Today Breaking News

कहानी: प्रीत की डोर

पहले दिनभर बोलने वाली मेघा अब शांत सी हो गई थी, बस काम में लगी रहती. कल मेघा ने सही ही तो कहा था. विकास ने पूरा घर उसके भरोसे ही तो छोड़ दिया है. इस बात पर वो कैसे चिढ़ गया था. कहीं मेघा इसी बात से नाराज़ होकर कहीं चली तो नहीं गई? ये ख़्याल आते ही विकास बेचैन हो गया.
विचारों की तंद्रा तीखे दर्द से टूटी. देखा तो चाकू की तेज़ धार उंगली को चीरकर ख़ून की धार निकाल चुकी थी. मेघा दर्द से कराहकर सब्ज़ी काटना छोड़ उठी और सीधे जाकर बैंडेड खोजने लगी. उंगली से खून बह रहा था और दूसरा हाथ तेज़ी से काम कर रहा था. बिस्तर पर लेटे विकास ने सरसरी निगाह दौड़ाई. मेघा को एक बार ये लगा कि शायद मदद मिल जाए, लेकिन बिस्तर पर पड़े-पड़े ही विकास ने पूछा, “कट गया क्या? कितनी बार कहा है ध्यान से काम किया करो. लगाओ अब बैंडेड.” इतना कहकर वो फिर अपने मोबाइल में मग्न हो गया.
मेघा को बैंडेड मिल चुका था, पर अब दर्द जैसे का़फूर हो गया था. कहते हैं चोट अक्सर कई जगह लगती है, पर दर्द सिर्फ़ वहीं महसूस होता है, जहां चोट सबसे ज़्यादा लगी हो. अब कराहते मन ने उंगली की चोट को ढंक लिया था. मेघा बैंडेड लगाए सब्ज़ी काटने फिर पहुंच चुकी थी. जहां खून की बूंदें टपकी थीं, उस जगह को साफ़ किया और वापस सब्ज़ी काटने लगी. इस बार ज़्यादा सावधानी से काट रही थी.
अचानक मां की आवाज़ आई, “अरे… तू बैठ अलग जाकर… कितना खून गिराया है.”
चौंककर देखा, तो एकाएक आंख के सामने सब धुंधला-सा होने लगा. कराहते मन ने ही शायद मां को पुकारा था और कल्पना को सजीव सा सामने ला खड़ा किया था. वरना मां, कहां थीं अब? ये सोच धुंधली होती आंखों को, आंसुओं से धोने लगी.
मां उसकी एक छोटी सी चोट पर भी कितना परेशान हो जाती थीं. अगर एक बार हाथ कटा, तो मेघा को तीन दिनों के लिए किचन निकाला मिल जाता. वो कई बार मां पर झुंझला जाती कि इतनी सी चोट पर ओवर रिएक्ट करती हो. उसे शायद इस ओवर रिएक्शन की या कहें ऐसी परवाह की आदत हो चली थी. पर मां को इस बात की परवाह कहां थी, वरना इस तरह अचानक उसे दुनिया में अकेला छोड़ चली जातीं? मां तो चली गईं, पर उनकी आदत कहां जाती है.

ये सब सोचते हुए मेघा के हाथ यंत्रबद्ध तरीक़े से काम कर रहे थे. सब्ज़ी भी बन चुकी थी और अब रोटी बनाकर टिफिन भरने लगी थी. ये रोज़ सुबह का काम था. जल्दी उठकर आकाश को उठाना, नहलाना, तैयार करना और इसी बीच उसके लिए नाश्ता और टिफिन तैयार करना. इतना करते- करते आकाश की बस का समय हो जाता और दौड़ते-भागते उसे छोड़कर आई मेघा के पास एक पल भी गंवाने के लिए नहीं होता. आते ही नहाती, खाना बनाती जाती और इसी बीच पूजा करती. साथ में मोबाइल में डूबे विकास को समय का भान भी करवाती.
टिफिन भरकर ऑफिस की ओर भागना होता, तो अक्सर उसका नाश्ता, खाना सब ताक पर होता. अगर ट्रेन में सीट मिल जाती, तो किसी तरह रोटी-सब्ज़ी का रोल गले से नीचे उतार लेती, वरना ऑफ़िस में लंच टाइम में ही उसे कुछ खाने का मौक़ा मिलता.
आज मेघा ट्रेन में चढ़ी, तो सामने ही एक खाली सीट जैसे उसे बुला रही थी. एक बार को थके कदमों से भागकर उस ओर बढ़ी, फिर देखा एक बुज़ुर्ग महिला धीरे-धीरे सीट की ओर बढ़ रही है. मेघा ने दौड़कर सीट पर अपना बैग रख दिया और आंखों के इशारे से उस बुज़ुर्ग महिला को बता दिया कि उनके लिए ही बैग रखकर सीट रिज़र्व कर दी है. सीट पाकर आधे दांतों वाले मुंह पर जो क्यूट मुस्कान आई, मेघा को अंदर तक भिगो गई. मां भी नकली दांत निकाल देती थीं, तो ऐसे ही हंसती थीं. मुस्कान-आंसू सब एक साथ ही बह निकले, वो दरवाज़े के पास टिककर खड़ी हो गई.
मां ने फोन पर न जाने कितनी बार कहा था कि मेघा एक बार आकर मिल ले. पर वो अपनी गृहस्थी और काम के चक्कर में जाने का सोच भी न पाई. आकाश की पढ़ाई, घर के काम, ऑफिस, विकास का काम, न जाने कितनी बेड़ियां उसने पैरों में कस रखी थीं, जो उसे बढ़ने से रोक लिया करतीं.
मिलने की आस लिए मां चली गईं और वो आख़िरी दर्शन तक नहीं कर पाई. जैसे मां ही रूठकर उसे आख़िरी दर्शन के लिए भी न आने दीं.
मां के जाने के बाद से ही, वो हर पल यही सोचती रही कि मां के जाने के बाद जो छुट्टियां लीं, वो पहले ले ली होती. तो शायद उसे ये मलाल नहीं होता. अचानक अपने हाथों पर एक स्नेह भरा हाथ महसूस हुआ. चौंककर देखा, तो वही बुज़ुर्ग महिला थीं.
“सब ठीक है?” उनकी नज़रें मेघा पर टिकी थीं.
मेघा ने सवालिया नज़रों से उन्हें देखा, तो महिला ने उसके रोने की ओर इशारा किया. मां के विचारों में खोई मेघा के आंसू कब बहे, उसे ख़ुद आभास नहीं हुआ. डिब्बे की सारी महिलाएं उसे ही देख रही थीं. आंसू पोंछते हुए जबरन मुस्कुराकर मेघा ने कहा, “मां की याद…”
“मिल आओ.”
“देर हो गई…” किसी तरह मेघा भर्राये गले से इतना ही कह पाई.
बुज़ुर्ग महिला ने उसके कंधे पर हाथ रखा और अपने स्टेशन पर उतर गईं. उनके उतरते ही एक के बाद एक धड़-धड़ाकर महिलाएं डिब्बे में चढ़ने लगीं और मेघा एक ओर हो गई. कुछ इसी तरह उसका दुख भी रोज़ एक ओर हो जाता और वो काम में लग जाती. पर हर ख़ाली समय में मां की कोई न कोई याद उसे भिगो जाती.
मां मेघा का सपोर्ट सिस्टम रहीं. मेघा ने उन्हीं के सहारे अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ अचीव किया. पढ़ाई के साथ-साथ अलग-अलग तरह के शौक रखने की बातें भी मां मेघा को सिखातीं.
मां कहतीं, “परिवार-बच्चे सब होंगे. उनके लिए वक़्त लगाती रहोगी. फिर एक दिन बच्चे बड़े होकर अपने काम में लग जाएंगे और मेरी तरह अकेली रह जाओगी.”

“मां ऐसा भी क्या? मुझे अकेलापन ख़ूब भाता है, मैं तो जी भरकर सोऊंगी.” मेघा इठलाकर कहती.
“कितने दिन? हर दिन एक सा लगेगा फिर? मेघा, अपने शौक पाल, उन्हें साथ लेकर चल, तभी अकेले में भी सुकून होगा.”
मां की इन बातों ने ही मेघा को कुछ करने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.
जब भी कमज़ोर पड़ती, तो मां ही उसका साथ देतीं. आकाश के पैदा होने के बाद भी मां ने उसका ऐसा ख़्याल रखा कि मेघा जल्द ऑफिस लौट पाई. वैसे मेघा ने कई बार घर-परिवार की ज़िम्मेदारियों को देखते हुए काम से ब्रेक लेने का मन भी बनाया. हर बार मां उसे रोक देतीं और कहतीं, “घर बैठी क्या करेगी? कम से कम, काम के बहाने घर से बाहर कहीं जाती तो है. घर से ऑफिस जाते कितने अपरिचितों से परिचय होता है.”
वैसे मां सही ही कहती थीं. कम से कम जिस तरह से आज ट्रेन में मिली आंटीजी ने उसके आंसू देख उसका हाल पूछा. कितना अपनापन था उनकी आंखों में. ऐसे अपनेपन से मिले उसे न जाने कितना समय हो गया है. विकास तो अब उसे किसी अजनबी की तरह लगने लगा था.
विकास और मेघा की शादी तो अरेंज ही थी. लेकिन सगाई से शादी के बीच के एक महीने में दोनों की अक्सर मुलाक़ात होती. उसे आज भी याद है शादी के दिन सभी उसे ये कहकर छेड़ रहे थे कि उनकी शादी अरेंज से ज़्यादा लव वाली लग रही है. मेघा ये सुन-सुनकर सामने भले ही शरमा रही थी, लेकिन मन ही मन विकास को लेकर इठला रही थी. अब उसे कई बार आश्‍चर्य होता है कि ये वही विकास है, जो उसकी एक ’आह’ पर परेशान हो जाया करता था और आज कटी उंगली से बहते खून से भी विचलित नहीं होता. आकाश के होने के बाद वो पारिवारिक ज़िम्मेदारियों में उलझी रही और उनके बीच ये दूरी कब और कैसे आई, उसे ये अंदाज़ा भी नहीं हुआ.

अचानक तेज़ हॉर्न की आवाज़ से विचारों से बाहर आई. मेघा बीच सड़क खड़ी की खड़ी रह गई. ज़रा संभली तो सड़क के किनारे हो गई. कुछ देर इधर-उधर देखकर जायज़ा लिया कि आख़िर वो है कहां. यंत्रबद्ध तरीक़े से अपने स्टेशन उतर वो रोज़ के रास्ते से ऑफिस की ओर चल पड़ी थी. थोड़ा संभली भी नहीं थी कि अचानक बैग में रखा फोन बजने लगा. उसकी हड़बड़ाहट इतनी बढ़ गई कि फोन पर नाम नंबर देखे बग़ैर एक ही सांस में कह उठी, “सर! वो ट्रेन छूट गई थी. रियली सॉरी.. बस स्टेशन से…”
“सच में ट्रेन जैसे ही छूट गई तू तो… हा हा हा…” दूसरी ओर से उन्मुक्त हंसी के साथ ये बात सुनकर मेघा चौंककर फोन दूर कर नंबर देखने लगी.
“सयाली तू? सॉरी यार मुझे लगा कि ऑफिस से कॉल होगा.”
“हमारी शेरनी तो गीदड़ बन गई है. लगता है तुझे फिर जंगल में बुलाने का टाइम आ गया है.” सयाली अपने अंदाज़ में बोली जा रही थी. उसकी बात आधी अनसुनी करते हुए मेघा ऑफिस की ओर कदम बढ़ाते हुए बोली, “हां… हां…”
“क्या हां.. हां? अरे तुझे आना है इस बार, वरना अगली बार गीदड़ की जगह बकरी बनते देर नहीं लगेगी तुझे.”
“कहां आना है? क्या बोल रही है? मुझे कुछ समझ भी नहीं आ रहा है.” मेघा झुंझला उठी
“कॉलेज गेट टुगेदर में… बताया तो था, याद नहीं है?” सयाली की आवाज़ में मायूसी सी भर आई.
“सयाली, मैं बाद में कॉल करूं? आज ज़रा लेट हो गई हूं.”
“अरे, सुन तो..?”
“बाय…” कहकर मेघा ने फोन रख ही दिया.
ऑफिस से लौटते समय मेघा के मन में सयाली की बात घूम रही थी. पिछले हफ़्ते ही उसने कॉल किया था और गेट टुगेदर की बात बताई थी.
वो कैसे जा सकती है. यहां घर-ऑफिस सब तो उसके ज़िम्मे है. आकाश की पढ़ाई, विकास का ऑफिस, सब कुछ जाने कैसे होगा? और अब वो पहले वाली मेघा भी कहां रही है. वो तो अब शायद रही ही नहीं.
ऑफिस से घर लौटने के बाद मेघा चाय का कप लेकर बैठी. यही वो वक़्त होता था जब कुछ देर को वो बैठ पाती थी. आकाश अपनी फुटबॉल क्लास के लिए गया होता और विकास ऑफिस से लौटा नहीं होता. बस इन कुछ पलों को मेघा बिना कुछ सोचे शांत बैठकर बिता देना चाहती. हर बार कोई न कोई याद उसे घेर लेती और वो उन ख़्यालों में गुम हो जाती. आज ऐसा कुछ हो, उसके पहले ही फोन रिंग होने लगा. स्क्रीन पर सयाली का नाम देखकर मेघा ने फोन उठाना स्थगित कर दिया.

फोन पर मिस कॉल का नॉटिफिकेशन चमका और अगले ही पल व्हाट्सएप पर संदेश भी आ गया. उसने बस ऊपर से ही बड़ी सावधानी से पढ़ लिया. सयाली का ही मैसेज था गेट टुगेदर के सवाल के साथ. मेघा यही सोचती रही कि आख़िर वो जाना चाहती है या नहीं? पर उसके मन ने कहा कि वो जा ही नहीं पाएगी, तो इसके बारे में सोचने का मतलब ही क्या है?
देर रात आकाश को सुलाकर, घर के सारे काम निपटाकर जब कमरे में आई, तो विकास अपने फोन से चिपका हुआ था. मेघा ने सरसरी निगाह दौड़ाई और अपनी ओर के बिस्तर पर पड़ गई. आंखों से नींद ओझल थी, मन कहीं विचर रहा था. वाक़ई बिस्तर के दो छोर कई बार दो अलग दुनिया ही होते हैं. अचानक उसे क्या सूझी कि उसने इस दो छोर पर बसी दोनों दुनिया के बीच एक वार्ता का मार्ग खोला.
“सुनो…”
“हूं…” अपने फोन में खोया विकास यूं ही बोला.
“मैं सोच रही हूं कुछ दिनों के लिए कहीं चली जाऊं.” मेघा ने जैसे मन की उधेड़बुन को शब्द दे दिए.
“कहां?” विकास ने अचानक उसकी बात पर ध्यान दिया.
“कहीं भी. सयाली का कॉल आया था, वो गेट टुगेदर है, तो…” मेघा ने अटकते हुए कहा.
“जा रही हो?” विकास जैसे अब पूरी तरह से फोन से बाहर आ गया था.
“कहां? मैं गई तो यहां का क्या होगा?” मेघा ने सुनाने के अंदाज़ में कहा.
“यहां का क्या होगा, का क्या मतलब है? हम हैं न. ऐसा भी नहीं है कि सब तुम ही करोगी तो होगा, यहां सब आराम से हो जाएगा. वैसे भी आधे दिन तो हम सब घर के बाहर ही रहते हैं.” विकास का ये अंदाज़ मेघा को बिल्कुल नहीं भाया. वो चिढ़ती हुई सी बोली, “हां… हां… मैं करती ही क्या हूं? मेरे बिना सब हो ही जाएगा. एक दिन न रहूं न तो पता चले. घर में तिनका भी न टूटे.”
“अब ऐसा भी नहीं है. मैं भी सब कर सकता हूं. तुम्हारे आने के पहले सब मैं ही करता था. मेरे हाथ की दाल दोस्तों के बीच आज तक फेमस है. तुमने भी तो सुना है, अजीत, फरहान सब कहकर गए हैं तुम्हें.”
“जो हमने चखा भी नहीं उसकी तारीफ़ चाहे कोई करे, हमें क्या मतलब है? न हमें कभी खाने मिली और न हमने कोई काम देखा. झूठी तारीफ़ों के पुल भले कोई बांधे.”
मेघा को पता था कि विकास अपनी बनाई दाल की बुराई नहीं सुन सकता. पर वो भी अपने किए काम का क्रेडिट छीने जाने से व्यथित हो, जान-बूझकर वार कर रही थी. कहां तो बिस्तर के दो भागों में बसी दोनों दुनिया के बीच संधि मार्ग बनाना था और कहां अब सीमा रेखा तय होने लगी.
“मेघा! अब बहुत हो रहा है. तुम्हें क्या लगता है तुम्हारे बिना घर चल ही नहीं सकता? इस भुलावे में मत रहो. जहां जाना हो जाओ, मैं आराम से घर-ऑफिस सब देख सकता हूं, बल्कि तुमसे शादी के पहले अपनी घर गृहस्थी भी अच्छी बसा रखी थी. मजाल है जो कभी बाहर का खाना खाया हो. ख़ुद खाता था, लोगों को भी खिलाता था.”
“जब चली जाऊंगी तब पता चलेगी, गृहस्थी.” कहकर मेघा दूसरी तरफ़ मुंह किए सोने का नाटक करने लगी. मन ही मन बड़बड़ाती हुई उसने बिस्तर के एक ओर की अपनी दुनिया की सीमा रेखा न सिर्फ़ गाढ़ी कर ली, बल्कि सिर तक चादर तान के उस सीमा रेखा पर बाड़ भी लगा दी. विकास भी सीमा के उस पार अपनी दुनिया में मोबाइल में गुम हो गया.
“पापा.. पापा.. उठो न?” आकाश की आवाज़ से विकास चौंककर उठा. देखा तो हल्की रोशनी सुबह का संदेश दे रही थी. आकाश के चेहरे पर मायूसी देखकर विकास हड़बड़ा के उठ बैठा, “क्या हुआ?”
“मम्मी घर में नहीं हैं.” आकाश रुआंसा होकर बोला.
“नहीं है? वॉशरूम में होगी.. देखा तुमने?”
आकाश ने हां में सिर हिलाया. विकास सोचते हुए बोल उठा, “बाज़ार गई होंगी.”
“सुबह तो मम्मी बाज़ार जाती ही नहीं, उनको कितना सारा काम होता है.” आकाश मम्मी के सेक्रेटरी की तरह बोला. विकास बिस्तर से ही आवाज़ लगाने लगा, “मेघा… मेघा… रुको ज़रा… मम्मी को फोन कर लेते हैं.” ये कहकर विकास ने जैसे ही फोन लगाया कि हॉल में रिंग सुनाई देने लगी. आकाश हॉल की ओर ख़ुशी से भागता हुआ चिल्लाया, “मम्मी…”
विकास के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई, लेकिन हॉल में जाकर देखा तो आकाश मेघा का फोन लिए मायूस खड़ा था.
“मम्मी का फोन तो यहीं है.”
विकास ने आकाश से मेघा का फोन लिया और उसे गले लगा लिया. अब विकास को भी घबराहट होने लगी. आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि मेघा इस तरह उसे बिना कुछ कहे कहीं गई हो. इतनी सुबह तो वो कहीं भी नहीं जाती.
विकास ने पहले आकाश को दूध और ब्रेड दिया और फिर उसके पास बैठकर एक के बाद एक उन सभी को कॉल करने लगा जिनके पास मेघा हो सकती थी.
आकाश दूध-ब्रेड को हाथ लगाए बगैर अपने पापा की ओर सवालिया नज़रों से देख रहा था. पांच-सात जगह फोन करने पर जब मेघा के बारे में कुछ पता नहीं चला, तो विकास भी बेचैन होने लगा.
तभी मेघा के फोन पर सयाली का कॉल आया. विकास ने तुरंत फोन उठाकर उसे सारी बात कह दी. पर सयाली ने बताया कि मेघा ने उससे बात नहीं की, बल्कि जब मैसेज का जवाब भी नहीं आया, तो उसने ख़ुद हाल जानने के लिए मेघा को कॉल लगाया है. सयाली ने इन बातों के बीच विकास से सवाल किया, “विकास, तुम दोनों के बीच कुछ लड़ाई वग़ैरह तो नहीं. सॉरी वो बस मैं मेघा को लेकर परेशान हो गई थी, इसलिए पूछ बैठी. डोंट माइंड.. वो शायद आसपास ही होगी. मैं भी पता करती हूं दोस्तों से, शायद किसी से बात की हो. जैसे ही पता चले मुझे कॉल करना.” कहकर सयाली ने फोन रख दिया.
इधर विकास को अचानक याद आया कि कल रात ही तो उनके बीच बहस हुई थी. पर ऐसा तो कई बार हो जाया करता है. शायद यही तो अब उनके बीच की बातचीत रह गई है, वरना मेघा दिनभर घर के कामों में व्यस्त रहती है. फिर ऑफिस का काम. आकाश भी उसे नचाए रखता है. जब तक वो फ्री होती है तब तक विकास सोना चाहता है.
साल दर साल उनके बीच बातचीत जैसे बंद ही होती जा रही है. पहले कैसे वो एक-दूसरे के लिए वक़्त निकाला करते थे. आकाश के आने के बाद धीरे-धीरे मेघा का पूरा ध्यान आकाश पर ही लग गया. जब भी वो साथ होती, तो भी आकाश के साथ ही लगी रहती. विकास ने भी जैसे अपने दोस्तों के बीच वापस अपनी दुनिया ढूंढ़ ली.
पहले दिनभर बोलने वाली मेघा अब शांत सी हो गई थी, बस काम में लगी रहती. कल मेघा ने सही ही तो कहा था, विकास ने पूरा घर उसके भरोसे ही तो छोड़ दिया है. इस बात पर वो कैसे चिढ़ गया था. कहीं मेघा इसी बात से नाराज़ होकर कहीं चली तो नहीं गई?

ये ख़्याल आते ही विकास बेचैन हो गया. उसने एक बार मेघा का फोन खंगाला कि शायद कुछ पता चले कि आख़िर मेघा कहां गई है? उसे कहां ढूंढ़ा जा सकता है? देखा तो मेघा के फोन में कई मैसेज बिना पढ़े यूं ही रखे थे. आधे से ज़्यादा सिर्फ़ इस शिकायत के कि मेघा उनसे बात ही नहीं करती. विकास को ग्लानि सी हो आई. मेघा को ज़रा भी समय नहीं मिलता और वो बस शिकायत ही करता रहता है. विकास मेघा का फोन पकड़े कह उठा, “मेघा, कहां हो तुम? एक बार आ जाओ, मैं सब ठीक कर दूंगा.”
तभी दरवाज़े की घंटी सुनकर आकाश दौड़ पड़ा. उसके पीछे-पीछे विकास भी लगभग भागता हुआ पहुंचा. दरवाज़ा खोलते ही सामने मुस्कुराती हुई मेघा खड़ी थी. उसे देखते ही आकाश उससे लिपट गया. विकास ने लगभग डांटते हुए पूछा, “कहां गई थी तुम? फोन भी घर पर छोड़ दिया, कोई पता करे तो कैसे, ज़रा भी फ़िक्र नहीं है किसी की?” मेघा ने विकास को आश्‍चर्य से देखा. तभी आकाश ने मेघा से कहा, “मम्मी, मैं तो आपको कब से ढूंढ़ रहा था. पता है, पापा भी कितने टेंशन में आ गए थे. कितने सारे फोन भी किए, पर किसी को पता ही नहीं चला.आप कहां थीं?”
“तुम नौ बजे उठाने से नहीं उठते. आज इतनी जल्दी कैसे उठ गए?” मेघा ने आकाश का सिर सहलाते हुए कहा और विकास की ओर नज़र डाली. विकास ग़ुस्से में होने का बहाना तो कर रहा था, लेकिन उसकी नज़र मेघा पर ही टिकी थी.
मेघा ने मुस्कुराकर कहा, “मैंने कल सुबह ही बताया था न कि अब से रोज़ योग क्लास जाऊंगी? दोनों को कहा था न? मेरी बात सुनते नहीं हो दोनों. चलो, जल्दी से नाश्ता बनाती हूं.” कहकर मेघा अंदर जाने को हुई कि विकास ने उसे अपनी ओर खींचकर गले लगा लिया. न जाने कैसे रोकते हुए भी विकास की आंखों से आंसू बह ही निकले. मेघा विकास को ऐसे देख हैरान थी.
“विकास? प्लीज़… क्या हुआ?.. तुम…”
“सॉरी मेघा! मैं आज के बाद तुम्हें इस तरह अकेले नहीं रहने दूंगा. मैं सब ठीक कर दूंगा. मैंने तुम्हारा ध्यान नहीं रखा.”
मेघा अब विकास को सोफे पर बिठा उसके पास बैठ गई थी. पास खड़े हैरान होते आकाश को उसने इशारे से पानी लाने कहा.
“विकास, क्या हुआ है? तुमने मेरा ध्यान रखा है. तुमसे मैंने कब ऐसा कुछ कहा? वो तो कल यूं ही ग़ुस्से में… सॉरी.”
“नहीं मेघा, आय एम सॉरी! जानती हो, आज जब तुम नहीं दिखी, तो मुझे पता चला कि तुम नहीं होगी तो ये घर, ये दुनिया कितनी खाली होगी. तुम हमारी ताक़त हो. लेकिन हम तुम्हारा बंधन बने हुए हैं.”
“ऐसा कुछ नहीं है.” मेघा ने विकास को संभालते हुए कहा. पानी का ग्लास लाया आकाश भी विकास को देख रहा था. विकास ने पानी पिया और आकाश को अपनी गोद में बिठाया.
“आकाश, तुम्हारी मम्मी अपने फ्रेंड्स से मिलने जाना चाहती हैं. क्या हम दोनों मिलकर कुछ दिन के लिए घर संभाल लेंगे? क्या आप पापा के साथ रहोगे?” मेघा की आंखें भरने लगीं.
आकाश ने न में सिर हिलाते हुए कहा, “मम्मी के बिना घर अच्छा नहीं लगता है, पापा.”

“जानता हूं, तुम्हारी मम्मी के बिना तो मुझे भी अच्छा नहीं लगता है. पर मम्मी को भी तो ब्रेक चाहिए न. तुम स्कूल के बाद फुटबॉल खेलने जाते हो, पापा ऑफिस के बाद अपने फ्रेंड्स से मिलते हैं. मम्मी को भी तो अपने फ्रेंड्स से मिलने का मन करता है.” विकास की बात सुनकर आकाश ने मेघा को देखा और अपने नन्हें से मन में कुछ विचारकर बोला, “ओके, पर मम्मी आप अपना फोन लेकर जाना. और रात में एक बार सोने के टाइम मुझे वीडियो कॉल करना, ठीक है?”
मेघा ने भरी हुई आंखों के साथ सिर हिलाकर हामी भरी और आकाश को अपने गले से लगा लिया.
“अरे… अरे… ये मम्मी-बेटे के प्यार में पापा को क्यों भूल गए भई?” विकास, मेघा और आकाश को इकट्ठे गले लगाता हुआ बोला. आकाश खिलखिला उठा. मेघा ने विकास के कंधे पर अपना सिर टिका दिया और हौले से उसके कान में कहा, “मैंने सुना था कि योग के बहुत फ़ायदे हैं, लेकिन ऐसे फ़ायदे भी हैं, ये आज पता चला.” मेघा की बात सुन विकास ने ठहाका लगाते हुए कसकर दोनों को गले लगा लिया.-नेहा
'