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कहानी: चक्रव्यूह प्रेम का

मनोज कुमार अपने क्षेत्र के विधायक थे और जब उन्हें पता चला कि उन की बेटी ने लव मैरिज कर ली है तो एक पिता के ऊपर पैसा और रुतबा आ बैठा और फिर...
‘‘भैया सादर प्रणाम, तुम कैसे हो?’’ लखन ने दिल्ली से अपने बड़े भाई राम को फोन कर उस का हालचाल जानना चाहा.

‘‘प्रणाम भाई प्रणाम, यहां सभी कुशल हैं. अपना सुनाओ?’’ राम ने अपने पैतृक शहर छपरा से उत्तर दिया. वह जयपुर में नौकरी करता था. वहां से अपने घर मतापिता से मिलने आया हुआ था.

‘‘मैं भी ठीक हूं भैया. लेकिन दूर संचार के इस युग में कोई मोबाइल फोन रिसीव नहीं करे, यह कितनी अनहोनी बात है, तुम उन्हें क्यों नहीं समझते हो? मैं चाह कर भी उन से अपने मन की बात नहीं कह पाता, यह क्या गंवारपन और मजाक है,’’ मन ही मन खीझते हुए लखन ने राम से शिकायत की.

‘‘तुम किस की बात कर रहे हो लखन, मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है?’’ राम ने उत्सुकता जताते हुए पूछा.

‘‘तुम्हें पता नहीं है कि कौन मोबाइल सैट का उपयोग नहीं करता है? क्यों जानते हुए अनजान बनते हो भैया?’’ लखन ने नाराजगी जताते हुए कहा.

‘‘सचमुच मुझे याद नहीं आ रहा है. तू पहेलियां नहीं बुझ मेरे भाई, जो भी कहना है साफसाफ कहो,’’ इस बार राम ने थोड़ी ऊंची आवाज में कहा.

‘‘खाक साफसाफ कहूं…’’ उत्तेजित हो कर लखन ने जवाब दिया, ‘‘तुम्हीं ने मेरी कौल मातापिता को उठाने से मना कर दिया है इसलिए मैं परेशान हूं. घर में 2-2 स्मार्टफोन हैं. रिंग बजती रहती है लेकिन कोई रिसीव तक नहीं करता है, जबकि घर में 2-2 नौकरानियां भी हैं. मेरे साथ अनाथों जैसा बरताव क्या शोभा देता है?’’

‘‘बकबास बंद करो… फुजूल की बातें सुनने की मुझे आदत नहीं है… ऐसे बोल रहे हो जैसे वे मेरे मातापिता नहीं कोई नौकर हों… हां, नौकर को मना किया जा सकता है लेकिन देवतुल्य मातापिता को नहीं… वे तो अपनी मरजी के मालिक हैं… किस से बातें करनी हैं किस से नहीं वही जानें. अवश्य तुम उन के साथ कोई बचपना हरकत की होगी… इसलिए वे तुम से नाराज होंगे…’’ इतनी फटकार लगा कर राम ने फोन काट दिया.

फोन कट जाने से लखन काफी नाराज हुआ. वह सोचने लगा कि नौकरी से अच्छा तो घर पर बैठना ही था. नाहक घर छोड़ कर दिल्ली में ?ाक मार रहा हूं. इसी तरह 1 सप्ताह बीत गया. एक दिन लखन का मन नहीं माना, उस ने फिर राम को फोन किया, ‘‘मम्मीपापा कैसे हैं भैया? उन की चिंता लगी रहती है. उन की सेहत ठीक तो है न? उन से जरा बात करा दो न,’’ लखन ने सहजता के साथ अपने मन की बात रखी.

जवाब में तुनकमिजाज राम ने उत्तर दिया, ‘‘वे तो ठीक हैं पर तुम्हें किस बात की चिंता लगी रहती है, मु?ो बताओ तो सही? तूने रोजरोज यह क्या तमाशा लगा रखा है. कभी मम्मी से बात करा दो तो कभी पिताजी से. अब तू कोई दूध पीता बच्चा तो है नहीं. तेरे पास सब्र नाम की कोई चीज है कि नहीं? तू रोज फोन पर मुझे डिस्टर्ब न किया कर.’’

‘‘मम्मीपापा का हालचाल पूछना डिस्टर्ब करना है? क्या मैं डिस्टर्ब करता हूं? तो तुम ही बताओ उन से कैसे बात करूं. भैया तुम तो किसी विक्षिप्त की तरह बातें कर रहे हो, जैसे मैं छोटा भाई नहीं कसाई हूं.’’

‘‘हां, बिलकुल कसाई हो, तभी तो किसी निर्दयी की तरह व्यवहार करते हो. मुझे विक्षिप्त बोला. पागल कहा… बोलने की तमीज है कि नहीं? जो मन में आया बके जा रहे हो. मांबाप से उतना ही प्यार है तो सादगी से बात करो.’’

‘‘सौरी भैया, आई एम वैरी सारी.’’

‘‘ओके, लो पहले मां से बात करो,’’ कह कर राम ने अपने फोन का विजुअल वीडियो औन कर दिया, जिस के अंदर अपनी मां का मुसकराता हुआ चेहरा देख कर लखन आह्लादित हो गया और पूछा, ‘‘कैसी हो मां? तेरी बहुत याद आती है.’’

‘‘मैं तो ठीक हूं लखन बेटा लेकिन तू कितना दुबलापतला हो गया है. समय पर खाना नहीं खाता है क्या?’’

‘‘खाना खाता हूं मां, मगर तेरे हाथ का खाना कहां मिलता. आप दोनों के साथ रहने के लिए मम्मीपापा के नाम से दिल्ली में एक फ्लैट खरीद लिया है. अब आप लोगों को यहीं रहना होगा.’’

‘‘अरे बेटा फ्लैट क्यों खरीद लिया, यहीं मजे में दिन कट रहे हैं. लो थोड़ा अपने पिताजी से बात कर लो,’’ पार्वती ने मोबाइल अपने पति महादेव के हाथों में थमा दिया.

‘‘हैलो लखन बेटा, मांबेटे की बातें ध्यान से सुन रहा था. तुम हमें दिल्ली में रखना चाहते हो और राम हमें जयपुर में. दोनों के जज्बात और प्यार की कद्र करता हूं बेटा पर तुम्हारी मां और मैं यहीं ठीक हूं. तुम लोग खुश रहो, यही हमारी दिली तमन्ना है,’’ महादेव ने हर्षित मुद्रा में कहा.

‘‘मगर पिताजी आप के आशीर्वाद से आज मैं अपने पैरों पर खड़ा हूं. मातापिता के प्रति मेरा भी कुछ कर्तव्य और अधिकार है, जिसे निभाना चाहता हूं. आप मेरी इच्छाओं का दमन नहीं कीजिए,’’ लखन ने व्यग्र होते हुए विनती की.

‘‘लखन बेटा, जब ऐसी बात है तो कुछ दिनों के लिए हम अवश्य तुम्हारे पास रहेंगे. अच्छा ठीक है, फिर बातें होंगी.’’

राम ने मोबाइल वापस लेने के बाद डिस्कनैक्ट कर दिया.

राम और लखन दोनों भाई किसान महादेव और पार्वती के पुत्र थे. उन के दोनों लाड़ले बचपन से ही बड़े नटखट और शरारती थे. वे बातबात पर लड़ते और झगड़ते रहते थे. उन की शरारतों की वजह से मातापिता को पड़ोसियों के उलाहने सुनने पड़ते थे.

खेलखेल में राम और लखन ने अपने शहर के ही हाई स्कूल से मैट्रिक व इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की. उस के बाद पटना विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया. दोनों भाइयों ने दिल्ली के एक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से एमबीए किया. प्रौद्योगिकी विज्ञान में एमबीए करने के बाद दोनों भाई नौकरी की तलाश में जुट गए.

इधर बड़े भाई राम ने सीईओ बनने के लिए अकाउंटिंग मैंनेजमैंट में डिगरी प्राप्त की. उस के बाद उसे जयपुर में अमेरिकी कंपनी में सीईओ की नौकरी मिल गई. उस का सालाना पैकेज 40 लाख रुपए था.

वहीं लखन की नौकरी दिल्ली के एक बैंक में पर्सनल औफिसर के रूप में लग गई. वह बैंक की ह्यूमन रिसोर्स एक्टिविटीज को संभालने लगा. दोनों भाइयों की नौकरी लग जाने के बाद से उन के घर में खुशियों का माहौल था. उन की माता पार्वती और पिता महादेव बेहद प्रसन्न थे. उन के मन की मुरादें पूरी हो गई थीं.

महादेव की अब एक ही इच्छा शेष थी कि दोनों बेटों का विवाह किसी अच्छे घराने की शिक्षित, सुंदर और सुशील लड़की से हो जाए ताकि बहुओं के आ जाने से उन के बेटों का दांपत्य जीवन सुखमय हो सके. अब उन के विवाह के लिए रिश्ते आने लगे थे.

एक दिन मांझ के विधायक मनोज कुमार अपनी बेटी का रिश्ता ले कर महादेव के घर पहुंचे. महादेव और पार्वती ने उन के स्वागतसत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसी बीच विधायक ने राम के साथ अपनी बेटी के शादी का प्रस्ताव रखा.

महादेव कुछ जवाब दे पाते उस के पहले ही पार्वती ने विधायक से पूछा, ‘‘विधायकजी आप की सुपुत्री क्या करती है?’’

‘‘मेरे बेटी का नाम सत्या है. उस ने कंप्यूटर साइंस में एमबीए किया है. फिलहाल वह जयपुर में एक विदेशी कंपनी में काम करती है. वह देखने में सुंदर और होनहार लड़की है.’’

‘‘अति उत्तम, उस की मां को यहां क्यों नहीं लाए?’’ पार्वती ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘सत्या की मां इस दुनिया में नहीं है. वह सत्या को बचपन में ही छोड़ कर चल बसी थी. सत्या का लालनपालन मैं ने ही किया है,’’ विधायक ने दुखी मन से कहा.

‘‘उफ, कुदरत की जो मरजी. उस के आगे तो सब बौने हैं. बहरहाल आप लोग बात करें. जलपान के बाद अभी तक पान, सुपारी, सौंप वगैरह नहीं आया, देखती हूं क्या बात है,’’ कह पार्वती घर के अंदर चली गई.

‘‘हां, महादेव बाबू. अपनी बेटी की शादी राम से करने का प्रस्ताव लाया हूं. क्या हमारे यहां रिश्ता जोड़ेंगे?’’ विधायक मनोज कुमार ने आग्रह किया.

‘‘शादीविवाह तो विधाता की एक रचना है. बिना उस की मरजी के हम रिश्ता जोड़ने वाले होते कौन हैं? इस मामले में राम की पसंद ही सर्वोपरि होगी. हम ने पढ़ालिखा कर इतना योग्य बना दिया है कि वह अपनी जिंदगी के बारे में स्वयं निर्णय ले सके. अपनी जीवनसंगिनी खुद चुन सके. इस मामले में आप चाहें तो राम से वीडियो कौलिंग कर सकते हैं.’’

‘‘जी नहीं, हम जनता के बीच रहते हैं. हमें अपनी पुरानी परंपराओं और संस्कारों से ज्यादा लगाव है. गार्जियन की रजामंदी से जो लड़केलड़कियां शादीविवाह करते हैं, वे हमें खूब पसंद हैं. देखिए महादेव बाबू, अभी हम इतने एडवांस नहीं हुए हैं कि पाश्चात्य संस्कृति को अपना सकें. अच्छा, अब हम चलते हैं…’’ अपनी कुरसी से उठते हुए विधायक ने कहा.

‘‘विधायकजी, एक बार राम से बात कर के तो देखिए. शायद बात बन जाए,’’ महादेव ने आग्रह किया.

‘‘जी नहीं, जब वे आप की बात नहीं मानेंगे तो बात करने का क्या मतलब? धन्यवाद.’’

‘‘मैं ने कब कहा कि वह मेरी बात नहीं मानेगा. यह तो गलत आरोप है विधायकजी,’’ परेशान होते हुए महादेव ने कहा.

‘‘अभी से बेटों को बेलगाम छोड़ देना आप दोनों के लिए ठीक नहीं होगा. आने वाला वक्त आप लोगों पर भारी पड़ सकता है. शादीविवाह के बाद दोनों बेटे बिगड़ जाएंगे. बुढ़ापे में न बहुएं पूछेंगी न बेटे इसलिए सोचसम?ा कर निर्णय लें महादेव बाबू.’’

‘‘मैं ने तन, मन, धन लगा कर अपने नवजात पौधों को सींचा है. मुझे पूरा भरोसा है कि पौधे बड़े होकर अच्छे फूल और फल देंगे. हमें उन के बारे में न कुछ सोचना है न समझना है,’’ महादेव ने गर्व के साथ विधायकजी को जवाब दिया.

आखिर में महादेव के दोनों बेटों की शादी उन की मनपसंद लड़की से हो गई. जयपुर में बड़े भाई राम ने सत्या से लव मैरिज कर ली, जबकि दिल्ली में शोभा से लखन ने प्रेमविवाह किया. दोनों युवतियां उन के औफिस में काम करती थीं. इसी क्रम में उन के बीच प्रेम का बीज अंकुरित हुआ. 2 वर्षों में उन का प्रेम ऐसे परवान चढ़ा कि उन्होंने एकदूसरे से कोर्ट मैरिज कर ली. कोर्ट मैरिज के मौके पर उन्होंने अपने मातापिता को आशीर्वाद लेने के लिए बुलाया भी था, लेकिन अस्वस्थता के कारण पार्वती और महादेव नहीं जा सके.

राम और लखन शादी के बाद हनीमुन मनाने के लिए नैनीताल चले गए, जहां पहाड़ों की हरी भरी वादियों में जमकर मौज मस्ती लूटी. 1 माह हवा खोरी के पश्चात पूरे परिवार को 2 सप्ताह के लिए पैतृक शहर छपरा जाना था. इसी बीच लखन को कंपनी का इमरजैंसी कौल आ गई, जिस की वजह से उसे दिल्ली लौट जाना पड़ा, जबकि राम दोनों बहुओं को ले कर अपने मातापिता के पास छपरा पहुंच गया.

एकसाथ घर पर आए अपने बेटे राम और 2 पुत्र वधुओं को देख कर पार्वती और महादेव फूले नहीं समाए. वे समझ नहीं पाए कि उन का स्वागत कैसे करें. मारे खुशी के पार्वती उन की आरती उतारने लगी, जबकि महादेव अपने नौकर और नौकरानियों को बहुओं का कमरा सुसज्जित करने और उन की पसंद का खानपान तैयार करने की बात सम?ाने लगे.

पार्वती की बहुओं के घर आने की खबर महल्ले में चंदन की सुगंध की तरह फैल गई. पासपड़ोस की महिलाएं उन्हें देखने के लिए पहुंच गईं. वे बारीबारी से सत्या और शोभा की मुंहदिखाई की रस्मअदायगी में जुट गईं.

दोनों बहुओं के पास उपहारों का ढेर लग गया, जिसे देख कर सत्या और शोभा अपने प्रेम विवाह को भूल गई. उन्हें लगा कि वे अपनी ससुराल में अरेंज्ड मैरिज कर लाई गई हों. ससुराल में उन के दिनरात सुकून से कटने लगे.

एक दिन राम अपनी पत्नी सत्या और भाभी शोभा के साथ गौतम ऋषि और त्रिलोक सुंदरी अहिल्या का पौराणिक मंदिर देखने के लिए गोदना सेमरिया ले कर गया. वे मंदिर के पुजारी से अहिल्या के श्राप व उद्धार की कहानी सुन रहे थे, तभी उस की मां पार्वती ने राम को फोन किया, ‘‘किसी मामले में पुलिस तुम्हारे पिताजी को पकड़ कर थाने ले गई है. तुम लोग जल्दी भगवानपुर थाना पहुंचे.’’

‘‘पिताजी को पुलिस पकड़ कर ले गई… बिलकुल असंभव बात है मां,’’ राम ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए आशंका जताई.

‘‘राम देर न करो… जल्दी थाना पहुंचो…’’

‘‘आप चिंता न करें, तुरंत पहुंच रहा हूं,’’ राम ने जवाब दिया और सभी वहां से थाने के लिए चल दिए.

राम जैसे ही सत्या के साथ भगवानपुर थाना पहुंचा पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले कर अंदर बैठा दिया, जहां पहले से महादेव बैठे हुए थे.

‘‘सर, हमें किस जुर्म में बैठाया गया है उस की जानकारी हमें होनी चाहिए?’’ राम ने थानेदार संजय सिंह से पूछा.

‘‘तुम पर सत्या नाम की लड़की का जबरन अपहरण करने, उस की इच्छा के विरुद्ध शादी रचाने और शारीरिक संबंध बनाने का आरोप है. तुम्हारे विरुद्ध जयपुर थाना में लड़की के पिता मनोज कुमार ने लिखित आवेदन दिया है. जयपुर कोर्ट के आदेश पर तुम दोनों की बरामदी के लिए जयपुर पुलिस छपरा पहुंची है. औपचारिक पुलिसिया काररवाई के बाद थोड़ी देर में तुम लोगों को अपने साथ ले जाएगी. मेरी बात कुछ समझ में आई?’’ थानेदार संजय सिंह ने रोबदार आवाज में राम पर धौंस जमाई.

‘‘यह तो कानून का खुला उल्लंघन है सर… किसी ने हम पर ?ाठा आरोप लगा दिया… और पुलिस काररवाई के नाम पर हमें परेशान करेगी,’’ महादेव थोड़ा उत्तेजित होते हुए बोले.

‘‘अपहृत लड़की आप के सामने बैठी है, फिर भी आरोप झूठा लगता है? इस मामले में पूरे परिवार को जेल जाना पड़ेगा, तब सारी हेकड़ी निकल जाएगी,’’ थानेदार ने महादेव को धमकाया.

तभी जयपुर पुलिस ने राम, सत्या, महादेव को एक वाहन में बैठाया और जयपुर ले कर चली गई. निराश और हताश शोभा और उस की सास पार्वती दोनों थाने से अपने घर वापस आ गईं. शोभा ने अपने पति लखन को फोन पर सारे घटनाक्रम के बारे में बताया और कहा, ‘‘पता नहीं, किस की बुरी नजर हमारे परिवार को लग गई है. लखन, ट्रेन से हम दोनों आज जयपुर निकल जाएंगे. तुम भी वहीं पहुंचो… उन की जमानत कराने की जिम्मेदारी हमारी होगी.’’

‘‘ओके शोभा, मां का खयाल रखना मैं भी कल पहुंच जाऊंगा,’’ लखन ने जवाब दिया.

जयपुर पुलिस ने अपहृत सत्या के आरोपी राम को अपने घर में छिपा कर रखने के दोषी महादेव को भी जेल भेज दिया. बापबेटा को जेल भेजने के बाद पुलिस ने सत्या को सदर अस्पताल में मैडिकल जांच कराई. उस के बाद सत्या का फर्द बयान अदालत में दर्ज कराने के लिए पेश किया गया.

वहां मजिस्ट्रेट बीबी केस की सुनवाई कर रहे थे. उन के समक्ष मुखातिब होते हुए सत्या बोली, ‘‘जज साहब, मैं 25 वर्ष की बालिग युवती हूं. अपने होशोहवास और अपनी इच्छा के अनुसार भगवानपुर छपरा, बिहार निवासी राम वल्द महादेव से जयपुर कोर्ट में कोर्ट मैरिज की है. यहीं एक मल्टी इंटर नैशनल कंपनी में कार्यरत हूं. मां?ा, जिला सारण, बिहार निवासी सह विधायक मनोज कुमार का मेरे पिता राम पर लगाया गया आरोप निराधार है. आप जानते हैं कि भादवि की धारा 98 ए के तहत कोई भी युवती अपने मनपसंद साथी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह सकती है. उस पर जबरन कोई केस थोपा नहीं जा सकता है. बावजूद मेरे पिता ने मेरे पति राम पर अपहरण, शारीरिक शोषण आदि का मामला दर्ज किया है. जज साहब, मेरे और जेल में बंद मेरे पति के साथ इंसाफ किया जाए. यह तो कानून और नारी सशक्तीकरण का खुला उल्लंघन है.’’

कठघरे में खड़ी सत्या अपना फर्द बयान देने के बाद तनावमुक्तलग रही थी.उसे लगा कि उस के माथे का भार कम हो गया हो. उस ने अदालत में खड़ी अपनी सास पार्वती, देवर लखन और शोभा के मायूस चेहरों को देखा, जो काफी उदास और गमगीन लग रहे थे. उस ने आंखों के इशारे से सब्र रखने का भरोसा दिलाया.

उसी समय विधायक मनोज कुमार के अधिवक्ता बीएन राम ने कहा, ‘‘हुजुर, सत्या पर प्रेम का नशा सवार है इसलिए वह अपने प्रेमी का सहयोग कर रही है. उसे उस के पिता के साथ घर जाने की इजाजत दी जाए ताकि वह अपने बीमार पिता की सेवा कर सके. सत्या के अलावा उस के पिता के घर में सेवा करने वाली कोई दूसरी औरत नहीं है.’’

अधिवक्ता के बयान पर कोर्ट में उपस्थित लोग तरह तरह की चर्चा करने लगे.

‘‘और्डरऔर्डर,’’ मजिस्ट्रेट बीबी ने मेज पर हथौड़ा ठकठकाया और काया और सत्या से पूछा, ‘‘तुम्हारे पिता अकेला रहते हैं? क्या तुम उन के साथ रहना पसंद करोगी?’’

‘‘नहीं सर, पिताजी के साथ नहीं जा सकती. राम और उस के परिवार के सदस्य कोर्ट में मौजूद हैं, मैं उन के साथ ही रहूंगी. अब मेरा यही परिवार है.’’

‘‘अरे बेटी, इतना गुस्सा ठीक नहीं. तुम्हारे पिता ने जो भी केस किया है वह तेरी भलाई के लिए किया है. अब वे तेरी शादी शानोशौकत के साथ करना चाहते हैं, जिसे दुनिया वर्षों तक याद रखे. राम के परिवार के साथ नहीं जाओ, जब प्रेम का नशा उतरेगा तो बहुत पछताओगी.’’

‘‘मर गई उन की बेटी. उन की झूठी शान और राजनीति उन्हीं को मुबारक. एक विधायक की जवान व कुंआरी लड़की दूसरे प्रदेश में नौकरी करती है. उन से फोन पर बारबार जयपुर आने का आग्रह करती है, लेकिन विधायक को राजनीतिक बैठकों और चुनाव से फुरसत नहीं है. लेकिन वहीं लड़की जब कोर्ट मैरिज कर लेती है तो बाप की कुंभकर्णी नींद टूट जाती है. सीधे प्रेमी और प्रेमिका पर केस दर्ज करा देते हैं, माई लार्ड आप से जानना चाहती हूं कि क्या यही बेटी के प्रति एक बाप का अपनापन, स्नेह और प्यार है?’’

अदालत में उपस्थित लोगों में एक बार फिर सत्या के फर्द बयान पर तरहतरह की चर्चा होने लगी. कोई कहता, ‘‘लड़की अपनी जगह पर ठीक है,’’ दूसरा कहता, ‘‘जो एक बार राजनीति की चक्रव्यूह में फंस जाता, उस के लिए सारे रिश्तेनाते अक्षुण्ण हो जाते हैं…’’ तीसरा बोला, ‘‘बाप बेटी की जंग में प्रेमी क्यों पिसेगा, उसे जेल से रिहा करो….’’

‘‘और्डरऔर्डर,’’ मजिस्ट्रेट बीबी ने मेज पर पुन: हथौड़ा ठकठकाया और बोले, ‘‘सत्या और उस के प्रेमी राम के साथ काफी नाइंसाफी हुई है. सत्या ने अगर कोर्ट मैरिज कर भी ली तो समाज के प्रति जिम्मेदार उस के विधायक बाप को 1-2 बार मिल कर समझना चाहिए न कि केस करना चाहिए. अगर विधायक ने सू?ाबू?ा से काम लिया होता तो यह मामला कोर्ट नहीं पहुंचता. बहरहाल, यह अदालत सत्या व उस के प्रेमी राम को बाइज्जत बरी करती है. राम को जेल से बाहर आने तक सत्या अपनी इच्छा के अनुसार सुरक्षित जगह पर रह सकती है. अगर प्रतिवादी इन्हें परेशान करने की कोशिश करता है तो अदालत की अवहेलना के आरोप में उसे सजा भी हो सकती है,’’ इस आदेश के बाद मजिस्ट्रेट बीबी अपनी कुरसी से उठ कर अंदर चले गए.

सत्या कठघरे से निकल कर शोभा के पास पहुंची, जहां पार्वती ने उसे अपनी बाजुओं में भर लिया. तत्पश्चात् अपने पिता महादेव और भाई राम की जमानत कराने के लिए लखन सभी को ले कर अधिवक्ता पीएन के पास पहुंचा.

तब उस के अधिवक्ता ने कहा, ‘‘मजिस्ट्रेट बीबी का आदेश होते ही मैं ने दोनों को जेल से रिहा करने के लिए बेल पिटिशन भर कर कोर्ट में जमा कर दी. मंजूरी मिलते ही जज साहब के इजलास में बेलरों को हाजिर कराना होगा. आप लोग बेलर तैयार रखें.’’

‘‘वकील साहब, मेरे साथ नौकरी पेशाधारी, वाहन चालक, बिल्डर आदि लोग मौजूद हैं. उन से बेलर का काम हो जाएगा न?’’

‘‘बिलकुल हो जाएगा. देखिए, आप पहले 4 बेलरों को जज साहब के सामने कठघरे में खड़ा कराइए,’’ कह कर अधिवक्ता पीएन इजलास की ओर बढ़ गए.

लखन और शोभा के प्रयास से महादेव और राम जेल से बाहर आ गए. उन्हें देख कर सब के चेहरे खुशी से खिल उठे.

‘‘मेरी गैरहाजिरी और विपरीत परिस्थितियों में शोभा बेटी और लखन ने अपनी मां और घर को बखूबी संभाला. अब लगता है कि सारी जिम्मेदारियां सौंप कर पार्वती के साथ देशाटन पर निकल जाऊं. तुम लोगों की जिम्मेदारियां देखकर मेरी उम्र और कद दोनों काफी बढ़ गए हैं. क्यों, सत्या बेटी सही कहा न?’’

‘‘हां पिताजी, आप हमारे गार्जियन हैं. आप का आशीर्वाद और मां की ममता तो हमारे साथ है.’’

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन एक गार्जियन छूट रहा है. विधायकजी के आशीर्वाद के बिना सबकुछ अधूरा लग रहा है. चलो, वे रहे विधायकजी,’’ महादेव इतना बोल कर आगे बढ़ गए.

विधायक मनोज कुमार अपने समर्थकों के साथ जाने के लिए अपनी गाड़ी की ओर जैसे ही बढ़े, वैसे ही उन के सामने से शोभा और लखन ने उन का पैर स्पर्श कर लिया. उन का हाथ आशीष देने के लिए उठा ही था कि सत्या और राम ने भी झुक कर चरण स्पर्श करना चाहे,

तभी विधायक ने अपने पैर पीछे खींच लिए और गुस्से में बोल पड़े, ‘‘तू मेरी बेटी नहीं है…’’ दूर हटो मेरी नजरों से… इज्जत को तारतार कर दिया, अब क्या लेने आई हो, आज से मैं नहीं रहा तेरा बाप.’’

विधायक की बात सुन कर सत्या की आंखें भर आईं. वह किसी अपराधी की तरह सिर ?ाका कर राम के साथ ठगी सी खड़ी रही.

तभी महादेव ने बात को संभालते हुए नम्रता के साथ कहा, ‘‘विधायकजी गुस्सा थक दीजिए और मेरी बातों पर ध्यान दीजिए. सत्या की शादी का प्रस्ताव ले कर आप खुद मेरे घर आए थे.’’

‘‘हां आया था तो क्या हुआ. आप ने कौन सा रिश्ता जोड़ लिया था?’’ विधायक ने व्यंग्य कसा.

‘‘उस दिन कहा था कि  राम अपनी शादी खुद तय करेगा, एक बार उस से बात कर लें, लेकिन आप ने ऐसा नहीं किया. आज कोर्ट मैरिज कर दोनों आप के सामने हैं, उन्हें आशीर्वाद दे कर विदा कीजिए विधायकजी.’’

महादेव की तार्किक बातें सुन कर विधायक मनोज कुमार के साथ खड़े उन के वकील बीएन राम ने आश्चर्य प्रकट किया और कहा, ‘‘विधायकजी, आप सत्या की शादी का प्रस्ताव ले कर राम के घर गए थे, फिर यह ड्रामाबाजी क्यों? आप यह न भूलिए कि आप एक जनप्रतिनिधि भी हैं. समाज की सेवा करना आप का फर्ज है. दूसरों की बेटियों का आप घर बसाते रहे हैं, वहीं आप की पुत्री आशीष के लिए खड़ी है, यह कैसी विडंबना है?’’

वकील बीएन राम की बातें सुन कर महादेव ने प्रसन्नता जाहिर की और कहा, ‘‘वकील बीएन रामजी, आप ने बात कही है. विधायकजी को तो सत्या व राम पर गर्व होना चाहिए जिन्होंने युवा पीढ़ी में एक नई चेतना, ऊर्जा और उत्साह का संचार किया है, समाज को नई दिशा दी है. बेटीदामाद को घर ले जाइए और उन के सम्मान में एक समारोह कीजिए, जहां आप के रिश्तेदारों का स्नेह, दुलार और प्यार पा कर सत्या का आंचल खुशियों से भर जाएगा.’’

यह बात विधायक मनोज कुमार के दिल को छू गई. उन का आक्रोश जाता रहा. फिर अपने स्वाभिमान के विरुद्ध सादगी से बोले, ‘‘वाह महादेवजी वाह, सचमुच आप महादेव हैं,’’ इतना कह कर विधायक मनोज कुमार ने महादेव को अपने सीने से लगा लिया और कहा, ‘‘मेरी आंखों पर पुरातन परांपराओं और दकियानूसी बातों का चश्मा चढ़ा हुआ था. जिस से आधुनिक बातें अच्छी नहीं लगती थीं. हमेशा उन का वहिष्कार किया करता था. आप ने मेरी आंखें खोल दीं. मैं ने केस कर दोनों कुल का सर्वनाश करना चाहा. आप सभी हमें माफ करें.’’

‘‘अरे नहींनहीं विधायकजी, सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला हुआ नहीं कहते हैं.’’

प्रसन्नता जाहिर करते हुए विधायक ने अपनी बेटी व दामाद को अपने से लगा लिया. यह देख कर बीएन राम, महादेव, लखन और शोभा की आंखें मारे खुशी के छलक उठीं.
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