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कहानी: समझौता

रवि और नेहा के बीच ऐसा कौन सा समझौता हुआ था, जिसे मान कर दोनों पहले तो दूर हो गए फिर जल्दी ही नजदीक भी आ गए...

रवि  का फोन देख कर नेहा को कुछ आश्चर्य हुआ. ने खुद फोन पर कहा, ‘‘कुछ इंपौर्टैंट बातें करनी हैं, 5 बजे शाम को तैयार रहना. मैं स्वयं लेने आ जाऊंगा,’’ और फिर फोन काट दिया.

‘क्या इंपौर्टैंट बातें होंगी,’ सोच कर नेहा मुसकरा पड़ी. अपने कालेज की साहसी स्टूडैंट्स में नेहा का नाम टौप पर था. शायद इसीलिए रवि का इनवाइट ऐक्सैप्ट करने में उसे अधिक देर नहीं लगी.

ठीक 5 बजे रवि की कार का हौर्न सुन कर नेहा बाहर आ गईर्. समय की पाबंदी नेहा का गुण था. पीछे से मां ने कहा भी, ‘‘अरे, घर में तो बुलातीं,’’ लेकिन तब तक नेहा बाहर निकल चुकी थी. रवि कार से बाहर निकल कर उस की प्रतीक्षा कर रहा था. नीली ब्रैंडेड जैकेट व जींस में रवि का व्यक्तित्व निखर उठा था.

‘‘हाय,’’ के साथ ही कार का दरवाजा खोल रवि ने नेहा को अपने साथ की अगली सीट पर बैठा लिया. कार के रवाना होते ही एक अजीब सी पुलक से नेहा अभिभूत हो उठी. फिर भी रवि का अनयूजुअल साइलैंस नेहा को कुछ परेशान कर रहा था.

रेस्तरां के एकांत कैबिन में पहुंचते ही साहसी नेहा का मन भी धड़कने लगा. बेहद रवि ने शालीनता के साथ कुरसी आगे खींच कर नेहा के बैठने का वेट किया.

‘‘क्या पसंद करेंगी, कोल्ड या हौट?’’ रवि ने बैठते हुए पूछा.

रवि के प्रश्न पर हलके स्मित के साथ नेहा ने कहा, ‘‘जो आप पसंद करें.’’

रवि गंभीरता से बोला, ‘‘देखो नेहा, तुम से कुछ बातें स्पष्ट करनी थीं. विश्वास है तुम मेरा मतलब सम?ा जाओगी.’’

कुछ सरप्राइज के साथ नेहा ने जैसे ही रवि की ओर देखा, वह बोला, ‘‘मां तुम्हें अपनी डौटर इन ला मान चुकी हैं. हर क्षण तुम्हारी प्रशंसा करती रहती हैं. तुम ने उन्हें पूरी तरह अपने मोहपाश में बांध लिया है पर मेरी प्रौब्लम कुछ और है. मैं कहीं और कमिटेड हूं.’’

रवि के अंतिम शब्दों ने नेहा को बुरी तरह चौंका दिया कि ओह वह किस इंद्रधनुषी स्वप्नजाल में फंस रही.

‘‘तो प्रौब्लम क्या है? आप वहां विवाह करने को स्वतंत्र हैं. मैं ने तो कोई बंधन नहीं लगाया. फिर प्रपोजल भी तो तुम्हारी तरफ से ही आया था. हम तो गए नहीं थे,’’ कहतेकहते नेहा का स्वर कुछ हद तक तीखा हो आया था.

‘‘यही तो प्रौब्लम है नेहा. मैं मां का एकमात्र बेटा हूं. बिना जाने मां की बात मानने का वचन दे बैठा हूं और अब अगर वचन तोड़ता हूं तो मां घर छोड़ कर गोवा चली जाएंगी. वहां हमारा एक फ्लैट है. उन की जिद तो तुम मु?ा से अधिक अच्छी तरह जानती हो. पिताजी के न रहने पर मां ने तुम्हें भी मेरी तरह इस बंधन को स्वीकार करने के लिए विवश किया था. मां कह रही थीं तुम इंडिपैंडैंट जीवन बिताना चाहती थीं. क्या यह सच नहीं है?’’

रवि के बात की सीरियसनैस पर नेहा हंस पड़ी, ‘‘क्या स्ट्रेंज बात है. मैं मैरिज कमिटमैंट में बंधना नहीं चाहती, यह आप की खुशी का मामला है.’’

रवि पूरे उत्साह से बोला, ‘‘बिलकुल यही बात है नेहा. हम दोनों विवश किए गए हैं. अब परिस्थिति यह है कि  अगर हम विवाह करते हैं तो मेरे मन के अलावा मेरा सबकुछ पत्नी के नाते तुम्हारा. तुम्हारी हर आवश्यकता का मैं ध्यान रखूंगा. बदले में तुम से कोई अपेक्षा नहीं रखूंगा. हां, कभीकभी पार्टियों में हमें कपल की सफल एक्टिंग भी करनी होगी. इन सब कष्टों के बदले मैं तुम्हें प्रतिमाह क्व40 हजार जेबखर्च के रूप में दूंगा. कहिए, क्या खयाल है तुम्हारा?’’

‘‘बहुतबहुत धन्यवाद,’’ नेहा के स्वर में उत्साह था या व्यंग्य रवि ठीक से सम?ा नहीं सका.

‘‘धन्यवाद किसलिए?’’

‘‘क्व40 हजार की रकम जो तुम दे रहे हो. क्या थैंक्स भी न दूं? फिर ये सब इतने स्पष्ट रूप से जो बताया है आप ने.’’

‘‘अगर न बताता तो?’’

‘‘आप से नफरत करती.’’

‘‘और अब?’’

‘‘अब कोशिश करूंगी आप का दृष्टिकोण सम?ा सकूं.’’

रवि ने आश्वस्त हो नेहा की ओर हलके से मुसकरा कर देखा, फिर कहा, ‘‘नेहा तुम सोच लो. तुम भी स्वतंत्र विचारों वाली लड़की हो. तुम्हें मैं हर संभव इंडिपैंडैंस दूंगा. हां, बदले में अपने लिए भी इंडिपैंडैंस चाहूंगा. 2 अच्छे फ्रैंड्स की तरह हम साथ रह सकते हैं न?’’

‘‘रवि इतने इंडिपैंडैंट हो कर भी आप

अपना मनचाहा पार्टनर नहीं पा सके, यह क्या कम आश्चर्य की बात नहीं है? मैं आप की मां

से सिफारिश करूंगी. शायद वे मेरी बात मान

लें. तब तो आप मेरे औवलाइज्ड रहेंगे न?’’

कह कर नेहा अपनी परिचित स्माइल के साथ उठने लगी.

‘‘नहीं… नहीं… नेहा ऐसा अनर्थ न कर बैठिएगा. मां का पूजापाठ, छुआछूत तुम

जानती हो क्या एक विदेशी, विधर्मी, मांसाहारी को वे इस जीवन में कभी अपना सकेंगी? उन का सपना तोड़ मृत्यु से पूर्व ही मैं उन्हें समाप्त नहीं कर सकता.’’

कुछ कटु हो कर नेहा ने तिक्त स्वर में कहा, ‘‘फिर आप कुछ और वर्ष मैरिज टाल

क्यों नहीं देते? मु?ा से आप क्या ऐक्सपैक्ट करते हो? मेरा अपना जीवन है, सपने हैं, मैं आज के लिए सैक्रिफाइस क्यों करूंगी?’’

रवि के उठते ही नेहा रेस्तरां से बाहर निकल आई और मन ही मन में बोली, ‘हूं क्या सरोगैंस है. मैं इन के पक्ष में निर्णय दूंगी. क्या सम?ाते हैं अपने को?’

नेहा को घर के दरवाजे पर छोड़ कर रवि चला गया. पर्स को एक ओर फेंक नेहा पलंग पर पड़ गई. उस की कुछ सोचनेसम?ाने की शक्ति चुक गई थी, ‘पाखंडी कहीं का, इस की मां के लिए मैं बलि चढ़ जाऊं,’ पर हर विरोध के बावजूद रवि का आकर्षक व्यक्तित्व बारबार स्मृति में आ उसे चिढ़ा जाता. अपने मृत धनी पिता का एकमात्र उत्तराधिकारी, विदेश से सौफ्टवेयर इंजीनियरिंग की डिगरी प्राप्त रवि का आकर्षण क्या कम था?

मध्यवर्गीय परिवार की नेहा के लिए जब रवि की मां ने प्रस्ताव रखा था तो मां, पिता,

छोटा भाई सब गर्व और उल्लास से भर गए थे. घर की बेटी इतने बड़े परिवार में जाएगी, इस

से बड़ा सुख और क्या हो सकता था? रवि का घर नेहा के घर के एकदम पास था. नेहा का परिवार एक फ्लैट में किराए पर रहता था. रवि

का पूरा बड़ा हाउस था. 4-5 लोग घर में काम करते थे. एकमात्र बेटे के विदेश चले जाने पर

रवि की मां अपना सारा स्नेह नेहा पर ही लुटाती थीं, हर छोटेबड़े काम के लिए वे नेहा पर ही निर्भर थीं. उस घर की डौटर इन ला बनने का स्वप्न नेहा ने कभी नहीं देखा था. पर रवि की बातें सुन कर नेहा को लगता जैसे वह उसे युगों से जानती हो.

रवि की पसंदनापसंद क्या है, यह रवि की मां नेहा को सुनाया करती थीं. नेहा डाक्टर

बन कर गांव में जाना चाहती थी. वह आजीवन विवाह न करने का निर्णय रवि की मां के प्रस्ताव और अनुरोध पर ही नहीं ले सकी थी. रवि की मां ने सु?ाव दिया था कि वह शहर में ही क्लीनिक खोल कर गरीबों की सेवा कर सकती है. हो सकता है वे लोग एक हौस्पिटल बनवा दें और यह योजना नेहा को भा गई थी.

मगर अब वह क्या करे? छोटा भाई

समन्वय बारबार हंस रहा था, मां का उत्सुक चेहरा उस से कुछ पूछ रहा था. एक बार नेहा

की इच्छा हुई कि अपनी मां को सबकुछ बता दे पर अपमान से मन तिलमिला उठा. सिरदर्द का बहाना कर वह सारी रात करवटें बदलती रही. कालेज के जीवन में नेहा ने हर चुनौती खुशी से

स्वीकार की थी पर यह चुनौती जीवनभर का

प्रश्न थी. सुंदर, सरल दिखने वाली नेहा के

मन की दृढ़ता सब जानते थे. अब वही नेहा असमंजस में पड़ गई थी कि क्या करे? सुबह

8 बजे रवि को उसे अपना निर्णय देना था. यह निर्णय उस के पक्ष में नहीं होना चाहिए. उस का दंभ टूटना ही चाहिए, यह सोचतेसोचते नेहा न जाने कब सो गई.

सुबह समन्वय ने ?ाक?ोर कर जगाया, ‘‘दी, क्या पूरी रात सपने देखती रहीं? जीजाजी की मां आई हैं.’’

हड़बड़ा कर नेहा ने रजाई फेंक दी. अस्तव्यस्त सी नेहा के उठने से पूर्व ही रवि की मां ने आ कर उस का माथा छुआ और परेशान हो कर बोलीं, ‘‘बुखार तो नहीं है वरना मेरी नेहा तो कभी इतनी देर तक नहीं सोती, 8 बजने वाले हैं.’’

रवि की मां अकसर वाक पूरी कर के नेहा की मां से मिलने आ जाती थीं और बिना संकोच के चाय पी कर जाती थीं. कई बार तो खुद किचन में चाय बना लेतीं जबकि अपने घर में कभी किचन में नहीं घुसती थीं.

तभी मोबाइल की घंटी सुन नेहा का मन धड़कने लगा. समन्वय ने शैतानी से मुसकरा कर फोन थमा दिया. उधर से रवि की सधी आवाज कानों में पड़ी, ‘‘कहिए नेहा, ठीक से सो सकी हो न? क्या निर्णय लिया तुम ने? क्या मैं बधाई दे सकता हूं तुम्हें?’’

‘‘जी, थैंक्स,’’ कह कर नेहा एकदम हड़बड़ा गई.

उधर से रवि का पूर्ण आश्वस्त स्वर कानों में बज उठा, ‘‘शुक्रिया, आई एम औब्लाइज्ड नेहा,’’ कह कर रवि ने फोन काट दिया.

इधर रवि की मां   के चेहरे पर प्रसन्नता ?ालक उठी थी. वे नेहा की मां से बोलीं, ‘‘देखा, सुबह होते ही फोन कर रहा है, एक हमारे दिन थे,’’ कह कर वे जोर से हंस दीं.

उस के बाद नेहा बहुत व्यस्त हो गई. रवि की मां खरीदारी करने के लिए नेहा को भी साथ ले जाती और रवि तो साथ होता ही था. नेहा

को कभीकभी आश्चर्य होता कि रवि कितनी सहज ऐक्टिंग कर लेता है. सगाई के मौके पर

रवि ने जिद की कि नेहा अपनी पसंद की अंगूठी स्वयं ले.

रवि के साथ अंगूठी खरीदने के लिए खड़ी नेहा ने किंचित व्यंग्य से कहा, ‘‘आप को तो पहले भी अनुभव होगा, अब फिर अंगूठी खरीदने के लिए उल्लास क्यों जता रहे हैं?’’

किंतु रवि ने नेहा की स्वीकृति की मुहर लगवा कर ही अंगूठी खरीदी. अंगूठी पहनाते समय रवि बड़ा सहज रहा. किंतु उस के हाथ के स्पर्श से जब नेहा के तार ?ान?ाना उठे तो वह बुरी तरह ?ां?ाला उठी.

विवाह भी तय हो गया. नेहा को अपने पर कौन्फिडैंस था. उस ने रवि की

बात नहीं बताई किसी को. ब्राइडगू्रम के रूप में रवि का मोहक व्यक्तित्व सब की प्रशंसा और कुछ की ईर्ष्या का कारण बन गया. विवाह की प्रथम रात्रि को न चाहते हुए भी वह संस्कारशील, लज्जाशील वधू बन कर बैठी रही.

कमरे में घुसते ही रवि ने परिहासपूर्ण

स्वर में कहा, ‘‘अरे, यह क्या? आप तो सचमुच ही न्यू ब्राइड लग रही हैं. हम दोनों मित्र हैं, याद है न?’’

लज्जा से नेहा का मन रोने को हो आया.

‘‘खैर, लीजिए जब तम रीति निभा रही हो तो मैं भी उपहार दे कर तुम्हारा घूंघट हटाऊंगा.’’

हाथों में बहुमूल्य हीरे के कंगन पहनाने के प्रयास पर नेहा चिढ़ गई, ‘‘आप के इस उपहार के लिए मैं ने यह वेश धारण नहीं किया. यह तो मां की जिद थी. मेरी ओर से ये कंगन आप अपनी उसी प्रियतमा को दे दीजिए.’’

रवि ने मुसकराते हुए हाथ जबरन पकड़ कर उन में कंगन पहना दिए, ‘‘उस की चिंता तुम्हें नहीं करनी होगी, नेहा. मैं उस की चिंता स्वयं

कर लूंगा.’’

जलती अग्निशिखा सदृश रवि का यह वाक्य नेहा के मन व प्राण को ?ालसा गया. क्रोध से कंगन उतार नेहा नीचे बिछे कालीन पर जा लेटी.

रवि ने स्नेह से पुकारा, ‘‘नेहा, हमारे सम?ौते में ऐसा तो कुछ नहीं था. पलंग काफी बड़ा है.’’

‘‘जी नहीं, मेरी नीचे सोने की आदत है,’’ नेहा बोली.

मगर रवि ने उसे बड़ी सहजता से उठा कर पलंग पर लिटा दिया, ‘‘मेरे यहां तुम्हें कष्ट हो, यह मैं स्वप्न में भी नहीं सोच सकता नेहा.’’

दूसरे दिन प्राय: घर में रवि की मौसी, मामी उत्सुकता से नेहा का मुख निहार रही थीं. उस का अपमान व लज्जा से आरक्त चेहरा और रवि का प्रसन्न मुख उन्हें आश्वस्त कर गया. उन के परिहास नेहा के अंतर में गड़ जाते. अपने को सहज बनाए रख कर नेहा सब छोटेबड़े रीतिरिवाज पूरे करती गई.

इन सब रस्मों में रवि का सहयोग देख नेहा जल रही थी. वह सोच रही थी, पुरुष कितने पाखंडी होते हैं, ऊपर से आज्ञाकारी बनते हैं और अंदर से धूर्त होते हैं. अगर वह रवि की मां को सब बता दे तो? फिर रवि के भयभीत चेहरे को याद कर के नेहा चेष्टापूर्वक होंठों पर आई मुसकान दबा गई.

घर में सबकुछ सहज, सामान्य चल रहा था. मां ने रवि से कहा, ‘‘नेहा को मालदीव

घुमा ला.’’

भयभीत नेहा एकांत की कल्पना से सिमट मां से याचनापूर्ण शब्दों में बोली, ‘‘नहीं मां, मैं तुम्हें यहां अकेले छोड़ कर नहीं जाऊंगी.’’

रवि की दुष्ट मुसकान पर नेहा का सर्वांग जल उठा. वह चाहती थी कि रवि की प्रिया के विषय में कुछ जाने पर रवि ने कभी नेहा से उस विषय में बात ही नहीं की.

फिर भी रवि की अज्ञात प्रिया नेहा के साथ हर पल जीती थी. रात में रवि ने पूछा, ‘‘अच्छा नेहा क्या मैं तुम्हारे लिए सचमुच इतना असाध्य हूं कि  मेरे साथ घूमने जाने की कल्पना मात्र से जाड़ों में भी तुम्हें पसीना आ गया?’’

नेहा ने शांत रह कहा, ‘‘अगर यह सच है तो क्या गलत था? क्या मेरे साथ रहते हुए भी आप हर पल किसी और के साथ नहीं रहते? फिर हमारे सम?ौते में इस तरह के दिखावोें की बात तो आप ने की नहीं थी?’’ कह कर नेहा करवट बदल सोने का अभिनय करने लगी.

नेहा के एक मित्र डाक्टर आनंद उस से मिलने आया. नेहा के विवाह के समय डाक्टर आनंद एक कौन्फ्रैंस में भाग लेने अमेरिका गया था. नेहा उस की बहुत प्रशंसिका थी. रवि का परिचय करा नेहा डाक्टर आनंद से बातों में इस तरह व्यस्त हो गई मानो रवि का अस्तित्व ही

न हो.

डाक्टर आनंद के जाते ही रवि एकदम रिक्त कंठ से बोला, ‘‘अगर तुम्हें उन से इतना लगाव था तो उन से विवाह क्यों नहीं कर लिया?’’

नेहा बड़े शांत स्वर में बोली, ‘‘जिस से बहुत लगाव हो उसी से विवाह किया जाए, यह जरूरी तो नहीं.’’

जैसे ही रवि ने यह सुना वह तिलमिला कर बाहर चला गया.

आनंद प्राय: आता रहता. उस का विनोद स्वभाव रवि की मां को बहुत प्रिय था. इसीलिए मां के आग्रह पर हस्पताल जाने के पूर्व डाक्टर आनंद प्राय: उन के घर आता और रवि की मां

व नेहा के साथ ही कौफी पीता था. वापस जाते समय डाक्टर आनंद को कभीकभी रवि भी

मिल जाता.

रवि आश्चर्यजनक रूप से दफ्तर से जल्दी वापस आने लगा था. उधर नेहा ने परिस्थितियों से सम?ौता कर लिया था. उत्सव, समारोहों में नेहा की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी. कभीकभी पार्टियों में प्रशंसकों से घिरी नेहा को खोज पाना रवि के लिए समस्या हो जाती. जब डांस पार्टियां होती थीं तो अकसर नेहा रवि को छोड़ कर किसी और के साथ नाचना शुरू कर देती.

नेहा का कंठ मधुर था. अब तो मानो उस के गीतों में वेदना साकार हो जाती थी. एक दिन पार्टी में उस ने गाया भी.

रवि उस से बोला, ‘‘तुम इतना अच्छा गा लेती हो, इस का मु?ो पता नहीं था.’’

अपने लिए पहली बार प्रशंसा सुन कर नेहा को अच्छा लगा. संयत, सधी आवाज में बोली, ‘‘मैं क्या हूं यह जानना तो हमारे सम?ौते की शर्त नहीं थी, फिर यह दुख क्यों?’’

उत्तर में कोई व्यंग्य न था पर रवि क्षुब्ध

हो उठा.

रवि के दफ्तर जाते समय नेहा बोली, ‘‘रवि, अगर में क्लीनिक न खोल किसी बड़े अस्पताल में नौकरी कर लूं तो आप को आपत्ति तो नहीं होगी?’’

रवि ने बहुत ही कठोर शब्दों में कहा, ‘‘क्यों घर पर डाक्टर आनंद से मिलने में कोई असुविधा है क्या? पर तुम तो शायद उसी के साथ काम करना चाहोगी. अगर जेबखर्च अपर्याप्त है तो और बढ़ जाएगा पर तुम्हारा अस्पताल में नौकरी करना मुझे कभी स्वीकार न होगा.’’

‘‘ठीक है, मैं पास ही क्लीनिक खोल

लूंगी. और हां, आप का दिया जेब खर्च मैं ने कभी छुआ भी नहीं है. पर वक्त काटना मु?ो कठिन लगता है,’’ कहती हुई नेहा तीर सी कमरे से बाहर चली गई.

दूसरे दिन दफ्तर से आते ही रवि ने मां से कहा, ‘‘10 दिनों का अवकाश ले आया हूं. नेहा से कह दो मालदीव जाना है.’’

सुनते ही नेहा ने उत्तर दिया, ‘‘कल से क्लीनिक खोलने की व्यवस्था करनी है, इसलिए जाना असंभव है.’’

एकांत पाते ही रवि ?ाल्ला उठा, ‘‘हमें

जाना ही होगा, क्लीनिक बाद में खोला जा

सकता है.’’

‘‘आप की स्वतंत्रता में मैं कभी बाधा नहीं बनी. फिर आप ने मेरी स्वतंत्रता का भी आश्वासन दिया था.’’

आवेश में नेहा को जबरदस्ती आलिंगन में ले रवि बोला, ‘‘तुम मेरी पत्नी हो, मैं पति के नाते तुम्हें आज्ञा देता हूं कि तुम्हें चलना है.’’

आश्चर्य से नेहा का मुख खुला का खुला रह गया, ‘‘आप की पत्नी होने

के नाते क्या मैं केवल आप की आज्ञा पालन करने के लिए हूं? कहां गया आप का वादा? जब जी चाहा, पत्नी बना लिया, जब चाहा दूर धकेल दिया,’’ नेहा एकदम फूट पड़ी. कई दिनों का बांध एकसाथ टूट गया.

रवि ने हंसते हुए बड़े स्नेह से नेहा का सिर अपने सीने से चिपका लिया और स्नेहिल हाथों से उस के मुख पर बिखरी जुलफों को हटाते हुए बोला, ‘‘बस हार गईं? आखिर निकलीं न बुद्धू. अरे भई, जब मां ने कहा था कि तुम मु?ा से विवाह करने को उत्सुक नहीं हो तो मेरा अहं आहत हुआ था. मेरा संबंध न किसी और से था न है न होगा. मैं तो मां की तरह बस तुम्हारा पुजारी हूं और रहूंगा. क्या इतना सा सत्य भी तुम मेरी आंखों में नहीं पढ़ पाईं?’’

नेहा आश्चर्य से सिर उठा कर बोली, ‘‘क्या इतने दिनों तक आप मु?ा से भी ऐक्टिंग करते रहे?’’ कहते वह शर्म से लाल हो उठी.

‘‘हां, सच इतने दिन बेकार जरूर गए पर इस रोमांस में क्या मजा नहीं आया नेहा?’’ फिर एक पल रुक रवि ने पूछा, ‘‘सच बताना नेहा, क्या डाक्टर आनंद से तुम्हें कुछ ज्यादा ही

लगाव है?’’

‘‘धत्, वे तो मुझे बड़े भाई जैसे पूज्य हैं. उन्होंने ही तो मुझे डाक्टर बनने की प्रेरणा दी थी.’’

नेहा को अपनी बांहों में समेट स्नेह चुंबन अंकित कर रवि ने पूछा, ‘‘अब मालदीव चलना है या क्लीनिक खोलोगी?’’

नेहा ने लजाते हुए पूछा, ‘‘इतना तंग क्यों किया रवि?’’

‘‘एक नए अनुभव के लिए. अगर उसी पुरातनपंथी ढंग से विवाह कर लेते तो क्या तुम्हारे लिए इतनी चाहत होती? कितनी बार ईर्ष्या से डाक्टर आनंद को पीटने को जी चाहा था.’’

नेहा की चढ़ती भृकुटि देख रवि हंस पड़ा, ‘‘माफी चाहता हूं भूल गया था कि वे पूजनीय हैं. सच, कितनी बार अपने में समेट लेने के लिए जी मचला था पर जब विदेश में था तभी सोच लिया था कि जब तक तुम्हारे मन में अपने लिए चाह नहीं जगा लूंगा, तब तक मात्र आम भारतीयों की तरह पति बन कर अधिकार नहीं लूंगा,’’ फिर हंस कर नेहा को छेड़ा, ‘‘क्यों, कैसा रहा हमारा घर वाला हनीमून?’’

‘‘तुम्हारे हनीमून की ऐसी की तैसी. मां न जाने क्या सोचती होंगी,’’ कहते हुए नेहा अपने को छुड़ा कर नीचे भाग गई.
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