कहानी: सूनी गोद
मुझे एक रात जागते देख कर तुम्हें इतनी तकलीफ हुई है. मैं ने तो तुम्हें इतने वर्षों में अनगिनत रातें रोरो कर काटते हुए देखा है. जरा सोचो सुधा, मुझे तुम्हें इस तरह देख कर कितनी तकलीफ हुई होगी.
“एक बार फिर से सोच लो, किशोर. इस उम्र में छोटी सी बच्ची को गोद लेना कहां की समझदारी है? मुझे लगता है कि तुम्हें यह विचार त्याग देना चाहिए,” कमल ने चाय की प्याली को मेज पर रखते हुए कहा.
“मैं ने यह निर्णय सोचविचार करने के बाद ही लिया है, कमल. मैं और सुधा अभी इतने बूढ़े नहीं हुए हैं कि एक बच्ची की परवरिश न कर सकें. मैं अच्छा कमाता हूं. रिटायरमैंट होने में अभी कुछ वर्ष बाकी हैं और उस के बाद भी मैं इतना सक्षम रहूंगा कि बच्ची की देखभाल अच्छी तरह से कर सकूं,” किशोर ने उत्तर दिया.
“मैं रुपएपैसे की बात नहीं कर रहा हूं, किशोर. उस के अलावा भी सौ बातों को दिमाग में रख कर सोचना पड़ता है. तुम्हारे परिवार वाले और रिश्तेदार तुम्हारे इस निर्णय के खिलाफ हैं. और समाज का क्या, तुम ने कभी सोचा है कि लोग क्या कहेंगे? देखो किशोर, मैं केवल सुधा का बड़ा भाई ही नहीं हूं बल्कि तुम्हारा बहुत अच्छा दोस्त भी हूं. इसी नाते तुम्हें समझा रहा हूं. मेरी बात को समझने का प्रयास करो,” कमल ने किशोर पर दबाव बनाते हुए कहा.
“लोग क्या सोचेंगे, समाज क्या कहेगा, मैं ने इस की परवा करनी छोड़ दी है. और जहां तक परिवार व रिश्तेदारों का प्रश्न है, अगर उन्हें हमारी परवा होती तो वे आगे बढ़ कर इस निर्णय में हमारा साथ देते. इस तरह तुम्हें अपना वकील बना कर हमारे पास न भेजते,” किशोर अब क्रोधित होने लगे थे.
“तुम से तो बात करना बेकार है. तुम बात को समझना ही नहीं चाहते हो.”
कमल ने कब अपनी बहन सुधा की ओर देखा जो चुपचाप अपने पति किशोर के पीछे हाथ बांधे खड़ी थी.
“सुधा, कम से कम तुम तो समझदारी से काम लो. इस उम्र में बच्ची को गोद लोगी तो समाज में तरहतरह की बातें होंगी. लोगों के तानों का सामना कर पाओगी तुम?”
“भाईसाहब, आप मुझ से यह पूछ रहे हैं कि मैं लोगों के ताने सुन पाऊंगी या नहीं, शादी के 26 साल बाद भी मेरी गोद सूनी है. आप को क्या लगता है कि मैं ने समाज के ताने नहीं सुने हैं. जिस तरह आज तक सुनती आई हूं, आगे भी सुन लूंगी.”
“देखो सुधा, जो हो चुका है उसे बदला नहीं जा सकता है. उसे भगवान की मरजी समझ कर स्वीकार करो. भावनाओं में बह कर गलत निर्णय मत लो और किशोर को भी समझाने का प्रयास करो. रही बात बच्चों की, तो क्या मेरे बच्चे मेघा और शुभम तुम्हारे बच्चे नहीं हैं?” कमल ने सुधा पर दबाव बनाने की कोशिश की.
“भाईसाहब, आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर दीजिए. अगर मेघा और शुभम मेरे बच्चे होते तो क्या भाभी मुझे बांझ होने का ताना देतीं?” सुधा ने कमल से प्रश्न किया तो उन की नजरें शर्म से नीचे झुक गईं.
अब सुधा ने हाथ जोड़ कर आगे कहा, “मैं बरसों से इस सुख से वंचित रही हूं, भाईसाहब. आज 26 सालों के बाद प्रकृति ने मेरी सुनी है. मेरी गोद में मेरी बच्ची आने वाली है. उसे गोद लेना हम दोनों का साझा निर्णय हैं. मेरी आप से विनती है कि हमारी खुशी में हमारा साथ दीजिए.”
“खैर, अब तुम दोनों ने निर्णय ले ही लिया है तो फिर मैं कर भी क्या सकता हूं. आज तुम दोनों किसी की बात नहीं सुन रहे हो. लेकिन याद रखना, अगर भविष्य में तुम्हें अपने इस निर्णय पर पछताना पड़ा तो इस के जिम्मेदार तुम खुद होगे.”
इतना कहने के बाद कमल भी बाकी रिश्तेदारों की तरह हथियार डाल कर वहां से चले गए.
कमल के वहां से जाने के बाद सुधा की हिम्मत जवाब दे गई. वह धम्म से सोफे पर बैठ गई व उस की आंखों से आंसुओं की धार बह निकली. अपनी पत्नी को कमजोर पड़ते देख कर किशोर भावुक हो उठे. उन्होंने अपने जज्बातों पर काबू पाते हुए सुधा के कंधे को थपथपा कर उसे हिम्मत देने का प्रयास किया.
“ये लोग क्यों नहीं समझ रहे हैं, किशोर? आज इतने सालों बाद समय हम पर मेहरबान हुआ है. हमें हमारी औलाद मिलने जा रही है. ये लोग क्यों हम से हमारी खुशी छीनने का प्रयास कर रहे हैं,” सुधा ने बेबसी से किशोर की ओर देखते हुए कहा.
किशोर सुधा की पीड़ा से अपरिचित नहीं थे. अच्छे से अच्छे डाक्टर इलाज और हर जगह सिर झुकाने के बावजूद उस की गोद नहीं भर पाई थी. वे सालों से उसे भीतर से खोखला होते देख रहे थे. मगर चाह कर भी उस के लिए कभी कुछ कर नहीं सके. ऐसा नहीं है कि पहले कभी उन्होंने बच्चा गोद लेने के बारे में नहीं सोचा. उन्होंने कई बार अपनी अम्मा से दबे शब्दों में इस बात का जिक्र किया था. एक बार हिम्मत जुटा कर अम्मा से इस बारे में सीधे बात करने की कोशिश भी की थी. लेकिन अम्मा ने कई दिनों तक घर में ऐसा कुहराम मचाया कि वे घबरा कर पीछे हट गए.
उस के बाद उन की इस बारे में जिक्र करने तक की हिम्मत नहीं हुई. उन की इस बुजदिली का खमियाजा उन की सुधा को आज तक भुगतना पड़ रहा था. सालों से वह सब के ताने सुनती आ रही थी. समाज के लोग तो दूर, अपने खुद के परिवार के लोग उस के निसंतान होने के कारण न जाने कैसेकैसे अंधविश्वास के चलते उस का अपमान कर बैठते थे. परिवार ने तो उन पर दूसरा विवाह करने का दबाव भी बनाया था. लेकिन वे अपनी सुधा से असीम प्रेम करते थे. उन्होंने करारा जवाब दे कर सब का मुंह बंद कर दिया था.
सुधा आज तक उन की खातिर कितनाकुछ सहन करती आ रही थी. अपना पूरा जीवन निस्वार्थ उन पर न्योछावर किया था उस ने. अब उस के लिए कुछ करने की बारी उन की थी. जो खुशी वे उसे आज तक नहीं दे पाए थे, वह अब देने जा रहे थे.
समय भी जैसे उन के इस निर्णय में उन का साथ दे रहा था. यह संयोग था कि थोड़ी ही तलाश के बाद उन्हें एक ऐसी महिला मिली जो अपनी संतान को गोद देने के लिए एक भले दंपती की तलाश में थी. पति की अकस्मात मृत्यु के बाद उस के सिर पर बूढ़े, बीमार सासससुर व 3 छोटे बच्चों की जिम्मेदारी आ गई थी. ऐसे में उस के लिए गरीबी की मार सहते हुए अपनी नवजात बच्ची का लालनपालन कर पाना संभव नहीं था. पहले वह उन के बारे में जान कर थोड़ा हिचक रही थी. लेकिन उन से मिलने के बाद उस की सारी शंकाएं दूर हो गईं.
सुधा से इस बात का जिक्र करने से पहले किशोर ने गोद लेने की प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर ली थी. सुधा के मन में कोई भी उम्मीद की किरण जगाने से पहले वे खुद पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहते थे. पूरी तसल्ली करने के बाद ही उन्होंने सुधा को यह बात बता कर विमला व उस की नवजात बच्ची से उस का परिचय करवाया. पहलेपहल तो सुधा को यकीन ही नहीं हुआ कि उस के जीवन में कुछ ऐसा घटित होने जा रहा है. फिर उसे आशंकाओं ने घेर लिया. पर आखिर में किशोर की बात समझ कर जब उस ने उस नवजात बच्ची को अपनी गोद में लिया, तो उस की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. जल्दी ही बच्ची को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू हो गई. धीरेधीरे सुधा के मुरझाए चेहरे पर रौनक लौटने लगी थी.
दोनों पक्षों की रजामंदी थी, इसलिए प्रक्रिया में कोई अड़चन तो नहीं थी लेकिन ऐसे कामों में थोड़ा वक्त तो लगता ही है. प्रक्रिया शुरू होने के बाद सब से कठिन कार्य था अपने परिवारों को यह खबर देना. किशोर व सुधा दोनों ने अपनेअपने परिजनों को फोन कर के सूचित कर दिया. किशोर को जिस बात का अंदेशा था, ठीक वैसा ही हुआ. दोनों ओर से विरोध के स्वर उठने शुरू हो गए. पहले सब फोन करकर के ही उन्हें रोकने का प्रयत्न कर रहे थे. अपनी कोशिशें नाकामयाब होने के बाद उन्होंने आज सुधा के बड़े भाई व किशोर के परममित्र कमल बाबू को अपना प्रतिनिधि बना कर उन के घर भेजा था.
नतीजा यह हुआ कि उन के यहां आने के बाद सुधा कमजोर पड़ने लगी थी. किशोर ने सुधा को तो समझाबुझा कर सुला दिया था लेकिन उन की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वे यह जानते थे कि कमल बाबू आखिरी व्यक्ति नहीं थे जो उन्हें रोकने का प्रयास करने के लिए घर आए थे. यह तो तूफान की शुरुआत भर थी.
तीन दिन किसी का फोन आए बगैर सुकून से गुजर गए. जिंदगी अपनी सामान्य रफ्तार से चलती रही. सुधा भी अब शांत थी. चौथे दिन किशोर दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रहे थे, तभी दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोलने पर अपने छोटे भाई सतीश व उस के परिवार को सामने पा कर किशोर यह समझ गए थे कि कमल बाबू की वकालत फेल होने के बाद सतीश ने केस की कमान अपने हाथों में ले ली है. वैसे तो उन के और सुधा के परिजनों की आपस में कभी नहीं बनी. वे सभी पारिवारिक समारोहों और उत्सवों में किसी तरह एकदूसरे को बरदाश्त कर लेते थे. लेकिन आज जब उन के और सुधा के निर्णय के खिलाफ खड़े होने की बारी आई तो वे सब अचानक ही एकता की शक्ति को पहचान गए थे.
किशोर ने न चाहते हुए भी मुसकरा कर सब का स्वागत किया. उन्होंने सुधा का चिंतित चेहरा देखते ही दफ्तर में फोन कर के छुट्टी ले ली. वे सतीश की तेजतर्रार पत्नी मीना के स्वभाव से भलीभांति परिचित थे. उन्हें मालूम था कि मीना मौका देख कर बच्ची को गोद लेने वाली बात का बतंगड़ जरूर बनाएगी. अब देखना यह था कि उसे यह मौका किस वक्त मिलेगा. शाम तक का वक्त तो शांति से गुजर गया.
शाम के समय किशोर व सतीश साथ बैठ कर बातें कर रहे थे. मीना सुधा के साथ रसोई में चली गई थी. उन के बच्चे पूजा और यश टीवी देखने में मग्न थे. सुधा रसोई से उन चारों के लिए चाय की ट्रे ले कर आई और पीछेपीछे मीना पकौड़े ले कर आ गई. सुधा बच्चों को पकौड़े व केचअप देने में व्यस्त थी. तभी किशोर ने देखा कि मीना आंखों से सतीश को कुछ इशारा कर रही थी.
वे कुछ समझ पाते, इस से पहले ही सतीश बोल पड़ा, “भाईसाहब, मुझे आप से कुछ बात करनी है.”
यह तो किशोर भी जानते थे कि उन के छोटे भाई को उन से क्या बात करनी थी. फिर भी उन्होंने अनजान बनते हुए कहा, “हां, बोलो सतीश, किस बारे में बात करनी है?”
सतीश अपनी पत्नी मीना की भांति तेजतर्रार नहीं था. उस ने गोलमोल बातें करनी शुरू कर दीं, “वो भाईसाहब, आप को पता तो होगा कि घर वाले आप से नाराज हैं. रिश्तेदारों के बीच में भी यही चर्चा चल रही है. दीदी का फोन आया था, वे भी बहुत चिंतित लग रही थीं. आप समझ रहे हो न कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूं?”
किशोर ने धैर्यपूर्वक कहा, “नहीं सतीश, मैं कुछ नहीं समझ पा रहा हूं. इस प्रकार घुमाफिरा कर बात मत करो. जो कहना चाहते हो, साफसाफ कहो.”
सतीश ने मीना की ओर देखा जो उसे गुस्से में खा जाने वाली नजरों से घूर रही थी. फिर उस ने किशोर की ओर देख कर कहा, “भाईसाहब, आप और भाभी एक बच्ची को गोद लेना चाहते हैं न. इस में हम में से किसी की भी सहमति नहीं है. रिश्तेदार और परिवार सभी आप से नाराज हैं, इसलिए आप यह विचार त्याग दीजिए.”
किशोर ने शांत भाव से पकौड़ा खाया और कहा, “किसी की सहमति नहीं है, से तुम्हारा क्या मतलब है, सतीश? मैं ने तुम्हारी या किसी और की आज्ञा मांगी ही कब थी?”
सतीश से इस का कोई उत्तर न देते बना, तो उस ने सहायता के लिए मीना की ओर देखा.
मीना ने पति की हालत देख कर बिना देर किए बातचीत की कमान खुद संभाल ली.
“भाईसाहब, इन के कहने का मतलब था कि पूरी उम्र तो आप ने बच्चा गोद लेने के बारे में सोचा नहीं. अब कहां इस उम्र में आप छोटी सी बच्ची की जिम्मेदारी उठाएंगे. और अगर आप को बच्चों की कमी इतनी ही खल रही है तो पूजा और यश हैं न. आप अपने सारे अरमान इन के जरिए पूरे कीजिए. ये दोनों भी तो आप ही की संतान हैं. मैं ठीक कह रही हूं न, भाभीजी.” इतना कह कर मीना ने सुधा की ओर देखा, जिस का पूरा ध्यान अब मीना और सतीश की बातों पर था.
किशोर ने मीना से मुसकरा कर कहा, “मीना, यह विचार तो मेरे मन में बरसों पहले ही आ गया था. लेकिन अगर उस वक्त मैं ने अम्मा के आगे न झुक कर थोड़ी हिम्मत से काम लिया होता तो आज हमारी संतान भी यश की उम्र की होती. और जहां तक पूजा और यश को अपनी संतान मानने की बात है, तो ये दोनों भी हमारे ही बच्चे हैं. हम ने सदा इन्हें अपना ही माना है. मगर मुझे यह बताओ कि यह बात तुम ने उस वक्त क्यों नहीं कही जब यश के जन्मदिन पर तुम्हारी माताजी ने सुधा को बांझ कह कर उसे यश को केक खिलाने से रोक दिया था?”
इतना सुनते ही मीना के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.
वह बात को संभालते हुए बोली, “भाईसाहब, आप तो जानते हैं कि मेरी मां पढ़ीलिखी नहीं हैं. वे गांव में रहती हैं. और कई बार बड़ेबूढ़े लोग ऐसी दकियानूसी बातों में विश्वास कर के कुछ भी बोल देते हैं. मगर मेरा विश्वास कीजिए, मेरे मन में ऐसी कोई बात नहीं है. मैं ने पार्टी के बाद मां से इसी बात को ले कर झगड़ा भी किया था.”
किशोर ने कहा, “चलो ठीक है, मैं ने मान लिया कि तुम्हारे मन में ऐसी कोई बात नहीं है मगर अब इन सब बातों को दोहराने का कोई फायदा नहीं है. हमारी बच्ची को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. हम दोनों पूजा और यश से बहुत प्यार करते हैं. लेकिन अब हम किसी की खातिर अपना निर्णय नहीं बदलेंगे.”
सतीश के हावभाव देख कर किशोर समझ गए थे कि वह हार मान चुका है. मगर मीना अब गुस्से से तिलमिला रही थी. उस ने आखिरी बार अपने पति की ओर देखा जिस ने कंधे उचका कर न में सिर हिला दिया.
अपनी दाल न गलते देख कर मीना भड़क उठी, “अरे, ऐसे कैसे बुढ़ापे में बच्ची गोद ले लेंगे. अगर बच्चे पालने का इतना ही शौक है तो मेरे पूजा और यश को अपने पास रख लो. जब घर में बच्चे मौजूद हैं तो उन के होते हुए कैसे किसी पराए खून को आप अपना सबकुछ उठा कर दे देंगे. इन सब पर तो पूजा और यश का हक बनता है.”
किशोर मुसकरा उठे, “चलो अच्छा हुआ, मीना. आखिर तुम्हारे मन की बात तुम्हारी जबान पर तो आई.”
यह सुन कर मीना झेंप गई. उस ने सहायता के लिए सतीश की ओर देखा जो खुद उसे अब अवाक हो कर देख रहा था. पूजा और यश भी अपनी मां को हैरानी से देख रहे थे.
मीना ने अपना बचाव करते हुए कहा, “भाईसाहब, आप मुझे गलत समझ रहे हैं. मेरे कहने का वो मतलब नहीं था. मैं तो बस इस बात की फिक्र कर रही हूं कि कहीं कोई आप के सीधेपन का फायदा उठाते हुए बच्ची गोद देने का लालच दिखा कर आप को ठग न ले. आजकल रुपए के लालच में लोग किसी भी हद तक गिर जाते हैं.”
“वो तो मैं देख ही रहा हूं, मीना. मैं अच्छी तरह से समझ भी रहा हूं कि तुम्हारी किस बात का क्या मतलब था.”
इतना कह कर किशोर ने सुधा की ओर देखा. सुधा चुपचाप उन के समीप आ कर खड़ी हो गई.
फिर किशोर ने सतीश और मीना से कहा, “माफ करना, हम दोनों के पास आप को देने के लिए पर्याप्त समय नहीं है. हम अपनी बच्ची को घर लाने की तैयारियों में आजकल बहुत व्यस्त रहते हैं. सतीश तुम्हें अपनी दुकान संभालनी है और बच्चों की पढ़ाई का भी नुकसान हो रहा होगा. तो आप लोग अधिक समय तक यहां रुकेंगे भी नहीं. वापसी का टिकट करा लिया है या मैं बुक करा दूं?”
सतीश और उस का परिवार अगली सुबह ही अपने घर के लिए रवाना हो गए. जातेजाते मीना उन्हें चेतावनी देना नहीं भूली कि अब बाला दीदी ही उन दोनों से बात करेंगी. सुधा मीना के स्वभाव से तो परिचित थी, मगर उसे उस के इस रूप का तनिक भी अंदाजा नहीं था. अब उसे इस बात का डर सताने लगा कि कहीं उस की ननद बाला के हस्तक्षेप के बाद किशोर अपना निर्णय बदलने पर मजबूर न हो जाएं क्योंकि बाला दीदी किशोर के जीवन में सब से अहम स्थान रखती थीं. उन्होंने ही किशोर को उच्चशिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया. उन्हें कानपुर से दिल्ली लाने में भी बाला दीदी का ही योगदान था. किशोर ने आज तक अपनी मां समान बड़ी बहन की कोई बात नहीं टाली थी. जब सुधा ने अपनी चिंता का कारण किशोर को बताया तो उन्होंने उसे भरोसा दिलाते हुए कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है.
किशोर सुधा को तो तसल्ली दे रहे थे लेकिन उन के मन के भीतर भी तूफान आया हुआ था. दिनरात बाला दीदी के फोन का इंतजार कर के चिंता में घुलने से भी क्या लाभ होता. किशोर ने सुधा से कहा कि अब जबकि उन की बच्ची जल्दी ही घर आने वाली है तो उन्हें उस के लिए थोड़ी खरीदारी शुरू कर देनी चाहिए.
किशोर का प्रयोग सफल साबित हुआ. बच्ची के लिए कपड़े, खिलौने व उस की जरूरतों के अन्य सामान की सूची बनातेबनाते ही सुधा का ध्यान बाला दीदी की ओर से हट गया. जब एक सप्ताह शांतिपूर्वक बीत गया तो किशोर को लगा कि शायद बाला दीदी चुप रह कर उन्हें अपना समर्थन दे रही हैं. लेकिन व्यक्ति अपनी मरजी से कोई बड़ा कार्य करने चले और उस में व्यवधान न आए, ऐसा असंभव है.
एक शाम जब वे दोनों खरीदारी कर के घर लौटे, तो किशोर के मोबाइल की घंटी बजने लगी. स्क्रीन पर बाला दीदी का नाम देखते ही किशोर समझ गए कि दीदी की चुप्पी उन का समर्थन नहीं था. असल में वह तूफान के पहले की खामोशी थी. उन्होंने सुधा की ओर देखा जो डरतेडरते उन्हें फोन उठाने के लिए कह रही थी.
फोन उठाते ही दीदी ने नमस्ते के उत्तर में पूछ डाला कि उसे परिवार के सम्मान और प्रतिष्ठा की तनिक भी परवा है या नहीं. किशोर बहुत संभलसंभल कर उत्तर देने का प्रयास कर रहे थे क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं दीदी उन के जवाब को अपना अपमान समझ कर उन से नाराज न हो जाएं. उन्हें पता था कि बाला दीदी किसी को आसानी से क्षमा करने वालों में से नहीं हैं फिर चाहे वह उन का प्रिय छोटा भाई ही क्यों न हो. दीदी किशोर को अपना निर्णय बदलने के लिए कहती रहीं और वे दीदी को समझाबुझा कर उन्हें स्थिति को अपने दृष्टिकोण से देखने की प्रार्थना करते रहे.
आखिरकार दीदी ने कह ही दिया, “तुम्हें पता भी है कि उस बच्ची के मातापिता कौन हैं? उस का धर्म क्या है? वह किस जाति, किस खानदान की है? किसी ऐरेगैरे के बच्चे को घर ला कर क्यों अपने खानदान का नाम डुबोने पर तुले हो? क्या तुम्हें अपने पिता और परिवार के नाम व मानसम्मान की तनिक भी चिंता नहीं है?”
किशोर को उन की बात सुन कर झटका लगा. अब बाला दीदी भी अम्मा की भाषा बोलने लगी थीं. यह सोच कर उन्होंने बाला दीदी को वही उत्तर दिया जो कभी वे अम्मा को देना चाहते थे, मगर दे नहीं पाए थे.
उन्होंने कहा, “हां दीदी, मैं जानता हूं कि उस के मांबाप कौन हैं और वह किस खानदान की है. उस के परिवार वाले बहुत ही शरीफ और खुद्दार लोग हैं. उस की मां अपनी मजबूरियों के चलते उसे हमें गोद दे रही है. रही बात जाति और धर्म की, तो इन सब बातों में क्या रखा है. पैदा तो वह इंसान की बच्ची बन कर हुई है. और आप ही तो कहती थीं कि बच्चे गीली मिट्टी की तरह होते हैं. उन्हें जिस सांचे में ढालो, वे उसी सांचे में ढल जाते हैं. आप बिलकुल फिक्र मत कीजिए, दीदी. आप की भतीजी की परवरिश उसी तरह से होगी जिस तरह आप चाहती हैं.”
“बातों के जाल मुझ पर मत फेंको, किशोर. तुम अच्छी तरह से जानते हो कि आज अगर अम्मा हमारे बीच में होतीं तो वो भी यही कहतीं. आज तुम बहुत बड़ीबड़ी बातें कर रहे हो. आदर्शवादी होने का विचार तो बहुत अच्छा है पर असल जिंदगी में इस विचार का कोई स्थान नहीं है. याद रखना, एक दिन तुम अपने इस निर्णय पर बहुत पछताओगे. मैं ने आज तक हर बात में तुम्हारा साथ दिया है. यहां तक कि सुधा को दिल्ली ले कर आने के निर्णय में भी मैं ने अम्मा के खिलाफ जा कर तुम्हारी मदद की थी. लेकिन आज तुम्हारे इस फैसले में मैं तुम्हारे साथ नहीं हूं. याद रखना, अगर तुम इस बच्ची को घर लाओगे तो आज के बाद मेरा और तुम्हारा कोई संबंध नहीं होगा. यह मेरा अंतिम निर्णय है.”
इतना कह कर बाला दीदी खामोश हो गईं, लेकिन उन्होंने फोन का रिसीवर नहीं रखा था.
किशोर की आंखें नम हो गईं. वे बाला दीदी का बहुत सम्मान करते थे लेकिन वे अपनी पत्नी सुधा से भी बहुत प्यार करते थे. वे खुद को इस वक्त 2 हिस्सों में बंटा हुआ महसूस कर रहे थे. उन्होंने भी मन ही मन निर्णय ले लिया था कि उन्हें क्या करना है. वे अपनी सुधा के साथ अब और अन्याय नहीं कर सकते थे.
उन्होंने गहरी सांस भरते हुए कहा, “दीदी, आप मेरे लिए सिर्फ मेरी बड़ी बहन नहीं हैं बल्कि मेरी मां से भी बढ़ कर हैं. मैं चाहता हूं कि आप की भतीजी आप की नाराजगी नहीं, आप के आशीर्वाद के साथ अपने घर में प्रवेश करे. उस का नाम भी आप ही को रखना है. आप के बिना हमारी खुशियां अधूरी रहेंगी. हम सब आप के घर आने का इंतजार करेंगे. आप का छोटा भाई आप की नन्ही भतीजी के साथ आप का इंतजार करेगा.”
उस रात किशोर सो न सके. वे पूरी रात बेचैनी से करवटें बदलते रहे. सुधा चिंतित हो कर उन्हें जागते हुए देखती. सुबह उन का उतरा हुआ चेहरा देख कर उस से रहा न गया. वह किशोर को चाय का कप दे कर उन के पास ही बैठ गई और बहुत ध्यान से उन का चेहरा देखने लगी.
किशोर ने उस की ओर बिना देखे पूछ लिया, “कुछ कहना चाहती हो, सुधा?”
सुधा बस उन के इसी प्रश्न का इंतजार कर रही थी.
वह रोंआसी हो उठी, “आप जानते हैं न कि मेरे लिए इस संसार में आप से अधिक महत्त्वपूर्ण कोई नहीं है. औलाद भी नहीं. और मैं भी अच्छी तरह से जानती हूं कि आप के जीवन में बाला दीदी का क्या स्थान है. आप उन्हें मना लीजिए. मुझे बच्ची नहीं चाहिए. क्या मैं पहले संतान के बगैर नहीं जी रही थी जो आगे नहीं जी पाऊंगी. मैं सोच लूंगी कि मेरे जीवन में संतान का सुख ही नहीं था. मैं आप को इस तरह परेशान होते हुए नहीं देख सकती. आप पूरी रात एक मिनट के लिए भी नहीं सोए हैं. दफ्तर में सारा दिन कैसे बिताएंगे? इस तरह तो आप की तबीयत खराब हो जाएगी. आप बाला दीदी को फोन कर के कह दीजिए कि हम बच्ची को गोद नहीं ले रहे हैं.”
अपने प्रति सुधा का यह प्रेम और समर्पण देख कर किशोर मन ही मन मुसकरा उठे. सुधा के एक कथन ने उन के मन में चल रही कशमकश को खत्म कर दिया था. अब उन्हें पहले से भी कहीं अधिक विश्वास हो गया था कि उन का निर्णय बिलकुल सही है.
उन्होंने सुधा का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, “मुझे एक रात जागते देख कर तुम्हें इतनी तकलीफ हुई है. मैं ने तो तुम्हें इतने वर्षों में अनगिनत रातें रोरो कर काटते हुए देखा है. जरा सोचो सुधा, मुझे तुम्हें इस तरह देख कर कितनी तकलीफ हुई होगी.”
सुधा उन्हें आश्चर्यचकित हो कर देखने लगी.
फिर किशोर ने आगे कहा, “तुम कितना भी चाहो लेकिन मुझ से अपने आंसू और दर्द नहीं छिपा सकती हो, सुधा. पिछले 26 सालों में तुम ने बिना कोई सवाल किए मेरी हर बात मानी है. मेरे हर सुखदुख में मेरा साथ दिया है. मेरे और मेरे परिवार के प्रति अपने सारे कर्तव्य अपनी क्षमता से बढ़ कर निभाए हैं और बदले में मुझ से कभी कोई उम्मीद नहीं की. अब मेरी बारी है, सुधा. तुम्हारे प्रति मेरे इस कर्तव्य को निभाने से मुझे संसार की कोई शक्ति नहीं रोक पाएगी. जहां तक बाला दीदी का प्रश्न है तो मैं जीवनभर उन्हें मनाने का प्रयास करता रहूंगा. और मैं जानता हूं कि एक न एक दिन वे जरूर मान जाएंगी. लेकिन अब मैं इतना आगे बढ़ने के बाद अपने कदम पीछे नहीं हटाऊंगा.”
उन की बातें सुन कर सुधा की आंखों से आंसू बह निकले. किशोर ने उन्हें अपने हाथों से पोंछते हुए कहा, “अच्छा बाबा, अब ज्यादा भावुक होने की जरूरत नहीं है. जरा यह तो बताओ कि तुम हमारी बिटिया को प्यार से क्या कह कर बुलाओगी?”
सुधा ने सिसकते हुए कहा, “बिट्टो.”
“मुझ पर यकीन रखो, सुधा. बहुत जल्दी हमारी बिट्टो घर आएगी.”
उस दिन के बाद किशोर या सुधा, किसी के घर वालों ने उन से संपर्क करने की कोशिश नहीं की. बच्ची के घर आने से एक सप्ताह पूर्व तक उन के रिश्तेदारों के साथसाथ, मित्रों व पड़ोसियों को भी उस के आने की खबर मिल गई थी. कुछ चुनिंदा लोगों ने उन के इस कदम की सराहना की. लेकिन कटाक्ष व आलोचना करने वालों की संख्या अधिक थी. किशोर व सुधा ने किसी की बातों पर ध्यान नहीं दिया. वे अपने घर को अपनी बच्ची के हिसाब से व्यवस्थित करने में व्यस्त रहे.
दोनों ने साथ मिल कर अपनी बिट्टो का कमरा सजाया था. सुधा दिन में कईकई बार जा कर सारा कमरा देखती कि कहीं कोई कमी तो नहीं रह गई है. घर के सारे नुकीले कोनों वाले सामान व फर्नीचर को बदल दिया गया. उन के घर में अब उन की जरूरत से ज्यादा उन की बच्ची की जरूरत का सामान था.
किशोर इस बात को ले कर अकसर सुधा को छेड़ते और सुधा मुसकरा कर कह उठती, “अभी मैं ने अपनी बिट्टो के लिए कुछ खरीदा ही कहां है. एक बार उसे घर आने दो, फिर देखना पता नहीं किसकिस चीज की जरूरत पड़ेगी. मैं उसे कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दूंगी.”
सुधा का खिला हुआ चेहरा देख कर किशोर मन ही मन खुश हो जाते थे.
और फिर वह दिन भी जल्दी ही आ गया जिस के लिए सुधा ने पूरे 26 सालों तक इंतजार किया था. वे दोनों सब से पहले अपनी बच्ची को ले डाक्टर से उस की जांच करवाई. बच्ची बिलकुल स्वस्थ थी. उस के बाद ही वे उसे घर ले कर आए. सुधा की खुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही नहीं था. उस की नजरें एक पल के लिए भी अपनी बेटी के चेहरे से नहीं हट रही थीं.
वह बारबार उसे चूमती व उस की बलाएं लेती. वह अनगिनत बार प्रकृति का धन्यवाद कर चुकी थी. बच्ची के रोने पर भी वह खुशी से हंसती हुई बावरी हुई जा रही थी. बस, एक ही समस्या थी. बच्ची अभी उन्हें पहचानती नहीं थी. वह उन्हें ध्यान से देखती, फिर अनजान चेहरों को सामने पा कर हिलकहिलक कर रोती. लाख चुप कराने पर भी वह सुबकती रहती. फिर थकहार कर, दूध पी कर सो जाती.
यह सब देखकर सुधा बहुत चिंतित हो गई.
किशोर ने उसे समझाने का प्रयास किया, “देखो सुधा, हमारी बेटी अभी बहुत छोटी है. उसे हमें पहचानने व अपनाने में थोड़ा समय लगेगा. अगर हमें अपना घर छोड़ कर, अपनों से दूर जा कर रहना पड़े तो हम भी बेचैन हो जाएंगे. फिर यह तो कुछ माह की अबोध बच्ची है. थोड़ा समय दो और धीरज रखो. इस में परेशान होने वाली कोई बात नहीं है.”
शुरूशुरू में सुधा बच्ची के रोने व चिड़चिड़ाने पर परेशान हो जाती थी. लेकिन फिर किशोर की सलाह पर उस ने थोड़ा संयम से काम लिया. इस बीच उन के घर में मित्रों व परिचितों का आनाजाना लगा रहा.
सुधा व किशोर को अपने धैर्य का पुरस्कार उस दिन मिला जब उन के एक मित्र दंपती घर पर आए. वे उन की बच्ची को गोद में ले कर दुलार कर रहे थे. मित्र की पत्नी के मुंह से ‘मां’ शब्द निकलते ही बिट्टो ने सुधा की ओर अपनी नन्ही उंगली से इशारा किया. सुधा ने यह देखा और फिर से उन्हें ऐसा ही कहने के लिए कहा.
‘मां’ शब्द सुनते ही बिट्टो ने फिर से सुधा की ओर इशारा किया. सुधा ने मुसकरा कर प्यार से बिट्टो कह कर पुकारा तो उस ने किलकारी भरते हुए सुधा की ओर हाथ बढ़ा दिए मानो कह रही हो, ‘मां, मुझे अपनी गोद में ले लो.’
बेटी की बात समझते हुए सुधा ने उसे अपनी गोद में ले लिया, उस का माथा चूमा. सभी हतप्रभ हो कर दोनों मांबेटी का मिलाप देख रहे थे. सुधा किशोर की ओर देख कर चहक उठी जो पहले से ही उन दोनों को नम आंखों से देखते हुए मुसकरा रहे थे.
उस के बाद तो जैसे उन दोनों की दुनिया ही बदल गई. किशोर ने कुछ दिनों के लिए दफ्तर से छुट्टी ले ली थी. वे अपना सारा समय अपनी पत्नी और नन्ही बिटिया के साथ बिताना चाहते थे. सुधा अपनी बिट्टो को रोज नईनई, रंगबिरंगी, सुंदर फ्रौक पहनाती और साथ ही नजर का काला टीका लगाना न भूलती. बिट्टो अपने खिलौनों को देख कर ताली बजाती और उन से अपनी भाषा में बात करती.
वह किशोर की पैंट खींच कर उन से खुद को गोद में लेने के लिए कहती. लेकिन सुधा के कमरे में आते ही उस की गोद में चली जाती. फिर किशोर झूठमूठ रूठने का नाटक करते और दोनों मांबेटी मिल कर उन पर हंसतीं. बिट्टो ने उन के सूने, अंधेरे जीवन में खुशियों का उजाला भर दिया था. अब वह उन्हें अपने मातापिता के रूप में पहचानने लगी थी. इस से बढ़ कर खुशी की बात उन के लिए हो ही नहीं सकती थी.
सबकुछ अच्छा चल रहा था. अब, बस, एक ही कमी थी. वे दोनों चाहते थे कि उन के परिवार के सभी सदस्य भी उन की बच्ची को स्वीकार कर लें. बिट्टो उन की बेटी थी. इस सत्य को अब उन्हें भी सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए था.
किशोर ने कई बार बाला दीदी को फोन किया था, लेकिन उन्होंने नंबर देख कर फोन नहीं उठाया. उन्होंने घर के फोन पर कौल किया तो बाला दीदी ने नौकर से कहलवा दिया कि वे घर पर नहीं हैं. इसी दौरान उन्हें एक रिश्तेदार से पता चला कि बाला दीदी की बेटी गौरी की शादी अगले माह होना तय हुई है. उन्हें छोड़ कर बाकी सभी को निमंत्रण भेजा गया है. किशोर को यह सुन कर धक्का लगा. वे जानते थे कि बाला दीदी उन से नाराज हैं. मगर इतनी भी क्या नाराजगी कि इकलौती भांजी की शादी में मामा को न बुलाया जाए. सुधा ने मायूस हो कर कहा कि अब उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए कि परिवार ने उन से सारे नाते तोड़ लिए हैं.
किशोर ने दृढ़ विश्वास के साथ कहा, “कोई कुछ भी कह ले मगर मैं जानता हूं कि मेरी दीदी मुझे न्योता देने जरूर आएंगी. वे भले ही मुझ से कितनी भी नाराज क्यों न हों, मगर वरे मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकती हैं. और अगर उन्होंने मुझे नहीं भी बुलाया तो क्या हुआ, मैं उन का छोटा भाई हूं और गौरी का मामा हूं. वे मुझे बुलाएं या न, मैं अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए वहां जरूर जाऊंगा.”
सुधा भलीभांति जानती थी कि किशोर का मन बहुत व्याकुल है. लेकिन वह उन की पीड़ा बांटने के अलावा और कर भी क्या सकती थी. सो वही करती रही.
सुधा के लगातार समझाने पर किशोर अपना पूरा ध्यान अपने काम व बेटी में लगाने की कोशिश करते रहे. जैसेजैसे गौरी की शादी की तारीख निकट आती गई, किशोर की उम्मीद की डोर भी कमजोर होती चली गई. शादी से 8 दिनों पहले उन्होंने सुधा के सामने यह स्वीकार भी कर लिया कि वे हार गए हैं और मानते हैं कि अब दीदी उन्हें अपने जीवन व हृदय से पूरी तरह निकाल चुकी हैं. अपने पति को इस तरह टूटता देख कर सुधा का हृदय भी तड़प उठा. वह उन के आंसू पोंछने ही वाली थी कि तभी उस से पहले बिट्टो ने हाथ बढ़ा कर किशोर के आंसू पोंछ दिए व उन की गोद में जा कर उन्हें प्यार करने लगी. अपनी मासूम बच्ची का प्रेम देख कर किशोर ने उसे कस कर अपने सीने से लगा लिया.
अगली शाम सुधा ने उन से पार्क में चलने का आग्रह किया. पहले तो वे मना करने लगे पर जब बिट्टो ने उन का हाथ पकड़ कर दरवाजे की ओर इशारा किया तो वे जाने के लिए मान गए. दोनों ने थोड़ी देर बिट्टो को पार्क में घुमाया, फिर बैंच पर जा कर बैठ गए. बिट्टो अब सोसाइटी के बच्चों को भी अच्छी तरह से पहचानने लगी थी. बच्चे उसे उस के नाम से पुकारते और उसे दिखादिखा कर गेंद को हवा में ऊंचा उछालते. बिट्टो गेंद को देख कर जोरजोर से ताली बजाती व किलकारी भरती. बिट्टो को इस प्रकार चहकता देख कर किशोर भी खुश हो रहे थे और उन दोनों को खुश देख कर सुधा खुश थी.
किशोर का ध्यान बिट्टो से तब हटा जब उन के कानों में एक परिचित स्वर पड़ा, “मामाजी.”
उन्होंने पलट कर देखा तो वहां गौरी खड़ी थी.
किशोर ने चौंक कर कहा, “गौरी, तुम यहां?” और इधर-उधर देखने लगे.
“मामा जी, आप मां को ढूंढ रहे हैं न?”
किशोर के कोई उत्तर न देने पर गौरी ने सुधा की ओर देख कर कहा, “मामी जी, यह मेरी छोटी बहन है न? लाइए इसे मेरी गोद में दीजिए.”
गौरी ने बिट्टो को गोद में ले कर प्यार किया और फिर किशोर की ओर देखा जो अभी भी उसे अचंभित हो कर देख रहे थे.
“कितनी अजीब बात है न, मामा जी. हम सभी आदर्शवाद की बड़ीबड़ी बातें तो करते हैं लेकिन यदि हमारा कोई अपना उन बातों पर अमल करता है तो हम ही सब से पहले उस के खिलाफ खड़े हो कर उस का विरोध करते हैं. हमारा झूठा अहंकार हमें उन का साथ देने की या सही और गलत में फर्क कर के फैसला करने की इजाजत नहीं देता. समाज के इन को खोखले कायदेकानूनों को मानने के चक्कर में हम खुद को अपनों से दूर कर बैठते हैं.
“मां ने भी यही गलती की है. सब की बातों में आ कर उन्होंने आप से रिश्ता तोड़ने की बात कह दी. यहां तक कि आप को मेरी शादी में आने का निमंत्रण भी नहीं दिया. यहां आप परेशान हैं और वहां वे खुद कब से आप से मिलने और बात करने के लिए तड़प रही हैं. लेकिन अपने मन में पनपी कशमकश के चलते वे ऐसा नहीं कर पा रही थीं. कल रात जब मैं ने उन्हें आप के लिए छिपछिप कर रोते देखा तो मुझ से रहा नहीं गया. मैं ने उन्हें गाड़ी में बिठाया और सीधे यहां ले आई. अब उन्हें यह डर सता रहा है कि पता नहीं आप उन्हें माफ करेंगे या नहीं. उन से बात भी करेंगे या नहीं.”
“क्या, दीदी यहां आई हैं?” किशोर ने चौंक कर पूछा.
फिर गौरी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना सुधा की ओर देख कर कहा, “देखा सुधा, मैं ने तुम से पहले ही कहा था न कि दीदी मुझ से अधिक देर तक नाराज नहीं रह सकती हैं, वे जरूर आएंगी.”
फिर सुधा की बात सुने बिना पार्क से बाहर की ओर जाते हुए कहने लगे, “मैं अभी अपनी दीदी को घर ले कर आता हूं.”
“अरे मामा जी, आप कहां भागे जा रहे हैं, बिट्टो को तो साथ लेते जाइए. मां आप से पहले अपनी भतीजी से मिलना चाहती हैं. बिट्टो के बिना मेरी शादी में आने की सोचिएगा भी मत,” गौरी ने किशोर का उतावलापन देख कर हंसते हुए कहा.
किशोर ने जल्दी से वापस आ कर बिट्टो को अपनी गोद में लिया व उस का माथा चूम कर आंखों में चमक लिए सुधा की ओर देख कर कहा, “देखा सुधा, बिट्टो को घर लाने का मेरा निर्णय बिलकुल सही था.”
फिर बेटी को गुदगुदी करते हुए कहा, “चल बिट्टो, तेरी बूआ को घर ले कर आते हैं.”
नन्ही बिट्टो को भला क्या समझ आता. वह किलकारी भरते हुए अपने पिता के साथ चली गई.
गौरी उन्हें बहुत गंभीर हो कर देख रही थी.
उसे ध्यानमग्न देख कर सुधा ने उस से पूछा, “क्या सोच रही हो, गौरी?”
गौरी ने हलकी सी मुसकान के साथ उत्तर दिया, “बिट्टो को घर ला कर आप ने बहुत अच्छा किया है, मामी जी. मुझे आप दोनों पर गर्व है.”
उस की बात सुन कर सुधा ने उसे गले से लगा लिया और धीरे से उस के कान में कहा, “थैंक्यू गौरी.”
अब उस के दिल में किसी तरह की कोई उलझन या कशमकश नहीं थी. वह आंखों में गर्व और तृप्ति की चमक लिए अपने पति व बेटी को पार्क से बाहर जाते हुए देख रही थी.