कहानी: रिश्ते की धूल
रीमा और सौरभ एकदूसरे के काफी नजदीक आ चुके थे. मगर फिर जल्दी ही सौरभ के दिल में सीमा बस गई थी. इस बात की जानकारी जब रीमा को हुई तो फिर क्या हुआ...
प्रियांक औफिस के लिए घर से बाहर निकल रहे थे कि पीछे से सीमा ने आवाज लगाई, ‘‘प्रियांक एक मिनट रुक जाओ मैं भी तुम्हारे साथ चल रही हूं.’’
‘‘मुझे देर हो रही है सीमा.’’
‘‘प्लीज 1 मिनट की तो बात है.’’
‘‘तुम्हारे पास अपनी गाड़ी है तुम उस से चली जाना.’’
‘‘मैं तुम्हें बताना भूल गई. आज मेरी गाड़ी सर्विसिंग के लिए वर्कशौप गई है और मुझे 10 बजे किट्टी पार्टी में पहुंचना है. प्लीज मुझे रिच होटल में ड्रौप कर देना. वहीं से तुम औफिस चले जाना. होटल तुम्हारे औफिस के रास्ते में ही तो पड़ता है.’’
सीमा की बात पर प्रियांक झुंझला गए और बड़बड़ाए, ‘‘जब देखो इसे किट्टी पार्टी की ही पड़ी रहती है. इधर मैं औफिस निकला और उधर यह भी अपनी किट्टी पार्टी में गई.’’
प्रियांक बारबार घड़ी देख रहा था. तभी सीमा तैयार हो कर आ गई और बोली, ‘‘थैंक्यू प्रियांक मैं तो भूल गई थी मेरी गाड़ी वर्कशौप गई है.’’
उस ने सीमा की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया. उसे औफिस पहुंचने की जल्दी थी. आज उस की एक जरूरी मीटिंग थी. वह तेज गाड़ी चला रहा था ताकि समय से औफिस पहुंच जाए. उस ने जल्दी से सीमा को होटल के बाहर छोड़ा और औफिस के लिए आगे बढ़ गया.
सीमा समय से होटल पहुंच कर पार्टी में अपनी सहेलियों के साथ मग्न हो गई. 12 बजे उसे याद आया कि उस के पास गाड़ी नहीं है. उस ने वर्कशौप फोन कर के अपनी गाड़ी होटल ही मंगवा ली. उस के बाद अपनी सहेलियों के साथ लंच कर के वह घर चली आई. यही उस की लगभग रोज की दिनचर्या थी.
सीमा एक पढ़ीलिखी, आधुनिक विचारों वाली महिला थी. उसे सजनेसंवरने और पार्टी वगैरह में शामिल होने का बहुत शौक था. उस ने कभी नौकरी करने के बारे में सोचा तक नहीं. वह एक बंधीबंधाई, घिसीपिटी जिंदगी नहीं जीना चाहती थी. वह तो खुल कर जीना चाहती थी. उस के 2 बच्चे होस्टल में पढ़ते थे. सीमा ने अपनेआप को इतने अच्छे तरीके से रखा हुआ था कि उसे देख कर कोई भी उस की उम्र का पता नहीं लगा सकता था.
प्रियांक और सीमा अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थे. शाम को प्रियांक के औफिस से घर आने पर वे अकसर क्लब या किसी कपल पार्टी में चले जाते. आज भी वे दोनों शाम को क्लब के लिए निकले थे. उन की अपने अधिकांश दोस्तों से यहीं पर मुलाकात हो जाती.
आज बहुत दिनों बाद उन की मुलाकात सौरभ से हो गई. सौरभ ने हाथ उठा कर अभिवादन किया तो प्रियांक बोला, ‘‘हैलो सौरभ, यहां कब आए?’’
‘‘1 हफ्ता पहले आया था. मेरा ट्रांसफर इसी शहर में हो गया है.’’
‘‘सीमा ये है सौरभ. पहले ये और मैं एक ही कंपनी में काम करते थे. मैं तो प्रमोट हो कर पहले यहां आ गया था. अब ये भी इसी शहर में आ गए हैं और हां सौरभ ये हैं मेरी पत्नी सीमा.’’
दोनों ने औपचारिकतावश हाथ जोड़ दिए. उस के बाद प्रियांक और सौरभ आपस में बातें करने लगे.
तभी अचानक सौरभ ने पूछा, ‘‘आप बोर तो नहीं हो रहीं?’’
‘‘नहीं आप दोनों की बातें सुन रही हूं.’’
‘‘आप के सामने तारीफ कर रहा हूं कि आप बहुत स्मार्ट लग रही हैं.’’
सौरभ ने उस की तारीफ की तो सीमा ने मुसकरा कहा, ‘‘थैंक्यू.’’
‘‘कब तक खड़ेखड़े बातें करेंगे? बैठो आज हमारे साथ डिनर कर लो. खाने के साथ बातें करने का अच्छा मौका मिल जाएगा.’’
प्रियांक बोला तो सौरभ उन के साथ ही बैठ गए. वे खाते हुए बड़ी देर तक आपस में बातें करते रहे. बारबार सौरभ की नजर सीमा के आकर्षक व्यक्तित्व की ओर उठ रही थी. उसे यकीन नहीं हो पा रहा था कि इतनी सुंदर, स्मार्ट औरत के 10 और 8 साल के 2 बच्चे भी हो सकते हैं.
काफी रात हो गई थी. वे जल्दी मिलने की बात कह कर अपनेअपने घर चले गए. लेकिन सौरभ के दिमाग में सीमा का सुंदर रूप और दिलकश अदाएं ही घूम रही थीं. उस दिन के बाद से वह प्रियांक से मिलने के बहाने तलाशने लगा. कभी उन के घर आ कर तो कभी उन के साथ क्लब में बैठ कर बातें करते.
प्रियांक कम बोलने वाले सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे. उन के मुकाबले सीमा खूब बोलनेचालने वाली थी. अकसर सौरभ उस के साथ बातें करते और प्रियांक उन की बातें सुनते रहते. सौरभ के मन में क्या चल रहा है सीमा इस से बिलकुल अनजान थी.
एक दिन दोपहर के समय सौरभ उन के घर पहुंच गए. सीमा तभी किट्टी पार्टी से घर लौटी थी. इस समय सौरभ को वहां देख कर सीमा चौंक गई, ‘‘आप इस समय यहां?’’
‘‘मैं पास के मौल में गया था. वहां काउंटर पर मेरा क्रैडिट कार्ड काम नहीं कर रहा था. मैं ने सोचा आप से मदद ले लूं. क्या मुझे 5 हजार उधार मिल सकते हैं?’’
‘‘क्यों नहीं मैं अभी लाती हूं.’’
‘‘कोई जल्दबाजी नहीं है. आप के रुपए देने से पहले मैं आप के साथ एक कप चाय तो पी ही सकता हूं,’’ सौरभ बोला तो सीमा झेंप गई
‘‘सौरी मैं तो आप से पूछना भूल गई. मैं अभी ले कर आती हूं,’’ कह कर सीमा 2 कप चाय बना कर ले आई. दोनों साथ बैठ कर बातें करने लगे.
‘‘आप को देख कर कोई नहीं कह सकता आप 2 बच्चों की मां हैं.’’
‘‘हरकोई मु?ो देख कर ऐसा ही कहता है.’’
‘‘आप इतनी स्मार्ट हैं. आप को किसी अच्छी कंपनी में जौब करनी चाहिए.’’
‘‘जौब मेरे बस का नहीं है. मैं तो जीवन को खुल कर जीने में विश्वास रखती हूं. प्रियांक हैं न कमाने के लिए. इस से ज्यादा क्या चाहिए? हमारी सारी जरूरतें उस से पूरी हो जाती है,’’ सीमा हंस कर बोली.
‘‘आप का जिंदगी जीने का नजरिया औरों से एकदम हट कर है.’’
‘‘घिसीपिटी जिंदगी जीने से क्या फायदा? मुझे तो लोगों से मिलनाजुलना, बातें करना, सैरसपाटा करना बहुत अच्छा लगता है,’’ कह कर सीमा रुपए ले कर आ गई और बोली, ‘‘यह लीजिए. आप को औफिस को भी देर हो रही होगी.’’
‘‘आप ने ठीक कहा. मुझे औफिस जल्दी पहुंचना था. मैं चलता हूं,’’ सौरभ बोला. उस का मन अभी बातें कर के भरा नहीं था. वह वहां से जाना नहीं चाहता था लेकिन सीमा की बात को भी काट कर इस समय अपनी कद्र कम नहीं कर सकता था. वहां से उठ कर वह बाहर आ गया और सीधे औफिस की ओर बढ़ गया. उस ने सीमा के साथ कुछ वक्त बिताने के लिए उस से झूठ बोला था कि वह मौल में खरीदारी करने आया था.
अगले दिन शाम को फिर सौरभ की मुलाकात प्रियांक और सीमा से क्लब में हो गई. हमेशा की तरह प्रियांक ने उसे अपने साथ डिनर करने के लिए कहा तो वह बोला, ‘‘मेरी भी एक शर्त है कि आज के डिनर की पेमैंट मैं करूंगा.’’
‘‘जैसी तुम्हारी मरजी,’’ प्रियांक बोले. सीमा ने डिनर पहले ही और्डर कर दिया था. थोड़ी देर तक वे तीनों साथ बैठ कर डिनर के साथ बातें भी करते रहे. सौरभ महसूस कर रहा था कि सीमा को सभी विषयों की बड़ी अच्छी जानकारी है. वह हर विषय पर अपनी बेबाक राय दे रही थी. सौरभ को यह सब अच्छा लग रहा था. घर पहुंच कर भी उस के ऊपर सीमा का ही जादू छाया रहा. बहुत कोशिश कर के भी वह उस से अपने विचारों को हटा न सका. उस का मन हमेशा उस से बातें करने को करता. उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि वह अपनी भावनाएं सीमा के सामने कैसे व्यक्त करो? उसे इस के लिए एक उचित अवसर की तलाश थी.
एक दिन उस ने बातों ही बातों में सीमा से उस के हफ्ते भर का कार्यक्रम पूछ लिया.
सौरभ को पता चल गया था कि वह हर बुधवार को खरीदारी के लिए स्टार मौल जाती है. वह उस दिन सुबह से सीमा की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. सीमा दोपहर में मौल पहुंची तो सौरभ उस के पीछेपीछे वहां आ गए. उसे देखते ही अनजान बनते हुए वे बोले, ‘‘हाय सीमा इस समय तुम यहां?’’
‘‘यह बात तो मुझे पूछनी थी. इस समय आप औफिस के बजाय यहां क्या कर रहे हैं?’’
‘‘आप से मिलना था इसीलिए कुदरत ने मुझे इस समय यहां भेज दिया.’’
‘‘आप बातें बहुत अच्छी बनाते हैं.’’
‘‘मैं इंसान भी बहुत अच्छा हूं. एक बार मौका तो दीजिए,’’ उस की बात सुन कर सीमा झेंप गई.
सौरभ ने घड़ी पर नजर डाली और बोला, ‘‘दोपहर का समय है क्यों न हम साथ लंच करें.’’
‘‘लेकिन…’’
‘‘कोई बहाना नहीं चलेगा. आप खरीदारी कर लीजिए. मैं भी अपना काम निबटा लेता हूं. उस के बाद इत्मीनान से सामने होटल में साथ बैठ कर लंच करेंगे,’’ सौरभ ने बहुत आग्रह किया तो सीमा इनकार न कर सकी.
सौरभ को यहां कोई खास काम तो था नहीं. वह लगातार सीमा को ही देख रहा था. कुछ देर में सीमा खरीदारी कर के आ गई. सौरभ ने उस के हाथ से पैकेट ले लिए और वे दोनों सामने होटल में आ गए.
सौरभ बहुत खुश था. उसे अपने दिल की बात कहने का आखिरकार मौका मिल गया था. वह बोला, ‘‘प्लीज आप अपनी पसंद का खाना और्डर कर लीजिए.’’
सीमा ने हलका खाना और्डर किया. उस के सर्व होने में अभी थोड़ा समय था. सौरभ ने बात शुरू की, ‘‘आप बहुत स्मार्ट और बहुत खुले विचारों की हैं. मु?ो ऐसी लेडीज बहुत अच्छी लगती हैं.’’
‘‘यह बात आप कई बार कह चुके हैं.’’
‘‘इस से आप को अंदाजा लगा लेना चाहिए कि मैं आप का कितना बड़ा फैन हूं.’’
‘‘थैंक्यू. सौरभ आप ने कभी अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया?’’ सीमा बात बदल कर बोली.
‘‘आप ने कभी पूछा ही नहीं. खैर, बता देता हूं. परिवार के नाम पर बस मम्मी और एक बहन है. उस की शादी हो गई है और वह अमेरिका रहती है. मम्मी लखनऊ में हैं. कभीकभी उन से मिलने चला जाता हूं.’’
बातें चल ही रही थीं कि टेबल पर खाना आ गया और वे बातें करते हुए लंच करने लगे.
सौरभ अपने दिल की बात कहने के लिए उचित मौके की तलाश में थे. लंच खत्म हुआ और सीमा ने आइसक्रीम और्डर कर दी. उस के सर्व होने से पहले सौरभ उस के हाथ पर बड़े प्यार से हाथ रख कर बोले, ‘‘आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं. क्या आप भी मुझे उतना ही पसंद करती हैं जितना मैं आप को चाहता हूं?’’
मौके की नजाकत को देखते हुए सीमा ने धीमे से अपना हाथ खींच कर अलग किया और बोली, ‘‘यह कैसी बात पूछ रहे हैं? आप प्रियांक के दोस्त और सहकर्मी हैं इसी वजह से मैं आप की इज्जत करती हूं, आप से खुल कर बात करती हूं. इस का मतलब आप ने कुछ और समझ लिया.’’
‘‘मैं तो आप को पहले दिन से जब से आप को देखा तभी से पसंद करने लगा हूं. मैं दिल के हाथों मजबूर हो कर आज आप से यह सब कहने की हिम्मत कर रहा हूं. मुझे लगता है आप भी मुझे पसंद करती हैं.’’
‘‘अपनी भावनाओं को काबू में रखिए अन्यथा आगे चल कर ये आप के भी और मेरे परिवार के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती हैं.’’
‘‘मैं आप से कुछ नहीं चाहता बस कुछ समय आप के साथ बिताना चाहता हूं,’’ सौरभ बोले.
तभी आइसक्रीम आ गई. सीमा बड़ी तलखी से बोली, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए.’’
‘‘प्लीज पहले इसे खत्म कर लो.’’
सीमा ने उस के आग्रह पर धीरेधीरे आइसक्रीम खानी शुरू की लेकिन अब उस की इस में कोई रुचि नहीं रह गई थी. किसी तरह से सौरभ से विदा ले कर वह घर चली आई. सौरभ की बातों से वह आज बहुत आहत हो गई थी. वह समझ गई कि सौरभ ने उस के मौडर्न होने का गलत अर्थ समझ लिया. वह उसे एक रंगीन तितली समझने की भूल कर रहा था जो सुंदर पंखों के साथ उड़ कर इधरउधर फूलों पर मंडराती रहती है.
वह इस समस्या का तोड़ ढूंढ रही थी जो अचानक ही उस के सामने आ खड़ी हुई थी और कभी भी उस के जीवन में तूफान खड़ा कर सकती है. वह जानती थी इस बारे में प्रियांक से कुछ कहना बेकार है. अगर वह उसे कुछ बताएगी तो वे उलटा उसे ही दोष देने लगेंगे, ‘‘जरूर तुम ने उसे बढ़ावा दिया होगा तभी उस की इतना सब कहने की हिम्मत हुई है.’’
1-2 बार पहले भी जब किसी ने उस से कोई बेहूदा मजाक किया तो प्रियांक की यही प्रतिक्रिया रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था वह सौरभ की इन हरकतों को कैसे रोके? बहुत सोचसमझ कर उस ने अपनी छोटी बहन रीमा को फोन मिलाया. वह भी सीमा की तरह पढ़ीलिखी और मार्डन लड़की थी. उस ने अभी तक शादी नहीं की थी क्योंकि उसे अपनी पसंद का लड़का नहीं मिल पाया था. मम्मीपापा उस के लिए परेशान जरूर थे लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी हुई थी कि वह शादी उसी से करेगी जो उसे पसंद होगा.
दोपहर में सीमा का फोन देख कर उस ने पूछा, ‘‘दी आज जल्दी फोन करने की फुरसत कैसे लग गई? कोई पार्टी नहीं थी इस समय?’’
‘‘नहीं आज कोई पार्टी नहीं थी. मैं अभी मौल से आ रही हूं. तू बता तेरे कैसे हाल हैं? कोई मिस्टर परफैक्ट मिला या नहीं?’’
‘‘अभी तक तो नहीं मिला.’’
‘‘मेरी नजर में ऐसा एक इंसान है.’’
‘‘कौन है?’’
‘‘प्रियांक के साथ कंपनी में काम करता है. तुम चाहो तो उसे परख सकती हो.’’
‘‘तुम्हें ठीक लगा तो हो सकता है मुझे भी पसंद आ जाए,’’ रीमा हंस कर बोली.
‘‘ठीक है तुम 1-2 दिन में यहां आ जाओ. पहले अपने दिल में उस के लिए जगह तो बनाओ. बाकी बातें तो बाद में होती रहेंगी.’’
‘‘सही कहा दी. परखने में क्या जाता है. कुछ ही दिन में उस का मिजाज सम?ा में आ जाएगा कि वह मेरे लायक है कि नहीं.’’
सीमा अपनी बहन रीमा से काफी देर तक बात करती रही. उस से बात कर के उस का मन बड़ा हलका हो गया था और काफी हद तक उस की समस्या भी कम हो गई थी.
दूसरे दिन रीमा वहां पहुंच गई. प्रियांक ने उसे देखा तो चौंक गए, ‘‘रीमा तुम अचानक यहां?’’
‘‘दी की याद आ रही थी. बस उस से मिलने चली आई. आप को बुरा तो नहीं लगा?’’ रीमा बोली.
‘‘कैसी बात करती हो? तुम्हारे आने से तो घर में रौनक आ जाती है.’’
सौरभ सीमा की प्रतिक्रिया की परवाह किए बगैर अपने मन की बात कह कर आज अपने को बहुत हलका महसूस कर रहा था. उसे सीमा के उत्तर का इंतजार था. 2 दिन हो गए थे. सीमा ने उस से फिर इस बारे में कोई बात नहीं की.
सौरभ से न रहा गया तो शाम के समय वह सीमा के घर पहुंच गया. ड्राइंगरूम में रीमा बैठी थी. उसी ने दरवाजा खोला. सामने सौरभ को देख कर वह सम?ा गई कि दी ने इसी के बारे में उस से बात की होगी.
‘‘नमस्ते,’’ रीमा बोली तो सौरभ ने भी औपचारिकता वश हाथ उठा दिए. उसे इस घर में देख कर वे चौंक गए. उस ने अजनबी नजरों से उस की ओर देखा. बोली, ‘‘अगर मेरा अनुमान सही है तो आप सौरभजी हैं?’’
‘‘आप को कैसा पता चला?’’
‘‘दी आप की बहुत तारीफ करती हैं. उन के बताए अनुसार मु?ो लगा आप सौरभजी ही होंगे.’’
उस के मुंह से सीमा की कही बात सुन कर सौरभ को बड़ा अच्छा लगा.
‘‘बैठिए न आप खड़े क्यों हैं?’’ रीमा के आग्रह पर वे वहीं सोफे पर बैठ गए.
‘‘मैं प्रियांक से मिलने आया था. इसी बहाने आप से भी मुलाकात हो गई.’’
‘‘मेरा नाम रीमा है. मैं सीमा दी की छोटी बहन हूं.’’
‘‘मेरा परिचय तो आप जान ही गई हैं.’’
‘‘दी ने जितना बताया था आप तो उस से भी कहीं अधिक स्मार्ट हैं,’’ लगातार रीमा के मुंह से सीमा की उस के बारे में राय जान कर सौरभ का मनोबल ऊंचा हो गया. उस लगा कि सीमा भी उसे पसंद करती है लेकिन लोकलाज के कारण कुछ कह नहीं पा रही है.
‘‘आप की दी कहीं दिखाई नहीं दे रहीं.’’
‘‘वे काम में व्यस्त हैं. उन्हें शायद आप के आने का पता नहीं चला. अभी बुलाती हूं,’’ कह कर रीमा दी को बुलाने चली गई.
कुछ देर में सीमा आ गई. उस ने मुसकरा कर हैलो कहा तो सौरभ का दिल अंदर ही
अंदर खुशी से उछल गया. उसे पक्का विश्वास हो गया कि सीमा को भी वह पसंद है. उसे उस की बात का जवाब मिल गया था उस ने पूछा, ‘‘प्रियांक अभी तक नहीं आए?’’
‘‘आते ही होंगे. आप दोनों बातें कीजिए मैं चाय का इंतजाम करवा कर आती हूं,’’ कह कर सीमा वहां से हट गई.
‘‘कुछ समय पहले कभी दी से आप का जिक्र नहीं सुना. शायद आप को यहां आए ज्यादा समय नहीं हुआ है.’’
‘‘हां, मैं कुछ दिन पहले ही ट्रांसफर हो कर यहां आया हूं.’’
‘‘आप की फैमिली?’’
‘‘मैं सिंगल हूं. मेरी अभी शादी नहीं हुई.’’
‘‘लगता है आप को भी अभी अपना मनपसंद साथी नहीं मिला.’’
‘‘आप ठीक कहती हैं. कम को ही अच्छे साथी मिलते हैं.’’
‘‘आप अच्छेखासे हैंडसम और स्मार्ट हैं. आप को लड़कियों की क्या कमी है?’’
बातों का सिलसिला चल पड़ा और वे आपस में बातें करने लगे. रीमा बहुत ध्यान से सौरभ को देख रही थी. सौरभ की आंखें लगातार सीमा को खोज रही थीं लेकिन वह बहुत देर तक बाहर उन के बीच नहीं आई.
रीमा भी शक्लसूरत व कदकाठी में अपनी बहन की तरह थी. बस उन के स्वभाव में थोड़ा अंतर लग रहा था.
कुछ देर बाद प्रियांक भी आ गए. सौरभ को देख कर वे चौंक गए और फिर उन के साथ बातों में शामिल हो गए.
प्रियांक बोले, ‘‘आप हमारी सालीजी से मिल लिए होंगे. अभी तक इन को अपनी पसंद का कोई साथी नहीं मिला है.’’
‘‘मैं ने सोचा ये भी अपनी बहन की तरह होंगी जिन्हें देख कर कोई नहीं कह सकता कि वे शादीशुदा हैं.’’
‘‘अभी मेरी शादी नहीं हुई है. अभी खोज जारी है.’’
प्रियंका के आने पर सीमा थोड़ी देर के लिए सौरभ के सामने आई और फिर प्रियांक के पीछे कमरे में चली आई. वह रीमा और सौरभ को बात करने का अधिक से अधिक मौका देना चाहती थी. बातोंबातों में रीमा ने सौरभ से उस का फोन नंबर भी ले लिया. सौरभ को लगा सीमा आज उस के सामने आने में ?ि?ाक रही है और उस के सामने अपने दिल का हाल बयां नहीं कर पा रही है. कुछ देर वहां पर रहने के बाद सौरभ अपने घर लौट आए.
प्रयांक ने आग्रह किया था कि खाना खा कर जाए लेकिन आज सीमा की स्थिति को देखते हुए सौरभ ने वहां पर रुकना ठीक नहीं सम?ा और वापस चले आया.
रीमा ने अगले दिन दोपहर में सौरभ को फोन किया, ‘‘आज आप शाम को क्या कर रहे हैं?’’
‘‘कुछ खास नहीं.’’
‘‘शाम को घर आ जाइएगा. हम सब को अच्छा लगेगा.’’
‘‘क्या इस तरह किसी के घर रोज आना ठीक रहेगा?’’
‘‘दी चाहती थीं कि मैं आप को शाम को घर बुला लूं.’’
‘‘कहते हैं रोजरोज किसी के घर बिना बुलाए नहीं जाना चाहिए. जब आप लोग चाहते हैं तो मैं जरूर आऊंगा,’’ सौरभ बोले. लगा जैसे उन के अरमानों ने मूर्त रूप ले लिया है और मन की मुराद मिल गई. वे औफिस के बाद सीधे सीमा के घर चले आए. रीमा उन का इंतजार कर रही थी. उन्हें देखते ही वह बोली, ‘‘थैंक्यू आप ने हमारी बात मान ली.’’
‘‘आप हमें बुलाएं और हम न आएं ऐसा कभी हो सकता है?’’
आज भी सौरभ की आशा के विपरीत उन्हें सीमा कहीं दिखाई नहीं दे रही थी. थोड़ी देर बाद वह 3 कप चाय और नाश्ता ले कर आ गई.
‘‘आप को पता चल गया कि मैं आ रहा हूं?’’
‘‘रीमा ने बताया था इसलिए मैं ने चाय और स्नैक्स की तैयारी पहले ही कर ली,’’ सीमा मुसकरा कर बोली.
सौरभ सीमा के बदले हुए रूप से अचंभित थे. कल तक उस के सामने मौडर्न दिखने वाली और बे?ि?ाक बोलने वाली सीमा उन की रोमांटिक बातें सुनने के बाद से एकदम छुईमुई सी हो गई थी. वह अब उन की हर बात में नजर ?ाका लेती थी. उस का इस तरह शरमाना सौरभ को बहुत अच्छा लग रहा था. वे सम?ा गए कि वह भी उन्हें उतना ही पसंद करती है लेकिन खुल कर स्वीकार करने में यही ?ि?ाक उन के बीच आ रही है.
अब उन के सामने एक ही समस्या थी वह यह कि वे सीमा की झिझक को कैसे दूर करें? उन्हें तो वही खूब बोलने वाली मौडर्न सीमा पसंद थी.मुश्किल यह थी कि रीमा की उपस्थिति में उन्हें सीमा से मिल कर उस की झिझक दूर करने का मौका ही नहीं मिल पा रहा था. वे चाहते थे कि वे सीमा से ढेर सारी बातें करें पर वह उन के सामने बहुत ही कम आ रही थी.
सौरभ रीमा के साथ बहुत देर तक बातें करते रहे. तभी प्रियांक आ गए. उन दोनों को बातें करते देख कर वे बड़े आश्वस्त लगे.
रात हो गई थी. सौरभ जैसे ही जाने लगे रीमा बोली, ‘‘डिनर तैयार हो रहा है. आज खाना खा कर ही जाइएगा.’’
‘‘आप बनाएंगी तो जरूर खाऊंगा.’’
‘‘ऐसी बात है तो मैं किसी दिन बना दूंगी. वैसे भी दी ने पहले से ही खाने की तैयारी कर ली होगी.’’
‘‘आप दोनों बहनों का इरादा मुझे खाना खिलाने का है तो मैं मना कैसे कर सकता हूं?’’
रीमा वहां से उठ कर किचन में आ गई. प्रियांक सौरभ से बातें करने लगे. सीमा
की मदद के लिए रीमा उस का हाथ बंटाने लगी. अब सौरभ को जाने की कोई जल्दी न थी. यहां पर सीमा की उपस्थिति का एहसास ही उन के लिए बहुत था. वैसे उन्हें अब रीमा की बातें भी अच्छी लगने लगी थीं. एकजैसे संस्कारों में पलीबढ़ी दोनों बहनों में काफी समानताएं थीं. रीमा ने डाइनिंग टेबल पर खाना बड़े करीने से लगा दिया था. वे सब वहां पर बैठ कर खाना खा लगे. सौरभ बीचबीच में चोर नजरों से सीमा को देख रहे थे. वह सिर झुकाए चुपचाप खाना खा रही थी. गलती से कभी नजरें टकरा जातीं तो सौरभ से निगाहें मिलते ही वह झट से अपनी नजरें नीची कर लेती. सौरभ को उस का यह अंदाज अंदर तक रोमांचित कर जाता.
रीमा को यहां आए हफ्ते भर से ज्यादा समय हो गया था. वह अब सौरभ से खुल कर बात करने लगी थी. आज सुबहसुबह रीमा ने सौरभ को फोन किया, ‘‘आज शाम आप फ्री हो?’’
‘‘कोई खास काम था?’’
‘‘हम सब आज पिक्चर देखने का प्रोगाम बन रहे हैं. आप भी चलिए हमारे साथ.’’
‘‘नेकी और पूछपूछ मैं जरूर आऊंगा.’’
‘‘तो ठीक है आप सीधे सिटी मौल में
ठीक 5 बजे पहुंच जाइए. हम आप को वहीं
मिल जाएंगे.’’
सौरभ की मानो मन की मुराद पूरी हो गई थी. वे समय से पहले ही मौल पहुंच गए. तभी देखा कि रीमा अकेली ही आ रही है.
‘‘प्रियांक और सीमा कहां रह गए?’’
‘‘अचानक जीजू की तबीयत कुछ खराब हो गई. इसी वजह वे दोनों नहीं आ रहे और मैं अकेले चली आई. मुझे लगा प्रोग्राम कैंसिल करना ठीक नहीं. आप वहां पर हमारा इंतजार कर रहे होंगे.’’
‘‘इस में क्या था? बता देतीं तो प्रोग्राम कैंसिल कर किसी दूसरे दिन पिक्चर देख लेते.’’
‘‘हम दोनों तो हैं. आज हम ही पिक्चर का मजा ले लेते हैं,’’ रीमा बोली.
सौरभ का मन थोड़ा उदास हो गया था लेकिन वे रीमा को यह सब नहीं जताना चाहते थे. वे ऊपर से खुशी दिखाते हुए बोला, ‘‘इस से अच्छा मौका हमें और कहां मिलेगा साथ वक्त बिताने का?’’
‘‘आप ठीक कहते हैं,’’ कह कर वे पिक्चर हौल में आ गए. वहां सौरभ को सीमा की कमी खल रही थी लेकिन वे यह भी जानते थे कि सीमा प्रियांक की पत्नी है. उस का फर्ज बनता है वह अपने पति की परेशानी में उस के साथ रहे. यही सोच कर सौरभ ने सब्र कर लिया और रीमा के साथ आराम से पिक्चर देखने लगे. समय कब बीत गय पता ही नहीं चला. पिक्चर खत्म हो गई थी. सौरभ रीमा को छोड़ने सीमा के घर आ गए. सामने प्रियांक दिखाई दे गए.
‘‘क्या बात है आप दोनों पिक्चर देखने नहीं आए?’’
‘‘अचानक मेरी सिर में बहुत दर्द हो गया था. अच्छा महसूस नहीं हो रहा था. इसीलिए नहीं आ सके. फिर कभी चलेंगे. तुम बताओ कैसी रही मूवी?’’
‘‘बहुत अच्छी. आप लोग साथ में होते तो और अच्छा लगता,’’ सौरभ बोले. सौरभ ने चारों ओर अपनी नजरें दौड़ाईं पर उन्हें सीमा कहीं दिखाई नहीं दी. वे रीमा को छोड़ कर वहीं से वापस हो गए.
अब तो यह रोज की बात हो गई थी. रीमा सौरभ के साथ देर तक फोन पर बातें करती रहती और जबतब घर बुला लेती. वे कभीकभी घूमने का प्रोग्राम भी बना लेते.
इतने दिनों में रीमा की सौरभ से अच्छी दोस्ती हो गई थी और सौरभ के सिर से भी सीमा का भूत उतरने लगा था. एक दिन सीमा ने रीमा को कुरेदा, ‘‘तुम्हें सौरभ कैसा लगा रीमा?’’
‘‘इंसान तो अच्छा है.’’
‘‘तुम उस के बारे में सीरियस हो तो बात आगे बढ़ाई जाए?’’
‘‘दी अभी कुछ कह नहीं सकती. मुझे कुछ और समय चाहिए. मर्दों का कोई भरोसा नहीं होता. ऊपर से कुछ दिखते हैं और अंदर से कुछ और होते हैं.’’
‘‘कह तो तुम ठीक रही है. तुम उसे अच्छे से जांचपरख लेना तब कोई कदम आगे बढ़ाना. जहां तुम ने इतने साल इंतजार कर लिया है वहां कुछ महीने और सही,’’ सीमा हंस कर बोली.
रीमा को दी की सलाह अच्छी लगी.
1 महीना बीत गया था. सौरभ और रीमा एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. अब सीमा सौरभ के दिमाग और दिल दोनों से उतरती चली जा रही थी और उस की जगह रीमा लेने लगी थी.
सीमा ने भी इस बीच सौरभ से कोई बात नहीं की और न ही वह उस के आसपास ज्यादा देर तक नजर आती. सौरभ को भी रीमा अच्छी लगने लगी. उस की बातें में बड़ी परिपक्वता थी और अदाओं में शोखी.
एक दिन सौरभ ने रीमा के सामने अपने दिल की बात कह दी, ‘‘रीमा तुम मुझे अच्छी लगती हो मेरे बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’
‘‘इंसान तो तुम भी भले हो लेकिन मर्दों पर इतनी जल्दी यकीन नहीं करना चाहिए?’’
रीमा बोली तो सौरभ थोड़ा घबरा गए. उन्हें लगा कभी सीमा ने तो उस के बारे में कुछ नहीं कह दिया.
‘‘ऐसा क्यों कह रही हो? मुझ से कोई गलती हो गई क्या?’’
‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. इतने लंबे समय तक तुम ने भी शादी नहीं की है. तुम भी आज तक अपनी होने वाली जीवनसाथी में कुछ खास बात ढूंढ़ रहे होंगे.’’
‘‘पता नहीं क्यों आज से पहले कभी
कोई जंचा ही नहीं. तुम्हारे साथ वक्त बिताने
का मौका मिला तो लगा तुम ही वह औरत हो जिस के साथ मैं अपना जीवन खुशी से बिता सकता हूं. इसीलिए मैं ने अपने दिल की बात
कह दी.’’
सौरभ की बात सुन कर रीमा चुप हो गई. फिर बोली, ‘‘इस के बारे में मुझे अपने दी और जीजू से बात करनी पड़ेगी.’’
‘‘मुझे कोई जल्दबाजी नहीं है. तुम चाहो जितना समय ले सकती हो,’’ सौरभ बोले.
थोड़ी देर बाद रीमा घर लौट आई. उस के चेहरे से खुशी साफ झलक रही थी.
उसे देखते ही सीमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है आज बहुत खुश दिख रही हो?’’
‘‘बात ही कुछ ऐसी है. आज मुझे सौरभ ने प्रपोज किया.’’
‘‘तुम ने क्या कहा?’’
‘‘मैं ने कहा मुझे अभी थोड़ा समय दो. मैं मम्मीपापा, दीदीजीजू से बात कर के बताऊंगी.’’
उस की बात सुन कर सीमा को बहुत तसल्ली हुई. आज सौरभ ने 1 नहीं 2 घर बरबाद होने से बचा लिए थे. उसे लगा भावनाओं में बह कर कभी इंसान से भूल हो जाती है तो इस का मतलब यह नहीं कि उस की सजा वह जीवनभर भुगतता रहे.
रीमा जैसे ही अपने कमरे में आराम करने के लिए गई सीमा ने पहली बार सौरभ को
फोन मिलाया. उस का फोन देख कर सौरभ चौंक गए. किसी तरह अपने को संयत किया और बोले, ‘‘हैलो सीमा कैसी हो?’’
‘‘मैं बहुत खुश हूं. तुम ने आज रीमा को प्रपोज कर के मेरे दिल का बो?ा हलका कर दिया. सौरभ कभीकभी हम से अनजाने में कोई भूल हो जाती है तो उस का समय रहते सुधार कर लेना चाहिए.’’
‘‘सच में मेरे दिल में भी डर था कि मैं ने रीमा को प्रपोज कर तो दिया लेकिन इस पर आप की प्रतिक्रिया क्या होगी?
‘‘मैं एक आधुनिक महिला हूं. मेरे विचार संकीर्ण नहीं हैं. मेरे व्यवहार के खुलेपन का आप ने गलत मतलब निकाल लिया था. आज तुम ने अपनी गलती का सुधार कर 2 परिवारों की इज्जत रख ली.’’
‘‘आप ने भी मेरे दिल से बड़ा बो?ा उतार दिया है. यह सब आप की सम?ादारी के कारण ही संभव हो सका है. मैं तो पता नहीं भावनाओं में बह कर आप से क्या कुछ कह गया? मैं ने आप की चुप्पी के भी गलत माने निकाल लिए थे.’’
‘‘सौरभ इस बात का जिक्र कभी भी रीमा से न करना और इस मजाक को यहीं खत्म कर देना.’’
‘‘मजाक,’’ सौरभ ने चौंक कर पूछा.
‘‘हां मजाक. अब आप मेरे बहनोई बनने वाले हो. इतने से मजाक का हक तो आप का भी बनता है,’’ सीमा बोली तो सौरभ जोर से हंस पड़े. उन की हंसी में उन के बीच के रिश्ते पर पड़ी धूल भी छंट गई.