कहानी: पत्नी का बेटा
सर, प्रमांशु आप की पत्नी का बेटा तो है, परंतु वह आप का बेटा नहीं है,’’ थानेदार ने जैसे धमाका किया.
जयंत औफिस के बाद पुलिस थाने होते हुए घर पहुंचे थे. बहुत थक गए थे. शारीरिक व मानसिक रूप से बहुत ज्यादा थके थे. शारीरिक श्रम जीवन में प्रतिदिन करना ही पड़ता है, परंतु पिछले 1 महीने से जयंत के जीवन में शारीरिक व मानसिक श्रम की मात्रा थकान की हद तक बढ़ गई थी. घर पर पत्नी मृदुला उन की प्रतीक्षा कर रही थी. प्रतिदिन करती है. उन के आते ही जिज्ञासा से पूछती है, ‘‘कुछ पता चला?’’ आज भी वही प्रश्न हवा में उछला. पत्नी को उत्तर पता था. जयंत के चेहरे की थकी, उदास भंगिमा ही बता रही थी कि कुछ पता नहीं चला था.
जयंत सोफे पर गिरते से बोले, ‘‘नहीं, परंतु आज पुलिस ने एक नई बात बताई है.’’
‘‘वह क्या?’’ पत्नी का कलेजा मुंह को आ गया. जिस बात को स्वीकार करने में जयंत और मृदुला इतने दिनों से डर रहे थे, कहीं वही सच तो सामने नहीं आ रहा था. कई बार सच जानतेसमझते हुए भी हम उसे नकारते रहते हैं. वे दोनों भी दिल की तसल्ली के लिए झूठ को सच मान कर जी रहे थे. हृदय की अतल गहराइयों से वे मान रहे थे कि सच वह नहीं था जिस पर वे विश्वास बनाए हुए थे. परंतु जब तक प्रत्यक्ष नहीं मिल जाता, वे अपने विश्वास को टूटने नहीं देना चाहते थे.
पत्नी की बात का जवाब न दे कर जयंत ने कहा, ‘‘एक गिलास पानी लाओ.’’
मृदुला को अच्छा नहीं लगा. वह पहले अपने मन की जिज्ञासा को शांत कर लेना चाहती थी. पति की परेशानी और उन की जरूरतों की तरफ आजकल उस का ध्यान नहीं जाता था. वह जानबूझ कर ऐसा नहीं करती थी, परंतु चिंता के भंवर में फंस कर वह स्वयं को भूल गई थी, पति का खयाल कैसे रखती?
जल्दी से पानी का गिलास ला कर पति के हाथ में थमाया और फिर पूछा, ‘‘क्या बताया पुलिस ने?’’
पानी पी कर जयंत ने गहरी सांस ली, फिर लापरवाही से कहा, ‘‘कहते हैं कि अब हमारा बेटा जीवित नहीं है.’’
मृदुला उन को पकड़ कर रोने लगी. वे उस को संभाल कर पीछे के कमरे तक लाए और बिस्तर पर लिटा कर बोले, ‘‘रोने से क्या फायदा मृदुल, इस सचाई को हम स्वयं नकारते आ रहे थे, परंतु अब हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए.’’
मृदुला उठ कर बिस्तर पर बैठ गई, ‘‘क्या उन को कोई सुबूत मिला है?’’
‘‘हां, प्रमांशु के जिन दोस्तों को पुलिस ने पकड़ा था, उन्होंने कुबूल कर लिया है कि उन्होंने प्रमांशु को मार डाला है.’’
सुन कर मृदुला और तेजी से रोने लगी. इस बार जयंत ने उसे चुप कराने का प्रयास नहीं किया, बल्कि आगे बोलते रहे, ‘‘लाश नहीं मिली है. पुलिस ने कुछ हड्डियां बरामद की हैं, उन से पहचान असंभव है.’’
मृदुला का विलाप सिसकियों में बदल गया. फिर नाक सुड़कती हुई बोली, ‘‘हो सकता है, वे प्रमांशु की हड्डियां न हों.’’
‘‘हां, संभव है, इसीलिए पुलिस उन का डीएनए टैस्ट कर के पता करेगी कि वे प्रमांशु के शरीर की हड्डियां हैं या किसी और व्यक्ति की. उन्होंने हमें कल बुलाया है. हमारे ब्लड सैंपल लेंगे.’’
‘‘ब्लड सैंपल…’’ मृदुला चौंक गई. उस ने आतंकित भाव से जयंत को देखा.
जयंत ने आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘इस में डरने की क्या बात है? ब्लड सैंपल देने में कोई तकलीफ नहीं होती.’’
‘‘नहीं, लेकिन…’’ मृदुला का स्वर कांप रहा था.
‘‘इस में परेशानी की कोई बात नहीं है. डीएनए मिलेगा तो वह हमारा प्रमांशु होगा, नहीं मिलेगा तो कोई अनजान व्यक्ति होगा.’’ जयंत के कहने के बावजूद मृदुला के चेहरे से भय का साया नहीं गया. उस का हृदय ही नहीं, पूरा शरीर कांप रहा था. उस के शरीर का कंपन जयंत ने भी महसूस किया. उन्होंने समझा, बेटे की मृत्यु से मृदुला विचलित हो गई है. उन्होंने उस को दवा दे कर बिस्तर पर लिटा दिया. नींद कहां आनी थी, परंतु जयंत उसे अकेला छोड़ कर ड्राइंगरूम में आ गए. सोफे पर अधलेटे से हो कर वे अतीत के जाल में उलझ गए.
जयंत का पारिवारिक जीवन काफी सुखमय रहा था. मनुष्य के पास जब धन, वैभव और वैचारिक संपन्नता हो तो उस के जीवन में आने वाले छोटेछोटे दुख, कष्ट और तकलीफें कोई माने नहीं रखतीं. उन के पिताजी केंद्र सरकार की सेवा में उच्च अधिकारी थे. मां एक कालेज में प्रोफैसर थीं. उन की शिक्षा शहर के सब से अच्छे अंगरेजी स्कूल और फिर नामचीन कालेज में हुई थी. उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने भी प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास की और आज राजस्व विभाग में उच्च अधिकारी थे. उन की पत्नी मृदुला भी उच्च शिक्षित थी, परंतु वह नौकरी नहीं करती थी. वह समाजसेवा और घूमनेफिरने की शौकीन थी. शादी के बाद जब उस का उठनाबैठना जयंत के सीनियर अधिकारियों की बीवियों के साथ हुआ, तो उस की पहचान का दायरा बढ़ा और वह शहर के कई क्लबों और सभासमितियों की सदस्या बन गई थी. जयंत खुले विचारों के शिक्षित व्यक्ति थे, सो, पत्नी की आधुनिक स्वतंत्रता के पक्षधर थे. वह पत्नी के घूमनेफिरने, अकेले बाहर आनेजाने पर एतराज नहीं करते थे. पत्नी के चरित्र पर वे पूरा भरोसा करते थे.
शादी के 5 साल तक उन के घर बच्चे का पदार्पण नहीं हुआ. जयंत इच्छुक थे, परंतु मृदुला नहीं चाहती थी. शादी के तुरंत बाद वह बच्चा पैदा कर के अपने सुंदर, सुगठित शरीर को बेडौल नहीं करना चाहती थी. वैसे भी वह घर और पति की तरफ अधिक ध्यान नहीं देती थी. इस के बजाय वह किटी पार्टियों व क्लबों में रमी खेलने में ज्यादा रुचि लेती थी. तब जयंत के मातापिता जीवित थे, परंतु मृदुला अपने ऊपर किसी का प्रतिबंध नहीं चाहती थी. वह वैचारिक और व्यावहारिक स्वतंत्रता की पक्षधर थी. इसलिए बाहर आनेजाने के मामले में वह किसी की बात नहीं सुनती थी. जयंत बेवजह घर में कोई झगड़ा नहीं चाहते थे, इसलिए पत्नी को कभी टोकते नहीं थे. उन का मानना था कि एक बच्चा होते ही वह घर और बच्चे की तरफ ध्यान देने लगेगी और तब वह क्लब की मौजमस्ती और किटी पार्टियां भूल जाएगी.
परंतु ऐसा नहीं हो सका. शादी के 5 साल बाद उन के यहां बच्चा हुआ, तो भी मृदुला की आदतों में कोई सुधार नहीं आया. कुछ दिन बाद ही उस ने क्लबों की पार्टियों में जाना प्रारंभ कर दिया. बच्चा आया (मेड) और जयंत के भरोसे पलने लगा. जब तक जयंत के मातापिता जीवित रहे तब तक उन्होंने प्रमांशु को संभाला, परंतु जब वह 10 साल का हुआ तो उस के दादादादी एकएक कर दुनिया से चल बसे. बच्चा स्कूल से आ कर घर में अकेला रहता, टीवी देखता या बाल पत्रिकाएं पढ़ता, जिन को जयंत खरीद कर लाते थे ताकि प्रमांशु का मन लगा रहे. वह आया से भी बहुत कम बात करता था.
शाम को जयंत घर लौटते तो वे उस का होमवर्क पूरा करवाते, कुछ देर उस के साथ खेलते और खाना खिला कर सुला देते. रात के 10 बजने के बाद कहीं मृदुला किटी पार्टियों या क्लब से लौट कर आती. तब उसे इतना होश न रहता कि वह प्रमांशु के साथ दो शब्द बोल कर उस के ऊपर ममता की दो बूंदें टपका सके. उस ने तो कभी यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि उस का पेटजाया बच्चा किस प्रकार पलबढ़ रहा था, उसे कोई दुख या परेशानी है या नहीं, वह मां के आंचल की ममतामयी छांव के लिए रोता है या नहीं. वह मां से क्या चाहता है, कभी मृदुला ने उस से नहीं पूछा, न प्रमांशु ने कभी उसे बताया. उन दोनों के बीच मांबेटे जैसा कोई रिश्ता था ही नहीं. मांबेटे के बीच कभी कोई संवाद ही नहीं होता था.
धीरेधीरे प्रमांशु बड़ा हो रहा था. परंतु मृदुला उसी तरह क्लबों व किटी पार्टियों में व्यस्त थी. अब भी वह देर रात को घर लौटती थी. जयंत ने महसूस किया कि प्रमांशु भी रात को देर से घर लौटने लगा है, घर आते ही वह अपने कमरे में बंद हो जाता है, जयंत मिलने के लिए उस के कमरे में जाते तो वह दरवाजा भी नहीं खोलता. पूछने पर बहाना बना देता कि उस की तबीयत खराब है. खाना भी कई बार नहीं खाता था. जयंत की समझ में न आता कि वह इतना एकांतप्रिय क्यों होता जा रहा था. वह हाईस्कूल में था. जयंत को पता न चलता कि वह अपना होमवर्क पूरा करता है या नहीं. एक दिन जयंत ने उस से पूछ ही लिया, ‘बेटा, तुम रोजरोज देर से घर आते हो, कहां रहते हो? और तुम्हारा होमवर्क कैसे पूरा होता है? कहीं तुम परीक्षा में फेल न हो जाओ?’
‘पापा, आप मेरी बिलकुल चिंता न करें, मैं स्कूल के बाद अपने दोस्तों के घर चला जाता हूं. उन्हीं के साथ बैठ कर अपना होमवर्क भी पूरा कर लेता हूं,’ प्रमांशु ने बड़े ही आत्मविश्वास से बताया. जयंत को विश्वास तो नहीं हुआ, परंतु उन्होंने बेटे की भावनाओं को आहत करना उचित नहीं समझा. बात उतनी सी नहीं थी, जितनी प्रमांशु ने अपने पापा को बताई थी. जयंत भी लापरवाह नहीं थे. वे प्रमांशु की गतिविधियों पर नजर रखने लगे थे. उन्हें लग रहा था, प्रमांशु किन्हीं गलत गतिविधियों में लिप्त रहने लगा था. घर आता तो लगता उस के शरीर में कोई जान ही नहीं है, वह गिरतापड़ता सा, लड़खड़ाता हुआ घर पहुंचता. उस के बाल उलझे हुए होते, आंखें चढ़ी हुई होतीं और वह घर पहुंच कर सीधे अपने कमरे में घुस कर दरवाजा अंदर से बंद कर लेता. जयंत के आवाज देने पर भी दरवाजा न खोलता. दूसरे दिन भी दिन चढ़े तक सोता रहता.
यह बहुत चिंताजनक स्थिति थी. जयंत ने मृदुला से इस का जिक्र किया तो वह लापरवाही से बोली, ‘इस में चिंता करने वाली कौन सी बात है, प्रमांशु अब जवान हो गया है. अब उस के दिन गुड्डेगुडि़यों से खेलने के नहीं रहे. वह कुछ अलग ही करेगा.’
और उस ने सचमुच बहुतकुछ अलग कर के दिखा दिया, ऐसा जिस की कल्पना जयंत क्या, मृदुला ने भी नहीं की थी.
प्रमांशु ने हाईस्कूल जैसेतैसे पास कर लिया, परंतु नंबर इतने कम थे कि किसी अच्छे कालेज में दाखिला मिलना असंभव था. आजकल बच्चों के बीच प्रतिस्पर्धा और कोचिंग आदि की सुविधा होने के कारण वे शतप्रतिशत अंक प्राप्त करने लगे थे. हाई स्कोरिंग के कारण 90 प्रतिशत अंक प्राप्त बच्चों के ऐडमिशन भी अच्छे कालेजों में नहीं हो पा रहे थे. जयंत ने अपने प्रभाव से उसे जैसेतैसे एक कालेज में ऐडमिशन दिलवा दिया, परंतु पढ़ाई जैसे प्रमांशु का उद्देश्य ही नहीं था. उस की 17-18 साल की उम्र हो चुकी थी. अब तक यह स्पष्ट हो चुका था कि वह ड्रग्स के साथसाथ शराब का सेवन भी करने लगा था. जयंत के पैरों तले जमीन खिसक गई. प्यार और ममता से वंचित बच्चे क्या इतना बिगड़ जाते हैं कि ड्रग्स और शराब का सेवन करने लगते हैं? इस से उन्हें कोई सुकून प्राप्त होता है क्या? अपने बेटे को सुधारने के लिए मांबाप जो यत्न कर सकते हैं, वे सभी जयंत और मृदुला ने किए. प्रमांशु के बिगड़ने के बाद मृदुला ने क्लबों में जाना बंद कर दिया था. सोसायटी की किटी पार्टियों में भी नहीं जाती थी.
प्रमांशु की लतों को छुड़वाने के लिए जयंत और मृदुला ने न जाने कितने डाक्टरों से संपर्क किया, उन के पास ले कर गए, दवाएं दीं, परंतु प्रमांशु पर इलाज और काउंसलिंग का कोई असर नहीं हुआ. उलटे अब उस ने घर आना ही बंद कर दिया था. रात वह अपने दोस्तों के घर बिताने लगा था. उस के ये दोस्त भी उस की तरह ड्रग एडिक्ट थे और अपने मांबाप से दूर इस शहर में पढ़ने के लिए आए थे व अकेले रहते थे. जयंत के हाथों से सबकुछ फिसल गया था. मृदुला के पास भी अफसोस करने के अलावा और कोई चारा नहीं था. प्रमांशु पहले एकाध रात के लिए दोस्तों के यहां रुकता, फिर धीरेधीरे इस संख्या में बढ़ोतरी होने लगी थी. अब तो कई बार वह हफ्तों घर नहीं आता था. जब आता था, जयंत और मृदुला उस की हालत देख कर माथा पीट लेते, कोने में बैठ कर दिल के अंदर ही रोते रहते, आंसू नहीं निकलते, परंतु हृदय के अंदर खून के आंसू बहाते रहते. अत्यधिक ड्रग्स के सेवन से प्रमांशु जैसे हर पल नींद में रहता. लुंजपुंज अवस्था में बिस्तर पर पड़ा रहता, न खाने की सुध, न नहानेधोने और कपड़े पहनने की. उस की एक अलग ही दुनिया थी, अंधेरे रास्तों की दुनिया, जिस में वह आंखें बंद कर के टटोलटटोल कर आगे बढ़ रहा था.
जयंत के पारिवारिक जीवन में प्रमांशु की हरकतों की वजह से दुखों का पहाड़ खड़ा होता जा रहा था. जयंत जानते थे, प्रमांशु के भटकने की असली वजह क्या थी, परंतु अब उस वजह को सुधार कर प्रमांशु के जीवन में सुधार नहीं लाया जा सकता था. मृदुला अब प्रमांशु के ऊपर प्यारदुलार लुटाने के लिए तैयार थी, इस के लिए उस ने अपने शौक त्याग दिए थे, परंतु अब समय उस के हाथों से बहुत दूर जा चुका था, पहुंच से बहुत दूर. इस बात को ले कर किसी को दोष देने का कोई औचित्य भी नहीं था. जयंत और मृदुला परिस्थितियों से समझौता कर के किसी तरह जीवन के साथ तालमेल बिठा कर जीने का प्रयास कर रहे थे कि तभी उन्हें एक और झटका लगा. पता चला कि प्रमांशु समलैंगिक रिश्तों का भी आदी हो चुका था.
जयंत की समझ में नहीं आ रहा था, यह कैसे जीन्स प्रमांशु के खून में आ गए थे, जो उन के खानदान में किसी में नहीं थे. जहां तक उन्हें याद है, उन के परिवार में ड्रग्स लेने की आदत किसी को नहीं थी. पार्टी आदि में शराब का सेवन करना बुरा नहीं माना जाता था, परंतु दिनरात पीने की लत किसी को नहीं लगी थी. और अब यह समलैंगिक संबंध…?
जयंत की लाख कोशिशों के बावजूद प्रमांशु में कोई सुधार नहीं हुआ. घर से उस ने अपना नाता पूरी तरह से तोड़ लिया था. उस की दुनिया उस के ड्रग एडिक्ट और समलैंगिक दोस्तों तक सिमट कर रह गई थी. उन के साथ वह यायावरी जीवन व्यतीत कर रहा था. बेटा चाहे घरपरिवार से नाता तोड़ ले, मांबाप के प्रति अपनी जिम्मेदारी से विमुख हो जाए, परंतु मांबाप का दिल अपनी संतान के प्रति कभी खट्टा नहीं होता. जयंत अच्छी तरह समझ गए थे कि प्रमांशु जिस राह पर चल पड़ा था, उस से लौट पाना असंभव था. ड्रग और शराब की आदत छूट भी जाए तो वह अपने समलैंगिक संबंधों से छुटकारा नहीं पा सकता था. इस के बावजूद वे उस की खोजखबर लेते रहते थे. फोन पर बात करते और मिल कर समझाते, मृदुला से भी उस की बातें करवाते. वे दोनों ही उसे बुरी लतों से छुटकारा पाने की सलाह देते.
जयंत और मृदुला को नहीं लगता था कि प्रमांशु कभी अपनी लतों से छुटकारा पा सकेगा. परंतु नहीं, प्रमांशु ने अपनी सारी लतों से एक दिन छुटकारा पा लिया. उस ने जिस तरह से अपनी आदतों से छुटकारा पाया था, इस की जयंत और मृदुला को न तो उम्मीद थी न उन्होंने ऐसा सोचा था. एक दिन प्रमांशु के किसी मित्र ने जयंत को फोन कर के बताया कि प्रमांशु कहीं चला गया है और उस का पता नहीं चल रहा है. जयंत तुरंत उस मित्र से मिले. पूछने पर उस ने बताया कि इन दिनों वह अपने पुराने दोस्तों को छोड़ कर कुछ नए दोस्तों के साथ रहने लगा था. इसी बात पर उन लोगों के बीच झगड़ा और मारपीट हुई थी. उस के बाद प्रमांशु कहीं गायब हो गया था. उस मित्र से नामपता ले कर जयंत उस के नएपुराने सभी दोस्तों से मिले, खुल कर उन से बात की, परंतु कुछ पता नहीं चला. जयंत ने अनुभव किया कि कहीं न कहीं, कुछ बड़ी गड़बड़ है और हो सकता है, प्रमांशु के साथ कोई दुर्घटना हो गई हो.
दुर्घटना के मद्देनजर जयंत ने पुलिस थाने में प्रमांशु की गुमशुदगी की रपट दर्ज करा दी. जवान लड़के की गुमशुदगी का मामला था. पुलिस ने बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया. परंतु जब जयंत ने प्रमांशु की हत्या की आशंका व्यक्त की और पुलिस के उच्च अधिकारियों से बात की तो पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया और प्रमांशु के दोस्तों से गहरी पूछताछ की. जयंत लगभग रोज पुलिस अधिकारियों से बात कर के तफ्तीश की जानकारी लेते रहते थे, स्वयं शाम को थाने जा कर थाना प्रभारी से मिल कर पता करते. थानेदार ने उन से कहा भी कि उन्हें रोजरोज थाने आने की जरूरत नहीं थी. कुछ पता चलनेपर वह स्वयं उन को फोन कर के या बुला कर बता देगा, परंतु जयंत एक पिता थे, उन का दिल न मानता.
और आज पुलिस ने संभावना व्यक्त की थी कि प्रमांशु की हत्या हो चुकी थी. उस के दोस्तों की निशानदेही पर पुलिस ने कुछ हड्डियां भी बरामद की थीं. चूंकि प्रमांशु की देह नहीं मिली थी, उस की पहचान सिद्ध करने के लिए डीएनए टैस्ट जरूरी था. जयंत और मृदुला का खून लेने के लिए पुलिस ने कल उन्हें थाने बुलाया था. वहां से अस्पताल जाएंगे. रात में फिर मृदुला ने शंका व्यक्त की, ‘‘पता नहीं, पुलिस किस की हड्डियां उठा कर लाई है और अब उन्हें प्रमांशु की बता कर उस की मौत साबित करना चाहती है. मुझे लगता है, हमारा बेटा अभी जिंदा है.’’
‘‘हो सकता है, जिंदा हो. और पूरी तरह स्वस्थ हो. फिर भी मैं चाहता हूं, एक बार पता तो चले कि हमारे बेटे के साथ क्या हुआ है. वह जिंदा है या नहीं, कुछ तो पता चले.’’
‘‘परंतु जंगल से किसी भी व्यक्ति की हड्डियां उठा कर पुलिस कैसे यह साबित कर सकती है कि वे हमारे बेटे की ही हड्डियां हैं?’’
‘‘इसीलिए तो वह डीएनए परीक्षण करवा रही है,’’ जयंत ने मृदुला को आश्वस्त करते हुए कहा.
दूसरे दिन वे दोनों ब्लड सैंपल दे आए. एक महीने के बाद जयंत के पास थानेदार का फोन आया, ‘‘डीएनए परीक्षण की रिपोर्ट आ गई है. आप थाने पर आ कर मिल लें.’’
‘‘क्या पता चला?’’ उन्होंने जिज्ञासा से पूछा.
‘‘आप आ कर मिल लें, तो अच्छा रहेगा,’’ थानेदार ने गंभीर स्वर में कहा. जयंत औफिस में थे. मन में शंका पैदा हुई, थानेदार ने स्पष्ट रूप से क्यों नहीं बताया? उन्होंने मृदुला को फोन कर के बताया कि डीएनए की रिपोर्ट आ गई है. वे घर आ रहे हैं, दोनों साथसाथ थाने चलेंगे. घर से मृदुला को ले कर जंयत थाने पहुंचे. थानेदार ने उन का स्वागत किया. मृदुला कुछ घबराई हुई थी, परंतु जयंत ने स्वयं को तटस्थ बना रखा था. किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए वे तैयार थे.
थानेदार ने जयंत से कहा, ‘‘आप मेरे साथ आइए,’’ फिर मृदुला से कहा, ‘‘आप यहीं बैठिए.’’ जयंत को एक अलग कमरे में ले जा कर थानेदार ने जयंत से कहा, ‘‘सर, बात बहुत गंभीर है, इसलिए केवल आप से बता रहा हूं. हो सकता है सुन कर आप को सदमा लगे, परंतु सचाई से आप को अवगत कराना भी मेरा फर्ज है. डीएनए परीक्षण के मुताबिक जिस व्यक्ति की हड्डियां हम ने बरामद की थीं, वे प्रमांशु की ही हैं.’’
जयंत को यही आशंका थी. उन्होंने अपने हृदय पर पत्थर रख कर पूछा, ‘‘परंतु उस की हत्या कैसे और क्यों हुई?’’
‘‘उस के जिन दोस्तों को हम ने पकड़ा था, उन से पूछताछ में यही पता चला था कि प्रमांशु ने अपने कुछ पुराने दोस्तों से संबंध तोड़ कर नए दोस्त बना लिए थे. पुराने दोस्तों को यह बरदाश्त नहीं हुआ. उन्होंने उस से संबंध जारी रखने के लिए कहा, तो प्रमांशु ने मना कर दिया. यही उस की हत्या का कारण बना.’’
‘‘क्या हत्यारे पकड़े गए?’’
‘‘हां, वे जेल में हैं. अगले हफ्ते हम अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर देंगे.’’ जयंत ने गहरी सांस ली.
‘‘सर, एक और बात है, जो हम आप से छिपाना नहीं चाहते क्योंकि अदालत में जिरह के दौरान आप को पता चल ही जानी है.’’
‘क्या बात है’ के भाव से जयंत ने थानेदार के चेहरे को देखा.
‘‘सर, प्रमांशु आप की पत्नी का बेटा तो है, परंतु वह आप का बेटा नहीं है,’’ थानेदार ने जैसे धमाका किया. जयंत की आंखें फटी की फटी रह गईं और मुंह खुला का खुला रहा गया. उन्हें चक्कर सा आया. कुरसी पर न बैठे होते तो शायद गिर जाते. जयंत कई पल तक चुपचाप बैठे रहे. थानेदार भी नहीं बोला, वह जयंत के दिल की हालत समझ सकता था. कुछ पल बाद जयंत ने शांत स्वर में कहा, ‘‘थानेदार साहब, जो होना था, हो गया. अब प्रमांशु कभी वापस नहीं आ सकता, परंतु जिस झूठ को अनजाने में हम सचाई मान कर इतने दिनों से जी रहे थे, वह झूठ सचाई ही बना रहे तो अच्छा है. यह हमारे दांपत्य जीवन के लिए अच्छा होगा.’’
‘‘क्या मतलब, सर?’’ थानेदार की समझ में कुछ नहीं आया.
‘‘आप मेरी पत्नी को यह बात मत बताइएगा कि मुझे पता चल गया है कि मैं प्रमांशु का पिता नहीं हूं.’’
थानेदार सोच में पड़ गया, फिर बोला, ‘‘जी सर, यही होगा. मैं आप की पत्नी को गवाह नहीं बनाऊंगा.’’
‘‘हां, यही ठीक होगा. बाकी मैं संभाल लूंगा.’’
‘‘जी सर.’’
जयंत थके उदास कदमों से मृदुला को कंधे से पकड़ कर थाने के बाहर निकले. मृदुला बारबार उतावली सी पूछ रही थी, ‘‘क्या हुआ? थानेदार ने क्या बताया? डीएनए परीक्षण से क्या पता चला? क्या वह हमारा प्रमांशु ही था?’’
गाड़ी में बैठते हुए जयंत ने मृदुला के सिर को अपने कंधे पर टिकाते हुए कहा, ‘‘मृदुल, तुम अपने को संभालो, वह हमारा ही बेटा था. अब वह इस दुनिया में नहीं रहा.’’ मृदुला हिचकियां भर कर रोने लगी.