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कहानी: मनमानियां

मां ,आखिर आपको क्या हो गया है? जब से डॉक्टरी पूरी करके आया हूं आपका तो रवैया ही बदल गया है। बार-बार मुझसे मेरी पसंद पूछ रही हो जबकि हमेशा आपने अपनी मर्ज़ी ही चलाई है, पारस बोला।
पता है आपको मुझे बचपन में ऑरेंज आइसक्रीम, चुस्की, कुल्फी ,चूरन,तेज मसाले वाले चिप्स बहुत पसंद थे। जब भी मोहल्ले में आइसक्रीम वाला आता तो सब बच्चे तो ऑरेंज आइसक्रीम ले लेते पर वो मन मसोसकर रह जाता था। आप घर में ही दूध या आम की आइसक्रीम बनाकर दे देती थीं। चिप्स, पापड़ ,कचरी भी घर पर ही बनाती थी और वही तलकर मुझे देती थीं। मुझे कभी-कभी बहुत गुस्सा भी आता था पर आपने संस्कार ऐसे दिए थे कि कभी अपना गुस्सा दिखा ही नहीं पाया बस अपना मन ही मार लिया करता था।

शांता जी बोलीं जब तू छोटा था तो तुझे बाहर की चीजों से बहुत जल्दी इंफेक्शन हो जाया करता था। डॉक्टर ने ज़्यादा तेज़ मसाले , मिर्च,खटाई व ठंडा खाने को मना कर रखा था। इंफेक्शन के कारण तू तो परेशान होता ही था वो अलग चिंतित हो जाया करती थीं। मन में गलत गलत ख्याल आने लगते थे। तेरे पापा को खोने के बाद मन में एक डर समा गया था।तुझे ज़रा सा भी कुछ होता तो यही लगता कि कहीं तुझे भी खो ना बैठूं तो बस तुझे बाहर की नुकसानदायक चीजों से दूर ही रखा।

चलो आपकी यह बात तो समझ आती है पर आपको तो मेरा बहुत से दोस्त बनाना भी पसंद नहीं था। दोस्त भी आपकी मर्ज़ी से ही बनाये। दोस्त ही क्यों पढ़ने के लिये विषय भी आपकी मर्ज़ी से ही चुने।

दरअसल मैं तेरे पापा को दिया हुआ वचन पूरा करना चाहती थी। वो तुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे ।इसलिये तुझे बाॅयोलाजी दिलवाई। दूसरे अगर तू चौबीसों घंटे दोस्तों से घिरा रहता और उनके साथ खेलता कूदता ही रहता तो पढ़ाई पर ध्यान कम ही केंद्रित कर पाता ।इसलिये तुझे ऐसे लड़कों से ही दोस्ती करने को प्रेरित किया जिनका पढ़ाई की तरफ रुझान था। वैसे घर में तेरे साथ इंडोर गेम्स खेल कर तेरे मनोरंजन का पूरा पूरा ध्यान रखती थी और स्कूल में भी किसी गेम में पार्टिसिपेट करने से कभी नहीं रोका।

अच्छा छोड़ो ये बात भी पर आज मेरी एक बात का जवाब दो कि इकलौती संतान होने के बावजूद आप मेरे प्रति बहुत स्ट्रिक्ट क्यों रहीं।उसे घर में भी पूरे अनुशासन के साथ रहना पड़ता था ।क्या मजाल कि कोई चीज़ इधर से उधर रख दूं। सब काम आपको करीने से करवाना पसंद था। घर का हरेक काम मुझे अपने हाथों से करना पड़ता था।

हां, मैं नहीं चाहती थी कि तू मेरे प्यार में बिगड़ जाये। मुझे पता था कि तुझे कोचिंग के लिए घर से बाहर भी भेजना पड़ेगा, इसलिए तुझे घर के सारे काम भी सिखायेऔर अनुशासन में रहना भी सिखाया ताकि तुझे बाहर जाकर एडजस्ट करने में कोई परेशानी ना आये। जी तो मेरा भी करता था कि तुझे सारे काम तेरे हाथ में करके दूं पर अपने जी पर पत्थर रख लिया करती थी। मैं तुझे डॉक्टर बनाने की राह में कोई भी बाधा नहीं आने देना चाहती थी।

मां सच में आपने मुझे जैसे ट्रेंड करा उसकी वजह से पहली बार घर से बाहर जाकर कोचिंग लेने में मुझे कोई परेशानी नहीं हुई।वो देखता था कि उसके साथ आये हुए बच्चे शायद बहुत नाज़ों से पले थे ,घर में कभी कोई काम खुद से किया नहीं था तो उन्हें पढ़ाई के साथ अपने अन्य काम करने बड़े भारी पड़ते थे।क‌ई बच्चे तो बीच में ही कोचिंग छोड़कर भी चले गये।एक बच्चा तो ना पढ़ाई का प्रैशर संभाल पाया ना घरवालों से दूरी,और उसने आत्महत्या जैसा ग़लत कदम उठा लिया। आत्महत्या की खबर सुनकर जब उसके माता पिता आये तो उनका रो रोकर बुरा हाल था।उनकी हालत देखी नहीं जा रही थी। दिल को द्रवित कर देने वाला दृश्य था।वो उनका इकलौता बेटा था।

ओह ये तो बहुत बुरा हुआ।अगर वो बच्चा अपने माता पिता से बात करता तो कोई ना कोई समाधान निकल ही आता।माता पिता बच्चे के हितैषी होते हैं नाकि उसके दुश्मन। वास्तव में वो बच्चा नहीं मरा बल्कि उसके माता पिता का मरण हो गया।वो सारी उम्र अपने को दोषी समझते रहेंगे, जबकि उन्होंने तो बच्चे का भविष्य उज्जवल बनाने के लिये घर से कोसों दूर कोचिंग के लिये भेजा होगा।

शांता जी थोड़ा रुककर बोलीं जब तू कोचिंग के लिए शहर से बाहर चला गया तो तेरे बिना घर काटने को दौड़ता था ।ना खाने को मन करता था ना पीने को, पर जब भी तुझसे बात करती थी तो अपने को ऐसे दिखाती थी जैसे तेरे जाने से कुछ फर्क ही नहीं पड़ा हो ताकि तू कहीं मेरी वजह से कोचिंग बीच में ही ना छोड़ आये। जानबूझकर अपने को पत्थर दिल बनाये रखा।

ओह! मां, मैंने तो आपके बारे में गलत ही धारणा बना ली थी। जब अपने दोस्तों की मांओं को उन पर प्यार बरसाते देखता था तो मन में यह ज़रूर आता था कि आप औरों के जैसी मां नहीं हो पर मैं गलत था। आपने तो मेरा भविष्य बनाने की खातिर अपने को रोके रखा ।मां अगर आप आज यह सब ना बताती तो वह सत्य से वंचित ही रह जाता।

पता नहीं मेरा तरीका सही था या ग़लत पर मुझे जो ठीक लगा वो ही करा।तेरी मनमानी पर रोक लगाने में उसका भी तो जी दुखता था पर अब उसकी तपस्या पूरी हुई है तो बस उसी खुशी में वो सब करने की कोशिश कर रही हूं जिससे तुझे कभी वंचित रखा था।अब तू अपने पैरों पर खड़ा हो गया है,अपना अच्छा, बुरा सब समझता है तो बस अब तुझे भी मनमानी करने और अपनी ज़िन्दगी के फैसले अपने आप लेने की पूरी छूट है।

और हां,जिस नीमा नाम की लड़की से तू प्यार करता है उसे शादी के लिये हां कह दे।ये कहकर उसका खून मत सुखा कि मां ही ज़िंदगी के सारे फैसले लेती आयी हैं और उसकी ज़िन्दगी का ये महत्वपूर्ण फैसला भी वो ही लेंगी।

मां आपको कैसे पता ये सब,पारस अटकते हुए बोला।
मां हूं तेरी सब जानती हूं। वैसे इत्तेफाक से नीमा मेरी सहेली की लड़की है और उसी ने बताया था।

पारस को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।उसे डाॅ.बनकर इतनी खुशी नहीं मिली थी जितनी अपनी मां की बात सुनकर मिली।उसे अपना प्यार तो मिल ही रहा था साथ ही मां भी असली रूप में मिल गयी थीं।वो झट से अपनी मां के गले लग गया और वो भी उसपर जी खोलकर प्यार बरसाने लगीं।
अभी पारस को अपनी मां के गले लगे दो मिनट ही हुए होंगे कि उसका मोबाइल बज उठा।उसने जैसे ही जेब से मोबाइल निकाला तो देखा नीमा का फोन था। पारस मां को फोन पर नीमा का नाम दिखाकर चुप रहने का इशारा करते हुए नीमा से बोला कहो कैसे याद किया।नीमा उधर से बेसब्री से बोली तुमने अपनी मां से हमारे रिश्ते की बात करी या नहीं।उनकी क्या प्रतिक्रिया रही उसे जल्दी से बताओ।

अरे मां से क्या बात करता, मां ने तो पहले से ही मेरे रिश्ते के बारे में सोच रखा था।अब मां की आज्ञा मानकर वहीं शादी करनी पड़ेगी। तुम तो अच्छी तरह जानती हो कि मां के सामने उसकी बोलती बंद हो जाती है।

तुम किसी भी तरह मां को मनाओ ना। मैं तुम्हारे बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती हूं। जीते जी ही मर जाऊंगी।

नीमा की बात सुनकर पारस को उसे तरसाने में और मज़ा आने लगा था।वो नीमा से बोला शायद उनका साथ यहीं तक था,अब तो वो किसी के दरवाज़े पर बारात ले जाने की तैयारी में है।अगर तुम चलना चाहो तो तुम भी चल सकती हो।

अरे क्यूं परेशान कर रहा है मेरी होने वाली बहू को। ज़्यादा तंग करेगा तो जो छूट तुझे अभी दी है वो वापिस ले लूंगी,ऐसा कहते हुए पारस से फोन लेकर वो नीमा से बात करते हुए बोलीं अब तक पारस की बागडोर मेरे हाथों में थी अब तुम्हें थमा रही हूं।आशा है अच्छे से संभाल पाओगी, निराश नहीं करोगी।

ऐसा सुनकर नीमा तो खुशी से पागल हो उठी।उसके मुंह से बोल ही नहीं निकला।तब शांता जी पारस को फोन पकड़ाते हुए बोली आज ही पंडित को फोन करके बुला ले।उनसे शादी की तारीख निकलवानी है।नीमा के कानों में भी बातें पड़ रही थीं।नीमा पारस से बोली पंडित जी को पहले ही कुछ ले देकर सैट कर लेना कहीं ऐसा ना हो कि वो कुंडली मिलान में कोई गड़बड़ी बताकर शादी होने में व्यवधान डाल दें।

पारस बोला अब जब दिल मिल गये हैं तो कुंडली मिलाने की क्या ज़रूरत है।

अच्छा पंडित जी को जल्दी से फोन मिला लो ना। 

अरे फोन रखोगी तभी तो मिलाऊंगा।

ठीक है रखती हूं पर जैसे ही डेट तय हो वैसे ही बता देना।अब इंतज़ार का एक एक पल भारी हो रहा है।

नीमा के फोन रखते ही पारस खुशी खुशी पंडित जी को फोन मिलाने लगा।अब वो नीमा के साथ वैवाहिक जीवन बिताने के सुनहरे सपने बुनने लगा तो शांता जी बहू का सुख भोगने और दादी बनकर बच्चे खिलाने के सपने बुनने लगीं।
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