कहानी: तुम्हारी वैदेही
कहा जाता है जब दर्द गहरा होता है तो आँसू बिना रोये, बिना आबाज के ही बहने लगते हैं. कुछ पल पहले जिस मेसेज के आने से अर्जुन की आंखे खुशी से चमकी थी, वही आंखे मेसेज पड़ने के बाद नम थी.
बहुत दिनों से एक बात कहना चाह रहा था, अर्जुन ने फिल्मी अंदाज में वैदेही का हाथ अपने हाथ में लिए कहा. अर्जुन कुछ और आगे कह पाता इससे पहले ही वैदेही ने मज़ाकिया लहजे में कहा, अगर एक स्मार्ट लड़की को कुछ कहना हो, तो लड़के के लिए सबसे जरूरी बात आई लूव यू ही होती है. और वह तो तुम तीन साल पहले ही बड़े अच्छे से कह चुके हो. अर्जुन बालों में हाथ घुमाते और गाल एक हाथ से खीचते हुए वैदेही आगे कहती हैं, आई लव यू ही क्या तुम उससे भी ज्यादा कह चुके हो.
वैदेही के बातों को मानो अनसुना सा करते हुये अर्जुन अपने में ही कुछ खो सा जाता है, मानों वह अपने सवालों का खुद ही जबाब तलाश कर रहा हो. अर्जुन के फिल्मी हीरो वाले सीरियस पोज को देखते हुए वैदेही कहती है, ऐसा क्या हुआ तुम तो चुप्पी ही साध गए. चलो बताओ क्या कहना चाहते हो?
अब वैदेही को सीरियस होते देख अर्जुन ने तुरंत ही बात को बदलते हुये कहता है चलो रहने दो फिर बाद में बताउगा, इतनी भी सीरियस होने की बात नहीं है. अर्जुन कुछ और कहता इससे पहले ही वैदेही बोलती है, इट इज नोट गुड, तुम हमेशा ऐसे ही करते हो. जब कुछ बताना नहीं होता तो कोई बात चालू ही क्यों करते हो.
अब वैदेही के मूड को बदलते हुये देखकर अर्जुन कहता है बिना सुने तो तुम इतनी नाराज हो रही हो सुनकर न जाने क्या करोगी?
तुरंत जबाब देते हुये वैदेही कहती है, यदि अच्छी बात होगी तो प्यार भी मिल सकता है और कुछ बकबास हुयी तो एक चाटा भी. वैदेही के मूड को कुछ नॉर्मल देख अर्जुन कहता है, सच में कहूँ जो मैं कहना चाहता हूँ.
वैदेही – हाँ कहो ना, क्या बात है.
अर्जुन – लेकिन एक शर्त है, अगर मंजूर हो तो बात शुरू करूँ.
वैदेही – अगर फालतू की कोई शर्त है तो बिलकुल नहीं मंजूर.
अर्जुन – यार हद है, एकदम छोटी सी शर्त है.
वैदेही – चलो मंजूर, बोलो अब.
वैदेही की शर्त बाली बात को मानने के बाद अर्जुन मन ही मन अब यह सोच रहा था कि वैदेही को यह बात कैसे कहूँ, जिससे वह मेरे मन में जो है वह समझ सके. क्योंकि शब्दों की कुछ सीमाएं तो हमेशा ही होती हैं, शब्द हमेशा आपकी भावनाओं को पूर्णता में अभिव्यक्त नहीं कर पाते. व्यक्ति चाहे जितना सोच ले, पहले से तैयारी कर ले, लेकिन जो वह सोचता है उसको शब्दों के जरिए नहीं बता सकता.
अर्जुन की कुछ पल की चुप्पी को देख वैदेही के मन में भी सैकड़ों बातों आने-जाने लगी, जैसे कोई रीमोट से चैनल बदल रहा हो. इस बात को कहते हुये अर्जुन भी कुछ सहज महसूस नहीं कर रहा था, इतना नर्वस तो वह उस समय भी नहीं था जब उसने वैदेही को प्रपोज किया था. एक छोटी खामोशी को तोड़ते अर्जुन वैदेही के हाथ को पकड़ते हुये कहता है, शर्त के अनुसार तुम आज इस बात पर कोई रिएक्ट नहीं करोगी, आज रात के बाद कल हम इस पर बात करेंगे.
वैदेही – ओके, अब आगे भी तो कुछ बोलो.
हाथ में हाथ लिए आसमान को देखते हुये अर्जुन कहता है मैंने पिछले कुछ महीनों से महसूस किया है कि हम मिलने पर बहुत बाते करने लगे हैं, और कभी-कभी तो ये बाते हमारी तुम्हारी न होकर किसी और की ही होती हैं. मिलने पर इतनी बाते तो हम पहले कभी नहीं करते थे. और पहले जो बाते होती भी थी वह मेरी और तुम्हारी ही थी. मुझे तो लगता है वैदेही हमारे अंदर कुछ बदल सा गया है. अब तो कभी-कभी हमारा झगड़ा भी होने लगा है, भले अभी यह ज्यादा लंबा नहीं होता.
वैदेही के चेहरे के हावभाव कुछ बदलते हुये देखकर भी अर्जुन अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये कहता है, अगर हम अपने इस प्यार को यूं ही आगे इसी सिद्दत से जारी रखना चाहते हैं. तो हमें प्यार के इस मोड पर कुछ समय के लिए दूर हो जाना चाहिए. लड़ने झगड़ने के बाद तो सभी अलग होते हैं… ब्रेकअप करते हैं. हम दोनों कुछ एकदम नया करते हैं. तुम जानती हो रूटीन लाइफ से में कुछ बोर सा हो जाता हूँ, इसलिए हम कुछ एक्साइटिंग कुछ हटके करते हैं.
वैदेही – यू मीन ब्रेक-अप, मतलब तुम मुझसे अलग होने कि बात कह रहे हो, और वो भी ब्रेकअप विदाउट रीज़न.
अर्जुन – यार मैंने कहा था, कि आज रिएक्ट नहीं करोगी, प्लीज कल बात करेंगे ना.
वैदेही – लेकिन तुम्हें पता है तुम क्या कह रहे हो?
इतना कहते की वैदेही की पलके आंसुओं से भारी होने लगी, उसे समझ ही नहीं आ रहा था. वह क्या कहे, और ऐसा अचानक क्या हो गया जो अर्जुन ऐसा कह रहा है.
अर्जुन – हाँ बिलकुल मैं सोचकर यह बात तुमसे कह रहा हूँ, और वैदेही प्यार में प्रपोज, एक्सेप्ट, रोमांस, ब्रेक-अप के अलाबा भी बहुत कुछ होता है. हाँ एक बात और मैं तुमसे कह दूँ तुम ये जो ब्रेक-अप जैसी फालतू बात कर रही हो मेरा मतलब बो बिलकुल भी नहीं है.
अब समझ में आने की जगह अर्जुन कि बाते और अबूझ पहेली की तरह हो रही थी, वैदेही मन ही मन सोचे जा रही थी, अगर ब्रेक-अप नहीं तो क्यों यह दूर जाने की बात कह रहा है. वैदेही के कंधे पर हाथ रखते हुए अर्जुन कहता है, पता नहीं तुम अभी मेरी बात समझी या नहीं, पर अब जो मैं कह रहा हूँ, उस पर तुम कल ध्यान से खूब सोचकर विचार कर आना.
वैदेही के बालों को सहलाते हुये अर्जुन अपने मन में उठे प्रश्नों को वैदेही के सामने रखता है. वैदेही याद करो प्यार की शुरुआत में फोन पर हम घंटों बाते करते थे, पर आज फोन पर हम कितनी बात करते हैं? पहले मिलने पर क्या हमारे पास इतनी बाते थी, जितनी आज हम करते हैं? और आजकल हमारी बाते मेरी तुम्हारी ना होकर किसी और टॉपिक पर ही क्यों होती हैं? और दूसरे की बातों में हम कभी-कभी वेवजह झगड़ भी लेते हैं.
अर्जुन की यह सारी बाते अभी भी वैदेही के समझ के बाहर थी, अब इसी कनफ्यूज से मन और दिमाग की स्थिति के साथ कुछ मज़ाकिया अंदाज में वैदेही कहती है, लोग सच ही कहते हैं साइकोलोजी और फिलोसफी पढ़ने-पढ़ाने वाले लोग आधे खिसक जाते हैं. और तुमने तो दोनों ही पढ़े हैं, इसलिए लग रहा है, कि तुम तो पूरे….
अर्जुन – अब तुम्हें जो कहना है वह कहो या समझो पर कल जरूर मेरी इन बातों को सोचकर आना .
आज घर जाते हुए भले दोनों हाथों में हाथ लिए चल रहे थे, पर दोनों खोये हुये थे किसी और ही दुनिया में. वैदेही चलते-चलते सोचे जा रही थी कि अर्जुन की तो आदत ही है, इस टाइप के इंटेलेक्चुयल मज़ाक करने की, लेकिन दूसरे ही पल वह यह भी सोच रही थी कि छोड़ने या अलग होने की बात तो आजतक कभी अर्जुन ने नहीं की है. इसलिए वह ऐसा मजाक तो नहीं करेगा. मन की उधेड़बुन तो नहीं थमी, लेकिन चलते-चलते पार्किंग स्टैंड जरूर आ गया.
जहां से दोनों को अलग होना था. दोनों ने एक दूसरों को सिद्दत भरी निगाहों और प्यार के साथ अलविदा किया और अपनी-अपनी गाड़ी को स्टार्ट करते हुये, अपने-अपने रास्ते पर चल दिए.
भले अर्जुन की बातों से वैदेही ज्यादा उदास और सोचने को मजबूर थी, पर अर्जुन भी कम बैचेन नहीं था. इसलिए ही तो कहते हैं कि अगर हम किसी के मन में अपनी बातों या कामों से उथल-पुथल मचाते हैं तो उसका प्रभाव हम पर भी कुछ ना कुछ जरूर ही होता है. हम चाहे कितने प्रबल इच्छाशक्ति वाले क्यों ना हों.
बारह घंटे के बाद स्माइली इमोजी और गुड्मोर्निंग के साथ अर्जुन का मेसेज वैदेही के मोबाइल पर आता है. बताओ कहाँ मिलना है? और आई होप तुमने जरूर सोचा होगा. वैदेही भी कनफ्यूज इमोजी के साथ गुड्मोर्निंग भेजती है और लिखती है. कल कहानी तुमने ही चालू की थी, तो आज तुम ही बताओ कहा खत्म करोगे. रिप्लाई करते हुये अर्जुन कहता है आज संडे भी है तो यूनिवर्सिटी के उसी पार्क में मिलते हैं जहां पहली बार मिले थे.
पार्क में अर्जुन हमेशा की तरह टाइम से पहले बैठा मिलता है. वैदेही भी पार्क के गेट से ही अर्जुन को देख लेती है मानों पार्क में उसके अलावा कोई और हो ही ना.
अर्जुन कुछ बोलता उससे पहले ही वैदेही कहती है तुमने जो भी कहा था उस पर खूब सोचा और उससे आगे-पीछे भी बहुत कुछ सोचा. हाँ तुम सही कहते हो पहले हम फोन पर ज्यादा बाते करते थे और मिलने पर हमारे पास बाते कम और अहसास ज्यादा थे. एक-दूसरे से मिलने पर बातों की जरूरत ही महसूस नहीं होती थी. एक दूसरे की मौजूदगी ही सब कह देती थी. और यह भी सही है पिछले कुछ दिनों से हम लोग एक दूसरे की बात या विचार का उतना सम्मान नहीं करते जैसा पहले था. पहले मुझे तुम्हारी गलत बाते भी सही लगती थी और अब कभी-कभी सही बात पर भी हम वेवजह बहस करने लगते हैं.
वैदेही कुछ और कहती इसी बीच में अर्जुन कहता है, तो बताओ ऐसा क्यों है?
वैदेही- अरे अब मैंने फिलोसफी थोड़े पढ़ी है, मैंने तो आर्किटेक्ट पढ़ी है, और आर्किटेक्ट में पहेलियाँ नहीं सीधे-सीधे पढ़ाई होती है. इसलिए तुम ही बताओ ऐसा क्यों है?
अर्जुन कुछ बोलता इससे पहले ही वैदेही कहती है, जो तुमने कहा था वह तो सोचा ही साथ ही मैंने यह भी सोचा कि अपने रिलेशन के पिछले तीन सालों में वैसा व्यवहार एक दूसरे से बिल्कुल नहीं किया, जो किसी प्यार करने वालों में एक साल के अंदर ही होने लगता है, एक भी बार हम दोनों ने एक-दूसरे से इरीटेट होकर ना फोन काटा ना ही स्विच आफ किया. न तुम कभी मुझसे गुस्सा हुये और न ही मैं तुमसे, फिर ना जाने तुम क्यों ब्रेकअप ओह सॉरी-सॉरी दूर होने की बात कर रहे हो.
वैदेही की सारी बातों को हमेशा की तरह उसी तल्लीनता से सुनकर अर्जुन कहता है, वैदेही तुम जो कह रही हो मेरे मन भी यही सब बाते आई थी. तुमसे अलग होने की बात करने से पहले. मैं भी यही सोचता रहा कि अगर दो प्यार करने वाले मिलने पर ज्यादा बात करने लगे हैं, थोड़ा सा बहस करने लगे, थोड़ा सा लड़ ले, तो इसमें क्या गलत है.
पर वैदेही मुझे लगता है जब अहसास कुछ कम होने लगते हैं तब शब्दों की जरूरत ज्यादा पड़ती है, और हम दोनों क्या, अगर किसी भी संबंध में सिर्फ शब्द ही रह जाए तो मान लेना चाहिए संबंध या तो खत्म हो गया है या फिर अगर है भी तो बस औपचारिकता भर है, ऐसे संबंध में आत्मा या जीवंतता नहीं है.
आज हमारे रिलेशन में भले कोई बड़ी समस्या नहीं है पर मुझे लगता है ये छोटी-छोटी नोकझोक ही आगे चलकर बड़ी प्रोबलम बन जाती हैं. अर्जुन अपनी बातों को और समझाने का प्रयास करते हुये कहता है, वैदेही मैंने कई लोगों के प्यार के सफर में देखा हैं, पहले छोटी मोटी नोकझोक, फिर बेमतलब की बहसे, फिर आरोप-प्रत्यारोप और फिर चुप्पी, और अंत की चुप्पी बहुत ही दर्द देती है.
अर्जुन कुछ और कहता उसके बीच में ही वैदेही कहती है तो तुम्हारा मतलब है हमारे बीच अब अहसास नहीं बचा या प्यार नहीं है.
अर्जुन – नहीं नहीं मैंने ऐसा कब कहा कि हमारे बीच प्यार नहीं. बल्कि मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि जो हमारे बीच अहसास है, प्यार है वह बरकरार रहे. वैदेही अभी बहुत कुछ है हमारे बीच जो हमें एक दूसरे की ओर आकर्षित और रोमांचित करता है. मैं यही चाहता हूँ कि यही अहसास बने रहें.
वैदेही – तो अब तुम्ही बताओ कि हमें क्या करना चाहिए?
अर्जुन – हमें कुछ दिनों या महीनों के लिए दूर हो जाना चाहिए ताकि फिर से हम एक दूसरे से कुछ अजनबी हो सके, कुछ दिनों कि दूरी फिर से वह आकर्षण या कशिश पैदा करेगी, जहां शब्दों की फिर कम ही जरूरत होगी. और जितनी बात हम दोनों के फिर से मिलने पर होगी वह मेरी और तुम्हारी ही होगी, क्योंकि कुछ दिनों का अजनबीपन से बहुत कुछ हम दोनों के पास होगा जो हम एक-दूसरे से सुनना और बताना चाहेंगे.
वैदेही – ठीक है मान लिया तुम चाहते हो कि हँसते-हँसते कुछ समय के लिए हम दूर हो जाए, एक अच्छे रिलेशन को और मजबूर करने के लिए, पर ये होगा कैसे?
अर्जुन – अरे यार तुम आर्किटेक्ट में डिप्लोमा करने के लिए जो मूड बना रही हो, उसे अहमदाबाद में जॉइन करो, और हो जाओ अजनबी. और फिर मिलते हैं कुछ नए-नए से होकर, विथ न्यू एक्साइटमेंट के साथ.
वैदेही – थोड़े-थोड़े अजनबी बनने के चक्कर में कहीं इतनी दूर नहीं हो जाए कि फिर कभी मिल ही ना सकें.
अर्जुन – अगर कुछ दिनों कि दूरी हमें अलग कर देती है तो फिर तो हम दोनों को ही मान लेना होगा की हमारा रिश्ता उतना मजबूत था ही नहीं, और ये दूरी तोड़ने या दूर जाने के लिए नहीं बल्कि और नजदीक आने के लिए है.
वैदेही अर्जुन के इस प्रपोज़ल को दिल से स्वीकार कर पायी थी या नहीं, पर अर्जुन के इस दिमागी फितूर को मानते हुए अहमदाबाद में उसने अपना कोर्स जॉइन कर लिया. वैदेही नयी जगह, नए दोस्तों और पढ़ाई में कुछ व्यस्त से हो गयी थी, पर रात में अर्जुन की यादें हमेशा उसके साथ रहती थी.
अर्जुन और वैदेही को दूर हुए अभी दो महीने ही तो हुये थे पर अर्जुन का 6 महीने बाद मिलने का वादा जबाब देने लगा. छः महीने के पहले न फोन करने और न ही मिलने वाली अपनी ही बात को ना मानते हुए, अर्जुन ने आज वैदेही को मोबाइल पर मेसेज भेजा.
कुछ घंटे के इंतजार के बाद उसने फिर मेसेज भेजा, पर पहले मेसेज की तरह ही दूसरा मेसेज न तो रिसीव हुआ और न ही कोई जबाब आया.
मेसेज का जबाब न आने पर अर्जुन की बैचेनी बढ़ने लगी थी, बढ़ती बैचेनी ने अर्जुन के मेसेज की संख्या और लंबाई को भी बड़ा दिया. और अब मेसेज क्या वैदेही ने तो कॉल भी रिसीव नहीं किया था.
अब अर्जुन के मन में सौ सवाल उठ रहे थे, क्या वैदेही गुस्सा हो गयी? कहीं वैदेही को कुछ हो तो नहीं गया? या कहीं कोई और बात तो नहीं? अर्जुन के मेसेज और कॉल करने और वैदेही के जबाब न देने का सिलसिला लगभग 15-20 दिन चला. अंततः अर्जुन ने ठान लिया की वह अब खुद ही अहमदाबाद जाएगा.
माना जाता है कि स्त्री के व्यक्तिव की यह खूबी और पुरुष के व्यक्तिव की यह कमी होती है, जिसके कारण पुरुष अपनी ही सोची बात, विचार या निर्णय पर अक्सर कायम नहीं रह पाता, जबकि एक स्त्री किसी दूसरे की बात, विचार या निर्णय को उतनी ही सिद्दत से निभाने का सामर्थ्य रखती है, जैसे वह विचार या निर्णय उसने ही लिया हो.
जिस दिन अर्जुन को अहमदाबाद जाना था उसके एक दिन पहले अचानक रात में अर्जुन के मोबाइल पर वैदेही के आने वाले मेसेज की खास रिंगटोन बजती है, इतने लंबे इंतजार के बाद वैदेही के मेसेज आने से मोबाइल की स्क्रीन के साथ अर्जुन की आंखे भी चमक रही थी.
पर मेसेज में न जाने ऐसा क्या लिखा हुआ था, जैसे-जैसे अर्जुन मेसेज की लाइने पढ़ रहा था, पढ़ने के साथ उसके चेहरे की रंगत भी उड़ती जा रही थी.
मेसेज पढ़ने के बाद अर्जुन वैदेही से पहली बार मिलने से लेकर उस अंतिम मुलाक़ात को याद कर रहा था, बेड पर लेटकर एकटक ऊपर की ओर देखते हुये अर्जुन की आँखों से नमी झलकने लगी थी. कहा जाता है जब दर्द गहरा होता है तो आँसू बिना रोये, बिना आबाज के ही बहने लगते हैं. कुछ पल पहले जिस मेसेज के आने से अर्जुन की आंखे खुशी से चमकी थी, वही आंखे मेसेज पड़ने के बाद नम थी. वैदेही के मेसेज को कई बार पढ़ने के बाद भी अर्जुन को यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब सही है…
…..डियर अर्जुन इतने दिनों से तुम मेसेज और कॉल कर रहे हो पर मैंने कोई जबाब नहीं दिया उसके लिए सॉरी… मैं तुमसे बिल्कुल भी गुस्सा नहीं हूँ, पर क्या करूँ तुमने जो कहा था मैं वही तो कर रही हूँ. और तुम जानते हो तुम्हारी हर खवाहिस को मैं दिल से पूरा करने की कोशिश करती हूँ. सच अर्जुन अभी भी मुझे पता नहीं कि दूर होने के लिए तुमने यह मजाक में कहा था, या फिर किसी और वजह से, हो सकता है मेरे कैरियर बनाने के लिए तुमने ऐसा किया हो, पर अर्जुन यह सच है कि मैं तुमसे दूर होने की सोच भी नहीं सकती थी.
अर्जुन पिछले दिनों एक बात मेरे मन में रोज ही आती है, अभी तो हम सिर्फ प्यार में थे और शादी जैसा कोई बंधन भी नहीं था, पर तुम्हारे रूटीन लाइफ से बोर हो जाने के कारण हम कुछ दिनों के लिए दूर हो गए. पर अर्जुन यदि शादी के बाद भी तुम रूटीन लाइफ से बोर होने लगे तब क्या होगा. अर्जुन हम जैसी लड़कियों का गुण कहें या मजबूरी हम तो दिल से जिस कन्धें और हाथ को एक बार थाम लेते हैं, उसे ही ज़िंदगी भर के लिए अपना साहिल समझ लेते हैं, लड़कियों की ज़िंदगी में खासकर इंडिया में रूटीन लाइफ से बोर होने का आसन नहीं होता है.
इसलिए मेरे और तुम्हारे बीच की इस कुछ दिनों की दूरी को फिलहाल अपना ब्रेक-अप ही समझ रही हूँ. हाँ ज़िंदगी बहुत लंबी है इसलिए आगे का मुझे भी कुछ पता नहीं क्या होगा? दुआ करती हूँ हम दोनों की ज़िंदगी में अच्छा ही हो. अब मेसेज और कॉल नहीं करना क्योंकि तुम्हारे सवालों और बातों का मेरे पास इस मेसेज के अलावा कोई और जबाब नहीं है,
लव यू…तुम्हारी वैदेही.- स्वतन्त्र रिछारिया