कहानी: मां और मैं
मां ने मुझे जगजाहिर कर मुझे मेरी नजरों में ‘अनमोल’ बना दिया था.
मैं जो था, वह मैं अच्छी तरह समझता और महसूस करता था. बाबा यह सब स्वीकार करते हुए शायद शर्मिंदगी महसूस करते थे लेकिन मां ने मुझे जगजाहिर कर मुझे मेरी नजरों में ‘अनमोल’ बना दिया था. ‘‘संतोष, कितना आसान है न, सारी गलतियों का बो झ महिलाओं पर डालना. क्या कभी तुम ने मेरे नजरिए से कुछ देखनेसम झने की कोशिश की है?’’ आई कहने लगीं.इस पर खी झ कर बाबा ने कहा, ‘‘रेणु, तुम औरतों का तो काम ही है कि अपनी गलती कभी मानो ही न और दूसरों को सम झाती रहो कि वह तुम्हें सम झे. खैर, मु झे तुम से बहस ही नहीं करनी. तुम हो ही ऐसी. एक तो औलाद भी ऐसी दी है जिस ने कही मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. उलटा, मु झे ही शर्म आ जाए और ऊपर से तुम्हारी बकबक. कितना प्रैशर होता है दिमाग पर तुम्हें पता भी नहीं होगा. तुम तो घर में रहती हो, कभी बाहर जा कर खुद कमाओ तो पता चले. आई कान्ट बियर बोथ औफ यू एनीमोर. आई रियली कान्ट बियर दिस. मैं जा रहा हूं और सीधे कल सुबह ही आऊंगा एक नया बम फोड़ने.’’ और गुस्से से दरवाजे को जोर से बंद करते हुए चले गए. एक तरफ जहां मुंबई जैसे बड़े शहर के एक छोटे से इलाके में हर रोज किसी को ट्रैफिक के शोर की आवाज, किसी को रेडियो, तो किसी को अपने देर होने की घंटी सुनाई देती, तो कोई अपने में मग्न रहता है. यहां देश के सब से अमीर लोग रहते हैं जिन के करोड़ों के बंगले हैं तो गरीबों की सब से बड़ी बस्ती भी
यहीं ही है लेकिन मजाल इन अमीरों की कि इस शहर को आदर्श कहा जाए. वही किचकिच, मगजमारी, तूतूमैंमैं. आर्थिक राजधानी तो यह शहर बन गया है लेकिन लगता है अमीरों के लिए, बाकी गरीबों के लिए तो लोकल ट्रेन के थर्ड क्लास के डब्बे भर रह गए हैं जिन में खचाखच भीड़, उमस और सड़न है. सड़न हर तरह की है, कभी ऊंचनीच की, कभी अमीरगरीब की तो कभी लिंगभेद की. इन सब के बीच एक मैं हूं, जिसे लोग ‘बीच’ का कह देते हैं, जानते हो बीच का क्या होता है? हिजड़ा, किन्नर, छक्का. मेरे जीवन में रोजरोज की ये सारी चीजें ऐसे घुस गई हैं जैसे मेरी बुक का मोस्ट इंपौर्टैंट क्वैश्चन हो जो इस साल के 12वीं बोर्ड एग्जाम में जरूर पूछा जाएगा. मु झे लगता है कि बाबा आई से नहीं बल्कि मु झ से नाराज हैं. शायद आई और बाबा को लगता है कि मु झे इस बात से फर्क नहीं पड़ता पर मु झे भी बाबा की बातें बुरी लगती हैं. आई एम नौट ए किड एनीमोर पर आई को रोता देख मैं कभी अपनी फीलिंग्स नहीं बता पाता. मु झे याद है बचपन में जब मैं ने पहली बार आई से पूछा था कि औलाद क्या होती है और जवाब में मु झे आई ने बताया था कि जो बच्चा सम झदार हो और मातापिता को तंग न करे वह अच्छी औलाद है और मैं मन ही मन उस समय खुश हुआ करता था कि मैं एक अच्छी औलाद हूं. लेकिन बाबा की तरफ से तो मु झे सिर्फ नफरत का एहसास होता रहा है.
मैं बचपन में अपने बाबा को किसी हीरो से कम नहीं सम झता था. दिखने में मु झे एकदम फिल्मी हीरो अक्षय कुमार जैसे दिखते थे और आज भी उन की शक्ल काफी हद तक वैसी ही दिखती है. बस, फर्क सिर्फ भयानक मूंछ का है. बाबा की मूंछ देख कर सब यही सम झते थे कि वे जरूर कोई आर्मी अफसर होंगे जबकि असल में उन की चौपाटी के पास वाली रोड पर कपड़ों की छोटी सी दुकान है.और आई, मेरी आई, मेरे लिए आज के टाइम की वे मौडर्न लेडी जैसी हैं जो दिखने में बहुत सुंदर लगती हैं, वे सुशील भी हैं, उन के बाल अभी तक वैसे ही काले और बड़े हैं जैसा कि मैं ने बचपन में देखा था और जब वे उन बालों का जूड़ा बना कर उस में गजरा लगाती थीं तब तो मानो कोई अप्सरा हो. सिर्फ यही नहीं, मेरी आई, बाबा से ज्यादा पढ़ीलिखी भी हैं. मैं कई बार सोचता हूं कि अगर आई को मिसवर्ल्ड के लिए चुना जाए तो इस में कोई नई बात न होगी. बस, आई की एक ही दिक्कत है और वह है उन का समाज के चार लोगों का मेरे लिए डर. मु झे आज भी याद है, जब मैं ने 10वीं बोर्ड क्लास में अपना स्कूल बदला था तब मैं ने अपने एडमिशन फौर्म में आई से पूछा था, ‘जैंडर वाले कौलम में क्या लिखूं?’ और आई ने हर बार की तरह डरते हुए कहा था, ‘मेल लिख दो.’ मैं कभी आई को दुखी नहीं करना चाहता, इसलिए मैं ने बिना कुछ सोचे आई की बात मान ली थी पर यह सचमुच मेरे लिए सोचने वाली बात है कि सिर्फ मेरी आई ही नहीं, क्या सभी लोग मु झ जैसे लोगों से डरते हैं? क्यों आखिर ‘मेल और फीमेल’ के अलावा हमारे पास विकल्प नहीं होते?पर मैं आई को खुल कर बताना चाहता हूं कि मेरा मन भी कभीकभी उन की तरह कपड़े पहन कर, तैयार हो कर घूमने का होता है, मैं भी चाहता हूं कि लड़कों के जैसे नहीं बल्कि लड़कियों के जैसे तरहतरह के फैशन वाले कपड़े पहनूं. बिलकुल उन्हीं की तरह मेकअप करूं और वह सब करूं जो मैं करना चाहता हूं. काश, आई ने मु झे इस के लिए रोकटोक न लगाई होती. पर मैं जरूर एक दिन आई को, बाबा को, दोस्तों को और सभी को पूरी दुनिया को चीखचीख कर सारी बात बताना चाहता हूं कि मैं अपनी लाइफ को अपनी तरह से जीना चाहता हूं. समाज के डर से लड़का बन कर नहीं, खुले मन से लाइफ एंजौय करना चाहता हूं. अपनी मरजी के कपड़े पहनना चाहता हूं. अपने दोस्तों को अपने बारे में खुल कर बताना चाहता हूं और सिर्फ स्कूल ही नहीं सभी जगह खुशीखुशी मेल या फीमेल नहीं, ‘ट्रांसजैंडर’ लिखना चाहता हूं. खुले आसमान में अपनी मरजी से अपनी तरह जीना चाहता हूं. ये सारी दिल की इच्छाएं न जाने कब पूरी होंगी. मु झे अभी तक यह बात याद है जब पड़ोस वाली दादी पिछले महीने हमारे घर आई थीं तब वे मेरी आई से कह रही थीं, ‘तुम्हारा बेटा कितना सुंदर दिखता है, एकदम गोरा, चटक रंग जैसे कोई सफेद फूल हो और बाल तो ऐसे भूरे हैं जिन्हें देख कर कोई भी कह दे कि यह जरूर कोई विदेशी होगा. कदकाठी भी ठीक है पर शरीर में लचीलापन एकदम लड़कियों सा है और बात करने का ढंग, बैठने का ढंग और यहां तक बातें भी एकदम ऐसे करता है जैसे मेरी नटखट पोती हो. काश, यह लड़का नहीं लड़की होता पर जो भी हो, इस के रहते तुम्हें बेटी की कमी नहीं खलती होगी.’’ और दोनों हंसने लगी थीं.
आई का तो पता नहीं पर मु झे यह सुन कर बहुत अच्छा लगा था. काश, यह सच हो जाए. उस के बाद तो मैं खुल कर जितनी चाहे उतनी लड़कियों से दोस्ती कर पाऊंगा पर ऐसा सोचते ही दूसरे पल मु झे बाबा की नफरतभरी निगाहें आंखों के सामने आने लगीं.मैं ने एक बार आई और बाबा की लड़ाई में सुना था कि आई ने सिर्फ मेरे कारण अपनी स्कूल टीचर वाली सरकारी नौकरी छोड़ दी थी जिस के लिए आई ने दिनरात एक कर के एग्जाम क्लीयर किया था. नौकरी छोड़ने पर बाबा ने उन्हें बहुत डांटा था. मु झे लगता है आई को पता चल गया था कि बाबा मु झे मेरे ही जैसे लोगों के साथ मौका मिलते ही छोड़ आएंगे. शायद इसलिए आई कभी मु झे अकेले नहीं छोड़तीं. और इसलिए मु झे बाबा बिलकुल उस बिल्ली की तरह लगते हैं जो चूहे पर घात लगाए बैठी रहती है जिस में बलि चढ़ने वाला चूहा मैं ही हूं और आई को मेरे लिए समाज के 4 लोग वाली चिंता करते देख कर समाज बिलकुल उस भूखे शेर की तरह लगता है जो चूहाबिल्ली जैसे सभी छोटेमोटे जानवरों को खा जाएगा. मेरे लिए तो बिल्ली का शिकार होना और शेर का शिकार होना दोनों एक ही बात हैं क्योंकि शिकार आखिर मैं ही हूं.
पर मैं हर बार यह सोचता हूं कि अगर मैं अपनेआप को शिकार न मानूं तो अच्छा रहेगा. आखिर मु झ जैसे कितने ही लोग इस दुनिया मे होंगे जो किसी न किसी बात से परेशान हैं पर मैं अपनेआप को इतना कमजोर भी नहीं मानता क्योंकि मेरे पास मेरी आई है और आई के पास मैं. पर क्या मेरे जैसे सब लोगों के पास आई होगी? इस की उम्मीद कम है पर कोर्ट तो है न, जो सहीगलत का फैसला करता है, तभी तो मेरे जैसे कितने लोग कोर्ट तक चले गए हैं और आज भी अपनी मनमरजी से अपनी इच्छा के लाइफ पार्टनर के साथ शादी करने के लिए लड़ रहे हैं. मु झे बस कल का इंतजार है. मु झे लगता है मैं आई से जा कर कह दूं कि बाबा जैसे इंसान को वे छोड़ दें, अब मैं सबकुछ अकेले कर सकता हूं. लेकिन आई को उन की मरजी के बगैर कुछ ऐसी बात कहने में हिचक होती है जो उन्हें नाराज कर दे. खैर, जो भी हो, मैं तो हमेशा आई के साथ ही हूं.पर आज आई सचमुच इतनी मायूस बैठी हैं जितनी वे मेरे भाई को खोने के बाद बैठी थीं.
मु झे वह पल बिलकुल अभी के जैसा लग रहा है, ऐसा ही घुप्प अंधेरा और उस में आई की सिसकियोंभरी आवाज और मैं डर के मारे एक कोने से आई को देखे जा रहा था. वैसा ठीक अभी भी हो रहा है. काश, कोई आ कर उजाला कर दे. और न जाने कैसे और कब मेरी आंख लग गई, नींद तब टूटी जब बाबा आ चुके थे और आई से तलाक जैसी कुछ बातें बोल रहे थे और आई, आई तो जैसे यह सुन कर जिंदा लाश सी बनी हुई थीं जिन के सिर्फ आंसू ऐसे निकल रहे हों मानो किसी ने पानी का नल खोल दिया हो और बंद करना भूल गया हो.और मैं? आखिर मैं भी तो यही चाहता हूं कि बाबा हमारी जिंदगी से चले जाएं और सारे आंसू, दुख और परेशानी ले कर जाएं. फिर आई और मैं बहुत खुश रहेंगे पर आई तो जैसे पत्थर बनी हुई हैं. आज बाबा के कहने पर उन्हें मु झ में और बाबा में से किसी एक को चुनना होगा.
अब भला पत्थर कभी कुछ बोल सकता है क्या? बहुत देर बाद आई ने रोंआसीभरी आवाज में कहा, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हें तलाक देने के लिए तैयार हूं पर उस के पहले तुम्हें कल की पार्टी तक साथ रहना होगा और उस में हमारे रिश्तेदार, पड़ोसी, समाज के लोग जैसे सभी लोग होने चाहिए.’’बिना कुछ सोचे गुस्से में बाबा ने हामी भर दी.लेकिन मेरी आंखें अब भी आई से सवाल लिए बैठी हैं कि आखिर वे ऐसा क्यों करना चाहती हैं? क्या सभी के सामने वे बाबा का तमाशा बनाएंगी? नहींनहीं, इतना तो मैं जानता हूं आई को. पर बाबा? उन्होंने भी आई से इस का कारण क्यों नहीं पूछा? और कल इतनी जल्दी सब कैसे हो पाएगा.
पर करना ही क्यों है? दिमाग पर बहुत जोर डालने के बाद मु झे ध्यान आया कि कल ही के दिन मेरा भाई इस दुनिया को विदा कर के चला गया था और शायद हर बार की तरह इस बार भी उस की पुण्यतिथि में सब को बुलाया जाता है जिस के लिए सालभर बाबा अपनी छोटी सी कमाई का बहुत छोटा सा हिस्सा हर महीने जमा करते हैं. काश, इतना सब मेरे लिए किया होता तो मु झे 10वीं बोर्ड में अपना स्कूल छोड़ कर सरकारी स्कूल में एडमिशन न लेना पड़ता पर अभी तो बात तलाक की थी, इस में यह सब कहां से आ गया?अगले दिन मेरी आंखें फटी ही रह गईं जब आई ने मु झे तैयार करने के लिए मु झे वह महंगी ड्रैस पहनाई जो मैं ने एक बार फोन में दिखाई थी. आज पहली बार आई ने मेरे दिल की ख्वाहिश पूरी की है. इस ड्रैस में मैं बिलकुल उन लड़कियों जैसा लगूंगा जो बहुत सुंदर दिखती हैं.
ऐसा नहीं है कि आई ने मु झे कभी लड़कियों वाले कपड़े नहीं पहनाए पर ऐसे किसी पार्टी के लिए इस तरह से तैयार करवाना, यह पहली बार हुआ है. लेकिन इस से ज्यादा खुशी मु झे आज आई को देख कर हो रही है. आज वे इतनी खुश लग रही हैं जितनी खुश वे मेरे बोर्ड एग्जाम के रिजल्ट में मैरिट लाने पर हुई थीं पर ऐसा क्या हुआ है जिस से एक ही रात में आई के चेहरे पर असीम शांति वाली मुसकान है? मैं आई से कहना चाहता हूं कि आज अगर पार्टी में लोगों ने मु झे लड़कियों वाले कपड़ों में देख लिया तो फिर बाबा का सिर शर्म से झुक जाएगा, लेकिन उन्हें यह सब पता होने के बाद भी ऐसा क्यों कर रही हैं? आज सम झ आया ‘दिमाग का दही’ किसे कहते हैं. पार्टी हर बार की तरह इस बार भी हमारे घर के बगल वाले घरनुमा हौल में है. जिन का वह घर है वे विदेश में रहते हैं. कभीकभार छुट्टियों में आते हैं. ऐसे में बाबा को मुफ्त में एक बड़ा सा हौल मिल जाता है और टैंट का पैसा भी बच जाता है और घर असल में काफी अमीर लोगों का है तो उस में ज्यादा सजावट जैसे ताम झाम की जरूरत कभी पड़ी ही नहीं.
देखते ही कोई भी बोल दे कि अभीअभी इस को रेनोवेट करवाया हो. ऊपर से दिन के समय टैंट में गरमी भी तो बहुत लगती है.खैर, मु झे पता है, हर बार की तरह इस बार भी एक टेबल पर मेरे भाई की जन्म वाला एक फोटो फ्रेम और उस के सामने एक बड़ा सा दीया और उस के सामने अलग से टेबल पर एक थाली में परोसा हुआ आज का खाना जो मेरी पसंद का है आदि सब रखा है और आसपास कैटरिंग लगी हुई हैं जिन के खाने की मजेदार खुशबू नाक में दौड़ रही है.सभी लोगों के आने पर बाबा ने हर बार की तरह इस बार भी मेरे मर चुके भाई की याद में दीप जलाया और वही घिसीपिटी लाइन बोली जो वे हर बार बोलते हैं, ‘जैसा कि आप सभी को पता है, आज ही के दिन हमारे घर बेटा आया था और कुछ पल साथ रह कर जन्म लेने के कुछ पल बाद ही हम से दूर चला गया. उस की याद हमेशा मेरे दिल में रहेगी, इसलिए इस दिन को उस की याद में सैलिब्रेट करते हैं.’ और हर बार की तरह इस बार भी मैं कमरे में रह कर उन की बातों को अनसुना कर ही रहा था कि इतने में आई मु झे अपने साथ वहां ले जाने आईं जहां बाबा अभी ‘प्रवचन’ दे ही रहे थे.मेरा दिल बहुत तेजी से धड़क रहा है, ऐसा लग रहा था कि अब दिल फट कर बाहर आ ही जाएगा.
पता नहीं क्या होगा जब किसी को पता चलेगा कि मैं लड़का नहीं हूं तो सब कैसे देखेंगे, क्या सोचेंगे सभी? सब आई और बाबा का मजाक तो नहीं बनाएंगे? कहीं सभी लोग मिल कर उन लोगों के पास तो नहीं भेज देंगे मु झे? नहींनहीं, यह नहीं होगा कभी भी.पर मैं जो सोच रहा था, वही, वही हो रहा है. आई जैसे ही मु झे लोगों के बीच ले जा रही हैं, लोगों के देखने का नजरिया अलग हो रहा है. जैसे ही मैं बाबा के पास पहुंचा, आई ने सब के सामने बोलना शुरू किया, ‘‘आज के दिन आप सभी को एक जरूरी बात भी बताना चाहती हूं, हमारा बेटा अनमोल असल में लड़का या लड़की नहीं बल्कि ट्रांसजैंडर है और मु झे यह बताते हुए बिलकुल भी शर्म नहीं आ रही है. अब तक यह बात सिर्फ संतोष, मु झे और अनमोल को ही पता है.‘‘पर मु झे यह बात इतने सालों तक छिपाने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि मु झे डर था कि समाज के 4 लोग कहीं न कहीं कुछ ऐसा जरूर बोलते जो मैं अपने बच्चे के लिए नहीं सुन सकती. माना मेरा बेटा बोल नहीं सकता पर बुरा तो उसे लग ही सकता है न. लेकिन अब मेरा बेटा बड़ा हो गया है और सब सम झने भी लगा है.
यह अभी 12वीं क्लास में है और साथ ही, एक छोटामोटा राइटर भी. मु झे लगता है कि समाज के डर से मैं ने यह सब किया है पर अब मैं आप सभी से यह पूछना चाहती हूं कि क्या मेरे बेटे को आप लोगों की तरह जीने का हक नहीं है?’’ और न जाने क्याक्या आई ने कह डाला होगा जो बातें मेरी सम झ के बाहर हो रही थीं. इस बात से मैं इतना डर गया कि मैं उस जगह से भाग कर सीधे अपने कमरे में जा कर छिप गया जहां कोई मु झे ढूंढ़ न पाए. मु झे सम झ नहीं आ रहा था कि आई ने एक सांस में ये सारी बातें इतनी आसानी से कह दीं, क्या आई को डर नहीं लगा?मु झे इस समय बाहर पार्टी में सभी लोग भूखे खूंखार शेर की तरह लग रहे हैं जो देखते ही मु झे खा जाएंगे. बस, आई मु झे हर बार की तरह इस बार भी बचा लेंगी ऐसा मुझे लगता है और शायद अभी जो कुछ भी आई कर रही हैं, वह भी मेरे लिए अच्छा ही साबित हो.
बहुत लंबे समय तक अपने कमरे में बैठने के बाद मु झे लग रहा था आई मेरे पास जल्दी आ जाएंगी पर वे अभी तक नहीं आईं तो मैं ने अपने कमरे में नजरें घुमाना शुरू कर दिया. मैं ने आज से पहले कभी इस कमरे को इतना गौर से नहीं देखा था. सचमुच इस कमरे में मैं ने और आई ने मिल कर कितनाकुछ सजाया है और इस दीवार पर लगी मेरी और आई की बड़ी सी तसवीर बहुत खूबसूरत लग रही है और दीवार पर टंगी झालर भी आई के पायल की तरह आवाज कर रही है और यह पिक्चर वाल, इस में तो मेरे बनाए हुए वे सारे पिक्चर्स और स्कैच रखे हैं जो मैं ने बचपन से ले कर अभी तक बनाए हैं.
सचमुच कितना सुंदर लगता है यह कमरा, मु झे आज पता चला. 2 कमरे और एक किचन वाले एक छोटे से घर में भी आई ने मेरी सारी जरूरतों को पूरा किया है. मेरे और दूसरे कमरे को देख कर कोई यह नहीं कह सकता कि ये दोनों ही कमरे एक ही घर के हैं. मेरा रूम किसी शानदार हवेली से कम नहीं होगा. शायद ज्यादा जरूरत तो घर की बाकी चीजों को सुधारने की है, जैसे आई का टूटा हुआ फोन जो अभी तक हैंग होता है पर मेरे पास उस से अच्छा फोन है. दूसरे, कमरे की छत जो किसी पुरानी घिसी जूती की तरह है जिस में से हर बार बारिश में पानी टपकता है, ऊपर से बढ़ती महंगाई और बाबा की कम कमाई. बाबा भी करे तो अब क्या ही करे. कुछ दिनों से लगातार कारोबार में घाटा ही तो हो रहा है. लेकिन इन सब में कभी भी आई ने मु झे इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि हम मिडिल क्लास फैमिली से हैं.
सचमुच मु झे इस बात की भी सम झ अब जा कर आई कि इस कमरे में ऐसा कोई भी समान नहीं है जिस में मेरे साथ मेरी आई का अस्तित्व न हो और जो नफरत मु झे बाबा से थी वह तो अब हवा में उड़ सी गई. और यह सब देखने के बाद मैं एकाएक कमरे से बाहर निकल आया. न जाने इतनी हिम्मत मु झ में कहां से आई पर मैं सीधा पार्टी की तरफ तेज कदमों के साथ चल दिया और सीधे जा कर आज बाबा के पास खड़ा हो गया.मुझे लग रहा था कि बाबा मु झ से दूर चले जाएंगे लेकिन यह क्या, बाबा खुद मुझे, मेरा हाथ पकड़ कर मेहमानों के बीच ले गए.
मेहमानों से जितना बन सका उतना इशारों में बात करने की कोशिश मैं ने की. बाकी काम बाबा ने संभाल लिया. आई मु झे यह सब करते देख मुसकराने लगीं तो मैं सम झ गया कि आई ने हर बार की तरह आखिर सब ठीक कर ही दिया. और सच में जब मैं ‘सो कौल्ड’ समाज के 4 लोगों से बातें करने लगा तब मु झे यह सम झ आया कि शायद यह सब एक अनसुल झे रहस्य की तरह है जो हम अपने समाज के प्रति अपने मन में छिपाए रहते हैं और जब हम इन रहस्यों को अपने मन में सुल झा लेते हैं तब हमें यह समाज भी हम से जुड़ा हुआ दिखाई देता है. उस समयसमाज के उन लोगों से बात करते समय मु झे उन्होंने किसी अलग तरीके से महसूस भी नहीं होने दिया. मैं यह सोचता हूं कि जब हम उन लोगों को अपनी उलझनें बताएंगे और उन से जू झने का रास्ता भी, तब शायद सभी एकता के साथ हम से सहमत हो कर हमारे साथ, हमारी हिम्मत बन सकते हैं.खैर, जो भी होता है, अच्छा होता है.
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि आज का दिन इतना अच्छा जाएगा. रात में मैं ने आज पहली बार आई और बाबा को प्यार से बात करते देखा और तलाक जैसे शब्द तो मानो हवा में ठीक उसी तरह गायब हो चुके थे जैसे पानी भाप बन कर उड़ कर गायब हो जाता है.और आई समाज के जिन लोगों से डरा करती थीं उन लोगों ने भी आज बहुत प्यार से बात की और यह साबित कर दिया कि हमें समाज से नहीं, खुद के विचारों से लड़ना होता है. मु झे ये पल बहुत अच्छे लग रहे हैं. सच कहूं तो समाज हमेशा हमारे साथ ही होता है, बस, फर्क इतना है कि उस का निर्णय हमें लेना होता है कि हमें समाज का साथ अच्छे या बुरे तरीके से चाहिए. मु झे लगता था कि मेरे ट्रांसजैंडर होने पर समाज मु झे मार डालेगा पर ऐसा नहीं है. समाज में एकता हमेशा से ही रही है और लोगों का नजरिया तो हम से और हमारे व्यवहार से बनता है. सचमुच, मैं शायद सही सोच रहा हूं. -आयुषी