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लाइलाज बीमारी रतौंधी का भी इलाज हुआ संभव, डॉ. परवेज खान ने किया शोध

ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, कानपुर. अपने देश में रतौंधी एक लाइलाज बीमारी है। इसे ‘राइनाइटिस पिगमेंटोस’ भी कहते हैं। इस बीमारी के इलाज के लिए देश भर में शोध चल रहा है, लेकिन अभी तक इसमें सफलता किसी को नहीं मिली है।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर के सीनियर आई सर्जन डॉ. परवेज खान ने एक ऐसा शोध किया जिससे रतौंधी वाले मरीजों की भी आंखों में रोशनी वापस आ गई। उनका यह शोध हाल ही में जनरल ऑफ करंट थर्मालॉजी में प्रकाशित हुआ है।

डॉ. परवेज खान ने बताया कि यह शोध 2018 से चल रहा है। पिछले 6 साल के अंदर इसमें लगभग 6000 मरीजों को शामिल किया है। इनमें से 80% मरीज ऐसे थे, जिनकी आंखों का विजन 30% वापस लौट आया है और जो विजन बराबर गिर रहा था उसे भी रोक दिया गया।

उन्होंने दावा किया है कि अभी तक इसका इलाज कहीं भी नहीं था, लेकिन अब कानपुर मेडिकल कॉलेज में इसका इलाज संभव हो गया है। उन्होंने बताया कि इसमें मरीज के ब्लड से प्लेटलेट्स रिच प्लाजमा (PRP) निकालते हैं और फिर उसको हमारी खुद की बनी पेटेंट नीडल 'सुपरा ख्योराइडल' से आंख की उस परत तक दवा को पहुंचाते हैं, जहां पर दवा की जरूरत होती है।

डॉ. परवेज खान ने बताया कि रतौंधी का इलाज इसलिए भी संभव नहीं था क्योंकि आंख की जिस परत तक आपको दवा पहुंचानी होती थी उस परत तक दवा नहीं पहुंच पाती थी, लेकिन अब हम अपनी इस पेटेंट नीडल के माध्यम से दवा को आंख के उस परत तक ले जा सकते हैं, जहां पर जरूरत होगी। इससे किसी भी प्रकार की कोई भी समस्या आंखों में नहीं होती है।
डॉ. खान ने बताया कि इस सुपरा ख्योराइडल नीडल को 2018 में ही बना लिया था। इसके बाद भारत सरकार द्वारा पिछले 9 माह पूर्व ही पेटेंट का प्रमाण पत्र मुझे मिला है। इस नीडल के माध्यम से पूरे इंडिया में लोगों को इसका लाभ मिल सकेगा। इस नीडल को लेकर 26 अगस्त 2023 को दिल्ली में पेपर एक्सपर्ट दिल्ली रेटिना पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इसका प्रेजेंटेशन भी हुआ था, जिसमें अंतरराष्ट्रीय डॉक्टर शामिल हुए थे। डॉ. खान ने बताया कि रतौंधी के जितने भी मरीज आते हैं, उसमें से 50% पुरुषों में इसकी शिकायत है। 30% महिलाओं और 20% बच्चे इसे पीड़ित है।

डॉ. परवेज खान ने यह भी बताया कि जो लोग अपने खून के रिश्ते में शादियां कर रहे हैं। ऐसे लोगों में रतौंधी की शिकायत अधिक देखने को मिल रही है। यही वजह है कि इस रोग को खानदानी बीमारी कहते हैं। उन्होंने बताया कि एक अध्ययन में इस बात की पुष्टि भी हुई है।

अध्ययन में यूपी, महाराष्ट्र, दक्षिण भारत के रोगियों को शामिल किया गया था। रोगियों की डायग्नोसिस से पता चला कि उनमें खून के रिश्ते में शादी हुई है। उन्होंने बताया कि शरीर में रतौंधी आरपी- 65 जीन की खराबी के चलते यह रोग आने वाली पीढ़ी को हो जाता है, जो कोशिकाएं आंख की रोशनी को निर्धारित करती है वह धीरे-धीरे खराब होने लगते हैं। यही कारण है कि दिन पर दिन विजन गिरता चला जाता है और एक बार अगर विजन बिल्कुल चला गया तो फिर दोबारा वापस नहीं आ सकता।

उन्होंने बताया कि रतौंधी का इलाज कराने के लिए वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, तमिलनाडु तक के मरीज कानपुर मेडिकल कॉलेज आ रहे हैं। हर ओपीडी में 8 से 10 मरीज बाहर के होते हैं।
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