कहानी: अनमोल पल
उन अनमोल पलों की चाह में जहां विदित शादीशुदा होने के बावजूद सुहानी के प्रति आकर्षित था वहीं शादी न होने के कारण मरती इच्छाओं की पूर्ति हेतु सुहानी का विदित से लगाव था.
‘‘मैं तुम्हें संपूर्ण रूप से पाना चाहता हूं. इस तरह कि मुझे लगे कि मैं ने तुम्हें पा लिया है. अब चाहे तुम इसे कुछ भी समझो. पुरुषों का प्रेम ऐसा ही होता है, जिसे वे प्यार करते हैं उस के मन के साथसाथ तन को भी पाना चाहते हैं. तुम इसे वासना समझती हो तो यह तुम्हारी सोच है. पाना तो स्त्री भी चाहती है, लेकिन कह नहीं पाती. पुरुष कह देता है. तुम इसे पुरुषों की बेशर्मी समझो तो यह तुम्हारी अपनी समझ है, लेकिन जिस्मानी प्रेम प्राकृतिक है. इसे नकारा नहीं जा सकता. यदि तुम मुझ से प्रेम करती हो और तुम ने अपना मन मुझे दिया है तो तन के समर्पण में हिचक कैसी?
‘‘मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि हम एकांत में मिलें, जैसे कि मिलते आए हैं और एकदूसरे को चूमतेसहलाते हद से गुजर जाएं फिर बाद में एहसास हो कि हम ने यह ठीक नहीं किया. हमें मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए. अच्छा है कि इस बार हम मानसिक रूप से तैयार हो कर मिलें. वैसे भी कितनी बार हम एकांत के क्षणों में हद से गुजर जाने को बेचैन से रहे हैं, लेकिन मिलने के वे स्थान सार्वजनिक थे, व्यक्तिगत नहीं.
‘‘भले ही उन सार्वजनिक स्थानों पर दुरम्य पहाडि़यों पर उस समय कोई न रहा हो. क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं? क्या मुझे पाने की तुम्हारी इच्छा नहीं होती, जैसे मेरी होती है. शायद होती हो, लेकिन तुम कह नहीं पा रही हो, तो चलो, मैं ने कह दिया.
‘‘इस बार हम मिलने से पहले मानसिक रूप से तैयार हो कर मिलें. दो जवां जिस्म बने ही एकदूसरे में समा जाने के लिए होते हैं. मैं ने अपने मन की बात तुम से कह दी. तुम्हारे जवाब की प्रतीक्षा है.’’
टुकड़ोंटुकड़ों में विदित ने अपनी बात एसएमएस के जरिए सुहानी तक पहुंचा दी. अब उसे सुहानी के उत्तर की प्रतीक्षा थी. विदित ने सुहानी को एसएमएस करने से पहले कई बार सोचा कि ऐसा कहना ठीक होगा या नहीं. कहीं सुहानी इस का गलत अर्थ तो नहीं निकालेगी. लेकिन वह क्या करता? कब तक इच्छाओं को मन में दबा कर रखता. कितनी बार दोनों एकांत में मिले. कितनी बार दोनों तरफ से प्रगाढ़ आलिंगन हुए. कितनी बार दोनों बहुत दूर तक निकले और वापस आ गए. वापस आने की पहल भी विदित ने की. सुहानी तो तैयार थी उस रोमांचक यात्रा के लिए. खैर, जो भी हो, अब लिख दिया तो लिख दिया. वही लिखा जो उस के मन में था, दिमाग में था. दोनों की मुलाकात फेसबुक के माध्यम से हुई. विदित ने उस की पोस्ट को हर बार लाइक किया. कमैंट्स बौक्स में जा कर जम कर तारीफ की.
सुहानी भी चौंकी. इतनी रुचि मुझ में कौन ले रहा है, जबकि मैं दिखने में भी साधारण हूं. फेसबुक पर मेरा ओरिजनल फोटो है. मेरा पूरा विवरण भी दर्ज है. कमैंट्स और लाइक तो उसे और भी मिले थे, लेकिन ये कौन जनाब हैं, जो इतना इंट्रस्ट ले रहे हैं. जवाब में उस ने मैसेज भेजा, ‘‘मेरे बारे में सबकुछ जान लीजिए. यदि आप कुछ उम्मीद कर रहे हैं तो.’’ दूसरी तरफ से भी उत्तर आया, ‘‘मैं सबकुछ जान चुका हूं. यदि आप का स्टेटस सही है तो. हां, आप मेरे बारे में जरूर जान लें. मैं ने कुछ छिपाया नहीं. पारिवारिक विवरण, फोटो सभी के बारे में जानकारी है.’’
‘‘मैं ने भी कुछ नहीं छिपाया,’’ मैं ने भी जवाब दिया.
दोनों ने एकदूसरे के बारे में जाना और यह भी जाना कि विदित शादीशुदा था. उस की उम्र 40 साल थी. वह स्वास्थ्य विभाग में अकाउंटैंट था. उस के 2 बच्चे थे, जो प्राइमरी स्कूल में पढ़ रहे थे. विदित की पत्नी कुशल गृहिणी थी. फिर भी विदित जीवन में कुछ खालीपन महसूस कर रहा था. सुहानी 35 वर्ष की अविवाहित महिला थी, जो एक बड़ी कंपनी में अकाउंटैंट थी. उस के घर पर बुजुर्ग मातापिता थे. 2 बहनों की शादी उस ने अपनी नौकरी के बल पर की थी. पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभातेनिभाते न उस ने किसी की तरफ ध्यान दिया, न उस की तरफ किसी ने. उसे लगा मुझ साधारण दिखने वाली युवती पर कौन ध्यान देगा. फिर अब तो विवाह की उम्र भी निकल चुकी है. मातापिता भी नहीं चाहते थे कि कमाऊ लड़की उन्हें छोड़ कर जाए. यह किसी ने नहीं सोचा कि उस की भी कुछ इच्छाएं हो सकती हैं.
‘‘क्या हम कहीं मिल सकते हैं?’’ विदित ने फेसबुक मैसेंजर पर मैसेज भेजा.
‘‘क्यों मिलना चाहते हैं आप मुझ से?’’ सुहानी ने रिप्लाई किया.
‘‘आप मुझे अच्छी लगती हैं.’’
‘‘आप परिवार वाले हैं.’’
‘‘परिवार वाले का दिल नहीं होता क्या?’’
‘‘वह दिल तो आप की पत्नी का है.’’
विदित ने मैसेज नहीं किया. सुहानी को लगा, ‘शायद यह नहीं लिखना चाहिए था, हो सकता है मात्र मिलने की चाह हो. शादी का मतलब यह तो नहीं कि वह किसी से बात ही न करे. मिल न सके. किसी ने तो उसे पसंद किया. उस के सोशल साइड के स्टेटस को, जिस में निराशा भरे चित्रों की भरमार थी. उदास गजलें और गीत थे. किसी ने भी आज तक उसे व्यक्तिगत जीवन और न ही सोशल साइट्स पर इतना पसंद किया था. फिर मिलने में, बात करने में क्या हर्ज है? वह भी तो पहली बार किसी ऐसे व्यक्ति से मिल रही है जो उस से मिलना चाह रहा था.’ सुहानी ने मैसेज किया, ‘‘व्यक्तिगत बात के लिए व्हाट्सऐप ठीक है,’’ अपने व्हाट्सऐप से सुहानी ने विदित के व्हाट्सऐप पर मैसेज किया. अब बातचीत व्हाट्सऐप पर होने लगी.
‘‘मैं आप को क्यों अच्छी लगी?’’ सुहानी ने पूछा.
‘‘पता नहीं, लेकिन आप को देख कर लगा कि मैं आप को तलाश रहा था,’’ विदित ने जवाब दिया.
‘‘माफ कीजिए और आप का परिवार?’’
‘‘परिवार अपनी जगह है. उस का स्थान कोई नहीं ले सकता. वैसे ही जैसे आप की जगह कोई नहीं ले सकता.’’
‘‘मैं कल दोपहर औफिस लंच के समय आप को रीगल चौराहे के पास वाले कौफी हाउस में मिल सकती हूं,’’ सुहानी ने बताया.
‘‘मैं वहां पहुंच जाऊंगा.’’
सुहानी सोचती रही, ‘मिलना चाहिए या नहीं. एक शादीशुदा, बालबच्चेदार व्यक्ति से मिल कर भविष्य के कौन से सपने साकार हो सकते हैं? वैसे भी क्या हो रहा है अभी? फिर मिलना ही तो है. कितनी अकेली रह गई हूं मैं. साथ की सहेलियां शादी कर के अपने ससुराल व परिवार में मस्त हैं. मैं ही रह गई हूं अकेली. घर पर कब किस ने मेरे बारे में, मेरी इच्छाओं के बारे में सोचा है. क्या मैं अपनी मरजी से किसी से मिल भी नहीं सकती? चलो, आगे कुछ न सही लेकिन किसी को कुछ तो पसंद आया मुझ में.’
दोनों तरफ एक उमंग थी. वह नियत समय पर कौफी हाउस में मिले. दोनों को एकदूसरे की यह बात पसंद आई कि जैसा सोशल मीडिया पर अपना स्टेटस व फोटो डाला है, वैसे ही थे दोनों, अन्यथा लोग होते कुछ और हैं और दिखाते कुछ और हैं. कौफी की चुसकियां लेते दोनों एकदूसरे को देखते रहे. आंखों से तोलते रहे. सुहानी सोच रही थी कि क्या बात करूं? कैसे बात करूं? तभी विदित ने कहा, ‘‘आप ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’
‘‘इस उम्र में शादी,’’ सुहानी ने निराशा भरे स्वर में उत्तर दिया.
‘‘अभी कौन सी आप की उम्र निकल गई. ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो 40 के आसपास विवाह करते हैं.’’
‘‘मैं ने सब की तरफ ध्यान दिया लेकिन मेरी तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया.’’
‘‘तो अब ध्यान दिए देता हूं,’’ विदित ने हंसते हुए कहा, ‘‘आप दिखने में अच्छी हैं. अपने पैरों पर खड़ी हैं. कौन आप से शादी करने से इनकार कर सकता है. अच्छा बताइए, आप को कैसा लड़का पसंद है?’’
सुहानी ने हंसते हुए कहा, ‘‘इस उम्र में शादी के लिए लड़का नहीं पुरुष ढूंढ़ना पड़ेगा, वह भी अधेड़.’’
‘‘मेरी तरह,’’ विदित बोला.
‘‘हां, खैर ये सब छोडि़ए. आप अपनी सुनाइए. मिल कर कैसा लगा? क्या चाहते हैं आप मुझ से,’’ एक ही सांस में सुहानी कह गई.
‘‘देखिए, मैं ने अपने बारे में कुछ नहीं छिपाया आप से. सुनते हुए अजीब तो लगेगा आप को लेकिन क्या करूं, दिल के हाथों मजबूर हूं. आप मुझे अच्छी लगीं.’’
‘‘आमनेसामने भी,’’ सुहानी ने कहा.
‘‘जी, आमनेसामने भी?’’ विदित बोला.
‘‘मुझे भी आप की ईमानदारी अच्छी लगी. आप ने भी कुछ नहीं छिपाया.’’
‘‘मेरे मन में कोई चोर नहीं है, तो छिपाऊं क्यों? हां, मैं शादीशुदा हूं, 2 बच्चे हैं मेरे, लेकिन यह कोई गुनाह तो नहीं. फिर यह किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा व्यक्ति को कोई अच्छा लगे तो वह उसे अच्छा भी न कह सके. कोई उसे पसंद आए तो वह उस पर जाहिर भी न कर सके,’’ विदित ने अपनी बात रखते हुए कहा.
‘‘हां, हम अच्छे दोस्त भी तो हो सकते हैं,’’ सुहानी ने कहा तो विदित चुप रहा. इस बीच दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए, जो पहले से ही सोशल साइट्स से उन को मालूम थे.
‘‘हमें मोबाइल पर ही बात करनी चाहिए. चाहे तो एसएमएस के जरिए भी बात कर सकते हैं, लेकिन व्यक्तिगत बातें सोशल साइट्स पर बिलकुल नहीं,’’ सुहानी ने बात आगे बढ़ाई.
‘‘आप ठीक कह रही हैं. इस का मतलब यह हुआ कि आप मुझ से आगे बात करेंगी.’’
‘‘हां, बात करने में क्या बुराई है?’’
‘‘और मिलने में?’’
‘‘मिल भी सकते हैं, लेकिन मैं देर रात तक घर से बाहर नहीं रह सकती. कमाती हूं तो क्या? हूं तो महिला ही न. घर पर जवाब देना पड़ता है. शादी नहीं हुई तो क्या? पूछने को मातापिता, नजर रखने को अड़ोसपड़ोस तो है ही,’’ सुहानी बोली.
‘‘हां, मैं भी आप से ऐसे समय मिलने को नहीं कहूंगा जिस में आप को समस्या हो,’’ विदित ने कहा.
सुहानी का लंच टाइम खत्म हो चुका था. वह दफ्तर जाने के लिए खड़ी हो गई.
‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर,’’ सुहानी ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘मुझे भी,’’ विदित खुशी जाहिर करते हुए बोला, ‘‘आज मेरी एक इच्छा पूरी हो गई. आगे न जाने कब दोबारा मिलना होगा.’’
‘‘कल ही,’’ सुहानी मुसकराते हुए बोली.
‘‘क्या, सच में?’’ विदित ने खुशी से कहा.
‘‘हां, यहीं मिलते हैं,’’ सुहानी ने वादा किया.
‘‘थैंक्स,’’ विदित ने धन्यवाद भरे भाव से कहा.
‘‘और बात करनी हो तो मोबाइल पर?’’ सुहानी ने पूछा.
‘‘कभी भी.’’
‘‘मैं रात 10 बजे के बाद अपने कमरे में आ जाती हूं. आप के साथ तो पत्नी व बच्चे होते होंगे,’’ सुहानी ने पूछा.
‘‘नहीं, बच्चे तो अपनी मां के साथ अलग कमरे में सोते हैं. मांबेटों के बीच मुझे कौन पूछता है?’’ निराशा भरे स्वर में विदित बोला.
‘‘मैं अकेला सोता हूं कमरे में. आप बात कर सकती हैं,’’ और वे विदा हो गए. दूसरे दिन वे फिर मिले. दोनों मिलने के लिए इतने बेकरार थे कि बड़ी मुश्किल से दिन व रात कटी. ऐसा लगा जैसे दूसरा दिन आने में वर्षों लग गए हों. बात कैसे शुरू करें? क्या कहें एकदूसरे से. सो राजनीति, साहित्य, सिनेमा, संगीत की बातें होती रहीं.
‘‘तुम्हारे फेसबुक अकाउंट पर मुकेश के दर्द भरे गीतों का बड़ा संकलन है,’’ विदित ने सुहानी से कहा.
‘‘हां, मुझे दर्द भरे गीत बहुत पसंद हैं, खासकर मुकेश के और तुम्हें?’’
‘‘मेरी तो समझ में आता है मेरा एकांत, मेरा अकेलापन, इसलिए ये गीत मुझे खुद से जुड़े हुए प्रतीत होते हैं. लेकिन आप को क्यों पसंद हैं?’’ सुहानी ने पूछा.
‘‘शायद दर्द मेरा पसंदीदा विषय है,’’ विदित ने कहा.
‘‘लेकिन तुम से मिलने के बाद मुझे प्रेम भरे गीत भी अच्छे लगने लगे हैं,’’ सुहानी ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं. आप घर पर दर्द भरे गीत सुनते हैं?’’
‘‘नहीं, अब नहीं सुनता. पत्नी को लगता है कि मुझे अपना कोई पुराना प्रेमप्रसंग याद आता है. तभी मैं ऐसे गाने सुनता हूं और फिर घरपरिवार की जिम्मेदारियों में कुछ सुननेपढ़ने का समय ही कहां मिलता है?’’ विदित ने उदासी भरे स्वर में कहा.
‘‘आप की पत्नी से बनती नहीं है क्या?’’ सुहानी ने पूछा.
‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. पहले सब ठीक था, लेकिन अब वह मां पहले है, पत्नी बाद में. मैं ने पिछली बार जिक्र किया था अकेले सोने के विषय में. बच्चे मां के बिना नहीं सोते. दोनों बच्चे मां के अगलबगल लिपट कर सोते हैं. पत्नी दिन भर घर के कामकाज और दोनों बच्चों की जिम्मेदारियां संभालते हुए इतनी थक जाती है कि सोते ही गहरी निद्रा में चली जाती है.
‘‘एकदो बार मैं ने उस से प्रणय निवेदन भी किया, तो पत्नी का जवाब था कि अब मैं 2 बच्चों की मां हूं, बच्चों को छोड़ कर आप के पास आना ठीक नहीं लगता. बच्चे जाग गए तो क्या असर पड़ेगा उन पर? आप दूसरे कमरे में सोइए. आप कहेंगे तो मैं बच्चों को सुला कर थोड़ी देर के लिए आ जाऊंगी. वह आई भी थकीहारी तो बस मुरदे की तरह पड़ी रही. उस ने कहा जो करना है, जल्दीजल्दी करो. शारीरिक संबंध पूर्ण होते ही वह तुरंत बच्चों के पास चली गई. कभीकभी ऐसा भी हुआ कि हम संभोग की मुद्रा में थे, तभी बच्चे जाग गए और वह मुझे धकियाती हुई कपड़े संभालती बच्चों के पास तेजी से चली गई. बस, फिर धीरेधीरे इच्छाएं मरती रहीं. तुम्हें देखा तो इच्छाएं फिर जाग उठीं. एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’
‘‘नहीं, कहो,’’ सुहानी बोली.
‘‘फेसबुक पर जब तुम से बात होने लगी तो मेरे दिलोदिमाग में तुम समा चुकी थीं. एक बार पत्नी को कुछ जबरन सा कमरे में ले कर आया. संबंध बनाए, लेकिन दिलदिमाग में तुम्हारी ही तसवीर थी. अचानक मुंह से तुम्हारा नाम निकल गया.
‘‘पत्नी ने दूसरे दिन समझाते हुए कहा, ‘यह सुहानी कौन है? रात को उसी को याद कर के मेरे साथ संभोग कर रहे थे आप. जमाना अब पहले जैसा नहीं रहा. किसी ऐसीवैसी लड़की के चक्कर में मत फंस जाना, जो संबंध बना कर ब्लेकमैल करे. न मानो तो जेल भिजवा दे. फिर इस परिवार का, इस घर का, बच्चों का क्या होगा? समाज में बदनामी होगी सो अलग. सोचसमझ कर कदम उठाना. मैं पत्नी हूं आप की, मेरा अधिकार तो कोई नहीं छीन सकता, लेकिन अपनी हवस के कारण किसी जंजाल में मत उलझ जाना.’’
‘‘मैं ऐसी नहीं हूं,’’ सुहानी ने कहा. उसे लगा कि विदित उसे सुना कर ये सब कह रहा है.
‘‘अरे… मैं तो तुम्हें सिर्फ पत्नी की बात बता रहा हूं. मुझे तुम पर भरोसा है. हम ने ईमानदारी से अपना सच एकदूसरे को बताया है. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा है.’’
‘‘आजमा कर देख लो,’’ सुहानी ने दृढ़ स्वर में कहा. लंच टाइम खत्म हो चुका था. उन्हें मजबूरन अपनी बात समाप्त कर के उठना पड़ा. इस वादे के साथ कि वे फिर मिलेंगे. वे फिर मिले. उन की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया. मुलाकातों के स्थान भी बदलने लगे. कभी वे पार्क में टहलते तो कभी किसी रेस्तरां में साथ बैठ कर भोजन करते. कभी साथ मूवी देखते.
‘‘मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. अकेले में जहां हम दोनों के अलावा कोई तीसरा न हो,’’ विदित ने कहा.
‘‘मेरी एक सहेली कंपनी के काम से बाहर गई है. उस के फ्लैट की चाबी मेरे पास है. हम थोड़े समय के लिए वहां जा सकते हैं,’’ सुहानी ने कहा.
‘‘किसी ने हमें देख लिया तो,’’ विदित ने शंका व्यक्त की.
‘‘मैं किसी की परवा नहीं करती,’’ सुहानी ने दृढ़ स्वर में कहा.
‘‘कब चलना है?’’ विदित ने पूछा.
‘‘आज, अभी. 1 घंटे का लंच है. बात करेंगे, चाय पीएंगे और जो कहना है कह लेना.’’ कौफी हाउस से टैक्सी ले कर वे सीधे फ्लैट पर पहुंचे. सुहानी ने चाय बनाई और विदित को दी. विदित ने सुहानी का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’’
‘‘मैं भी.’’ विदित ने सुहानी को अपने शरीर से सटा लिया. दोनों एकदूसरे से लिपटे हुए थे. सांसों में तेजी आ गई थी, विदित ने सुहानी के माथे पर अपने होंठ रख दिए. सुहानी ने स्वयं को विदित को सौंप दिया. दोनों एकदूसरे में समाने का प्रयास करने लगे.
अचानक पता नहीं क्यों, विदित ने खुद को रोक लिया. सुहानी ने बड़ी मुश्किल से स्वयं को नियंत्रित किया. वह जाना चाहती थी सारे तटबंधों को तोड़ कर, लेकिन विदित ने हांफते हुए कहा, ‘‘नहीं, इस तरह नहीं. तुम्हें यह न लगे कि मैं ने तुम्हारा गलत फायदा उठाया.’’
‘‘ऐसी कोई बात नहीं है विदित,’’ सुहानी निश्चिंत हो कर बोली.
‘‘सुहानी,’’ विदित ने सुहानी के हाथों को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार दे सकता हूं, अधिकार नहीं.’’
सुहानी ने विदित से लिपटते हुए कहा, ‘‘मुझे प्यार के अलावा कुछ और चाहिए भी नहीं.’’ विदित ने सुहानी के होंठों पर अपने होंठ रखे. सुहानी ने फिर खुद को समर्पित किया, लेकिन विदित ने फिर स्वयं को रोक लिया.
‘‘एक बात पूछूं विदित? ’’सुहानी ने पूछा.
‘‘पूछो.’’
‘‘अपनी पत्नी से अंतरंग क्षणों में तुम मेरी कल्पना करते हो?’’
‘‘हां.’’
‘‘तुम मेरा शरीर चाहते हो?’’
‘‘हां, लेकिन मन के साथ. केवल तन नहीं.’’
‘‘मैं तुम्हारे साथ गहराई तक उतरने को तैयार हूं. फिर तुम पीछे क्यों हट रहे हो?’’
‘‘यही सोच कर कि मैं तुम्हें क्या दे पाऊंगा. न कोई सुनहरा भविष्य, न कोई अधिकार. अपनों के सामने तुम्हारा क्या परिचय दूंगा. इन तथाकथित अपनों के सामने शायद तुम्हें पहचानने से भी इनकार कर दूं. कहीं यह तुम्हारा शोषण तो नहीं होगा,’’ सकुचाते हुए विदित बोला. ‘‘मेरे पास भविष्य के लिए नौकरी है. रही अधिकार की बात, तो मैं जानती हूं कि तुम विवाहित हो. मैं तुम से ऐसी कोई मांग नहीं करूंगी, जिस से तुम स्वयं को धर्मसंकट में फंसा महसूस करो. मैं तो तुम्हारे साथ खुशी के कुछ पल बिताना चाहती हूं. ऐसे पल जिन पर हर स्त्री का अधिकार होता है, लेकिन मेरी नौकरी के कारण मेरे परिवार के लोग ही मुझे अपने स्त्रीत्व से वंचित रखना चाहते हैं और मैं ये पल अब चुराना चाहती हूं, छीनना चाहती हूं.’’
विदित खामोश रहा. विदित को सोच में डूबा देख कर सुहानी ने पूछा, ‘‘क्या बात है?’’ ‘‘कुछ नहीं,’’ विदित ने कहा, ‘‘मैं यह सोच रहा था और इसलिए सोच कर तुम से कह रहा हूं कि अपने सुख की तलाश में कहीं हम वासना के दलदल में तो नहीं भटकना चाह रहे. तुम्हारी खुशियां मेरे साथ हमेशा नहीं रहेंगी. मैं तुम्हें पाना तो चाहता हूं, लेकिन मैं तुम से प्यार भी करता हूं. स्त्रीपुरुष जब तनमन के साथ एक होते हैं तो बंध जाते हैं एकदूसरे से. मैं तो फिर भी पुरुष हूं. शादीशुदा हूं. तुम मुझ से बंध कर कहीं अकेली न रह जाओ,’’ विदित कहते हुए चुप हो गया. सुहानी चुपचाप सुनती रही, कुछ नहीं बोली.
‘‘मैं चाहता हूं कि तुम्हारे योग्य कहीं एक अच्छा लड़का, चाहे वह अधेड़ हो या फिर विदुर, तलाशा जाए, जिस के साथ तुम जीवन भर खुश रह सको. तुम्हारा अधूरापन हमेशा के लिए दूर हो जाए.’’ ‘‘तुम्हें क्या लगता है, विदित? मैं ने ये सब सोचा नहीं होगा. इस काम में मेरी एक प्रिय सहेली ने मेरी मदद भी की. मैरिज ब्यूरो से संपर्क भी किया, कुछ रिश्ते आए भी, लेकिन वे सब रिश्ते ऐसे आए जो मु झे पसंद नहीं थे. वही कुंडली मिलान, दहेज, घरपरिवार, जातिधर्म, गोत्र. मेरा मन नहीं मिला किसी से. एकदो मेरे मातापिता से मिले भी तो मातापिता ने उन्हें टाल दिया और मु झे सम झाया कि इस उम्र में क्यों शादीब्याह के चक्कर में पड़ रही हो. अपने मातापिता का ध्यान रखो. 70-75 की उम्र में मातापिता से घर नहीं छोड़ा जा रहा और बेटी को तपस्या करने की सलाह दे रहे हैं…’’ कहते हुए सुहानी की आंखों में आंसू आ गए.
विदित ने आंसू पोंछते हुए सुहानी से कहा, ‘‘मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाना नहीं था. मैं तो तुम्हारे भले के लिए यह कह रहा था.’’
‘‘तुम डर रहे हो मु झ से,’’ सुहानी बोली.
‘‘नहीं, तुम्हें सम झा रहा हूं,’’ विदित आश्वस्त करते हुए बोला.
‘‘इतना आगे आने के बाद,’’ सुहानी ने कहा.
‘‘अभी इतने भी आगे नहीं आए कि वापस न लौट सकें.’’
‘‘तुम लौटना चाहते हो तो लौट जाओ.’’
‘‘मैं नहीं लौटना चाहता.’’
‘‘मैं भी नहीं लौटना चाहती,’’ फिर दोनों गले मिले और मुसकराते हुए अपनेअपने गंतव्य की तरफ चले गए. रात को विदित को सुहानी का खयाल आया. उसे वे पल याद आए जब एकांत पहाड़ी पर उस ने सुहानी को सिर से ले कर पैर तक चूमा था. उस के शरीर के ऊपरी वस्त्र हटा कर उस के गोपनीय अंगों से छेड़छाड़ करने लगा था और सुहानी मादक सिसकारियां लेते हुए उस का साथ दे रही थी. ‘उफ्फ, मैं क्यों पीछे हट गया. मिलन पूर्ण हो जाता तो यह तड़प, यह बेकरारी तो न सताती. शरीर इस तरह भारी तो न महसूस होता.’ स्वयं को इस भारीपन से मुक्त करने के लिए विदित अपनी पत्नी के पास पहुंचा. पत्नी ने झिड़कते हुए कहा, ‘‘सो जाइए. आज मेरा मूड नहीं है.’’ विदित अपमानित सा अपने कमरे में आ गया. उस ने मोबाइल उठा कर सुहानी को कई टुकड़ों में एसएमएस किया. अब उसे सुहानी के उत्तर की प्रतीक्षा थी. सुहानी का उत्तर आ गया. विदित ने मोबाइल के एसएमएस बौक्स पर उंगली रखी.
‘‘जब मैं तुम्हारे साथ बहने को तैयार थी तो तुम पीछे हट गए और मु झे दुनियादारी समझाते रहे. क्या तुम मुझ से इसलिए शारीरिक सुख चाहते हो, क्योंकि यह सुख तुम्हें अपनी पत्नी से नहीं मिल रहा है. मैं कोई बाजारू औरत नहीं हूं. यह सुख तो चंद रुपए दे कर कोई वेश्या भी तुम्हें दे सकती है. तुम्हारा बारबार पीछे हटना यह साबित करता है कि तुम डरते हो मु झ से, अपनी पत्नी से, अपने परिवार से, जबकि मैं ने पहले ही तुम से कह दिया था कि मु झे सिर्फ प्यार चाहिए, अधिकार नहीं.
‘‘तुम ने उन अनमोल पलों को न जाने किस डर से गंवा दिया. वह भी ऐसे समय में जब मैं तुम्हारे साथ आगे बढ़ रही थी. उन क्षणों में मैं ने खुद को कितना अपमानित महसूस किया था और अब तुम मुझ से शरीर के ताप से पीडि़त हो कर मिलन की मांग कर रहे हो. क्या इसे तुम प्यार कहते हो या सिर्फ जरूरत? मैं तुम्हारी ही भाषा में बात कर रही हूं. औरत जब किसी के प्रेम में डूबती है तो फिर आगेपीछे नहीं सोचती. जिसे प्रेम करती है उस पर भरोसा करते हुए आगे बढ़ती है. तुम इतना सोचते हो मेरे साथ होते हुए भी, सब के बारे में, मेरे बारे में भी सब सोचने को रहता है बस, मैं ही नहीं रहती.’’
विदित ने एसएमएस को 4-5 टुकड़ों में पढ़ा. उसे उस पर गुस्सा आ गया. उस ने सीधा नंबर लगाया और कहा, ‘‘तुम्हारी हां है या ना.’’ उधर से सुहानी ने उत्तर दिया, ‘‘इतनी मानसिक तैयारी से शादी की जाती है, सुहागरात मनाई जाती है, प्यार नहीं किया जाता.’’ विदित को गुस्सा आ गया. उस के मुंह से निकल गया, ‘‘शराफत के कारण पीछे रह गया. नहीं तो बहुत पहले ही सबकुछ कर चुका होता. अब पूछ रहा हूं तो भाव खा रही हो.’’
दूसरी तरफ से मोबाइल बंद हो गया. विदित को खुद पर गुस्सा आया. ‘उफ्फ, यह क्या कह दिया मैं ने. किस बदतमीजी से बात की मैं ने. मेरे बारे में क्या सोच रही होगी सुहानी,’ विदित ने सोचा और फिर नंबर घुमाने लगा, लेकिन सुहानी ने फोन काट दिया. फिर विदित ने एसएमएस किया.
‘‘क्यों तड़पा रही हो? गुस्से में निकल गया मुंह से. इस के लिए मैं माफी मांगता हूं,’’ सुहानी ने एसएमएस पढ़ कर रिप्लाई किया.
‘‘क्या चाहते हो?’’ सुहानी झुं झला कर बोली.
‘‘तुम्हें चाहता हूं,’’ विदित बोला.
‘‘क्यों चाहते हो?’’
‘‘प्यार करता हूं तुम से.’’
‘‘मुझ से या मेरे शरीर से?’’
‘‘तुम्हारा शरीर भी तो तुम ही हो.’’
‘‘तो ऐसा कहो, शरीर चाहिए मेरा.’’
‘‘तुम गलत सम झ रही हो.’’
‘‘मैं ठीक सम झ रही हूं.’’
‘‘तुम्हारी हां है या ना?’’
‘‘जिद क्यों कर रहे हो?’’
‘‘मैं तुम्हें पाना चाहता हूं.’’
‘‘तुम्हारे साथ बिताए पलों के लिए मैं कोई भी कीमत देने को तैयार हूं.’’
‘‘चलो, कीमत ही सम झ कर दे दो.’’
‘‘ठीक है, बताओ कब, कहां आना है?’’ सुहानी ने कहा.
विदित को समझ नहीं आ रहा था कि जो औरत कल तक उस के लिए बिछने के लिए तैयार थी, जिस के हितअहित के बारे में इतना सोचा कि सुख की चरम अवस्था से लौट कर वापस आ गया. आज वही औरत इस तरह की बात कर रही है. इन औरतों को सम झना बहुत मुश्किल है. एक बार संबंध बनने के बाद अपनेआप काबू में आ जाएगी . स्त्रीपुरुष के बीच जिस्मानी संबंध बनने जरूरी हैं. तभी स्त्री पूर्णरूप से समर्पित हो कर रहेगी. एक बार संबंध बन गए तो फिर वह उसी की राह ताकती रहेगी. खाली प्रेम तो दिल की बातें हैं. आज है कल नहीं है. विदित यों निकला जैसे शिकार पर निकल रहा हो. विदित ने विभागीय औडिट टीम के लिए 3 कमरे होटल रीगल में बुक करवाए. रात 12 बजे की ट्रेन से औडिट टीम जाने वाली थी. उस ने होटल के मैनेजर को फोन कर के कहा, ‘‘एक कमरा कल सुबह तक बुक रहेगा. 2 कमरे खाली कर रहा हूं.’’
‘‘यस सर.’’
विदित के बताए पते पर रात 10 बजे सुहानी पहुंची. घर से वह यह कह कर निकली कि साहब जरूरी काम से बाहर गए हैं. घर पर उन की पत्नी अकेली हैं इसलिए मु झे साथ रहने के लिए उन की पत्नी ने बुलाया है. साहब का निवेदन था, इनकार नहीं कर सकती. विदित होटल के बाहर सुहानी की प्रतीक्षा कर रहा था. सुहानी को देख कर उस के चेहरे पर चमक आ गई. कमरे के अंदर पहुंचते ही विदित ने दरवाजा बंद किया और सुहानी को जोर से भींच कर कहा, ‘‘आई लव यू.’’ इस के बाद बिना सुहानी से पूछे वह सुहानी के जिस्म को चूमने लगा. सुहानी कहती रही कि इतनी रात को न आने के लिए मैं ने तुम्हें पहले ही मना किया था और तुम ने भी वादा किया था.
मुझे झूठ बोल कर आना पड़ा, लेकिन विदित का ध्यान सुहानी की बातों पर बिलकुल नहीं था. वह तो सुहानी के शरीर के लिए बेकरार था. वह सुहानी के नाजुक अंगों को चूमता रहा, सहलाता रहा. उस के बदन को झिंझोड़ता रहा. सुहानी कहती रही, ‘‘तुम ने फोन पर मु झ से इस तरह बात की जैसे मैं कोई वेश्या हूं. तुम्हें मेरा शरीर चाहिए था तो लो यह रहा शरीर. बु झा लो अपनी वासना की आग. मेरे मन में तुम्हारे प्रति जो था वह खत्म हो चुका है. मैं सिर्फ उन पलों की कीमत चुकाने आई हूं, जो मेरे लिए तुम्हारे साथ अनमोल थे.
मेरे जीवन के वे सब से अद्भुत क्षण. मेरे स्त्रीत्व होने के वजूद भरे पल.’’ विदित सुहानी की कोई बात नहीं सुन रहा था, न सम झ रहा था. वह सुहानी के जिस्म से खेल रहा था. सुहानी शव के समान पड़ी रही. उस के अंदर कोई भाव नहीं था, शरीर में कोई हरकत नहीं थी, लेकिन इस ओर विदित का ध्यान नहीं गया. वह तो शिकारी बना हुआ था. सुहानी के शरीर को चीरफाड़ रहा था, सुहानी के अंदर न रस था न आनंद. वह निर्जीव सी पड़ी हुई थी और विदित उस के अंदर प्रवेश कर खुद को जीता हुआ महसूस कर रहा था. उस का खुमार उतर चुका था. अब आग जल कर राख हो चुकी थी.
विदित की नींद खुली तो सुबह हो चुकी थी. उसे सुहानी कहीं नहीं दिखाई दी. न कमरे में न वाशरूम में. उस ने सुहानी को फोन लगाया. सुहानी का मोबाइल बंद था. उस ने मैनेजर से फोन पर पूछा, ‘‘मैडम कहां गईं?’’
‘‘सर, वे तो रात को ही चली गई थीं.’’ मैनेजर बोला.
‘‘कितने बजे?’’ विदित भौचक रह गया.
‘‘तकरीबन 12 बजे,’’ मैनेजर ने कहा.
‘‘कोई मैसेज दिया, कुछ कह कर गई वह?’’ विदित ने पूछा.
‘‘सर, आप के लिए एक पत्र छोड़ कर गई हैं,’’ मैनेजर ने विदित को बताया.
‘‘मेरे कमरे में पहुंचा देना,’’ विदित ने आदेश दिया.
‘‘जी सर,’’ मैनेजर बोला.
थोड़ी देर बाद दरवाजे की घंटी बजी, ‘‘अंदर आ जाओ,’’ विदित ने कहा, तो वेटर ने अंदर आ कर एक लिफाफा दिया. लिफाफा ले कर विदित ने कहा, ‘‘ठीक है, जाओ.’’
विदित ने लिफाफा खोल कर पत्र पढ़ा, ‘तुम्हारे दिए अनमोल पलों की कीमत चुका दी है मैं ने और तुम ने भी अच्छी तरह वसूल ली है. तुम कुछ भी हो सकते हो, लेकिन प्रेमी नहीं हो सकते. मैं ने तुम्हें तन दे दिया है जिस की तुम्हें जरूरत थी. मन अपने साथ ले कर जा रही हूं. औरत के शरीर को पा कर तुम यह सम झो कि तुम ने औरत पर नियंत्रण पा लिया है तो तुम्हारी और बलात्कारी की सोच में कोई फर्क नहीं रहा.
प्रेम में देह कोई माने नहीं रखती, लेकिन जिसे देह से ही प्रेम हो वह तो महज व्यभिचारी हुआ. मैं ने प्रेम किया था तुम से. देह तो स्वयं ही समर्पित हो जाती, क्योंकि प्रेम प्रकट करने का माध्यम है देह, लेकिन तुम ने स्त्री के मन और तन को अपनी इच्छा और सुविधानुसार अलगअलग कर के देखा. तुम्हारी खोज एक शरीर की खोज थी. इस के लिए इतना परेशान होने की जरूरत नहीं थी. चले जाते किसी वेश्या के पास. मेरी खोज प्रेम की खोज थी. जो मु झे तुम से नहीं मिला. दोबारा मिलने व संपर्क करने की कोशिश मत करना.
‘पुन: प्रेम की खोज में,
सुहानी.’
विदित पत्र पढ़ कर सिर पकड़ कर बैठ गया और सोचने लगा, ‘उफ्फ, यह मैं ने क्या कर दिया? तन पा लिया और मन खो दिया. कुछ पल पाए और पूरा जीवन खो दिया. जीत कर भी हार गया मैं. ‘प्रेम में जीतहार जैसी बातें सोच कर प्रेम को अपमानित कर दिया मैं ने. सामने अमृतकुंड था और प्यास बु झाने के लिए खारा पानी पी लिया मैं ने. सुहानी का सबकुछ मेरा था, मन भी और तन भी, लेकिन क्षण भर की वासना में प्रेम की कीमत लगा ली मैं ने. जो सहज और स्वाभाविक रूप से मेरा था उसी को नीलाम कर दिया मैं ने. अपने ही प्रेम की बोली लगा कर हमेशा के लिए खो दिया सुहानी को. अपने प्रेम को अपमानित और प्रताडि़त कर दिया मैं ने.
कितना बेवकूफ था मैं, जो सोचने लगा कि औरत को जीता जा सकता है. संपत्ति सम झ लिया था मैं ने औरत को. ‘सुहानी के लिए शरीर प्रेम करने का माध्यम था और मैं शरीर की तृप्ति के लिए कितनी ओछी हरकत कर बैठा सुहानी के साथ. सुहानी ने प्रेम में बिताए अनमोल पलों के लिए शरीर सौंप दिया मु झे. जैसे शव को सौंपते हैं अग्नि में.’ बहुत देर तक उदास और गमगीन बैठा रहा विदित. दोबारा सुहानी से मिलने की हिम्मत नहीं थी उस में और सुहानी प्रेम के अनमोल क्षणों की तलाश में निकल पड़ी. उसे किसी बात का दुख नहीं था.
वह ऐसे पुरुष के साथ आगे नहीं बढ़ना चाहती थी जो प्रेम में आगे बढ़ते हुए पीछे हट जाए. जो स्त्रीपुरुष के अंतरंग क्षणों में भलाबुरा सोचते हुए पीछे हट जाए और यह भूल जाए कि इन अनमोल पलों में आगे बढ़ते हुए पीछे हटने से स्त्री अपमानित होती है. सुहानी को प्रेम के वे पल इतने भा गए थे कि उन पलों को वह फिर से जीने के लिए प्रेम की तलाश में निकल पड़ी. उम्र के इस दौर में प्यार मिलता है या नहीं यह अलग बात है, लेकिन सुहानी की तलाश जारी थी. उसे विश्वास था कि वह प्रेम के अनमोल पलों को खोज लेगी. - देवेंद्र मिश्रा