कहानी: वापसी एक प्यार की
एकाकी जीवन जी रही वंदना को किसी की जरूरत थी, जो उसे प्रेम करे, उसे समझे. देव के रूप में उसे ऐसा साथी भी मिला पर फिर ऐसा क्या हुआ जो वंदना फिर से एकाकी जीवन जीने को मजबूर हो गई...
वंदना पीजी से निकल कर बाहर रोड पर आ गई. मोबाइल में टाइम देखा. 8 बज रहे थे. मैट्रो स्टेशन पहुंच कर देव को देख कर चौंकी, ‘‘तुम? इतनी जल्दी आ गए?’’
जवाब में देव ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज तुम भी तो समय से पहले आ गई हो.’’
‘‘हूं,’’ वंदना के मुंह से निकला.
‘‘कल संडे था. कहां रहीं?’’ देव ने पूछा.
‘‘कहीं नहीं.’’
‘‘आज कहीं जाना है शाम को?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘तो चले कहीं?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘देव, बताना जरूरी तो नहीं है,’’ वंदना उस के किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहती थी. उसे अचानक पता नहीं क्या हो गया. थोड़ी देर पहले बहुत खुश थी. देव के बारे में सच जान कर कहीं उदासी फैल गई थी.
देव भी हैरान था कि आखिर अचानक क्या हो गया? चेहरा मुरझाया सा क्यों लग रहा है?
तभी ट्रेन आ गई. भीड़ अंदर समा गई. 1 मिनट में ट्रेन चल भी दी. अंदर घुसने पर गरमी से राहत मिली. वंदना की चोर नजरें देव को तलाश रही थीं… बैठा होगा किसी कोने में. वैसे भी कल की देवकी से हुई मुलाकात का उस पर मिश्रित असर हुआ था… सिर झटक कर सामने बैठी नवविवाहिता को देखने लगी. लड़की गहरे लाल रंग के पंजाबी सूट में थी. उस ने खूब गहरा मेकअप कर रखा था. मांग सिंदूर से लाल थी. उम्र 23-24 के आसपास थी. कैसे इस उम्र में लड़कियों की शादी हो जाती है… जब वह इस उम्र में थी तो तब उस के जीवन में अमित आया था. तब वह मुंबई में थी.
अतीत खिसक कर आगे आ गया था…
अमित का छरहरा बदन, बड़ीबड़ी आंखें, घुंघराले बाल, उस पर दूधिया रंग, लगता था कुदरत ने फुरसत में बनाया है. उम्र कोई 26-27 साल. वह एम कौम कर रहा था.
उस का सुदर्शन चेहरा आज तक यादों में बसा है. यों ही मैट्रो में मुलाकात हो गई थी. उस का हैलो कहना मन के अंदर ऐसा उतरा कि मैट्रो में लोग पहचान गए थे कि वे दोनों कहां खड़े हो कर बतियाते हैं. मैं और अमित रोज मिलते. खूबसूरत बिंबों का जिक्र होता… खुशी के बीच एक ही अफसोस होता कि यह संडे क्यों आता है? वे खिलखिलाते चेहरे, लोगों का हमें प्यार में लिपटे देखते हुए मुसकराना… कितना मादक था सबकुछ….
दोनों को लगता आसमान के परिंदे भी ढली शाम में हमें प्यार करते देख खुश हो आवाज कर रहे हैं. दोनों को लगता वे भी परिंदों के साथ अनंत आकाश की अंतहीन यात्रा में शामिल हैं…वंदना को अच्छी तरह याद है काम से छूटते ही भागती थी, लोकल पकड़ने को. प्लेटफौर्म के बाहर अमित उस का इंतजार कर रहा होता था. लगता बरसों से वह ऐसे ही यहां खड़ा है… सिर्फ उस के लिए. मुसकराते हुए कहता कि चलो बटाटा वड़ा खाते हैं… ऐनर्जी चाहिए हम दोनों को.
वह मुसकराहट के साथ उस का हाथ पकड़ती और फिर और्डर दे देती कि भैया 2 बटाटा वड़ा, तीखी मिर्ची के साथ. तब वंदना एक शोरूम में सेल्स गर्ल थी.
एक दिन वह नहीं आया. आंखें बारबार प्लेटफौर्म पर ढूंढ़ती. क्या करे, किस से पूछे. फोन किया. कोई जवाब नहीं. स्विच औफ. दिल धकधक करने लगा जैसे रेल का इंजन चल रहा हो.
फिर दूसरा दिन, तीसरा दिन… और कितने ही दिन. बेमन से काउंटर पर खड़ीखड़ी
ड्रैसेज खोलती, लपेटती रहती. बारबार मिस्ड कौल देखने को मोबाइल चैक करती… सन्नाटा सिर्फ सन्नाटा था हर जगह.
3 महीने निकल गए… यों ही अकेली सड़क पर चलती जाती जैसे रेगिस्तान में नदी ढूंढ़ने चली जा रही हो… अंतहीन यात्रा पर…
कभी सोचती कि पता तो जरूर लेना था… कैसी बेवकूफ है वह. जिसे इस कदर चाहती थी उस का पताठिकाना तो पूछना चाहिए था.
वंदना की दशा देख एक दिन शिल्पा ने कहा, ‘‘यह मुंबइया प्यार और वह भी इस उम्र का… यह तो ऐसा ही होता है.’’
थोड़ा होश आने पर लगा कि शिल्पा ठीक कहती है… उस की खुशियों की चाबी गुम हो गई है… कब, कहां, मिलेगी, कौन जाने.
घर में बीमार पिता हैं, मां हैं, 2 छोटी बहनें और 1 भाई है. वंदना घर में सब से बड़ी है. घर का खर्च वही चलाती है. आर्थिक मजबूरी के कारण इंटर करने के बाद नौकरी करनी पड़ी. बहनों ने भी पढ़ाई अधूरी छोड़ नौकरी कर ली थी.
वंदना 24 पार कर चुकी थी. सोचती थी मांपिता उस की शादी की बात चलाएंगे, परंतु घर में इस बात को ले कर कभी कोई हलचल ही नहीं हुई.
किसी का कोई पैगाम नहीं. रिश्ते के नाम पर सन्नाटा छाया था.
सोचती कभी किसी रिश्तेनातेदार ने फोन भी तो नहीं किया. वंदना अब भी अमित के इंतजार में कई बार उस रूट पर चली जाती, 3 साल पहले की तरह…
ट्रेन में बैठती तो आंखें अमित को ही ढूंढ़तीं… वह पहला प्यार था उस का.
फिर एक दिन उस की मुलाकात अनिकेत से हुई. पास की चाल में रहता था. वह ज्यादा सुंदर न था, ठीकठीक था. किसी औफिस में क्लर्क था. दोनों का एक ही रास्ता था. प्यार का भी एक ही रास्ता होता है. नजदीकियां बढ़ने लगीं. दोनों अकसर बाजार में साथसाथ होते. एक रोज छोटी बहन मीना ने देख लिया और फिर अम्मां को बता दिया.
अम्मां झोली पसार कर वंदना के आगे खड़ी हो गईं, ‘‘रहम कर बेटा… पहले इन छोटी बहनों को बेड़ा पार कर दे. फिर प्यार की पींगें बढ़ाने की सोचना… मैं कुछ नहीं कहूंगी. पर अभी नहीं… तू चली गई तो कौन हमारा खर्च उठाएगा?’’
प्यार के सभी बिंब भरभरा कर ढह गए. समझ गई रेगिस्तान में फूलों की बगिया लगाना मना है या फिर वह खुद ही सूखा ठूंठ है, जिस पर प्यार के पंछी को बैठने की मनाही है. उसे लगता प्यार के मेले उस के लिए नहीं लगे.
वंदना की दशा उस बच्चे जैसी हो गई जो मेला खत्म होने के बाद खाली डब्बों में कुछ ढूंढ़ता है और फिर कुछ न मिलने पर डब्बे पर गुस्सा निकालता है. लेकिन वंदना नहीं जानती कि वह रूठे तो किस से, गुस्सा निकाले तो किस पर. इन रिश्तों पर गुस्सा करे, जिन्हें आंख बंद कर के ढोए जा रही है… और रिश्तों के भविष्य की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर है… नहीं, अपने बारे में उसे खुद ही सोचना होगा…
बहुत सोचने के बाद समझ में आया उसे कि यह जगह ही छोड़ देनी चाहिए यानी दूसरी जगह नौकरी ढूंढ़नी चाहिए पर थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा.
बीए करने के बाद सरकारी विभाग में नौकरी की अर्जी दी. 2 साल में नंबर आया और वह भी दिल्ली में. खुश थी वह. बहुत खुश थी कि इस घुटन से छुटकारा मिलेगा… अब उस का अपना आसमान होगा… पंख अपने हैं तो उड़ान भी मनमाफिक होगी. इस मन पर तो अपना अधिकार है. अब वह एकदम आजाद है. कहीं, किसी की रोकटोक नहीं.
दिल्ली के औफिस में उसी के शहर की एक लड़की शिल्पा से जल्दी दोस्ती हो गई. शिल्पा ने अपने ही पीजी में उसे जगह भी दिला दी. जल्द ही उस ने नए परिवेश को अपना लिया और नए परिवेश ने भी उसे अपनाने में देर न की.
इसी बीच मैट्रो ट्रेन में देव से परिचय हुआ था. वंदना देव से मिल कर खुश थी. सूखी धरती पर प्यार की बूंदें पड़ती रहीं… प्यार की इस बारिश ने मन को इतना भिगोया कि वहां प्यार की नदी बहने लगी. देव के चेहरे पर मासूम सी गंभीरता थी. वह कम बोलता था. सब से बड़ी बात थी वह स्त्रीपुरुष के बीच खींची गई लक्ष्मण रेखा को बखूबी पहचानता था.
दोनों खूब मिले, हर दिन मिले और फिर दोस्ती लंबी होती गई. पिछले खोए प्यार की कहानी भी देव से शेयर की थी वंदना ने पर संभल कर…
इतने लंबे समय ने वंदना को खूब मांजा है और पीड़ा ने वयस्क बना दिया है. अब वह पहले वाली वंदना नहीं रही. आगे कुछ भी कदम उठाने से पहले खूब ठोकबजा कर देख लेगी…
देव के घर का पता उस की सहेली शिल्पा ने ला कर दिया था. शिल्पा ने ही बताया, ‘‘देव तलाकशुदा है.
‘‘मुझे पता है. शिल्पा मुझे यह भी पता है कि देव का परिवार मध्यवर्गीय है, पर हमारा परिवार भी कौन सा अमीर परिवारों में आता है… बस देव की पत्नी से एक बार मिलना चाहती हूं. मैं उसी के मुंह से सारी कहानी साफसाफ और सच क्या है, सुनना चाहती हूं. जानती हूं, सब मुश्किल है पर शिल्पा यह जरूरी भी है.’’
शिल्पा को वंदना की बात ठीक लगी.
देव की पूर्व पत्नी से मिल कर ही इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहिए… खाली देव का यह कहना कि मैं तलाकशुदा हूं, काफी नहीं है.
जल्द ही देव की पूर्व पत्नी का नाम, पता, कहां काम करती है और फोन नंबर वगैरह सबकुछ शिल्पा ने पता कर लिया. साथ ही देव के बारे में भी सारी डिटेल पता कर ली.
देव डीडीए फ्लैट कालकाजी में रहता है. शिल्पा ने वंदना को समझाया था, ‘‘देख, मैं यहां 10 सालों से हूं. दिल्ली और मुंबई के कल्चर में बहुत अंतर है. सब ठीकठाक लगे तो शादी के लिए हां कहने से पहले एक बार देव के घर वालों से जरूर मिल लेना.’’
‘‘हां, यह सही है.’’
देव की पत्नी का नाम देवकी है. एक रोज वंदना ने उस का नंबर मिलाया, ‘‘आप देवकी बोल रही हैं?’’
‘‘हां,’’ उधर से जवाब आया.
‘‘क्या मैं आप से मिल सकती हूं?’’
‘‘जरूर पर आप का नाम?’’
‘‘मैं वंदना हूं.’’
‘‘कोई खास काम है क्या?’’ देवीकी ने पूछा.
‘‘वह तो मिल कर ही बताऊंगी,’’ वंदना ने धीरे से कहा.
‘‘ठीक है मिलते हैं.’’
‘‘कहां?’’
‘‘मेरा औफिस नेहरू प्लेस में है. वहीं मैक्डोनल में…’’
‘‘ठीक है आज ही शाम 6 बजे आती हूं.’’
‘‘ठीक है.’’
बिना किसी लागलपेट के वंदना असली मुद्दे पर आ गई थी, ‘‘मैं आप से देव के बारे में कुछ जानना चाहती हूं.’’
‘‘कौन देव?’’
‘‘आप के पूर्व पति देव.’’
‘‘ओह,’’ देवकी शायद इस प्रश्न के लिए तैयार न थी. फिर भी कुछ सोचने लगी कि ऐसे प्रश्नों का सामना तो उसे करना ही था एक न एक दिन… जब तलाक लिया है तो उस से जुड़े प्रश्नों से डरना कैसा…? फिर बोली, ‘‘आप बोलिए, क्या जानना चाहती हैं…?’’
‘‘आप गुस्सा तो नहीं होंगी?’’ वंदना ने बड़ी हिम्मत कर के कहा. वह उस के मूड को समझना चाहती थी.
‘‘नहीं कतई नहीं… पूछिए, क्या जानना चाहती हैं? वैसे देव से शादी करना चाहती हैं तो उस के तलाक वगैरह के बारे में जानना तो जरूरी है.’’
वंदना अवाक सी उस के चेहरे को ताक रही थी. वंदना ने देखा वह सामान्य होने का प्रयास कर रही है.
उस ने कुछ रुक कर सामने रखे गिलास से पानी पीया. फिर बोली, ‘‘कहूं क्या…? सच कहूं तो प्रेमी का पति बन जाना एक हादसा है और यह हादसा बहुतों के साथ होता है… यह हादसा शायद तुम्हारे जीवन में भी होने वाला है. मेरे साथ भी ऐसा खूबसूरत हादसा हो चुका है. वैसे शादी से पहले मैं इसे हादसा नहीं मानती थी, बल्कि 2 समझदार लोगों की प्यारी सी सोच का प्यारा सा परिणाम मानती थी. पर उसे हादसा बनाना हमारे हाथ में है, इसलिए यह दुखद हादसा बन गया… कहानी कहां से शुरू करूं समझ नहीं आ रहा… ठीक है, बताती हूं…
‘‘हमारा रिश्ता टूटने के कई कारण थे,’’ देवकी ने बिना किसी भूमिका के असली बात कहने की सोची.
‘‘हमारे बीच हुए झगड़े में कौन कहां गलत था आज भी समझ से परे है. पर मैं कहांकहां गलत थी ये सब मुझे अब समझ में आया है… मैं कहूं कि झगड़े का कारण केवल देव थे तो यह सही नहीं है.’’
वंदना चुपचाप देवकी का चेहरा देख रही थी कि कैसी औरत है. सब से पहले अपनी ही कमियां गिना रही है… ऐसा तो कोई नहीं करता और वह भी ऐसे रिश्ते में… यानी आगे यह जो बताएगी वह सब सच ही होगा… कुछ भी थोपा हुआ नहीं होगा.
यहां वंदना यही सच सुनने तो आई है… शिल्पा ने यही तो उसे समझाया था,‘
‘वंदना, देवकी को पूरा मौका देना कि वह बोल सके… सारी बातें उसी के मुंह से कहलवाने का प्रयत्न करना… समझो तुम सिर्फ एक श्रोता हो. सच जान कर ही तुम सही निर्णय ले सकोगी.’’
‘‘…सुना है देव आजकल ज्यादा पीने लगा है. यहां तक कि अपना आपा तक खो देता है… तुम तो सब जानती होंगी?’’
यानी देवकी देव के बारे में सब जानती है यानी देव के संपर्क में है. चुप थी वंदना. इस तरह के प्रश्न की आशा भी न थी.
देवकी ने वंदना के आगे अतीत खोल दिया…
‘‘सच कहूं तो देव पहले ऐसा न था. हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे. मैं आज भी उस का प्यार और दोस्ती नहीं भूलती हूं.
‘‘हम दोनों के परिवार बिलकुल साधारण थे. मेरे परिवार में सिर्फ 4 लोग थे. मैं, मेरे मम्मीपापा और छोटा भाई जबकि उस के परिवार में 3 बहनें, देव और उस के मम्मीपापा. तीनों बहनें देव से छोटी हैं. घर में देव ही कमाता है. पापा तो रिटायर हैं और ज्यादातर बीमार रहते हैं.’’
‘‘देव की तनख्वाह भी कुछ खास नहीं थी. जब देव से मेरी दोस्ती हुई और 2 साल तक रही तो मैं चाहती थी देव शादी के लिए हां कर दे. पर देव की मां का कहना था कि पहले तेरी बहनों की शादी हो जाए. फिर तुम शादी करना. इस के विपरीत मैं देव पर दबाव डाल रही थी कि तुम से विवाह नहीं किया तो पापा मेरा विवाह कहीं और कर देंगे… देव ने मेरी जिद के आगे घुटने टेक दिए और हम ने कोर्ट में शादी कर ली.
‘‘देव के मम्मीपापा को बहुत बुरा लगा. जहां तक परिवार का संबंध था तो मैं ने सोचा था मैं उन्हें संभाल लूंगी. किंतु मेरी सोच और प्रयास सूखे पत्तों की तरह उड़ गए. धीरेधीरे रिश्तों के बरतन बजने लगे. मैं परिवार से कटती गई और परिवारजन मुझ से दूर होते गए.’’
देवकी को वंदना बड़े ध्यान से सुन रही थी, ‘‘लेकिन आप की सोच तो झूठी बन गई… आप ने तो कहा था आप सबकुछ संभाल लेंगी?’’
‘‘वंदना ऐसा ही होता है. हम जिस रास्ते को दूर से देखते हैं उस की दुरूहता का एहसास तब होता है जब हम उस पर चलते हैं… किसी परिवार को अपनाने के लिए पति से जुड़े लोगों के प्रति त्याग और समर्पण बेहद जरूरी है. इस के लिए सब्र और समझदारी चाहिए.’’
‘‘एक बात है. आप तो उस परिवार को बहुत समय से जानती थीं. उन के साथ पहले से खूब घुलमिल गई थीं. फिर यह चूक कैसे हो गई?’’ वंदना न चाहते हुए भी प्रश्न कर बैठी.
चुप थी देवकी… शायद कुछ सोच रही थी. फिर बोली, ‘‘शायद मैं स्वार्थी हो गई थी… मैं सिर्फ देव को अपने साथ देखना चाहती थी, जबकि देव अपने साथ पूरे परिवार को ले कर चलना चाहता था, जिस की परिवार को अपेक्षा थी और यह उस परिवार का अधिकार भी था.’’
वंदना ने देखा देवकी का चेहरा बहुत मायूस हो गया था.
‘‘मैं हर वह जतन करती, जिस से देव अपने परिवार से दूर हो सके.’’
वह बोलती जा रही थी और वंदना को दुखभरी कहानी कहीं कचोट रही थी कि क्या पता उसे भी ऐसा कुछ देखना पड़े… परिवार की अपेक्षाएं तो नहीं बदलतीं… नहीं, वह ऐसी स्थिति कभी आने ही नहीं देगी…
‘‘अब तो छोटीछोटी बातों को ले कर हमारे बीच झगड़े होने लगे. मेरी जिद थी या तो हम दोनों अलग हो जाएं या फिर परिवार को छोड़ कर अलग किराए का घर ले कर रहें. पर हुआ वह जो नहीं होना चाहिए था. मेरी स्वार्थी सोच ने हमें कानून की ड्योढ़ी पर पहुंचा दिया.’’
वंदना ने देखा, देवकी की आंखें नम हो गई थीं. वह चुप थी. गला भर आया था… जानती है भविष्य के लिए देखे सुंदर सपने जब कांच की तरह टूटते हैं तो कैसा लगता है…
‘‘क्या तुम देव से प्यार करती हो? उसे अपनाना चाहती हो? सोच लो नया
जीवन, चुनौतियों से भरा है.’’
‘‘जानती हूं. मैं उस से प्यार करती हूं… उसे अपनाना चाहती हूं,’’ वंदना के स्वर में स्वीकारोक्ति थी.
‘‘तो एक बात कहूंगी.’’
‘‘कहो,’’ वंदना ने देवकी की तरफ देखा.
‘‘मेरी मां कहती थीं ससुराल के सभी रिश्ते बाहर से बने रिश्ते होते हैं. इन्हें ओढ़ने के बाद इन्हें अपनाने के लिए न जाने कितने समझौते करने पड़ते हैं. यहां हर सदस्य को जोड़ने के लिए बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, इस बात को गांठ बांध लो,’’ देवीकी ने दृढ़ता से कहा, ‘‘तुम एक समझदार और साहसी स्त्री हो. देव के साथ जीवन शुरू करने का सूत्र तुम्हें दे दिया है. निर्णय तुम्हें ही लेना है. वैसे देव बहुत संजीदा व्यक्ति है…’’
देवकी ने जो कुछ कहा था वह सुझाव के साथ सुलझा हुआ न्याय पक्ष था एक स्त्री का एक स्त्री के लिए.
वंदना जा चुकी थी, किंतु देवकी इस मुलाकात के बाद अपने को अस्थिर महसूस कर रही थी.
देवकी का घर जाने का मन नहीं कर रहा था. वह वहीं काफी देर तक बैठी रही. आज उसे देव बारबार याद आ रहा था. तथी अचानक सामने टेबल पर नजर पड़ी. वंदना अपना मोबाइल भूल गई थी.
जानती थी थोड़ी देर में उस का फोन जरूर आएगा. इसीलिए बैठी रही… कहीं आसपास ही होगी. शायद लेने आ जाए.
वह थोड़ी देर पहले हुई मुलाकात के बारे में सोच रही थी…
देव वंदना से कुछ दिन बाद जुड़ने वाला है. फोन कर के बता तो सकता था. इसी बहाने पूछ लेती कैसे हो? शादी करने जा रहे हो, बधाई हो.
अम्मां (देवकी की मां) को पता लगेगा तो जरूर कहेंगी कि अरे, कहां से मराठी पकड़ लाया है रे… इस से तो हमारी देवकी क्या बुरी थी? बेशक थोड़ी गुस्सैल है तो क्या हुआ? इतने झंझटों में तो मैं भी उबल पड़ती हूं… मैं भी तो तेरे पापा से झगड़ पड़ती हूं. तब तो कोई कुछ नहीं कहता. देखा नहीं घर के कामों में कितनी ऐक्सपर्ट है हमारी देवकी. मीना और लक्ष्मी प्रेमा तो उसे जरूर याद करती होंगी…
भाभी हमेशा हमारा होमवर्क कराती थीं. अम्मां प्यार में कह देती थीं कि अरी लड़कियो अब छोड़ो… सारा दिमाग खा कर दम लेंगी?
परीक्षा के समय भाभी पूरीपूरी रात चाय बना कर देती थीं. खुद भी जागती थीं हमें पढ़ाने के लिए, ये सब जरूर याद करती होंगी. बताओ भला ऐसा कोई करेगा? कहना न भूलती होंगी जो भी हो भाभी जैसा कोई नहीं. हंसतीखिलखिलाती लड़कियों के चेहरे आज भी नहीं भूली है देवकी. आज भी तीनों के लिए कितना प्यार उमड़ता है… यह बात वंदना को बताना बेकार है. वह क्या समझेगी?
इन सब से इतर घर, मायके, पड़ोस के लोगों को जब पता लगा देवकी का तलाक हो गया है, तो कइयों ने कहा 3-3 लड़कियों का बोझ… बाप रे… आसान नहीं है ऐसी ससुराल में निभाना… घबरा गई होगी… तभी तो छोड़ कर आ गई.
कइयों ने तो यह भी कहा था कि आजकल की लड़कियों को तो छोटी फैमिली चाहिए. बहुत कुछ सुना था देवकी ने. तंजों से आजिज आ गई थी वह… समझ नहीं आता था कि क्या करे, कहां जाए.
बस एक मां थीं, जिन के आंसू नहीं रुकते थे, ‘‘बेटी, रिश्ते हमेशा समझौतों की नींव पर टिकते हैं. चाहे आज हो या कल यह बात एकदम अटल है, सत्य है… वापस चली जा.’’
आज भी सब याद आता है तो कई बार मन डूबने लगता है. यही सोच सूत्र तो
वंदना को पकड़ाया है- खुश रहना है, अपने को वहां जमाना है, तो रिश्ते की मजबूती जरूरी है यानी तुम्हें झुकना पडे़गा. मगर यह बात है तो मैं क्यों न झुकी?
आज वंदना को समझा रही हूं तो खुद भी तो झुक सकती थी. सीधी सी बात, छोटी सी बात मुझे क्यों न समझ आई? मैं यहीं चूक गई.
भारी मन से घर आ गई थी, परंतु सोच ने पीछा न छोड़ा. सच यह है कि अब वंदना से मिल कर उसे पछतावा हो रहा था.
कितनी बेवकूफ थी मैं. आज मेरे पास कुछ भी नहीं है… न मन में कोई उत्साह है, न उमंग है, न कोई अपना कहने वाला है. अपना आत्मीय भी कोई नहीं है. उधर कुछ समय बाद वंदना के पास सबकुछ होगा, जो कभी उस का था. देव भी, वह घर भी. शायद लोग इसे ही सौतिया डाह कहते हैं. …तो वह क्या करे? क्या वापस उस घर में जा सकती है? मन ने फौरन कहा कि यह भी कोई पूछने वाली बात है? अरे, एक फोन ही तो करना है देव को.
याद है तलाक का निर्णय सुनने के बाद देव ने उसे रोक कर कहा था कि देवकी तलाक का निर्णय तुम्हारा है, मेरा नहीं. मेरे घर के दरवाजे हमेशा तुम्हारे लिए खुले हैं… जब चाहो, लौट आना…
तो क्या वह देव के पास लौट जाए?
दूसरे दिन सुबह देवकी देर से उठी. सुबह क्या दोपहर हो गई थी. बड़ी देर तक अलसाई सी बिस्तर पर पड़ी सोचती रही… तो देव के साथ मेरी जगह कोई और होगा? नहीं, वह आज भी देव से उतना ही प्यार करती है जितना पहले करती थी, बल्कि उस से भी ज्यादा. देव भी मुझे खासा मिस करता होगा… वंदना से जुड़ना उस के अकेलेपन को खत्म करने का बेमानी सच है, जिसे सिर्फ देव जानता है, यह मुझे पता है.
2 दिन बीत गए वंदना का फोन नहीं आया, तो देवकी ने खुद फोन किया, ‘‘वंदना, तुम्हारा फोन मेरे पास रह गया है. आ कर ले जाओ.’’
‘‘पता है… मेरे पास एक और फोन है, उस से काम चल रहा है. आज शाम को आती हूं… मैं सोच भी रही थी कि आप से मिलूं… ठीक है, शाम को 6 बजे मैक्डोनल मिलते हैं.’’
देवकी ने महसूस किया वंदना के स्वर में अतिरिक्त उल्लास था…
फोन करने के बाद देवकी हिम्मत बटोर रही थी कि कैसे बताऊंगी सब… सुन कर उस का क्या रिएक्शन होगा? छोड़ो सब देखा जाएगा… अभी से क्या सोचना… बस निर्णय पर अटल है वह.
शाम को देवकी मैक्डोनल में बैठी थी. तभी वंदना ने प्रवेश किया. उस का खिला चेहरा बता रहा था कि वह खुश है.
‘‘हैलो वंदना,’’ देवकी मुसकराई
‘‘हैलो… कुछ मंगाएं?’’ शायद इस मुलाकात को वंदना सैलिब्रेट करना चाहती थी, पर देवकी ने न कह दी. फिर पर्स से फोन निकाल कर वंदना की ओर बढ़ाया.
‘‘थैंक्स,’’ कह कर वंदना आगे बोलने ही वाली थी कि देवकी बीच में बोल उठी, ‘‘वंदना फोन देने के बहाने से मैं ने तुम्हें यहां बुलाया है, मगर मुझे कुछ और भी बताना था.’’
‘‘क्या?’’
‘‘मैं ने देव के पास वापस जाने का निश्चय कर लिया है…’’
वंदना जैसे सोते से जागी. देवकी की आंखें उस के चेहरे पर गड़ी थीं. कभीकभी शब्द भी कितने लाचार और निरीह लगते हैं, देवकी सोच रही थी. मगर कहना तो था ही. यों भी किसी को अंधेरे में रखना उस के लिए नामुमकिन है. दुनिया में दुख बांटने वाले बहुत हैं पर आपस में सुख बांटने वाले कम होते हैं. सच स्वीकार कर किसी के आगे कह देना दीर्घकाल में सुखदाई होता है.
मन की बात कहने के बाद वंदना का चेहरा देखा. अथक पीड़ा थी वहां… रुके आंसू
अब गिरे कि अब… देवकी वंदना को देख नहीं पा रही थी. मुंह घुमा लिया.
वंदना… वह तो सन्न थी. लगा जैसे किसी ने उस के हाथों से अमृत कलश छीन लिया. एक बार? दो बार? यह तो तीसरी बार भी… और कितनी बार… इस बार तो उस ने पूरी सावधानी बरती थी. फिर भी…
हाथ में फोन पकड़े मैक्डोनल से बाहर आ गई. आंखें आसमान की तरफ उठी थीं. वहां तो ढेरों बादल थे. शायद आंधी आने वाली थी. पूरे आसमान में सिर्फ एक ही परीक्षा वह भी तेज हवा के झोंकों से अपनेआप को बचाने का असफल प्रयास कर रहा था… लगा जैसे खुद वंदना है… विवश हो छटपटा रही थी.
एक हफ्ते बाद देवकी को एक ईमेल मिला-
‘देवकी, वापसी मुबारक. तुम ने सही निर्णय लिया. तुम से मिलने के बाद मैं बहुत संवेदनशील और भावुक हो गई थी, लेकिन जल्द ही मुझे विश्वास हो गया कि देव और तुम एकदूसरे से बहुत मुहब्बत करते हैं, जबकि मेरा प्यार उस के पासंग में भी नहीं था.
‘सच कहूं, देव ने मुझे कभी प्यार किया ही नहीं, वह मुझ से हमदर्दी रखता था, जिसे मैं ने अब महसूस किया है. सच में वह तुम्हें छोड़ कर किसी से भी प्यार नहीं कर पाएगा.
‘मैं खुश हूं कि तुम दोनों को अपना प्यार वापस मिल गया… मैं तुम दोनों को इस जीवन में कभी खोना नहीं चाहती… तुम ने मुझे भविष्य के लिए जो टिप्स दिए हैं वैसे तो कभी मेरी मां ने भी नहीं दिए. उत्तर जरूर देना.-वंदना.’
पढ़ कर देवकी मुसकरा दी और फिर उसी वक्त उत्तर दे दिया:
‘वंदना,
‘घर वापसी का क्रैडिट तुम्हें देती हूं. इस वक्त मैं देव के घर पर हूं. देव मेरे हाथ की बनी चाय पी रहा है.
‘कबूल… कबूल. दोस्ती हजार बार कबूल हम जल्दी मिलेंगे.
‘तुम्हारे दोस्त
‘देवकी व देव.’