भाजपा का खिला कमल कैसे झुलसने लगा, कौन सी चूक पड़ गई भारी? जानें सबकुछ
ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, नई दिल्ली. भाजपा ने खुद के लिए 370 पार का टारगेट सेट किया था लेकिन भाजपा अपने दम पर बहुमत के करीब नहीं पहुंच सकी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी में जीत का मार्जिन 1,52513 रहा। चुनाव से पहले पूरे आत्मविश्वास के साथ दिख रही बीजेपी का कमल क्यों झुलसने लगा।
फ्री राशन का फायदा पर महंगाई की मार
भाजपा ने केंद्र सरकार की स्कीम के लाभार्थियों पर फोकस किया था। फ्री राशन स्कीम का भाजपा को फायदा भी मिला लेकिन महंगाई की मार ने इस फायदे को कम कर दिया। महंगाई से लोग परेशान थे और लगातार इसकी चर्चा भी कर रहे थे लेकिन चुनाव में बीजेपी की तरफ से इस मुद्दे को अड्रेस नहीं किया गया, जिससे लोगों में निराशा हुई। मंहगाई को लेकर बीजेपी कार्यकर्ता ही शिकायत करते रहे लेकिन इसकी अनदेखी हुई।
बेरोजगारी पड़ी भारी
पूरे चुनाव भर लगभग हर राज्य में युवा बेरोजगारी की बात करते रहे और सबसे बड़े मुद्दे के तौर पर बेरोजगारी को गिनाते रहे। बेरोजगारी तो पहले से थी लेकिन कोविड के बाद स्थिति और खराब हुई। जो प्राइवेट जॉब पहले थी वह कोविड में चली गई। कई छोटी दुकानों से लेकर छोटे बिजनेस तक ठप हो गए। किसी भी मॉल से लेकर किसी भी फैक्ट्री तक में यह स्थिति स्पष्ट थी। लेकिन बीजेपी कोविड के बेहतर मैनेजमेंट का गुणगान करती रही और रोजगार को लेकर बात नहीं की। विपक्ष ने इस मुद्दे को उठाया। लगातार अलग अलग परीक्षा देकर उसके रिजल्ट का इंतजार करना और फिर परीक्षा ही कैंसल होना, इससे भी युवा परेशान थे।
अग्निवीर की आग
जब से सेना में भर्ती की नई स्कीम अग्निपथ लागू हुई तबसे युवाओं के बीच इसका विरोध हुआ। चुनाव में भी यह अहम मुद्दा बना। युवाओं में इसे लेकर नाराजगी थी और कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में वादा किया वह सरकार में आएंगे तो इस स्कीम को खत्म कर पुरानी भर्ती प्रक्रिया लागू करेंगे। अग्निवीर की आग ने भी बीजेपी के कमल को झुलसाया।
बयान से लेकर उम्मीदवार तक
भाजपा में कई जगह उम्मीदवारों के चयन पर भी सवाल उठे। हर राज्य में अलग मुद्दों पर वोटिंग हुई और कोई एक राष्ट्रीय मुद्दा हावी नहीं रहा। राम मंदिर को लेकर लगातार बयानबाजी से भाजपा को फायदा नहीं हुआ। कुछ भाजपा नेताओं के संविधान बदलने की बात कहने के बाद विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाया और कहा कि ये आरक्षण खत्म करना चाहते हैं और लोगों के मन में भी शक पैदा हुआ।