बारिश का बदला पैटर्न, मॉनसून पर ISRO के वैज्ञानिकों ने दी नई जानकारी
ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, नई दिल्ली. देशभर में बारिश के पैटर्न में बड़ा बदलाव हुआ है। खासकर प्री मॉनसून सीजन में बारिश में कमी आई है। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, इसरो, तिरुवनंतपुरम के अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने शोध के बाद यह दावा किया है। शोध के अनुसार बंगाल की खाड़ी और अरबियन सागर वाले इलाकों में सालाना औसतन 1.5 एमएम तथा उत्तर पूर्व भारत में 1 एमएम प्रतिदिन बारिश में कमी आई है। शोधकर्ताओं ने 2000-2019 के बीच जलवायु परिवर्तन के कारण प्री मॉनसून सीजन(मार्च, अप्रैल, मई) में बारिश में आए बदलावों पर अध्ययन किया है। यह शोध नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट में प्रकाशित हुआ है।
बंगाल की खाड़ी, म्यांमार तट, पूर्वोत्तर भारत तथा बांग्लादेश में प्री मॉनसून सीजन में 6-10 एमएम प्रतिदिन बारिश होती थी। मई में इन इलाकों में अधिकतम बारिश दर्ज की जाती थी लेकिन अब इसमें बड़ी गिरावट दर्ज की जा रही है। बंगाल की खाड़ी और अरबयिन सागर वाले इलाकों में अत्यधिक बारिश के दिनों में सालाना 3 फीसदी की कमी आई है। अरबियन सागर के लक्षद्वीप इलाके में अप्रैल-मई में 2-10 फीसदी बारिश में कमी दर्ज की गई है।
भारत में प्री-मॉनसून सीजन में बारिश दक्षिण-पश्चिम मॉनसून सीजन से पहले काफी अहम है। खेती के लिए तथा जल संसाधनों के प्रबंधन में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। देश के कृषि वाले क्षेत्रों में प्री मानसून वर्षा की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार औसतन प्री-मॉनसून सीजन में भारत में 110-120 एमएम बारिश होती है। यह कुल बारिश का करीब 11 फीसदी है। प्री-मॉनसून बारिश नहीं होने से तापमान पर भी असर पड़ता है।
उत्तर पश्चिमी भारत (हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्य) जहां प्री मॉनसून सीजन में बारिश कम होती थी, वहां 0.25 एमएम से 0.5एमएम प्रति दिन प्रतिवर्ष अतिरिक्त बारिश हुई। इन इलाकों में सामान्य तौर पर 2 एमएम प्रतिदिन बारिश कम होती है। जबकि बारिश वाले इलाके खासकर पूर्वोत्तर भारत में बारिश कम हो रही है। पहले के अध्ययन यह बताते हैं कि जहां अधिक बारिश हो रही है, वहां और अधिक बारिश होगी जबकि सूखे क्षेत्र और सूखे रहेंगे। लेकिन इसरे को शोधकर्ताओं का यह शोध इस तथ्य को खारिज करते हैं।
शोधकर्ताओं ने बताया है कि वायुमंडल में एरोसोल कणों की अधिक मात्रा के कारण बारिश में कमी रही है। ये कण न केवल बादलों की विशेषताओं को बदलते हैं, बल्कि उनके बनने की दर को भी कम करते हैं, जिससे वर्षा संबंधी विसंगतियां होती हैं। एरोसोल वायुमंडल में मौजूद छोटे कण होते हैं। ये जलवायु, मौसम, स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। कोयला, तेल और गैस के जलने से ये कण वायुमंडल में इकट्ठा होते हैं, साथ ही सिगरेट के धुएं, तंबाकू के जलने से भी ये कम बनते हैं। एरोसोल के अलावा, वाष्पीकरण का कम होगा, आद्रता में कमी भी बारिश कम होने के कारण हैं।