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कहानी: नजरिया

रोज का वही समय सुबह जल्द बाजी में जॉब पर जाना भागते- भागते कभी कुछ छूट जाना,कभी कुछ। आए दिन उसे ऊपर दो चक्कर तो लगाने ही पड़ते। आखिर उसे हर बात की हड़बड़ी जो रहती। क्यों ना हो नया-नया जॉब लगा था। घर की और नौकरी दोनों की जिम्मेदारियों को निभाना वह भी सुबह के समय,यह तो एक परिपक्व महिला भी नहीं कर सकती थी। विनी तो बिचारी अभी महज बाइस साल की थी इतनी छोटी उम्र में पिता की बीमारी ने उसे इतनी जल्दी परिपक्व बना दिया था। 
आज भी वह कुछ भूल आई थी गाड़ी स्टार्ट करने से पहले भागते हुए ऊपर गई। उसकी रोज की इन गतिविधियों को महेश जी अक्सर अपनी बालकनी से देखा करते और हमेशा उसे देख कुछ सोचते रहते हैं। विनी इस बात से बेखबर अपनी भागा-दौड़ की दिनचर्या में जी रही थी। महेश जी उम्र दराज थे अपनी पत्नी के साथ अकेले रहते थे। घर का सारा काम खुद करते थे यहां तक की पत्नी के कपड़े भी स्वयं ही धोते। उनकी पत्नी अभी दो महीने पहले पैरालिसिस की शिकार हो गई थी। बच्चे तो बाहर थे वह तो बस फोन पर ही हाल-चाल पूछकर इतिश्री कर लेते। बेचारे महेश जी एक औरत की भूमिका निभा रहे थे। शाम को जब वह टहल रहे थे तो उन्हें विनी आते हुए दिखाई दी। विनी का फोन कान पर लगा था।

वह अपनी गाड़ी रोकते समय बैलेंस खो बैठी यह देखते ही महेश जी ने लपककर उसकी मदद की ओर मुस्कुरा उठे। विनी उन्हें धन्यवाद देकर घर आ गई। पहली बार विनी ने महेश जी को देखा था वह तो इतनी व्यस्त रहती कि आसपास कौन रहता है। इसकी भी उसे जानकारी न थी। विनी की मां जब सब्जी लेने नीचे जाती तो रेखा उसे अर्थ पूर्ण दृष्टि से देख मुस्कुराती रहती । उसे कुछ समझ न आता इधर विनी और महेश जी अक्सर नीचे मिलते और विनी उनसे रोज थोड़ी बहुत बातचीत कर ऊपर आ जाती। यह सिलसिला काफी समय से चल रहा था रेखा की नजरें रोज अब इन दोनों की इन गतिविधियों पर रहने लगी।

एक दिन महेश बाबू ने उसे कुछ सामान लाने को कहा। विनी ने सहर्ष ही उनकी बात को मान देकर हां,कहकर चली गई। उस दिन बात आई गई हो गई। दूसरे दिन शाम विनी जब लौटी तो रेखा ने देखा कि एक सुंदर सा बुके और गिफ्ट गाड़ी की डिक्की से निकाल कर महेश जी को फोन लगाया। महेश जी भी तुरंत शर्ट के बटन लगाते हुए खुशी-खुशी तेज कदमों से विनी की ओर आए। यह सब देख रेखा ने सभी आस- पास की महिलाओं के कान भरने शुरू कर दिए और विनी को बदनाम करने लगी। इतनी सी छोकरी अपने पिता से भी बड़े उम्र के व्यक्ति से चक्कर चला रही है। यह बात अब धीरे-धीरे सारी मल्टी के लोगों में आग की तरह फैल गई। विनी की मां नीचे सब्जी लेने जाती तो सभी महिलाएं काना-फूसी करने लगती । विनी की मां को कुछ समझ नहीं आता। उस दिन तो रविवार था विनी बालकनी में बाल सुखा रही थी तभी उसने देखा कि कॉलोनी की महिलाएं नीचे एकत्र हो गई हैं और विनी की मां को नीचे आने के लिए आवाज दे रहे हैं थोड़ी देर में वहां कुछ बुजुर्ग भी एकत्र हो गए। विनी को समझ नहीं आया कि माजरा क्या है।
तभी नीचे से विनी को देख रेखा बोली- “अपनी मां को तो जरा नीचे भेज।
विनी मां से बोली- “मां तुम्हें नीचे बुला रहे हैं,सोसाइटी में कुछ घटित हुआ है क्या..? विनी ने सवालिया नजरों से मां की ओर देखते हुए पूछा।
बेटा पता नहीं कुछ काम होगा मैं आती हूं,तुम पापा का ख्याल रखना
कहते हुए विनी की मां नीचे आ गई।
रेखा उसे देखते ही चीखकर बोली- “विनी की मां अपनी लाडली को नीचे नहीं बुलाओगी पूरे कॉलोनी का माहौल खराब कर रखा है ।
हमारे भी बच्चे हैं इस बात का उन पर क्या असर होगा, कुछ पता है। विनी की मां सहम गई “क्या हुआ जो आप लोग इस तरह की बातें कर रहे हैं,
तुम क्या घर में आंखों पर पट्टी बांधकर रहती हो..?
जो समझती नहीं कि तुम्हारी बेटी क्या गुल खिला रही है।

कल तो मैंने सब अपनी आंखों से देखा है, मेरी आंखें धोखा नहीं खा सकती और मैं तो आए दिन इन दोनो को देखती रहती हूं।
कहते हुए महेश जी के घर की ओर देखने लगी।
उन्हें भी आवाज लगाकर नीचे बुलाया।
घबराए से महेश जी भी नीचे आ गए जब उन्हें अपनी और विनी के इस तरह के फालतू रिश्ते को लेकर कॉलोनी की महिलाओं का नजरिया पता चला तो वह चीख उठे बोले-“किसी मासूम लड़की को बदनाम करने से पहले सौ बार सोच लिया करो।
तभी रेखा हाथ मटकाते हुए बोली- “हां,हां क्या कल जो देखा वह झूठ था।
कल मैंने अपनी इन्हीं आंखों से देखा विनी तुम्हें गिफ्ट वह फूलों का गुलदस्ता दे रही थी।
विनी को जब यह बात पता चली कि नीचे चर्चा उसी के बारे में हो रही है तो भागती हुई नीचे आई बोली-“आंटी हर रिश्ते का एक ही मतलब नहीं होता।
कहते हुए उसकी आंखों में आंसू बह निकले महेश जी ने रेखा को क्रोध भरी नजरों से देखते हुए कहा- “हां, जो तुमने कल देखा था वह बिल्कुल सही था मैंने ही विनी से गिफ्ट और फूल मंगवाए थे।
कल शालू का बर्थडे था मैं अकेला रहता हूं और उसे अकेला छोड़ कर जा नहीं सकता, विनी को मैं रोज आते-जाते देखता था सोचता था कि यह रोज आती-जाती है कभी मेरा भी छोटा-मोटा काम कर देगी, यही सोच कर मैंने उससे बात शुरू की और वह भी मेरा मान रखते हुए सहर्ष मेरी मदद के लिए मान गई। आप अपनी गंदी सोच को सभी पर थोपने से पहले जांच परख लिया करो।
बेकार एक लड़की को बदनाम करने चली हो, तुम जैसी औरतें ही हैं जो समाज में जो होता नहीं है उस के बारे में भी मनगढ़ंत कहानियां बताकर फालतू की गॉसिप करके लोगों के बारे में बेकार की बातें फैलाती रहती हो। इतना सब हो जाएगा….यह सोच विनी रोने लगी।
तभी विनी की मां ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा- “बेटा किसी का सहारा बनकर जो लोग काम करते हैं गलत भी वही लोग सुनते हैं।

तुम तुम्हारा काम करते रहो, मैं तुम्हारे साथ हूं समाज के पास तो सिर्फ नजर है नजरिया नहीं।
तभी महेश जी ने विनी के सिर पर हाथ रखते हुए कहा- “तुम मेरी बेटी से भी बहुत छोटी हो।
आज रेखा अपने बनाए हुए बेमतलब के जाल में खुद ही फस कर शर्मिंदगी महसूस करने लगी। उसे महेश जी और विनी से माफी मांगने में भी झिझक महसूस हो रही थी।
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