कहानी: प्रमाण दो
गुजरात जल रहा था. राजधानी अहमदाबाद की स्थिति और खतरनाक हो चुकी थी. हर महल्ले की तंग गलियों में मारकाट, खूनखराबा मचा हुआ था. आदमी कहलाने वाले चेहरे हिंसक दरिंदे बन गए थे, जीवन उदास हो रहा था और मृत्यु तांडव कर रही थी.
हर आंख सशंकित और हर चेहरा भयातुर. भयानक असुरक्षा की भावना ने लोगों को अपने घरों में कैद रहने को विवश कर दिया था.
यामिनी बेचैन थी. उसे समय से अस्पताल पहुंच जाने का कर्तव्यबोध बेचैन किए जा रहा था. उसे लग रहा था कि अस्पताल पहुंचाने वाली परमिट प्राप्त एंबुलेंस कहीं उन्मादियों के बीच फंस गई थी. वह अधिक समय तक रुकी नहीं रह सकती थी. उस पर आश्रित उस के मरीज आशा भरी नजरों से उस के आने की बाट जोह रहे होंगे. यामिनी को जब पक्का भरोसा हो गया कि अस्पताल की गाड़ी अब नहीं आएगी तो वह मुख्य सड़क को छोड़ कर तंग और सुनसान गलियों से हो कर, बचतीबचाती किसी प्रकार अस्पताल पहुंची.
ड्यूटी रूम में पहुंचते ही यामिनी निढाल हो कर पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई, थकान और रोंगटे खडे़ कर देने वाले दृश्यों के बारे में सोच कर उसे खुद ही ‘आदमी’ होने पर संदेह हो रहा था. अस्पताल में घायलों के आने का क्रम लगातार जारी था और सभी वार्ड अंगभंग घायलों की दिल दहला देने वाली कराहों से थरथरा रहे थे.
अचानक यामिनी के कानों में सीनियर सिस्टर मिसेज डेविडसन के पुकारने की आवाज सुनाई दी तो उस की तंद्रा भंग हुई.
‘‘यामिनी, बेड नं. 11 के मरीज को जा कर देख तो लो. वह दर्द से कराह तो रहा है किंतु किसी भी नर्स से न तो डे्रसिंग करवा रहा है और न इंजेक्शन लगवा रहा है,’’ डेविडसन बोलीं.
यामिनी वार्ड में जाने के लिए खड़ी ही हुई थी कि मिसेज डेविडसन की चेतावनी के लहजे से भरी आवाज सुनाई दी, ‘‘मिस यामिनी, हर पेशेंट से रिश्ता कायम कर लेने की बेतुकी आदत तुम्हारे लिए बहुत भारी पडे़गी. बहुत पछ- ताओगी एक दिन.’’
‘‘ऐसा कुछ नहीं है, मैडम.’’
‘‘फिर वह तुम्हीं से ड्रेसिंग बदलवाने की जिद क्यों कर रहा है?’’
‘‘मैडम, आप तो देख ही रही हैं कि शहर का हर आदमी अपने जीवन का युद्ध लड़ रहा है और अस्पताल में ऐसे घायल आ रहे हैं जिन्होंने अपने तमाम रिश्ते खो दिए हैं. निपट अकेला हो जाने का एहसास उन्हें इस लड़ाई में कमजोर बना रहा है. महज कुछ मीठे शब्द, थोड़ा सा अपनापन और स्नेह दे कर मैं उन्हें इस संघर्ष को जीतने में सहायता करती हूं, बस.’’
‘‘यह तुम्हारा लेक्चर मेरे पल्ले नहीं पड़ने वाला. बस, हमें अपनी ड्यूटी से मतलब होना चाहिए. पर मेरा मन कहता है कि रिश्ता कायम कर लेने की तुम्हारी यह आदत कहीं तुम्हारे लिए मुसीबत न बन जाए.’’
‘‘ऐसा कुछ नहीं होने वाला मैडम, पेशेंट ठीक हो जाए बस, वह अपने घर और मैं अपनी राह. बात समाप्त.’’
‘‘हां, आमतौर पर अस्पतालों में तो यही होता है. किंतु यह बात तुम्हारे साथ नहीं है.’’
‘‘क्यों? मरीजों के प्रति मेरा व्यवहार क्या औरों से अलग है?’’
‘‘हां,’’ सिस्टर डेविडसन बोलीं, ‘‘यहां आने वाला हर पुरुष पेशेंट तुम्हें अपनी बहन कैसे बना लेता है, और वह भी बस, एक ही दिन में.’’
‘‘बिलकुल वैसे ही जैसे मैं उन्हें तत्काल अपना भाई बना लेती हूं,’’ यामिनी ने मुसकराते हुए उत्तर दिया और ड्यूटी रूम से निकल कर बेड नं. 11 की ओर बढ़ गई.
बेड नं. 11 के निकट पहुंचते ही यामिनी ने कहा, ‘‘जीशान साहब, आप ने मुझे बहुत परेशान किया. सिस्टर से आप ने इंजेक्शन क्यों नहीं लगवाया? क्या उस के हाथ में कांटे हैं जो आप को चुभ जाएंगे?’’
‘‘ऐसा नहीं है सिस्टर. यहां के हर कर्मचारी को मैं सलाम करता हूं, मगर मैं ने आप से पहले ही बोल दिया था…’’
उस की बात बीच में ही काटते हुए यामिनी बोली, ‘‘क्या बोल दिया था? यही न कि तुम मेरे ही हाथ से दवा खाओगे. तुम्हारी बच्चों जैसी यह जिद बिलकुल ठीक नहीं है. मुझे और भी काम रहते हैं भाई. तुम ने समय पर इंजेक्शन नहीं लगवाया, समय पर दवा नहीं ली तो तुम्हें काफी नुकसान पहुंच सकता है. ’’
‘‘नफानुकसान की बात मैं नहीं जानता सिस्टर,’’ जीशान बोला, ‘‘पहले आप यह बताइए कि कल से आप दिखाई क्यों नहीं दीं?’’
‘‘अरे भाई, कुछ जरूरी काम पड़ गया था, जिस में बिजी हो गई थी. पर फिर ऐसा नहीं होना चाहिए. मैं न भी आऊं तो आप दूसरी नर्सों से दवा ले लिया करो, इंजेक्शन लगवा लिया करो.’’
‘‘हां, मगर आप की बात ही और है…’’
यामिनी ने उस को चुप रहने का संकेत करते हुए आराम करने को कहा और वापस जाने के लिए मुड़ी तो अपने पीछे मिसेज डेविडसन को देख कर चौंक पड़ी. वह न जाने कब से उन की बातोें को सुन रही थीं. उन की आंखों में एक अजीब सा आक्रोश झलक रहा था.
‘‘यामिनी, ड्यूटी रूम में चलो. मुझे तुम से एक बहुत जरूरी काम है.’’
यामिनी मिसेज डेविडसन का बहुत सम्मान करती थी. बिलकुल अपनी मां के समान उन्हें मानती थी. उन के ‘बहुत जरूरी काम’ का अर्थ वह समझ रही थी किंतु आज वह उन की डांट खाने के मूड में नहीं थी. वह जानती थी कि मिसेज डेविडसन अपने अनुभवों का हवाला दे कर उसे समाज, रिश्ते, दुनियादारी पर लंबीचौड़ी नसीहतों का कुनैन पिलाएंगी.
ऐसा नहीं था कि यामिनी, डेविडसन के मन में करवटें ले रही शंकाओं को समझती नहीं थी, किंतु उस से अधिक वह अपने मन को और विचारों को समझती थी. उस के मन में तथा विचारों के किसी भी कोने में ऐसा कुछ भी नहीं था, जैसा डेविडसन समझती थीं.
एक ममतामयी मां के रूप में यामिनी को डेविडसन अपनी बेटी ही समझती थीं. निपट अकेली यामिनी को किसी रिश्ते का कोई सहारा नहीं था, अत: एक लड़की का सब से बड़ा अवलंब, सब से भरोसेमंद रिश्ता, मां का रिश्ता वह यामिनी को देना चाहती थीं, और दे भी रही थीं.
ड्यूटी रूम में यामिनी अकेली थी. डाक्टर राउंड पर आ कर जा चुके थे. उन्हीं के पीछेपीछे डेविडसन भी अस्पताल परिसर में बने नर्सेज होस्टल में लंच कर लेने जा चुकी थीं.
यामिनी को होस्टल में कमरा नहीं मिल पाया था. वह अस्पताल से दूर किराए के एक छोटे से मकान में एक ट्रेनी नर्स के साथ रह रही थी. इसलिए दोपहर का खाना वह टिफिन में लाती थी, किंतु आज सुबह ही उसे जिस अफरातफरी से हो कर गुजरना पड़ा था, उस से उसे टिफिन लाने की सुध ही नहीं थी. आज यामिनी को अपने परिवार की बहुत याद आ रही थी, जिन से अब वह जीवन में कभी भी मिल नहीं सकती थी. आंखें बंद कीं तो उस का अतीत चलचित्र की तरह सामने आ गया.
अलीगढ़ के हिंदूमुसलिम दंगे ने उस का सर्वस्व छीन लिया था. दंगाइयों ने उस के मकान को चारों तरफ से घेर कर आग लगा दी थी. यामिनी का जीवन इसलिए बच गया कि वह अपनी किसी सहेली से मिलने चली गई थी. वापस लौटते समय रास्ते में ही उसे इस हृदयविदारक हादसे की सूचना मिली और पुलिस ने उसे घर तक जाने ही नहीं दिया, बल्कि जीप में बैठा कर थाने ले गई थी.
नानी को खबर मिली तो वह अलीगढ़ आईं और यामिनी को थाने से ही कानपुर ले गई थीं. उन के प्यारदुलार ने और समय के मरहम ने धीरेधीरे यामिनी के हृदय पर उभरे फफोलों को शांत कर दिया.
यामिनी किसी पर बोझ बन कर जीना नहीं चाहती थी. अत: उस ने नर्सिंग कोर्स में प्रवेश लिया और प्रशिक्षण पूरा होने पर अहमदाबाद में इस अस्पताल में एक नर्स के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की थी. मरीजों की सेवा कर के उसे शांति मिलती थी. उन्हीं के बीच अपने को व्यस्त रख कर वह अपने भयानक अतीत को भुलाने की कोशिश करती थी और कुछ हद तक इस में सफल भी हो रही थी.
यामिनी सोचती जा रही थी. चिंतन के क्षितिज पर अचानक जीशान का बिंब उभरता हुआ प्रतीत हुआ. उस का चिंतन क्रम जीशान पर आ कर टिक गया.
जीशान लगभग 25 साल का उत्साही युवक था. उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक गांव से अपने किसी रिश्तेदार के साथ अहमदाबाद कमाने आया था, ताकि परिवार का खर्च चलाने में वह अपने गरीब बाप का कुछ सहयोग कर सके. उस की कमाई की गाड़ी भी पटरी पर चल रही थी, किंतु तभी उस के अरमान भी दंगों के दानव का शिकार हो गए. वह अपने कमरे में अपने रिश्तेदार के साथ दम साधे बैठा था कि अचानक दंगाइयों की टोली की निगाह उस के कमरे पर पड़ गई. उन्मादी दंगाइयों ने कमरे में आग लगा दी और दरवाजे पर खडे़ हो कर हथियार लहराते उन के बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगे.
जीशान भय से कांप रहा था. उस के रिश्तेदार ने अपने प्राणों का मोह छोड़ कर जीशान को अपने पीछे किया और दंगाइयों की टोली के एक किनारे से सरपट भाग खड़ा हुआ. दंगाइयों ने दौड़ कर उन को पकड़ना चाहा. रिश्तेदार पलट पड़ा किंतु जीशान को भाग जाने को कहा. रिश्तेदार ने अपने शरीर को दंगाइयों के हवाले कर दिया. पल भर में एक जिंदा शरीर मांस के लोथड़ों में बदल गया था.
भागते जीशान को सामने से आती दैत्यों की एक टोली ने पकड़ लिया और हाकियों तथा डंडों से पीट कर अधमरा कर डाला, मगर तभी सायरन बजाती पुलिस की गाड़ी आ गई और जीशान अस्पताल में भर्ती होने के लिए आ गया. यह बात जीशान ने ही उसे बताई थी.
जीशान के बारे में सोचतेसोचते यामिनी की आंखें सजल हो उठीं. उस के चिंतन का क्रम तब टूटा जब वार्डबौय ने उस से अलमारी की चाभियां मांगीं.
चाभियों का गुच्छा वार्डबौय को थमा कर यामिनी का चिंतन पुन: जीशान पर केंद्रित हो गया.
आखिर जीशान में ऐसा क्या खास था कि सब की बातें सुनने पर भी उस के प्रति यामिनी की स्नेहिल भावनाओं में कोई परिवर्तन नहीं आ पाया था. शायद इस का कारण दोनों के जीवन में घटित त्रासदियों की समानता थी या जीशान का भोलापन और उस के भीतर बैठा एक कोमल मानवीय संवेदनाओं से भरा एक निश्छल विशाल हृदय था. कारण जो भी हो, यामिनी अपने को जीशान से जुड़ता हुआ अनुभव कर रही थी, मगर किस रूप में? उसे स्वयं भी इस का पता नहीं था.
अब जीशान बड़ी तेजी से ठीक हो रहा था. अंतत: वह दिन आ गया जिस के कभी भी न आने की मन ही मन जीशान दुआ कर रहा था. उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई. उस दिन जीशान बहुत ही उदास था. यामिनी उसे एकटक निहारे जा रही थी, किंतु अपने में खोए जीशान को उस के आने का आभास तक नहीं हुआ. यामिनी ने ही सन्नाटे को तोड़ते हुए पूछा, ‘‘अब क्या? अब तो तुम स्वस्थ हो गए. तुम्हें छुट्टी मिल गई. तुम्हें तो खुश होना चाहिए, पर तुम ने तो मुुंह लटकाया है, क्यों?’’
वह दुख से बोझिल उदासीन स्वर में बोला, ‘‘यहां से चले जाने पर आप से मुलाकात कैसे होगी, आप को देखूंगा कैसे? मुझे आप की बहुत याद आएगी.’’
‘‘इस में उदास और दुखी होने की क्या बात है. हम और तुम दोनों इसी शहर में रहते हैं, जब भी मिलना चाहोगे मिल लेना. याद आने पर अस्पताल चले आना. हां, कभी मेरे घर पर आने की मत सोचना.’’
‘‘हां, सच कहती हैं आप. हम तो इनसान हैं नहीं, बस, हिंदूमुसलमान भर हैं. आप हिंदू, मैं मुसलमान, कैसे आ सकता हूं?’’
‘‘बात यह नहीं है. मैं हिंदूमुसलमान कुछ नहीं मानती. शायद तुम भी नहीं मानते हो पर सभी लोग ऐसा ही तो नहीं सोचते.’’
‘‘मैं नासमझ नहीं हूं, आप के मन की दुविधा समझ रहा हूं. सारे मुल्क में दंगेफसाद की जड़ हम यानी हिंदू और मुसलमान ही तो हैं.’’
‘‘बस, अब मुंह मत बिसूरो. जाते समय हंस कर विदा लो. सबकुछ ठीकठीक रहेगा. हां, अब चेहरे पर हंसी ला कर गुडबाय बोलो.’’
‘‘अलविदा, सिस्टर, अगर यहां से जाने के बाद जिंदा रहा तो जल्दी मिलूंगा,’’ कहते हुए जीशान का गला रुंध गया. जीशान थकेहारे कदमों से वापस लौट रहा था अपने उस मकान पर जो आग की भेंट चढ़ चुका था. और कोई ठिकाना भी तो नहीं था उस के पास.
भीगी आंखों से यामिनी दूर जाते हुए जीशान को देखे जा रही थी कि अचानक उस के कानों में डेविडसन का खरखराता हुआ स्वर गूंजा, ‘‘मिस, अगर फेयरवेल पूरा हो चुका हो तो बेड नं. 7 को देखने की कृपा करेंगी. नासमझ, भावुक लड़की, एक दिन इस का खमियाजा भोगेगी.’’
उस दिन यामिनी और उस के साथ रहने वाली ट्रेनी नर्स फ्रेश हो कर चाय की चुस्कियां लेती हुई समाज की बदली हुई तसवीर पर चर्चा कर रही थीं कि तभी कालबेल बज उठी.
यामिनी जीशान की सेवा करती है ताकि वह जल्दी ठीक हो जाए. यामिनी और जीशान दोनों ही एकदूसरे के प्रति लगाव महसूस करते हैं. यामिनी से अलग होते समय जीशान उदास हो जाता है और कहता है कि मैं आप से कैसे मिलूंगा? मैं मुसलमान हूं और आप हिंदू, तो वह समझाती है कि हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है और वह अलविदा कह कर चला जाता है. यामिनी अपनी सहयोगी नर्स के साथ शहर में हुए दंगों पर चर्चा कर रही होती है कि तभी कालबेल बजती है. अब आगे…
हिंदूमुसलिम दंगों के दौरान मिले यामिनी और जीशान के बीच भाईबहन का रिश्ता कायम हो चुका था लेकिन दुनिया वाले इस रिश्ते को कहां पाक मानने वाले थे. क्या जीशान और यामिनी दुनिया के सामने अपने इस मुंहबोले रिश्ते को साबित कर पाए?गतांक से आगे…
ट्रेनी नर्स ने दरवाजा खोला. सामने खडे़ युवक ने उस को बताया, ‘‘सिस्टर, मैं जीशान का पड़ोसी हूं. क्या यामिनी मैडम यहीं रहती हैं?’’
‘‘हां, रहती तो यहीं हैं, मगर तुम्हें उन से क्या काम है?’’
‘‘उन्हें खबर कर दीजिए कि जीशान को पिछले 2 दिन से बहुत तेज बुखार है. उस ने मैडम को बुलाया है.’’
कमरे के अंदर बैठी यामिनी नर्स और आगंतुक की बातचीत ध्यान से सुन रही थी. जीशान के अतिशय बीमार होने की खबर सुन कर उस का दिल धक् से रह गया. यामिनी को लगा, मानो उस का कोई अपना कातर स्वर में उसे पुकार रहा हो. उस ने अपना मिनी फर्स्ट एड बौक्स उठाया और उस युवक के साथ निकल पड़ी.कमरे में बिस्तर पर बेसुध पड़ा जीशान कराह रहा था. यामिनी ने उस के माथे को छू कर देखा तो वह भट्ठी की तरह तप रहा था. यामिनी ने उसे जरूरी दवाएं दीं और एक इंजेक्शन भी लगा दिया. कुछ देर बाद जीशान की स्थिति कुछ संभली तो यामिनी ने पूछा, ‘‘जीशान, तुम अपने प्रति इतने लापरवाह क्यों हो? अपना ध्यान क्यों नहीं रखते?’’
‘‘ध्यान तो रखता हूं, पर बुखार का क्या करूं? खुद ब खुद आ गया.’’
जीशान के इस भोलेपन पर यामिनी ने वात्सल्य भाव से कहा, ‘‘जब तक तुम स्वस्थ नहीं हो जाते, मैं रोजाना आया करूंगी और तुम्हारे लिए चाय, सूप जो भी होगा बनाऊंगी और अपने सामने दवाएं खिलाऊंगी.’’
‘‘ऐसा तो सिर्फ 2 ही लोग कर सकते हैं, मां अथवा बहन.’’
यामिनी कुछ बोलना चाहती थी कि जीशान कांपते स्वर में पूछ बैठा, ‘‘क्या मैं आप को दीदी कहूं? अस्पताल में जब पहली बार होश आया था और आप को तीमारदारी करते हुए पाया था तभी से मैं ने मन ही मन आप को बड़ी बहन मान लिया था. इस से ज्यादा खूबसूरत और पाक रिश्ता दूसरा नहीं हो सकता, क्योंकि यही रिश्ता इतनी खिदमत कर सकता है.’’
‘‘यह तो ठीक है, मगर….’’
‘‘दीदी, अब मुझे मत ठुकराओ, वरना मैं कभी दवा नहीं खाऊंगा. वैसे भी तो यह दोबारा की जिंदगी आप की ही बदौलत है. आप खूब जानती हैं कि मैं आप को देखे बगैर एक पल भी नहीं रह पाता.’’
यामिनी निरुत्तर थी. रिश्ता कायम हो चुका था. सारे देश में खूनखराबे का कारण बने 2 विरोधी धर्मों के युवकयुवती के बीच भाईबहन का अटूट रिश्ता पनप चुका था.
यामिनी जब जीशान के कमरे से निकली तो अगल- बगल और सामने के मकानों के दरवाजों से झांकती अनेक आंखों के पीछे के मनोभावों को ताड़ कर वह बेचैन हो उठी. दुकानों के बाहर झुंड बना कर खडे़ लोगों ने भी उसे विचित्र सी निगाहों से देखना शुरू कर दिया. लेकिन किसी की ओर देखे बिना वह सिर झुका कर चुपचाप चलती चली गई.
जीशान जब तक पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो गया तब तक यह क्रम अनवरत चलता रहा. मिसेज डेविडसन को यामिनी का एक मरीज के प्रति इतना लगाव कतई पसंद नहीं था. एक दिन उन्होंने कह ही दिया, ‘‘जीशान के घर इस तरह हर रोज जाना ठीक नहीं है, यामिनी.’’
‘‘क्यों?’’ प्रश्नसूचक मुद्रा में यामिनी ने पूछा.
उन्होंने समझाते हुए कहा, ‘‘तुम कोई दूधपीती बच्ची नहीं हो, जिसे कुछ पता ही न हो. भले तुम उसे भाई समझती हो, किंतु कम से कम आज के माहौल में दुनिया वाले इस मुंहबोले रिश्ते को सहन करेेंगे क्या?’’
‘‘जब यह रिश्ता नहीं बना था तब दुनिया वालों ने मुझे या जीशान को बख्शा था क्या जो मैं इन की परवा करूं.’’
‘‘दुनिया में रह कर दुनिया वालों की परवा तो करनी ही पडे़गी.’’
‘‘मैं स्वयं भी इस बंजर जीवन से तंग आ गई हूं. नहीं रहना इस दुनिया में…तो किसी से डरना कैसा,’’ यामिनी ने कठोर मुद्रा में अपना पक्ष रखा.
मिसेज डेविडसन चुप हो गईं. उन्होंने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेर और यह कहते हुए उसे अपने साथ होस्टल लिवा ले गईं कि आज का खाना और सोना सब उन्हीं के साथ होना है.
यामिनी को बर्थ डे जैसे अनावश्यक चोंचले बिलकुल नहीं भाते थे. फिर भी मिसेज डेविडसन ने आज सुबह ही उस को याद दिलाया था कि आज रात का भोजन वह उसी के साथ उस के कमरे पर लेंगी और वह भी ‘स्पेशल.’ यामिनी ने हामी भर ली थी, क्योंकि प्रस्ताव केवल भोजन का था, बर्थ डे मनाने का नहीं.
घर आ कर फ्रेश होने के बाद वह और उस की साथी टे्रनी नर्स अच्छी मेहमाननवाजी की तैयारियों में जुट गईं कि अचानक यामिनी का मोबाइल बज उठा. दूसरी तरफ से जीशान बोल रहा था, ‘दीदी, आज 7 बजे तक आप जरूर आ जाइएगा. बहुत जरूरी काम है. 8 बजे तक हरहाल में मैं आप को आप के रूम पर वापस छोड़ दूंगा.’
‘किंतु मेरे भाई, यह अचानक ऐसी कौन सी आफत आ गई है?’
‘मेरे भाई’ शब्द सुनते ही जीशान का रोमरोम पुलकित हो उठा. कितनी मिठास, कितनी ऊर्जा थी इस पुकार में. वह समझ नहीं पा रहा था कि अपनी बात कैसे कहे. इन कुछ पलों की चुप्पी का अर्थ यामिनी समझ नहीं पा रही थी. उस ने कहा, ‘जीशान, आज मैं नहीं आ सकती. तुम हर बात पर जिद क्यों करते हो?’
‘दीदी, यह मेरी आखिरी जिद है. मान जाओ, फिर कभी भी ऐसी गुस्ताखी नहीं करूंगा,’ इतना कह कर जीशान ने फोन काट दिया था.
यामिनी अजीब संकट में पड़ गई. एक तरफ जीशान का ‘बुलावा’ था तो दूसरी तरफ मिसेज डेविडसन को दी गई उस की ‘सहमति’ थी. आखिर दिल ने जीशान के पक्ष में फैसला दे दिया.
यामिनी को कहीं जाने की तैयारी करते देख उस की साथी नर्स समझ गई कि मुंहबोले इस भाई के बुलावे ने यामिनी को विवश कर दिया है. फिर भी उस ने पूछा, ‘‘मैम, मिसेज डेविडसन का क्या होगा?’’
‘‘होगा क्या? थोड़ा सा गुस्सा, थोड़ा बड़बड़ाना और फिर मेरी सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना, हर मां ऐसी ही होती है,’’ कहते हुए यामिनी निकल पड़ी.
जीशान के कमरे पर यामिनी पहुंची तो देखा दरवाजा खुला था. कमरे में जो दृश्य देखा तो वह अवाक् रह गई. मेज पर सजा ‘केक’ और उस पर जलती एक कैंडिल, एक खूबसूरत नया ‘चाकू’ और नया ‘ज्वेलरी केस’ सबकुछ बड़ा विचित्र लग रहा था. इन सब चीजों को विस्मय से देखती हुई यामिनी की आंखें जीशान को ढूंढ़ रही थीं. उस के मन में संशय उठा कि कहीं उस के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई. उस ने जैसे ही जीशान को आवाज लगाई, ठीक उसी समय दरवाजे पर आहट हुई और जीशान हंसते हुए कमरे में प्रवेश कर रहा था. उस के एक हाथ में रक्षासूत्र और एक हाथ में ताजे फूल थे.
जीशान को सामने पा कर यामिनी आश्वस्त हो गई. उस ने अपने को संयत करते हुए पूछा, ‘‘इस तरह कहां चले गए थे? और वह भी कमरा खुला छोड़ कर, तुम्हें अक्ल क्यों नहीं आती? और यह सब क्या है?’’
‘‘एक गरीब भाई की तरफ से अपनी दीदी के बर्थ डे पर एक छोटा सा जलसा.’’
अपनत्व की इतनी सच्ची, इतनी निश्छल प्रतिक्रिया यामिनी ने अपने अब तक के जीवन में नहीं देखी थी. भावातिरेक में उस के नेत्र सजल हो उठे. उस ने रुंधे गले से कहा, ‘‘मेरे भाई, अब तक तुम क्यों नहीं मिले? कहां छिपे थे तुम अब तक? मिले भी तो तब जब हम दोनों के रिश्ते दुनिया के लिए कांटे सरीखे हैं.’’
जीशान ने अपना हाथ यामिनी के मुंह पर रखते हुए कहा, ‘‘अब और नहीं, दीदी, आज आप का जन्मदिन है. अब चलिए, केक काटिए और यह जलती हुई मोमबत्ती बुझाइए.’’
यामिनी ने जीशान की खुशी के लिए सब किया. केक काटा और मोमबत्ती बुझाई. किसी बच्चे के समान ताली बजा कर जीशान जोर से बोल उठा, ‘‘हैप्पी बर्थडे-टू यू माई डियर सिस्टर,’’ फिर केक का एक टुकड़ा उठा कर यामिनी के मुंह में डाला और आधा तोड़ कर स्वयं खा लिया.
यामिनी ने घड़ी पर निगाह डाली. 8 बजने में कुछ ही मिनट बाकी थे. उस ने जीशान को याद दिलाते हुए जाने का उपक्रम किया. जीशान ने यामिनी से सिर्फ 2 मिनट का समय और मांगा. उस ने यामिनी से आंखें मूंद कर सामने घूम जाने का अनुरोध किया. यंत्रचालित सी यामिनी ने वैसा ही किया. जीशान ने एक फूल यामिनी के पैरों पर स्पर्श कर अपने माथे से लगाया.
तभी जीशान ने अपनी दाईं कलाई और बाएं हाथ का रक्षासूत्र यामिनी की ओर बढ़ा दिया. यामिनी उस का मकसद समझ गई. उस ने मेज पर पड़े फूल उस पर निछावर किए और राखी बांध दी.
वह आदर भाव से अपनी दीदी के पैर छूने को झुका ही था कि दरवाजा भड़ाक से खुला और 10-12 खूंखार चेहरे तलवार, डंडा, हाकी आदि ले कर दनदनाते हुए कमरे में घुस गए और उन्हें घेर लिया.
एक बोला, ‘‘क्या गुल खिलाए जा रहे हैं यहां?’’
दूसरा बोला, ‘‘यह शरीफों का महल्ला है. इस तरह की बेहयायी करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी?’’
तीसरा बोला, ‘‘यह बदचलन औरत है. मैं ने अकसर इसे यहां आते देखा है.’’
भद्दी सी गाली देते हुए चौथा बोला, ‘‘रास रचाने को तुम्हें यह ंमुसलमान ही मिला था, सारे हिंदू मर गए थे क्या?’’
भीड़ में से कोई ललकराते हुए बोला, ‘‘देखते क्या हो? इस विधर्मी को काट डालो और उठा कर ले चलो इस मेनका को.’’
यामिनी ने अपना कलेजा कड़ा किया और दृढ़ता से जीशान के आगे खड़ी हो कर बोली, ‘‘इसे नहीं, दोष मेरा है, मेरे टुकड़ेटुकड़े कर डालो क्योंकि मैं हिंदू हूं. आप लोगों की प्रतिष्ठा मेरे नाते धूमिल हुई है.’’
यह सब देख कर जीशान में भी साहस का संचार हुआ. वह यामिनी के आगे आ गया और अपनी दाहिनी कलाई उन के सामने उठाते हुए बोला, ‘‘आप लोग खुद देख लीजिए, हमारा रिश्ता क्या है? राखी तो सिर्फ बहन ही अपने भाई को बांधती है.’’
उस का हाथ झटकते हुए एक बोला, ‘‘अबे, तू क्या जाने बहनभाई के रिश्ते को. तुझ जैसों को तो सिर्फ मौका चाहिए किसी हिंदू लड़की को भ्रष्ट करने का. वैसे भी आज रक्षाबंधन है क्या?’’
तभी यामिनी को एक अवसर मिल गया. उस ने तर्क भरे लहजे में कहा, ‘‘रानी कर्णावती ने जब हुमायूं को राखी भेजी थी तब भी तो रक्षाबंधन नहीं था. किंतु आप लोग यह सारी लुभावनी मानवतापूर्ण बातें तो केवल मंच से ही बोलते हैं, व्यवहार में तो वही करते हैं जैसा अभी यहां कर रहे हैं.’’
यह तर्क सुन कर भीड़ के ज्यादातर युवक बगलें झांकने लगे. किंतु एक ने उस के तर्क को काटते हुए कहा, ‘‘हुमायूं ने तो राखी के धर्म का निर्वाह किया था. भाई के समान उस ने रानी कर्णावती के लिए खून बहाया था. तुम्हारा यह भाई क्या ऐसा प्रमाण दे सकता है?’’
यामिनी यह सुन कर अचकचा गई. उसे कोई तर्क नहीं सूझ रहा था. तभी अचानक जीशान ने मेज पर पड़ा चाकू उठाया और राखी वाली कलाई की नस काट डाली. खून की धार बह चली. खूंखार चेहरे एकएक कर अदृश्य होते गए. काफी देर तक यामिनी मूर्तिवत् खड़ी रह गई. उस की चेतनशून्यता तब टूटी जब गरम रक्त का आभास उस के पांवों को हुआ. उस का ध्यान जीशान की ओर गया, जो मूर्छित हो कर जमीन पर पड़ा था.
यामिनी को कुछ भी नहीं सूझ रहा था. उस ने अपने आंचल का किनारा फाड़ा और कस कर जीशान की कलाई पर बांध दिया. उसी समय दरवाजे पर मिसेज डेविडसन और यामिनी की रूमपार्टनर खड़ी दिखाई दीं. उन दोनों ने फोन कर के एंबुलेंस मंगा ली थी.
जीशान एक बार फिर उसी अस्पताल की ओर जा रहा था जहां से उसे जीवनदान और यह रिश्ता मिला था. उस का सिर यामिनी की गोद में था. यामिनी के हाथ प्यार से उस का माथा सहला रहे थे.- सत्यव्रत