गाजीपुर में इस तकनीक से हुई गेहूं की बुवाई, प्रति एकड़ 4 हजार और पानी की भी होगी बचत
ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. जलवायु परिवर्तन और मौसम के असमय बदलाव के कारण किसानों को दिन-प्रतिदिन नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अब इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिक भी जलवायु अनुकूल खेती की दिशा में काम कर रहे हैं। इस संदर्भ में मऊ के चवर् गांव में एक सकारात्मक बदलाव देखा जा रहा है, जहां के किसान पारंपरिक खेती के तरीकों से बाहर निकलकर जीरो टिलेज तकनीक अपना रहे हैं।
जीरो टिलेज (Zero Tillage) वह खेती की विधि है, जिसमें बिना खेत की जुताई किए सीधे बीज की बुवाई की जाती है। इस तकनीक से किसानों को न केवल पैदावार में वृद्धि हो रही है, बल्कि उनका खर्च भी कम हो रहा है। जीरो टिलेज तकनीक को अपनाने से प्रति एकड़ 4,000 रुपये तक की बचत हो रही है, साथ ही पानी की भी बचत हो रही है।
मौसम में अचानक बदलाव के कारण कृषि में असमय पानी की कमी या अधिक बारिश जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इस समस्या का समाधान जीरो टिलेज तकनीक में छिपा है। अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI), वाराणसी और कृषि विज्ञान केंद्र ग़ाज़ीपुर ने मिलकर इस तकनीक को प्रमोट किया है। इस विधि के तहत, गेहूं की बुवाई 15-20 दिन पहले की जा सकती है, जिससे पैदावार में होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सकती है।
जीरो टिलेज विधि से बुवाई करने पर गेहूं के पौधों की जड़ें अच्छी तरह से पकड़ बनाती हैं, जिससे पौधा ज़मीन पर गिरता नहीं है। इसके अलावा, इस विधि से मृदा की संरचना और उर्वरता बनी रहती है, जिससे पौधों की बढ़वार बेहतर होती है। धान की कटाई के बाद खेत में पड़े अवशेष गेहूं की फसल के लिए मल्च का काम करते हैं, जिससे पानी (नमी) का वाष्पीकरण कम होता है। ये अवशेष सड़ने से मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है। इस प्रक्रिया के चलते खेत में वर्षा होने पर पपड़ी नहीं पड़ती, जिससे फसल का अंकुरण भी प्रभावित नहीं होता।
जीरो टिलेज तकनीक से न केवल किसानों का खर्च और समय बचता है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है। कृषि विज्ञान केंद्र के डॉ. ओमकार सिंह के अनुसार, इस तकनीक से पराली जलाने की समस्या का भी समाधान होता है। इसके अलावा, यह तकनीक वातावरण में 135-150 किग्रा कार्बन डाइऑक्साइड की बचत करती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
अमरजीत जैसे किसानों ने इस तकनीक को अपनाकर खेती में एक नया बदलाव देखा है। जीरो टिलेज तकनीक के माध्यम से उनकी फसल की उपज बढ़ी है और साथ ही खेती के लिए अतिरिक्त खर्च और मेहनत में भी कमी आई है। इस विधि के तहत, गेहूं की बुवाई के लिए किसानों को खेत तैयार करने में कम समय और लागत लग रही है।
किसानों के लिए जीरो टिलेज तकनीक एक क्रांतिकारी कदम साबित हो रही है, जिससे न केवल उनकी खेती की लागत कम हो रही है, बल्कि यह तकनीक जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी मददगार साबित हो रही है। अगर इस तकनीक को व्यापक रूप से अपनाया जाए, तो किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है और कृषि क्षेत्र में स्थिरता आ सकती है।