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कहानी: कितना सहेगी आनंदिता

आनंदिता इतनी खूबसूरत थी कि शेखर पहली नजर में ही उस के व्यक्तित्व और खूबसूरती पर फिदा हो गया था. जिंदगी का एक खुशनुमा दौर था उन दोनों का लेकिन, उन्हें क्या पता था कि जिंदगी का एक घिनौना रूप भी उन्हें देखना पड़ेगा.

‘‘पापा, सी देयर, हाऊ स्केरी इज दैट आंटी,’’ प्रशांत के 12 वर्षीय पुत्र प्रथम ने हाथ के इशारे से आनंदिता को दिखाते हुए कहा, ‘‘अरे, वे तो इसी ओर आ रही हैं.’’

प्रथम अपनी बात समाप्त कर पाता, इस से पहले ही आनंदिता का बेटा रुद्र चिल्लाते हुए उस की ओर लपका, ‘‘ओए, क्या बोला तू ने, स्केरी, मैं बताता हूं इस का मतलब तुझे.’’

‘‘रुद्र, बेटे रुको, ऐसा नहीं करते,’’ आनंदिता और शेखर दोनों ने ही बेटे को रोकना चाहा लेकिन तब तक रुद्र ने प्रथम को धक्का दे कर नीचे गिरा दिया था और उस के गालों पर ताबड़तोड़ 3 तमाचे जड़ दिए थे,  ‘‘क्या बोला तू ने मेरी मां के लिए, फिर से बोल, देख, मैं क्या हाल करता हूं तेरा.’’

शेखर ने रुद्र को पकड़ कर अलग किया. आनंदिता ने गुस्से से कांप रहे बेटे को मीठी डांट लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, इतना गुस्सा अच्छा नहीं होता. माफी मांगो इन से. हम यहां एलुमिनी मीट में पुराने दोस्तों से मिलने आए हैं. अगर तुम ऐसा ही करोगे तो हम वापस चलते हैं.’’

‘‘सौरी,’’ रुद्र ने मां की आज्ञा मानते हुए प्रथम की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. प्रशांत ने भी बेटे से हाथ मिलाने को कहा. लेकिन प्रथम आंख दिखाता हुआ कमरे के अंदर चला गया.

‘‘सौरी प्रशांत, यह अच्छा नहीं हुआ. हम शर्मिंदा हैं. रुद्र को ऐसा नहीं करना चाहिए. बच्चा है, हम समझाएंगे उसे,’’ शेखर ने प्रशांत से हाथ मिलाते हुए कहा. ‘‘इन से मिलो, ये हैं मेरी बेटरहाफ आनंदिता. तुम्हें याद होगा, मैं तुम से अकसर इन के बारे में ही बातें किया करता था.’’

‘‘नमस्ते,’’ प्रशांत की आवाज सुन कर आनंदिता ने असहज महसूस किया लेकिन तुरंत ही संभलते हुए बोली, ‘‘नमस्ते भाईसाहब.’’

इसी बीच प्रशांत की पत्नी रोहिणी भी कमरे से बाहर आ गई थी. औपचारिक परिचय हुआ. वर्षों रूममेट रहे 2 मित्रों की मुलाकात अजीब सी कड़वाहटभरे माहौल में हुई. शेखर और आनंदिता रुद्र के व्यवहार को ले कर दुखी थे. उस ने पहले कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया था, उस समय भी नहीं जब पिं्रसिपल ने आनंदिता को विनयपूर्वक स्कूल के कार्यक्रमों में आने से मना किया था. शायद उस समय का गुस्सा था जो मौका पा कर अब बाहर आ गया था.

शेखर के सामने फादर विलियम्स का चेहरा घूम गया और उन के कहे शब्द कानों में गूंजने लगे, ‘आई होप, यू विल अंडरस्टैंड माइ पोजिशन. मुझे स्कूल के दूसरे बच्चों का भी ध्यान रखना है. मिसेज अग्निहोत्री जब भी स्कूल आती हैं, मैं ने स्वयं कुछ बच्चों की आंखों में भय महसूस किया है. हम रुद्र को पढ़ाना चाहते हैं. ही इज ए मेरीटोरियस स्टूडैंट, लेकिन आप को मेरी बात ध्यान में रखनी होगी, मिस्टर अग्निहोत्री. प्लीज डोंट बिं्रग हिज मदर फौर पीटी मीटिंग्स ऐंड इन अदर स्कूल ऐक्टिविटीज. इट्स माय हंबल रिक्वैस्ट.’

तब आनंदिता ने आगे बढ़ कर उस को इस असमंजस से उबारा था, ‘शेखर, अपने बच्चे के लिए इतना त्याग तो मुझे करना ही चाहिए. मैं सह सकती हूं इतना, तो… जीवन में जब इतना सहा है तो यह कौन सी बड़ी बात है.

आनंदिता की बात सुन कर अंदर तक भीग गया था वह. और कितना सहेगी आनंदिता. पिछले 20 सालों से सह ही तो रही है और शायद आखिरी सांस तक सहती ही रहेगी. घटनाएं भी किसीकिसी के जीवन को कैसे बदल डालती हैं. हर पल नई चुनौती. नई परीक्षा. हर आंख घूरती हुई, उपेक्षा और घृणा का भाव लिए.

क्या गलती है आनंदिता की? किसी के वहशीपन की सजा भुगत रही है वह तो. उसे पता ही नहीं कि किस ने उस के ऊपर तेजाब फेंका था. क्या अपराध था उस का. क्या चाहता था वह. पर उस के निशाने पर वह थी, यह जानती है.

जब यह हादसा हुआ था उस समय वह अकेली ही थी. खरी फाटक के मोड़ के आगे सुनसान सड़क पर. कोचिंग क्लास से लौटने में देर हो गई थी उस दिन उसे. रात गहराने लगी थी. वह जल्दी से घर पहुंच जाना चाहती थी. पर नहीं रोक पाई वह गहराते हुए अंधेरे को. और अगले कुछ ही क्षणों में सारी जिंदगी उसी अंधेरे के हवाले हो गई. पर हिम्मतवाली है आनंदिता. इतना सब होने के बाद भी जिंदगी से हारी नहीं. उठ कर खड़ी हो गई. दरिंदगी को ठेंगा दिखाते हुए जिंदादिली की मिसाल बन कर. अब तक कितनी ही विपरीत पस्थितियों से, घूरती आंखों और कड़वी जबानों से बिना उफ किए लड़ती आई है. आगे भी लड़ेगी इसी बहादुरी से.

‘‘मुझे माफ कर दो, मां. अब दोबारा ऐसी गलती नहीं करूंगा,’’ रुद्र आनंदिता से लिपट कर बोल रहा था, ‘‘आप को दुख पहुंचाया मैं ने. क्या करूं मैं, आप की तरह अच्छा नहीं बन पाया. कोशिश करूंगा कि फिर आप को दुखी न करूं.’’

आनंदिता ने खींच कर उसे गले लगा लिया, ‘‘गलती का एहसास हो जाना, पछतावे के बराबर है, बेटा. अब आगे ध्यान रखना. फिर कभी मेरे लिए इस तरह किसी से बिहेव मत करना. यदि कोई तुम्हें बदसूरत मां का बिगड़ैल बेटा कहेगा, तो मैं नहीं सह पाऊंगी. मैं सब से लड़ सकती हूं पर खुद से लड़ने की शक्ति नहीं है मुझ में.’’

‘अरे, तुम दोनों यहां आओ मेरे पास, बैठो. हमें शाम के कार्यक्रम के बारे में फाइनल करना है. तुम अपनी सीडी भी चैक कर लो, रुद्र, जिस पर तुम डांस करने वाले हो,’’ शेखर ने रुद्र और आनंदिता का ध्यान बंटाने के लिए कहा, ‘‘आनंदी, तुम भी एक बार रुद्र को प्रैक्टिस करा दो और स्वयं भी गाना गुनगुना कर देख लो कि कहीं कुछ भूल तो नहीं रही हो. बहुत दिनों से अभ्यास नहीं किया है तुमने भी.’’

आनंदिता और रुद्र अभ्यास में लग गए जैसे कुछ हुआ ही न हो. शेखर पलंग पर 2 तकियों के सहारे टिक गया. थोड़ी देर तक वह रुद्र के डांस स्टैप्स को देखता रहा, फिर आंखें बोझिल होने लगीं. उस के सामने बारबार प्रशांत और उस के बेटे प्रथम की तसवीर आ कर मन में हलचल मचा रही थी. क्या प्रथम के रूप में प्रशांत फिर लौट आया है? वैसी ही उद्दंडता, बेशर्मी और अक्खड़पन. 5 साल उस ने प्रशांत के साथ एक ही रूम में रहते हुए गुजारे थे. वह उस की कितनी ही कारगुजारियों का प्रत्यक्षदर्शी था. कितनी बार उस ने प्रशांत की ज्यादतियों का खमियाजा भी भुगता था, पर प्रशांत के चेहरे पर कभी आत्मग्लानि की हलकी सी शिकन तक नहीं देखी थी.रुद्र के स्टैप्स देखते हुए शेखर यादों में खो गया. मस्तिष्क में उभर आई

प्रशांत के साथ हुई पहली मुलाकात. एसए इंजीनियरिंग कालेज के ओल्ड होस्टल में उसे और प्रशांत को एक ही रूम अलौट हुआ था. शेखर पहले होस्टल में रहने आ गया था. प्रशांत ने 2 दिनों बाद वार्डन को रिपोर्ट किया था. उस ने प्रशांत का स्वागत करते हुए परिचय दिया था, ‘मैं शेखर अग्निहोत्री, नरसिंहपुर से.’ प्रशांत ने पूरी तरह बेरुखी दिखाई और बिना कोई उत्तर दिए अपना सामान शेखर के पलंग पर रख दिया और बोला, ‘तुम अपना बिस्तर उठा कर उस पलंग पर रखो, मैं यह पलंग लूंगा. यह टेबल और अलमारी भी खाली कर दो, मैं अपना सामान इन में रखूंगा.’

शेखर अवाक रह गया था, पर संयत रहा था. उस ने अपना बिस्तर और अन्य सामान हटा लिया. तीसरे दिन ही प्रशांत एक सीनियर से उलझ गया, जिस के कारण उस की पिटाई तो हुई ही, शेखर भी सीनियर्स के राडार पर आ गया. रात में जबतब उसे रैगिंग के लिए बुला लिया जाता, पिटाई होती और घंटों एक पैर पर खड़ा रखा जाता.

5 वर्षों में ऐसी कितनी ही ज्यादतियां शेखर ने सहन की थीं. प्रशांत अकसर ही उस के सैशनल पेपर और ड्राइंगशीट्स फोल्डर से निकाल कर अपने नाम से सब्मिट कर देता. शेखर को दोबारा मेहनत करनी पड़ती और टीचर्स की डांट मिलती, वह अलग. शेखर के विरोध का कभी कोई असर प्रशांत पर नहीं हुआ. वह तो जैसे शेखर की हर चीज पर अपना हक समझता था. धीरेधीरे शेखर भी सावधानी बरतने लगा और वह अपने नोट्स, ड्राइंगशीट्स अलमारी में लौक कर के रखने लगा. 4 माह बीत गए. प्रशांत बदलने लगा. उस के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया और वह विनम्र होने के साथ ही दोस्ताना भी हो गया. शेखर से उस की जमने लगी. दोनों अपनी बहुत सी बातें भी आपस में शेयर करने लगे..

विश्वविद्यालय स्पर्धा हेतु कालेज की बैडमिंटन टीम का सेलैक्शन होना था. 4 नाम तो लगभग तय थे. केवल 2 स्थानों के लिए ही क्वालिफाइंग मुकाबले होने थे और इत्तफाक से शेखर और प्रशांत इन स्थानों के लिए दावेदार थे. शेखर ने ट्रायल मैचों में शानदार प्रदर्शन किया. उस ने टीम के कप्तान को भी हराया और अपना स्थान सुरक्षित कर लिया. दूसरी ओर प्रशांत, कप्तान और सैकंड ईयर के छात्र अविनाश पुरी से हार कर सेलैक्शन की रेस से बाहर हो गया. शेखर उस के हार जाने से दुखी था, पर प्रशांत अपेक्षा के विपरीत शांत था.

3 दिनों बाद ही टीम को स्पर्धा हेतु सीहोर जाना था. उस दिन सभी मैस में नाश्ता करने एकत्र हुए थे. सदा की तरह शेखर और प्रशांत साथ ही बैठे थे. उन्होंने अविनाश को भी पास बैठने के लिए बुला लिया. नाश्ते में उस दिन सांभरबड़ा बने थे. नाश्ता सर्र्व करते समय गादीराम अचानक स्लिप हुआ और खौलते हुए सांभर का बरतन अविनाश के ऊपर जा गिरा. अविनाश के हाथ और जांघों पर फफोले उभर आए. अविनाश टीम के साथ नहीं जा सका. प्रशांत को टीम में जगह मिल गई, लेकिन इस तरह टीम में स्थान पाने को ले कर वह बहुत अपसैट था. शेखर और कप्तान के बहुत समझाने के बाद ही वह नौर्मल हुआ था.

हमीदिया कालेज के विरुद्ध पहले मैच में पहला सिंगल्स मुकाबला खेलते हुए प्रशांत हार गया. एक लाइनकौल को ले कर वह अंपायर से उलझ गया और उन्हें मां की भद्दी गाली दे बैठा. विश्वविद्यालय की अनुशासन समिति ने प्रशांत को दोषी मानते हुए स्पर्द्धा से बाहर कर दिया. उसे वापस लौटना पड़ा. प्रशांत के इस तरह बाहर जाने से शेखर दुखी था. उस ने उसे सांत्वना देनी चाही तो वह बेरुखी से ‘रहने दो’ कहता हुआ अपना सामान पैक करता रहा.

उसे सुबह की बस से वापस लौटना था. शेखर का मन नहीं माना, वह प्रशांत के पास ही बैठ गया, बोला, ‘भाई, यह सबक है आगे के लिए. मैच में एग्रेशन के साथ ही कूल रहना भी बहुत जरूरी है. मैच में उतारचढ़ाव तो आते ही हैं. हर स्थिति में चित्त को स्थिर ही रहना चाहिए. यही मैच टैंपरामैंट है. अगले साल फिर से मौका मिलेगा खुद को साबित करने का.’

‘क्या खाक मौका मिलेगा, इस साल कैसे मौका मिला था, पता है न तुझे.’

‘पता है भाई, तुम उत्तेजित न हो.’

‘क्या पता है तुम को. यदि मैं ने गादीराम को पैर अड़ा कर गिराया न होता तो क्या अविनाश टीम से बाहर होता और मुझे टीम में जगह मिलती. सारे किएधरे पर पानी फिर गया.’

प्रशांत की बात सुन कर शेखर अवाक रह गया. उसे पूरा घटनाक्रम याद हो आया, तो यह प्रशांत का सोचासमझा प्लान था. अविनाश के जलने पर उस का दुखी दिखना भी उस के इस खतरनाक प्लान का ही एक भाग था. कितना शातिर खेल खेला था उस ने. शायद उसी शातिराना खेल की सजा मिली है उसे. शेखर स्वयं को असहज महसूस करने लगा. वह कल के मैच के लिए आराम करने का बहाना बना कर चला आया वहां से.

अगले दिन शेखर अपना मैच खेल कर सुस्ताने बैठा ही था कि बगल के हौल से आ रही तालियों की आवाज ने उस का ध्यान खींचा. वह उत्सुकतावश उठ कर उस ओर चला आया. एक सुंदर सी लड़की अपने पावरफुल स्मैश और सटीक नैट ड्रौप्स से प्रतिद्वंद्वी लड़की को पूरे कोर्ट में नचा रही थी. शेखर मंत्रमुग्ध सा उस के खेल को देखता रहा. मैच की समाप्ति पर शेखर उस को बधाई देने से खुद को रोक नहीं सका, ‘कांग्रेचुलेशंस, योर ड्रौप्स आर अमेजिंग.’

‘थैंक्स, शेखर सर.’

अपना नाम सुन कर शेखर कुतूहल से उस की ओर देखने लगा. वह शरमाते हुए बोली, ‘कल दोपहर में मैं ने आप का मैच देखा था और शाम को बहुत देर तक आप सरीखे बैकहैंड ड्रौप्स की प्रैक्टिस की थी.’

आनंदिता के साथ शेखर की यह पहली मुलाकात थी. उस रात लेटालेटा वह बहुत देर तक आनंदिता के बारे में सोचता रहा. पहली ही नजर में भा जाने वाली देहयष्टि, गोरा रंग, आकर्षक चेहरा, बड़ीबड़ी आंखें, लंबी गरदन, करीने से कटे हुए बाल, बिजली सी चपलता और सब से बढ़ कर स्त्रियोचित हया. अगले दिन वह फिर शेखर के मैच के समय कोर्ट में उपस्थित थी. दोनों की नजरें मिलीं. उस ने आंखों ही आंखों में गुडलक कहा. शेखर आसानी से मैच जीत गया. बाद में वह भी आनंदिता को चीयर करने गया. दोनों ने मैच के बाद कौफी पी. तभी उसे पता चला कि आनंदिता भी विदिशा से खेलने आई है. वह जैन कालेज में बीकौम फर्स्ट ईयर की स्टूडैंट है.

दोनों की अगली मुलाकात 2 माह बाद एक रैस्टोरैंट में हुई. शेखर अपने क्लासमेट की बर्थडे पार्टी में वहां गया था जबकि आनंदिता पहले से कुछ सहेलियों के साथ वहां उपस्थित थी. दोनों ने एकदूसरे को देखा. लेकिन दोस्तों की उपस्थिति के कारण बातचीत नहीं हो सकी. वह समय था ही ऐसा, लड़केलड़की को बात करते देखा नहीं कि बतंगड़ बनाना शुरू. आनंदिता जल्दी ही सहेलियों के साथ चली गईर् और शेखर दूसरी टेबल पर बैठा उसे दरवाजे से बाहर जाते देखता रहा.

आनंदिता ने दरवाजे से बाहर पैर रखने के पहले एक बार मुड़ कर देखा था उसे. उस की नजरों में कुछ जादू था. शेखर ने दिल में कुछ अलग सा, अप्रतिम सा, महसूस किया था. उसे अपनी सांसें पहली बारिश के बाद फिजा में घुलती मिट्टी की सोंधीसोंधी खुशबू से सराबोर महसूस होने लगी थी 

आनंदिता इस के बाद शेखर के दिलोदिमाग में बस गई. उस का मन उस की एक झलक देखने के लिए  बेचैन रहने लगा. वह 2-3 बार क्लास से बंक मार कर जैन कालेज के चक्कर भी लगा आया था, लेकिन इच्छा अधूरी ही रही. जब मुलाकात हुई तो इतनी अप्रत्याशित कि उसे आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ.

उस के कालेज में स्टूडैंट यूनियन के चुनाव के दौरान 2 समूहों में झगड़ा हो गया था. मारपीट में 6 स्टूडैंट्स को काफी चोटें आई थीं, जिन में प्रशांत भी शामिल था. उस का सिर फटने से काफी खून बह गया था. उसे खून की तुरंत जरूरत थी. लेकिन अस्पताल में उस के समूह का खून उपलब्ध नहीं था. शेखर जानता था कि उस का ब्लडगु्रप भी यही है जिस की प्रशांत को जरूरत थी. वह खून देने में हिचकिचा रहा था लेकिन मदद के लिए भागदौड़ कर रहा था. वह अस्पताल के ब्लडबैंक में मदद की आशा में फिर से आया था कि सामने आनंदिता को ब्लड डोनेट करता देख कर चौंक गया. वह सबकुछ भूल कर आनंदिता को देखता रहा.

ब्लड डोनेट कर आनंदिता जब बाहर आई तो शेखर सामने आ गया, ‘कौन ऐडमिट है आप का जिस के लिए आप ने ब्लड डोनेट किया?’

‘मेरा कोई अपना ऐडमिट नहीं है. मैं तो एक बच्चे को हर 3-4 माह में एक यूनिट ब्लड देती हूं. उसे थैलेसीमिया है.’

आप ने कहा आप का कोई अपना ऐडमिट नहीं है, फिर यह बच्चा कौन है आप का?’ शेखर आश्चर्य से आनंदिता की ओर देखते हुए बोला.

‘वह दीदी बोलता है, तो भाई समझ लीजिए.’‘प्लीज, पहेलियां मत बुझाइए.’

‘मैं सच में ज्यादा नहीं जानती उस के बारे में. हमारी सर्वेंट के भाई का लड़का है. 5 साल का है. जन्म से ही थैलेसीमिया से पीडि़त है. पर आप यहां कैसे?’‘मैं…’ शेखर उत्तर देते हुए अचकचा गया लेकिन तुरंत ही संभलते हुए बोला, ‘मैं भी ब्लड डोनेट करने आया हूं, मेरे दोस्त को जरूरत है.’‘आप बहुत अच्छे हैं. बेहतरीन खिलाड़ी के साथसाथ एक नेकदिल इंसान भी.’

आनंदिता चली गई, जिंदगी का एक नया फलसफा सिखा कर. उस दिन ब्लड डोनेट कर शेखर ने स्वयं को एक अच्छा काम दूसरों के लिए करने पर जलते हुए दीए के प्रकाश सा आलोकित महसूस किया. इस के बाद तो शेखर अपनी हर धड़कन में आनंदिता की उपस्थिति अनुभव करने लगा. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के निकट आने लगे, एकदूसरे के बारे में दोनों ही बहुतकुछ जान गए. शेखर के पिता नरसिंहपुर में डैंटल सर्जन हैं जबकि आनंदिता के मातापिता नहीं थे. जब वह 2 साल की थी, तभी उस के मातापिता एक नाव दुर्घटना में बेतवा नदी में बह गए थे. उसे बचा लिया गया था. तभी से वह अपने मामा के यहां रह रही है. उन्होंने उसे बेटी से बढ़ कर पाला है. आनंदिता नाम भी उन्होंने ही दिया है.

समय के साथ शेखर और आनंदिता नजदीक आते गए. बैडमिंटन ने भी इस में अहम रोल अदा किया. पहले साल यूनिवर्सिटी बैडमिंटन के सिंगल्स में उपविजेता रहने के बाद शेखर अगले वर्ष चैंपियन बन गया. आनंदिता भी ज्यादा पीछे नहीं रही. वह उस वर्ष की उपविजेता बन कर लौटी. शेखर के टिप्स और कोर्ट में उस की उपस्थिति हमेशा प्रेरणादायी सिद्ध होती. प्रारंभिक आसक्ति ने प्रेम का स्वरूप कब ले लिया, दोनों को पता ही नहीं चला. एकदो हफ्ते तक जब मिलना नहीं होता, तो मन की बेचैनी दोनों के रिश्तों को परिभाषित करती प्रतीत होती. यह प्यार दोनों ही अपने दिलों में अधिक समय तक दबा कर नहीं रख सके. दोनों को ही एकदूसरे का साथ हमेशा सुखकर लगता था. उन्हें एहसास होने लगा था कि वे दोनों एकदूसरे के बिना अधूरे हैं. उन्होंने एक दिन सदा साथ देने का वादा एकदूसरे से कर डाला. इस के बाद शेखर आनंदिता के घर भी आनेजाने लगा. मामामामी को भी वह पसंद था. शेखर ने अपनी मां को भी आनंदिता के बारे में बता दिया था. सबकुछ मनमुताबिक और सुगमता से हो रहा था. बस, इंतजार था तो पढ़ाई पूरी कर एक अच्छी सी नौकरी का.

शेखर ने जिस वर्ष मैकेनिकल में अपनी इंजीनियरिंग पूरी की उसी साल आनंदिता ने एमकौम कर लिया. आनंदिता सीए करना चाह रही थी. सो, उस ने पंचरत्न कोचिंग संस्थान जौइन कर लिया. शेखर का कैंपस सेलैक्शन किर्लोस्कर गु्रप्स में ट्रेनी इंजीनियर के रूप में हो गया. जुलाई में उसे जौइन करना था. प्रशांत उसे विदा करने स्टेशन तक आया. उस के 2 पेपर रुके हुए थे, सो, सप्लिमैंट्री एग्जाम तक प्रशांत को होस्टल में ही रुकना था.

‘‘अरे कितना सोओगे, हम कब से आप के जागने का इंतजार कर रहे हैं. मुकुल भाईसाहब मिलने आए थे लेकिन आप को सोता देख कर लौट गए. नीचे डाइनिंग हौल में बुला गए हैं,’’ आनंदिता की आवाज ने शेखर को सपनों की दुनिया से यथार्थ की जमीन पर ला दिया.

‘‘ओह, 4 बज गए. मैं 2 मिनट में पहुंचता हूं वहां. तुम लोग चलो,’’ कहता हुआ शेखर वाशरूम में घुस गया.

शाम का कार्यक्रम सुव्यवस्थित और मंत्रमुग्ध करने वाला रहा. रुद्र और प्रथम सहित कई बच्चों ने शानदार प्रस्तुतियां दीं. शेखर के कहने पर रुद्र ने प्रथम से एक बार फिर सुबह की घटना के लिए सौरी कहा. प्रथम ने भी उस का हाथ थाम कर सौरी कहा. दोनों को बात करते देख कर शेखर और आनंदिता का मन हलका हो गया. अगले दिन सभी का सांची स्तूप देखने का प्रोग्राम था. उसी दिन शाम को महिलाओं के लिए वूमेंस स्पैशल नाइट का आयोजन किया गया था. आनंदिता ने ‘आप की नजरों ने समझा…’ गीत गा कर समां बांध दिया. बाद में सभी ने डीजे पर जम कर डांस किया.

उस दिन आनंदिता के गायन को सभी ने बहुत सराहा. शेखर को भी बधाइयां मिलीं. नींद की आगोश में भी शेखर खुद को गर्वित महसूस करता रहा. एसिड से जलने के बाद आनंदिता का बैडमिंटन खेलना छूट गया था, लेकिन जिंदगी से हारना उसे स्वीकार नहीं था. उस ने विलास सिरपुरकर का संगीत विद्यालय जौइन कर लिया. उन्हीं से उस ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी. लगन की पक्की तो वह शुरू से थी, सो, थोड़े समय में ही उसे स्वर साधना आ गया. वह सबकुछ भूल कर संगीत को समर्पित हो गई थी.

शादी के लिए भी शेखर को कितना मनाना पड़ा था. वह तो विवाह के लिए तैयार ही नहीं थी. विद्रूप चेहरा ले कर किसी के जीवन को ग्रहण लगाना नहीं चाहती थी वह. शेखर को भी ट्रेनिंग के बाद ही पता चला था उस हादसे के बारे में. आनंदिता को देख कर दहल गया था वह. इतनी सुंदर और सुशील लड़की के साथ इतना घिनौना कृत्य. कौन राक्षस है जिस ने ऐसा किया होगा. कई दिनों तक सोचता रहा था शेखर. आनंदिता भी अनभिज्ञ थी. उस का तो कभी किसी से मामूली विवाद भी नहीं हुआ था.

पूरे 7 साल इंतजार किया था उस ने  आनंदिता का. सब ने उसे मना किया था, धिक्कारा था, चेतावनी दी थी. पर वह आनंदिता को कैसे छोड़ सकता था. उस ने सदा साथ निभाने का वादा किया था उस से. आखिरी दम तक हार न मानने की ट्रेनिंग ली थी बैडमिंटन कोर्ट पर. फिर जिंदगी के सब से महत्त्वपूर्ण मैच में वह घुटने कैसे टेक सकता था.

आनंदिता ने पूरी कोशिश की थी उसे डिगाने की. उस के हर प्लेसमैंट को सूझबूझ के साथ रिटर्न करती रही. वह हर पौइंट के लिए जूझता रहा. लेकिन मैच पौइंट पर आ कर आनंदिता भावुक हो गई और उस के अनुरोध को टाल नहीं सकी. दोनों ने कोर्ट मैरिज की. उन्हें आशीर्वाद देने आनंदिता के मामामामी और शेखर के पापामम्मी ही उपस्थित थे. अपनों की उपस्थिति ने दोनों को असीम ऊर्जा दी और साहस भी. साहस, जिंदगी की हर परीक्षा में उत्तीर्ण होने का, निश्चित हो आगे बढ़ते जाने का.

एलुमिनी मीट के अंतिम दिन सभी का गुलाबगंज के पास बमौरी गांव के भ्रमण का कार्यक्रम था, जिसे एलुमिनी एसोसिएशन ने कालेज प्रबंधन के सहयोग से गोद लिया था. गांव में बच्चों के लिए एक कंप्यूटर सैंटर और लाइब्रेरी का लोकार्पण तथा निराश्रित महिलाओं के संवर्द्धन हेतु सिलाई मशीनें भेंट की जानी थीं. आनंदिता के सुझाव पर ही एसोसिएशन ने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन की इस पहल को खुशीखुशी स्वीकार किया था.

अगले दिन सभी को वापस लौटना था. देररात तक लोग एकदूसरे से मिलते रहे. प्रशांत को अकेला देख कर आनंदिता उस के पास चली आई, ‘‘भाईसाहब, मैं आप से कुछ बात करना चाहती हूं.’’

‘‘यदि आप प्रथम की बात को ले कर दुखी हैं तो मैं आप से माफी मांगता हूं,’’ प्रशांत ने कहा.

‘‘नहीं, वह तो बच्चा है. मैं हूं ही ऐसी. पहली बार जो भी देखता है, डर जाता है.’’

प्रशांत को कोई उत्तर नहीं सूझा. वह चुप रहा. आनंदिता बोली, ‘‘कुछ पूछना है आप से?’’

‘‘हां, निसंकोच पूछिए.’’

‘‘मुझ से क्या गलती हुई थी जो आप ने इतनी बड़ी सजा दी मुझे?’’

‘‘आप से और गलती? मैं कुछ समझा नहीं,’’ प्रशांत विस्मय से आनंदिता की ओर देखते हुए बोला.

‘‘मुझे पता है, वे आप ही थे. मैं आप की आवाज कभी भूल ही नहीं पाई. पहले दिन जब आप ने नमस्ते बोला था, तभी मैं समझ गई थी. उस दिन आप के कहे शब्द, ‘सबक सिखा दिया, सुरु जल्दी चल  यहां से,’ अभी भी कानों में गूंजते रहते हैं. इतना सह लिया जिंदगी में कि अब कोई दर्द माने नहीं रखता. आप विश्वास कीजिए, आप की खुशहाल जिंदगी को नरक नहीं बनाऊंगी. बस, मेरा अपराध बता दीजिए ताकि दुनिया से विदा होते समय दिल पर कोई बोझ न रहे,’’ वर्र्षों से दिल के अंदर दबा दर्द पिघल कर आनंदिता की आवाज में घुल गया था.

प्रशांत को काटो तो खून नहीं. दिसंबर अंत की शीतल रात में भी माथे पर पसीने की बूंदें झिलमिलाने लगीं. उस का शरीर निढाल होने लगा. वर्षों पीछे छोड़ा गया समय इस तरह सामने आ खड़ा होगा, उस ने कल्पना भी नहीं की थी. बड़ी मुश्किल से वह बोल पाया, ‘‘मैं ईर्र्ष्या में अंधा हो गया था, इसलिए इतना बड़ा अन्याय कर बैठा.’’

‘‘कैसी ईर्ष्या?’’

‘‘शेखर से ईर्र्ष्या. मैं हर तरह के हथकंडे अपना कर के भी कभी उस से आगे नहीं निकल सका. वह हर बात में मुझ से बीस सिद्ध हुआ करता था. पढ़ाई में मुझ से बहुत आगे रहता. बैडमिंटन में अनुशासनहीनता के कारण मैं दोबारा टीम में स्थान नहीं पा सका. 2 बार क्लास रिप्रेजैंटेटिव के चुनाव में उस से हार गया. मेरी सनक के कारण स्कूल गर्लफ्रैंड ने भी मुझ से नाता तोड़ लिया.

‘‘उसी समय शेखर को आप मिल गईं. वह अकसर आप से मुलाकात के किस्से सुनाता. बहुत तारीफ करता आप की. मैं सुनता और अंदर ही अंदर सुलगा करता. बहुत गुस्सा आता अपनी नाकामियों पर और उस की उपलब्धियों पर. जब किर्लोस्कर में उस का कैंपस सेलैक्शन हो गया और मैं 2 पेपर्स में फेल हो गया तो बहुत रोया था. जिस दिन वह जा रहा था, मैं उसे छोड़ने स्टेशन तक गया था. बहुत खुश था वह. उस ने बताया था कि ट्रेनिंग के बाद आप से शादी करने वाला है. तभी मैं ने निर्णय कर लिया कि जिंदगी में अभी तक जितनी आसानी से उसे सबकुछ मिलता रहा है अब उतनी आसानी से आप को वह नहीं पा सकेगा. मैं जिंदगी का सब से भयंकर सबक सिखाऊंगा उसे.

‘‘मैं ने कई बार आप का पीछा किया. आप की गतिविधियों पर नजर रखी. सप्लिमैंट्री एग्जाम के बाद जिस रात मुझे वापस लौटना था, उसी शाम को मैं ने आप पर तेजाब फेंकने का फैसला कर लिया था. मेरे दोस्त सुरेश ने इस में मेरा साथ दिया. उसी ने अपने स्कूटर से मुझे भागने में मदद की. और मैं ने आप की जिंदगी नरक बना दी.

‘‘पर शेखर तो अलग ही मिट्टी से बना इंसान निकला. इस स्थिति में भी आप को अपना कर कितना खुश है आज भी. उस जैसे लोगों के कारण ही दुनिया में मानवता जिंदा है. मैं अपराधी हूं आप का. माफी के काबिल नहीं हूं. माफी मांग कर अपने गुनाह की सजा से बचना भी नहीं चाहता. कोई इतना ईर्ष्यालु न हो कि वह मानव सभ्यता के लिए कलंक बन जाए,’’ कहते हुए प्रशांत की आंखों से आंसू बहने लगे.

आनंदिता ने उस के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘रो लीजिए, मन हलका हो जाएगा. पर आप को मेरी कसम कि प्रथम और रोहिणी भाभी से कुछ मत कहिएगा. वे जिंदगीभर इस सदमे से उबर नहीं पाएंगे,’’ इतना कह कर आनंदिता तेजी से कदम बढ़ाते हुए अपने कमरे की ओर चल दी.
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