काशी में महाशिवरात्रि पर गंगा स्नान कर बाबा विश्वनाथ के दर्शन करेंगे नागा साधु, राजसी ठाठबाट से आई भोले की फौज
ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. प्रयागराज में महाकुंभ के बाद नागा साधुओं के काशी प्रवास और बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि जब तक काशी में दर्शन और तपस नहीं होती, तब तक कुंभ स्नान पूर्ण नहीं माना जाता। इसी परंपरा के तहत सनातन धर्म की रक्षक भोलेनाथ की फौज यानी सेना माने जाने वाले नागा साधुओं ने काशी के गंगा घाटों और अखाड़ों के आश्रमों में डेरा डाला है। महाशिवरात्रि पर नागा साधु गंगा तट पर शाही स्नान के रूप में गंगा स्नान कर भस्माभिषेक यानी राजसी यात्रा में बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए निकलेंगे। पूरे वैभव के साथ निकलने वाली नागा साधुओं की यह यात्रा अलौकिक, अद्भुत और अविस्मरणीय होगी।
नागा साधुओं की यात्रा के दौरान करीब आठ किलोमीटर लंबी सड़क और काशी विश्वनाथ मंदिर में आमजन की आवाजाही पर रोक रहेगी। अखाड़ों के वापस लौटने के बाद ही मंदिर के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे। संत देवाधिदेव को शीश नवाने के साथ उन्हें अबीर-गुलाल अर्पित कर सनातन की धर्म ध्वजा को अनंतकाल तक फहराने का आशीर्वाद लेंगे।
शाम के समय निकलने वाली प्रसिद्ध शिव बारात इस बार खास और बेहद आकर्षक इसलिए होगी कि इसमें गंगा तट पर अध्यात्म का मेला सजाने वाले तमाम नागा साधु शिव बारात का हिस्सा बनेंगे। यह पूरा कार्यक्रम प्रशासन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। ऐसे में प्रशासन ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं। अखाड़ों के प्रमुखों से संपर्क कर समय व रास्ता तय करने पर बातचीत चल रही है। माना जा रहा है कि सुबह चार घंटे का समय अखाड़ों के लिए आरक्षित रहेगा।
महाकुंभ में पुण्य की गठरी समृद्ध कर काशी आने वाले अखाड़ों से जुड़े साधु-संन्यासी इन दिनों अपने अखाड़े की परंपराओं को आगे बढ़ाने में जुटे हैं। पेशवाई के साथ जून अखाड़े के साधु नगर प्रवेश कर चुके हैं तो श्रीशंभु पंचदशानन आवाहन अखाड़े की पेशवाई 18 फरवरी को कबीरचौरा से शुरू होकर दशाश्वमेध घाट तक जाएगी।
अन्य 12 अखाड़ों की पेशवाई नहीं होगी, लेकिन महाशिवरात्रि पर अमृत स्नान और हनुमान घाट स्थित जूना अखाड़े से निकलने वाली राजसी यात्रा में सभी अखाड़ों के नागा साधु शामिल होंगे। इससे पहले सभी अखाड़ों के आश्रमों में समष्टि भंडार चलेगा। ब्रह्मलीन गुरुओं के प्रति श्रद्धा अर्पित करने को होने वाले समष्टि भंडारे में साधुओं का सम्मान करने के साथ भोजन प्रसाद ग्रहण करने के बाद उन्हें उनके पद के अनुसार संतो की भाषा में 'दांत घिसाई' यानी दक्षिणा दी जाएगी। इस भंडारे का हिस्सा आमजन भी होंगे। हर भंडारे में पांच से दस हजार साधु-संत व अन्य लोग शामिल होंगे। भंडारे यानी भोजन के लिए हलवाइयों की टीम डट गई है।
देश-दुनिया के करोड़ों लोगों के बाद महाशिवरात्रि पर पहली बार नागा साधु भी दिव्य-भव्य काशी विश्वनाथ धाम यानी कॉरिडोर तथा पूरी तरह स्वर्ण मंडित अपने आराध्य बाबा विश्वनाथ का मंदिर देखेंगे। इस मौके पर धाम परिसर को सुगंधित फूलों और मौसमी वनस्पतियों से सजाया जाएगा। भोर के समय मंगला आरती के बाद मंदिर के कपाट खुलने पर कुछ घंटों के लिए आम श्रद्धालु दर्शन कर सकेंगे। सुबह करीब 7 बजे से चार घंटे तक सभी 13 अखाड़ों के नागा साधु, आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर और संन्यासी ही दर्शन-पूजन करेंगे। इस दौरान गुलाब के पंखुडि़यों की वर्षा होगी।
इतिहास पर नजर डालें तो औरंगजेब की मुगल सेना से काशी विश्वनाथ मंदिर को बचाने के लिए महानिर्वाणी अखाड़े के नागा साधुओं ने मोर्चा लिया था। 1964 में पहली बार काशी विश्वनाथ मंदिर पर मुगल सेना के हमले के दौरान नागा साधुओं ने भीषण युद्ध कर खुद को नायक साबित किया था। औरंगजेब की सेना को बुरी तरह शिकस्त मिली थी। पहला हमला विफल होने के बाद औरंगजेब ने चार साल बाद यानी 1669 में फिर मंदिर पर हमला का जबरदस्त तोड़फोड़ की थी। लोक कथाओं के अनुसार उस समय करीब 40 हजार नागा साधुओं ने काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की रक्षा करते हुए अपने प्रणों की आहुति दी थी।