कहानी: मैं भी कमाऊंगी
दूसरी महिलाओं को काम करते देख मुझे भी लगा कि कुछ करना चाहिए. इस के लिए सालों से दबाए शौक को ही हथियार बनाने की सोची. मगर यह क्या, मेरे इस कदम से पति को जलन होने लगी और फिर वही हुआ जिस की उम्मीद नहीं थी...
शादी से पहले हमारी मैडम एक दफ्तर में औफिस अस्सिटैंट थीं पर शहर बदले जाने के कारण उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी. फिर पहली बेबी 1 साल में ही हो गया. अब वह 4 साल की है, थोड़ा काम खुद कर लेती हैं, इसलिए मैडम के पास काम कम और समय ज्यादा है. अत: एक दिन बोलीं, ‘‘सुनो शैलेष.’’
‘‘क्या है माधवी?’’
‘‘मैं आजकल घर में बहुत उकता जाती हूं. यहां मेरे पास काम ही कितना है. बिना काम के खाली बैठे रहना तो बेवकूफी है. मैं चाहती हूं कि मैं कुछ पैसे कमाऊं. हमारे घर की आर्थिक स्थिति भी तो अच्छी नहीं है,’’ माधवी बोली.
‘‘क्यों, क्या हुआ हमारी आर्थिक स्थिति को? सब ठीक तो है. मैं जितने पैसे कमा रहा
हूं उन्हीं में हम लोग सुखचैन से रह रहे हैं और क्या चाहिए.’’
‘‘नहीं, मैं चाहती हूं कि मेरा भी योगदान हो. जब मैं भी कमा सकती हूं तो क्यों न कमाया जाए. डबल इनकम का मतलब है डबल बचत.’’
‘‘वह तो ठीक है, लेकिन घर को चलाने में तुम्हारा बड़ा योगदान है. मेरे अकेले के
बस की बात नहीं कि नौकरी भी करूं, बच्चों को भी देखूं और घर भी संभालूं. सुचारु रूप से घर चलाती रहो, यही बहुत है.’’
‘‘नहीं, मैं नौकरी करना चाहती हूं.’’
‘‘घर कौन देखेगा और फिर इस शहर में तुम्हें नौकरी कौन देगा?’’
‘‘इसी के पीछे तो इतने दिनों से मैं तुम से बोलने में झिझक रही थी. तुम्हीं कोई उपाय बताओ न?’’
‘‘मैं क्या बताऊं, यह फैसला तो तुम्हें लेना पड़ेगा.’’
‘‘क्यों न एक आया रख लें, फिर मैं किसी मौल में सेल्सगर्ल का काम तो कर सकूंगी.’’
‘‘कोई आया मां की तरह तो बच्चों को नहीं देख सकती और फिर जितना तुम कमाओगी वह आया ले जाएगी और जो परेशानी होगी वह अलग से. सेल्सगर्ल्स को तो 12-12 घंटे खड़े रहना पड़ता है. अब तुम 35 साल की होने वाली हो, 20-21 साल की लड़कियों के सामने क्या टिक पाओगी?’’ शैलेष ने कहा.
‘‘तो मैं घर में रह कर भी कमा सकती हूं.’’
‘‘तुम घर भी चलाओ और कमाई भी करो, इस में मुझे क्या आपत्ति हो सकती है. मुझे तो खुशी होगी, लेकिन करोगी क्या?’’
‘‘सोच कर बताऊंगी,’’ कह माधवी चुप हो गई.
‘‘मैं ने सोच लिया है कि मैं कंटैंट राइटर बनूंगी,’’ 8-10 दिन बाद माधवी शैलेष से बोली.
‘‘वाह, क्या बात है. राइटर बन कर पैसे तो कमाओगी ही ख्याति अलग से होगी. क्या लिखोगी?’’
‘‘औनलाइन बहुत सी कंपनियां कटैंट राइटर मांगती हैं. मैं उन्हें अपना बायोडाटा भेज देती हूं.’’
2 दिन बाद माधवी फिर बोली, ‘‘शैलेष, मुझे क्रैडिट कार्ड देना, 2,000 रुपये का डिपौजिट एक कंटैंट कंपनी को भेजना है. वे कहते हैं कि उन के मूल कंटैंट का मिसयूज न हो इसलिए वे क्रैडिट कार्ड से पेमैंट मांगते हैं.’’
‘‘बहुत बड़े पैमाने पर आरंभ कर रही हो?’’ शैलेष बोला.
घर में 2-3 दिन शांति रही. माधवी दिन में 4-5 बार कंप्यूटर खोल कर देखती कि कोई मेल तो नहीं आया. फिर एक दिन बोली, ‘‘वे मुझे औनलाइन इंटरव्यू के लिए बुला रहे हैं पर मुझे उन का ऐप डाउनलोड करना होगा, जिस की फीस 2,000 रुपये है.’’
शैलेष के 2,000 रुपये और गए.
5 दिन बाद उसे पीडीएफ फाइल मिली जिस में शायद 500 पेज थे. उसे उस का संक्षेप में इंग्लिश से हिंदी अनुवाद करना था.
‘‘सुनो, यह बहुत कठिन काम है. कंप्यूटर पर पढ़ने में बहुत कठिनाई हो रही है. फौंट
बहुत छोटा है. इस के प्रिंट करा लाओ,’’
माधवी बोली.
शैलेष प्रिंट करा लाया पर कंप्यूटर पर माधवी हिंदी टाइपिंग न सीख पाई. उस ने हाथ
से लिखा तो शैलेष भी उसे नहीं पढ़ पाया. उसे स्कैन कर के भेजने का फायदा क्या था. इसलिए एक साइबर कैफे को हिंदी में लिखे को प्रति पृष्ठ पैसे दे कर टाइप कराने के लिए दिया. उसे प्रति पृष्ठ क्व400 मिलते थे इसलिए उसे यह खर्च ज्यादा नहीं लगा.
मगर 5 दिन बाद मेल आया कि काम पूरा हो जाने की मियाद 7 दिन थी इसलिए क्व2,000 जब्त किए जाते हैं और आगे से काम नहीं मिलेगा. 4,000 रुपये इस कंपनी को गए, 1,500 रुपये प्रिंट कराने में लगे और 10 दिन बाद हिंदी टाइप करने वाला अपने पैसे जबरन ले गया और मेल से हिंदी फाइल भेज दी.
शैलेष ने उत्सुकतावश उसे खोल कर देखा तो पता चला कि एक तो अनुवाद गलत था और दूसरे टाइप करने वाले ने हजार गलतियां छोड़ रखी थीं. काम के चक्कर में 1 महीने का चैन भी गया और पैसे भी बरबाद हुए.
माधवी बोली, ‘‘एक दिन अवश्य कुछ न कुछ कर दिखाऊंगी.’’
‘‘अवश्य, अवश्य.’’
‘‘अभी फिलहाल मैं ने पैसे कमाने का दूसरा जरीया ढूंढ़ निकाला है.’’
‘‘1,000 रुपये तो गंवा चुकी हो. अब क्या
इरादा है?’’
‘‘तुम्हारी इसी कंजूसी को देखते हुए तो
मैं ने पैसा कमाने की ठानी है. मैं ने तय कर
लिया है कि मैं बच्चों के कपड़ों का व्यापार करूंगी.’’
‘‘तुम कहां से कपड़े लाओगी,’’ शैलेष
ने पूछा.
माधवी बोली, ‘‘मै ने होलसेल मार्केट पता कर ली है. वहां 80% डिस्काउंट मिलता है उन्हें बेचूंगी तो पैसा ही पैसा होगा.’’
घर के बाहर एक बोर्ड लगा दिया, ‘नए फैशन के बच्चों के कपड़े.’
शैलेष बोला, ‘‘तुम्हारी युक्ति ठीक है. चलो, ले आते हैं क्व50 हजार के कपड़े.’’
‘‘हां, कुछ नए डिजाइनों के फ्रौक वगैरह… मैं ने एक स्टोर में शादी से पहले सेल्सगर्ल का काम किया था. मुझे इस लाइन का ऐक्सपीरियंस है,’’ यह बात बारबार दोहराती.
अगले दिन जब शाम को शैलेष घर लौटा तो ड्राइंगरूम में कपड़े बिखरे पड़े थे और घर के सारे गिलासप्याले इधरउधर लुढ़क रहे थे.
माधवी बोली, ‘‘पुरानी डिजाइनों के कपड़े ले आए. 10-20 औरतें आईं, चाय भी पी और सारे कपड़े खोलखाल कर चली गईं. एक पैसे की कमाई नहीं हुई. 4-5 अपने बच्चों को पहना कर देखने के लिए ले गई हैं.’’
शैलेष बोला, ‘‘पहले ही दिन 10 हजार रुपये का चूना लगा. अच्छा, अपनी लड़की को यह फ्रौक फिट लगेगा तो मानूंगा कि तुम्हारा टेस्ट अच्छा है.’’
माधवी ने पहना कर देखा टाइट था और खींचने पर फ्रौक फट गया.
तभी कोई खरीदार आया जो 5-6 कपड़े ले गया था उन्हें वापस कर गया कि साइज भी ठीक नहीं, कपड़ा भी खराब है और डिजाइन भी बेहूदा है.
बंटी ने भी एक भी कपड़ा पहनने से इनकार कर दिया.
मेड को देने की कोशिश की तो बोली, ‘‘मैडम, यह जो चीज 500 रुपये में आप बेच रही हैं, हमारे यहां मंगलवार बाजार में 50 रुपये में बिकती है,’’ और उस ने मुफ्त में भी ले जाने से इनकार कर दिया कि वह इन का क्या करेगी.
कुछ दिन बाद माधवी ने फिर शैलेष से कहां, ‘‘सुनो.’’
‘‘तुम ऐसे सुनो मत बोलो, मेरा दिल बैठ जाता है. मुझे लगता है तुम पैसा कमाने का कोई नया साहसिक धंधा शुरू करने वाली हो,’’ शैलेष घबरा कर बोला.
‘‘तुम सुनो तो सही.’’
‘‘सुनाओ.’’
‘‘यह कपड़े बेचने वाला व्यापार मुझ से नहीं होने का.’’
‘‘देर आयद दुरुस्त आयद.’’
‘‘तुम बताओ मेरी पेंटिंग्स कैसी हैं?’’
‘‘अपनी बेटी की ड्राइंग की कौपी में तुम्हें ड्राइंग करते देख कर कह सकता हूं कि तुम पेंटिंग में निपुण हो.’’
‘‘पेंटिंग का काम करूं तो कैसा रहेगा. आजकल तो पेंटिंग्स करोड़ों में बिकती हैं.’’
‘‘ठीक ही रहेगा. लोग अपने घर में आर्टिस्टों की पेंटिंग्स लगाना चाहते हैं. आरंभ कर दो बनाना,’’ शैलेष ने जान बचाने की खातिर कहा.
‘‘पहले सामान ला दो. फिर शुरू करूंगी.’’
‘‘सामान?’’
‘‘हां, पेंटिंग्स का सामान. लिख लो.’’
‘‘यह तो बहुत महंगा होगा.’’
लिस्ट क्या थी पूरा किचन रोल था. कोई 200 आइटम्स थीं.
‘‘तो क्या हुआ एक पेंटिंग बिकते ही लाभ ही लाभ है.’’
‘‘कितने लगेंगे?’’
‘‘सिर्फ क्व40 हजार के आसपास. मैं पूछ कर आई हूं.’’
‘‘बाप रे, न बाबा यह तो मेरी सारी बची जमापूंजी है. तुम कम से ही शुरू करो.’’
‘‘छोटे से शुरू कर कोई कुछ नहीं बन सकता है?’’
‘‘नहीं, मैं अपनी जमापूंजी खर्च नहीं कर सकता. 10-20 हजार रुपयों की बात अलग है.’’
‘‘अगले साल तक तुम्हारी पूंजी दोगुनी हो जाएगी.’’
‘‘नहीं.’’
‘‘देखो, सुनो तो सही.’’
‘‘एकदम नहीं.’’
‘‘यह तुम्हें क्या हो गया है. इस तरह घर में अशांति करने से क्या लाभ.’’
‘‘1 महीने से तुम तमाशा कर रही हो. मैं कोई करोड़पति नहीं जो तुम्हारे शौक के लिए लाखों रुपए खर्च कर दूं.’’
‘‘मैं सामान अपने शौक के लिए नहीं मांग रही हूं… मैं थोड़े पैसे कमा लूंगी, इसीलिए
तुम्हें जलन हो रही है.’’
‘‘मुझे जलन क्यों होने लगी. तुम्हीं सोचो, अगर तुम्हारी पेंटिंग्स नहीं बिकीं तो सारे पैसे पानी में चले जाएंगे. कभी पैसों की आवश्यकता पड़ी तो क्या करेंगे?’’
‘‘ठीक है अपने पैसों पर सांप बन कर कुंडली मारे बैठे रहो. मैं अपने गले की चेन बेच कर सामान ले आती हूं.’’
‘‘यानी तुम्हें इतना विश्वास है कि पेंटिंग्स बिक ही जाएंगी? इसीलिए गले की चेन तक बेचने तक को तैयार हो?’’
‘‘तुम्हारे जैसे आदमी से पाला पड़ा हो तो और किया ही क्या जा सकता है.’’
‘‘गले की चेन मत बेचो. कल बैंक से लोन ले लूंगा.’’
अब हमारे घर की सारी दीवारों पर पेंटिंगें हुई हैं, परदों पर रंग लगे हैं, ट्यूवें, शीशियां इधरउधर बिखरी रहती हैं. ड्राइंगरूम एक कोना माधवी ने हथिया लिया जहां उस का सामान पड़ा रहता और 30-40 कैनवास आधीअधूरी पड़ी हैं क्योंकि माधवी गेंदें के फूल और पहाड़ पर ?ोंपड़ी के आगे नहीं बढ़ पाई. हां, आजकल उस ने अपनी ड्रैस आर्टिस्टों वाली कर ली है.
अब वह मेकअप नहीं करती. बाल बिखरे रहते हैं. कौटन की साड़ी पहने रहती है.
नाखूनों पर पेंट लगा रहता है.
कोईर् भी आता है तो शैलेष झूठ कहता है कि माधवी को एक होटल से 50 कमरों के लिए पेंटिंगों का और्डर मिला है. जैसे ही होटल मालिक पेंटिंग्स खरीद लेगा वह चैक भेज देगा. माधवी ड्राइंगरूम में सोती है और शैलेष डबल बैड पर आराम से खर्राटे भरता है.
‘‘बिका कुछ?’’
‘‘मेरी पूरी फैक्टरी में केवल एक ही ऐसा आदमी था जिसे तुम्हारी बनी एक पेंटिंग पसंद आई. बाकी नहीं बिकीं. सारे पैसे पानी में चले गए.’’
‘‘थोड़ा मन लगा कर बेचते तो अवश्य बिक जातीं. इतनी खराब तो नहीं थीं?’’
‘‘हां, सारा दोष मेरा ही है. तुम इसी में संतुष्ट हो तो यही सही.’’
‘‘बहुत रुपयों की हानि हो गई है न. मुझे बहुत बुरा लग रहा है.’’
‘‘चलो, जो हुआ सो हुआ. अब पहले वाली अर्थव्यवस्था पर चलते हैं यानी मैं कमाता हूं और तुम खर्च करती रहो. अगर इसी तरह तुम भी कमाती रही तो भीख मांगने की नौबत आ जाएगी.’’
‘‘चलो, मजाक मत करो. एक बात सुनो.’’
‘‘कदापि नहीं. अब मैं कुछ नहीं सुनूंगा और इस अवस्था में हूं भी नहीं कि कुछ सुन सकूं.’’
‘‘क्या लिख रहे हो?’’
‘‘तुम्हारी लेखन सामग्री का सदुपयोग कर रहा हूं. कहानी लिख रहा हूं.’’
‘‘अच्छा. कैसी कहानी है?’’
‘‘घरेलू कहानी है.’’
‘‘मुझे भी सुनाओ.’’
‘‘पूरी हो जाने दो, पढ़ लेना.’’
‘‘छप जाएगी?’’
‘‘इस कहानी को पढ़ कर तो कठोर से कठोर संपादक भी पिघल उठेगा. छपने की पूरी उम्मीद है.’’