कहानी: नायिका
एक रात रेवा जब आधी रात को पानी लेने उठी तो देखा कि सीता के कमरे की लाइट जल रही. उस ने धीरे से दरवाजा खोल कर अंदर झांका तो हैरान रह गई...
‘‘सच ही तो है. हर इंसान अपने लिए खुद ही जिम्मेदार होता है. दुनिया कहां पहुंच गई और ये लोग अपनी पुरानी सोच के वजह से पिछड़े ही रह गए. अफसोस तो इस बात का है कि इन की ऐसी मानसिकता के कारण इन के बच्चों का जीवन भी बरबाद हो जाता है,’’ कमरे में घुसते ही रेवा बड़बड़ाने लगी.
औफिस के लिए तैयार हो रहे पराग ने मुड़ कर रेवा की ओर देखा, ‘‘क्या हुआ? मेरे अलावा अब और किस की शामत आई है?’’
‘‘पराग, तुम्हें तो हर वक्त मजाक ही सूझता है. मैं तो सीता के बारे में सोच रही थी. शोभा को कितना समझ रही हूं. मगर वह तो उस की शादी करने पर तुली हुई है. अरे, अभी सिर्फ 16 की ही तो है. इतनी कच्ची उम्र में शादी कर देंगे, फिर जल्दी 3-4 बच्चे हो जाएंगे और फिर झाड़ूपोंछा, चौकाबरतन करते ही उस की जिंदगी कब खत्म हो जाएगी, उसे खुद भी पता नहीं पड़ेगा. कितना कह रही हूं कि लड़की छोटी है, थोड़ा रुक जाओ पढ़ना चाहती है तो पढ़ने दो… जो मदद चाहिए होगी मैं कर दूंगी पर नहीं… लड़की ज्यादा बड़ी हो जाएगी तो शादी में मुश्किल होगी… हुंह, रेवा, मेरे पास एक आइडिया है. तुम मेड लिबरेशन ऐसोसिएशन बनाओ और उस की प्रैसिडैंट बन जाओ. तुम्हारे जैसी कुछ और औरतें मिल जाएंगी तो सीता ही क्यों, सारी मेड्स की समस्याओं का समाधान मिल जाएगा. रेवा प्लीज… यू मस्ट डू इट. तुम्हारी मैनेजरियल स्किल्स भी काम आएंगी और फिर इतनी कामवालियों का उद्धार कर के तुम्हें कितना पुण्य मिलेगा… सोचो जरा.’’
पराग की चुहल से रेवा और चिढ़ गई, ‘‘सब से पहले तो मुझे खुद को लिबरेट करना है तुम से. आज फिर तुम ने गीला तौलिया पलंग पर फेंक दिया है. मेरे घर का अनुशासन तोड़ा न तो अच्छा नहीं होगा.’’
पराग ने हाथ जोड़ लिए, ‘‘अभी उठाता हूं मेरी मां, माफ करो. वैसे तुम्हारा जोर सिर्फ मुझ पर चलता है. इतना प्यार करने वाला पति मिला है पर उस की कोई कद्र नहीं है.’’
‘‘अच्छा, अच्छा, अब ज्यादा नाटक मत करो. जल्दी औफिस जाओ वरना लेट हो जाओगे.’’
‘‘औफिस तो मैं चला जाऊंगा, बट औन ए सीरियस नोट, रेवा… प्लीज इतनी इमोशनल मत बनो. जिंदगी में प्रैक्टिकल होना ही पड़ता है. तुम सीता के बारे में सोच कर इतनी परेशान हो रही हो लेकिन तुम कुछ नहीं कर पाओगी. यह उन लोगों का निजी मामला है, हम इस में कुछ नहीं कर सकते. मुझे लगता है कि तुम घर पर बैठ कर स्ट्रैस्ड हो रही हो. पहले औफिस के कामों में इतनी व्यस्त रहती थीं कि किसी और बात में ध्यान ही नहीं होता था तुम्हारा और अब… अच्छा होगा कि तुम अपने लिए कोई नई नौकरी ढूंढ़ लो. घर पर रहोगी तो फालतू बातों में उलझ रहोगी.’’
थोड़ी देर में पराग तो चला गया लेकिन रेवा गहरी सोच में डूब गई. वह हमेशा से एक कैरियर वूमन रही थी और पराग इस बात को जानता था.
वह अपनी मेहनत से कामयाबी की सीढि़यां चढ़ भी रही थी पर रिसेशन के कारण उस की नौकरी चली गई. नौकरी छूट जाने का उसे बहुत मलाल हुआ था लेकिन उसे भरोसा था कि उसे दूसरी नौकरी जल्द ही मिल जाएगी… मगर आज पराग ने उस की हताशा को गलत अर्थ में लिया था. वह कुंठित जरूर थी लेकिन सिर्फ सीता की मदद न कर पाने के कारण. रेवा ने एक लंबी सांस ली और बाहर ड्राइंगरूम में आ गई.
सीता वहां नम्रा के साथ खेल रही थी. कितना हिल गई थी नम्रा सीता के साथ… अब जब कुछ दिनों में सीता चली जाएगी तो नम्रा बहुत मिस करेगी उसे. रेवा ने सीता की ओर देखा. दुबलीपतली, श्यामवर्णा सीता परिस्थितियों के कारण समझ से चाहे परिपक्व हो चुकी हो पर थी तो आखिर बच्ची ही. इतनी नाजुक उम्र में शादी का बोझ कैसे उठा पाएगी? रेवा की सोच फिर सीता पर ही आ कर अटक गई.
सीता रेवा की कामवाली शोभा की बेटी थी. नम्रा का जन्म सिजेरियन से हुआ था. सास तो रेवा की थी नहीं, मां भी कितने दिन रहती. तब शोभा सीता को ले आई थी, ‘‘दीदी, इसे रख लो. बच्ची को संभालने में भी मदद कर देगी और ऊपर का छोटामोटा काम भी करा लेना.’’
‘‘अरे, यह तो बहुत छोटी है… यह कैसे कर पाएगी और यह स्कूल नहीं जाती है क्या?’’
‘‘स्कूल तो सुबह जाती है… 11 बजे तक आ जाएगी. काम तो यह सब कर लेती है. दूसरे घर में करती थी पर अब उन लोगों की बदली दूसरे शहर में हो गई है. आप 2-4 रोज देख लो… दिनभर आप के पास रहेगी और शाम को मेरे साथ वापस लौट जाएगी.’’
सीता ने पहले दिन से ही रेवा को प्रभावित कर दिया. उस ने धीरेधीरे नम्रा का सारा काम संभाल लिया. वह बड़े प्यार से नम्रा की मालिश कर उसे नहला देती, बोतल से दूध पिला देती, नैपी बदल देती और अपनी गोद में ही थपका कर सुला भी देती. इस के साथ ही वह रेवा को सब्जी काट देती, आटा गूंध देती और नम्रा के कपड़े धोसुखा कर तह कर देती. वह स्वभाव की भी इतनी शांत थी कि उस ने जल्द ही रेवा का विश्वास जीत लिया.
सीता के होने से रेवा नम्रा और घर के प्रति निश्चिंत हो गई थी इसलिए जब उसे नई नौकरी का औफर मिला तो उस ने शोभा से कह कर सीता को सारे दिन के लिए अपने घर रख लिया. 3 बैडरूम का फ्लैट था, रेवा ने एक कमरा सीता को दे दिया. अच्छा खानेपहनने को मिलता था तो सीता भी खुश ही थी.
सीता ने एक बार रेवा से कहा था कि वह कुछ बनना चाहती है. तब रेवा ने उसे मन लगा कर पढ़ने की सलाह दी थी. रेवा के काम का समय दोपहर से शुरू हो कर रात तक चलता था. उसे तो वर्क फ्रौम होम की सुविधा भी थी. रेवा ने इस बात का पूरा खयाल रखा कि सीता की पढ़ाई न छूटे. सीता पहले की तरह ही स्कूल जाती रही.
धीरेधीरे रेवा को सीता के प्रति एक अपनापन महसूस होने लगा. रेवा ने उस की स्कूल की कापियां देखी थीं. उसे लगता था कि सीता यदि लगन से पढ़ाई करती रहे तो अपने लिए अपनी नियति से हट कर कोई मुकाम बनाने में सक्षम हो सकती है. रेवा ने तय कर लिया था कि वह सीता की शिक्षा में हर तरीके से सहयोग करेगी.
मगर जिंदगी हमेशा पक्की सड़क पर तो आराम से नहीं चलती न… कभी कच्चे रास्तों की असुविधाएं भी सहन करनी पड़ती हैं, कभी घुमावदार रास्तों के जाल में भी उलझना पड़ता है और कभी स्पीडब्रेकर्स के ?ाटके भी लग ही जाते हैं. शोभा ने आ कर रेवा को सीता की शादी तय होने की खबर सुना दी.
‘‘अरे, ऐसे कैसे? सीता तो बहुत छोटी है अभी.’’
‘‘कहां दीदी… 16 की हो गई है. हमारे ही गांव का लड़का है, अच्छा घरपरिवार है. यह भी सुखी हो जाएगी और हम भी निबट जाएंगे.’’
‘‘शोभा, तुम भी कैसी बातें कर रही हो? इतनी छोटी उम्र में तो शादी गैरकानूनी है न और सीता का भी तो सोचो. इस नाजुक उम्र में वह शादी की जिम्मेदारी कैसे निभा पाएगी?’’
‘‘अरे दीदी, हम लोगों में तो ऐसा ही होता है. मेरा ब्याह भी तो 15 साल की उम्र में हुआ था.’’
‘‘पर शोभा इस का दिमाग अच्छा है. पढ़ने दो अभी. इस की पढ़ाई के खर्चे में मैं मदद कर दूंगी. पढ़लिख जाएगी तो जिंदगी बन जाएगी.’’
‘‘देखो दीदी, आप को हम लोगों का नहीं पता. ज्यादा पढ़ गई और उम्र बढ़ गई तो कोई नहीं मिलेगा इस से शादी करने के लिए. आप चिंता न करो. 2 महीने बाद इस का ब्याह ठहरा है. उस के पहले मैं आप को दूसरी कामवाली लगा दूंगी,’’ कह कर शोभा ने बात खत्म कर दी.
शोभा की बातें सुनने के बाद रेवा क्या कहती? वह मन मसोस कर चुप रह गई.
‘‘दीदी, नम्रा सो गई है. कौन सी सब्जी काटनी है?’’
रेवा ने महसूस किया कि जब से सीता का विवाह तय हुआ था तब से उस के व्यवहार में परिवर्तन आना शुरू हुआ था. वह सारे काम जैसे यंत्रवत करती…ध्यान तो उस का किसी और ही दुनिया में होता. हमेशा खोईखोई रहती, अपने ही खयालों में. पढ़ाई में भी उस का मन नहीं लगता था पहले की तरह. रेवा ने सोचा आज उस के मन को टटोल ले.
‘‘क्यों सीता… तू तो कहती थी तुझे पढ़ना है, कुछ बनना है. तेरी मां तो तेरी शादी करा रही है. तू मना क्यों नहीं करती?’’
‘‘क्या बोलेंगे, दीदी? अब कामवाली के घर पैदा हुए हैं तो कामवाली ही बनेंगे. ऊंची पढ़ाई में खर्चा भी तो बहुत होता है. आप का भी कितना एहसान लेंगे और फिर शादी भी तो जरूरी है. सारी उम्र अकेले कैसे रहेंगे?’’
रेवा चुप रह गई. वह सोचती थी कि सीता अपनी नियति के चक्रव्यूह को तोड़ गिराएगी लेकिन अब जब उस ने स्वयं ही अपने लिए यह रास्ता चुन लिया था तो रेवा कर भी क्या सकती थी?
‘‘दीदी, आप मां से कुछ न कहा कीजिए. मेरी हिस्से में यही लिखा है और मैं बहुत खुश हूं. आप को पता है. घर में सब बहुत खुश हैं. मां ने तैयारी करनी भी शुरू कर दी है. इसी बहाने आज सब को मेरा खयाल है नहीं तो कब मैं सूखी रोटी के टुकड़ों और फटेपुराने कपड़ों में बड़ी हो गई, किसी को पता ही नहीं चला. अब 2-4 जोड़ी ही सही, मेरे लिए नए कपड़े बनेंगे. मां मेरे लिए सोने के जेवर बनवाएगी. फिर चाहे मेरे ही कमाए पैसों को जोड़ कर. सब सीतासीता कर के पूछेंगे. दीदी, एक गरीब की लड़की को इस से ज्यादा और क्या खुशी मिल सकती है?’’
रेवा फिर चुप रह गई. एक स्त्री के मन की गहराइयों में क्या है, यह खुद उस के अलावा कोई नहीं जान सकता. परिस्थितियों से समझौता करना और चंद लमहों की खुशियों को अपने जेहन में कैद कर उन्हीं के सहारे जिंदगी को आगे बढ़ाना, यह सिर्फ एक स्त्री ही कर सकती है. सीता की सोच के सिरे को पकड़ कर उस के मन की तहों को खोल कर रेवा को लगा कि कम से कम इतनी खुशी पाने का अधिकार तो था ही उसे. अपनी ही जिंदगी की पटकथा में हमेशा छोटेमोटे किरदार ही निभाती आई थी सीता. अब चंद लमहों के लिए ही सही, नायिका बनने की उस की हसरत कहां गलत थी.
शाम को ही बाजार जा कर रेवा सीता के लिए शादी की साड़ी और सोने की अंगूठी ले आई. उपहार देख कर सीता के चेहरे पर जो खुशी आई, उस से रेवा को भी जैसे आत्मिक तृप्ति का एहसास हुआ. वह दिल से सीता की खुशी चाहती थी.
रेवा नम्रा को ले कर बहुत पशोपेश में थी. सीता के रहते उसे नम्रा की कोई फिक्र नहीं होती थी लेकिन सीता के जाने के बाद नम्रा को वैसी देखभाल कौन देता? वह सोच ही रही थी कि एक दिन अचानक शोभा मायूस सूरत ले कर दरवाजे पर खड़ी थी, ‘‘इस लड़की के हिस्से शादी नहीं है… लड़का शादी से पहले ही भाग गया. किसी और से चक्कर था उस का. अब पता नहीं इस से कौन शादी करेगा? दीदी, अब यह आप का काम छोड़ कर नहीं जाएगी.’’
जीवन फिर पुराने रूटीन पर चल पड़ा लेकिन सीता में अब थोड़ा बदलाव आ गया था. वह पहले से कम बोलती और अपनी पढ़ाई पर अत्यधिक केंद्रित हो चुकी थी. रेवा को लगा कि जो हुआ शायद अच्छा ही हुआ. अब वह सीता के भविष्य को संवारने में उस की मदद करेगी. यह सोच कर रेवा सीता को बहुत प्रोत्साहित करती.
एक रात रेवा देर तक अपने लैपटौप पर काम कर रही थी. प्यास लगने पर पानी लेने उठी तो देखा कि सीता के कमरे की लाइट जल रही है. इतनी रात को सीता जाग क्यों रही है… रेवा ने धीरे से दरवाजा खोल कर अंदर झांका तो हैरान रह गई.सीता शादी का जोड़ा और तमाम गहने पहने खुद को बड़ी हसरत से आईने में निहार रही थी.
रेवा ज्यादा देर वहां न खड़ी रह पाई. उस कमरे में कुछ दबी आकांक्षाएं थीं, कुछ अधूरे खवाब थे. समाज ने उस मासूम को यही यकीन दिलाया था कि चंद लमहों की नायिका बनना ही उस के जीवन की उपलब्धि थी.
अब रेवा की जिम्मेदारी बढ़ गई थी. उसे सीता को यह विश्वास दिलाना था कि वह सक्षम है अपने जीवन की पटकथा खुद लिखने के लिए और ताउम्र उस में नायिका का किरदार निभाने के लिए. रेवा ने अपने मन को इस संकल्प के लिए दृढ़ कर लिया.