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कहानी: हां यही प्यार है

दफ़्तर से लौट कर घर के भीतर अभी-अभी दाख़िल हुए अनादि ने देखा कि मिशा को उसके आने का कोई भान ही नहीं है. वह गैलरी में लगे आराम कुर्सी पर गंभीर विचारणीय मुद्रा में बेख़बर बैठी हुई है. शादी के क़रीब दस महीने बीत चुके थे, लेकिन अनादि अब तक यह समझ नहीं पाया था कि आख़िर मिशा अचानक किन विचारों में गुम हो जाती है.
शादी से पहले बमुश्किल अनादि एक या दो बार ही कुछ समय के लिए मिशा से मिला था, लेकिन इन मुलाक़ातों  में उसे मिशा कभी भी उदास या गंभीर प्रवृत्ति की नहीं लगी थी. शादी के महीने भर बाद ही अनादि को ऐसा लगने लगा जैसे मिशा उससे कुछ कहने, पूछने या बताने का प्रयास तो करती है परन्तु संकोचवश वह ऐसा कर नहीं पा रही है. अनादि भी अपनी ओर से मिशा के दिल में छुपे राज़ को जानने की भरसक कोशिश करता, किन्तु अब तक वह असफल ही था.

अनादि के लिए आश्चर्य की बात यह थी कि मिशा अक्सर तभी उदास, दुखी या खोई-खोई रहती, जब वह अपनी अभिन्न सहेली मिनी से मिल कर घर लौटती. मिनी और मिशा दोनों स्कूल फ्रैंड थी. अनादि और मिशा के ब्याह के एक महीने पश्चात मिनी का ब्याह भी इसी शहर के एक सफल र‌ईस व्यापारी से हुआ था. मिशा अक्सर अपने फ़ुर्सत के क्षणों में मिनी से मिलने उसके घर पहुंच जाया करती थी.

आज फिर मिशा को यूं ही अपने आपमें खोया देख अनादि उसे कुछ कहे बगैर किचन में चला गया. अपने लिए चाय व मिशा के लिए कॉफी बना कर अनादि गैलरी में ही ले आया और विचारों के भंवर में गोते लगाती मिशा से बोला, नॉक… नॉक… आप किन ख़्यालों में खोई हुई हैं मैडम, लीजिए गर्मागर्म कॉफी."

अनादि का इस तरह ऑफिस से थका हुआ लौट कर स्वयं के लिए चाय और मिशा के लिए कॉफी बना कर लाना, मिशा को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा. मिशा को कॉफी पसंद है यह अनादि जानता था. इन दस महीनों में मिशा के पसंद-नापसंद से अनादि वाकिफ हो चुका था. इस बात का मिशा को भी एहसास था, लेकिन वह यह नहीं समझ पा रही थी यदि अनादि उसे इतनी अच्छी तरह से समझने लगा है, तो वह उसके दिल की बात क्यों नहीं समझ पा रहा है. वह क्यों मिनी के पति की तरह उससे अपने‌ प्यार का इज़हार नहीं करता, क्यों उसे कोई सरप्राइज़ नहीं देता, गिफ्ट नहीं देता, वीकेंड पर कहीं बाहर घुमाने लेकर नहीं जाता, वह क्यों हर वक़्त काम में ही लगा रहता है. न जाने ऐसे कई अनगिनत सवालों के आग मिशा के मन में सुलग रहे थे. इन सवालों की लपटें उस वक़्त और अधिक ज्वलंत हो जातीं, जब मिशा अपनी सहेली मिनी से मिल कर लौटती.
अपने सामने इस तरह हाथों में चाय और कॉफी के साथ अनादि को खड़ा देख मिशा बोली, "अरे, आपने यह सब क्यों किया? मुझसे कह देते मैं बना देती."

अनादि मुस्कुरा कर मिशा के क़रीब बैठते हुए बोला, "तुम बनाओ या मैं क्या फ़र्क़ पड़ता है."
अनादि के ऐसा कहने पर मिशा ने फिर कुछ नहीं कहा. दोनों के मध्य एक कटीलेदार चुभन सा सन्नाटा पसर गया जिसे चाह कर भी अनादि तोड़ ना सका. 
दो दिनों बाद अनादि के दफ़्तर जाने और अपना घरेलू कार्य निपटाने के उपरांत मिशा फिर मिनी से मिलने उसके घर पहुंची. अभी वह दरवाज़े पर पहुंची ही थी कि वह बाहर ही ठिठक ग‌ई. मिनी के पति मिनी पर बहुत ही बुरी तरह से बरस रहे थे. वह कह रहे थे, "तुम बीमार हो इसका यह मतलब नहीं है कि मैं अपना सारा काम-धंधा छोड़ कर तुम्हारी सेवा के लिए घर बैठ जाऊं और अपना फाइनेशियल नुक़सान करा बैठूं. घर पर कार है, ड्राइवर है, तुम इन्हें साथ लेकर डॉक्टर के पास क्यों नहीं चली जाती. तुम्हें जितने रुपए चाहिए ले लो, लेकिन मुझसे यह उम्मीद मत रखना कि मैं अपना सारा कामकाज छोड़ कर तुम्हारी सेवा करूंगा या तुम्हें डॉक्टर के पास ले कर जाऊंगा."
मिनी के पति को इस तरह बेपरवाही व बेरूखी से कहता सुन मिशा सन्न रह गई और उल्टे पांव सीधे अपने घर की तरफ़ लौट ग‌ई. सारे रास्ते अनादि के सहयोगात्मक व प्यार भरे व्यवहार परत दर परत मिशा की आंखों के समक्ष झूलने लगे. उसे स्मरण हो आया कि किस तरह पिछले महीने अचानक उसकी तबियत ख़राब होने पर अनादि अपना सारा काम स्थगित कर पूरा दिन उसका ख्याल रखता रहा. उसे डॉक्टर के पास लेकर गया, उसके लिए खिचड़ी पकाई और पूरा दिन उसके पास, उसके साथ रहा.
यह सब याद कर बार-बार मिशा का दिल उससे बस एक ही प्रश्न कर रहा था, अनादि का उसके प्रति जो व्यवहार है क्या यही प्यार है..? और हर बार मिशा के दिल की गहराइयों से बस एक ही जवाब आ रहा था, हां यही प्यार है.

इतने महीनों बाद आज मिनी के घर से लौटते हुए मिशा तनिक भी सवालों से घिरी हुई नहीं थी, उसे अपने सारे प्रश्नों के जवाब मिल ग‌ए थे. उसके मन में अनादि को लेकर अब कोई शिकवा या शिकायत नहीं थी.-प्रेमलता

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