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कहानी: दहलीज के उस पार

मधु हैरान-परेशान अपनी कानों पर उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी अपनी जननी… मां,भाभी के साथ मिलकर उसके बारे में ऐसी बातें करेंगी। ऐसी कौन सी बात मधु ने सुन ली हैरान-परेशान वाली??? इस कहानी की शुरुआत होती है मायके की लाडली मधु से ही। तीन भाई बहनों में सबसे छोटी मधु इसलिए सबकी लाडली दिन भर चहकती रहती थी, चिड़ियों की तरह । और दोनों बड़े भाइयों से अपनी बातें मनवाती रहती थी। अपने मां पापा रघुवर और जानकी जी के जैसे वह जान ही थी……..।
समय बीतता गया पढ़ाई-लिखाई करके दोनों भाई अपनी अपनी नौकरी में लग गए । एक-एक कर दोनों भाइयों की भी शादी हो गई। घर में भाभी आ गई दोनों भाभी व्यवहार से तो ठीक ही थी परिवार में सब कुछ ठीक-ठाक खुशी खुशी चल रहा था।

मैं अभी बी ए सेकंड ईयर में पढ़  ही रही थी। देखने में भी अच्छी भली थी जो भी रिश्तेदार आते सब यही कहते कि अब मधु के लिए रिश्ता देखिए…। पापा कहते अभी नहीं बी ए कंप्लीट कर लेगी तब । क्या रघुवर जी आप भी ????? जायदा पढ़ लिख कर भी क्या करेगी घर ही तो संभालना है,ससुराल जाकर। ऐसा कैसे आप बोल दिए श्याम बाबू ,आजकल जमाना बिना पढ़े लिखे गुजारे का नहीं है। लड़की पढ़ी-लिखी रहेगी, कभी ऊंच-नीच कुछ हो जाए । उसके विपत्ति का श्रृंगार बनेगी यह पढ़ाई । वैसे आपकी जो मर्जी रघुवर बाबू मुझे कहना था सो मैंने कह दिया। पुनः अरे….रघुवर जी लड़का देखने में भी तो समय लगेगा। देखते-देखते ये दिन कैसे बीत जाएगा पता भी नहीं चलेगा आपको। पापा थोड़ा रुक कर हां यह भी सही कह रहे हैं आप।

मुझे सोचना चाहिए मधु की शादी के बारे में । इधर मधु शादी की बात सुनकर थोड़ा सहम सी जाती है ।अभी भी लोग ससुराल के माहौल को बहुत ही डरनुमा ही बनाते हैं सहज नहीं। सभी हर बात में कहते ससुराल जाएगी तो सीख जाएगी । इसलिए मधु को ससुराल के नाम से डर लगने लगा था……….।

दो साल बाद………….. बेहतर रिजल्ट के साथ बीए पूरा हो गया मधु का । कई जगह जाने के बाद मधु के लिए एक अच्छे वर की तलाश रघुबर जी की संपन्न हुई । आज हमारी मधु की शादी है मयंक बाबू के साथ । पेशे से बैंक मैनेजर हैं। उनके पिता सुंदरसुमन जी शिक्षक हैं। दो छोटी बहनें हैं मयंक जी की कुल मिलाकर सुखी संपन्न परिवार मिल रहा है हमारी मधु को। खुशी-खुशी सारी रस्में शादी की पूरा होने के बाद मधु आज अपने ससुराल पहुंचती है।

बहुत जोरों शोरों से उसका स्वागत किया जाता है क्योंकि घर कि वह इकलौती बहू है । मधु की सासु मां बहुत ही सुंदर से बहु का स्वागत करती हैं। सारी रस्में ससुराल की होने के बाद बहू को अपने कमरे में ले जाते हुए। मयंक की मां रेवती जी कहती हैं । मधु कोई भी दिक्कत हो तो बेहिचक मुझे कहना मैं तुम्हारी मां समान नहीं मां हूं। ठीक है मांजी……. मांजी नहीं सिर्फ तुम्हारी मां। दोनों बहने एक साथ बोलती हैं और फिर मेरी मां अरे तुम सब की मां दो बेटी थी अब तीन हो गई मुझे…….. हंसते हुए। चलो अब मधु को आराम भी करने दो मैं तो करने दूंगी आराम भैया करने देंगे तब तो खिंचाई करते हुए……।

मधु को हैरत हो रही थी कि यह सिर्फ मेरी सासू मां का दिखावा था । या फिर सच में  मयंक जी की मां ऐसी है। सभी आज तक बोलते रहते थे सास बहुत गर्म होती है ससुराल में जीना मुश्किल  कर देती है वगैरह-वगैरह … ये तो बिल्कुल विपरीत हैं। तभी मयंक बाथरूम से फ्रेश होकर आते हैं । कहां खो गई मेरी मधु बस कहीं नहीं हुई यूं ही …..मयंक की बाहों में लिपटते हुए आपके बारे में ही सोच रही थी ,क्या क्या क्या???????? अभी नहीं बताऊंगी सो जाइए दोनों सो जाते हैं कल की नई सबेरे और नई उम्मीदों के साथ। सुबह जब आंखें खुलती हैं मधु देखती है कि रेवती जी सारा काम कर चुकी होती है । मधु पहले तुम स्नान करके पूजा कर लो ,  फिर सभी साथ में नाश्ता करेंगे । जी ठीक है…मधु मां आपने मुझे जगाया क्यों नहीं…………।कुछ काम में हाथ बटा देती मैं भी । अरे बेटा अभी तुम्हारे मेहंदी के रंग हैं इसे आराम से रहने दो ये रंग जितना  लंबा चलेगा तुम लोगों का जीवन उतना ही सुखी रहेगा मैं हूं ना अभी। और कौन सा कहती हूं कि तुमको नहीं करना है । मेरे बुढ़ापे का सहारा तुम ही तो बनोगी।

दो-चार दिन इसी तरह बीत गए मधु मुझे मम्मी के यहां जाना है। कोई बात नहीं रेवती जी ने कहा। मयंक मधु को जाओ मम्मी के यहां से घुमा लाओ ठीक है मां। जब मधु अपनी मम्मी के यहां जाती तो 1 सप्ताह 2 सप्ताह रुक जाती । यह बातें सुंदरसुमन जी को अच्छी नहीं लगती हमेशा कहते कि आप बहू को सर चढ़ा दिए हैं बेटी कहकर शादी के बाद इतना कोई मायके जाता है क्या??????? रेबती जी कहती कि अभी बच्ची है नासमझ है । जब बाल बच्चे होंगे तो खुद ही  जिम्मेदारी का एहसास होगा। थो दिन में समझदारी आ जाएगी कि ससुराल ही उसका अपना घर है ।अभी तो मैं हूं ना, घर देखने के लिए बच्ची है जाने दीजिए…………।

धीरे-धीरे समय अपनी गति से बीत गया । 5 साल बाद….. दो बच्चे की मां बन गई मधु ,लेकिन फिर भी उसका आदत नहीं छूटा मायके जाने वाला। जब मन हो तब कोई बहाना बनाकर मायके चली जाती। बच्चे को अपनी मां यानी रेबती जी पर छोड़ देती निश्चिंत । इधर मायके में दोनों भाभियों को इसका इतना बार बार आना जाना अच्छा नहीं लगता था । ना ही मां को दोनों भाभियों के बीच मधु की वजह से हमेशा अनबन अच्छी लगती थी। इस बार मधु जब मायके आई मयंक जी के साथ । रात में तो सब ठीक था सुबह मधु जब बाथरूम की तरफ जाने लगी उसने सुना कि ,मां और दोनों भाभी उसी के बारे में बात कर रहे हैं।वह थोड़ा ध्यान लगा कर सुनने लगी। दोनों भाभी कह रही थी  कि क्या दिक्कत है मधु जी को अपने ससुराल में । इतनी अच्छी सास इतना अच्छा परिवार मिला हुआ है। फिर भी जब देखो तब यहां आ जाती हैं । कह तो भाभी सही रही थी, मुझे ससुराल में कभी ससुराल जैसा लगा ही नहीं । लेकिन मैंने कभी इस बारे में सोचा ही नहीं । दुनिया जैसे बोलती थी यही भ्रम मेरे दिमाग में भी लगा हुआ था कि ससुराल यानी लड़कियों के लिए सजा । ………….।

खुद तो आती ही है मयंक जी को भी लेते आती है । स्वागत में कम खर्चे होते हैं क्या???? मां भी बोल रही थी हां सही बात है । इस वक्त तुम दोनों झगड़ा मत करो, मैं मधु से बात करूंगी । तभी मधु  मां से लिपटते हुए ,आज के बाद मैं बिना किसी ऑकेजन कभी नहीं आऊंगी। यही मेरा फैसला है, यही सही है मां।

मधु की आंखों से आंसू जैसे रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। नम आंखों से ही तुरंत वह मयंक जी के साथ अपने ससुराल पहुंच जाती है । रेबती से लिपटकर फूट-फूट कर रोने लगती है ।और कहती है मेरा मायका छूट गया दहलीज के उस पार …….। रेवती जी अरे पगली तुम्हारा दूजा मायका हमेशा तुम्हारा इंतजार कर रहा है। अपने घर को रोशन करो यही तुम्हारा असली मायका है ,मां ने कहा। हां मां मैं हमेशा के लिए अपने मायके लौट आई हंसते हुए।
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