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कहानी: नमक हलाल

शादी के कई महीनों तक निक्की बिलकुल गुमसुम बनी रहीं. उन की जिंदगी सोने के पिंजरे में कैद तोते की तरह हो गई थी.
बैठक की मेज पर रखा मोबाइल फोन बारबार बज रहा था. मनोहरा ने इधरउधर झांका. शायद उस के मालिक बाबू बंका सिंह गलती से मोबाइल फोन छोड़ कर गांव में ही कहीं जा चुके थे.

मनोहरा ने दौड़ कर मोबाइल फोन उठाया और कान से लगा लिया. उधर से रोबदार जनाना आवाज आई, ‘हैलो, मैं निक्की की मां बोल रही हूं.’

अपनी मालकिन की मां का फोन पा कर मनोहरा घबराते हुए बोला, ‘‘जी, मालिक घर से बाहर गए हुए हैं.’’

‘अरे, तू उन का नौकर मनोहरा बोल रहा है क्या?’

‘‘जी…जी, मालकिन.’’

‘‘ठीक है, मुझे तुम से ही बात करनी है. कल निक्की बता रही थी कि तू जितना खयाल भैंस का रखता है, उतना खयाल निक्की का नहीं रखता. क्या यह बात सच है?’’

मनोहरा और घबरा उठा. वह अपनी सफाई में बोला, ‘‘नहीं… नहीं मालकिन, यह झूठ है. मैं निक्की मालकिन का हर हुक्म मानता हूं.’’

‘ठीक है, आइंदा उन की सेवा में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए,’ इतना कह कर मोबाइल फोन कट गया.

मनोहरा ने ठंडी सांस ली. उस का दिमाग दौड़ने लगा. फोन की आवाज जानीपहचानी सी लग रही थी. निक्की मालकिन जब से इस घर में आई हैं, तब से वे कई बार उसे बेवकूफ बना चुकी हैं. उस ने ओट ले कर आंगन में झांका. निक्की मालकिन हाथ में मोबाइल फोन लिए हंसी के मारे लोटपोट हो रही थीं. मनोहरा सारा माजरा समझ गया. वह मुसकराता हुआ भैंस दुहने निकल पड़ा.

निक्की बाबू बंका सिंह की दूसरी पत्नी थीं. पहली पत्नी के बारे में गांव के लोगों का कहना था कि बच्चा नहीं जनने के चलते बाबू बंका सिंह ने उन्हें मारपीट कर घर से निकाल दिया था. बाद में वे मर गई थीं.

निक्की पढ़ीलिखी खूबसूरत थीं. वे इस बेमेल शादी के लिए बिलकुल तैयार नहीं थीं, लेकिन मांबाप की गरीबी और उन के आंसुओं ने उन्हें समझौता करने को मजबूर कर दिया था.

शादी के कई महीनों तक निक्की बिलकुल गुमसुम बनी रहीं. उन की जिंदगी सोने के पिंजरे में कैद तोते की तरह हो गई थी.

हालांकि बाबू बंका सिंह निक्की की सुखसुविधा का काफी ध्यान रखते थे, इस के बावजूद उम्र का फासला निक्की को खुलने नहीं दे रहा था.

मनोहरा घर का नौकर था. हमउम्र मनोहरा से बतियाने में निक्की को अच्छा लगता था. समय गुजरने के साथसाथ निक्की का जख्म भरता गया और वे खुल कर मनोहरा से हंसीठिठोली करने लगीं.

उस दिन बाबू बंका सिंह गांव की पंचायत में गए हुए थे. निक्की गपशप के मूड में थीं. सो, उन्होंने मनोहरा को अंदर बुला लिया.

निक्की मनोहरा की आंखों में आंखें डाल कर बोलीं, ‘‘अच्छा, बता उस दिन मोबाइल फोन पर मेरी मां से क्या बातें हुई थीं?’’

मनोहरा मन ही मन मुसकराया, फिर अनजान बनते हुए कहने लगा, ‘‘कह रही थीं कि मैं आप का जरा भी खयाल नहीं रखता.’’

‘‘हांहां, मेरी मां ठीक ही कह रही थीं. मेरे सामने तुम शरमाए से खड़े रहते हो. तुम्हीं बताओ, मैं किस से बातें करूं? बाबू बंका सिंह की मूंछें और लाललाल आंखें देख कर ही मैं डर जाती हूं. उन की कदकाठी देख कर मुझे अपने काका की याद आने लगती है. एक तुम्हीं हो, जो मुझे हमदर्द लगते हो…’’

इस बेमेल शादी पर गांव वाले तो थूथू कर ही रहे थे. खुद मनोहरा को भी नहीं सुहाया था, पर उस की हैसियत हमदर्दी जताने की नहीं थी. सो, वह चुपचाप निक्की की बात सुनता रहा.

मनोहरा को चुप देख कर निक्की बोल पड़ीं, ‘‘मनोहरा, तुम्हारी शादी के लिए मैं ने अपने मायके में 60 साल की खूबसूरत औरत पसंद की है…’’

‘‘60 साल,’’ कहते हुए मनोहरा की आंखें चौड़ी हो गईं.

‘‘इस में क्या हर्ज है? जब मेरी शादी 60 साल के मर्द के साथ हो सकती है, तो तुम्हारी क्यों नहीं?’’

‘‘नहीं मालकिन, शादी बराबर की उम्र वालों के बीच ही अच्छी लगती है.’’

‘‘तो तुम ने अपने मालिक को समझाया क्यों नहीं? उन्होंने एक लड़की की खुशहाल जिंदगी क्यों बरबाद कर दी?’’ कहते हुए निक्की की आंखें आंसुओं से भर आईं.

समय बीतता गया. निक्की कीशादी के 5 साल गुजर गए, फिर भी आंगन में बच्चे की किलकारी नहीं गूंज पाई. निक्की को ओझा, गुनी, संतमहात्मा सब को दिखाया गया, लेकिन नतीजा सिफर रहा. गांवसमाज में निक्की को ‘बांझ’ कहा जाने लगा.

निक्की मालकिन दिलेर थीं. उन्हें ओझागुनी के यहां चक्कर लगाना अच्छा नहीं लग रहा था. उन्होंने शहर के बड़े डाक्टर से अपने पति और खुद का चैकअप कराने की ठानी.

शहर के माहिर डाक्टर ने दोनों के नमूने जांच लिए और बोला, ‘‘देखिए बंका सिंह, 10 दिन बाद निक्की की एक और जांच होगी. फिर सारी रिपोर्टें सौंप दी जाएंगी.’’

देखतेदेखते 10 दिन गुजर गए. उन दिनों गेहूं की कटाई जोरों पर थी. आकाश में बादल उमड़घुमड़ रहे थे. सो, किसानों में गेहूं समेटने की होड़ सी लगी थी.

बाबू बंका सिंह को भी दम मारने की फुरसत नहीं थी. वे दोबारा निक्की को चैकअप कराने में आनाकानी करने लगे. लेकिन निक्की की जिद के आगे उन की एक न चली. आखिर में मनोहरा को साथ ले कर जाने की बात तय हो गई.

दूसरे दिन निक्की मनोहरा को साथ ले कर सुबह वाली बस से डाक्टर के यहां चल पड़ीं. उस दिन डाक्टर के यहां ज्यादा भीड़ थी.

निक्की का नंबर आने पर डाक्टर ने चैकअप किया, फिर रिपोर्ट देते हुए बोला, ‘‘मैडम, आप बिलकुल ठीक हैं. फिर भी आप मां नहीं बन सकतीं, क्योंकि आप के पति की सारी रिपोर्टें ठीक नहीं हैं. आप के पति की उम्र काफी हो चुकी है, इसलिए उन्हें दवा से नहीं ठीक किया जा सकता है.’’

निक्की का चेहरा सफेद पड़ गया. डाक्टर उन की हालत को समझते हुए बोला, ‘‘घबराएं मत. विज्ञान काफी तरक्की कर चुका है. आप चाहें तो और भी रास्ते हैं.’’

निक्की डाक्टर के चैंबर से थके पैर निकली. बाहर मनोहरा उन का इंतजार कर रहा था. वह निक्की को सहारा देते हुए बोला, ‘‘मालकिन, सब ठीकठाक तो है?’’

‘‘मनोहरा, मुझे कुछ चक्कर सा आ रहा है. शाम हो चुकी है. चलो, किसी रैस्टहाउस में रुक जाते हैं. कल सुबह वाली बस से गांव चलेंगे.’’

आटोरिकशा में बैठते हुए मनोहरा बोला, ‘‘मालकिन, गांव से हो कर निकलने वाली एक बस का समय होने वाला है. उस से हम लोग निकल चलते हैं. हम लोगों के आज नहीं पहुंचने पर कहीं मालिक नाराज नहीं हो जाएं.’’

‘‘भाड़ में जाए तुम्हारा मालिक. उन्होंने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा,’’ निक्की बिफर उठीं.

आटोरिकशा एक रैस्टहाउस में रुका. निक्की ने 2 बैड वाला कमरा बुक कराया और कमरे में जा कर निढाल पड़ गईं. उन के दिमाग में विचारों का पहिया घूमने लगा, ‘मेरे पति ने अपनी पहली पत्नी को बच्चा नहीं जनने के कारण ही घर से निकाला था, लेकिन खोट मेरे पति में है, यह कोई नहीं जान पाया. अगर इस बात को मैं ने उजागर किया, तो यह समाज मुझे बेहया कहने लगेगा. हो सकता है कि मेरा भी वही हाल हो, जो पहली पत्नी का हुआ था.’

निक्की के दिमाग के एक कोने से आवाज आई, ‘डाक्टर ने बताया है कि बच्चा पाने के और भी वैज्ञानिक रास्ते हैं…’

लेकिन दिमाग के दूसरे कोने ने इस सलाह को काट दिया, ‘क्या बाबू बंका सिंह अपनी झूठी शान के चलते ऐसा करने देंगे?’

सवालजवाब की चल रही इस आंधी में अपने को बेबस पा कर निक्की सुबकने लगीं.

मनोहरा को भी नींद नहीं आ रही थी. मालकिन के सुबकने से उस के होश उड़ गए. वह पास आ कर बोला, ‘‘मालकिन, आप रो क्यों रही हैं? क्या आप को कुछ हो रहा है?’’

निक्की का सुबकना बंद हो गया. उन्होंने जैसे फैसला कर लिया था. वे मनोहरा का हाथ पकड़ कर बोलीं, ‘‘मनोहरा, जो काम बाबू बंका सिंह 5 साल में नहीं कर पाए, वह काम तुझे करना है. बोलो, मेरा साथ दोगे?’’

मनोहरा निक्की की बातों का मतलब समझे बिना ही फटाक से बोल पड़ा,

‘‘मालकिन, मैं तो आप के लिए जान भी दे सकता हूं.’’

निक्की मालकिन मनोहरा के गले लग गईं. उन का बदन तवे की तरह जल रहा था. मनोहरा हैरान रह गया. वह निक्की से अलग होता हुआ बोला, ‘‘नहीं मालकिन, यह मुझ से नहीं होगा.’’

‘‘मनोहरा, डाक्टर का कहना है कि तुम्हारे मालिक में वह ताकत नहीं है, जिस से मैं मां बन सकूं. मैं तुम से बच्चा पाना चाहती हूं…’’

‘‘नहीं, यह नमक हरामी होगी.’’

‘‘मनोहरा, यह वक्त नमक हरामी या नमक हलाली का नहीं है. मेरे पास सिर्फ एक रास्ता बचा है और वह तुम हो. सोच लो, अगर मैं ने देहरी से बाहर पैर रखा, तो तुम्हारे मालिक की मूंछें नीची हो जाएंगी…’’ कहते हुए निक्की ने मनोहरा को अपनी बांहों में समेट लिया.

कोमल बदन की छुअन ने मनोहरा को मदहोश बना डाला. उस ने निक्की को अपनी बांहों में ऐसा जकड़ा कि उन के मुंह से आह निकल पड़ी.

घर आने के बाद भी लुकछिप कर यह सिलसिला चलता रहा. आखिरकार निक्की ने वह मंजिल पा ली, जिस की उन्हें दरकार थी.

गोदभराई रस्म के दिन बाबू बंका सिंह चहकते फिर रहे थे. निक्की दिल से मनोहरा की आभारी थीं, जिस ने एक उजड़ते घर को बचा लिया था.
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