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कहानी: फेसरीडर

वह सीट पर आ तो बैठा था लेकिन निश्चिंत नहीं था क्योंकि जो निश्चिंतता अपने निर्धारित टिकट से प्राप्त आरक्षित सीट पर आती है वह यहां नहीं थी.
पैंतालीस साल के अधेड़ दिवाकर ने जल्दी से औटो वाले को किराया दिया और अपना हैंडबैग संभालते हुए तेजी से रेलवे स्टेशन के उस हिस्से की ओर दौड़ पड़ा जहां क्लौकरूम स्थित था. बारबार घड़ी देखने के साथ उस की नजर क्लौकरूम की ओर थी, जहां से उसे अपना सूटकेस लेना था.

ट्रेन छूटने में सिर्फ 20 मिनट ही शेष थे और उसे तत्परता से यह काम कर, 2 फुटओवर ब्रिज पार कर के प्लेटफौर्म नंबर 6 पर पहुंचना था जहां पर वह ट्रेन खड़ी थी जिस में सवार हो कर उसे अपने गंतव्य दिल्ली पहुंचना था. खैर, शीघ्रता से औपचारिकता पूरी कर उस ने अपना सूटकेस लिया और दौड़ताहांफता प्लेटफौर्म नंबर 6 पर जा पहुंचा.

ट्रेन चल पड़ी थी लेकिन अभी उस ने रफ्तार नहीं पकड़ी थी. उस की आंखें चलती ट्रेन में अपने कंपार्टमैंट एस-3 डब्बे को खोजने लगी. ट्रेन धीरेधीरे स्पीड पकड़ रही थी और उस का एस-3 डिब्बा आगे निकल चुका था. उस ने सोचा, यदि वह अपने कंपार्टमैंट की ओर दौड़ेगा और उस तक पहुंचेगा, तब तक तो ट्रेन की स्पीड बढ़ जाएगी और उस का ट्रेन में चढ़ना मुश्किल हो जाएगा. संभव है ट्रेन ही छूट जाए. उस की त्वरा बुद्धि ने तुरंत प्रतिक्रिया दी. उस ने अपना सूटकेस सामने से गुजरते हुए एक डब्बे में फेंका और खुद भी दौड़ कर उस में सवार हो गया.

जिस डब्बे में वह चढ़ा था वह एक द्वितीय श्रेणी का आरक्षित कंपार्टमैंट था. उस ने घूम कर देखा, सभी लोग अपनीअपनी सीट पर बैठे अपने में मशगूल थे. कोई अपना सामान सेट कर रहा था, तो कोई जूते उतार कर उन्हें बर्थ के नीचे खिसका रहा था, तो वहीं, कोई मोबाइल में व्यस्त था. उन्हीं में से एक ऐसा भी हिस्सा था जिस में एक ही महिला बैठी हुई थी. सकुचाते और इधरउधर देखते हुए वह इस हिस्से में महिला के सामने वाली खाली बर्थ पर जा कर बैठ गया. जो महिला उस के सामने वाली बर्थ पर बैठी थी वह लगातार खिड़की से बाहर पीछे छूटते प्लेटफौर्म को निहार रही थी. दिवाकर उसे कनखियों से देखने लगा.

वह सीट पर आ तो बैठा था लेकिन निश्चिंत नहीं था क्योंकि जो निश्चिंतता अपने निर्धारित टिकट से प्राप्त आरक्षित सीट पर आती है वह यहां नहीं थी. कभी भी, किसी भी स्टेशन से आरक्षित बर्थ का वास्तविक पैसेंजर आ सकता था और उसे वहां से अपना बोरियाबिस्तर ले कर उतरना पड़ेगा. यदि उस से पहले टिकट कलैक्टर ही आ गया तो उस के सामने सफाई देनी पड़ेगी और उसे सफाईवफाई देना बहुत ही इरिटेटिंग लगता था.

दिवाकर के मन में सोचविचार का सिलसिला चल ही रहा था कि तभी अचानक उस की सोचविचार की कंदरा के मुहाने पर किसी ने भारीभरकम चट्टान गिरा दी. फलस्वरुप, कंदरा में अंधकार व्याप्त हो गया. विचार, प्रश्न सब तिमिराच्छादित हो गए. कारण था, महिला का उस की ओर, और खुद दिवाकर का उस की ओर एकटक भाव से अपलक देखते ही रह जाना. उस महिला की उम्र कोई चालीसपैंतालीस से कम नहीं थी. उस के चेहरे में एक कशिश थी जो उसे अपनी ओर खींचे जा रही थी.

सामान्य कदकाठी की यह महिला गुलाबी रंग के डिजाइनर सूट सलवार पहने थी जिस पर क्रीम रंग का दुपट्टा और उस में जड़ी छोटीछोटी अनगिनत घंटियां सोने पर सुहागा प्रतीत हो रही थीं. दिवाकर उस महिला के आभामंडल से सम्मोहित हुआ जा रहा था. वह उसे देख कर मन ही मन प्रसन्न हो, खयालों में खोने लगा.

“एक्सक्यूज मी, एक्सक्यूज मी, कुछ कहना है आप को? क्या देख रहे हैं आप, आप को नहीं लगता कि इस तरह से किसी महिला को तकना बदतमीजी कहलाती है? हेलो मिस्टर, आप ही से कह रही हूं. आप चूंकि हुलिए और कपड़ों से शरीफ आदमी लग रहे हैं इसलिए इस भाव में बात कर रही हूं वरना मुझे दूसरे भाव भी आते हैं. हेलो, हां जी?”
दिवाकर अभी भी उसे अपलक देखे जा रहा था. दो चुटकियां चेहरे के पास बजीं, तो वह सम्मोहन से बाहर आया.

“ओह, सौरी मैडम, एक्चुअली मैं एक फेसरीडर हूं. मुझे आप के चेहरे में कुछ विशेष· दिखाई पड़ रहा है जो फेसरीडिंग के मेरे अब तक के अनुभव को चुनौती देता प्रतीत हो रहा है. क्षमा चाहता हूं, मुझे आप को ऐसे नहीं देखना चाहिए था.”

दिवाकर ने क्षमायाचना तो की लेकिन इस दौरान वह उस महिला के पूरे चेहरे को पढ़ चुका था. उसे पूरा विश्वास था कि कुछ ही देर बाद उस से कुछ प्रश्न पूछे जाने हैं. फेसरीडिंग संबंधी जिज्ञासाएं प्रकट होने वाली हैं. वह चाहता तो आमतौर पर सटीक पड़ने वाली एकदो बात बता कर उस महिला को कौतुक में डाल सकता था. परंतु, वह पहल सामने से करवाना चाहता था. इसलिए शांत भाव से अपने मोबाइल के साथ व्यस्त होने का नाटक करने लगा. उस ने प्रतीक्षा करना शुरू किया. उस के अधरों पर मुसकान तैर रही थी.

फेसरीडिंग की बात ने महिला को रोमांचित कर दिया था. उसे ऐसी अनुभूति होने लगी कि वह इस व्यक्ति से पहले भी मिल चुकी है परंतु बहुत जोर देने पर भी वह स्मरण न कर सकी कि वह इस से कब और कहां मिली है. वह मन ही मन सोच रही थी कि इस अजनबी को क्या मालूम कि फेसरीडिंग उस की कमज़ोरी है. फिर उस ने सोचा, कहीं यह कोई बहरूपिया तो नहीं जो उसे हानि पहुंचाना चाहता है?

आजकल बहुत बुरा समय चल रहा है. इसलिए हर किसी के सामने खुलना ठीक नहीं, पर देखने से तो यह कोई पाखंडी या आपराधिक प्रवृत्ति का नहीं लगता. मुझे न जाने क्यों ऐसा महसूस हो रहा है कि यह आदमी मेरे लिए नुकसानदेह नहीं हो सकता, पर आजकल किसी का क्या भरोसा? छलिये और कपटी लोग ऐसी ही मोहिनी सूरत लिए फिरते हैं.
दोनों अपनेअपने मन में विचारमग्न थे.

“चिंता मत कीजिए, आप को मुझ से कोई खतरा नहीं हो सकता,” दिवाकर ने आश्वस्त करते हुए कहा.
“आप हंस क्यों रहे हैं?” महिला ने दिवाकर से पूछा.
“मुझे लगता है मैडम कि मेरे चेहरे पर जो भाव प्रतिलक्षित है वह मुसकान कहलाती है. हंसने में तो अधर कपाट खुलते हैं और दंतुलियों के दिग्दर्शन होते हैं जोकि नहीं हुए, इसलिए इस भावमुद्रा को आप हंसना नहीं कह सकती हैं.”
“हांहां, वहीवही. मेरा मतलब वही था. आप मुझे देख कर मुसकरा क्यों रहे हैं?”
“क्योंकि मेरी फेसरीडिंग विद्या मुझ से कह रही है कि यहां एक इंटरैस्टिंग फेसरीडिंग का सैशन होने वाला है, जिस की शुरुआत आप करेंगी.”
“मैं भला क्यों आप से बात करूंगी, मैं आप को जानती नहीं, पहचानती नहीं. और वैसे भी, मेरी फेसवेस रीडिंग में कोई दिलचस्पी नहीं है.”
“वैसे, आप कहें तो मैं आप के बारे में कुछ अनुमान लगा सकता हूं” दिवाकर ने महिला की ओर एक सटीक गुगली फेंकी.
“लेकिन मैं आप को क्यों इजाज़त दूं? और मैं ने कहा न, मुझे इन अंधविश्वासों में कोई दिलचस्पी नहीं है.”
“लेकिन मेरी फेसरीडिंग विद्या कह रही है कि आप के शब्द कुछ और कह रहे हैं और आप का चेहरा कुछ और ही बयान कर रहा है.”
“’मतलब?”
“मतलब, आप के चेहरे ने जैसे ही मेरे मुंह से फेसरीडिंग शब्द सुने, सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. आप की आंखों की चमक, अधरों का स्मित भाव और भौंहों का फैलाव बताता है कि आप भी इस क्षेत्र में दखल रखती हैं. मतलब, आप को भी थोड़ाबहुत इस विद्या का ज्ञान है.”
महिला उस की बात सुन कर थोड़ा गंभीर हुई, फिर मुसकराते हुए बोली, “चलिए, मान लेते हैं, इसी बहाने थोड़ा टाइम ही पास हो जाएगा. लगाइए क्या अनुमान लगा सकते हैं आप मेरे बारे में?”
जैसे ही महिला ने दिलचस्पी दिखाई, दिवाकर मन ही मन खुश हो गया. यही तो चाहता था वह. बस, फिर क्या था, खेल शुरू.
“जैसे कि मेरी विद्या कहती है कि आप दिल्ली जा रही हैं.”
“हाहाहाहाहाहा, अरे, दिल्ली वाली ट्रेन से सवारी दिल्ली नहीं जाएगी तो क्या लंदन जाएगी?” और महिला जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी. उस की हंसी में बालसुलभ निर्मलता थी.

दिवाकर मंत्रमुग्ध हो उस महिला को हंसते हुए देखता रहा. फिर मुसकराते हुए उस ने हाईफाई वाली मुद्रा में अपनी दाईं हथेली आगे बढ़ाई और महिला ने भी हंसते हुए ही उस के हाथ पर ताली दे दी.
महिला हंसतेहंसते अचानक रुक गई, बोली, “आप ने इस तरह हाथ आगे क्यों बढ़ाया?”
“क्योंकि मेरी विद्या कहती है कि आप हंसते हुए सामने वाले के हाथ पे ताली मार कर अपनी हंसी समाप्त करती हैं.”
“आप को यह बात कैसे पता?” महिला ने हैरत से पूछा.
“कहा न, कि मेरी फेसरीडिंग विद्या मुझे सिग्नल देती है.”
“इंटरैस्टिंग, वैरी इंटरैस्टिंग. और क्या सिग्नल दे रही है आप की फेसरीडिंग विद्या?”
महिला दिवाकर के चेहरे को गौर से पढ़ने लगी. दिवाकर भी गौर से महिला के चेहरे को देखने लगा. कुछेक क्षण देखता रहा. फिर आंखें बंद कर के बोला, “आप के चेहरे को देख कर मुझे पुष्प दिखाई पड़ने लगे हैं. पुष्प के साथ भीमराव बाबासाहेब अंबेडकर भी दिखने लगे हैं. मतलब, आप का दिल्ली में पुष्प या अंबेडकरजी से कोई संबंध जरूर होगा. मतलब, कोई गार्डन या अंबेडकरजी से संबंधित कोई पुस्तक या कोई नगर या घर का पता वगैरहवगैरह.”

दिवाकर ने अब आंखें खो दीं. उस ने देखा, महिला आश्चर्य से भरी उस को अपलक देख रही थी.
“और, और क्या बता रही है तुम्हारी विद्या, तुम्हारी यह फेसरीडिंग?” महिला ने गंभीर होते हुए पूछा.
“लेकिन आप ने जवाब नहीं दिया कि आप का पुष्प और अंबेडकरजी से क्या संबंध है?”
“मैं दिल्ली में पुष्प विहार में रहती हूं, उसे अंबेडकर नगर भी कहते हैं.”
“आप हाथ आगे कीजिए एक मिनट.”
महिला ने दिवाकर की बात का अनुसरण किया. दिवाकर थोड़ा आगे झुक कर महिला की हथेली को किसी अनुभवी और प्रशिक्षित ज्योतिषी की भांति देखने लगा. कुछ देर निरीक्षण करने के बाद वह वापस पीछे की ओर सरक गया और गौर से महिला के फेस को देखा, फिर आंखें बंद कर मंदमंद मुसकराने लगा.

“क्या बात है, आप मुसकरा क्यों रहे हैं?” महिला ने आश्चर्य से पूछा.
“कोई खास बात नहीं है,” दिवाकर ने आंखें बंद किएकिए ही कहा.
“कोई ख़ास बात नहीं है तो फिर यों एकाएक मुसकराने का सबब?”
“देखिए, यदि आप बुरा न माने तो कहूं?”
“ऐसी क्या बात है?”
“मुझे कुछ ऐसा दिखाई पड़ रहा है कि असमंजस में हूं कि कहूं या न कहूं. कहूं तो डर है कि कहीं आप बुरा न मान जाएं.”
“ऐसा क्या विलक्षणण दिख रहा है आप को कि दुविधाग्रस्त हो गए, मैं जानना चाहती हूं, मेरी उत्सुकता न बढा़इए.”
“तो सुनिए, मुझे दिखाई पड़ रहा है एक रसगुल्ला, उस के ऊपर रखी हुई एक मूंछ, एक किताब, जिस पर ‘कविता’ लिखा हुआ है. एक चाक, एक डस्टर और साथ में गुलाब के 2 अधखिले फूल. कुछ समझ में आया, मैडम?”
“मैं कैसे समझ सकती हूं, तुम यह सब देख रहे हो, तुम ही बताओ?”
“शायद मैं गलत भी हो सकता हूं लेकिन इन सब के मुताबिक जैसे, रसगुल्ले के ऊपर मूंछ अर्थात मिठाई और व्यक्ति, मतलब आप का या आप के किसी करीबी का मिठाइयों का कारोबार या मिठाई में दिलचस्पी…”
“मेरे पिताजी की मिठाई की दुकान है,” महिला ने दिवाकर की बात काटते हुए कहा.
“ओके, दूसरा, एक कविता की किताब और चाकडस्टर अर्थात आप टीचर हैं और हिंदी विषय की शिक्षिका हैं. क्या यह भी सही है?”
“हां, सही है.”

दिवाकर ने अब महिला के चेहरे को और भी गौर से देखते हुए कहा, “मैं ने कहा था न कि यहां फेसरीडिंग का एक इंटरैस्टिंग सैशन होने वाला है,” दिवाकर ने आंखें खोलते हुए कहा.
“वह सब तो ठीक है परंतु अभी आप ने पूरी बात नहीं बताई है. उन 2 अधखिले गुलाब के फूलों का क्या रहस्य है?” महिला ने दिवाकर की आंखों में आंखें गडा़ते हुए पूछा.

दिवाकर कुछ क्षण खामोश रहा, फिर एक गहरी निश्वास खींचते हुए बोला, “वे आप के युवावस्था के अधूरे प्रेम के प्रतीक हैं.”
“क्या बकवास कर रहे हैं, आप? यों ही कुछ भी अनापशनाप आप कहेंगे और मैं हां करती जाऊंगी. यह ग़लत है.” यह कह कर महिला खिड़की के बाहर देखने लगी. दिवाकर उसे गौर से देखने लगा. कुछ देर तक कंपार्टमैंट में मौन छा गया.
“लेकिन मेरी विद्या और आप के फेशियल एक्सप्रैशन कह रहे हैं कि मैं जो कह रहा हूं वह ग़लत नहीं है.”
“मुझे लगता है कि ये बहुत निजी बातें होती हैं जिन्हें सब से शेयर नहीं करनी चाहिए.”
“मैं आप की भावना का सम्मान करता हों पर फिर भी सच बताइएगा, क्या कोई आप से प्रेम करता था कालेज में?”
महिला ट्रेन की छत पर लगे पंखे को देखने लगी. कुछ देर मौन रही.
“देखिए, यदि आप नहीं बताना चाहती हैं तो ठीक है, मैं अपनी दुकान बंद करता हूं.”
महिला ने उस की ओर देखा, फिर गहरी सांस छोड़ते हुए बोली, “यस, मैं जानती थी कि वह मुझे चाहता है पर कभी कह नहीं सका. शरीफ और ईमानदार लड़का था.”
“क्या उस ने कभी कुछ नहीं कहा?”
“नहीं, कभी नहीं.”
“लेकिन मेरी विद्या कहती है कि उस ने एक बार इज़हार किया था.”
“तो आप यह कहना चाहते हैं कि मैं झूठ बोल रही हूं?”
“नहीं, बिलकुल नहीं. लेकिन आप कोशिश कर रही हैं, पर आप का फेस इस के उलट गवाही दे रहा है.”
महिला फिर से खिड़की के बाहर तेजी से बदलते दृश्यों को देखने लगी. उस का चेहरा गंभीर हो उठा.
“हां, एकदो बार कहने की कोशिश जरूर की थी उस ने पर हिम्मत नहीं जुटा सका था. फिर आखिरकार एक दिन उस ने इस पार या उस पार की मुद्रा में कहा.
“’मतलब?”
“मतलब, उस ने सीधेसीधे मुझ से कहा कि वह मुझ से शादी करना चाहता था.”
“वैरी इंटरैस्टिंग, तो फिर अड़चन क्या थी?”
“अड़चन मैं खुद थी. मेरे संस्कार, मेरा डर था.”
“मतलब, आप ने उसे मना कर दिया?”
“कह सकते हो.”
“फिर आप उस से कभी नहीं मिलीं?”
“मिली थी एकदो बार उस के दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस में.”
“क्यों, आप ने तो उसे मना कर दिया था, फिर क्यों मिलीं आप?”
“बस, ऐसे ही मन किया.”
“मतलब, आप भी उस से प्यार करती थीं?”
“हो सकता है. यह अनुभूति मुझे उस के एमए में पास आउट हो जाने के बाद महसूस हुई. उस के बाद फिर उस से कभी नहीं मिली. पच्चीसछब्बीस साल हो गए हैं इस बात को, अब तो वह मेरे सामने आ भी जाए तो शायद मैं उसे पहचान न पाऊं.”
“और अगर वह संयोग से किसी दिन आप के सामने आ ही गया तो वह आप को पहचान लेगा?”
“सौ फीसदी पहचान लेगा,” महिला ने दृढ़ता से कहा.
“लेकिन पच्चीसतीस सालों में तो आदमी की शक्लसूरत, चालढाल, डीलडौल सब बदल जाता है. आप में भी तो बदलाव आए होंगे, फिर भी आप को विश्वास है कि वह आप को पहचान लेगा?”
“बिलकुल, बिलकुल विश्वास है,” महिला ने फिर दृढ़ता से कहा.
“आप जानना नहीं चाहती हैं कि इस समय वह कहां और कैसा है?”
“जरूर जानना चाहती हूं, बल्कि, मैं यह भी जानना चाहती हूं कि उस ने शादी की या नहीं, क्या तुम बता सकते हो?”

दिवाकर मुसकरा दिया और उस ने आंखें बंद कर लीं. कुछ क्षण मौन, बंद आंखों के साथ मुसकराता रहा. फिर आंखें बंद किए हुए ही बोला, “उस के 2 बच्चे हैं. एक खूबसूरत, मृदुभाषिणी पत्नी है जो उस पर अपनी जान निछावर करने को हमेशा तैयार रहती है. खुश है वह अपनी दुनिया में, सुखी है.”
यह कह कर दिवाकर ने आंखें खोल दीं, देखा, महिला की आंखें सजल हो आई थीं. उस ने दुपट्टे से आंखें पोंछते हुए कहा, “मुझे ख़ुशी है कि वह सुखी है.”
“मैडम, एक बात पूछूं? ऐक्चुअली मैं भविष्यवाणी नहीं करता और न ही भविष्य के बारे में कुछ बताता हूं लेकिन मैं आप से एक बात पूछना चाहता हूं, हालांकि यह एक निजी प्रश्न है फिर भी, क्या आप ने शादी की?”
“की थी, मैं ने भी शादी की थी, पर मेरी शादी की उम्र मात्र 3 साल ही रही. लेकिन छोड़ो, मुझे ख़ुशी है कि वह सुखी है,” कहते हुए महिला फिर से बाहर देखने लगी.

खेत, घर, सड़क, पेड़ों का समूह, दूर पहाड़ों की पंक्तियां तीव्र गति से पीछे छुटते जा रहे थे. कुछ देर बाद स्टेशन आ गया और ट्रेन रुक गई. प्लेटफौर्म से चायपकौड़े, पूरीसब्जी की आवाजें आने लगीं. सवारी का चढ़नाउतरना जारी था. तभी एक फैमिली कंपार्टमैंट में दाखिल हुई और दिवाकर के सामने आ कर खड़ी हो गई.

दिवाकर समझ गया कि आरक्षित बर्थ का वास्तविक स्वामी आ गया है. उस ने एक क्षण महिला को देखा. फिर तुरंत ही अपना सूटकेस और हैंडबैग ले कर नीचे उतर गया. खिड़की के पास आ कर महिला से बोला, “यह मेरा कार्ड है, कभी कोई समस्या हो, जरूरत हो, तो मुझे याद कर लेना. मुझे तुम्हारे कुछ काम आने में बहुत खुशी होगी.” यह कह कर उस ने खिड़की की सलाखों के सामने एक विशेष मुद्रा में राजेश खन्ना स्टाइल में सिर झुका कर दाएं हाथ की एक उंगली से जैसे ही सैल्यूट किया, वैसे ही ट्रेन खिसकने लगी.

यह देख महिला का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला ही रह गया. वह दौड़ कर दरवाजे तक गई. परंतु तब तक ट्रेन ने गति पकड़ ली थी. प्लेटफौर्म पीछे छूटने लगा था. महिला की नजर दूरदूर तक प्लेटफौर्म पर दौड़ कर लौट आई पर वो नहीं दिखा. उस ने दुपट्टे से अपना मुंह ढांप लिया. वह वापस अपनी बर्थ पर आ बैठी.
‘वो मेरे सामने था और मैं उसे पहचान न पाई, ओह!’
वह छत के पंखे को एकटक देखने लगी. उस की सांसें तेज़तेज़ चलने लगीं. वह उस के साथ हुई बातचीत को मन ही मन रिवाइंड करने लगी. उस ने बर्थ की पीठ पर सिर टिका दिया और आंखें मूंद लीं. फिर कुछ देर बाद अचानक उस का ध्यान हाथ में पकड़े कार्ड की ओर गया. उस ने कार्ड देखा, उस के कोनों में उकेरी गई नीली कमल पत्तियों को देख मुसकरा दी.
‘दुनिया कितनी छोटी है, रश्मि, वह एक बार फिर तुम्हारे सामने था और तुम पहचान न सकी. उस ने इतने सालों बाद भी झट से तुझे पहचान लिया. तुझ से बतियाता रहा, हायवाय भी किया. घर, परिवार, ऐड्रेस, कालेज की बात की. और तू मूर्ख, उस की बातों में ही अटकी रही. उसे न पहचान सकी. दिवाकर, मुझे समझ जाना चाहिए था कि तुम फेसरीडिंग नहीं बल्कि इतने सालों बाद मुझे पहचान कर पुरानी स्मृतियों को ताज़ा कर रहे थे.’
यह सब सोचतेसोचते महिला (रश्मि) मुसकराने लगी. उस ने अपने हैंडबैग में से एक कार्ड निकाला और उसे दिवाकर के दिए कार्ड के साथ मिलाने लगी. नीली कमल पत्तियों वाले दोनों कार्डों पर लिखा था- ‘तुम सर्वश्रेष्ठ हो.’ उस ने दोनों कार्डों को हैंडबैग में रखा और मुसकराते हुए एक बार फिर खिड़की के बाहर देखने लगी.

कुछ देर पहले के निर्जन मैदानों, सूखे-कंटीले पेड़ों, काले-मटमैले पहाड़ों के दृश्यों की जगह अब हरेभरे लहलहाते खेतों, फूलों से लदेफंदे पेड़पौधों, बलखाती नदी के दृश्यों ने ले ली थी. और रश्मि खयालों में खोई, बाहर की ओर देखते हुए लगातार मुसकरा रही थी. - नेतराम
 
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