कहानी: फूलमती
भूरी ने अपनी बेटी फूलमती को ले कर कई सपने बुने थे. इस काम में शिक्षिका नीलम ने भी अपना योगदान दिया. पर क्या फूलमती उन दोनों की उम्मीदों पर खरी उतर पाई?
नाम से ही कल्पना की जा सकती है कि फूलों की तरह नाजुक सुंदर सी कोई लड़की हो सकती है. नीलम ने उसे पहली बार देखा तो मन ही मन सोचती रह गई कि क्या सोच कर मांबाप ने इस का नाम फूलमती रखा है.
फलसब्जियों के बड़े बाजार में बैठती है फूलमती की मां भूरी. तीखे नैननक्श के साथ जबान भी धारदार है. और क्यों ना हो, आखिर मर्दों के वर्चस्व वाले इस बाजार में भूरी को भी तो अपनी रोटी कमानी है.
आंखों के भूरे रंग की वजह से शायद इस औरत का नाम भूरी रखा गया होगा, अकसर नीलम सोचती. आजकल की लड़कियां और औरतें तो इस रंग के लिए आंखों पर लैंस लगाए फिरती हैं, पर भूरी की तेज तीखी आंखें बेमिसाल हैं. 10 ग्राहकों को एक समय पर सब्जी तौल कर देती है. मजाल है कि किसी का कोई हिसाब चूक जाए या सब्जी गलत चली जाए.
पिछले तकरीबन 7-8 सालों से नीलम उसी से सब्जी खरीदती है. एक तो नीलम का स्कूल इस बाजार के बहुत ही पास है और दूसरा कहीं ना कहीं इस सब्जी वाली भूरी के व्यक्तित्व से प्रभावित थी वो.
छात्राओं के इस एकमात्र स्कूल की वरिष्ठ शिक्षिका है नीलम. हिंदी भाषा के साथ कुछ व्यवहार एवं संस्कार के पाठ भी पढ़ा दिया करती है. हाईस्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां उम्र की उस दहलीज पर खड़ी होती हैं, जहां सारी दुनिया उन्हें अपनी दुश्मन दिखाई देती है. किसी की रोकटोक किशोर मन बरदाश्त नहीं कर पाता. समुद्री ज्वार की तरह संवेगों का उफान रहता है, जो सबकुछ अपने में समेट लेने को लालायित होता है. बधंन में बंध कर रहना, इन तेज लहरों को नापसंद होता है.
नीलम एक परिपक्व साथी की तरह अपनी छात्राओं से व्यवहार करती थी. उस के कड़क नियमों को भी छात्राएं आत्मसात कर लिया करतीं.
भूरी से जब इस सब्जी बाजार में जानपहचान बनी, तब फूलमती सिर्फ 7 साल की थी. अपनी मां के चारों ओर खेलती रहती, कभी चिपक कर बैठ जाती.
‘‘क्या ये तुम्हारी बेटी है?’’ ना जाने क्यों पूछ लिया था नीलम ने.
‘‘हां, मैडमजी. ऐसे क्यों पूछ रही हो?’’ सब्जी झोले में डालती हुई भूरी मानो चिढ़ सी गई.
‘‘नहीं, बस ऐसे ही,’’ झेंपते हुए नीलम ने बात टाल दी, पर मन स्वीकार ही नहीं कर पा रहा था कि इतनी सुंदर मां की बेटी ऐसी कैसी है? 7 साल में 10-12 की लगने लगी थी, बेतरतीबी से बहती नाक, बालों के जटाजूट और उस की चाल. अजीब सा चलती थी मानो धरती पर अहसान कर रही हो. पूरा भार एक पैर पर फिर आराम से दूसरा उठाती.
कभीकभी नीलम को खुद की सोच पर शर्म आ जाती कि वो एक छोटी सी बच्ची को अपने पैमानों पर क्यों कस रही है?
हर एकदो दिन की आड़ में नीलम सब्जीफल लेने जाती और अब समय के साथसाथ भूरी और फूलमती भी उस से खुलने लगे थे.
‘‘दिनभर साथ में लिए बैठती हो लड़की को, स्कूल क्यों नहीं भेजती?’’ एक दिन नीलम ने भूरी से पूछा था.
‘‘भेजी थी मैडमजी, पर इस का शरीर देखा ना आप ने, बच्चे खूब हंसते हैं और मजाक भी उड़ाते हैं. सब से बड़ी, ऊंची पूरी दिखती है ना, जानवरों का नाम ले कर बुलाते हैं इसे,’’ एक मां की आत्मा का दुख नीलम के हृदय को व्यथित कर गया.
‘‘तो क्या इसे अनपढ़ बना कर रखोगी?’’ नीलम में समाई शिक्षिका जाग गई.
‘‘नहीं मैडम, घर पर पढ़ाने के लिए एक लड़की आती है. कालेज में पढ़ने वाली है शोभा, वही सुबह और रात को इसे पढ़ा देती है,’’ एक लंबी सांस भर कर भूरी बोली, ‘‘पढ़ेगीलिखेगी, तभी तो कुछ कामधंधा संभाल सकेगी ये.’’
‘‘मैं सब लिखती हूं, नाम, मम्मी का नाम, घर का पता, सब सब्जी का नाम…’’ न जाने क्या बताती चली गई थी फूलमती.
‘‘गणित और हिसाबकिताब बिलकुल नहीं आता इस को,’’ भूरी ने बताया.
‘‘ठीक है, मैं तो आती हूं सब्जी लेने, थोड़ाबहुत सिखा दूंगी,’’ कह कर नीलम चली गई थी.
अगले दिन नीलम ने पहाड़े वाली पुस्तिका, स्लेटकलम सब फूलमती को दिया और दो के पहाड़े से गणित की शुरुआत हुई. लिखलिख के, रट कर वो तैयार रहती थी कि मैडमजी को सही बताएगी तो चौकलेट मिलेगी.
समाजसेवा करने के लिए सिर्फ दिल की जरूरत होती है, बाकी तो अपनेआप जुटता चला जाता है. नीलम की मेहनत रंग लाने लगी थी और फूलमती अब छोटेछोटे गुणाभाग, जोड़घटाना अच्छी तरह सीख गई थी.
भूरी ने भी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी, सब्जियों के अलावा अपनी ओर से कोई भी मौसमी फल, नीलम के बच्चों के लिए जरूर थैली में भर देती थी.
गरीब थी, परंतु खुद्दार भी. चाहती थी कि जो मैडमजी उस की बेटी के लिए इतना समय देती है, उस के बच्चों के लिए वह थोड़ा तो कुछ दे सके. नीलम ने भी कभी मना नहीं किया. नीलम भी किसी को अहसान के बोझ तले दबा हुआ देखना पसंद नहीं करती थी.
पिछले 1-2 साल से फूलमती में अंतर आने लगा था. अब वह अपने बालों को संवारनेसजाने लगी थी, हाथपैरों को साफ रखती थी. और हां, नाक भी नहीं बहती थी. हाथ में रूमाल रख कर वह पढ़ती थी.
भूरी के साथसाथ नीलम ने भी अनुभव किया कि ग्राहकों की संख्या बढ़ गई है और लोग एक चीज लेने के लिए ज्यादा समय खड़े रहते थे.
‘‘अब फूलमती बड़ी हो रही है भूरी, क्या इसे साथ में रोज लाना जरूरी है?’’ नीलम ने एक दिन पूछा था.
‘‘कहां छोडूं मैडमजी इस को, घर पर ताला मार कर आती हूं. मैं इसे कैसे अकेले छोडूं?’’ मां की आखों में चिंता तैर रही थी.
‘‘जिंदगीभर आंचल से बांध कर तो नहीं रख सकती तुम. खदु सीखने दो. तुम भी तो अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ ही रही हो ना,’’ नीलम ने समझाया.
बोलते समय नीलम का दिल अपनी बेटी की ओर दौड़ गया, जो फर्स्ट ईयर इंजीनियरिंग के लिए होस्टल में रह रही थी.
‘‘हां मैडमजी, इस की उम्र से बड़े शरीर और नासमझी के कारण ही मैं परेशान हो जाती हूं. मैं ने भी आगे इसे काम सिखाने की सोची है. मेरी मदद करते हुए इस बाजार को समझने लगेगी,’’ भूरी की आंखों में उत्साह का रंग था.
शरीर से बड़ी फूलमती दिल से बिलकुल बच्ची थी. किसी ग्राहक का थैला छुपा देती, किसी के पैसे देते समय हाथ नचाती. भूरी लगातार उसे दुनियादारी और ऊंचनीच समझाया करती. उसे स्कर्ट ठीक पहनने, कुरती और शर्ट की बटनें ठीक से लगाना भी सिखाना पड़ रहा था. धीरेधीरे फूलमती का मन सब्जियों के इस लेनदेन में रमने लगा.
एक फूल के खिलने के पहले भौरों का गुंजार सुनाई देता है, बस ग्राहकों की नजरों से वही अहसास भूरी को होने लगा था.
13-14 साल की, दोहरे कदकाठी की फूलमती का आकर्षण सब को भूरी के सब्जी के ठीहे पर खींच लाता. कभीकभी ग्राहकों के दोहरे अर्थ वाली बातों से तिलमिला कर भूरी भिड़ जाती थी. कितना कठिन होता है, पुरुषों के वर्चस्व वाली जगहों पर किसी स्त्री का निबाह होना और अपनी अगली पीढ़ी को भी तैयार करना.
‘‘फूलमती कोई दूसरा काम कर लेगी भूरी. जरूरी तो नहीं कि सब्जी ही बेचे,’’ नीलम ने सलाह देते हुए कहा.
‘‘स्कूल से तो पढ़ी नहीं है ये मैडमजी. काम कौन देगा इस को? कुछ अपने बूते लिखनापढ़ना जान गई है बस. किसी के घर के अंदर काम करने से अच्छा है कि खुले बाजार में बैठ कर सब्जियों का धंधा करे और फिर मैं भी जीते तक साथ दे सकती हूं,’’ बेटी के भविष्य को संजो रही थी भूरी.
हर आर्थिक स्थिति के मातापिता अपने बच्चों के सुरक्षित और सुंदर भविष्य की चाहत लिए जिंदगी बिता देते हैं.
खुद नीलम स्कूल और घर दोनों संभालती है, अपने दोनों बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए उस ने पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम किया है.
पिछले कुछ दिनों से तबियत ठीक न होने के कारण नीलम ने स्कूल से छुट्टी ले ली थी. 8-10 दिन बाद स्कूल से लौटते हुए सब्जी मंडी जाने की हिम्मत नहीं हुई उस की, और वह सीधे घर आने लगी.
बस स्टाप के सामने ही भूरी मिल गई और भूरी ने आवाज लगाई, ‘‘मैडमजी.’’
‘‘अरे, तुम यहां,’’ भूरी को देख कर चौंक गई नीलम.
‘‘आप कैसी हो मैडमजी? 8-10 दिनों से कोई खबर नहीं. मैं तो सोच रही थी कि आजकल में स्कूल जा कर पता करूं,’’ एक ही सांस में बोल गई भूरी. उस का स्नेह उस की आंखों की नमी से छलक रहा था. नीलम का हृदय भीग गया. शरद पूर्णिमा के चंद्रमा से झरते अमृत की तरह, संध्या समय तुलसी चौरे पर जलते दीप की तरह और सागर की खिलखिलाती लहरों की तरह पवित्र भाव था उस की भूरी आंखों में. एक औरत का दूसरी के प्रति निश्छल प्रेम, यही शायद एक अटूट बधंन बन गया था.
‘‘तबियत ठीक नहीं थी मेरी, बुखार से थकान भी लग गई, इसलिए आज स्कूल तो आई, पर सब्जियां लेने नहीं आई,’’ नीलम ने बताया.
‘‘तुम इस समय अपने ठीहे पर नहीं हो, आज बंद रखा है क्या?’’ आश्चर्य से नीलम ने पूछा.
‘‘नहीं मैडमजी, आज फूलमती संभाल रही है और मैं बिजली बिल भरने गई थी,’’ भूरी ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘फूलमती को अकेले छोड़ दिया तुम ने,’’ अगला आश्चर्यभरा प्रश्न था नीलम का.
‘‘आओ ना मैडमजी, अपनी शिष्या को देखो कि कैसा काम संभाल रही है. और, नीलम सचमुच भूरी के साथ खींची हुई सब्जी मंडी की ओर चल पड़ी. थोड़ी दूर से दोनों औरतें, एक सधी हुई लड़की को निहारने लगे, जो ग्राहकों से बात करती हुई सब्जी तौल कर, हिसाब से पैसे ले रही थी.
‘‘8-10 दिनों में ऐसा कैसे हो गया भूरी,’’ आश्चर्य पर आश्चर्य हुआ जा रहा था नीलम को.
‘‘जिस दिन आप सब्जी ले कर गईं, उसी शाम को एक आदमी आया. उस ने करीब 500 रुपए की सब्जियां खरीद लीं और बोला, ‘थैली नहीं है. कार में रखवा दो.’ 500 का नोट दे वह दूर खड़ी कार की ओर चला गया.’’
भूरी ने लंबी सांस भर कर अपनी बात फिर शुरू की, ‘‘शाम को ग्राहकों की भीड़ थी, तो मैं ने सब्जियां टोकरी में भर कर फूलमती को उस कार वाले के पीछे भेज दिया.’’
‘‘मैं ने ग्राहक को सब्जी तौल कर दी और सहसा चीखने की आवाज कार की तरफ से आई.’’
भूरी ने अपने स्वर को नियंत्रित करते हुए कहा, ‘‘मैं ठीहा छोड़ कर कार की ओर भागी. आगे देखा तो कार वाला जमीन पर गिरा था और फूलमती उसे लातों से मार रही थी. फूलमती का चेहरा लाल था. वह जोरजोर से बोल रही थी, ‘‘कार में सब्जी रख. बोल कर हाथ लगाया मेरे को, गंदी बात की मेरे से. मार ही दूंगी तेरे को.’’
भूरी की बात सुन कर नीलम की आखें फैल गईं और होंठ भी.
‘‘बस मैडमजी, मेरी तपस्या सफल हो गई. फूलमती को अपना अच्छाबुरा समझ आ गया और उस दिन का उस का वो रूप पूरे बाजार में चर्चा का विषय था.
“कार वाले को मारपीट कर छोड़ दिया सब ने. मैं ही पुलिस में ना जाने की बात रखी. उस दिन से ठीहे पर फूलमती मेरी मदद भी करती है और बीचबीच में अकेले भी काम देखती है.’’
एक मां अपनी बच्ची के सचेतन व्यवहार से सुकून महसूस कर रही थी. नीलम ने भूरी के कंधे पर हाथ रख दिया और दोनों फूलमती की ओर बढ़ चले. -शर्मिला