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कहानी: सुखिया

कई बार वह सुखिया से अपने दिल की बात कह चुका था.
सुरेंद्र सुखिया की जवानी पर फिदा था. उस के भरे उभारों, मांसल जिस्म और तीखे नैननक्श को देख कर दूसरे लोगों की तरह ही कई बार सुरेंद्र की नीयत भी बिगड़ गई थी. पिछले दिनों सुखिया के पति की ट्रक की टक्कर से मौत हो गई थी. जमींदार के बिगड़े बेटे सुरेंद्र के लिए तो यह सोने पे सुहागा हो गया था, इसलिए कई बार वह सुखिया से अपने दिल की बात कह चुका था.

इस बीच सुखिया लोगों के घर बरतन मांज कर कुछ पैसे कमा लेती थी. एक वकील ने उस से मिल कर उस के पति के बीमे के पैसे के लिए उसे तैयार किया और केस लगा दिया था.

एक दिन सुरेंद्र ने सुखिया से कहा, ‘‘तू कोर्टकचहरी के चक्कर में कहां पड़ी है. जितना तुझे बीमा से मिलेगा, उस से दोगुना मैं तुझे देता हूं. बस, तू एक बार राजी हो जा.’’

सुखिया उस की बात को अनसुना कर देती. सुखिया की गरीबी और जवानी का हर कोई फायदा उठाना चाहता था, इसलिए एक दिन वकील ने कहा, ‘‘सुखिया, तेरा केस लड़तेलड़ते मैं थक गया हूं. अब एक दिन घर आ जा, तो थकान मिट जाए.’’

सुखिया एक दिन कचहरी आ रही थी, तभी उस का केस देखने वाला जज सामने टकरा गया और बोला, ‘‘सुखिया, तेरा केस तो एक ही बार में खत्म कर दूंगा और पैसा भी बहुत दिलवा दूंगा. बस, तू मुझ से मिलने आ जा.’’

लेकिन सुखिया किसी की बात पर कोई ध्यान नहीं देती. बस, अपने चेहरे पर दिलफेंक मुसकराहट ला देती. आखिरकार जज साहब ने 2 लाख रुपए के मुआवजे का फैसला ले लिया. जज और वकील की मिलीभगत थी, इसलिए और्डर की कौपी वकील ने ले ली और हिसाब पूरा करने के बाद उसे सुखिया को देने के लिए राजी हो गया.

कचहरी में चैक बनाने वाले बाबू ने जब सुखिया को देखा, तो उस का भी ईमान डोल गया. वह सुखिया को चैक देने के बहाने बुलाने लगा और सामने बैठा कर उस के उभारों पर नजर गड़ाए रखता.

एक दिन बाबू ने कहा, ‘‘तेरी फाइल और चैक के ऊपर सभी के दस्तखत होंगे, तभी मिलेगा.’’ सुखिया ने परेशान हो कर कहा, ‘‘बाबू, कुछ पैसा चाहिए तो ले लो, क्यों रोजरोज परेशान करते हो?’’

इस पर बाबू उसे अपनी बातों में बहला लेता था. एक दिन जब सुखिया आई, तब बाबू ने कहा, ‘‘मैं फाइल और चैक तैयार रखूंगा. तुम आ जाना, फिर वहीं सब के दस्तखत करा कर चैक दे देंगे.’’ सुखिया इस के लिए तैयार हो गई.

यह खबर जब दारोगा को मिली, तो वह भी इस में शामिल हो गया. इस से यह डर भी खत्म हो गया कि अगर सुखिया ने कहीं शिकायत वगैरह की, तो कुछ नहीं होगा. बाबू की पत्नी मायके गई थी, इसलिए सुखिया को उसी के कमरे में बुलाया.

सुखिया ने वहां पहुंच कर परेशान होते हुए कहा, ‘‘अब तो चैक पर दस्तखत कर के दे दो, क्यों इतना परेशान कर रहे हो?’’ कचहरी के बाबू ने कुटिल हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘सुखिया, ऐसी भी क्या जल्दी है, थोड़ा रुको तो.’’

इधर सुखिया कसमसाती रही, उधर फाइलचैक पर दस्तखत होते रहे. - संतोष
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