कहानी: गंदी नजर
बाहर वाला कुछ गलत कर बैठे तो उस के विरुद्ध शोर मचाना आसान होता है, लेकिन अपनों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए कितना हौसला चाहिए
शाम का समय था. राशि दी का फोन आ रहा था. यह देख कर हिना की खुशी का ठिकाना न रहा. वह समझ गई कि जरूर कोई खास बात होगी, जिस की वजह से उन्होंने इस समय फोन किया वरना वह रोज रात 10 बजे फोन करती है.
‘‘हैलो दी, कैसी हो? आज आप ने इस वक्त फोन कर दिया.’’ ‘‘क्या बताऊं, मुझ से सब्र नहीं हो रहा था.’’ ‘‘ऐसी क्या बात हो गई?’’ ‘‘ईशा का रिश्ता पक्का हो गया है. बस, चट मंगनी पट ब्याह होना है. आज से ठीक 10 दिनों बाद सगाई है और उस के अगले दिन ही शादी है. तुम सब को आना है.’’
‘‘यह भी कोई कहने की बात है, दी. मैं जरूर आऊंगी.’’‘‘मैं तेरी ही बात नहीं कर रही हूं, बल्कि राजीव, अनन्या और विनय को भी आना है.’’‘‘राजीव की मैं कह नहीं सकती. विनय के अगले महीने इम्तिहान हैं. एक को उस के साथ घर पर रहना होगा. मैं और अनन्या जरूर आएंगे, यह तो पक्का है. कुछ दामाद के बारे में भी बताओ,’’ हिना ने कहा तो राशि दी फोन पर उसे सारी बातें विस्तार से बताने लगीं. बातें करते हुए दोनों को एक घंटा हो गया था, तभी अनन्या ने आवाज लगाई,
‘‘मम्मी, बाहर कोई आया है आप से मिलने.’’‘‘अच्छा दी, बाद में बात करती हूं,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया. खुशी के मारे उस के पैर धरती पर नहीं पड़ रहे थे.राशि दी ईशा के रिश्ते को ले कर कब से परेशान थीं. इतना पढ़लिखने के बाद भी उस के लिए कोई अच्छा रिश्ता नहीं मिल रहा था. अब ऊपर वाले ने उन की सुन ली थी और ?ाट से उस का रिश्ता तय हो गया था. लड़का मल्टीनैशनल कंपनी में इंजीनियर था. अच्छाखासा परिवार था. वहां कोई कमी नहीं थी.
हिना ने खुशखबरी अनन्या और राजीव को भी सुना दी.‘‘मम्मी, ईशा दी की शादी में मजा आ जाएगा. मैं पूरे एक हफ्ते वहीं रहूंगी,’’ अनन्या बोली.‘‘यह क्या कह रही है? शादी के माहौल में इतने दिन कैसे रहा जा सकता है?’’‘‘मम्मी, यही तो मौका होता है सब से मिलने का. शादी में हमारे सारे कजिन आएंगे. वैसे, उन से व्हाट्सऐप पर चैट हो जाती है लेकिन आमनेसामने बात करने का मजा ही कुछ और है.’’
‘‘यह सब छोड़ो, पहले शादी के लिए ड्रैस तैयार करवानी है. समय बहुत कम है.’’‘‘आप ठीक कह रही हैं मम्मी. हम कल ही बाजार जा कर सब से पहले अपने लिए ड्रैस तैयार करवा लेते हैं, बाकी काम तो होते रहेंगे,’’ अनन्या बोली.मांबेटी दोनों ही शादी की तैयारी में उसी दिन से जुट गई थीं.
हिना को अब इस से आगे कुछ सू?ा ही नहीं रहा था. राजीव बोले, ‘‘हिना, मैं एक दिन के लिए ही शादी में आ सकता हूं, उस से ज्यादा नहीं. बेटे के इम्तिहान सिर पर हैं. मैं इस समय इतना बड़ा रिस्क नहीं ले सकता.’’‘‘जैसा तुम्हें ठीक लगे. मैं तो अनन्या के साथ 2 दिन पहले ही चली जाऊंगी. आप को अभी से बता देती हूं.’’
‘‘तुम्हारी जो मरजी, वह करो. इस मामले में मैं कुछ नहीं बोलूंगा. मैं ने अपनी दिक्कत तुम्हें बता दी है, बाकी उन लोगों से तुम खुद ही निबट लेना.’’एक हफ्ता कब गुजर गया, पता ही नहीं लगा. अब शादी में केवल 3 दिन रह गए थे.
अगले दिन हिना और अनन्या को शादी में राशि दी के घर जाना था. अनन्या बोली, ‘‘मम्मी, आप ने स्कूल से कितने दिन की छुट्टी ली है?’’‘‘3 दिन और क्या…? बीच में एक दिन इतवार है. कुल मिला कर 4 दिन हो जाएंगे.’’‘‘आप चली आना, मैं तो वहीं रुकूंगी,’’ अनन्या बोली, तो हिना ने उसे घूर कर देखा. वह जानती थी कि मम्मी किसी भी कीमत पर उसे अकेले नहीं छोड़ेंगी और अपने साथ ही वापस ले आएंगी.
बचपन से वह यही सब देखती आई थी. मम्मी जहां कहीं भी जाती हैं, उसे अपने साथ ले कर जाती हैं. कहीं छोड़ने की नौबत आती तो बहाना बना कर टाल देतीं.पता नहीं क्यों मम्मी बेटी को किसी के भी घर पर अकेले छोड़ने में बहुत डरती थीं. इतना ही नहीं, घर पर कोई मेहमान आता तो वे उन की हर सुविधा का खयाल रखतीं. रात में कोई प्रोग्राम हो तो वे अनन्या के शामिल होने पर पहले ही एतराज जता देती थीं.
मम्मी का रुख देख कर अनन्या ने अब कुछ कहना ही छोड़ दिया था.अलीगढ़ से आगरा का केवल 2 घंटे का रास्ता था. वे टैक्सी से वहां पहुंच गए थे. उन्हें देख कर राशि दी बहुत खुश हुईं.‘‘हिना, तेरे आ जाने से मेरी हिम्मत बहुत बढ़ गई है, नहीं तो मैं बड़ा नर्वस हो रही थी. घर पर पहलीपहली शादी है, इसीलिए मुझे थोड़ा डर लग रहा है.’’
‘‘ऐसी कोई बात नहीं है दी. हम मिलजुल कर काम करेंगे तो सबकुछ अच्छे से निबट जाएगा.’’‘‘हां, यह बात तो है. लड़के वालों की कोई डिमांड नहीं है. वे बहुत शरीफ लोग हैं. इसी वजह से मुझे और ज्यादा हिचक हो रही है. हम अपनी बेटी की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. भले ही वे अपने मुंह से कुछ नहीं कह रहे.’’काफी देर तक वे बातें करती रहीं. अनन्या ईशा के पास आ गई और बोली, ‘‘कैसे हैं हमारे जीजू?’’
‘‘तुम खुद ही देख लेना.’’‘‘वह तो मैं देख लूंगी. तुम भी तो कुछ बताओ.’’‘‘मुझे तो वे बहुत अच्छे लगे. वे बहुत सुलझे हुए हैं. वे किसी से ज्यादा बात नहीं करते.’’‘‘अभी बात करने में डरते होंगे. धीरेधीरे तुम से और हम से भी उन की खूब बातें होने लगेंगी और कौनकौन आ रहा है?’’ अनन्या ईशा को चिढ़ाते हुए बोली.‘‘सब आ रहे हैं. मामा के दोनों बेटे और बूआ की दोनों लड़कियां कल तक पहुंच जाएंगे. तुम्हारे आने से घर में शादी के माहौल की शुरुआत हो गई है.’’बातें करते हुए रात हो गई थी. हिना ने कहा, ‘‘दी, मेरे लिए अलग कमरे की व्यवस्था कर देना.’’
तुझे कहने की जरूरत नहीं है. मैं जानती हूं कि तू क्या चाहती है? मैं ने तेरे लिए पहले से ही व्यवस्था कर दी है. तुम और अनन्या ऊपर के कमरे में आराम से रहना.’’‘‘थैंक्यू दी,’’ कह कर हिना अनन्या के साथ वहां आ गई. उन्होंने अच्छे से अपना सामान व्यवस्थित कर लिया. हिना ने हमेशा की तरह यहां आ कर अनन्या को ढेर सारी नसीहतें दे डालीं.
तुझे क्या हो गया है हिना? कैसी बातें कर रही है. शेखर सुनेगा तो क्या सोचेगा?’’‘‘सोचता है तो सोचने दो. मुझे किसी की परवा नहीं है,’’ इतना कह कर उस ने बीच के दरवाजे पर कुंडी चढ़ा दी. हिना को आश्चर्य हो रहा था कि इतना कुछ कहने पर भी मम्मी आंखें मूंदें थीं और उस के इशारे नहीं समझ रही थीं. हिना सबकुछ जानते हुए भी चुप थी, इसीलिए उस की हिम्मत ज्यादा बढ़ गई.
बीच का दरवाजा बंद हो जाने से शेखर की उम्मीदों पर पानी फिर गया. एक बच्चे का पिता होने के बावजूद उस की गंदी नजर अपनी बूआ की बेटी हिना पर पता नहीं कब से लगी थी. अकसर वह उस के लिए गिफ्ट ले आता और उस के साथ खुल कर बातें करता. उसे याद आ रहा था कि वे उसे अजीब तरीके से छूते.
‘‘अगर वह उन के बहकावे में आ जाती तो…’’ यह सोच कर वह सिहर गई. लोकलाज के कारण उसे पता नहीं क्या कुछ झेलना पड़ता. मम्मी अपने भतीजे पर कभी शक तक नहीं कर सकीं. अब शेखर को खुद वहां रहना अखरने लगा था. हिना की निगाहों में उठने वाली नफरत को झेलने में वह समर्थ नहीं था. उस ने इस बीच कई बार उस से बात करने की कोशिश की. उस के पास आते ही वह चुपचाप वहां से उठ कर चली जाती.
हफ्तेभर बाद शेखर अपने पापा के घर चला गया था. इस घटना से हिना ने महसूस किया कि बाहर वालों से ज्यादा अपने लोग खतरनाक होते हैं. रिश्तों की आड़ में क्या कुछ कर गुजरते हैं, इस का किसी को एहसास तक नहीं होता. वे जानते हैं कि अपनों को बदनामी से बचाने व झूठी शान के लिए इस समाज में औरत की आवाज हर हाल में दबा दी जाएगी.
हिना की शादी के 2 साल बाद अनन्या पैदा हुई. उस ने सोच लिया था कि वह अपनी बेटी को दुश्मनों से बचा कर रखेगी. वह बचपन से उसे एक रात के लिए भी किसी रिश्तेदार के घर अकेला न छोड़ती. कई बार बड़े भैया ने कहा भी, लेकिन हिना कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाती. अनन्या को यह बात समझ आने लगी थी. वह कई मौकों पर मम्मी का विरोध भी करती. घर पर अकसर मेहमान आते. हिना उन का पूरा खयाल रखती, लेकिन बेटी की सुरक्षा के लिए कोई रिस्क न उठाती.
उस ने गैस्टरूम घर की छत पर अलग से बना रखा था, जिस से उन का वक्तबेवक्त उस के परिवार से कोई संपर्क न रहे. खानापीना खिला कर वह मेहमानों को गैस्टरूम में टिका देती. पता नहीं, उस की अंदर की दहशत ने उसे कितना हिला कर रख दिया था. नजदीकी रिश्तों के प्रति उस की आस्था ही खत्म हो गई थी. उसे लगता, रिश्ते की आड़ में छिपे हुए भेडि़ए कभी भी अपने ऊपर की रिश्ते की चादर सरका कर अपने असल रूप में आ उस की बेटी पर हमला कर सकते हैं.
बहुत देर तक उसे अतीत में तैरते हुए नींद नहीं आ रही थी. अगली सुबह वह समय से उठ गई, लेकिन अनन्या देर तक सोती रही. उस ने उसे उठाना उचित न समझ. शादी की रात भी हिना की नजरें शादी की रस्मों के बीच उस पर ही लगी रहीं. रात के 3 बजे फेरे खत्म हो गए और उस के बाद वह अनन्या के साथ कमरे में आ गई.
विदाई के समय सभी भावुक हो गए थे. 8 बजे ईशा की विदाई हो गई. घर सूना हो गया था. दोपहर तक अधिकांश मेहमान जाने लगे थे. सिद्धार्थ उस से और दी से मिलने आया, ‘‘अच्छा बूआ, चलता हूं.’’ ‘‘इतनी जल्दी क्या है? 1-2 दिन और रुक जाते,’’ राशि बोली. ‘‘जिस काम के लिए आए थे, वह पूरा हो गया. घर जा कर पढ़ाई भी करनी है.’’
अनन्या अभी 1-2 दिन और मौसी के पास रुकना चाहती थी, लेकिन मम्मी की वजह से कहने में हिचक रही थी. राशि दी खुद ही बोली, ‘‘ईशा के जाने के बाद घर खाली हो गया है. हिना, अनन्या को कुछ दिन यहां छोड़ दे.’’ ‘‘नहीं दी, इस के पापा नाराज होंगे. हम फिर आ जाएंगे. यहां से अलीगढ़ है ही कितना दूर. जब तुम कहोगी तभी ईशा और दामादजी से मिलने चले आएंगे.’’अगले दिन वह बेटी के साथ घर वापस जा रही थी. अनन्या के मन में कई सवाल थे, लेकिन वह मम्मी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी.
हिना जानती थी कि अनन्या मम्मी के व्यवहार से नाखुश है, लेकिन वह मजबूर थी. वह अपनी मम्मी की तरह रिश्तों की छांव में आंख मूंद कर निश्चिंत हो कर नहीं रह सकती थी. शुक्र था, जवानी में खुद सचेत रहने के कारण वह अपने को बचा पाई थी, नहीं तो उस के साथ कुछ भी बुरा घट सकता था. वह अपनी बेटी को ऐसी परिस्थितियों से दूर रखना चाहती थी.
बाहर वाला कुछ गलत कर बैठे तो उस के विरुद्ध शोर मचाना आसान होता है, लेकिन अपनों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए कितना हौसला चाहिए, इस की अनन्या कल्पना भी नहीं कर सकती. बेटी चाहे लाख नाराज होती रहे, उसे इस की परवा नहीं. उसे तो केवल भेडि़ए को रोकने की परवा है. अपनेपन की आड़ में वे सबकुछ लूट कर ले जाते हैं और लुटने वाला उन के खिलाफ आवाज तक नहीं उठा पाता. खुद घर वाले उस की आवाज को दबा देते हैं.
‘‘अभी उसे कुछ समझना बेकार है. धीरेधीरे अपने अनुभव से उसे बहुतकुछ पता चल जाएगा. तब उसे अपनी मम्मी की यह बात अच्छे से समझ आ जाएगी,’’ यह सोच कर वह थोड़ी आश्वस्त हो गई और अनन्या की नाराजगी को नजरअंदाज कर उस से सहज हो कर बातें करने लगी.