. अब बालों का यह हाल हो गया है.’ मैं ने घड़ी देखी तो घड़ी की सूइयां इशारा कर रही थीं कि बच्चों के स्कूल से लौटने का समय हो गया है. ‘‘अच्छा, अब चलते हैं, मालतीजी. बच्चों की बस आती ही होगी. अच्छा, सब को नमस्कार, आइएगा,’’ कहते हुए हम वहां से चल पड़े. हम लोग घर आ गए. उस दिन मैं ने देखा, शुभांगी दोपहर से ही गुमसुम सी थी. मुझे समझते देर न लगी कि शुभांगी के मन में भी विचारों का सैलाब उछाल मार रहा है. रात को सोने का समय हुआ तो मेरी नजर शुभांगी पर पड़ी.
‘‘क्यों शुभांगी, नींद नहीं आ रही है? क्या सोच रही हो?’’ मैं ने कुरेदना चाहा. ‘‘भाभी, मैं बहुत ही असमंजस में हूं. आज आप की फ्रैंड्स की बातों ने मुझे बहुत ही असमंजस में डाल दिया है. मैं सोच रही हूं कहीं मैं ही तो गलत नहीं. कहीं रीतेश को ले कर मेरा डिसिजन…’’ ‘‘मैं समझ गई शुभांगी कि तुम क्यों परेशान हो. देखो शुभांगी, हरेक इंसान में कुछ न कुछ कमी होती ही है. कुछ कमियां खुद में होती हैं, जिन्हें दूर किया जा सकता है. कुछ कमियां नैचुरल होती हैं, जिन्हें छिपाना भी पड़ता है, तभी तो लोग पर्सनैलिटी इंप्रूव कर पाते हैं. अब तुम बताओ कि रीतेश तुम्हें कैसे लगे?’’ ‘‘सच कहूं, भाभी, पहली बार देखते ही मुझे बहुत अच्छे लगे. नेचर भी बहुत अच्छा है. बस, उन के बाल कुछ…’’ ‘‘देखो शुभांगी, अगर वे हेयरडाई लगा कर तुम्हें देखने आते तो क्या तुम उन्हें रिजैक्ट कर पातीं?’’ ‘‘नहीं, भाभी.’’ ‘‘देखो शुभांगी, तुम यह मत समझना कि मैं तुम्हें लैक्चर दे रही हूं, तुम तो मेरी दोस्त जैसी हो, इसलिए इसे दोस्त की सलाह समझो. लड़कों का चरित्र और उन के संस्कार उन के घरबार, उन की सूरत व बाहरी दिखावे से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होते हैं. सविता दीदी को ही देखो, उन के लिए एक हीरो पंसद किया था अजय भैया ने, लेकिन वही दीदी आज इतना दुख और शराबी पति की प्रताड़नाएं सहन कर रही हैं.’’ ‘‘आप बिलकुल ठीक कह रही हैं, भाभी. अब मैं समझ गई हूं. भाभी, आप कल ही मां को फोन कर दीजिएगा, मुझे रिश्ता मंजूर है.’’
इतना सुनते ही मैं ने शुभांगी के हाथ अपने हाथों में समेट लिए. मेरी आंखों में खुशी के आंसू छलछला आए. मैं ने जब यह खुशखबरी मांजी को फोन पर सुनाई तो मांजी खुशी से गद्गद हो उठीं, बोलीं, ‘‘अरे बहू, तुम ने शुभांगी पर ऐसा क्या जादू कर दिया? हम तो हार मान चुके थे.’’ मैं सोच रही थी, यह तो स्वत:घटित घटना थी जिस ने शुभांगी को यथार्थ से परिचित करवा कर आत्ममंथन के लिए प्रेरित किया. मैं बोली, ‘‘मांजी, मैं ने कोई जादू नहीं किया, वह तो…’’ और मांजी के ढेरों आशीर्वाद मेरी झोली में आ गए, जिन्हें मैं सुखद अनुभूति के साथ सहेज रही थी.