कहानी: टीनऐजर्स लव
प्यार, आकर्षण और वासना के बीच एक महीन सीमारेखा होती है. कोई इस की सीमाएं लांघता है तो कोई इस में उलझ जाता है. अस्मिता भी इसी के दरम्यान कहीं उलझ सी गई थी.
‘‘आसमानी ड्रैस में बड़ी सुंदर लग रही हो, अस्मिता. बस, एक काम करो जुल्फों को थोड़ा ढीला कर लो.’’ अस्मिता कोचिंग क्लास की अंतिम बैंच पर खाली बैठी नोट बुक में कुछ लिख रही थी कि समर ने यह कह कर उन की तंद्रा तोड़ी. यह कह कर वह जल्दी ही अपनी बैंच पर जा कर बैठ गया और पीछे मुड़ कर मुसकराने लगा. किशोर हृदय में प्रेम का पुष्पपल्लवित होने लगा और दिल बगिया की कलियां महकने लगीं. भीतर से प्रणयसोता बहता चलता गया. उस ने आंखों में वह सबकुछ कह दिया था जो अब तक पढ़ी किताबें ही कह पाईं.
अस्मिता इंतजार करने लगी कि ब्रैक हो, समर बाहर आए और मैं उस से कुछ कहूं. आधे घंटे का समय एक सदी के बराबर लग रहा था. ‘क्या कहूंगी? शुरुआत कैसे करूंगी? जवाब क्या आएगा,’ ये सब प्रश्न अस्मिता को बेचैन किए जा रहे थे. कुछ बनाती, फिर मिटाती. मन ही मन कितने ही सवाल तैयार करती, जो उसे पूछने थे और फिर कैंसिल कर देती कि नहीं, कुछ और पूछती हूं. घंटी की आवाज अस्मिता के कानों में पड़ी. जैसे मां की तुतलाती बोली सुन कर कोई बच्चा दौड़ आता है, वह तत्क्षण क्लासरूम से बाहर आ गई. सोच रही थी कि वह अकेला आएगा. मगर हुआ इच्छा और आशा के प्रतिकूल. वह अपने दोस्तों से बतियाते हुए क्लासरूम से बाहर निकला. समर दोस्तों की टोली में बैठा गपें मार रहा था और चोर नजरों से उसे अकेला देखने की कोशिश भी कर रहा था. घर जाने का समय हो रहा था और आशाइच्छा धूमिल हो रही थी.
कहते हैं न, जब सब रास्ते बंद हो जाते हैं, तब कोई न कोई रास्ता अवश्य निकलता है. अस्मिता किसी काम से अकेली क्लास में आई और समर इसी ताक में था. अस्मिता के पास मात्र 2 मिनट का समय था और कहने को ढेर सारी बातें. उस ने समर के पास आने पर कहा, ‘‘तुम भी न, बहुत स्मार्ट हो.’’ समर ने थैंक्स कहते हुए अस्मिता की हथेली के पृष्ठ भाग पर अपने हाथ से स्पर्श किया. फिर धीरेधीरे उस की पांचों उंगलियां अस्मिता की उंगलियों में समा चुकी थीं. यह थी अस्मिता के जीवन की प्रथम प्रणय गीतिका. जीवन का मृदुल वसंत प्रारंभ हो चुका था. उन दोनों ने एकदूसरे को जी भर कर देखा.
तभी अस्मिता की कुछ सहेलियां क्लासरूम में आ गईं. प्रेममयी क्षणों के चलते दोनों को न ध्यान रहा, न कोई भान. वे उन दोनों की यह हरकत देख कर मुसकराईं और बाहर चली गईं. स्कूल की छुट्टी हुई. अस्मिता घर आ गई. रातभर सो नहीं पाई, करवटें बदलती रही. कब सुबह हो गई, पता ही न चला. सुबह फिर तैयार हो, स्कूल चली गई. उस दिन समर भी जल्दी आ गया था. अस्मिता ने ध्यान से समर की तरफ देखा. समर ने स्कूलबैग क्रौस बैल्ट वाला डाला हुआ था, जोकि किसी बदमाश बच्चे की भांति इधरउधर हो रहा था. ‘‘हैलो,’’ समर ने अन्य लोगों की नजर से बचते हुए अस्मिता से कहा.
‘‘हाय समर, कैसे हो?’’ उस ने जवाब के साथ ही समर से प्रश्न किया. ‘‘मैं ठीक हूं और तुम से कुछ कहना चाहता हूं. क्या कह सकता हूं?’’
‘‘बिलकुल,’’ अस्मिता समर से मन ही मन प्यार करने लगी थी. कच्ची उम्र में ही उस ने समर को अपना सबकुछ मान लिया था. ‘‘क्या तुम्हारा मोबाइल नंबर मिल सकता है?’’ समर ने संकोच करते हुए कहा.
‘‘ओह हां, अच्छा, तो क्या करोगे नंबर का?’’ अस्मिता ने जानबूझ कर अनजान बनते हुए कहा. ‘‘मुझे तुम से कुछ कहना है,’’ समर ने कहा.
‘‘ओके, लिखो…97….’’ अस्मिता ने नंबर दे दिया. ‘‘थैंक्स.’’
एकदूसरे को देखते, हंसतेमुसकराते समय निकल रहा था जैसे मुट्ठी में से रेत देखते ही देखते उंगलियों के बीच की जगह से निकल जाती है. दोनों को ही छुट्टी होने की अधीर प्रतीक्षा थी. समर तो मन ही मन योजना बना रहा था…‘12 बजे छुट्टी होगी, 1 बजे यह घर पहुंचेगी, 2 बजे तक फ्री होगी और मुझे ठीक ढाई बजे कौल करना होगा.’ उस का दिमाग तेजगति से काम कर रहा था जैसे मार्च में अकाउंटैंट का दिमाग किया करता है. आखिर ढाई बज ही गए. समर ने बिना क्षण गंवाए, मोबाइल उठाया और अस्मिता का नंबर डायल किया.
पहली बार में तो अस्मिता ने कौल काट दी. फिर मिस्डकौल की. सामान्य औपचारिक बातचीत के बाद समर गंभीर मुद्दे पर आना चाहता था. शायद अस्मिता भी यही तो चाहती थी. ‘‘क्या तुम मुझ से इसी तरह रोज बात करोगी?’’ समर ने पूछा.
‘‘किसी लड़की के भोलेपन का फायदा उठा रहे हो?’’ अस्मिता ने जान कर प्रतिप्रश्न किया. ‘‘नहींनहीं, ऐसे ही, अगर तुम्हें उचित लगे तो,’’ समर ने शराफत दिखाते हुए कहा.
रुकरुक कर दिन में 5-6 बार बातें होने लगीं. समर कभी मिस्डकौल करता तो कभी जोखिम उठाते हुए सीधा कौल कर देता. दिन बीतते गए, बातें बढ़ती गईं और उन दोनों के संबंधों में प्रगाढ़ता आती गई. हंसीमजाक, स्कूल की बातें, दोस्तोंसहेलियों के किस्से उन के विषय रहते थे. वे स्कूल में बहाना खोजते ताकि एकांत में बैठ कर प्यारभरी बातें कर सकें. रास्ते सुहाने होते गए, हलके स्पर्श में मिठास का एहसास होता.
एक दिन आया जब उन के प्रेम का जिक्र क्लास के हर स्टूडैंट की जबां पर तो था ही, टीचर्स के बीच में भी बात फैल गई और प्रधानाचार्य ने दोनों को स्टाफरूम में बुला कर ऐसी हरकतों के दुष्परिणामों से अवगत करवाया. उन दोनों ने भविष्य में इस प्रकार की गलती दोहराने की प्रतिबद्घता व्यक्त कर पीछा छुड़ा लिया. अब लगभग सब लोग उन के बीच का सबकुछ जान चुके थे. यह वह वक्त था जब अर्धवार्षिक परीक्षाएं सिर पर थीं. दोनों को ही किताब खोले महीनों हो गए थे. अस्मिता अपनी बौद्धिकता के अहं में थी और समर अपने बौद्धिक होने के वहम में.
एक रोज फोन पर समर कुछ उदास आवाज में बोला, ‘‘क्या मैं पास हो सकूंगा? मैं ने पढ़ा तो कुछ नहीं. तुम तो फिर भी होशियार हो, मेरा क्या होगा?’’ ‘‘सब ठीक होगा, क्लास में तुम से कमजोर भी बहुत हैं,’’ अस्मिता ने उसे ढांढ़स बंधाते हुए कहा.
‘‘मैं क्या करूं बताओ? तुम से बात किए बिना एक पल भी नहीं रहा जाता. हर बार मोबाइल उठा कर देखता हूं कि कहीं तुम्हारा मैसेज या कौल तो नहीं आई, अस्मिता.’’ ‘‘मेरा भी यही हाल है. सभी सखीसहेलियों, परिजनों के इतर जीवन अब सिर्फ तुम पर केंद्रित हो गया है. मेरी हर कल्पना, हर सपने का प्रधान किरदार तुम ही हो, समर. मैं इन सभी चीजों को ले कर मजाक में थी. मगर अब यह बेचैनी बताती है, छटपटाहट बताती है कि दिल पर अब मेरा बस नहीं रहा. अब मैं तुम्हारी हो गई हूं. पर क्या वह सब संभव है? मैं भी न, क्याक्या बकती जा रही हूं.’’
दिन बीतते गए, फोन पर उन की बातें चलती गईं. ‘‘कहीं मिलते हैं, कुछ घंटे साथ बिताते हैं, अब सिर्फ बातों से मन नहीं भरता, अस्मिता.’’ अब समर कभीकभी अस्मिता पर, घर से बाहर मिलने पर भी जोर डालने लगा.
एक दिन निश्चय किया कि कहीं एकांत में मिलते हैं. लेकिन कहां? यह प्रश्न था कि कहां मिला जाए. परेशानी को दूर किया अस्मिता की सहेली दीपिका ने. उसी ने रास्ता सुझाया. दीपिका ने कहा, ‘‘मैं अपनी मम्मी को अपनी बहन के साथ मूवी देखने के लिए भेज दूंगी. उन लोगों के जाते ही तुम दोनों मेरे फ्लैट में आ जाना. मैं बाहर से ताला लगा कर चली जाऊंगी. और ठीक 2 घंटे बाद आ कर ताला खोल दूंगी. अगर कोई आएगा भी तो समझेगा कि घर में कोई नहीं है. देख अस्मिता, तुझे समर के साथ समय बिताने का इस से अच्छा कोई मौका नहीं मिल सकता. तू और समर वहां खूब मस्ती करना.’’ समर को भी इस में कोई आपत्ति न थी. 2 दिन बाद मिलने का कार्यक्रम तय कर लिया गया. मौसम साफ था, हवा में संगीत था, पंछियों की कोमल आवाज मनमस्तिष्क में नव स्फूर्ति भर रही थी. नीयत स्थान और निश्चित समय. समर का पहला और आखिरी काम जो पूर्व तैयारी के साथ संपन्न होने जा रहा था वरना अब तक तो उस ने परीक्षा तक के लिए कोई तैयारी नहीं की थी.
तय दिन तय समय पर, अस्मिता समर के साथ दीपिका के फ्लैट पर पहुंची. प्लान के मुताबिक दीपिका ने अपनी मम्मी और बहन को नई मूवी देखने के लिए भेज दिया. वे दोनों फ्लैट के अंदर और बाहर ताला. लेकिन उन की ये सब गतिविधियां फ्लैट के सामने दूसरे फ्लैट में रहने वाले एक अंकल खिड़की से देख रहे थे. उन्हें शायद कुछ गड़बड़ लगा. वे अपने फ्लैट से नीचे उतर कर आए और कालोनी के 2-3 लोगों को एकत्र कर धीरे से बोले, ‘‘यह जो फ्लैट है, अरे वही सामने, बख्शीजी का फ्लैट, उस में एक लड़का और एक लड़की बंद हैं.’’
‘‘क्या मतलब?’’ दूसरे फ्लैट वाले अंकल ने पूछा. ‘‘मतलब… बख्शीजी की लड़की तो बाहर से ताला लगा गई है पर अंदर लड़कालड़की बंद हैं.’’
‘‘अरे, छोड़ो यार, हमें क्या मतलब. इस में नया क्या है? आजकल तो यह आम बात है,’’ दूसरे फ्लैट वाले अंकल टालते हुए बोले. ‘‘अमा यार, कैसी बात कर रहे हो? अपनी आंखों के सामने, यह गलत काम कैसे होने दूं्?’’
‘‘गलत?’’ ‘‘हां जी, मैं ने खुद अपनी आंखों से देखा है दोनों को फ्लैट के अंदर जाते हुए.’’
तभी पड़ोस की एक आंटी भी आ गई, ‘‘क्या हुआ भाईसाहब?’’ ‘‘अरे, सामने बख्शीजी के फ्लैट में एक लड़कालड़की बंद हैं,’’ पहले वाले अंकल बोले.
‘‘तो ताला तोड़ दो,’’ महिला ने मशवरा दिया. ‘‘नहीं, यह सही नहीं है, जिस का मकान है, उसे बुलाओ,’’ दूसरे अंकल ने सलाह दी.
शोर बढ़ता गया. लोग इकट्ठे होते चले गए. तभी कहीं से पुलिस का एक हवलदार भी पहुंच गया. लोगबाग दरवाजा पीटने लगे. ‘‘बाहर निकलो, दरवाजा खोलो…’’ बिना यह सोचेसमझे कि ताला तो बाहर से बंद है, तो दरवाजा खुलेगा कैसे? प्लान के मुताबिक, दीपिका समय पूरा होने से 10 मिनट पहले वहां पहुंच गई, लेकिन भीड़ को देख कर एक बार वह भी घबरा गई. उस ने लोगों से वहां इकट्ठे होने का प्रयोजन पूछा और गुस्से में बोली, ‘‘मेरा फ्लैट है, मैं जानूं. आप लोगों को क्या मतलब?’’
हवलदार ने दीपिका की हां में हां मिलाई और भीड़ से जाने के लिए कहा. और फिर दीपिका के पीछेपीछे वह भी सीढि़यां चढ़ने लगा. थोड़ी देर बाद हवलदार फ्लैट से वापस आया और बोला, ‘‘फ्लैट में तो कोई नहीं था. किस ने कहा कि वहां लड़कालड़की बंद हैं. फालतू में इतना शोर मचा दिया.’’ सामने के फ्लैट वाले अंकल चुपचाप वहां से गायब हो गए, लेकिन उन का दिमाग अभी भी चल रहा था…जैसे ही भीड़ छटी, दीपिका ने अस्मिता और समर को चुपचाप बाहर निकाल दिया. दरअसल, सीढि़यां चढ़ते समय ही दीपिका ने हवलदार को कुछ रुपए दे कर उस का मुंह बंद कर दिया था. जैसेतैसे आई हुई बला टल गई, लेकिन अस्मिता और समर को मुंह देख कर साफ पता लग रहा था कि उन्होंने इन 2 घंटों के दौरान कितना अच्छा समय बिताया होगा.
जब दोनों फ्लैट के अंदर थे तब समर ने कहा, ‘‘सौरी, जल्दीजल्दी में तुम्हारे लिए कोई उपहार लाना तो भूल ही गया.’’ ‘‘तुम आ गए हो तो नूर आ गया है,’’ कहते हुए अस्मिता हंस पड़ी. तब दोनों ने हृदय के तार झंकृत हो उठे थे. दिल में एक रागिनी बज उठी थी. रहीसही कसर आंखों से छलकते प्रेम निमंत्रण ने पूरी कर दी थी. सहसा ही समर के हाथ उस के तन से लिपट गए और यह आलिंगन हजारोंलाखों उपहारों से कहीं ज्यादा था.
असल तूफान तो उस के बाद आया जब समर अचानक अस्मिता से दूर होने लगा. फिर 6 महीने में सबकुछ बदल गया था. अब सिर्फ अस्मिता उसे फोन करती थी. और…समर, अस्मिता का फोन भी नहीं उठाता था. वह अब उस से बात नहीं करना चाहता था. जब उस की मरजी होती, मिलने को बुलाता, पर उस दौरान भी बात नहीं करता. ऐसा लगता था जैसे वह जिस्म की भूख मिटा रहा है. अस्मिता उस से प्यार करती थी, लेकिन वह अस्मिता को सिर्फ इस्तेमाल कर रहा था.
अस्मिता की तो पूरी दुनिया ही बदल चुकी थी. वह खुद से नफरत करने लगी थी. उस का आत्मविश्वास हिल गया था. वह अकसर अपनेआप से कहती, ‘मैं इतनी बेवकूफ कैसे हो सकती हूं? मैं अंधों की तरह एक मृगतृष्णा की ओर भागती जा रही हूं.’ वह घंटों रोती. निराशा उस की जिंदगी का हिस्सा बन चुकी थी. इस हार को बरदाश्त न कर पाते हुए इसी बीच अस्मिता बारबार समर को वापस लाने की नाकाम कोशिश करने लगी. उसे मेल भेजना, प्रेम गीत भेजना, कभीकभी गाली लिख कर भेजना, अब यही उस का काम था.
इसी बीच, एक दिन- समर : तुम्हें समझ में नहीं आ रहा कि मैं तुम से अब कोई संबंध नहीं रखना चाहता? मुझे दोबारा फोन मत करना.
अस्मिता : देखो, तुम क्यों ऐसा कर रहे हो? मुझे पता है कि तुम भी मुझ से प्यार करते हो, लेकिन क्या है जिस से तुम परेशान हो? समर : ऐसा कुछ नहीं है. हमारा रिश्ता आगे नहीं बढ़ सकता. मुझे जिंदगी में बहुतकुछ करना है. मेरे पास इन चीजों के लिए वक्त नहीं है.
अस्मिता : नहीं, देखो समर, प्लीज मेरी बात सुनो. हम दोस्त बन कर भी तो रह सकते हैं? हम इस रिश्ते को वक्त देते हैं. अगर कई साल बाद भी तुम को ऐसा ही लगा. तब सोचेंगे. समर : तुम पागल हो, मेरे पास फालतू वक्त नहीं है. मेरी एक गर्लफ्रैंड है. और मैं तुम से आगे कभी बात नहीं करना चाहता.
टैलीफोन की यह बातचीत अस्मिता को आज भी याद है. यह उन दोनों के बीच आखिरी बातचीत थी. इसे सुन कर कोईर् भी कह सकता है कि अस्मिता बेवकूफ थी, भ्रम में जी रही थी. लेकिन वह भी क्या करती? कुल 16 की थी, और उसे लगता था, सब फिल्मों की तरह ही होता है. ‘जब वी मेट’ फिल्म से वह काफी प्रभावित थी. वैसे भी 16 का प्यार हो या 60 का, जब कोई प्यार में होता है, तो कुछ भी सहीगलत नहीं होता.
पर स्कूल में समर उस से बचता, नजरें छिपाता, अस्मिता उस से बात करने जाती तो वह झिड़क देता या दोस्तों के साथ मिल कर उस की खिल्ली उड़ाता, कहता, ‘‘कितनी बेवकूफ है जो उस की बातों में आ कर सबकुछ लुटा बैठी. उस ने तो यह सब एक शर्त के लिए किया था.’’ ‘ओह, तो यह सिर्फ उस की एक चाल थी. काश, मैं पहले ही समझ जाती,’ वह घंटों रोती रही.
आज प्यार के मामले में भी उस का भरोसा टूट गया था. प्यार पर से विश्वास तो पहले ही उठने लगा था. वार्षिक परीक्षाएं सिर पर मंडरा रही थीं. वह खुद से जूझ रही थी. पर अस्मिता ने पढ़ाई या स्कूल बंद नहीं किया. यह शायद उस की अंदरूनी शक्ति ही थी जिस से वह उबर रही थी या उबरने की कोशिश कर रही थी. हालांकि चिड़चिड़ाहट बढ़ रही थी और उस के बढ़ते चिड़चिड़ेपन से घर पर सब परेशान थे. अगर घर पर कोई कुछ जानना चाहता भी तो उस ने कभी नहीं बताया कि उस के साथ क्या हुआ है.
अस्मिता नई क्लास में आ गई थी. हर बार से नंबर काफी कम थे. समर ने नई कक्षा में पहुंच कर स्कूल ही बदल लिया था. यही नहीं, मोबाइल नंबर भी. अस्मिता के लिए यह सब किसी बहुत बड़े जलजले से कम न था. बात न करे पर रोज वह समर को देख कर ही अपना मन शांत कर लेती थी. पर अब तो… अस्मिता ने खाना बंद कर दिया था. इस कारण उस की तबीयत बिगड़ रही थी.
बहुत मेहनत से उस ने समर का नया नंबर पता किया. समर ने फोन उठाया मगर सिर्फ इतना कहा, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे फोन करने की? किस से नंबर मिला तुम्हें? आइंदा फोन किया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. मेरे पास तुम्हारे कुछ फोटोज हैं. मैं उन्हें सार्वजनिक कर दूंगा. फिर मत कहना, हा…हा…हा… और समर ने फोन काट दिया.’’ समर के लिए यह सब खेल था, लेकिन अस्मिता के लिए वह पहला प्यार था. ‘कितनी बेवकूफ थी न मैं, जो अपने आत्मसम्मान को पीछे रख कर भी उसे मनाना और पाना चाहती थी,’ अस्मिता ने सोचा. अब उसे अपनेआप से घिन और नफरत सी होने लगी थी. अस्मिता खुद को खत्म करना चाहती थी.
लेकिन, दीपिका जो उस के अच्छे और बुरे दोनों ही पलों की सहेली थी, ने अस्मिता के मनोबल और उसे, एक हद तक टूटने नहीं दिया. उसे समझाया, ‘‘ऐसे एकतरफा रिश्तों से जिंदगी नहीं चलती. अगर आप किसी से प्यार करते हो और वह नहीं करता. तो आप चाहे जितनी भी कोशिश कर लो, कुछ नहीं हो सकता. और ऐसे में आत्मसम्मान सब से अहम होता है.’’ कहीं न कहीं अस्मिता की इस हालत की जिम्मेदार वह खुद को भी ठहराती थी. उस ने कभी भी अस्मिता को अकेला नहीं छोड़ा. हर समय उसे टूटने से बचाया वरना इतना अपमान और असम्मान सहना किसी लड़की के लिए आसान नहीं था. दीपिका की कोशिश का ही नतीजा था कि इतने अपमान, असम्मान के बाद भी अस्मिता ने ठान लिया, ‘‘अब मैं नहीं रोऊंगी. मैं जिंदगी में आगे बढ़ूंगी, कुछ करूंगी. एक हादसे की वजह से मेरी पूरी जिंदगी खराब नहीं हो सकती.’’
अब वह समर को याद भी नहीं करना चाहती थी. समर उस की जिंदगी में अब कोई माने नहीं रखता. लेकिन उस के धोखे को वह माफ नहीं कर पाई. प्यार करना उस ने यदि समर से मिल कर सीखा तो प्यार का सही मतलब और वादे का सही मतलब, शायद समर को अस्मिता से समझना चाहिए था. समर ने सिर्फ प्यार ही नहीं, धोखा क्या होता है, यह भी समझा दिया था. समर से मिल कर उस के साथ रिश्ते में रह कर, अस्मिता का प्यार पर से यकीन उठ चुका अब. वाकई कितनी छोटी उम्र होती है ऐसे प्यार की. शायद सिर्फ शारीरिक आकर्षण आधार होता है. तभी तो इसे कच्ची उम्र का प्यार कहते हैं ‘टीनऐजर्स लव.’