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कहानी: यादों के अक्‍स

रवि की हकीकत जानने के बाद मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह अचानक इतना कैसे बदल सकता है.
पहला प्यार तो सावन की उस पहली बारिश के समान होता है, जिस की पहली फुहार से ऐसा लगता है मानो मन की सारी तपिश दूर हो गई हो. मेरा पहला प्यार रवि जब मुझे अचानक मिला तो ऐसा लगा जैसे मैं ने उस क्षितिज को पा लिया, जहां धरती व आसमान के सिरे एक हो जाते हैं. वैसे मैं चाहती नहीं थी कि रवि और मेरे बीच शारीरिक संबंध स्थापित हों पर जब सारे हालात ही ऐसे बन जाएं कि आप अपने प्यार के लिए सब कुछ लुटाने के लिए तैयार हो जाएं तब यह सब हो ही जाता है.

सच, रवि से एकाकार होने के बाद ही मैं ने जाना कि सच्चा प्यार क्या होता है. रवि के स्पर्श मात्र से ही मेरा दिल इतनी जोरजोर से धड़कने लगा मानो निकल कर मेरे हाथ में आ जाएगा. रवि से मिलने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि अब तक की जितनी भी रातें मैं ने अपने पति समीर के साथ बिताई हैं वह मात्र एक शारीरिक उन्माद था या फिर हमारे वैवाहिक संबंध की मजबूरी. शादी से ले कर आज तक जबजब भी समीर मेरे नजदीक आया, तबतब मेरा शरीर ठंडी शिला की तरह हो गया. वह अपना हक जताता रहता, लेकिन मैं मन ही मन रवि को याद कर के तड़पती रहती. यह शायद रवि के प्यार का ही जादू था कि शादी के इतने साल बाद भी मैं उसे भुला नहीं पाई थी. तभी तो मेरे मन का एक कोना आज भी रवि की एक झलक पाने को तरसता था.

‘‘मैं शादी करूंगी तो सिर्फ रवि से वरना नहीं,’’ शादी से पहले मैं ने यह ऐलान कर दिया था.

‘‘हां, वह तो ठीक है, पर जनाब मिलने आएं तो पता चले कि वे भी यह चाहते हैं या नहीं,’’ भैया के स्वर में व्यंग्य था.

‘‘हांहां, मैं जानती हूं कि आप का इशारा किस तरफ है  वह हीरो बनना चाहता है, इसीलिए तो दिनरात स्टूडियो के चक्कर काटता है. बस एक ब्रेक मिला नहीं कि उस की निकल पड़ेगी. इसीलिए वह मुंबई चला गया है.’’

‘‘न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी,’’ भैया न हंसते हुए कहा और बाहर चले गए.

‘‘देखो मां, भैया कैसे रवि का मजाक उड़ाते रहते हैं. देख लेना वह एक दिन बहुत बड़ा आदमी बन कर दिखाएगा,’’ मैं यह कहतेकहते रो पड़ी थी.

‘‘बेटी, वह हीरो जब बनेगा तब बनेगा, असली बात तो यह है कि वह अभी कर क्या रहा है ’’ पापा ने चाय पीते हुए मुझ से पूछा.

अब उन से क्या कहती. मैं खुद नहीं जानती कि वह आजकल मुंबई में क्या कर रहा है. मुझे तो बस इतना मालूम था कि शायद अभी फिर से विज्ञापन की शूटिंग कर रहा है.

जब सब कुछ धुंधला सा था तब भला कोई सटीक निर्णय कैसे लिया जाता  फिर मैं ने हथियार डाल दिए यानी समीर से शादी के लिए हामी भर दी.

मेरे इस निर्णय से घर के सभी लोग बहुत खुश थे पर मेरे भीतर अवश्य कुछ दरक कर टूट गया था. मैं ने न जाने कितनी बार रवि को फोन किया पर वह शायद मुंबई से बाहर था. एक बार तो मैं ने भावावेश में मुंबई जाने का मन भी बना लिया पर तब मातापिता के रोते चेहरे मेरी आंखों के आगे घूम गए और तब मैं ने हथियार डाल दिया. वैसे भी रवि मुंबई में कहां है, यह पता तो मुझे नहीं था. समीर से शादी हुई तो मैं उस के जीवन की महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गई. समीर ने मुझे वह सब दिया, जिस पर मेरा हक था. पर शायद मैं समीर के साथ पूरी तरह न्याय न कर पाई.

जिस मन पर किसी और का अधिकार हो, उस मन पर किसी और के अरमानों का महल बनना मुश्किल ही था. मैं जब भी अकेली होती रवि को याद कर के रो पड़ती. मुझे उस की ज्यादा याद तब आती जब बारिश आती. मुझे आज भी याद है वह दिन जब बहुत ज्यादा उमस के बाद अचानक काले बादल घिर आए थे और देखते ही देखते मूसलाधार बारिश शुर हो गई थी. उस समय रवि और मैं पिक्चर देख कर मोटरसाइकिल पर लौट रहे थे. बारिश तेज होती देख कर रवि मोटरसाइकिल रोक कर सड़क की दूसरी ओर मैदान में जा कर बारिश का मजा लेने लगा. उसे ऐसा करते देख मुझे बहुत अजीब लगा. मैं एक पेड़ के नीचे खड़ी बारिश का मजा ले रही थी. तभी अचानक वह आया और मुझे खींच कर मैदान में ले गया.

‘‘नेहा, अपनी दोनों बांहें खोल कर इस रिमझिम का मजा लो. इन बूंदों में भीगने का मजा लोगी तभी तुम्हें लगेगा कि शरीर की तपिश कम हो रही है और तुम्हारा तनमन हवा की तरह हलका हो गया है.’’

पहले तो मुझे रवि का ऐसे भीगना अजीब लगा पर फिर मैं भी उस के रंग में रंग गई. जब मैं ने अपने दोनों हाथ फैला कर बारिश की ठंडी बूंदों को अपने में आत्मसात करने की कोशिश की तो ऐसा लगा मानो मैं किसी जन्नत में पहुंच गई हूं. बहुत देर तक बारिश में भीगने के बाद मुझे हलकी ठंड लगने लगी और मैं कांपने लगी. तब रवि मेरा हाथ पकड़ मुझे सड़क किनारे बने एक छोटे टीस्टाल में ले गया. रिमझिम बारिश के बीच गरमगरम चाय पीते हुए हम ने अपने कपड़े सुखाए और फिर अपनेअपने घर चले गए. उस के बाद न जाने कितनी बारिशों में मैं और रवि साथसाथ थे. भीगे बदन पर जबजब रवि के हाथों का स्पर्श हुआ तबतब मैं एक नवयौवना सी चहक उठी. समीर को भी रवि की तरह तेज बारिश में भीगना पसंद है. मुझे याद है जब हम लोग हनीमून के लिए मसूरी गए थे. मालरोड पर घूमते हुए अचानक बारिश शुरू हो गई. समीर तो वहीं खड़ा हो कर बारिश का मजा लेने लगा पर मैं एक पेड़ की ओट में खड़ी हो गई.

‘‘नेहा, आओ मेरे साथ इस बारिश में भीगो. देखो, कितना मजा आ रहा है.’’

‘‘न बाबा न, ठंड लग गई तो  तुम भी यहां आ जाओ,’’ मैं अपना छाता खोलते हुए बोली.

‘‘जानेमन, ठंड लगने के बाद मैं तुम्हें ऐसी गरमी दूंगा कि मेरे प्यार में पिघलपिघल जाओगी.’’

समीर की इस बात पर आसपास खड़े लोग हंस रहे थे पर मैं शर्म से लाल हुई जा रही थी. हिल स्टेशन की बारिशों में देर तक भीगने से समीर को ठंड लग गई थी और फिर वह 3 दिन तक बिस्तर से नहीं उठ पाया था. वह तो दवा ले कर गहरी नींद सो गया था पर मैं रवि की याद में तड़प कर रह गई थी. बारबार सोचती कि काश, आज समीर की जगह रवि होता तो इस हनीमून का, इस बारिश का मजा ही कुछ और होता. वैसे समीर ने हनीमून पर मुझे पूरा मजा दिया था, लेकिन मैं चाह कर भी पूरे मन से उस का साथ नहीं दे पाई थी. में जब भी समीर मेरे पास होता मुझे ऐसा लगता मानो मेरा शरीर तो समीर के पास है, लेकिन मन कहीं पीछे छूट गया है, रवि के पास. मुझे हमेशा ऐसा लगता कि हम दोनों के बीच रवि का वजूद आज भी बरकरार है, जो मुझ से रहरह कर अपना हक मांगता है.

यह शायद रवि के वजूद का ही असर था कि मैं चाह कर भी समीर से खुल नहीं पाई. मेरे मन का एक कोना अभी भी रवि की याद में तड़पता रहता था. जब भी बादल बरसते समीर बारिश में भीगते हुए उस का आनंद लेता, मगर मैं दरवाजे की ओट में खड़ी रवि को याद कर रोती. तब अचानक समीर का चेहरा रवि का रूप ले लेता और फिर मेरी यह बेचैनी तड़प में बदल जाती. तब मैं सोचने लगती कि काश, मेरी इस तड़प में रवि भी मेरा हिस्सेदार बन पाता तो कितना अच्छा होता. बारिश की ठंडी फुहारों के बीच अगर मैं अपनी इस तड़प से रवि को अपना दीवाना बना देती और टूट कर उसे प्यार करती तो शायद मेरा मन भी इस मौसमी ठंडक से सराबोर हो उठता.वैसे मैं ने अपने मन की सारी बातें अपने मन के किसी कोने में छिपा रखी थीं तो भी समीर की पारखी नजरों ने मेरे मन की बेचैनी को भांप लिया था.‘‘घर से बाहर निकलो, नएनए दोस्त बनाओ. घर की चारदीवारी में कैद हो कर क्यों बैठी रहती हो ’’ एक दिन समीर मुझे समझाते हुए बोला.

समीर की बात मुझे जंच गई और मैं अपनी सोसाइटी की किट्टी पार्टी की सदस्य बन गई. नएनए लोगों से मिलने से मेरा अकेलापन कम होने लगा, जिस कारण मन में छाई निराशा आशा में बदलने लगी. अपनी जिंदगी में आए इस बदलाव से मैं खुश थी. धीरेधीरे मुझे ऐसा लगने लगा शायद अब मेरी जिंदगी में एक ठहराव आ गया है. पर यह ठहराव ज्यादा समय तक नहीं टिक पाया, क्योंकि शांत नदी में अचानक रवि ने आ कर अपने प्यार का पत्थर जो फेंक दिया था, जिस कारण मेरी जिंदगी में फिर से तूफान आ गया. मैं उस दिन अकेली पिक्चर देखने गई थी. वैसे समीर भी मेरे साथ आने वाला था, लेकिन अचानक जरूरी काम आने से वह नहीं आ आ सका. अत: अकेली पिक्चर देखने आई थी. लेकिन पिक्चर शुरू होने से पहले ही अचानक रवि से मुलाकात हो गई.

जब हम एकदूसरे के सामने आए तब न जाने कितनी देर तक हम दोनों एकदूसरे को बिना कुछ बोले निहारते रहे. ‘‘मैं कोई सपना देख रही हूं क्या ’’ मैं ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा.

‘‘हां, शायद यह सपना ही है,’’ कहतेकहते रवि का गला भर आया.

फिर हम दोनों भीड़ से दूर एक तरफ ओट में जा कर खड़े हो गए.

‘‘कहां थे  न कोई फोन…जाओ, मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी,’’ मैं लगभग रो पड़ी थी.

‘‘नेहा, आज तक कोई पल ऐसा नहीं बीता होगा, जब मैं ने तुम्हें याद न किया हो. बस यह समझ लो कि मेरा तन मेरे पास था पर मन हमेशा तुम्हारे पास रहा है,’’ रवि भरे गले से बोला.

इस से पहले कि मैं कुछ और बोल पाती, रवि ही बोल पड़ा, ‘‘अच्छा, अब ये गिलेशिकवे छोड़ो और अंदर चलो, आज की पिक्चर में मेरा हीरो का रोल तो नहीं है नैगेटिव है पर हीरो के रोल से ज्यादा दमदार है,’’ कह कर उस ने मेरा हाथ पकड़ा और दोनों हौल के अंदर चले गए. वाकई रवि का अभिनय दमदार था. इतने सालों की उस की मेहनत नजर आ रही थी. जब वह हौल से बाहर निकला तो उस के प्रशंसकों की भीड़ ने उस का रास्ता रोक लिया. उस के बाद से तो रवि का जादू मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगा. अब मुझे न दिन की सुध थी और न रात की.

मेरा अब ज्यादा समय रवि के साथ ही बीतने लगा था. कभीकभी तो मैं शूटिंग के समय भी उस के साथ होती. मैं ने कई बार उस से कहा कि वह चल कर समीर से मिल ले पर हर बार टाल जाता. जब भी मैं उस के सामने समीर का जिक्र करती, वह गमगीन हो उठता और तड़पते हुए कहता, ‘‘मेरे उस दुश्मन का नाम मेरे सामने ले कर मेरे जख्मों को हरा मत किया करो.

‘‘नेहा, बस यह समझ लो कि तुम से मेरी शादी न हो पाना मेरी सब से बड़ी हार है, जिसे मैं एक दिन जीत में बदल कर ही रहूंगा.’’ तब मेरा मन करता कि मैं उस से लिपट जाऊं और अपना सर्वस्व उसे सौंप दूं पर लोकलाज के भय से अपने बढ़े कदम रोक लेती.

कई बार मेरे मन में आया कि उस से पूछूं कि वह मेरी शादी के समय कहां था, पर यह सोच कर चुप रह जाती कि इस से रवि को दुख पहुंचेगा और मैं उसे दुखी नही करना चाहती. एक दिन शाम के 5 बजे थे जब मेरे पास रवि का फोन आया.

‘‘क्या कर रही हो जान ’’

‘‘कुछ भी तो नहीं.’’

‘‘तो चली आओ, आलीशान होटल में,’’

‘‘पर अचानक…’’

‘‘ज्यादा सवाल न पूछो एक सरप्राइज है.’’

रवि का इतना कहना था कि मैं उस के प्यार में खिंची होटल के लिए निकल पड़ी. उस दिन समीर टूअर पर था और मैं ने अपने बेटे बंटू को अपनी सहेली राधिका के यहां छोड़ दिया. जब रवि के पास पहुंची तो देखा वह एक सजे कमरे में मेरी प्रतीक्षा कर रहा है.

‘‘जान, बहुत देर कर दी आने में…’’

‘‘यह सब क्या है ’’ मैं अचकचाते हुए उस से पूछ बैठी.

‘‘आज मुझे एक बहुत बड़ा रोल मिला है. अगर यह पिक्चर हिट हुई तो समझो मैं रातोंरात स्टार बन जाऊंगा,’’ कहतेकहते उस ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘यह सही नहीं है, रवि,’’ मैं ने खुद को उस से छुड़ाते हुए कहा.

‘‘प्यार में कुछ भी सही या गलत नहीं होता. प्यार तो सिर्फ प्यार होता है जो कुरबानी मांगता है. वैसे भी तुम्हारा और मेरा प्यार तो सच्चा प्यार है जो न जाने कब से एकदूसरे का साथ पाने को तड़प रहा है,’’ यह कह उस ने मुझे पैकेट थमा दिया.

जब मैं ने पैकेट खोला तो हैरान रह गई, उस में एक गुलाबी रंग की झीनी नाइटी थी. इधर मैं कपड़े बदलने चली गई तो उधर रवि सारे बिस्तर पर लाल गुलाबों की बरसात करने लगा. इत्र की भीनीभीनी खुशबू और धीमाधीमा संगीत, बस, सब कुछ मुझे मदहोश करने के लिए काफी था. बस, फिर वह सब हो गया, जो शायद बहुत पहले हो जाना चाहिए था. जब वर्षों पुरानी चाहत पूरी हुई तो ऐसा लगा मानो आज बिन बादल बरसात हो गई, जिस में हम दोनों भीग कर उस चरम सुख को पा गए, जिस से अब तक हम अछूते रहे थे. उस रात होटल के उस कमरे में रवि से लिपटी मैं उस तृप्ति को महसूस कर रही थी जो मुझे अब तक नहीं मिली थी.

‘‘रवि, आज तो मजा आ गया,’’ मैं भावावेश में उस के होंठों पर किस करते हुए बोली.

‘‘अरे मैडम, यह तो कुछ भी नहीं. आगेआगे देखो, मैं तुम्हें कैसे जन्नत का मजा दिलाता हूं,’’ कह कर रवि फिर से मुझ से लिपट गया. ‘‘मुझे बहुत दुख है जो समय रहते मैं तुम्हें अपनी नहीं बना पाया,’’ रवि मेरे सीने पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘समीर बहुत खुशहाल इनसान है तभी तो यह हुस्न का प्याला उस की झोली में जा गिरा,’’ कह रवि मुझे पागलों की तरह चूमने लगा.

‘‘रवि इतना प्यार न करो, मुझे वरना…’’

‘‘वरना क्या ’’

‘‘अगर तुम मुझ से यों टूट कर प्यार करते रहोगे, तो तुम से अलग कैसे हो पाऊंगी ’’ और मैं अचानक रो पड़ी, ‘‘रवि, इस दिल पर तो तुम्हारा शुरू से अधिकार रहा है और आज तन पर भी हो गया,’’ मैं तड़पते हुए बोली.

मेरी तड़प देख कर रवि ने मुझे अपनी मजबूत बांहों के घेरे में कस लिया और मैं उस की पकड़ से खुद को छुड़ाने की नाकाम कोशिश करने लगी.

‘‘अच्छा, अब मैं चलती हूं,’’ सुबह की लौ देख मैं ने तुरंत कपड़े बदले और अपने घर आ गई. रवि से शारीरिक संपर्क के बाद मेरे अंदर एक सुखद सा परिवर्तन आया. अब मैं हर समय खिलीखिली सी रहती थी.

‘‘इतना खुश तो मैं ने पहले तुम्हें कभी नहीें देखा,’’ उस दिन मुझे एक फिल्मी गाना गुनगुनाते देख समीर ने मुझे टोका.

‘‘वह क्या है कि आजकल नए दोस्त बन रहे हैं न,’’ मैं ने बात बदलते हुए कहा.

‘‘अच्छा लगता है तुम्हें यों खुश देख कर,’’ कह समीर ने भावातिरेक में मेरा माथा चूम लिया.

सच, उस समय मुझे रवि की बहुत याद आई. आज रवि के कारण ही तो मेरे मन का सूनापन कम हो पाया था. उस के प्यार में पागल मैं आज दूसरी बार उस से मिलने उसी होटल में जाने वाली थी. पर उस समय बंटू स्कूल गया हुआ था, इसलिए दुविधा में थी कि कैसे जाऊं तब मेरी सास जो मेरे पास रहने आई हुई थीं, तुरंत बोलीं, ‘‘अरे बहू, परेशानी क्या है  अब जब मैं घर पर हूं तो बंटू को देख लूंगी, तुम अभी निकल जाओ वरना तुम्हें सामने देख कर ज्यादा परेशान होगा.’’

मांजी के इतना कहते ही मैं तुरंत निकल पड़ी. इधर मेरा औटोरिकशा होटल की तरफ बढ़ रहा था तो उधर मेरी बेचैनी. सब कुछ अपनी चरसीमा पर था…उस दिन का चरमसुख और आज फिर. फिर अचानक मेरे विचारों पर विराम लग गया, क्योंकि मेरा होटल जो आ गया था. तेज कदमों से लौबी का रास्ता पार कर मैं होटल के कमरे के पास पहुंच गई. कमरे का दरवाजा आधा खुला था और मैं जल्दी से उसे धकेल कर अंदर जाना चाहती थी कि अचानक रवि के मुंह से अपना नाम सुन कर मेरे बढ़ते कदम ठिठक गए.

जब मैं ने दरवाजे की ओट में खड़े हो कर अंदर झांका तो हैरान रह गई. रवि किसी और के साथ बैठा ड्रिंक कर रहा था. पूरे कमरे में सिगरेट का धुआं फैला हुआ था.

‘‘तेरी वह मुरगी कब तक आएगी, मेरा मन बेचैन हो रहा है ’’ रवि के सामने वह आदमी शराब का खाली गिलास रखते हुए बोला.

‘‘बस सर आने ही वाली होगी,’’ रवि उस के खाली गिलास में शराब डालते हुए बोला.

‘‘पर यार वह तो तेरी गर्लफ्रैंड है, ऐसे में वह मेरे साथ…’’

‘‘आप उस की फिक्र न करो, सरजी…अरे, वह तो मेरे प्यार में इतनी पागल है कि मेरे एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो जाएगी,’’ रवि ठठा कर हंस पड़ा, ‘‘अरे मैं ने कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं, जो हाथ आया मौका यों जाने दूं,’’ नशे में धुत्त रवि बोला, ‘‘आप आज सिर्फ मेरे अभिनय का कमाल देखना…मैं आज उसे इतना बेचैन कर दूंगा कि वह मेरे साथसाथ आप को भी पूरा मजा देगी. बड़ी गरमी भरी पड़ी है उस के अंदर,’’ और फिर उस ने सिगरेट सुलगा ली.

‘‘अच्छा, मैं चलता हूं. बाहर लौबी में तुम्हारे फोन का इंतजार करता हूं. जब मामला पट जाए तब आ जाऊंगा,’’ कह कर वह आदमी पागलों की तरह हंसने लगा. ‘‘आप मजे की फिक्र न करो. वह तो मैं आप को पूरा दिलवाऊंगा पर मेरा आप की आने वाली फिल्म में हीरो का रोल तो पक्का है न ’’ कह रवि ने वही गुलाबी नाइटी बैड पर फैला दी.

‘‘अरे यार मैं जुबान का पक्का हूं. इधर वह लड़की गई तो उधर तेरा हीरो का रोल पक्का.’’ यह सब सुन कर मेरे तो होश उड़ गए. मेरी तो उस समय ऐसी स्थिति थी कि काटो तो खून नहीं. पहले तो मेरे मन में आया कि अंदर जा कर उन दोनों मुंह नोच लूं पर फिर मैं तुंरत संभल गई कि नीचता पर उतर आए ये दोनों मेरे साथ कुछ भी गलत कर सकते हैं. फिर मैं ने समय न गंवाते हुए बाहर का रुख किया ताकि उन की पकड़ से बाहर निकल जाऊं. वैसे भी वह आदमी कभी भी बाहर आ सकता था. उस समय मेरा तनमन गुस्से से उबल रहा था और मेरी आंखें लगातार बह रही थीं. रवि के प्यार का यह वीभत्स रूप देख कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे. मैं औटोरिकशा में अपने घर जा रही थी. रवि के कई फोन मेरे मोबाइल पर आए, मेरा मन उस समय इतना बेचैन था कि उस से बात करना तो दूर मैं उस की आवाज भी नहीं सुनना चाहती थी. इसलिए मैं ने अपना मोबाइल औफ कर दिया और बीती बातें भुला कर अपने घर चली गई.

‘‘अरे समीर, तुम कब आए ’’ समीर को बंटू के साथ खेलते देख कर मुझे सुकून सा मिला.

‘‘चलो, आज पिक्चर देखने चलते हैं, खाना भी बाहर ही खा लेंगे,’’ समीर ने अचानक मुझ से कहा तो मैं अचकचा सी गई, ‘‘पर बंटू का तो सुबह स्कूल है,’’ मैं ने बात बदलते हुए कहा. अब समीर से कैसे कहती कि मेरा मूड खराब है.

‘‘बंटू को तो मैं देख लूंगी. समय से खाना खिला कर सुला दूंगी,’’ सासूमां कमरे में प्रवेश करते हुए बोलीं.

‘‘क्यों बंटू, दादी के साथ खेलेगा न  और फिर वह दिन वाली स्टोरी भी तो पूरी करनी है न,’’ सासूमां के इतना कहते ही बंटू उन से लिपट गया.

‘‘चलो, अब तो तुम्हारी समस्या हल हो गई. अब जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ समीर ने मेरा कंधा थपथपाते हुए कहा.

फिर हम तैयार हो कर मूवी देखने चले गए. जब पिक्चर देख कर बाहर निकले तो बाहर काले बादल घिर आए थे. देखते ही देखते तेज बारिश शुरू हो गई. समीर कार का दरवाजा खोल कर अंदर बैठने लगा तो मैं ने अचानक उस का हाथ पकड़ कर बाहर खींच लिया.

‘‘मैडम, बारिश शुरू हो गई है और तुम्हें बारिश में भीगने से ऐलर्जी है,’’ उस के स्वर में व्यंग्य था.

‘‘अब मुझे बारिश में भीगना अच्छा लगता है,’’ कह कर में ने समीर को हाथ से पकड़ बाहर खींच लिया और फिर दोनों देर तक बारिश में भीगने का मजा लेते रहे. जब बारिश की ठंडी फुहारें मेरे तनमन की तपिश निकालने में कामयाब हुईं तब मैं समीर के कंधे से जा लगी. मेरे अंदर आए अचानक इस बदलाव को देख कर समीर को इतना अच्छा लगा कि उस ने एक चुंबन मेरे होंठों पर अंकित कर दिया. जब समीर की मजबूत बांहों ने मेरे तन को कसा तो ऐसा लगा मानो अब मेरे मन पर सिर्फ और सिर्फ समीर का ही अधिकार है और तब ऐसा लगने लगा मानो रवि की यादों का अक्स धुंधला पड़ने लगा है.
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