कहानी: एहसासों के झुले
सच के बुनियाद पर खड़े रिश्ते तो मजबूत होते हैं मगर जब पतिपत्नी में से कोई एक इस रास्ते को छोड़ कोई दूसरा विकल्प चुन लें और जीवनसाथी को अंधेरे में रखने लगें तो फिर क्या होता है...
आज एक बार फिर चल पड़ी थी उसी रास्ते पर, जिसे 10 साल पहले पीछे छोड़ते हुए. हर सुखसुविधा पा लेने की इच्छा की कैदी बन कर संदीप संग फेरे लेने को तैयार हो गई थी.
रोहन आवाज देता ही रह गया, ‘‘श्वेता, मुझे कुछ वक्त और दो… मैं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होते ही तुम्हारे संग अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करूंगा.’’
‘‘मगर मैं अब और प्रतीक्षा नहीं कर सकती रोहन. संदीप एक स्थापित डाक्टर है और मेरे पेरैंट्स की पसंद है. पापामम्मी से अब मैं इस शादी को कैंसिल करने को नहीं कह पाऊंगी. संदीप और उस के पेरैंट्स मु?ा से मिल चुके हैं और दोनों पक्षों की रजामंदी के बाद ही यह शादी तय हुई है. अब इसे रोका नहीं जा सकता.’’
‘‘रुक जाओ श्वेता, प्लीज… मेरी खातिर,’’ पहली बार उस ने रोहन की आंखों में आंसू देखे थे. उस के भीतर अब उन आंसुओं का सामना करने की ताकत नहीं थी और वह वहां से अपने अगले सफर की ओर बढ़ गई.
1 महीने बाद डाक्टर संदीप संग फेरे ले कर एक बैंक क्लर्क की बेटी कई नौकरोंचाकरों वाले बंगले में आ गई.
आर्थिक संपन्नता का खुला आकाश मन को एकसाथ ढेरों पंख लगा देता है और इंसान उन पंखों को फैला कर उड़ते वक्त यह भूल जाता है कि जिंदगी जीने के लिए ठोस धरातल का भी अपना महत्त्व है.
जब तक इस अनिवार्यता का उसे भान होता है, तब तक वह वक्त काफी पीछे खिसक चुका होता है और अगर कभी जिंदगी मेहरबान हो कर कोई चांस दे भी दे… तो हवा भरे अतीत पर टिका वर्तमान वाला रिश्ता, इस मानवीय जिंदगी को जी पाने के लिए एक बहाने के प्रयोग सा बन कर रह जाता है.
श्वेता ने भी शुरुआती दिनों में पंख फैला कर खूब उड़ान भरी, 20 दिनों का हनीमून और उस के बाद का कुछ महीनों का सफर ख्वाबों के पूरा होते यथार्थ के मखमली गद्दे पर बीता.
किसी राजमहल की रानी सी श्वेता कई नौकरोंचाकरों, सासससुर और हैंडसम डाक्टर पति के साथ जीवन के मजे ले रही थी.
समय के साथ खुशियों के खुमार को भी यथार्थ के धरातल का सामना करना ही पड़ता है. संदीप अपने क्लीनिक में व्यस्त रहने लगे, समयसमय पर असिस्टैंट के भरोसे क्लीनिक छोड़ कर कईकई दिनों के लिए उन्हें शहर से बाहर भी जाना पड़ता था. ऐसे वक्त में श्वेता बेहद अकेलापन महसूस करने लगी थी.
शहर में रहते हुए भी संदीप व्यस्त ही रहा करते थे. श्वेता का दिन कैसे बीता, इस से उन्हें कोई मतलब नहीं रहता, पर रातें. उन के बिस्तर पर पहुंचते ही श्वेता को अपनी दिनचर्या निबटा कर कमरे में मौजूद रहना होता था वरना अगले कुछ दिन भारी मानसिक तनाव में बीतने तय थे.
सोने के बंद पिंजरे में कैद पक्षी की भी खुले आकाश में उड़ने की इच्छा खत्म नहीं हो पाती, यह तो एक इंसान का मन था. एक औरत का मन जो अपनी जिंदगी के काफी पल अपने उस प्रेमी के भावों संग जी चुकी थी जो उस की एक चाहत पर मैचिंग दुपट्टा तक के लिए अपना सारा काम छोड़ कर खुशीखुशी कईकई दुकानों के चक्कर लगाया करता था.
दूसरी तरफ उसे हर ऐशोआराम देने वाला पति था, जिस की मरजी के बिना श्वेता की जिंदगी का एक पत्ता तक नहीं हिलता था. इसी यथार्थ वाली पटरी पर श्वेता की जिंदगी की गाड़ी खिसकती जा रही थी. आगे भी इसी तरह की सरकती हुई बढ़ती रहती अगर उस शाम सासूजी
ने घर आए मेहमान दंपती से मिलवाने के लिए उसे बुलाने हेतु नौकर को उस के कमरे में नहीं भेजा होता.
सीढि़यों से उतरते वक्त जैसे ही श्वेता की नजर मेहमान पर पड़ी, उसी पल चौंकने की स्थिति में वह सीढि़यों के आखिरी स्टैप पर पैर रखना चूक गई और गिरती हुई श्वेता को बेहद फुरती से उठ कर उस मेहमान ने संभाल लिया, ‘‘भाभीजी, जरा संभल कर आप को मोच आ गई तो मेरे भैया और मौसीमौसाजी को भी तकलीफ होगी… अपना खयाल रखिए,’’ मुसकराते हुए वह अपनी जगह जा कर बैठ गया.
‘‘बहू, यह रोहन है… मेरी बहन का बेटा, संदीप की शादी में नहीं आ पाया था. कुछ महीने पहले ही इस ने अपने साथ जौब कर रही इस प्यारी सी जूही से शादी की है. अब इस का यहीं फरीदाबाद में तबादला हुआ है. इसी बहाने अब रोहन कुछ वक्त हमारे लिए भी निकाला करेगा. क्यों जूही बहू, आने तो दोगी न हमारे रोहन को हम से मिलने?’’ जूही की तरफ मुसकरा कर देखते हुए दमयंतीजी ने कहा.
‘‘क्यों नहीं मौसीजी… बड़ों का सानिध्य तो छोटों के लिए आशीर्वाद होता है. आप कहें तो मैं रोज रोहन को ले कर आप लोगों से मिलने आ जाया करूंगी,’’ कहते हुए जूही दमयंती के गले लग गई.
जूही के इतनी जल्दी मिक्सअप होने के हुनर पर श्वेता को आश्चर्य हुआ क्योंकि वह आज तक अपनी सास से इस कदर बेतकल्लुफ नहीं हो पाई थी, जबकि दमयंतीजी बेशक एक अच्छी सास कही जा सकती थीं.
रात का खाना खा कर रोहन और जूही अपने घर चले गए परंतु जातेजाते श्वेता की ऊपर से शांत दिख रही जिंदगी में एक बड़ा सा पत्थर मार गए.
उस रात संदीप संग नितांत निजी पलों में श्वेता की सोच पर रोहन छा चुका था.
सीढि़यों से फिसलते वक्त रोहन का उसे थाम लेना, उन पुराने भावों को पुनर्जीवित करने के लिए काफी था. एक रात का यह सिलसिला कई रातों के साथ अपना याराना बढ़ाते हुए श्वेता की जिंदगी पर अपना वर्चस्व कायम करता जा रहा था.
यह समाज की सोच भी बड़ी अजीब है, जिस में शुचिता का मानक बस शरीर हुआ करता है और उन नितांत निजी पलों में मानसिक समर्पण का कोई मानदंड नहीं बन सका है आज तक. श्वेता भी बिना मानक वाले उसी सफर पर आगे बढ़ती जा रही थी और जीवन अपना रास्ता तय करता जा रहा था.
कुछ समय बाद पता चला कि जूही अपने भाई की शादी में 10 दिनों के लिए लुधियाना जा रही है और इतने दिनों की छुट्टी नहीं मिलने की वजह से रोहन शादी के दिन ही वहां पहुंचेगा.
‘‘रोहन इस बीच तुम खाना यहीं आ कर खा लिया करना,’’ यह दमयंतीजी का फरमान था.
‘‘नहीं मौसी, मेरा लंच औफिस कैंटीन में होगा और डिनर के लिए जूही मेड को बोल कर जा रही है. वह शाम को डिनर तैयार कर के चली जाएगी. वैसे भी दिनभर का थकाहारा आने पर यहां आने की हिम्मत नहीं होगी. एक संडे मिलेगा, उस दिन मेड को भी छुट्टी दे कर खुद अपनी पसंद का खाना बनाऊंगा,’’ रोहन ने मुसकरा कर कहा.
समय का अनवरत चलना उस की नियति है. वह संडे भी आया जब डोरबैल की आवाज पर रोहन ने दरवाजा खोला, ‘‘11 बज रहे हैं और तुम अभी तक सोए हो? चलो, जल्दी से फ्रैश हो कर आ जाओ.’’
‘‘तुम्हारे लिए आज का खाना मैं बनाऊंगी, तुम्हारी पसंद की हर चीज,’’ श्वेता ने रोहन के हाथों को ले कर चूमते हुए बड़े प्यार से कहा.
‘‘यह क्या कर रही हैं आप… भाभीजी,
आप मेरे बड़े भाई की ब्याहता हैं, एक संभ्रांत खानदान की प्रतिष्ठा का महत्त्वपूर्ण पिलर हैं आप… उसे मटियामेट करने की कोशिश मत कीजिए.’’
‘‘रोहन,’’ श्वेता की आवाज में एक टीसता सा दर्द था, ‘‘भले ही आज मैं तुम्हारी भाभी हूं पर इस से हमारी वह फीलिंग खत्म तो नहीं हो जाती जो हम ने साथ में जी थी.’’
‘‘उस वक्त आप की इस फीलिंग का क्या हुआ था जब आप मेरी गुहार को लात मारते हुए आगे बढ़ गई थी?’’
‘‘अब भूल जाओ न उन बातों को तुम… सदा जूही के ही बन कर रहना, परंतु
इस तरह अपमानित तो मत करो मुझे.’’
‘‘मैं आप को अपमानित नहीं कर रहा, आप की वास्तविकता से अवगत करा रहा हूं कि आप एक ब्याहता हैं और एक शादीशुदा मर्द के साथ अकेले उस के घर में मौजूद हैं, यह जानते हुए कि उस की पत्नी अभी घर में नहीं है. वैसे क्या मैं जान सकता हूं कि आप घर से क्या झूठ बोल कर आई हैं? क्या बहाने बना कर निकली हैं आप अपने घर से?’’
‘‘रोहन, एक अच्छे दोस्त बन कर तो रह ही सकते हैं न हम?’’
‘‘नहीं, अब मुझे आप पर भरोसा नहीं रहा. जो महिला एक कमाऊ पति के लालच में अपने प्रेमी को छोड़ सकती है, जो अपने ससुराल में बिना बताए अपने प्रेमी से मिलने जा सकती है, उस की पत्नी की गैरहाजिरी में मैं ऐसी औरत पर विश्वास नहीं कर सकता.’’
‘‘रोहन, प्लीज चुप हो जाओ… इस तरह से शब्दों के नश्तर मत चुभाओ और यह आप कहना बंद करो.’’
‘‘सच इतना ही कड़वा लग रहा है तो आप इसी वक्त यहां से चले जाइए, शायद आप को सम?ा नहीं आए, इस के बावजूद आप को बता दूं कि मेरे लिए शादी एक परंपरा से इतर और भी बहुत कुछ है जो 2 इंसान के साथसाथ 2 परिवारों को भी एक ऐसे प्रेमिल धागे में बांधती है, जिस के भाव से लबरेज हो कर हम इंसान अगले
7 जन्मों के लिए उसी जीवनसाथी को पाने की बातें करने लगते हैं.
‘‘विश्वास पर टिके इस रिश्ते को भावना और कर्तव्य नामक मोतियों से गूंथा जाता है. यह एक ऐसा रिश्ता है, जिस में दिल से ज्यादा दिमाग की सुननी चाहिए, कानूनी मान्यता मिले इस रिश्ते में दुख और सुख दोनों का सामना मिल कर करने से जिंदगी कैसे गुजर जाती है, पता ही नहीं चलता और इस सफर में अब जूही मेरी हमकदम है आप नहीं.’’
श्वेता रोहन की बातें सुनते हुए अपमानित सी हो कर पत्थर की बुत सी बन चुकी थी.
रोहन ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘मैं ने शादी के पहले ही जूही को अपने और तुम्हारे रिश्ते के बारे में बता दिया था और सबकुछ जानने के बाद उस ने शादी के लिए हामी भरी थी. मुझे नहीं लगता कि तुम ने संदीप भैया को अपने पूर्व संबंध की बात बताई होगी.
‘‘अपने मन के चोर को पुरुष मानसिकता द्वारा नहीं स्वीकार किए जाने वाले खोखले तर्क से ढकने की कोशिश मत करना क्योंकि मुझे लगता है कि सच की बुनियाद पर खड़े रिश्ते तुलनात्मक रूप से बेहद मजबूत होते हैं. अगर कोई पुरुष अपनी होने वाली पत्नी के पूर्व संबंध को सहज स्वीकार नहीं कर पाए तो वह रिश्ता जोड़ने से पहले ही टूटना बेहतर पर तुम्हें तो डाक्टर संदीप से शादी करनी थी और तुम अपने पूर्व प्रेमी की बात बता कर इस रिश्ते को खोने का खतरा मोल लेने वालों में से नहीं हो, इतना तो मैं तुम्हें सम?ाता ही हूं.
‘‘और हां, अब एक आखिरी बात… मैं ने और जूही दोनों ने एकदूसरे के पूर्व प्यार को जानते हुए इस रिश्ते को स्वीकार किया है और इस में अब किसी तीसरे का प्रवेश वर्जित है. क्या अब भी तुम कुछ कहना चाहती हो?’’
‘‘नहीं रोहन, अब मुझे कुछ नहीं कहना… तुम दोनों एकदूसरे का साथ भरपूर जीयो, बस यही कहना है.’’
डबडबाई हुई आंखों से श्वेता अपने उस प्रेम को अंतिम विदाई देते हुए, अपमान के इस ताप को जज्ब किए. एक संबंध को खत्म करने की कोशिश में दरवाजे से बाहर तो निकल गई परंतु क्या सच में किसी संबंध को खत्म कर पाना इतना आसान हो पाता है?
श्वेता के दरवाजे से निकलते ही रोहन ने अपनी डबडबा चुकी आंखें पोंछीं और सोफे पर निढाल सा पसर कर बुदबुदाया, ‘‘श्वेता, काश तुम ने उस वक्त अपनी राहें नहीं बदली होतीं. मैं ने इस रिश्ते को तो मार दिया परंतु अपने उन एहसासों को कैसे मारूं जो बस तुम से जुड़े हुए हैं. एहसासों के झुले पर सवार इस रिश्ते की अर्थी को ताउम्र कैसे ढो पाऊंगा मैं?’’ कहते हुए रोहन दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक कर फूटफूट कर रो पड़ा.