कहानी: गुजर जाते हैं जो मुकाम
आज आप की दादी नहीं आईं?” रजनीश ने सवाल किया, तो वह लड़की फफक कर रो पड़ी और रोतेरोते उस ने बताया कि दादी को कैंसर था, उन की मृत्यु हो गई है.
यह 50 बरस की उम्र भी बड़ी अजीब होती है, न तो व्यक्ति ठीक से जवान रह पाता है और न बूढ़ों में ही गिनती होती है.
आज रजनीश ने अपना 50वां जन्मदिन का केक काटा है. केक शुगरफ्री था क्योंकि रजनीश को डायबिटीज है. केक को खाने वाला वह और उस का इकलौता दोस्त डाक्टर नवीन ही तो हैं, इसलिए उस ने केक को शुगरफ्री बनवाया.
पिछले 10 वर्षों से अकेला है रजनीश, फिर भी वह अपना जन्मदिन सैलिब्रेट करना नही भूलता.
रजनीश केक काट कर उस का एक टुकड़ा खाने के बाद बाकी का केक फ्रिज में रख कर नीचे उतर आया. आगे के मोड़ से मुड़ कर वह पार्क में आ गया और पार्क के अंदर उगाई हुई घास में टहलने लगा. उस की नज़र वहां घूम रहे युवाओं व बच्चों पर पड़ी. वे सभी लोग अपनी गरदन झुकाए अपने मोबाइलों में व्यस्त थे.
‘हुंह, सब लोग कहते हैं कि मोबाइल ने हम से बहुतकुछ छीन लिया है पर फिर भी सब लोग मोबाइल में ही मस्त और व्यस्त हैं,’ उस की बुदबुदाहट में क्रोध और हताशा का मिश्रण था.
लागभग रोज़ ही रजनीश इस पार्क में आता है, कुछ और लोग भी आते हैं और पार्क में आने वाले लोगों में बिना एकदूसरे से बोले ही एक आपसी जानपहचान भी पनप जाती है. यदि उन लोगों में से कोई कुछ दिन न दिखाई दे तो मन खुद ही उस व्यक्ति को याद कर उठता है. रजनीश को भी 70 साल की उन अम्मा की याद आई जो अपनी 20 साल की पोती के साथ पार्क में आ कर बैंच पर बैठती हैं. और उन के बैठते ही उन की पोती उन्हें अपने साथ लाया हुआ एक रेडियो दे देती जिसे वे अपने कान से सटा लेती हैं. फिर धीरेधीरे उन की आंखों में कोई नई रोशनी सी जाग जाती है जो उन के गालों से होते हुए उन के होंठों पर मुसकराहट बन कर थिरक जाती है. और फिर, जैसे उन्हें दीनदुनिया से कोई मतलब नहीं रह जाता. शायद वे कोई फिल्मी गीत या गीतों वाला कोई प्रोग्राम सुन रही होंगी. पर अब रेडियो पर भला कितने ऐसे प्रोग्राम आते होंगे जो लोगों का तनाव दूर कर दें और उन्हें मुसकराने पर विवश कर दें.
इस बात का तो रजनीश को भी नहीं पता, भले ही रजनीश और रेडियो का पुराना नाता है. यह नाता तब शुरू हुआ था जब अपनी बीए की पढ़ाई खत्म करने के बाद उस ने अपना वौयस टैस्ट लखनऊ के आकाशवाणी केंद्र में दिया था और उस की गहराई ली हुई आवाज़ और उस के भारीपन व साफ उच्चारण के कारण उसे उदघोषक की नौकरी मिल गई थी.
हालांकि अभी उसे स्थाई तौर पर नियुक्तिपत्र नहीं मिला था, एक तरह से उस की नौकरी संविदा पर ही थी लेकिन सैलरी ठीकठाक थी. और फिर, समाज में तो आकाशवाणी में जौब करने वाले व्यक्ति को बड़ी अच्छी दृष्टि से देखा जाता है, इसलिए रजनीश संतुष्ट था.
रजनीश ने अपनी आवाज़, अद्भुत प्रतिभा और कल्पनाशीलता भरे प्रोग्राम्स के जरिए जल्दी ही लोकप्रियता हासिल कर ली. यह उस की कल्पनाशीलता ही थी कि रजनीश ने अपने श्रोताओं के लिए ‘मुझ से बातें करोगे’ नामक एक ऐसा प्रोग्राम लौंच किया जिस में रेडियो सुनने वाले लोग आकाशवाणी के बताए गए फोन नंबर पर डायरैक्ट फोन कर के रेडियो उदघोषक यानी रजनीश से बातें शेयर कर सकते थे.
इस दौरान रजनीश और श्रोताओं के बीच बहुत सी चुटकीली बातें होती, तो कहीं कुछ लोग अपनी व्यक्तिगत समस्याएं भी वताते और ये सब औन एयर चल रहा होता. स्पष्ट है कि इस प्रोग्राम में रजनीश को अपनी वाकपटुता द्वारा कार्यक्रम के संचालन में रुचि बनाए रखना होता था. रजनीश बहुत ही सुंदरता के साथ अपनी आवाज़ का जादू जगाता और लोगों के साथ बहुत आत्मीयता से जुड़ता, साथ ही, श्रोताओं की पसंद के गीतों को भी बजाया जाता. आकाशवाणी की कम होती लोकप्रियता एक बार फिर से बढ़ने लगी थी और लोग अपनी कार व दुकानों पर रेडियो सुनने लगे थे. उन सब का पसंदीदा उदघोषक था रजनीश.
‘मुझ से बातें करोगे’ नामक प्रोग्राम में मानसी नाम की एक लड़की का फोन कई बार आता और वह रजनीश से बड़े ही खुलेपन व खुलेमन से बात करती थी. उस का बिंदास होना मानसी को और लड़कियों से अलग बनाता था तभी तो रजनीश भी उस की हेलो सुन कर ही बिंदास मानसी को पहचान जाता और बिंदास होना शायद उस की चरित्रगत विशेषता थी. तभी तो औन एयर उस ने रजनीश से कहा था कि उस की आवाज़ से मानसी को प्यार हो गया है और वह ऐसी ही मखमली आवाज़ वाले व्यक्ति से शादी करना चाहेगी.
उस दिन तो गज़ब ही हो गया जब कार्यक्रम खत्म होने के बाद मानसी रजनीश से मिलने के लिए आकाशवाणी भवन के बाहर पहुंच गई थी. रजनीश को बातोंबातों में हजरतगंज चल कर कौफी पीने के लिए मना भी लिया. मानसी की हाज़िरजवाबी व बातबात पर उन्मुक्त हो कर हंसना रजनीश को भी अच्छा लगा.
बातें बढ़ीं तो मुलाकातों के दौर भी बढ़ गए. कौफी से बात शुरू हुई थी तो अब इन का संबंध टौकीज में जा कर एकदूसरे का हाथ थाम कर रोमांटिक मूवी देखने तक पहुंच गया था. हालांकि रजनीश को अपने व्यस्त शिड्यूल से घूमनेफिरने का समय निकाल पाना बहुत मुश्किल होता था पर मानसी के प्यार में इतनी गर्मजोशी थी कि उसे ये सब करना पड़ता था.
प्रेमभरे दिन तेज़ी से बीतते हैं और दिन बीतने के साथ वह दिन भी आ गया जब मानसी ने खुद ही रजनीश के सामने उन दोनों की शादी का प्रस्ताव रख दिया. ‘प्यारव्यार तो ठीक है पर शादी करना ज़रा पेचीदा मामला है और फिर तुम मेरे परिवार के बारे में जानती ही क्या हो?’ रजनीश का लहज़ा थोड़ा तल्ख हो चला था
पर उस के इस सवाल के जवाब में जो मानसी ने कहा उसे सुन कर रजनीश की सारी कठोरता जाती रही. ‘सबकुछ जानती हूं तुम्हारे बारे में, यही न कि तुम एक सामान्य परिवार से हो और तुम पर विधवा मां और 2 कुआंरी बहनों की ज़िम्मेदारी है.’ मानसी की आवाज़ में प्यारभरी बेचैनी साफ झलक रही थी.
रजनीश ने अपने निम्नमध्यवर्गीय होने से ले कर अपनी हर ज़िम्मेदारी के बारे में मानसी को बता दिया था पर मानसी का रजनीश के लिए प्रेम किसी उफनते सागर की लहरों की तरह उमड़ रहा था.
मानसी ने रजनीश की मां और उस की बहनों से मुलाकात की और अपने व रजनीश के प्रेम के बारे में उन्हें सबकुछ बता दिया. रजनीश के घरवालों को मानसी का यह खुला और जल्दबाज़ीभरा व्यवहार थोड़ा अजीब तो लगा पर इस में भी एक अपनापन झलक रहा था. मानसी का रजनीश के घरवालों के साथ भी अच्छा संबंध बन गया था.
‘शादी तो करनी ही है, अच्छा होगा कि तू उस लड़की से शादी कर जो तुझ से प्रेम करती है.’ हालांकि अभी रजनीश को शादी करने की जल्दी नहीं थी फिर भी मानसी की तरफ से लगतर मनुहार किए जाने के कारण मां ने भी हरी झंडी दे दी थी और रजनीश व मानसी शादी के बंधन में बंध गए थे.
एक साल तक तो मानसी ने किसी कुशल बहू की तरह सब का ध्यान रखा और शादी का दूसरा साल लगतेलगते वह एक बेटी की मां बन गई. घर में खुशियों का माहौल था. कुछ महीनों बाद मानसी की रेलवे परीक्षा का परिणाम आया और उस की भरती रेलवे सीतापुर में क्लर्क के पद पर हो गई.
मानसी अपनी नौकरी को लेकर बहुत उत्साहित थी. रजनीश ने सीतापुर जा कर उस की जौइनिंग से ले कर उस के रहने का प्रबंध करवा दिया और छोटी बच्ची का ध्यान रखने के लिए अपनी छोटी बहन को उस के साथ भेज दिया.
हर सप्ताहांत में रजनीश मानसी के पास डेढ़ सौ किलोमीटर का सफर तय कर के आता और मानसी के साथ समय बिताता. लेकिन उस का जीवन जैसे 2 जगह बंट गया था. इसलिए मानसी ने अपना ट्रांसफर लखनऊ कराने के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया. इतनी जल्दी ट्रांसफर होना कठिन था पर इस काम में मानसी की सहायता उस के एक सीनियर अधिकारी तेज़ वर्मा ने की जो मानसी से उम्र में तीनचार साल बड़े थे.
मानसी बच्ची को ले कर वापस लखनऊ शिफ्ट तो हो गई पर पिछले कुछ दिनों से मानसी से मिलने पर रजनीश को वह मानसी नहीं मिलती, उस के स्वभाव में परिवर्तन आ गया था जो चिड़चिड़ेपन और पारिवारिक मनमुटाव के रूप में बाहर आ रहा था. रजनीश ने कारण जानना चाहा तो मानसी ने सच बता दिया कि सीतापुर में पोस्टिंग के दौरान मानसी और तेज़ वर्मा के बीच प्रेम पनप गया है और उसे लगता है कि तेज़ वर्मा रजनीश से अच्छा जीवनसाथी साबित होगा.
रजनीश अवाक था. उसे अपने सुने पर भरोसा नहीं हो रहा था. कोई लड़की ऐसा कैसे कर सकती है और क्या उस का पति कोई ‘चौइस’ है जिसे वह बदलना चाह रही है. पर, मानसी ऐसी ही थी. उस का प्यार एक बुलबुले की तरह था जिसे उठने की जितनी जल्दी होती है तो फूट जाने का उतालवनापन भी उतना ही रहता है.
कैसे कोई शादीशुदा और छोटे बच्चे वाली औरत ऐसा कर सकती है और फिर रजनीश तो निम्नमध्यवर्गीय परिवार से था, उस के परिवारों में तो शादी को सात जन्मों का बंधन माना जाता है और तलाक को एक बदनुमा दाग. दिमाग नहीं चल रहा था रजनीश का, इसलिए उस ने अपने इकलौते दोस्त डाक्टर नवीन को सारी बातें बताईं व इस मसले पर उस की राय मांगी.
डाक्टर नवीन ने उसे मानसी को तलाक दे देने की बात कही, ‘इतना ही कम है क्या कि मानसी ने तुम्हें सब सच बता दिया. अगर वह चाहती तो बड़े आराम से दो नावों पर पैर रख सकती थी.’
नवीन द्वारा मानसी को क्लीन चिट दिया जाना रजनीश को अखर रहा था. बहस और तर्क का समय नहीं था और वैसे भी मानसी द्वारा अपने प्रेम को स्वीकार कर लेने के बाद तो रजनीश के पास उसे तलाक देने के अलावा कोई चारा ही नहीं था. दोनों ने आपसी सहमति से कोर्ट में जा कर तलाक ले लिया पर आश्चर्यजनक रूप से बेटी को मानसी ने अपने पास रखा, लेकिन उस के जीवनयापन के लिए रजनीश से पैसे लेने के लिए अतिरिक्त दबाव नहीं बनाया.
मानसी के जाने के बाद रजनीश मानो सदमे में चला गया था. मानसी ने खुद ही उस से शादी की पहल की थी और परिवार को भी आगे बढाया. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उस का मन किसी परपुरुष के साथ लग गया और वह अपने पति को तलाक तक देने को राजी हो गई. अपनेआप से बहुत सवाल करने के बाद इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल सका रजनीश को.
रजनीश की मनोव्यथा इतनी बढ़ गई थी कि वह दोबारा आकाशवाणी के माइक पर बोल नहीं सका और उदघोषक का कार्य छोड़ कर औफिस की क्रिएटिव टीम का हिस्सा बन कर काम करने लगा. साथियों ने उसे इस सदमे की हालत से निकालने का बहुत प्रयास किया पर वे सफल नहीं हुए और फिर रजनीश का मन आकाशवाणी में लग भी तो नहीं रहा था. सो, रजनीश ने वहां से त्यागपत्र दे दिया.
दुखदर्द और समस्याओं के आने से अपनी जिम्मेदारियों से तो मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. रजनीश ने अपनी दोनों बहनों की शादी कर दी और अपनी विधवा मां का उन के जीवित रहने तक बराबर ध्यान रखा. शायद रजनीश दोबारा शादी करने की मां की ज़िद मान लेता तो मां और जी जाती पर रजनीश एक बार धोखा खाने के बाद दोबारा धोखा नहीं खाना चाहता था.
पिछले 20 सालों में लखनऊ में काफीकुछ बदल गया था. इन वर्षों में मानसी कहां गई थी और किस हाल में रही, उस की बेटी कैसी है और क्या उसे अपने पापा की याद नहीं आती है? ये सब जानने की कोशिश तक नहीं की थी रजनीश ने और खुद को भी इतना मजबूत रखा था कि उसे भी अपनी बेटी की याद न आए.
आज पार्क में उस अम्मा को निहार रहा था, तभी रजनीश ने मोबाइल पर एक अनजाना नंबर देख कर अनमने मन से फोन उठाया. “हां जी, कहिए.” पर रजनीश को उत्तर नहीं मिला. उस ने फिर हेलो किया पर उत्तर नदारद था. फोन करने वाला जी भर कर रजनीश की आवाज़ सुन लेना चाहता था. उकता कर रजनीश ने फोन काट दिया.
पर फोन फौरन फिर बज उठा और जब रजनीश ने हेलो किया तब उधर से एक महिला का स्वर था. चूंकि 20 साल में चेहरा बदलने के साथसाथ आवाज़ भी बदल जाती है, इसलिए महिला ने खुद अपना नाम बता दिया.
“देखो रजनीश, प्लीज़ फोन मत काटना. मैं बोल रही हूं तुम्हारी मानसी.”
रजनीश मौन था, उसे क्या बोलना है, यह समझ भी नहीं आ रहा था उसे. मानसी उसे फोन कर रही है पर उस ने तो सालों पहले ही अपना रास्ता अलग कर लिया था और फिर, अब क्यों?
“दरअसल मैं तुम से मिलना चाहती हूं, बस. इस के अलावा कुछ नहीं चाहिए मुझे और मैं जानती हूं कि तुम मुझ से बहुत नफरत करते होगे पर एक बार मिल लो,” मानसी के स्वर में याचना का भाव लग रहा था और उस की आवाज़ में बहुत थकावट सी भी लग रही थी.
रजनीश बारबार फोन को काट देना चाहता था. वह मानसी पर चिल्लाना भी चाहता था पर ये सब कर न सका और कुछ न बोल सका. ‘पर इतने सालों बाद, अब, मिलनेमिलाने में क्या सार है?’ रजनीश बुदबुदाया.
लेकिन मानसी 20 साल पहले की तरह ही उतावली लग रही थी.
आखिरकार, रजनीश ने बेमन से मिलने के लिए हां कर ही दिया.
दोनों ने परिवर्तन चौक के पास शहादत अली के मकबरे पर मिलना तय किया. रिश्ता खत्म हुए 20 साल हो गए थे, इसलिए उन लोगों को मकबरे की शांति ज्यादा सुहा रही थी.
रजनीश जब पहुंचा तब मानसी वहां पहले से ही थी. दोनों की नजरें टकराईं तो रजनीश के मन में एक विषाद सा पैदा हो गया, उस ने देखा कि मानसी की सुंदर और छरहरी काया अब थोड़ी सी स्थूलकाय हो चली थी और बाल कनपटी के पास से सफेद होने लगे थे व चेहरे में कसावट की जगह थोड़ा ढीलापन आने लगा था. मानसी ने भी रजनीश के चेहरे पर ढीलापन देखा था.
रजनीश ने मानसी के चेहरे से नज़रें हटा लीं और उस के बोलने का इंतज़ार करने लगा. कुछ मिनटों तक खामोशी ही छाई रही थी.
“तुम ने तो कभी मेरा हाल जानने की कोशिश ही नहीं की,” मानसी की हलक से बड़ी मुश्किल से शब्द निकल रहे थे.
“तुम ने कोई संबंध ही कहां रखा था,” रूखे स्वर में रजनीश ने कहा.
टूटे हुए रिश्ते आज आमनेसामने थे और दोनों के बीच एक खाई सी थी जो अब भर नहीं सकती थी. मानसी ने हिम्मत कर के बोलना शुरू किया और रजनीश को बताया कि तेज़ वर्मा के साथ शादी कर लेने का उस का निर्णय किस तरह से गलत निकला था.
तेज़ वर्मा की फितरत ही औरतों को धोखा देने वाली थी. उस का अफेयर किसी फैशन मौडल से हुआ तो उस ने मानसी को छोड दिया. तब मानसी को एहसास हुआ कि अपने साथी द्वारा छोड़ा जाना कितनी पीड़ा पहुंचाता है. उस के बाद मानसी ने अपनी बेटी की परवरिश अकेले ही की. भले ही उस के पास सरकारी नौकरी थी पर फिर भी वह अपनी बेटी को पिता का प्यार, अनुशासन नहीं दे पाई थी.
नतीजा यह निकला कि वह मात्र 20 साल की गलत संगत में पड़ गई है और नशे का शिकार हो गई है. तरात वह घर नहीं आती, न तो उसे पढ़ाईलिखाई की चिंता है और न ही कैरियर बनाने का शौक.
मानसी अपनी कहानी आगे भी सुनाना चाहती थी पर रजनीश ने खीझते हुए उसे रोक दिया, “मुझ से चाहती क्या हो? और फिर, आज यह कहानी सुनाने का क्या फायदा, तुम पहले भी तो आ सकती थीं मेरे पास?”
“बस, हिम्मत नहीं कर पाई और किस मुंह से आती. पर अब लगता है कि मैं ने तुम्हारे साथ गलत किया. बस, एक बार माफ कर दो मुझे. और कुछ नहीं चाहिए तुम से,” मानसी गिड़गिड़ा रही थी.
मानसी के चरित्र में उतावलापन था. बहुत जल्दी ही अपने सारे निर्णयों को वह सही मान कर आगे बढ़ जाती थी. जिस तरह से उस ने रजनीश से शादी करने में ज़िद दिखाई उसी तरह की ज़िद तेज़ वर्मा के साथ घर बसाने में की और क्या पता आज भी वह किसी जल्दबाज़ी में ये सब बात कर रही हो.
रजनीश कुछ बोल नहीं पा रहा था. फिर भी उस ने इतना कहा, “माफ करने के लिए मेरे तुम्हारे बीच में कोई रिश्ता तो होना चाहिए. तुम ने वही नहीं रखा, तो अब क्या ज़रूरत है इस सब नाटक की. तुम ने मुझे जो दंश दिया उस के कारण पूरी स्त्री जाति से मेरा भरोसा उठ गया है. इस का परिणाम यह रहा कि मैं ने आज तक दोबारा शादी नहीं की.”
माफी और पश्चात्ताप की सारी बातों को पूरी तरह खत्म कर दिया था रजनीश ने. मानसी अकेली मकबरे के लौन में खड़ी थी. उस के आंसू भी उस की आंखों का साथ छोड़ रहे थे.
बात को तीनचार दिन बीत गए. दरवाज़े पर दस्तक हुई तो रजनीश ने दरवाज़ा खोला, देखा, सामने डाक्टर नवीन खड़ा था. दोनों बैठने के बजाय सीधा किचन में गए जहां नवीन चाय बनाने लगा. हमेशा नवीन ही चाय बनाता था क्योंकि रजनीश को अच्छी चाय बनानी नहीं आती थी.
“माफ क्यों नहीं कर देते मानसी को,” नवीन अचानक से बोल उठा था.
नवीन के मुंह से आज इतने सालों बाद मानसी का नाम सुन कर रजनीश हैरान था. उस ने सवालिया नज़रों से नवीन को देखा. आंखों के सवालों को समझ कर नवीन ने सोफे पर बैठे हुए, चाय की चुस्की के साथ उत्तर देना शुरू कर दिया
“इतना ही कम है क्या कि 20 साल बाद ही सही पर उसे अपने अपराध का बोध हुआ और वह तुम से माफी मांग रही है. अगर न भी मांगे तो क्या?” एक लंबी सांस छोड़ी थी नवीन ने और आगे कहना शुरू किया.
उस ने बताया कि पिछले दिनों मानसी नवीन के अस्पताल में ही अपनी बेटी दिया को ले कर आई थी. दिया ने एक नशीली दवा का ओवरडोज़ ले लिया था. दिया को ठीक करने में डाक्टर नवीन ने पूरी जान लगा दी थी क्योंकि मानसी और नवीन एकदूसरे को पहचान गए थे. दिया की तबीयत ठीक हुई तो मानसी ने नवीन को अपने बीते सालों के बारे में बताया कि उसे कैसे अपने किए पर पछतावा है और नवीन से ही मानसी ने रजनीश का नंबर लिया था.
“पर इतने दिनों बाद भला मेरी ज़रूरत क्यों?” रजनीश का धैर्य जवाब दे चुका था.
“तुम्हारी ज़रूरत उसे अपने लिए नहीं बल्कि अपनी बेटी के लिए है क्योंकि मानसी को लास्ट स्टेज का कैंसर है और वह अधिक दिन जीवित नहीं रहेगी. इसलिए मरने से पहले वह अपनी बेटी को तुम्हारे सेफ हाथों में सौंप जाना चाहती है.” एक ही सांस में सब कह गया था डाक्टर नवीन.
सन्न रह गया था रजनीश. भले ही मानसी से उस का कोई रिश्ता नहीं रह गया था पर उस की बेटी में तो रजनीश का ही खून था. इतने वर्षों अलग रहने के बाद ममता दब सी गई थी जो अब जागती सी मालूम हुई पर मानसी के बारे में सुन कर रजनीश को ज़रूर दुख हुआ. लेकिन यह मानसी ही तो थी जिस के कारण उस का जीवन, उस का कैरियर सब बरबाद हुआ. इसलिए फिर भी नवीन को वह कोई उत्तर न दे सका.
आज इन सब बातों को 15 दिन बीत चुके हैं. रजनीश शाम को पार्क में पहुंचा और अपनी पसंदीदा बैंच पर बैठ गया. सामने अम्मा वाली बैंच आज खाली थी, सिर्फ उन की पोती ही अकेले बैठी थी और उस के पास वही रेडियो रखा था. उस की बेटी दिया इतनी बड़ी ही होगी, रजनीश उस लड़की के पास पहुंचा.
“आज आप की दादी नहीं आईं?” रजनीश ने सवाल किया, तो वह लड़की फफक कर रो पड़ी और रोतेरोते उस ने बताया कि दादी को कैंसर था, उन की मृत्यु हो गई है.
“कैंसर…” रजनीश के होंठ हिल रहे थे. उस ने सुना कि रेडियो पर धीमी आवाज़ में एक गीत बज रहा था जिस के बोल थे-
‘जिंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मुकाम, वो फिर नहीं आते…’
रजनीश वहां खड़ा न रह सका. वह नवीन के फ्लैट की तरफ बढ़ चला और कांपते हाथों से उस ने मानसी का नंबर डायल कर दिया था.- नीरज मिश्र