कहानी: नो एंट्री
खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के बावजूद ईशा, अपने पति के दोस्त निशांत की तरफ खिंचती चली जा रही थी. लेकिन एक दिन ऐसा क्या हुआ कि उसने खुद अपनी जिंदगी में निशांत की नो एंट्री कर दी.
‘तुम्हीं मेरे हल पल में, तुम आज में तुम कल में …’
“हे शोना, हे शोना”, एफएम पर चल रहे गाने के साथ गुनगुनाती ईशा अपने विवाहित जीवन में काफी प्रसन्न थी. कॉलेज पूरा होते होते उसकी शादी हो गई. जैसे जीवनसाथी की उसने कल्पना की, मयूर ठीक वैसा ही निकला. देखने में आकर्षक कहना ठीक होगा. वैसे ईशा के मुकाबले मयूर उन्नीस ही था किंतु वह जानती थी कि लड़कों की सूरत से ज्यादा सीरत पररखना आवश्यक होता है. आखिर ताउम्र का साथ है. ईशा ने अपनी पूरी होशियारी दर्शाते हुए मयूर का चयन किया. ईशा जैसी खूबसूरत लड़की के लिए रिश्तो की कमी न थी. कई परिवार के जरिए आए तो कई मजनू जिंदगी में वैसे भी टकराए. किंतु वह अपना जीवनसाथी उसी को चुनेगी जो उसके मापदंडों पर खरा उतरेगा. मयूर अपनी शराफत, प्यार करने की काबिलियत, और सच्चाई के कारण अव्वल आया. दो वर्ष पूर्व जब मयूर एक कजिन की शादी में उस से टकराया तब उसे पहली नजर में वह एक शांत, सुशील और विनम्र लड़का लगा. फोन नंबर एक्सचेंज होते ही कितने अच्छे और मिठास भरे मैसेज भेज कर मयूर ने ईशा का मन पिघला दिया. और उसने इस रिश्ते के लिए जल्दी ही हामी भर दी. चट मंगनी पट ब्याह कर ईशा, मयूर के घर आ गई.
तब से लेकर आज तक दोनों एक दूसरे के प्यार में डुबकियां लगाते आए हैं. प्रेम का सागर होता ही इतना मीठा है कि चाहे जितनी बार गोते लगा लो यह प्यास नहीं बुझती. शादी के पश्चात कई महीनों तक दोनों इसी प्यार की लहरों में डूबा उभरा करते, एक दूसरे की आगोश में खोए जिंदगी के हसीन पलों का आनंद लेते. एक-दूसरे के साथ सामंजस्य बिठाते हुए दोनों ने धीरे-धीरे अपनी ज़िंदगी को रोज़मर्रा की पटरी पर दौड़ने के लायक बना लिया. मयूर, एक प्राइवेट कंपनी में उच्च पदासीन, ईशा की हर चाह को जुबान पर आने से पहले ही पूरा कर दिया करता. ईशा पूरे आनंद के साथ घर संभालने लगी. विवाहित जीवन सुखमय था. इससे ज्यादा की कामना भी नहीं थी ईशा को.
“इस शनिवार को हमारी कंपनी ने फैमिली डे का आयोजन रखा है. मेरी कंपनी हर साल यह आयोजन करती है जिसमें सभी अपने परिवारों के साथ आते हैं. खूब धूम मचती है – तरह तरह के खेल खिलाए जाते हैं, खाना-पीना, नाचना-गाना. सब एक दूसरे के परिवार के सदस्यों से भी मिल लेते हैं. पिछली बार तुम अपने मायके गयी हुई थीं इसलिए अबकी बार तुम पहले-पहल सबसे मिलोगी.”
“अच्छा, फिर तो बहुत मजा आएगा. इसी बहाने मैं तुम्हारी कंपनी के सहकर्मियों व उनके परिवारों से मिलूंगी”, मयूर की बात सुन ईशा भी खुश हो गई.
शनिवार को मयूर की मनपसंद मोरिया नीले रंग की पटोला साड़ी में ईशा का गोरा रंग और भी निखर आया. उस पर सोने का हल्का सेट पहनने से मानो उसकी खूबसूरती में चार चांद लग गए. सलीके से किया हुआ मेकअप और स्ट्रेटन किए हुए कमर तक लहराते केश. ईशा को लेकर जैसे ही मयूर पार्टी में दाखिल हुआ सब निगाहें उसकी ओर उठ गईं. जोड़ी वाकई काबिले तारीफ लग रही थी.
फैमिली डे पर कहीं कोई भेदभाव नहीं था. जैसे कंपनी के मैनेजमेंट वैसे ही कंपनी के कर्मचारी और उसी तरह कंपनी के वर्कर्स के साथ भी बर्ताव किया जा रहा था. सभी अपने-अपने परिवारों के साथ घुल मिल रहे थे. कुछ ही देर में नाच गाना शुरू हुआ. कंपनी में काम करने वाले कुछ वर्कर्स आए और मयूर को कंधों पर उठाकर डांस फ्लोर की ओर ले गए. यह दृश्य देखकर ईशा का मन बाग-बाग हो गया. अपने पति के प्रति उसके मातहतों का इतना प्यार देख कर उसे आज मयूर पर नाज हो उठा. आज फैमिली डे में आकर ईशा को ज्ञात हुआ कि मयूर अपने परिश्रमी स्वभाव के कारण अपनी कंपनी में कितना चहेता है.
तभी एक हैंडसम नवयुवक ईशा के पास की कुर्सी खींच कर बैठते हुए बोला, “हाय, मेरा नाम निशांत है. मैं मयूर का दोस्त हूं. आपकी शादी में भी आया था पर इतने लोगों के बीच शायद मुलाकात याद ना रही हो.”
ईशा उस मुलाक़ात को कैसे भूल सकती थी भला! उसे अपनी शादी का वो मंज़र याद हो आया जब मयूर के सभी दोस्त स्टेज पर आकर फोटो खिंचवा रहे थे. तब सभी मित्र दुल्हा-दुल्हन बने मयूर और ईशा को घेरकर आगे-पीछे खड़े होने लगे. इतने में निशांत हँसकर ईशा के पास आ गया, “हम तो अपनी दुल्हनिया के पास बैठेंगे”, और उसी के सोफ़े पर उससे चिपक कर बैठ गया. अपनी बाँह ईशा के गले में डालते हुए उसने फोटोग्राफर से कहा था, “अब खींच ले, भाई, हमारी फोटो.”
ईशा को निशांत का नाम तब ज्ञात नहीं था किन्तु उसे उसकी दिलेरी बहुत भा गई. वो स्वयं भी एक बिंदास लड़की होने के कारण निशांत द्वारा भरी सभा में खुलेआम की गई ये हरकत उसे आकर्षित कर गई. मयूर बेहद नियमानुसार चलने वाला लड़का था. हर बात घरवालों के कहे अनुसार करना, हर निर्णय लेने से पहले बड़ों से पूछना, छोटे से छोटे कानून का पालन करना. उसके साथ रहने पर ईशा भी एक सीधी-सादी लड़की की भाँति रहने लगी क्योंकि आखिर ये एक अरेंज मैरिज थी, और वो चाहती थी कि मयूर आरंभ से उससे प्रभावित हो जाए.
आज ईशा ने निशांत को यहाँ देखने की उम्मीद नहीं की थी किन्तु जब वो सामने आया तो वह अंजान बनी रही, “ठीक कह रहे हैं आप. शादी के समय जितने लोगों से मिलना जुलना होता है वह कहां याद रह पाता है.
“जी नहीं, मैं तो ऑपरेशंस में हूं. देखा आपने, मयूर को वर्कर्स कितना पसंद करते हैं. बहुत सीधा है. सब में घुल मिल जाता है.”
“जी”, ईशा के चेहरे की मुस्कुराहट थमने का नाम नहीं ले रही थी.
“डांस करना पसंद करेंगी?”, कहते हुए निशांत ने अपना सीधा हाथ आगे बढ़ाया. ईशा आगे कुछ सोच पाती उससे पहले निशांत बोला, “मयूर बुरा नहीं मानेगा, उसे वर्कर्स के साथ डांस करने में ज्यादा मजा आ रहा है.”
आज निशांत ने पुनः ईशा के समक्ष अपनी अपरंपरागत सोच दर्शाई. कुछ ना कहते हुए ईशा, निशांत के साथ डांस फ्लोर पर उतर गई. नाचते-नाचते निशांत कहने लगा, “कहां आप – इतनी स्मार्ट और आकर्षक, और कहां मयूर! मेरा मतलब है आपकी स्मार्टनेस के आगे मयूर थोड़ा भोंदू ही लगता है.”
ईशा के अचकचा कर देखने पर निशांत ने आगे कहा, “बुरा मत मानिएगा, मेरा दोस्त है इसलिए कह सकता हूं.”
मयूर के आने पर निशांत बोला, “हूर के साथ लंगूर कैसे?!”
पर उत्तर में मयूर केवल हँसता रहा. फिर सारी पार्टी में निशांत, ईशा के आसपास ही घूमता रहा, कभी उसके लिए रसमलाई लाता तो कभी कोक का गिलास. उसकी उपस्थिति में निशांत, मयूर की हँसी भी उड़ाता रहा, और मयूर सब कुछ सुनकर हँसता रहा.
“यह निशांत कैसा लड़का है?”
“बहुत अच्छा लड़का है. मेरा बहुत अच्छा दोस्त है. बहुत इंटेलिजेंट है. अपने डिपार्टमेंट का हीरा है.”
मयूर ने निशांत की प्रशंसा के पुल बांध दिए. “ठीक ही कह रहा था वह – मयूर वाकई भोंदू है जो यह नहीं समझता कि कौन उसका सच्चा दोस्त है और कौन नहीं”, ईशा सोच में पड़ गई. ईशा, निशांत की उससे फ़्लर्ट करने की कोशिश भली प्रकार समझ रही थी. निशांत की ये हरकतें ईशा को बुरी नहीं लगीं अपितु मन के किसी कोने में पुलकित कर गईं.
उसी हफ्ते एक दुपहरी ईशा को एक फोन आया. “सरप्राइस कर दिया न तुम्हें? देखा, कितना स्मार्ट हूं मैं, तुम्हारा नंबर निकाल लिया,” दूसरी ओर से निशांत की विजय से ओतप्रोत हँसी की आवाज़ आई.
परंतु ईशा इतनी जल्दी प्रभावित होने वाली कहाँ थी. अपने पीछे मजनुओं की पंक्तियों की उसे आदत थी. “कभी-कभी ज़्यादा स्मार्टनेस भारी पड़ जाती है. जनाब, अपना नाम तो बताइये”, ईशा ने पलटवार किया.
“सेव कर लो ये नंबर”, निशांत बोला, “निशांत बोल रहा हूँ, मैडम. मैंने तुम दोनों को अपने घर लंच पर बुलाने के लिए फोन किया है. मयूर को मैं ऑफिस में ही न्योता दे चुका हूं पर तुम्हें भी निजी तौर पर आमंत्रित करना चाहता था इसलिए फोन किया”, उसने अपनी बात पूरी की.
शाम को जब मयूर घर लौटा तो ईशा ने निशांत के फोन की बात बताई.
“हां, पता है. मुझसे ही तुम्हारा नंबर लिया था उसने”, मयूर ने लापरवाही से कहा.
“मेरा नंबर देने की क्या जरूरत थी? तुम्हें बुलाया, मुझे बुलाया, एक ही बात है”, ईशा इस सिलसिले में मयूर की मानसिकता टटोलना चाहती थी.
“क्या फर्क पड़ता है… उसका मन था तुमसे बात करने का”, मयूर सरलता से कह गया. “इस रविवार दोपहर का लंच हम निशांत के साथ करेंगे. बहुत दूर नहीं है उसका घर.”
रविवार को ईशा ने फूलों की प्रिंट वाली ड्रेस के साथ हाई हील्स पहनी और अपने बालों को हाई पोनीटेल में बांध लिया. इस वेषभूषा में वो अपनी साड़ी वाली छवि से बिलकुल उलट लग रही थी. इस नए अवतार में निशांत ने उसे देखा तो वह पूरे जोर-शोर से ईशा के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा. उसे लगने लगा मानो ईशा उसे अपने व्यक्तित्व का हर रंग दिखाना चाहती है. पाश्चात्य परिधान में उसे देखकर निशांत उस पर और भी मोहित हो गया, “अरे रे रे, मैं तो तुम्हें भारतीय नारी समझा था पर तुम तो दो धारी तलवार निकलीं. बेचारा मयूर! उसके पास तो ऐसी तलवार के लायक कमान भी नहीं है”, धीरे से ईशा के कानों में फुसफुसा कर कहता हुआ निशांत साइड से निकल गया.
मन ही मन ईशा हर्षाने लगी. शादीशुदा होने के उपरांत भी उसमें आशिक बनाने की कला जीवित थी, यह जानकार वह संतुष्ट हुई. उसपर ऐसा भी नहीं था कि निशांत, मयूर की आँख बचाकर यह सब कह रहा था. उस दिन निशांत, मयूर के सामने भी कई बार ईशा से फ्लर्ट करने की कोशिश करता रहा और मयूर हँसता रहा.
घर लौटते समय ईशा ने मयूर से निशांत की शिकायत की, “देखा तुमने, निशांत कैसे फ़्लर्ट करने की कोशिश करता है.” वह नहीं चाहती थी कि मयूर के मन में उसके प्रति कोई गलतफहमी हो जाए.
ईशा की बात को मयूर ने यह कहकर टाल दिया, “निशांत तो है ही मनमौजी किस्म का लड़का. और फिर तुम उसकी भाभी लगती हो. देवर भाभी में तो हँसी-मजाक चलता रहता है. पर तुम उसे गलत मत समझना, वह दिल का बहुत साफ और नेक लड़का है.”
अगले हफ्ते मयूर कंपनी के काम से दूसरे शहर टूर पर गया. हर रोज की तरह ईशा दोपहर में कुछ देर सुस्ता रही थी कि अचानक दरवाजे की घंटी बजी. किसी कोरियर बॉय की अपेक्षा करती ईशा ने जब दरवाजा खोला तो सामने निशांत को खड़ा देख वह हतप्रभ रह गई, “तुम… इस वक्त यहां? लेकिन मयूर तो ऑफिस के काम से बाहर गए हैं.”
“मुझे पता है. मैं तुमसे ही मिलने आया हूं. अंदर नहीं बुलाओगी”, निशांत की साफगोई पर ईशा मन ही मन मोहित हो उठी. ऊपर से चेहरे पर तटस्थ भाव लिए उसने निशांत को अंदर आने का इशारा किया और स्वयं सोफे पर बैठ गई.
निशांत ठीक उसके सामने बैठ गया, “अरे यार, तुम्हारे यहां घर आए मेहमान को चाय-कॉफी पूछने का रिवाज नहीं है क्या?”
“मैंने सोचा ऑफिस के टाइम पर यहां आए हो तो ज़रूर कोई खास बात होगी. पहले वही सुन लूं”, ईशा ने अपने बालों में उँगलियाँ घुमाते हुए कहा. निशांत के साथ ईशा का बातों में नहले पर दहला मारना दोनों को पसंद आने लगा. आँखों ही आँखों के इशारे और जुबानी जुगलबाजी उनकी छेड़खानी में नए रंग भरते.
“खास बात नहीं, खास तो तुम हो. सोचा मयूर तो यहां है नहीं, तुम्हारा हालचाल पूछता चलूं”, निशांत के चेहरे पर लंपटपने के भाव उभरने लगे.
“मैं अपने घर में हूं. मुझे भला किस बात की परेशानी?”, ईशा ने दो-टूक बात की. वो देखना चाह रही थी कि निशांत कहाँ तक जाता है.
“ईशा, तुम शायद मुझे गलत समझती हो इसीलिए मुझसे यूं कटी-कटी रहती हो. क्या मैं तुम्हें हैंडसम नहीं लगता?”, संभवतः निशांत को अपने सुंदर रंग रूप का आभास भली प्रकार था.
“ऐसी कोई बात नहीं. असल में, निशांत, तुम मयूर के दोस्त हो, मेरे नहीं.”
“यह कैसी बात कह दी तुमने? दोस्ती करने में कितनी देर लगती है… फ्रेंड्स?”, कहते हुए निशांत ने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो प्रतिउत्तर में ईशा ने अदा से अपना हाथ निशांत के हाथ में दे दिया. “ये हुई न बात”, कह निशांत पुलकित हो उठा.
फिर कॉफी पीकर, कुछ देर बैठकर निशांत लौट गया. आज पहली मुलाक़ात में इतना पर्याप्त था – दोनों ने अपने मन में यही सोचा. निशांत को आगे बढ्ने में कोई संकोच नहीं था किन्तु वो ईशा के दिल के अंदर की बात नहीं जनता था. इतनी जल्दी वो कोई खतरा उठाने के मूड में नहीं था. कहीं ईशा उसपर कोई आरोप लगा दे तो उसकी क्या इज्ज़त रह जाएगी समाज में! उधर ईशा विवाहिता होने के कारण हर कदम फूँक-फूँक कर रखने के पक्ष में थी. वैसे भी निशांत, मयूर का मित्र है. उसकी अनुपस्थिति में आया है. कहीं ऐसा न हो कि इसे मयूर ने ही भेजा हो… ईशा के मन में कई प्रकार के विचार आ रहे थे. दुर्घटना से देर भली!
मयूर के लौटने पर ईशा ने उसे निशांत के आने की बात स्वयं ही बता दी. मयूर को ज़रा-सा अटपटा लगा, “अच्छा! मेरी गैरहाजरी में क्यूँ आया?” उसकी प्रतिक्रिया से ईशा आश्वस्त हो गयी कि निशांत के आने में मयूर का कोई हाथ नहीं. फिर उसने स्वयं ही बात संभाल ली, “मैं खुश हुई निशांत के आने से. कम से कम तुम्हारे यहाँ ना होने पर इस नए शहर में मेरी खैर-खबर लेने वाला कोई तो है.” ईशा की बात से मयूर शांत हो गया. “निशांत सच में तुम्हारा एक अच्छा मित्र है”, ईशा ने बात की इति कर दी.
अब ईशा के फोन पर निशांत के कॉल अक्सर आने लगे. सावधानी बरतते हुए उसने नंबर याद कर लिया पर अपने फोन में सेव नहीं किया. ऐसे में कभी उसका फोन मयूर के हाथ लग भी जाए तो बात खुलने का कोई डर नहीं.
किन्तु ऐसे संबंध मन की चपलता को जितनी हवा देते हैं, मन के अंदर छुपी शांति को उतना ही छेड़ बैठते हैं. एक दिन मयूर के फोन पर निशांत का कॉल आया. मयूर बाथरूम में था. ईशा ने देखा कि निशांत का कॉल है तो उसका दिल फोन उठाने का कर गया. “मयूर, तुम्हारे लिए निशांत का कॉल है. कहो तो उठा लूँ?”, ईशा ने बाथरूम के बाहर से पुकारा.
“रहने दो, मैं बाहर आकर कर लूँगा”, मयूर से इस उत्तर की अपेक्षा नहीं थी ईशा को.
दिल के हाथों मजबूर उसने फोन उठा लिया. “हेलो”, बड़े नज़ाकत भरे अंदाज़ में उसने कहा तो निशांत भी मचल उठा, “पता होता कि फोन पर आपकी मधुर आवाज़ सुनने को मिल जाएगी तो ज़रा तैयार होकर बैठता.” निशांत ने फ़्लर्ट करना शुरू कर दिया.
ईशा मुस्कुरा उठी. वो कुछ कहती उससे पहले मयूर पीछे से आ गया, “किससे बात कर रही हो?”
“बताया तो था कि निशांत का कॉल है.”
“मैंने तुम्हें फोन उठाने के लिए मना किया था. मैं बाद में कॉल कर लेता. खैर, अब लाओ मुझे दो फोन”, मयूर के तल्खी-भरी स्वर ने ईशा को डगमगा दिया. उसने सोचा नहीं था कि मयूर उससे इस सुर में बात करेगा.
“क्या मयूर को निशांत और मुझ पर शंका होने लगी है? क्या मयूर ने कभी निशांत का कोई मेसेज पढ़ लिया मेरे फोन पर? पर मैं तो सभी डिलीट कर देती हूँ. कहीं गलती से कभी कोई छूट तो नहीं गया…”, ईशा के मन में अनगिनत खयाल कौंधने लगे. निशांत से रंगरलियों में ईशा को जितना आनंद आने लगा उतना ही मयूर के सामने आने पर बात बिगड़ जाने का डर सताने लगा. जैसे उस दिन जब ईशा और निशांत एक कैफ़े में मिले थे तब कैसे ईशा ने निशांत को एक भी पिक नहीं खींचने दी थी. ये चोरी पकड़े जाने का डर नहीं तो और क्या था!
अगले दिन निशांत की ज़िद पर ईशा फिर उससे मिलने चल दी. सोचा “आज निशांत से मिलना भी हो जाएगा और रिटेल थेरेपी का आनंद भी ले लूँगी”, तैयार होकर ईशा शहर के चुनिंदा मॉल पहुँची. जब तक निशांत पहुँचता, उसने थोड़ी विंडो शॉपिंग करनी शुरू की कि किसी ने उसका बाया कंधा थपथपाया. पीछे मुड़ी तो सागरिका को सामने देख जड़ हो गई.
“अरे, क्या हुआ, पहचानना भी भूल गई क्या? ऐसा तो नहीं होना चाहिए शादी के बाद कि अपनी प्यारी सहेली को ही भुला बैठे”, सागरिका बोल उठी. वह वहां खड़ी खिलखिलाने लगी लेकिन ईशा उसे अचानक सामने पा थोड़ी हतप्रभ रह गई. फिर दोनों बचपन की पक्की सहेलियां गले मिलीं और एक कॉफी शॉप में बैठकर गप्पे लगाने लगीं. अपनी शादीशुदा जिंदगी के थोड़े बहुत किस्से सुनाकर ईशा, सागरिका से उसका हाल पूछने लगी.
“क्या बताऊं, ईशु, हेमंत मेरी जिंदगी में क्या आया बहार आ गई. उस जैसा जीवनसाथी शायद ही किसी को मिले. मेरी इतनी प्रशंसा करता है, हर समय साथ रहना चाहता है. आज भी मुझे लेने आने वाला है. तुम भी मिल लेना”, सागरिका ने बताया.
“नहीं-नहीं सागू, मुझे लेट हो जाएगा. मुझे निकलना होगा”, ईशा, हेमंत की शक्ल नहीं देखना चाहती थी. वह तुरंत वहाँ से घर के लिए निकल गई. रास्ते में निशांत को फोन करके अचानक तबीयत बिगड़ जाने का बहाना बना दिया. रास्ते भर ईशा विगत की गलियों से गुजरते हुए अपने कॉलेज के दिनों में पहुँच गई जब बहनों से भी सगी सखियों सागरिका और ईशा के सामने हेमंत एक छैल छबीले लड़के के रूप में आया था. ऊंची कद काठी, एथलेटिक बॉडी, बास्केटबॉल चैंपियन और पूरे कॉलेज का दिल मोह लेने वाला. ईशा की दोस्ती जल्दी ही हेमंत से हो गई क्योंकि ईशा को स्वयं भी बास्केटबॉल में रुचि थी. वह हेमंत से बास्केटबॉल खेलने के पैंतरे सीखने लगी. फिर सागरिका के कहने पर निकट आते वैलेंटाइंस डे पर ईशा ने हेमंत से अपने दिल की बात कहने की ठानी. किंतु वैलेंटाइंस डे से पहले रोज डे पर हेमंत ने सागरिका को लाल गुलाब देकर अचानक प्रपोज कर दिया. ईशा के साथ-साथ सागरिका भी हक्की बक्की रह गई. कुछ कहते ना बना. बाद में अकेले में ईशा ने अपने दिल को समझा लिया कि हेमंत की तरफ से कभी कोई संदेश नहीं आया था और ना ही उसने कभी उससे कुछ ऐसा कहा था. वो दोनों सिर्फ अच्छे दोस्त थे.
मगर वह जवानी ही क्या जो रास्ता ना भटके. जवानी में हमारे हारमोंस हमसे वह सब करवा जाते हैं जिसको बाद में स्वीकारना तक कठिन हो जाए. युवावस्था ऐसा काल है जिसमें केवल वर्तमान होता है, ना भूत, ना भविष्य. आज जो कदम हम उठा रहे हैं उसका कल हमें क्या भुगतान करना पड़ सकता है, यह सोचना जवानी का काम नहीं.
कॉलेज के आखिरी साल में एक दिन ईशा अपने हॉस्टल के कमरे से बाहर आ रही थी कि हेमंत वहाँ आ गया. उसने अचानक उसका हाथ पकड़ लिया, “ईशा, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं.”
“क्या हुआ?”, ईशा अचकचा गई.
“ईशा, मैंने तुम्हारी आंखों में अपने लिए कुछ पढ़ा है लेकिन अफसोस तुम मेरी आंखों में झांकने से चूक गईं.”
“यह कैसी बात कर रहे हो, हेमंत? तुम सागरिका के बॉयफ्रेंड हो.”
“क्या केवल एक दिन के लिए… आज के लिए तुम यह बात भूल नहीं सकती? क्या मैं तुम्हें क्यूट नहीं लगता? क्या तुम मुझे पसंद नहीं करती? अगर मैं झूठ बोल रहा हूं तो बेशक तुम फौरन इस कमरे से चली जाओ.”
ईशा का दिमाग यह कह रहा था कि यह सागरिका के साथ धोखा होगा परंतु उसका मन इस बात से हर्षित होने लगा कि जिस हेमंत को वह मन ही मन चाहती थी, वो भी उसे अपने समीप लाना चाहता है. आखिर दिल दिमाग पर हावी हो गया. उस दिन ईशा और हेमंत अपनी सीमाएं लाँघते हुए एक दूसरे की आगोश में समा गए. जवानी का उबाल दूध की तरह उफनने लगा. दोनों ने सारी हदें पार कर दीं.
जब यह तूफान शांत हुआ तब ईशा का ध्यान सागरिका की ओर गया. अपने दिल की बात सुनकर क्षणिक सुख की खातिर ईशा ने हेमंत के साथ जो किया उसके कारण अब उसका मन ग्लानि से भरने लगा. अपनी सबसे प्यारी सखी को धोखा देकर वह बहुत पछताने लगी. उस घटना के पश्चात जब कभी ईशा, सागरिका के सामने आती, उसे धोखा देने का घाव एक बार फिर हरा हो जाता. इससे बचने हेतु ईशा, सागरिका से नजरें चुराती, उससे ना मिलने के बहाने खोजती फिरती. अपने बचपन की सहेली को यूँ खो बैठने का दुख ईशा को बहुत सताता किन्तु सागरिका की आँखों में देखकर बात करने की हिम्मत अब ईशा खो चुकी थी. यहाँ तक कि अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के पश्चात उसने माता पिता के सुझाए रिश्ते के लिए फौरन हामी भर दी. ईशा का विवाह हो गया और वह अपनी नई दुनिया में खो गई.
आज सागरिका को पुनः मिलने के कारण ईशा के सामने सारा अतीत फिर से तनकर खड़ा हो गया. उस समय ईशा किसी से जुड़ी नहीं थी. उसके जीवन में किसी के प्रति कोई जवाबदेही नहीं थी. हेमंत ने भी यही कहकर उसके मन में उठ रहे संदेह को दबा दिया था, “तुम किसी प्रकार की ग्लानि क्यों ओढ़ती हो? आखिर तुम तो किसी से कमिटेड नहीं हो. यदि किसी को आपत्ति होनी चाहिए तो वह मैं या सागरिका हैं. मुझे कोई परेशानी नहीं, और सागरिका को इस बात की भनक भी नहीं पड़ने दूंगा.” हेमंत उसके अंदर चल रहे द्वंद को कुचलने में सफल रहा था. परंतु आज स्थिति विलग है.
चाहने, ना चाहने की ये लकीर चाकू की धार से भी ज्यादा पेनी होती है. कुछ कट जाने का डर होता है. ईशा वही गलती दोहराना नहीं चाहती थी. सागरिका उसकी सहेली थी इसलिए वो उससे दूरी बना पायी, किन्तु यदि मयूर को उसपर शक हो गया या उसे निशांत से उसके चोरी-छुपे मिलने-जुलने के बारे में पता चल गया तो क्या वह अपने चंचल मन की खातिर अपनी बसी-बसाई गृहस्थी तोड़ सकेगी? क्या वह इतनी बड़ी कीमत चुकाने को तैयार है?
घर लौटते हुए ईशा का सिर दर्द से फटने लगा. विचारों के अनगिनत घोड़े उसके दिलो-दिमाग को रौंदने लगे. घर पहुँचकर ईशा ने माथे पर बाम लगाया और बिस्तर पर ढेर हो गई. शाम घिर आई थी. छुटपुट अंधेरा होने लगा. किंतु ईशा का मन आज घर की बत्तियां जलाने का भी नहीं हुआ. यूं ही बैठे-बैठे वह बाहर के वातावरण से मेल खाते अपने हृदय के अंधेरों में भटकने लगी. क्या करे उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, “कितनी बड़ी बेवकूफ हूँ मैं जो अपने सुनहरे जीवन में खुद ही आग लगाने का काम कर बैठी.” उसका मन दो भागों में बट गया और दोनों ही पलड़े अपनी-अपनी ओर झुकने लगे. एक मन कहता कि जो हो गया सो हो गया. आगे नहीं होगा. इस अध्याय को यहीं समाप्त करो. दूसरा मन कहता कहीं निशांत ने मयूर को बता दिया तो उसकी गृहस्थी का क्या होगा! क्या जवाब देगी वो मयूर को! सिर पकड़कर बैठी ईशा, मयूर के घर लौटने से चेती.
“क्या हुआ? अंधेरे में क्यूँ बैठी हो?”, मयूर ने घर में प्रवेश करते ही पूछा.
“सिर में दर्द है इसलिए रोशनी में जाने की इच्छा नहीं की”, ईशा ने उदासीन सुर में उत्तर दिया.
मयूर ने ईशा के सिर को दबाया, खाना बनाया, फिर उसे दवाई देकर जल्दी सोने भेज दिया. “कितनी बड़ी गलती कर बैठी मैं जो इतना खयाल रखने वाले पति के होते हुए बाहर भटकने लगी. क्या प्यार करने वाले जीवनसाथी के बावजूद मुझे बाहर वालों की प्रशंसा की इतनी लालसा है कि उसके बदले मैं अपना बसा-बसाया जीवन बर्बाद कर दूँ? अपने पीछे चाहनेवालों की कतार की लौलुपता इतनी तीव्र हो गयी कि मैं अपना वर्तमान भुला बैठी. ये कितना बड़ा अनर्थ करने जा रही थी मैं!”, ईशा मानो निद्रा से जाग गयी. केवल बंद नयनों में ही नींद नहीं आती, कितनी बार वो जागृत अवस्था को भी शिथिल बनाने के योग्य होती है. किन्तु जब जागो तभी सवेरा. ईशा के मन-मस्तिष्क में छाया अब हर धुंधलका साफ हो गया.
ईशा एक सुखमय विवाहित जीवन व्यतीत करते हुए अपने मन पर कोई अनावश्यक बोझ नहीं चाहती थी. उसने निशांत से अपने बढ़ रहे संबंधों की इति करने का निश्चय कर लिया. वैसे भी अभी देर नहीं हुई. उन दोनों के मध्य कोई ऐसा अध्याय नहीं खुला था जिसकी कीमत उसे अपना स्वर्णिम कल देकर चुकानी पड़े.
अब जब कभी निशांत ने ईशा के घर आना चाहा, या फिर उसे बाहर मिलने का न्यौता दिया, ईशा ने हर बार कोई न कोई बहाना बना दिया. हर बार वो अबाध गति से स्थिति से निकलने में सफल रही. किन्तु बारंबार ऐसा होने पर निशांत को संदेह होना स्वाभाविक था.
“मुझे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे तुम मुझसे मिलना नहीं चाहती. कोई भूल हो गयी क्या मुझसे?”, उसे ईशा की उपेक्षा खलने लगी. वह ईशा की विमुखता का कारण जानना चाहता था.
“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. तुम तो जानते हो कि मैं एक विवाहिता स्त्री हूँ. घर-गृहस्थी के चक्करों में बेहद व्यस्त रहती हूँ”, ईशा गृहस्थ जीवन की व्यस्तता का बहाना देकर सभ्यतः बच गई. “मयूर के साथ आओ कभी घर पर, या फिर किसी संडे हम दोनों आते हैं तुम्हारे घर.”
निशांत एक शातिर लड़का था. ईशा के जवाबों और प्रतिक्रियाओं से उसे समझते देर न लगी कि अब इस इस गली में उसका प्रवेश निषेध है. आखिर ‘नो एंट्री’ के बोर्ड के आगे वो कितनी देर अपनी गाड़ी का हॉर्न बजाता रहता.