कहानी: बहन
छत पर टहलते हुए सुनैना की आँखों से आँसू बह रहे थे जिन्हें छुपाने के लिए ही वो अपनी बेटी श्रुति की शादी की रस्मों में जमा उसके ससुराल के रिश्तेदारों के बीच से किसी जरूरी काम याद आने के बहाने से निकल आई थी।
आज उसे अपनी मांँ की बहुत याद आ रही थी।
वो जब श्रुति के पहले जन्मदिन पर मांँ से मिलने गई थी तो मांँ ने अपने गहनों का डिब्बा उसे पकड़ाते हुए कहा था यह मेरी नतनि की शादी के लिए संभाल कर रखना।
सुनैना की छोटी भाभी ने देख लिया तो बड़ी भाभी को बताया और फिर घर में हंगामा शुरू कर दिया।
उस दिन के बाद से ही शुरू हो गई रिश्तों में खटास जो मिटने का नाम ही नहीं ले रही थी।
आज जब सारे रिश्तेदार और मेहमान आए थे उसके मायके से कोई नहीं आया था।
बीस साल हो गए थे उसे वहां गए और अपने भाई बहन से मिले।
शाम के धुंधलके के साथ आकाश में पंछी अपने घरों की ओर पंक्तिबद्ध उड़ रहे थे। जिन्हें अपने आंँसुओं के बीच भी सुनैना निहार रही थी और मन ही मन सोच रही थी … कितनी एकता है इन पक्षियों में भी और एक हम इंसान अपने स्वार्थ के कारण इतने मतलबी हो जाते हैं कि खून के रिश्ते भी भूल जाते हैं।
वो अपने अतीत के दिनों को याद करती है…
जब तक उसके पापा थे वो हर गर्मी की छुट्टी में आते और उसे अपने साथ ले जाते। महीने भर मायके में रहने के बाद सुनैना को छोड़ने भी आते।
वो तब कहा करती,” पापा आप बेकार परेशान होते हैं मैं आ जाया करूंगी। यहां रांची से आपके जमाई जी मुझे ट्रेन में बिठा देंगे और वहांं दिल्ली में रेलवे स्टेशन से मैं अकेले भी घर जा सकती हूंँ।”
“जब तक मैं जिंदा हूंँ बिटिया तुझे यहांँ आने में कभी कोई दिक्कत नहीं होगी। तेरा पापा है …तूं अकेले इतना लंबा सफर क्यों करेगी। जमाई जी को फुर्सत नहीं है तो कोई बात नहीं तेरा पापा तो रिटायर्ड है। मुझे कौन सा अब दफ्तर की छुट्टी लेनी होती है।”
कुछ साल बाद पिता एक सड़क हादसे में बुरी तरह घायल हो गए, उसके बाद तीन साल बिस्तर पकड़ लिए। तब सुनैना अकेले ही हर साल जाने लगी अपने मायके।
पिता की मौत के बाद धीरे-धीरे मायके में सबका व्यवहार उसके प्रति बदलने लगा। दोनों भाईयों और भाभियों को लगा मांँ पापा की लाडली है तो इसे ही सब मिल जाएगा। मांँ इसे अपने सब गहने दे देंगी और पिता ने भी अपनी संपत्ति की वसीयत में चारों बच्चों का बराबर हिस्सा ना रखकर छोटी के नाम ही ज्यादा रखा था। वैसे भी दोनों भाई अपनी बहनों को कुछ नहीं देना चाहते थे जब उनकी पत्नियां कान भरने लगी कि सेवा हम करें और मेवा इन्हें मिले यह कौन सा न्याय।
सुनैना को तो अपना मायका मोबाइल के चार्जर की तरह लगता था जिस कारण मोबाइल में जान आती है वैसे ही तो उसके प्राण भी अपने मायके में ही बसे हैं।
साल भर पति बच्चों और ससुराल के सब लोगों का ध्यान रखती है तो कुछ दिनों के लिए उसे भी तो आराम चाहिए।
वैसे मायके में भी आराम कहांँ कर पाती थी वो।
वहां भतीजे-भतीजी भाई-भाभी जैसे साल भर उसी का इंतजार करते थे।
सुनैना आएगी तो यह बनाएगी वो बनाएगी, यहां जाएंगे वहां जाएंगे, यह करेंगे वो करेंगे…
एक लंबी लिस्ट सब बनाकर रखते थे उसके लिए जो आते ही उसके हाथ में पकड़ा देते और वो भी किचन की कमान पूरी तरह संभाल लेती।
दोनों भाभियों को आराम मिल जाता।
मांँ की आंँखें तो उसे देखने के लिए ही तरसती रहती। “नैना तुझे यहांँ आकर भी आराम नहीं मिलता। थोड़ी देर बैठ भी जाया कर मेरे पास।”
“हांँ मांँ बस सबके लिए नाश्ता लगा कर आती हूंँ। तब तक आप चाय पीजिए।” चाय का कप मांँ को पकड़ाते हुए सुनैना बोली तो मांँ ने उसे अपने पास बिठा लिया।
“सच ही कहते हैं किसी का चाम प्यारा नहीं उसका काम प्यारा होता है। जब तक तूं सबके मन का काम करती रहेगी तुझे मायके ससुराल हर जगह मान सम्मान मिलता रहेगा। पर जब शरीर कमजोर हो जाएगा बीमार पड़ जाएगा तो वही लोग तुझे बोझ समेंझेगे।”
कहते हुए मांँ की आंँखें झलक आईं थीं।
“मांँ तुम्हें यहांँ कोई दिक्कत तो नहीं होती । भाई-भाभी सब लोग पूरा ध्यान तो रखते हैं ना। मैं और आपके जमाई जी तो चाहते हैं आप हमारे साथ रहो। चलो ना इस बार मेरे साथ।”
“नहीं सोनी, मुझे यहां कोई दिक्कत नहीं है मैं बिल्कुल ठीक हूं। बस तू काम करने के साथ-साथ अपनी सेहत का पूरा ध्यान रखा कर।”
नैना… बुआ…
मम्मा.. मम्मा…
अतीत से आती आवाजें जैसे उसके बहुत पास से आ उसे झकझोर रही थी।
“मम्मा आप यहांँ क्या कर रहे हो इस समय? नीचे सबका आपको ढूंढ रहें हैं।
,,और यह क्या रो रहे हो आप ?”
श्रुति दोनों हाथों में मेंहदी लगाए उसके पास खड़ी थी।
“अरे बिटिया तू ऊपर क्यों आईं? मैं बस सूखे कपड़े उठाकर आ ही रही थी। लगता है रात को जोरों की बारिश होगी।”
“मम्मा किस से झूठ बोल रही हो आप? कपड़े तो हैं हीं नहीं यहां, याद करो आज तो मशीन से निकाले ही नहीं।”
” अरे! हांँ मैं तो भूल ही गई थी। आज तो मेहमानों के बीच वाशिंग मशीन चलाने का समय ही नहीं मिला।”
“आप मामा मामी और मौसी को याद कर रही हो ना। क्यों झूठी उम्मीद लगाए बैठी हो नहीं आएंगे वो लोग।”
“ऐसा नहीं बोलते बेटा, वो आएंगे तेरी शादी में मेरा मन कहता है।”
“फिर तो हो गई आपकी बेटी की शादी। बीस साल से तो एक बार भी खोज खबर नहीं ली है उन्होंने। मैंने तो उन्हें देखा भी नहीं है और ना ही उनकी कोई फोटो ही है आपके पास है।”
“अच्छा छोड़ चल दिखा मेरी गुड़िया के हाथों की मेंहदी।”
“यह लो देखो और बताओ कैसी लग रही है।”
“बहुत ही सुंदर डिजाइन बनाया है पार्लर वाली ने। वैसे तेरी मौसी भी …”
“हांँ पता है वो बहुत बड़ी मेकअप आर्टिस्ट हैं…”
“तुझे कैसे पता? मैंने तो कभी नहीं बताया।”
“वो तो मैंने बस तुक्का लगाया था। “
“काश! वो तुझे दुल्हन वाला मेकअप करती।”
श्रुति ने माँ से कह तो दिया कि वो झूठी उम्मीद लगा रहीं हैं पर उसने अपनी माँ की आँखों में अपने भाई बहन से मिलने की जो तड़प देखी वो उसे बेचैन कर गई।
उसने फेसबुक पर अपने दोस्तों की मदद से अपनी मौसी और मामा के बारे में काफी जानकारी इक्कट्ठी की।
मेंहदी की रस्म के बाद हल्दी और फिर अगले दिन शादी।
रात भर श्रुति जगी रही ।अपनी मांँ की आंखों में तैरती उस उम्मीद ने उसे जगाए रखा जो अपने भाई बहन से मिलने के लिए थी।
उसकी कुछ सहेलियां दिल्ली में रहती थी जिनकी मदद से उसने अपनी मौसी सुप्रिया का कॉन्टैक्ट नंबर लिया फिर सुबह पांँच बजे फोन किया और अपना परिचय देते हुए अपनी मांँ के बारे में बताया।
उधर सुप्रिया भी अपनी बहन से मिलने के लिए बेचैन थी।
” मेरी नैना की बेटी हो तुम… ढ़ेर सारा आशीर्वाद…
कैसी है मेरी नैना? ठीक तो है मेरी छुटकी…
अब तो बहुत बड़ी हो गई होगी…”
“बड़ी नहीं मौसी समय से पहले बूढ़ी हो रही है आपकी बहन। आपकी लेटेस्ट फोटो देखी अभी आपकी फेसबुक आईडी पर आप तो मम्मा की छोटी बहन दिखती हो।”
” वो तो मुझसे दस साल छोटी है। लेकिन ठीक कह रही हो… घर परिवार की जिम्मेदारियों में उसे अपने लिए समय कभी मिला ही नहीं।”
“मौसी आप दोनों मामाजी से बात करो कि वो मेरी शादी वाले दिन आए। मांँ बता रहीं थीं कि मामा और मौसी का शादी में होना बहुत जरूरी है।”
“हांँ मामा ही शगुन के गहने पहनाता है। मांँ ने तेरी शादी के लिए जो गहने रखें थे वो आज भी मैंने बैंक लॉकर में संभाल कर रखे हैं। उन्हें कई बार बेचना चाहता था वो पर मांँ ने मुझे कसम दी थी कि छोटी की शादी में उसे नहीं दे पाई थी पर उसकी बिटिया की शादी में यह गहने जरूर देना।
तेरी मां ने उस दिन के हंगामे के बाद हमसे रिश्ता ही तोड़ लिया। शायद वो सारी बातें जो दोनों भाईयों और भाईयों ने की थी वो सब तेरे पिता और दादी को पता चल गया। झूठा आरोप लगाया था हम दोनों बहनों पर कि हम मांँ को बहला फुसलाकर उनके गहने और पैसे हड़पने ही आते हैं। तेरे मौसा जी ने तो मेरा वहांँ जाना और मायके में किसी से भी सम्पर्क रखने पर रोक लगा दी थी।”
“बीती बातें भूल जाईए मौसी। एक नई शुरुआत करते हैं। आप और मामाजी आएंगे तो मम्मा को बहुत अच्छा लगेगा।”
सुनैना जो श्रुति के कमरे के साथ वाले कमरे में रिश्तेदारों के साथ ही लेटी थी। नींद उसकी भी आँखों से कोसों दूर थी । श्रुति धीरे-धीरे ही बात कर रही थी फोन पर जो थोड़ा बहुत उसे सुनाई दे रहा था। वो पहले तो समझ नहीं पाई कि श्रुति उसकी बहन सुप्रिया से बात कर रही है क्योंकि उसका तो कोई नम्बर ही नहीं था इतने सालों से सुनैना के पास। एक दूसरे से सम्पर्क के सारे रास्ते भी बंद हो गए थे।
अंतिम शब्द उसके कान में गुंजने लगे.. मम्मा को बहुत अच्छा लगेगा। किसको अपनी शादी में बुला रही है श्रुति यह वो नहीं समझ पाई थी।
शादी की तैयारी जोरों से चल रही थी, हल्दी वाले दिन भी सुनैना की नजरें दरवाजे पर रह रहकर जा रही थी। मुझे सबसे ज्यादा खुशी कब होगी यह श्रुति जानती है तो कहीं सच में ही तो वो सुप्रिया दीदी से तो बात नहीं कर रही थी। एक उम्मीद की किरण मन में रौशन हो गई थी।
अगले दिन जब श्रुति को सजाने के लिए पार्लर वाली आई थी।
“भाभी माँ, क्या आप यह चाय उन्हें दे आएंगी।”
सुनैना की ननद ने कहा तो उसके हाथ से चाय की ट्रे लेकर सुनैना श्रुति के कमरे में चली गई जहांँ श्रुति के उम्र की ही दो लड़कियों के बीच एक महिला बैठी थी। उसकी पीठ दरवाजे की तरफ थी और वो श्रुति से हंँस हंँसकर खूब बतिया रही थी। यह हंँसी यह आवाज…
सालों बाद भी वो अपनी दीदी की आवाज करोड़ों आवाजों में से पहचान सकती है उसे एक पल के लिए लगा फिर लगा शायद आज उसे यह आवाज पहचानने में धोखा हुआ है।
सुनैना चाय की ट्रे लिए आगे बढ़ रही थी, तभी श्रुति ने उसे देख लिया और उसके हाथ से ट्रेन लेकर टेबल पर रख दिया।
“मम्मा आँखे बंद कीजिए, आपके लिए सरप्राइज है।”
” अरे! श्रुति क्या कर रही है। अभी इतना काम है और तुझको खेल सूझ रहा है।”
” प्लीज़ मम्मा एक बार आँखे बंद कीजिए बस मैं तीन तक गिनूंगी तो खोल लीजिएगा।”
“अच्छा बाबा जो हुकुम मेरी आका…”
” एक…दो… तीन…”
जैसे ही सुनैना ने आंँखें खोली और सामने अपनी बहन सुप्रिया को देखा… उसे पलभर के लिए अपनी आंँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ।
सुप्रिया ने उसे गले लगा लिया।
“छुटकी दीदी को माफ नहीं करेगी क्या?”
दोनों बहनें गले लग रो रहीं थी कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई …
“हमारे भी गले लग जा बहन।”
सुनैना के दोनों भाई बोले।
सुबह बेटी के फोन पर किसी से बात करते हुए जो उम्मीद जगी थी वो पूरी हो गई।
सुप्रिया ने श्रुति को अपने हाथों से सजाया और अपनी मांँ के गहने उसे पहनाए।
“माँ और मौसी मामा के साथ साथ नानी का आशीर्वाद है तुम्हारे साथ।
एक चीज और है बिटिया तेरे लिए यह हमारे पापा का चाँदी का पैन जो उन्होंने मुझे दिया था।”
बड़े मामाजी ने श्रुति के हाथ में पकड़ा दिया।
श्रुति की विदाई के बाद सुनैना के भाई बहन हफ्ते भर उसके साथ रहे फिर हमेशा फोन पर बात करते रहने और समय मिलते ही दुबारा आने का वादा करके चले गए।
Read Story in Hinglish 😀
Chhat par tehalte hue Sunaina ki aankhon se aansu beh rahe the, jinhein chhupane ke liye hi woh apni beti Shruti ki shaadi ki rasmon mein jama uske sasural ke rishtedaron ke beech se kisi zaruri kaam ka bahaana banakar nikal aayi thi.
Aaj usse apni maa ki bahut yaad aa rahi thi. Jab Shruti ke pehle birthday par woh maa se milne gayi thi, toh maa ne apne gehno ka dibba use pakdaate hue kaha tha, "Yeh meri natni ki shaadi ke liye sambhal kar rakhna."
Sunaina ki chhoti bhabhi ne dekh liya toh badi bhabhi ko bata diya aur ghar mein hungaama shuru ho gaya. Tab se rishton mein jo khataas shuru hui, woh kabhi khatam hi nahi hui. Aaj jab sab rishtedar aur mehmaan aaye the, uske maayke se koi nahi aaya tha.
Bees saal ho gaye the usse wahan gaye aur apne bhai-behen se mile. Shaam ke dhundhalke ke saath aakash mein pankhi apne ghar ki taraf pankti mein udd rahe the, jinhein apne aansuon ke beech bhi Sunaina niharte hue soch rahi thi, "Kitni ekta hai in panchiyon mein bhi, aur ek hum insaan... apne swarth ke kaaran khoon ke rishte bhi bhool jaate hain."
Woh apne ateet ke din yaad karne lagi... Jab tak uske papa zinda the, woh har garmi ki chhutti mein aate aur usse saath le jaate. Mahine bhar maayke mein rehkar Sunaina ko chhodne bhi aate.
Woh hamesha kehti, "Papa, aap bekaar pareshaan hote ho. Main aa jaungi, yahan se Ranchi mein jamai ji mujhe train mein bitha denge aur wahan Delhi railway station se main ghar akeli chali jaungi."
Papa hamesha haste hue kehte, "Jab tak main zinda hoon, tujhe maayke aane mein kabhi dikhat nahi hogi. Tera papa hai na... tu akeli safar kyun karegi?"
Kuch saal baad ek sadak haadse mein papa buri tarah ghayal ho gaye. Teen saal tak bistar pakad liya. Tab Sunaina akeli hi maayke jaati thi. Papa ki maut ke baad dheere-dheere maayke mein uske prati sabka vyavhaar badalne laga. Bhai-bhabhiyon ko lagta tha ki maa-papa ki laadli hai, toh sab kuch isi ko mil jayega.
Bachpan ka maayka, jo uske liye ek mobile charger ki tarah tha – jisse uski zindagi chalti thi – ab use paraya lagne laga tha.
Shruti ki shaadi ka din aa gaya tha. Sunaina mehmaanon mein khud ko busy dikhane ki koshish kar rahi thi, par uska mann bar-bar darwaze ki taraf ja raha tha. Kya sach mein mere bhai-behen aayenge?
Raat bhar Shruti jagi rahi. Apni maa ki tarsaayi nazaron aur unsuni baaton ka hal usne ek faisla lekar nikala. Facebook ke zariye apni maa ki behen, Supriya mausi ka contact number dhundha.
"Mausi, main Shruti bol rahi hoon. Aapki chhoti behen Sunaina ki beti."
Supriya ke aansu phone par bahne lage, "Meri chutki kaisi hai? Main usse bahut miss karti hoon!"
Shruti ne apni mausi aur mamaji ko shaadi mein aane ke liye samjhaya. Supriya bhi apni chhoti behen se milne ke liye taras rahi thi.
Haldi aur mehndi ke baad Shruti ko dulhan ke roop mein sajana tha. Shruti ke kamre mein ek mahila aur do ladkiyan usse mehndi lagate hue baatein kar rahi thi. Sunaina andar gayi aur Shruti ne kaha, "Mamma, aap aankhein band karo. Ek surprise hai!"
Jab Sunaina ne aankhein kholi, samne Supriya di thi. "Chutki, mujhe maaf karogi?"
Dono behne gale lagkar rone lagi. Tabhi dono bhai bhi andar aaye aur kaha, "Hum bhi aa gaye, behen. Humein gale nahi lagaogi?"
Sunaina ki zindagi ka sabse bada sapna pura ho gaya. Supriya ne Shruti ko apne haathon se sajaya aur maa ke gehne pehnaye.
Shaadi ke baad, Shruti ki vidai hui aur Sunaina ke bhai-behen uske saath ek hafte tak rahe. Wo ab bar-bar milne ka wada karke gaye. Sunaina ke dil mein ek nayi roshni thi – rishton ki umeed phir jee uthi thi.