कहानी: एक खूबसूरत मोड़
कभी शेखर और मीना के प्यार के चर्चे थे. मगर फिर ऐसा क्या हुआ कि उन दोनों को अलग होना पड़ा...
‘‘कुछ भी नहीं बदला न इन 12 सालों में.’’ ‘‘हां सचमुच. क्या तुम मुझे माफ कर पाए शेखर?’’ यह पूछती मीना की पनीली आंखें भर आईं पर मन हर्षित था. अनायास हुई यह मुलाकात अप्रत्याशित सही पर उसे क्षमा मांगने का अवसर मिल ही गया था. होंठों पर मुसकान ऐसे आ चिपकी जैसे बड़ी जिद्द के बाद भी जो खिलौना न मिला हो और वही बर्थडे गिफ्ट के रैपर खोलते ही अनायास हाथों में आ गया हो.
‘‘तुम से नाराज नहीं था यह कहना गलत होगा. मुझे ऐसा लगा था कि तुम से कभी बात नहीं कर सकूंगा मगर देख तुझे देखते ही सब भूल गया,’’ शेखर एक ही सांस में बोलता चला गया फिर उस ने अपनी शिकायत रखी, ‘‘तू तो ऐसे गई कि मुड़ कर भी नहीं देखा. हमारे जीवन से जुड़े फैसले अकेले कैसे ले लिए?’’
‘‘मैं ने कब लिए. तुम्हारे लिए ही तुम से दूर हुई. मैं तुम्हें सफलता के शिखर पर देखना चाहती थी शेखर. मेरे पीछे तुम्हारी पढ़ाई नहीं हो रही थी. आज तुम इतने बड़े औफिसर हो. मैं साथ होती तो यह संभव होता? बोलो, जवाब दो?’’
मीना बस मुसकराए जा रही थी. लंबी जुदाई के बाद मिली थी सो वह 1-1 क्षण जी लेना चाहती थी.
‘‘क्यों नहीं होता? तुम्हारा साथ मिलता तो सब हो जाता.’’
‘‘क्लासेज छोड़ कर दीवानों की तरह घूमते थे तुम. मैं तुम्हारी सफलता का कारण बनना चाहती थी, असफलता का नहीं,’’ मीना ने गहरी सांस लेते हुए कहा.
‘‘पता नहीं यार पर ऐसा क्या चाह लिया था. कोई ताजमहल तो नहीं मांग लिया था. एक तू मिल जाती और मैं आईएएस बन जाता इतना ही न. मगर नहीं. मैं जो चाहता हूं वह मुझे कभी नहीं मिलता,’’ कह कर आसमान की ओर देखने लगा जैसे उस की एक नाराजगी प्रकृति से भी हो.
‘‘तुम सुखी गृहस्थी जी रहे हो, अच्छे पद पर हो. आखिर तुम्हारे पापा तो तुम्हें ऐसे ही तो देखना चाहते थे,’’ कह मीना शेखर की आंखों मे देखने लगी. वही आंखें जिन में अपना प्रतिबिंब देख कभी शर्म से दोहरी हो जाती थी. जिन होंठों की मुसकान पर सदा वारी जाती पर न जाने क्यों वे सभी सूने पड़े थे जो कभी उस के प्रेम से लबरेज रहा करते थे.
सालों बाद दोनों यों मिलेंगे यह सोचा न था. मीना मायके से अकेली लौट रही थी और शेखर अपने मातापिता से मिलने जा रहा था. बड़ी मुश्किल से एकदूसरे को भुला कर अपनीअपनी जिंदगी जीना शुरू ही किया था कि नियति ने उन्हें फिर से मिला दिया. बिना कुदरत की मरजी के पत्ता भी नहीं खड़कता. आज उस की ही हरी ?ांडी रही होगी जो बरसों के बिछड़े प्रेमियों का एअरपोर्ट पर अचानक आमनासामना हो गया और फिर वे अतीत के पन्नों में ऐसे उल?ो कि उन की फ्लाइट मिस हो गई.
‘‘कुछ खाएगी?’’
‘‘हूं… चिली चिकन विद गार्लिक सौस.’’
इस डिश का नाम सुनते ही शेखर के होंठों पर मुसकान आ गई जिसे देख कर मीना को भी तसल्ली हुई. प्यार के कुछ निशां अब भी बाकी थे. यही उन की फैवरिट डिश थी जिसे वे हर रविवार खाया करते थे. आज एअरपोर्ट पर मेनलैंड चाइना में साथ बैठ कर खाने लगे.
‘‘तू अब भी वैसी ही प्यारी दिखती है.’’
‘‘यह तुम्हारा प्यार है शेखर. जब तक तुम्हारा प्यार मुझ में रहेगा मैं प्यारी ही रहूंगी.’’
इस बार मन भावुक था. आंखें छलक आईं. जज्बात ही थे आखिर कब तक काबू में
रहते. कभी उन नयनयुग्मों ने एक होने के सपने सजाए थे. मीना के नयनों की नमी शेखर को न भिगो पाई. उस ने सूखी आंखों से उस की ओर देखा जैसे इस मीना को वह पहचानता ही न हो. उस के चेहरे पर आए बदलाव ने मीना को सहमा दिया.
पल दो पल की खामोशी के बाद शेखर ने पूछा, ‘‘सब ठीक है न तेरे साथ?’’
‘‘बस कुछ ही देर का साथ है और फिर तुम्हें देखने को तरस जाऊंगी इसलिए ही…’’ अवरुद्ध कंठ से इतना ही निकला.
‘‘इतना ही चाहती थी तो तब कहां थी जब मुझे तेरी जरूरत थी? मैं ने आईएएस परीक्षा निकाल ली थी. इंटरव्यू की तैयारी के दौरान बस एक ही खयाल कि मुझे तू मिलेगी या नहीं. बस इन्हीं सवालों से जंग लड़ते न जाने कितनी ही रातें आंखों में कटीं. स्ट्रैस लैवल कितना हाई था कि जब इंटरव्यू देने गया था. ऊपर से जितने मुंह उतनी बातें. सब कहते थे कि तुम ने मुझे बरबाद कर दिया है.’’
उस की सीधी बातें सीने को चीरती थीं. एक नाराजगी थी शायद या उस का आहत स्वाभिमान. बातों में एक तीखापन जैसे प्यार पर से विश्वास ही उठ चुका हो.
‘‘सब कौन और तुम भी यही सोचते हो?’’
‘‘नहीं, पर बाकी सब यही कहते हैं.’’
‘‘तुम्हारे दोस्त तो पहले भी मेरे दुश्मन थे. तुम क्या सोचते हो, मेरे लिए यह माने रखता है.’’
‘‘तुम्हारी कोई मजबूरी रही होगी. मैं ने तुम्हें कभी गलत नहीं समझ. इसी बात का तो दुख है मेरी पत्नी को.’’
‘‘पत्नी? पर तुम ने तो कहा था आजीवन मेरी प्रतीक्षा करोगे?’’
‘‘कर ही रहा था. मेरा चयन फौरेन सर्विस में हो गया था. ट्रेनिंग के दौरान तुम्हारे घर वालों से बारबार कौंटैक्ट करता रहा, तुम्हें याद करता रहा पर तुम्हारी शादी हो गई थी. तुम्हारी ही बातें करतेकरते मेरी बैचमेट सपना मेरे नजदीक आई और मेरे जीवन की हकीकत बन गई. अब तुम कुछ अपने बारे में बताओ?’’
‘‘मेरी शादी मेरी मरजी के विरुद्ध राजेश के साथ हुई. मैं ने उसे अपनी पूरी कहानी बता दी ताकि वह मुझे छोड़ दे पर वह पारंपरिक इंसान निकला. शादी को सिरियसली निभाने लगा.’’
‘‘तू खुश है?’’
‘‘मैं दोहरी जिंदगी जी रही हूं. तुम्हें भुला न सकी शेखर. सुखदुख में, तनहाइयों में बस तुम ही याद आते रहे. कभी बादलों में तुम्हारा अक्स ढूंढ़ा करती तो कभी पुरानी बातों को याद कर खुश हो जाया करती.’’
‘‘मैं भी कहां भुला सका. अपने गम कम करने के लिए शराब का सहारा भी लिया पर इस का भी कोई लाभ नहीं हुआ. जिंदगी जीने के लिए सही फलसफा जरूरी है, जिसे मैं भी देर से ही सम?ा पाया.
‘‘अव्वल तो यह कि जब अकेली थी तभी मेरे पास आती तो जैसे भी होता मैं संभाल लेता. दूसरा यह कि जब अपने ही घर वालों को मना न सकी तब कोई कदम उठा न सकी तो अब अपनी जिंदगी जिस में और लोग भी शामिल हैं, उसे खुशी से न जीना गलत है.’’
कितनी हिम्मत से उस ने मीना की बेवफाई को निभाया था. वह उसे एकटक देखे जा रही थी. हमेशा उस के लिए स्नेह के भाव रखने वाला शेखर पहली बार उसे प्रश्नों के कठघरे में रख रहा था. क्या सचमुच उस ने उस के प्रति इतना अन्याय किया है जितना उसे इलजाम मिल रहा है? क्या उस की कोशिशों में कमी रह गई? उस ने तो आखिर तक शादी के लिए हां नहीं कही थी तो क्या उसे भाग कर उस के पास जाना चाहिए था? मगर वह भागना नहीं चाहती थी. उसे शेखर और अपना परिवार सब एकसाथ चाहिए और वह भी पूरे सम्मान के साथ.
‘‘तुम नहीं समझोगे एक स्त्री का दिल, प्यार होता है तो होता है और नहीं होता तो नहीं होता है. इस के लिए खूबसूरती, महानता या आदर्शों की कसौटी नहीं होती. मसलन, ज्यादा महान, खूबसूरत या आदर्श व्यक्ति से प्यार हो ही जाएगा, यह नहीं कह सकते. न ही इस में कोई प्रतिदान होता है. हां, तुम्हें तब भूलना संभव था जब तुम गलत होते. एक बहाने से मन को समझ लेती कि किसी गलत इंसान के लिए एक सही इंसान को क्यों दुखी करूं मगर तुम ने तो कभी कुछ गलत किया ही नहीं था.’’
‘‘गलतसही की कसौटी पर मत तोलो. जो हो गया है उसे स्वीकार करो और जिंदगी का एहसान उतारते हुई नहीं बल्कि खुश हो कर जीयो. तमाम कोशिश कर के भी हम मिल न सके तो शायद इसे ऐसे घटना ही था. अब हम इतना तो कर ही सकते हैं कि अपने परिवार के साथ खुश रहें. मैं ने भी यह सब अपने अनुभव से ही सीखा. बड़ी मुश्किल से संभला हूं. अब अपनी उस पत्नी को जिस ने हम दोनों के बारे में सब जानते हुए भी मु?ा से प्यार किया और मेरा साथ दिया है, उस से बेवफाई नहीं कर सकता. और फिर यह सोचो न हम एकदूसरे के जीवन में प्यार बन कर आए. यह क्या कम है. उन की सोचो जिन का पूरा जीवन निकल जाता है मगर प्यार नाम के पंछी से कोई परिचय तक नहीं होता.’’
सही तो कह रहा था शेखर. पत्नी के प्रति उस की निष्ठा देख कर दिल भर आया. ऐसे इंसान का किसी के जीवन में होना ही बड़ी बात थी. उस से मिलना ही तो उस के जीवन का सब से खूबसूरत मोड़ था. वहीं से उस का सबकुछ बदल गया था. बचपन छूट गया था. सम?ादार हो गई थी. शेखर न आता तो क्या वह इतनी बदलती? नहीं न? इस का मतलब उन्हें ऐसे ही मिलना था. एकदूसरे को संवारने के लिए, यह सोच कर आंसू थमने लगे.
तभी शेखर ने कहा, ‘‘चल, अब वापसी के टिकट देखते हैं, घर पहुंचना है न.’’
शेखर की आवाज पर हंसी आ गई. घर तो पहुंचना ही होगा. टिकट ले कर दोनों ने एक बार फिर से एकदूसरे की आंखों में देखा. बस 1 मिनट के लिए ही उन में अपनी छवि देख पाई फिर एक चिंतित पति व व्याकुल पिता दिखा. उसे भी राजेश और बेटे अमन की याद आई. उन की जिंदगियां अलग मोड़ ले चुकी थीं. खुश थे या नहीं यह कहना वाकई मुश्किल था पर दोनों ही जिम्मेदार इंसान अपनीअपनी मंजिल यानी गेट की ओर चल पड़े. यह विश्वास और भी गहरा हो गया कि कुछ रिश्ते कभी नहीं बदलते, बस प्राथमिकताएं बदल जाती हैं.
शेखर और मीना जो कभी गहरे प्यार में थे पर उन्होंने बड़ी वफा से बेवफाई को भी स्वीकार कर लिया. प्यार जरूरत के अनुसार कुरबान होना होता है.