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कहानी: पांच प्रेमियों वाली प्रेमिका

जानकी को मैं इसलिए भी ‘जानकीजी’ कह कर संबोधित करता था, क्योंकि वे मुझ से उम्र में 20 साल बड़ी थीं यानी मैं 35 साल का था और वे 55 साल की थीं. प्यार की पहल भी जानकीजी ने खुद की थी. उन्होंने ही मुझ से कहा था कि वे मुझे पसंद करती हैं और मैं जानकीजी के प्रेमजाल में फंस गया.
जानकीजी से मेरी पहली मुलाकात शहर के एक अस्पताल में तब हुई थी, जब मेरे पापा वहां कुछ दिनों के लिए भरती हुए थे. पापा की हालत काफी सीरियस थी, इसलिए मेरा मन बहुत अशांत था. मन को शांत करने की गरज से मैं वार्ड से बाहर वेटिंगरूम में आ कर बैठ गया.

वेटिंगरूम में पहले से बहुत सारे लोग मौजूद थे, जिन के मरीज वहां भरती थे. वेटिंगरूम के शोरशराबे के बीच मैं भी एक सीट पर जा कर बैठ गया. मन बहुत परेशान था, इतना परेशान कि कोई भी चेहरा देख कर मेरी परेशानी को पढ़ सकता था.

जानकीजी मेरे बगल वाली सीट पर बैठी थीं, इस का मुझे कोई अंदाजा नहीं था. मेरी बेचैनी को उन्होंने अच्छी तरह मेरे चेहरे से पढ़ लिया था.

‘‘आप का कोई भरती है यहां क्या?’’ जानकीजी ने मुझ से बात करने का सिलसिला शुरू किया.

‘‘जीहां, मेरे पापा भरती हैं. वे वार्ड नंबर 4 में हैं,’’ मैं ने पहली बार जानकीजी को नजर भर के देखा था.

‘‘घर से और कोई नहीं आया?’’

‘‘जी नहीं, घर में ज्यादा लोग नहीं हैं. जो हैं, उन के पास फुरसत नहीं है.’’

‘‘कोई नहीं, आजकल सभी का यही हाल है. मेरा पेशेंट वार्ड नंबर 5 में है. अगर आप को मेरी कैसी भी कोई हैल्प चाहिए, तो प्लीज बेझिझक मुझ से कह दीजिएगा,’’ जानकीजी ने मुझ से हमदर्दी जताई.

‘‘जी शुक्रिया.’’

‘‘शुक्रिया की कोई बात नहीं है. इनसान ही इनसान के काम आता है.’’

‘‘जी हां, यह तो है,’’ मेरे और जानकीजी के बीच बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ता, इस से पहले वार्डबौय ने आ कर जानकीजी को बताया कि उन्हें डाक्टर बुला रहे हैं.

जानकीजी वार्डबौय के साथ वहां से चली गईं. 10-15 मिनट बाद वे फिर वेटिंगरूम में आईं और मुझ से बोलीं कि उन का मन चाय पीने का है.

इतना कह कर जानकीजी मुझे भी अपने साथ अस्पताल की कैंटीन में ले गईं.

हम दोनों ने एकएक चाय पी और साथ में एकएक समोसा भी खाया. चाय पीने के बाद मैं चाय का पेमेंट करने लगा, तो जानकीजी बोलीं, ‘‘यहां टोकन से चाय मिलती है और टोकन की पेमेंट मैं कर चुकी हूं.’’

मैं जानकीजी को ऐसे देखने लगा, जैसे मुझे उन का चाय पिलाना अच्छा नहीं लगा. उन्होंने जैसे मेरे मन को पढ़ा और मुसकरा कर बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं, अगली बार चाय का बिल तुम चुका देना.’’

मैं फिर कुछ नहीं बोला और चुपचाप जानकीजी के साथ कैंटीन से बाहर आ गया. उस के बाद हम दोनों अकसर साथ ही कैंटीन जाते और जोकुछ खानापीना होता, साथ ही खातेपीते.

मेरे पापा एक हफ्ते तक अस्पताल में रहे और जानकीजी का पेशेंट 5 दिनों में ही ठीक हो गया था.

जानकीजी ने मुझे कभी यह नहीं बताया कि उन का उन के मरीज से क्या रिश्ता है और मरीज औरत है या मर्द. मैं ने भी उन से इस बारे में कभी कुछ नहीं पूछा. वे मुझ से 2 दिन पहले अपने घर चली गईं. जाते समय मैं उन से नहीं मिल पाया था, क्योंकि उस समय मैं अस्पताल में नहीं था.

इन बीते 5 दिनों में मेरे और जानकीजी के बीच औपचारिक बातों के अलावा कोई दूसरी बात नहीं हुई. न हम ने अपने मोबाइल नंबर आपस में बदले और न ही एकदूसरे से यह जानने की कोशिश की कि कौन कहां रहता है या कौन क्या करता है.

जानकीजी का बरताव तो बढि़या था ही, रंगरूप, कदकाठी से भी वे सब को अपनी तरफ खींच लेती थीं. कुदरत ने उन्हें दरमियाने कद, गोरेचिट्टे और छरहरे बदन, काली कजरारीनशीली आंखें, होंठों तक पहुंचती पतलीलंबी नाक और गुलाब की पंखुडि़यों जैसे खूबसूरत होंठों के अलावा मधुर आवाज से भी नवाजा था.

अस्पताल से पापा को घर ले आने के बाद भी मैं जानकीजी को कभीकभी मन में याद कर लेता था.

समय अपनी रफ्तार से दौड़ रहा था और जानकीजी धीरेधीरे मेरे दिलोदिमाग और खयालों से ओझल हो रही थीं कि अचानक एक दिन उन से मेरा दोबारा आमनासामना हो गया.

मैं शहर के एक मौल से खरीदारी कर के अपनी बाइक लेने के लिए मौल की पार्किंग की तरफ आया कि सामने से आती जानकीजी ने अपनी चिरपरिचित मुसकान से मेरा स्वागत किया.

उस दिन वे बला की खूबसूरत लग रही थीं. जवान लड़कियों की तरह उन के चेहरे पर चमक थी. मुझे पहचानने में उन्होंने एक मिनट का भी समय नहीं लगाया.

‘‘हैलो, पहचाना मुझे?’’ चिडि़यों की तरह चहकती हुई आवाज में जानकीजी बोलीं.

‘‘क्यों नहीं, आप को कैसे भूल सकता हूं,’’ मेरा जवाब सुन कर वे जवान लड़कियों की तरह खिलखिला कर हंस पड़ीं और बोलीं, ‘‘हम ऐसे ही हैं. हम से जो एक बार मिल लेता है, वह हमेशा हमें याद रखता है. खैर, छोड़ो और यह बताओ कि कैसे हो?’’

‘‘मैं अच्छा हूं और आप…?’’

‘‘मैं भी अच्छी हूं. आप को देख कर और अच्छी हो गई,’’ जानकीजी के बात करने का लहजा मुझे अच्छा लगा.

‘‘खरीदारी करने निकले हो, वह भी अकेले ही?’’

‘‘आप भी तो अकेली हैं,’’ इस बार मैं ने भी मजाक कर दिया.

‘‘अकेले तुम, अकेले हम,’’ जानकीजी ने फिल्मी डायलौग बोल कर फिर मजाक किया, तो मेरी हंसी छूट गई.

वे बात बदल कर बोलीं, ‘‘अभी मेरे पास तकरीबन 45 मिनट हैं. उस के बाद मेरी किसी से मीटिंग है.

चलिए, तब तक साथ बैठ कर एकएक कप कौफी पीते हैं. इसी बहाने हमारी पहचान कुछ और गहरी हो जाएगी.’’

जानकीजी ने जितने अपनेपन से मुझे कौफी औफर की, उतनी ही शिद्दत से मैं ने उन के औफर को स्वीकार भी कर लिया.

म दोनों मौल की दूसरी मंजिल पर बने कौफीहाउस में आ गए. सीट पर बैठने से पहले ही जानकीजी ने मुझ से कहा, ‘‘यह कौफी मेरी तरफ से होगी, इस की पेमेंट मैं करूंगी.’’

जानकीजी की बात पर मैं कुछ न बोल कर बस मुसकरा दिया. वे सामने काउंटर पर चली गईं. उन्होंने 2 कौफी और स्नैक्स का और्डर दे कर गूगल पे से पेमेंट कर दी.

जानकीजी जब तक काउंटर पर रहीं, तब तक मैं उन्हें पीछे से देखता रहा. वे बहुत ही खूबसूरत दिखाई दे रही थीं. पतलेदुबले सुडौल जिस्म पर उन्होंने लाइट ग्रीन कुरता और डार्क ग्रीन प्लाजो पहना हुआ था, जो उन की खूबसूरती को और निखार रहा था.

मैं ने महसूस किया कि जानकीजी को पीछे से देख कर कोई यह अंदाजा नहीं लगा सकता कि वे अपनी उम्र के 55 साल पूरे कर चुकी होंगी. उन के चेहरे का गुलाबीपन, उन की चंचल शोख अदाएं, झील सी गहरी आंखें और चेहरे के हावभाव से वे अपनी उम्र को 1-2 नहीं, तकरीबन 12 से 15 साल कम कर चुकी थीं.

कुलमिला कर उन की चंचलता और फुरतीलापन मुझे बरबस ही उन की तरफ खींच रहा था और उन की सादगी दूसरे लोगों को अपनी तरफ मुड़ कर देखने के लिए मजबूर कर रही थी.

मैं देख रहा था, जो भी उन के करीब से गुजर रहा था, वह उन्हें एक बार नजर भर के जरूर देख रहा था. मैं तो पहले से ही उन की सादगी का कायल था, क्योंकि मुझे औरत का जरूरत से ज्यादा सजनासंवरना और क्रीमपाउडर लगाना बिलकुल भी पसंद नहीं था.

जानकीजी खुद ही छोटी ट्रे में 2 कप कौफी और स्नैक्स ले कर आईं और मेरे सामने वाली सीट पर बैठ गईं. वे मुझे देख कर मुसकरा रही थीं. बदले में मैं भी मुसकरा रहा था.

अस्पताल के बजाय मौल में मिलने का जानकीजी का अंदाज और तौरतरीका एकदम जुदा था. अस्पताल में वे जितनी शालीन और सरल नजर आ रही थीं, मौल में उतनी ही चंचल और शोख दिख रही थीं. उन के बात करने का अंदाज भी जुदा था.

‘‘कितना अजीब इत्तिफाक है कि हम दोनों की यह दूसरी मुलाकात है, पर अभी तक हम एकदूसरे का नाम भी नहीं जान पाए. मेरा नाम जानकी है, जानकी माथुर. मैं दीपांशा हाइट में रहती हूं. समाजसेवा का शौक है, कविताएं भी लिख लेती हूं. एक बेटी और एक बेटा है. दोनों की शादी कर दी है. दोनों विदेश में रहते हैं,’’ जानकीजी ने एक सांस में ही अपने बारे में मुझे सबकुछ बता दिया.

‘‘और आप के हसबैंड….?’’

हसबैंड का नाम सुनते ही जानकीजी का चेहरा एकदम फक्क पड़ गया. जैसे उन्हें उम्मीद नहीं थी कि मैं उन से उन के हसबैंड के बारे में पूछ लूंगा.

इस से पहले कि उन के मन के भाव उभर कर उन के चेहरे पर ठहरते, उन्होंने खुद को संभाल लिया और मुसकरा कर बोलीं, ‘‘हसबैंड का होना या न होना मेरे लिए कोई माने नहीं रखता है. कहने के लिए मेरे हसबैंड बिजनैसमैन हैं, पर मैं ने खुद अपनेआप को बनाया है.’’

जानकीजी के मन को पढ़ना या समझना इतना मुश्किल नहीं था. मैं समझ गया कि वे अपने हसबैंड के बारे में कोई बात नहीं करना चाहती हैं, इसलिए मैं ने बात बदलते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम गणेश है. मैं एक प्राइवेट कंपनी में असिस्टैंट हूं. पत्नी ने 5 साल पहले मुझ से तलाक ले लिया है. 4 साल का एक बेटा है, जो अपनी मां के साथ ही रहता है.’’

मेरे बारे में जान कर जानकीजी के चेहरे पर अफसोस की क्षणिक लकीरें खिंची हुई दिखाई दीं. उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा, ‘‘बीवी ने तलाक ले लिया, पर क्यों?’’

‘‘क्योंकि, मैं निहायत ही सरल और सादगीपसंद हूं, इसलिए मैं उन के फ्रेम में कहीं फिट नहीं हुआ. उन्हें आजकल के लड़कों की तरह तड़कभड़क से रहने वाला इनसान चाहिए था.

‘‘इसी बात को ले कर हमारे बीच आएदिन कहासुनी होती थी. इस बीच उन्होंने मुझ से तलाक मांगा. मैं भी रोजरोज की किचकिच से तंग आ गया था, इसलिए मैं ने भी उन्हें तलाक दे दिया.’’

‘‘पत्नी ने आप से तलाक ले लिया, फिर आप अपनी जरूरतों को कैसे मैनेज करते हैं?’’ अपनी बात कह कर जानकीजी हंसने लगीं. जरूरतों से जानकीजी का मतलब फिजिकल रिलेशन से था, जो मैं अच्छी तरह समझा रहा था.

मैं जानकीजी के इस सवाल का जवाब देने ही वाला था कि उन का फोन आ गया और वे फोन पर कुछ पल के लिए बिजी हो गईं.

जानकीजी की बातों से समझ में आ रहा था कि फोन उसी शख्स का है, जिस के साथ उन की मीटिंग थी. जानकीजी की बात खत्म होते ही मैं भी उठ कर खड़ा हो गया.

‘‘अच्छा जानकीजी, आप अपनी मीटिंग कीजिए, मैं चलता हूं.’’

जानकीजी ने एक बार भी मुझे रुकने को नहीं कहा. बस, इतना कहा, ‘‘ठीक है, मैं ने अपना नंबर आप को दे दिया है. आप मुझे कभी भी फोन कर सकते हैं.’’

‘‘ओके,’’ इतना कह कर मैं वहां से चला आया.

नीचे आ कर मेरी मुलाकात राघव से हो गई. वह मेरा पुराना परिचित था.

‘‘यहां कैसे राघव…?’’ मैं ने पूछा.

‘‘किसी के साथ मीटिंग है.’’

‘‘ओके,’’ मैं ने राघव को ज्यादा कुरेदना नहीं चाहा, इसलिए हम दोनों अपनेअपने रास्ते चले गए.

पार्किंग से बाइक निकाल कर मैं अपने घर की तरफ चल दिया. बाइक पर चलते हुए मेरे जेहन में फिर से राघव का चेहरा घूम गया. दिमाग में एक ही सवाल गूंजने लगा कि मौल में राघव की मीटिंग किस से हो सकती है? कहीं उस की मीटिंग जानकीजी से ही तो नहीं है?

अगर राघव की मीटिंग जानकीजी से है, तो फिर जानकीजी राघव को कैसे जानती हैं और उन दोनों के बीच किस बात को ले कर मीटिंग होगी?

मेरे मन में यह भी खयाल आया, लेकिन अगले ही पल मैं ने उस खयाल को मन से छिटक दिया और अपना ध्यान बाइक चलाने में लगा दिया.

अगली सुबह एक खूबसूरत इमोजी के साथ जानकीजी का ‘गुड मौर्निंग’ लिखा मैसेज मेरे ह्वाट्सएप पर तैरने लगा. बदले में मैं ने भी उन्हें ‘वैरी गुड मौर्निंग’ का मैसेज भेज दिया. दिनभर हमारे बीच कोई बात नहीं हुई, लेकिन रात को तकरीबन 9 बजे जानकीजी का ‘गुड नाइट’ लिखा मैसेज मुझे मिला. तो मैं ने भी उन्हें ‘वैरी गुड नाइट’ का मैसेज लिख कर भेज दिया.

‘गुड मौर्निंग’ और ‘गुड नाइट’ के मैसेज के साथ धीरेधीरे जानकीजी अपनी निजी बातें भी मेरे साथ शेयर करने लगीं, जैसे उन्होंने आज नाश्ते में, लंच में और डिनर में क्या बनाया और क्या खाया. वे आज कहां गई थीं, किस के साथ गई थीं. आज उन्होंने कौन सी और किस रंग की ड्रैस पहनी है या उन के हसबैंड से उन की किस बात पर कहासुनी हुई.

धीरेधीरे मुझे भी जानकीजी की आदत लगने लगी. मैं भी उन्हें दिन में 1-2 बार किसी न किसी बहाने फोन कर लेता था. जिस दिन मैं उन्हें फोन नहीं कर पाता, उस दिन वे खुद मुझे फोन कर लेतीं.

फिर एक दिन जानकीजी का मन टटोलने के लिए कि उन के मन में मेरे लिए क्या है, मैं ने उन को फोन कर के कहा, ‘‘कल मेरा आप के घर की तरफ आना होगा. अगर आप की इजाजत हो तो…’’

मेरी बात पूरी होने से पहले ही जानकीजी बोल पड़ीं, ‘ओह, तो हमारे घर आने के लिए तुम्हें हमारी इजाजत चाहिए. अरे, यह आप का घर है जनाब, आप शौक से आइए,’ उन्होंने शायराना अंदाज में कहा.

अगले दिन मैं जानकीजी के घर उन से मिलने पहुंच गया. इतना बड़ा घर और जानकीजी घर में बिलकुल अकेली थीं. उन्हें अकेला देख कर मुझे हैरानी इसलिए नहीं हुई, क्योंकि वे पहले ही मुझे बता चुकी थीं कि उन के दोनों बच्चे विदेश में रहते हैं और पति बिजनैस के सिलसिले में ज्यादातर शहर से बाहर
रहते हैं.

उस दिन जानकीजी बला की खूबसूरत लग रही थीं. धानी रंग की सूती साड़ी में लिपटा उन का छरहरा सुडौल जिस्म और उस में से झांकता गोरा रंग मानो ऐसा लग रहा था, जैसे हरियाली की ओट से उगते सूरज की लालिमा झांक रही हो.

‘‘गणेशजी, क्या पीना पसंद करोगे? चाय या फिर कौफी?’’ जानकीजी ने मेरे ध्यान को अपनी तरफ से भटकाते हुए मुझ से पूछा.

‘‘कुछ भी, जो आप को पसंद हो.’’

उन्होंने 2 कप कौफी बनाई और मेज पर रख कर वे मेरे बराबर में बैठ गईं.

‘‘आप इतने बड़े घर में अकेली कैसे रह लेती हैं? आप को अकेलापन कचोटता नहीं है?’’ मैं ने ऐसे ही पूछ लिया.

‘‘जैसे आप अकेले रह लेते हैं, वैसे ही हम भी अकेले रह लेते हैं,’’ मेरे सवाल के जवाब में जानकीजी ने कहा.

हमारे बीच कुछ पल के लिए चुप्पी छाई रही, जिसे तोड़ते हुए जानकीजी बोलीं, ‘‘आप 5 साल से अकेले हैं. आप ने दूसरी शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘बस, ऐसे ही. कोई पसंद ही नहीं आया.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ कि तुम्हें कैसी लेडी पसंद है?’’

जानकीजी के इस सवाल पर मैं कुछ पल के लिए चुप रहा, फिर बोला, ‘‘मुझे सादगी में लिपटी हुई औरत पसंद है.’’

जानकीजी खिलखिला कर हंस पड़ीं और बोलीं, ‘‘अच्छा… कहीं तुम्हें हम से प्यार तो नहीं हो गया ?’’

‘‘मतलब…?’’

‘‘मतलब यही कि हम भी तो तुम्हारी पसंद की तरह साधारण, सहज और शालीन हैं. हमें भी तो ज्यादा सजनेसंवरने का शौक नहीं है.’’

जानकीजी के इस जवाब के सामने मेरे मन का प्रेमी चोर बस मुसकरा कर रह गया. यही उन के लिए मेरे प्यार की मानो रजामंदी थी.

हमारी कौफी खत्म हो चुकी थी. बस, मैं वहां से जाने की सोच ही रहा था कि अचानक जानकीजी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और भावुक हो कर मेरी आंखों में आंखें डाल कर बोलीं, ‘‘तुम अच्छे लगते हो. हमें तुम से प्यार हो गया है,’’ कहते हुए जानकीजी ने बच्चों की तरह मेरा सिर अपनी गोद में रख लिया, जो मुझे अच्छा लगा.

वे अपने हाथों की उंगलियों से कंघे की तरह मेरे सिर के बालों को सहलाने लगीं, फिर उन्होंने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. फिर क्या था, मैं ने भी अपना प्यार जानकीजी पर लुटा दिया.

मुझे याद नहीं कि हम कितने मिनट तक एकदूसरे के आगोश में सिमटे रहे. प्यार की कहानियां और किस्से सुने और पढ़े जरूर थे, लेकिन प्यार का मतलब क्या होता है, यह मैं पहली बार महसूस कर रहा था.

हालांकि, मेरी शादी हो चुकी थी, पर वह एक सामाजिक बंधन था, जिस में बिना कोशिश, बिना जोरजबरदस्ती और बिना शर्त सबकुछ अपना होता है. लेकिन किसी से प्यार कर के उसे पा लेने का अलग ही मजा होता है.

प्यारमुहब्बत के नाम पर जानकीजी मेरा पहला प्यार थीं. खुशी के मारे मैं फूला नहीं समा रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे जानकीजी के रूप में दुनिया की सब से नायाब चीज मुझे मिल गई हो.

मैं जानकीजी के प्यार की गहराई में डूबता चला गया. उन के सिवा मुझे अब कुछ भी अच्छा नहीं लगता था. मेरे खयालों में सिर्फ और सिर्फ वे ही रहने लगी थीं.

हमारे प्यार की दुनिया अभी पूरी तरह से बस भी नहीं पाई थी कि एक दिन अचानक राघव से मुलाकात हो गई.

राघव ने मुझ से लंबीचौड़ी बातें न कर के सीधेसीधे कहा, ‘‘गणेश, आप जानकीजी को कितना जानते हैं?’’

मैं ने राघव के सवाल का जवाब देने के बजाय उलटा उस से ही सवाल कर दिया कि वह किस जानकीजी की बात कर रहा है?

इस पर राघव ने कहा, ‘‘मैं उन्हीं जानकीजी की बात कर रहा हूं, जिन जानकीजी से तुम कुछ दिन पहले मौल में मिले थे. उस के बाद तुम उन के घर भी गए थे.’’

‘‘यह बात तुम से किस ने कही कि मैं जानकीजी से मिला था?’’

‘‘जानकीजी ने मुझे खुद बताया है कि आप की उन से बातचीत और मुलाकात होती रहती है.’’

राघव की बात सुन कर मैं हक्काबक्का रह गया.

मुझे खामोश देख कर राघव ने कहा, ‘‘गणेशजी, अगर जानकीजी के साथ आप का प्यारव्यार का कोई चक्कर चल रहा है, तो सावधान हो जाइए, क्योंकि जानकीजी अच्छी औरत नहीं हैं. वे किसी एक की नहीं हैं. उन्होंने हमारे जैसे कइयों को अपने प्रेमजाल में फंसा रखा है.’’

‘‘कइयों का मतलब…?’’

‘‘मतलब यही कि जानकीजी जितनी सीधी, सहज और सरल लगती हैं, उतनी सीधी वे हैं नहीं. वे दिलफेंक और आशिकमिजाज औरत हैं.

‘‘मैं भी उन की मीठीमीठी बातों में आ कर उन्हें दिल दे बैठा था. लेकिन जब मेरी मुलाकात जानकीजी के एक और प्रेमी आशुतोष से हुई, तो पहले तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ था.

‘‘मुझे लगा कि आशुतोष झूठ बोल कर जानकीजी को बदनाम कर रहा है, लेकिन जब उस ने मुझे जानकीजी के साथ अपने प्यार के कुछ सुबूत दिखाए, तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई.

‘‘फिर मैं ने एक दिन खुद जानकीजी को एक दूसरे लड़के के साथ एक रैस्टोरैंट में देखा, तो मेरा दिमाग खराब हो गया. मैं ने जानकीजी से कहा, ‘इस उम्र में यह सब क्या चल रहा है? यह लड़का कौन है? क्या रिश्ता है इस से आप का?’

‘‘तब उन्होंने कहा कि वह उन का दोस्त है. मैं ने उन से फिर पूछा कि ऐसे उन के और कितने दोस्त हैं?

‘‘मेरी इस बात पर वह लड़का मेरे ऊपर भड़क गया और मुझे उलटासीधा बोलने लगा. हम दोनों के बीच जब कहासुनी बढ़ गई, तब जानकीजी मुझ से बोलीं कि मुझे इस तरह उन से नहीं बोलना चाहिए था. बस, उसी दिन से मुझे जानकीजी से नफरत हो गई और मैं ने उन से किनारा कर लिया.’’

‘‘लेकिन, जानकीजी तो पढ़ीलिखी सभ्य, सुशील और शादीशुदा औरत हैं, फिर वे ऐसा क्यों करेंगी?’’ मैं ने पूछा, तो राघव बोला, ‘‘यह तो मैं भी नहीं समझ पाया, क्योंकि कोई भी इनसान प्यार करता भी है, तो किसी एक से करता है. लेकिन जानकीजी के तो 2-3 प्रेमियों से मैं खुद मिल चुका हूं. और उन के अगले प्रेमी शायद आप होंगे.’’

राघव की बातें सुन कर मेरा दिमाग चकरा गया. जानकीजी को ले कर मैं जो भी सपने देख रहा था, वे सब टूट कर चकनाचूर हो गए. मैं ने 2 दिनों तक जानकीजी को फोन ही नहीं किया.

इन 2 दिनों में जानकीजी ने मुझे कई मैसेज भेजे और 2-3 बार फोन भी किया, पर मैं ने उन के किसी मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया और न ही उन का फोन रिसीव किया, क्योंकि उन के लिए मेरे अंदर नाराजगी भरी हुई थी.

तीसरे दिन जानकीजी ने जब मुझे लगातार 3-4 बार फोन किया, तो मैं ने उन का फोन रिसीव कर लिया.

‘लगता है कि आप हम से नाराज हो?’ जानकीजी ने फोन पर कहा, पर मैं चुपचाप उन का फोन सुनता रहा. जवाब में कुछ नहीं बोला.

‘लगता है कि तुम्हें राघव ने हमारे खिलाफ भड़काया है, क्योंकि हम ने राघव से तुम्हारा जिक्र किया था. क्या कहा राघव ने तुम से?’

‘‘यही कि आप उस से प्यार करती हो,’’ जो मेरे मन में भरा हुआ था, मैं ने बिना भूमिका बनाए जानकीजी से बोल दिया.

जानकीजी बनावटी हंसी हंस कर बोलीं, ‘राघव ने जो कहा, उसे तुम ने सच मान लिया.’

‘‘जानकीजी, प्लीज… आप बात को घुमाइए मत. बस, बता दीजिए कि सच क्या है?’’

‘गणेशजी, हमें अफसोस है कि तुम्हें हमारे प्यार पर भरोसा नहीं है. रही बात राघव की, तो राघव ने हमारे बारे में तुम से क्या कहा, उस के लिए तुम कुछ भी सोचने के लिए आजाद हो, हमारे बारे में तुम्हें जो सोचना है सोच लो, जो भी राय बनानी हो बना लो, पर हम आप को अपनी सफाई नहीं देंगे,’ इतना कह कर जानकीजी ने फोन काट दिया.

पहली बार जानकीजी ने मेरे साथ ऐसा गलत बरताव किया कि उन्होंने दोटूक बात कह कर फोन काट दिया, जो मुझे अच्छा नहीं लगा, इसलिए मैं ने भी उन्हें वापस फोन नहीं किया.

मुझे उम्मीद थी कि जानकीजी का गुस्सा जब शांत हो जाएगा, तब वे मुझे फोन कर के अपनी गलती की माफी मांगेंगी, लेकिन उन्होंने ऐसा किया नहीं.

एक हफ्ते बाद जब मेरा मन नहीं माना, तो मैं ने जानकीजी को फोन किया. उन्होंने मेरा फोन तो रिसीव कर लिया, पर उन्होंने कोई खुशी जाहिर नहीं की. मैं ने उन से कहा कि मैं उन से मिलना चाहता हूं, वह भी उन के घर पर.

पर जानकीजी ने यह कह कर कि वे अभी मुझ से मिल नहीं पाएंगी, क्योंकि वे कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर आई हुई हैं, फोन काट दिया.

मैं भी अपना फोन काटने ही वाला था कि जानकीजी की आवाज सुन कर चौंक गया.

‘और बताओ, रितेश कैसे हो?’

रितेश नाम सुन कर मैं समझ गया कि भूलवश उन का फोन कट नहीं पाया है. मैं जानकीजी की बातें सुनने लगा. वे किसी रितेश नाम के लड़के से बात कर रही थीं.

मुझे एक और झटका लगा. मैं समझ गया कि जानकीजी ने मुझ से झूठ बोला है. वे कहीं बाहर नहीं गई हैं, बल्कि अपने घर पर ही हैं.

मैं उन की और रितेश की सचाई जानने के लिए उन के घर चला गया. अचानक ही मुझे अपने घर में देख कर जानकीजी के हाथ के तोते उड़ गए.

‘‘क्या हुआ…? आप मुझे ऐसे क्यों देख रही हैं? और यह कौन है? इस का नाम रितेश है न?’’

जानकीजी की बगल में बैठे एक लड़के को देख कर मैं ने पूछा, तो वे नाराजगी जताते हुए बोलीं, ‘‘गणेशजी, आप बिना फोन किए आ गए. यहां आने से पहले फोन तो करना चाहिए था न.’’

‘‘फोन करता तो आप की हकीकत का पता कैसे चलता.’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’ जानकीजी मेरे ऊपर एकदम भड़क गईं.

‘‘जानकीजी, चोर कितना भी शातिर क्यों न हो, पर वह अपनी चोरी का एक न एक सुबूत छोड़ ही देता है. आप ने एक गलती कर दी. मुझ से फोन पर बात करने के बाद आप अपना फोन काटना भूल गईं, जिस से आप का शहर से बाहर जाने वाला झूठ पकड़ा गया. आप के फोन ने बता दिया कि आप अपने नए दोस्त रितेश के साथ अपने ही घर में रोमांस कर रही हैं.

‘‘जानकीजी, नफरत हो गई है आप से और आप की इस घिनौनी हकीकत से. आखिर आप के इस मासूम चेहरे के पीछे प्यार के नाम पर और कितने लोगों को बेवकूफ बनाने का सच छिपा हुआ है? क्यों कर रही हैं इस उम्र में यह सब? आखिर क्या चाहिए आप को? किस चीज की कमी है आप के पास?’’

मेरे किसी भी सवाल का जानकीजी के पास कोई जवाब नहीं था. हां, उन के चेहरे की हवाइयां जरूर उड़ गई थीं. पर, मुझे नहीं लगता कि उन के ऊपर मेरी किसी बात का कोई असर हुआ होगा, क्योंकि प्यार करना उन की आदत नहीं फितरत थी.

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