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कहानी: सांझ

टैलीविजन पर चल रहे डा. अनीता के प्रोग्राम को देख राजीव सकते में आ गया क्योंकि उस की तो हवाई दुर्घटना में मौत हो चुकी थी पर अपने सामने देख राजीव उसे पहचान गया. आखिर क्या था डा. अनीता का सच?
अपने चश्मे को रूमाल से साफ करने के बाद टैलीविजन के साउंड को भी बढ़ा लिया था उस ने पर जब इतने से भी तसल्ली न हुई तो अपनी कुरसी को खींच कर टैलीविजन के बिलकुल नजदीक सरक आया था वह, जैसे अचानक ही अपने देखनेसुनने की क्षमता पर से उस का यकीन खत्म हो गया हो.

हालांकि उम्र की इस दहलीज पर देखनेसुनने की ताकत थोड़ी कम जरूर हो जाती है, यादें भी धुंधली पड़ जाती हैं पर इतनी भी नहीं कि उसे वह पहचान ही न पाता.

इस वक्त अपनी टीवी स्क्रीन पर वह जो कुछ भी देखसुन रहा था, शायद उस पर यकीन नहीं कर पा रहा था.

‘‘डा. अनीता. हां, हां अनीता. हां, बिलकुल अनीता ही,’’ इस टीवी एंकर ने अभीअभी यही नाम पुकारा है. लेकिन, वह तो उस प्लेन क्रैश में…

सहसा उस की आंखों में आंसू आ गए. खबर तो उसे यही मिली थी कि अमेरिका के लिए उड़ान भरने वाला वह प्लेन, जिस में डा. अनीता भी सवार थी, क्रैश हो गया.

डा. अनीता, जिसे वह अब तक मरा हुआ समझ रहा था, अचानक उसे टीवी स्क्रीन पर देख वह अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पा रहा था.

‘‘डा. अनीता सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक पहचान हैं. एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें हिमाचल प्रदेश के छोटे से छोटे गांव, कसबे के लोग अपने मसीहा के रूप में पहचानते हैं. आज का हमारा यह कार्यक्रम, ‘जीना इसे ही कहते हैं’ में हम आप की मुलाकात कराने जा रहे हैं, हमारी आज की मेहमान डा. अनीता से.

‘‘डा. अनीता, हमारे इस कार्यक्रम में आप का स्वागत है.’’

‘‘जी, शुक्रिया.’’

हलके रंग की साड़ी में बेहद संभ्रांत दिखने वाली अधेड़ उम्र की एक महिला को टीवी एंकर डा. अनीता कह कर संबोधित कर रही थी.

टीवी कार्यक्रम में अनीता द्वारा बोले जा रहे एकएक शब्द उस के मन को बेचैन कर रहे थे. सालों से शांत पड़े सरोवर में, जैसे किसी ने कंकड़ फेंक दिया हो, जिस में से उठती हुई तरंगें उसे पीछे, बहुत पीछे धकेल रही थीं, जिस का केंद्र उस का अतीत था.

यादों के पन्ने एक बार पलटे तो पलटते चले गए. साथ ही, जीवंत हो उठे उन पन्नों में अंकित वे चित्र, जिन पर वक्त ने अपने पहियों की धूल डाल दी थी.

यादों की आंधियां चलीं तो वह किसी पेड़ से गिरे पत्ते की भांति यहां से वहां अतीत की टेढ़ीमेढ़ी गलियों में भटकने को मजबूर हो गया.

देवदार के पत्तों से ढके हुए रास्तों से होता हुआ वह रोहतांग पास, लेह, मनाली जा पहुंचा था, जहां प्रकृति इस वक्त खुद को चांदी के आभूषणों से सुसज्जित किए हुए थी. प्रकृति की इस सुंदर आभा को पहाड़ों की ओट से छिप कर सूरज भी चुपकेचुपके निहार रहा था और उस पर मोहित हो कर स्वर्ण लुटा रहा था. जहां भी नजर जाती, सभी ओर बर्फ ही बर्फ. उन पर पड़ती सूरज की किरणें एक अलग ही दृश्य उपस्थित कर रही थीं.

प्रकृति के इस अनुपम सौंदर्य पर मुग्ध होता हुआ वह अपने ही विचारों में खोया था कि आवाज आई, ‘गाड़ी अभी आगे नहीं जा सकेगी, आगे का रास्ता बंद है. रास्ता खुलने में कुछ घंटे लग सकते हैं.’

ड्राइवर ने अचानक गाड़ी का इंजन बंद कर दिया.

उस ने अपने इर्दगिर्द नजर दौड़ाई, गाडि़यों की एक लंबी कतार थी, सभी रास्ता खुलने का इंतजार कर रहे थे. लड़कियों का एक दल आगे खड़ी बस से उतर कर उछलकूद मचाते हुए एकदूसरे पर बर्फ का गोला फेंक रही थीं. कुछ देर तक तो वह गाड़ी में ही बैठा बाहर के दृश्यों को निहारता रहा, लेकिन थोड़ी ही देर बाद वह भी गाड़ी से उतर कर बाहर निकल आया था वहां के दृश्यों को अपनी आंखों में कैद करने के लिए.

बाहर काफी ठंड थी, इतनी कि पेड़, पहाड़, पौधे सभी सफेद चादरों में दुबके हुए थे. लेकिन, इतनी ठंड में भी वहां के खूबसूरत नजारों का लुत्फ हर कोई उठाना चाहता था.

बर्फ की सफेद चादर में लिपटे हुए पेड़ों के पत्ते कहींकहीं ऐसे मालूम होते थे मानो प्रकृति के इन सुंदर नजारों को देखने के लिए इन पेड़ों ने भी अपनेअपने मुख से सफेद चादर के कुछ हिस्सों को थोड़ा सा सरका लिया है.

‘उई मां, हाय, मर गई,’ किसी के चीखने की तेज आवाज पर वह मुड़ कर देखता है. तसवीर खींच रही एक लड़की का पैर बर्फ में फिसल गया था. वह लड़की एक हाथ से कैमरे को थामे बर्फ में फिसलती हुई सहारे के लिए दूसरे हाथ से किसी पेड़ की टहनी को पकड़ने की कोशिश कर रही थी.

उस ने लपक कर उस लड़की का हाथ थामा और अपनी ओर खींच लिया था. लड़की की बड़ी काली आंखों ने उस की ओर कृतज्ञता से देखा और पलभर बाद वह खुद को संभालती हुई उस से थोड़ी दूरी पर जा कर खड़ी हो गई.

एक पल के लिए तो दोनों एकदूसरे को खामोशी से देखते रहे, लेकिन दूसरे ही पल वह लड़की झक कर अपनी टूटी हुई सैंडल को ठीक करने में लग गई. थोड़ी देर तक तो वह वहीं खड़ा उस लड़की को अपलक देखता रहा, परंतु अगले ही पल उसे महसूस हुआ कि अकारण ही खड़े रह कर किसी को यों ही चुपचाप देखते रहना बेवकूफी है. इसलिए खुद के खड़े रहने का कोई औचित्य न समझ कर वह वहां से जाने के लिए अपने कदम दूसरी दिशा में आगे बढ़ाने ही वाला था कि तभी लड़की ने अपनी गरदन उठा कर उस की तरफ देखते हुए कहा, ‘मेरी जान बचाने के लिए शुक्रिया.’

‘अगर आज आप वक्त पर मौजूद नहीं होते तो मालूम नहीं मेरे साथ क्या हो जाता, इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद मेरी हड्डीपसली एक हो जानी थी.’ इतना कहते हुए उस के होंठ मुसकरा उठे.

‘लेकिन आप को यह जोखिम उठाने की जरूरत क्या थी, यह जगह तो किसी के लिए भी खतरनाक साबित हो सकती है, यहां इतनी फिसलन जो है.’

‘मैं उस खूबसूरत नजारे को अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहती थी,’ लड़की ने अपनी उंगलियों के इशारे से पहाड़ी के नीचे के उस खूबसूरत नजारे की ओर इशारा किया.

‘तो, आप फोटोग्राफर हैं?’

‘नहीं, मैडिकल फाइनल ईयर की स्टूडैंट हूं. तसवीरें खींचना मेरा शौक है.’

‘आप का नाम?’

‘मुझे जानने वाले, मेरी सहेलियां, मु?ो प्यार से अनु बुलाती हैं. वैसे, मेरा नाम अनीता है. छुट्टियों में मैं अपने घर मनाली जा रही हूं.’

‘और, मुझे मेरे करीबी दोस्त राजू बुलाते हैं. वैसे, मेरा नाम राजीव है. मैं छुट्टियों में यहां घूमने आया हूं.’

‘कितने दिन का प्रोग्राम है.’

‘2-4 दिनों का है.’

‘इतने कम समय में आप भला क्या ही घूम पाएंगे. यहां की खूबसूरती देखने के लिए तो एक हफ्ते का समय भी कम है.’

‘यह तो मैं अभी यहां इस वक्त खड़ा देख ही रहा हूं.’

‘क्या?’ उस ने आश्चर्य से उस की ओर देखा

‘खूबसूरती, मेरा मतलब है ये नजारे. सच में कितने खूबसूरत, कितने हसीन हैं, हैं न?’

अनीता की आंखें कुछ पल के लिए झुकी और हौले से उठ कर राजीव के चेहरे पर टिक गईं.

‘आप बातें काफी अच्छी बना लेते हैं. लेखक हैं?’ अनीता ने जिज्ञासाभरी नजरों से देखा.

‘नहीं, अभीअभी एमबीए की पढ़ाई पूरी की है. दिल्ली में मेरे पापा का बिजनैस है. उसे ही संभालना है. वैसे, मैं यहां हफ्तेभर रुकने को तैयार हूं, लेकिन शर्त है कि आप मेरी गाइड बनेंगी.’

‘मुझे आप की शर्त मंजूर है. वैसे, आप मनाली में कहां ठहरने वाले हैं?’

‘होटल ली ग्रीन, माल रोड.’

‘फिर तो आप मेरे घर के बिलकुल ही नजदीक हैं. मेरा घर वहां से कुछ ही दूरी पर है.’

मनाली में साथ बिताया गया पल अनीता और राजीव के जीवन में प्रेम का शिलान्यास साबित हुआ, जिस पर दांपत्य जीवन की इमारत खड़ी हुई, लेकिन यह इमारत महज कुछ ही सालों में ढह गई.

‘‘बाबूजी, खाना लगा दूं?’’ घर के नौकर ने उस के कमरे के दरवाजे पर आ कर जब आवाज लगाई तो वह वर्तमान में लौट आया. घड़ी की ओर नजर दौड़ाई, रात के 9 बज रहे थे.

‘‘नहीं, अभी नहीं, अभी भूख नहीं है. दिवाकर आ गया क्या?’’ सवाल पूछते हुए उस ने अपनी गरदन दरवाजे की ओर घुमाई.

‘‘नहीं,’’ नौकर ने दरवाजे से ही उत्तर दिया, ‘जबकि मालूम है कि साहब बाहर से ही खाना खा कर देररात तक लौटते हैं, फिर भी आदत से मजबूर हैं. एक ही सवाल हर रोज पूछते हैं,’ नौकर मन ही मन भुनभुनाता हुआ वहां से चला जाता है.

‘खाना समय पर खा लेते तो किचन के काम से मेरी भी छुट्टी हो जाती. आज तक तो बापबेटे को कभी डाइनिंग टेबल पर साथ बैठे देखा नहीं, फिर भी बेटे का इंतजार खाने के समय रोज ही करते हैं,’ किचन के दूसरे कामों को निबटाते हुए रामदीन बड़बड़ाता जा रहा था.

‘‘हिमाचल प्रदेश के दुर्गम पहाड़ी स्थानों में बिना किसी बुनियादी सुविधा के स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं लोगों तक पहुंचना काफी चैलेंजिंग रहा होगा, काफी हिम्मत और हौसले की जरूरत होती है, बिना किसी मोरल सपोर्ट के यह संभव नहीं. अनीताजी, हमारे दर्शक आप से जानना चाहेंगे उन लोगों के बारे में जिन्होंने आप को प्रेरित किया, आप के हौसले को बढ़ाया.’’

‘‘मैं सब से पहले जिक्र करना चाहूंगी मेरे दोस्त, डाक्टर विनय का जो अब इस दुनिया में नहीं हैं और जिन्होंने उस समय मेरा साथ दिया था, जब मेरे अपनों ने…’’

‘क्या, डाक्टर विनय मर चुका है?’ डाक्टर विनय का नाम सुनते ही अचानक उस का चेहरा मुरझा गया. उस की आंखों में एक अजीब तरह का भाव उतर आया, कुरसी पर ही आंखें मूंदे काफी देर तक जाने क्याक्या सोचता रहा वह, वहां बैठेबैठे जब थोड़ी बेचैनी महसूस होने लगी उसे तो उठ कर अपने कबर्ड में से छिपा कर रखी हुई शराब की बोतल को निकाल लाया, ढक्कन खोल लिए, शराब उस के होंठों को छू भी नहीं पाई थी कि घर के नौकर रामदीन की तेज नजर उस तक पहुंच गई. रामदीन किसी बाज की तरह उस के हाथों से बोतल को झपट कर छीन लिया है.

‘‘बस, एक घूंट रामदीन,’’ वह नौकर के आगे मिन्नतें करने लगा.

‘‘नहीं, बिलकुल भी नहीं. एक घूंट भी नहीं, मुझे तनख्वाह आप की देखभाल के लिए मिलती है. रामदीन अपने काम में धोखाधड़ी जरा भी नहीं करता, चाहे तो आप मुझे इस के लिए नौकरी से निकाल दो.’’ फिर थोड़ी देर बाद नरम अंदाज में समझते हुए रामदीन ने कहा, ‘‘आखिर क्यों बाबूजी, आप अपनी ही जान के दुश्मन बने हुए हो? डाक्टर ने आप को कितनी बार सम?ाया, फिर भी आप नहीं समझते.

‘‘आप ने अपनी दवा भी अभी तक नहीं खाई है,’’ रामदीन पास ही टेबल पर पड़ी दवाओं के ढेर को कुछ देर तक ध्यान लगा कर देखने के बाद अपने सिर को खुजलाते हुए उन दवाओं में से एक को उठा कर उलटपलट कर देखने लगा, फिर कुछ सोचते हुए एक गोली निकाल कर राजीव को पकड़ा दी.

उस की हालत रिटायरमैंट के करीब पहुंचे सरकारी दफ्तर के उस बाबू की तरह हो गई थी जिस की सुनता तो कोई भी नहीं, सुनाता हर कोई था. जब जिस का दिल करता, उसे उपदेश सुना जाता. एक वह जमाना भी था, जिसे उस ने इसी जिंदगी में देखा था जब यही लोग उस के आगेपीछे घूमा करते थे.

किसी की हिम्मत उस के सामने मुंह खोलने तक की भी नहीं होती थी, उस के आगे खड़े रहने की कोई हिम्मत तक नहीं जुटा पाता था. सब वक्त का खेल है, कितनी ही कंपनियों का वह मालिक था. रुपएपैसों की तो बरसात होती थी. दौलत की ताकत उस के सिर चढ़ कर बोलती थी. इसी दौलत की ताकत पर ही तो वह तलाक के बाद अपनी पत्नी से बेटे की कस्टडी छीन लेने में कामयाब हुआ था. उस ने अपनी पत्नी के चरित्र पर कीचड़ ही नहीं उछाली थी, बल्कि उसे एक लापरवाह मां साबित करने में भी कामयाब हो गया था.

अनीता ने सच्चे दिल से राजीव को प्यार किया था, तभी तो वह राजीव के साथ अपने रिश्ते को 4 सालों तक बचाने की कोशिश करती रही, जबकि राजीव ने सिर्फ अपने अहंकार को तवज्जुह दी.

वह अनीता से एक ऐसी नितांत समर्पित प्रेयसी की अपेक्षा करता रहा जो सिर्फ उस के पौरुष के अहं की तुष्टि करे. लेकिन, अनीता बजाय उस के पौरुष के अहं की तुष्टि करने के, उस के हर सहीगलत पर उस से बहस करती, जबकि राजीव की यह कोशिश होती कि अनीता उस के हर आदेश का सिर्फ सिर झुका कर पालन करे, उस के सभी सहीगलत फैसलों का समर्थन करे बजाय अपने विचारों को उस के सामने रखने के.

राजीव को सिर्फ अनीता की खूबसूरती से प्यार था. उस ने उस से शादी भी की तो बस उस की खूबसूरती से वशीभूत हो कर. राजीव अनीता के रूप में ऐसी खूबसूरत गुडि़या को चाहता था जो उस के ड्राइंगरूम में पड़े शोकेस की शोभा अन्य कीमती वस्तुओं की तरह बढ़ा सके, जबकि अनीता एक पढ़ीलिखी अपनी इज्जत के प्रति जागरूक आधुनिक सोच की थी. अनीता अपने प्रति होने वाले अन्याय का जम कर प्रतिकार करती. वह राजीव के वर्चस्व को हर मोड़ पर चुनौती देती, जिस के कारण उन दोनों के बीच टकराव उत्पन्न होने लगे. आएदिन उन के बीच झगड़े और क्लेश होते रहते.

राजीव को अब धीरेधीरे अनीता की डाक्टरी के पेशे से भी चिढ़ होने लगी थी. परंतु, उस से भी कहीं ज्यादा उसे अनीता का डाक्टर विनय के साथ मिलनाजुलना, उस के साथ उस का हंसनाबोलना, उठानाबैठना उसे कतई पसंद नहीं था. वह उस पर तरहतरह से पाबंदिया लगाने की कोशिश करता रहता.

‘तुम अस्पताल से जल्दी आ जाया करो. देखो, दीपू अब बड़ा हो रहा है, उसे मां की कमी महसूस होती है.’

‘क्या उसे पिता की कमी महसूस नहीं होती? तुम भी बिजनैस के सिलसिले में महीनों बाहर मत रहा करो.’

‘घर बैठ कर बिजनैस नहीं संभाला जाता, इतना बड़ा एम्पायर, इतनी बड़ी संपत्ति, सबकुछ ऐसे ही नहीं हासिल हो गए, तुम्हें बिजनैस के बारे में जानकारी ही क्या है? तुम अपने इस दो कौड़ी के डाक्टरी के पेशे को छोड़ क्यों नहीं देतीं, तुम्हारी कमाई से घर के खर्चे तो छोड़ो, घर के नौकरों के वेतन भी पूरे नहीं हो सकते. आखिर किस चीज की कमी होने दी है मैं ने तुम्हें. रुपएपैसे, नौकरचाकर, गाड़ीबंगले, गहनेकपड़े, सुखसुविधा की सारी चीजें, सबकुछ तो दिया है मैं ने, फिर भी यह अस्पताल का नाटक किस लिए. खुद को देखो, मरीजों के बीच रह कर खुद भी मरीज दिखने लगी हो,’ बौखलाहट और गुस्से में राजीव सिर्फ अपनी कहे जा रहा था.

उस की बातें अनीता के मन को ही नहीं, उस के आत्मसम्मान को भी ठेस पंहुचा रही थीं. लेकिन अपने पौरुष अहंकार और दौलत के नशे में डूबा राजीव अनीता की मानसिक पीड़ा को सम?ा पाने में पूरी तरह नाकाम था.

राजीव की बातों से आहत अनीता को जब अस्पताल से नर्स का फोन आया है तो वह कुछ ही क्षण पहले प्राप्त हुई इस पीड़ा को, राजीव की बातों से छलनी हुए मन को, उन तमाम कुठाराघातों को जो कि उस के आत्मविश्वास को क्षतविक्षत करने के लिए किए गए थे, को दरकिनार कर अस्पताल के लिए निकल पड़ी.

‘अभी कुछ घंटे पहले ही तो वहां से आई हो,’ राजीव ने नजरें तिरछी करते हुए कहा.

‘इमरजैंसी है. एक डाक्टर का कर्तव्य, उस की जिम्मेदारियां किसी बिजनैसमैन की समझ के बाहर की बात है,’ अनीता ने भी ठीक राजीव के अंदाज में ही कटाक्ष करते हुए उसे आईना दिखा दिया.

‘मुझे सब पता है, तुम्हारे और डाक्टर विनय के बीच क्या चल रहा है, इमरजैंसी का बहाना कर तुम उस से मिलने जा रही हो.’ राजीव की हालत अभी बिलकुल किसी खिसियानी बिल्ली की तरह हो गई थी.

राजीव को गुस्से में बड़बड़ाता छोड़ अनीता अस्पताल के लिए निकल गई, क्योंकि उस के लिए अभी इन सब बातों से ज्यादा जरूरी उस का पेशेंट था.

आज अस्पताल में उसे एक इमरजैंसी सर्जरी करनी थी, लेकिन वह अपना ध्यान ठीक से लगा नहीं पा रही थी. किसी तरह उस ने सर्जरी की और औपरेशन थिएटर से बाहर आ कर अपने हाथ धोए, चेहरे पर ठंडे पानी के छींटे मारे, थकान से उस का बुरा हाल हुआ जा रहा था. अपने केबिन में आ कर कौफी मंगवाई ही थी कि टैलीफोन की घंटी बज उठी.

‘मेमसाब, दीपू बाबा चुप ही नहीं हो रहे हैं. मम्मामम्मा पुकार कर लगातार रोए जा रहे हैं. लगता है, उन्हें बुखार भी है,’ घर की नौकरानी ने एक सांस में ही कह दिया तो अनीता अपनी कौफी वहीं टेबल पर छोड़ घर की ओर भागी.

घर पहुंच कर अनीता सीधे दीपू के कमरे में गई, लेकिन वह शांति से अपने बिस्तर पर सोया हुआ था. उस ने उस के माथे को छू कर देखा, उस का माथा ठंडा था, बुखार नहीं था उसे, फिर प्यार से उस के माथे को चूम कर, उस के कमरे से चुपचाप बाहर निकल आई.

दीपू के कमरे से बाहर आ कर अनीता नौकरानी को आवाज लगाई, ‘दीपू तो सोया हुआ है. क्या हुआ था उसे?’ नौकरानी नजरें नीचे किए चुपचाप खड़ी रही.

‘मैं कुछ पूछ रही हूं? क्या हुआ था दीपू को?’

‘ओ, जी मैम, साहब ने मुझ से फोन करने को कहा था.’

‘ठीक है, तुम जाओ,’ नौकरानी पल्लवी वहां से चली गई.

‘राजीव, राजीव,’ गुस्से से चिल्लाती हुई अनीता अपने कमरे में आई, ‘अब तुम इस हद तक नीचता पर उतर आओगे, तुम मेरी सम?ा के परे हो गए हो, मेरी बरदाश्त की सीमा अब खत्म हो रही है. पहले तुम ड्राइवर से जासूसी करवाते रहे, अब बच्चे का इस्तेमाल कर रहे हो, तुम इतना नीचे गिर जाओगे, मैं ने कभी सोचा न था.’

उस दिन अनीता के सब्र का बांध सचमुच टूट चुका था. अब मन ही मन उस ने दृढ़ निश्चय कर लिया था. पूरी तरह से खोखले हो चुके इस रिश्ते को वह खत्म कर देगी. उस ने तलाक का नोटिस राजीव को भेज दिया.

राजीव भी कहां शांत बैठने वाला था. अनीता द्वारा भेजे गए तलाक के नोटिस से अपने पौरुष के अहंकार पर लगी चोट का बदला उस ने उस के चरित्र पर कीचड़ उछाल कर, उसे बदनाम कर के ले लिया. फिर भी उस का मन न भरा तो उस ने उस पर एक लापरवाह मां होने का ठप्पा लगा दिया और बच्चे की कस्टडी भी उस से छीन ली.

बुरे से बुरे सपने में भी अनीता ने इस दिन की कल्पना नहीं की होगी. उस के बच्चे की कस्टडी तक उस से छीन ली गई थी.

हालांकि अपने चरित्र पर उछाले गए कीचड़ की उसे परवा न थी, क्योंकि किसी स्त्री के मनोबल को तोड़ देने की, अपनी ही नजरों में नीचे गिरा देने की, खुद को अपराधी समझने के लिए बाध्य कर प्रायश्चित्त की आग में जलते रहने के लिए छोड़ देने की, समाज के इस पुराने फार्मूले को वह बखूबी समझती थी. वह सबकुछ छोड़ हमेशा के लिए अमेरिका चली जाना चाहती थी तो सिर्फ इस वजह से, ताकि वह अपने दिल पर लगे जख्मों को मिटा सके. अपनी जिंदगी की नई तरीके से नई जगह पर शुरुआत कर सके.

तलाक के कुछ महीने बाद से ही वह अपनी अमेरिका जाने की प्लानिंग में जुट गई थी, कहां, कैसे, क्या करना है, सबकुछ तय कर लिया था. वक्त आने पर वह वीजा प्राप्त करने में भी सफल हो गई.

अब अमेरिका जाने के लिए प्लेन का टिकट उस के हाथ में था. लेकिन अनीता से बच्चे की कस्टडी छीन कर भी राजीव को चैन नहीं मिला था. अपने खरीदे हुए आदमियों द्वारा उस की हर बात की जानकारी प्राप्त कर लेता था.

अनीता की अमेरिका जाने वाली बात उसे मालूम हो गई थी. उस ने उस के टिकट की डिटेल भी किसी तरह हासिल कर ली थी.

अगले दिन यह खबर आई कि अमेरिका जा रहा वह प्लेन रास्ते में ही कहीं क्रैश हो गया और उस में सवार सभी यात्री मारे गए.

अनीता की मौत की खबर पा कर राजीव को भी काफी सदमा लगा. धीरेधीरे उसे अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था, प्रायश्चित्त की आग में वह अब जलने लगा था. नतीजा यह कि अब उस का मन अपने बिजनैस के काम में न लगता. धीरेधीरे कुछ कंपनियों को उसे बंद तक करना पड़ा. दौलत का नशा जिस रफ्तार से चढ़ा था, उसी रफ्तार से उतरने भी लगा.

अमेरिका जाने के एक दिन पहले डाक्टर विनय अनीता से मिलने आया था.

‘तो अनीता, आखिर तुम ने हार मान ही ली, तभी तो तुम यहां से भाग जाना चाहती हो?’

‘नहीं, ऐसा नहीं है.’

‘ऐसा नहीं है, तो और क्या है? ऐसा कर के तुम उन लोगों की बातों को सच कर देना चाहती हो जिन लोगों ने तुम पर घिनौने आरोप लगाए हैं.’

‘नहीं, ऐसा बिलकुल भी नहीं है. मैं सिर्फ अपने अतीत से पीछा छुड़ाना चाहती हूं, जब तक यहां रहूंगी, दुखी होती रहूंगी, मेरा अतीत मुझे कभी भी आगे नहीं बढ़ने देगा, मुझे सिर्फ शांति चाहिए.’

‘तुम समझती हो, भागने से तुम्हें शांति मिलेगी, यह तुम्हारा भ्रम है, शांति भागने से नहीं बल्कि जीवन के उद्देश्य को सुंदर बना कर मिलेगी. मेरे पास तुम्हारे लिए प्रपोजल है. मैं नहीं चाहता तुम्हारी जैसी काबिल, योग्य, मेहनती डाक्टर यहां से पलायन करे, तुम अपनी सेवा उन लोगों को दो जिन्हें सब से ज्यादा तुम्हारी जरूरत है. मैं तुम पर कोई दबाव नहीं बना रहा. आगे तुम्हारा जो भी फैसला है, मुझे मंजूर होगा.’

डाक्टर विनय भी संयोग से हिमाचल प्रदेश का ही रहने वाला था. उस दिन डाक्टर विनय की बातों ने उस के अमेरिका जाने के फैसले को ही नहीं बदला, बल्कि उस के जीवन के उद्देश्य को बदल कर एक नई अनीता को जन्म दिया था.

अनीता अपना दुखदर्द भूल कर हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव में लोगों तक जा कर स्वास्थ्य सेवाएं देने लगी. साथ ही, लोगों के घरों में जाजा कर महिलाओं को उन के अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी करती. वह ऐसी जगहों पर पहुंचती, जहां कोई डाक्टर तो क्या, आम इंसान भी उन कठिन रास्ते को पार करने में कदम पीछे कर लेता. ऐसी जगहों पर स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना उस के लिए आसान काम नहीं था.

डाक्टर विनय एक सच्चे दोस्त की तरह काफी सालों तक अनीता का साथ निभाता रहा, लेकिन एक दिन ऐसा हुआ, जब हिमाचल प्रदेश में प्रकृति के प्रकोप ने कहर बरपाया. वहां के जख्मी लोगों को जीवनदान देते हुए डाक्टर विनय ने अपनी जान गंवा दी. लेकिन, डाक्टर अनीता ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी. अपने डाक्टरी के पेशे को त्याग और सेवा का पर्याय बना कर जीवन की मुश्किल राहों को पार करती रही.

राजीव बहुत देर तक टीवी स्क्रीन के पास बैठा अनीता द्वारा बताई जा रही, उस की जीवन से जुड़ी सभी बातों को ध्यान से सुन रहा था. साथ ही, अपने अतीत के पन्नों को भी पलटता रहा. उस के वश में होता तो वह उन पन्नों को ही अतीत की किताब से फाड़ देता, उन अक्षरों को मिटा देता, जिस की लेखनी की काली स्याही के धब्बों ने उस के हाथों को ही नहीं, उस के अतीत को भी बदरंग बना दिया था. लेकिन जीवन की किताब ही ऐसी होती है जिस के अनचाहे पन्नों को न तो फाड़ा जा सकता है और न ही उस लेखनी को मिटाया जा सकता है.

राजीव दर्द में डूबता जा रहा था. उसे अपने हर कहे, हर किए पर अफसोस हो रहा था. अचानक उसे लगा कि वह सांस नहीं ले पा रहा है. वह सांस लेना चाह रहा था, लेकिन उसे ऐसा लगा जैसे सांसें खींचने में उसे काफी दिक्कत हो रही है. सीने में भी जकड़न महसूस होने लगी उसे.

अपनी कुरसी से उठ कर दो कदम आगे की ओर बढ़ना चाहा, लेकिन, उसे अपने पैरों में सुन्नपन सा महसूस हुआ. बमुश्किल कुछ कदम ही चल पाया होगा कि चक्कर खा कर गिर पड़ा. ‘‘र… र, रामदिन,’’ मुंह से बस इतनी ही आवाज निकली और आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

‘‘मि. राजीव, क्या आप हमें सुन पा रहे हैं,’’ उस के कानों में बहुत दूर से यह आवाज आती सुनाई दे रही थी.

‘‘देखिए, आप धीरेधीरे अपनी आंखें खोलने की कोशिश करें.’’ वह अपनी आंखें खोलने की कोशिश करने लगा और खुद को किसी औपरेशन थिएटर में पाया. उस की आंखों के सामने डाक्टर अनीता के साथ कुछ अन्य डाक्टर भी खड़े थे.

‘‘राजीव, अब आप कैसा महसूस कर रहे हैं? क्या आप हमें देख पा रहे हैं? हमें सुन पा रहे हैं,’’ उस ने धीरे से हां में अपना सिर हिलाया.

‘‘गुड, आप का एक बहुत बड़ा औपरेशन हुआ है. हम ने तो हार मान ली थी. सच में आप बहुत किस्मत वाले हैं. संयोग से डाक्टर अनीता जैसी काबिल डाक्टर हमारे शहर में एक सैमिनार अटैंड करने आई हुई थीं. डाक्टर बत्रा के पास इन का नंबर था. उन्होंने इन से संपर्क साधा और आप की डिटेल भेजी. आप की केस हिस्ट्री देखते ही बिना देरी किए ये फौरन यहां पहुंच गईं. इन्हीं की देखरेख में आप का इतना जटिल औपरेशन कामयाब हुआ. आप की जान बच गई, वरना आप की जान बचाना हम सब के वश की बात नहीं थी.’’

‘‘ठीक है फिर.’’

‘‘आप को कुछ देर के लिए औब्जर्वेशन में रखा जाएगा.’’ राजीव एकटक अनीता की ओर देखे जा रहा था. उस की आंखों से लगातार बहती आंसुओं की धारा ने अनीता की आंखों को भी नम कर दिया था, जिसे अनीता ने वहां मौजूद दूसरे डाक्टरों से नजरें बचाते हुए धीरे से पोंछ लिया था.

राजीव को औब्जर्वेशन रूम में शिफ्ट कर दिया गया था, जहां उसे ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा था.

‘‘सिस्टर, यह मैडिसिन आप तुरंत मंगवा लीजिए,’’ अनीता राजीव की वर्तमान स्थिति को देखने के लिए वहीं खड़ी रह जाती है, तभी राजीव अनीता की हथेलियों को धीरे से अपने हाथों में थामते हुए, किसी बच्चे की भांति फफक कर रो पड़ा.

अनीता ने अब तक जिन आंसुओं को नियंत्रित कर रखा था, भावनाओं के वेग को वह भी अब और ज्यादा सहन न कर सकी, अनीता की आंखों से भी आंसुओं की अविरल धारा बह निकली.

क्षमा हृदय का सब से महान गुण होता है और फिर यह क्षमा ऐसे व्यक्ति के लिए जो प्रायश्चित्त की आग में जल रहा हो, डाक्टर अनीता जैसी विशाल हृदय की स्वामिनी के लिए कोई मुश्किल काम नहीं था.

दूर कहीं पहाड़ों की गोद में सूरज पूरे दिन की तपिश के बाद किसी थके हुए मुसाफिर की तरह सुस्ता रहा था. पहाड़ों की गगनचुंबी ऊंचाइयों ने सूरज को बौना कर दिया था. चहचहाते पंछियों का झुंड अपने बसेरे की ओर लौट रहा था. सांझ सिर्फ लंबी, अंधेरी रातों के आने का सूचक ही नहीं होती, बल्कि दिन और रात के मिलन की खूबसूरत बेला भी होती है.

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