कहानी: उनकी चिट्ठी
राघव अपनी पत्नी सरला की प्यारभरी धमकी सुन कर मुसकराने लगा था. उस का सारा गुस्सा काफूर हो गया था.
‘‘अरी ओ लल्लन की बहू, देख तेरी चिट्ठी आई है…’’
यह सुन कर कुएं से पानी भर रही खूबसूरत सी लड़की ने अपनी कजरारी आंखों से पीछे मुड़ कर देखा कि किस में इतनी हिम्मत आ गई जो उस के ससुर का नाम इस तरह पुकार रहा है. यों तो उस की शादी के कुछ ही महीने बीते थे, पर यह वह अच्छी तरह जानती थी कि उस के ससुर की घर और गांव में बड़ी इज्जत थी.
उस के ससुर 2 जवान बेटों के बाप हैं और दोनों बेटे फौज में हवलदार हैं. वह यानी सरला बड़े बेटे की बहू है और छोटे बेटे की अभी शादी नहीं हुई है. बेटों की मां की मौत दोनों के बचपन में ही हो गई थी.
सरला बोली, ‘‘हां, बोलो डाकिया काका, क्यों पुकार रहे हो?’’
‘‘अरी बहू, बात ही ऐसी है कि हम तेरे घर जाने का इंतजार न कर सके. तू मुझे यहां पानी भरती दिखाई दी तो मैं यहीं आ गया. तेरे पति की चिट्ठी आई है और वह भी तेरे नाम से.’’
इतना सुनते ही सरला शरमा गई और चिट्ठी को उन के हाथ से ले कर बड़े प्यार से पलटपलट कर देखने लगी और चिट्ठी को छाती में ऐसे भींच लिया जैसे राघव ही आ गया हो.
सरला मुश्किल से राघव के साथ एक महीना रह पाई थी. इस के बाद राघव को सरहद से बुलावा आ गया. बस एक बार गांव के पंचायत औफिस से फोन से बात हुई थी. पर वहां साथ में बाबा थे तो सरला बस सुनती रही, कुछ कह न पाई.
आज अचानक आई चिट्ठी ने सरला की सूखी जिंदगी में बहार ला दी थी.
सरला चिट्ठी खोल कर पढ़ने लगी. अरे, यह क्या… चिट्ठी तो इंगलिश में है. राघव ने शायद चिट्ठी जानबूझ कर इंगलिश में लिखी, जिस से उसे लगे कि उस के पति को अच्छी इंगलिश आती है.
सरला के चेहरे पर आए भावों को डाकिया काका ने तुरंत पढ़ लिया और बोले ‘‘लाओ… मैं पढ़ देता हूं.’’
काका वहीं घास पर आराम से बैठ गए और चिट्ठी पढ़ने लगे. जैसेजैसे वे चिट्ठी को हिंदी में पढ़ते गए, सरला की आंखों से आंसू गिरते गए. पर आखिरी लाइन सुनते ही सरला का मन नाचने लगा.
डाकिया काका ने चिट्ठी पढ़ते हुए कहा, ‘‘सरला, मैं गांव जा रहा हूं. मेरी छुट्टियां मंजूर हो गई हैं.’’
‘‘काका, वे कब आ रहे हैं?’’
‘‘बेटी, यह चिट्ठी तुम्हें देर से मिली है. 22 तारीख को आने को लिखा है. इस का मतलब… कल ही तो 22 तारीख है.’’
‘‘अरे वाह, राघव कल आ रहे हैं. हाथों का सामान जमीन पर पटक कर मारे खुशी के सरला वहीं नाचने लगी और अपने साथ आई पड़ोसन से बोली, ‘‘मैं जा रही हूं. ये कल आने वाले हैं. मैं ने कोई तैयारी नहीं की है. बाबा भी शहर गए हैं. अब सारी तैयारियां मुझे ही करनी हैं.’’
सुबह जल्दी उठ कर सरला ने सब से पहले आंगन धोया, चावल के मंडन बनाए, घर की देहरी पर उसी चावल के आटे से लकीरें खींचीं, उन पर अक्षत रख दरवाजे को भी फूलों से सजा दिया. इस के बाद अपना कमरा साफ किया. नई चादर बिछाई, बगीचे से फूल तोड़ कर गुलदस्ते में लगाए.
कमरे में एक पुराना बक्सा रखा था. बस, वही कमरे की खूबसूरती खराब कर रहा था. सोचा कि इसे बाहर कर दे, मगर तभी सरला को याद आया कि शादी की रात राघव ने उसे बताया था कि इस में उस की मां का सामान रखा है और उसे वह साथ रखता है. इस से उसे लगता कि मां अब भी उस के साथ है. राघव मां के बेहद करीब था. सरला ने सोचा कि वह इस पर नई चादर डाल कर फूलों का गुलदस्ता रख देगी तो अच्छा लगेगा.
थोड़ी ही देर में सरला सारा कमरा सजा कर एक कोने में खड़ी हो कर कमरे को निहारने लगी कि कहीं कोई कमी तो नहीं रह गई. जब पूरी तरह तसल्ली कर ली कि सबकुछ सज गया तो चौके में जा कर उस की पसंद के पकवान बनाने लगी.
यह सब करतेकरते रात हो गई, मगर राघव से मिलने की तड़प में उसे रात को नींद भी नहीं आ रही थी. कई तरह की बातें, कई तरह के खयाल, कई तरह की गुदगुदियां. वह अपनेआप ही शरमाती, अपनेआप ही हंसती.
सरला ने सोच लिया था कि उसे राघव से क्याक्या बातें करनी हैं, क्योंकि शादी के समय इतने मेहमान थे कि राघव को न तो ठीक से वक्त दे पाई थी और न ही उस की प्यारभरी शरारतों का साथ क्योंकि जब भी राघव उसे छेड़ता, परेशान करता, कमरे में आने को कहता तभी कोई न कोई चाची, नानी, काकी टपक आती और बेचारे 2 प्यार करने वाले मन मार कर रह जाते.
एक दिन तो हद ही हो गई थी.
2 दिन बाद राघव को जाना था और उस का मन था कि वह हर समय उस की बांहों में रहे. राघव उसे एक मिनट भी नहीं छोड़ना चाहता था. मगर तभी उस की चचिया सास ने महल्ले की औरतों को बुला लिया और ढोलक पर नाचगाना शुरू हो गया.
बेचारी सरला को न चाहते हुए भी वहीं बैठना पड़ा और जब शाम को कमरे में गई तो देखा, राघव बीयर की बोतल खोले पी रहा था.
‘यह क्या… आप शराब पी रहे हैं,’ सरला ने पूछा था.
राघव ने कहा था, ‘जब तुम प्यार का नशा नहीं करने दोगी तो इस नशे का सहारा लेना पड़ेगा. तुम्हें तो इन औरतों के लिए वक्त है, मेरे लिए नहीं. अगर कहीं मैं लौट कर नहीं आ…’
सरला ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया था और बिलखते हुए राघव के सीने पर अपना सिर रख कर बोली थी, ‘आज के बाद इसे हाथ लगाया तो समझ लेना.’
तभी तेज हवा के झोंके से खिड़कियां खुल गईं और सरला अपने विचारों से बाहर आ गई. उस ने सोचा कि क्यों न बीयर भी राघव के लिए सजा दे. फिर याद आया कि बीयर लाएगा कौन? तभी उसे याद आया कि उस दिन राघव से बोतल ले कर छिपा कर रख दी थी, उस ने तुरंत भाग कर अलमारी खोली और बोतल ला कर कमरे में उसी बक्से के ऊपर रख दी. 2 गिलास भी रख दिए.
तभी घड़ी में देखा कि राघव के आने का समय हो रहा है. नहाधो कर सुंदर सी साड़ी, हाथों में चूडि़यां, बालों में गजरा और आंखों में मोटा सा काजल लगा कर वह तैयार हो गई.
ये पल कटने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उस ने दरवाजा खोला और तभी याद आया कि घर में कुछ नमकीन न थी. वह नमकीन लेने चली गई.
इसी बीच अचानक उस का देवर भी कई महीनों बाद घर वापस आया. उस ने देखा कि कमरे में बड़े करीने से 2 गिलास और बीयर की एक बोतल रखी थी. सोचा कि भाभी ने बड़ा शानदार इंतजाम कर रखा है. फिर इधरउधर देखा और सोचा कि अच्छा मौका है. क्यों न मैं भी थोड़ी सी पी लूं.
उस ने गिलास में बीयर डाली ही थी कि तभी वह हुआ जो न होना चाहिए था. अचानक राघव आ गया. उसे इस तरह कमरे में पलंग पर बैठा देख वह भी उस की गैरमौजूदगी में… राघव गुस्से से तिलमिला गया.
तभी सामने से सरला नमकीन का पैकेट लाती दिखी तो राघव को लगा कि वह देवर के लिए नमकीन लेने गई थी.
राघव को सामने देख सरला के सारे अंग में बिजली की धाराएं दौड़ने लगीं. वह इस बात का इंतजार न कर सकी कि पति की खुली हुई बांहें उसे समेट कर सीने से लगा लें, पर जैसे ही वह राघव की तरफ बढ़ी तभी राघव की गुस्से भरी आवाज से सहम गई.
सरला ने कुछ कहने के लिए होंठ खोले ही थे कि राघव तेजी से चिल्ला कर बोला, ‘‘बदचलन औरत… मैं ने तुझे क्या समझा था और तू क्या निकली.’’
इस अचानक आए शब्दों के तूफान से सरला चौंक गई. राघव के इस रूप को देख कर वह डर गई. तभी देवर के हाथ में गिलास देख कर वह सबकुछ समझ गई.
राघव बोला, ‘‘सरला, मैं तुझ से मिलने के लिए कितनी मिन्नतें कर के छुट्टी ले कर आया था.’’
सरला उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘ऐसा कुछ भी नहीं है. मुझे नहीं पता कि देवरजी कब आए.’’
राघव ने कस कर अपना हाथ झटका और जिन कदमों से आया था, उन्हीं कदमों से वापस जाने लगा.
सरला जब तक कुछ समझ पाती या समझा पाती तब तक राघव गुस्से में कहीं चला गया. उस के जाते कदमों के निशान को सरला अपने आंसुओं से भिगोने लगी.
तभी तेज तूफान आ गया. आंगन बड़ेबड़े ओलों से पट गया. मूसलाधार बारिश शुरू हो गई. ऐसा लग रहा था कि सरला के दुख से आसमान भी रो पड़ा हो. कभी नहीं भूलेगी वह शाम. शाम तो मौसम ने कर दी थी, वरना थी तो दोपहर. वह वहीं आंगन में बैठ कर बिलखबिलख कर रोने लगी.
बहुत तेज बारिश हो रही थी. सरला मन ही मन सोचने लगी कि इन तेज आती बारिश की बूंदों को रस्सी की तरह पकड़ कर राघव के पास पहुंच जाए. मगर बारिश और पड़ते ओलों की मार से पता नहीं कब वह बेहोश हो गई.
तभी बाबा शहर से लौट आए. बहू की ऐसी हालत देख कर वे परेशान हो गए. बाबा की आवाज सुन कर पड़ोस की चाची भी बाहर आ गई.
देवर रोहित और चाची ने मिल कर सरला को कमरे तक पहुंचाया. चाची ने कहा, ‘‘तुम बाहर जाओ. मैं सरला के कपड़े बदल देती हूं.’’
रोहित जैसे ही बाहर आया तो बाबा बोले, ‘‘अब तू बता कि बहू इस तरह आंगन में क्यों पड़ी थी?’’
रोहित ने बाबा को सारा मामला बताया. रोहित ने कहा, ‘‘भैया को गलतफहमी हो गई. मैं ने और भाभी
ने बहुत समझाने की कोशिश की, पर उन्होंने कुछ नहीं सुना और उलटे कदमों से वापस चले गए.’’
बाबा चुपचाप बैठे सारी बातें सुनते रहे और फिर भारी कदमों से उठे और बोले, ‘‘तू चाची के साथ भाभी का ध्यान रख, मैं उस बेवकूफ को ढूंढ़ने जाता हूं. वह स्टेशन पर बैठा होगा क्योंकि ट्रेन तो अब कल सुबह ही है.’’
यह कहते हुए वे छाता ले कर बाहर निकल गए और मन ही मन सोचने लगे कि इतनी समझदार बहू के बारे में इतना गलत राघव ने कैसे सोच लिया.
सरला को होश आया तो उसे लगा कि उस के पैरों के पंजों में तेजी से कोई तेल मल रहा है. तभी उसे याद आया कि वह तो आंगन में बेहोश हो गई थी, आंखें खोल कर देखा कि सामने ससुर खड़े थे.
उस को होश में आते देख ससुर बोले, ‘‘कैसी हो बहू… और यह रहा तुम्हारा मुजरिम, जो सजा देना चाहो दो.’’
सरला ने आंख खोल कर धीरे से देखा कि राघव उस के पैरों की मालिश कर रहे थे.
‘‘अरे… मेरे पैर छोडि़ए.’’
राघव कान पकड़ कर बोला, ‘‘मुझे माफ कर दो सरला.’’
सभी लोग कमरे से बाहर आ गए.
‘‘आप ऐसे माफी मत मांगिए. रिश्तों की गीली जमीन पर अकसर लोग फिसल जाते हैं.’’
राघव बोला, ‘‘तुम संभाल भी तो सकती थी.’’
सरला बोली, ‘‘आप ने मौका ही कहां दिया.’’
राघव चुपचाप एकटक उसे देखने लगा. उस के चेहरे से पश्चात्ताप के शब्द बिना बोले साफ समझ में आ रहे थे. उस का हाथ अपने हाथ में पकड़ कर सरला बोली, ‘‘क्या सोच रहे हो जी?’’
राघव बोला, ‘‘बस यही सोच रहा हूं कि कुछ जख्मों के कर्ज लफ्जों से अदा नहीं होते.’’
सरला धीरे से बोली, ‘‘बस, सीने से लगा लो, सारे कर्ज अदा हो जाएंगे.’’
राघव ने सरला को अपनी बांहों में समेट लिया और अभीअभी बिखरने से बची अपनी प्यार की दुनिया में वे दोनों खो गए. - नीतू