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अखिलेश यादव को अब क्या हो गई मजबूरी...मुख्तार अंसारी के जिंदा रहते बनाई थी दूरी; अब क्यों अहम हो गए?

ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर/लखनऊ. सन 2016, तारीख 21 जून.. तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार में कैबिनेट मंत्री और मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव की मौजूदगी में मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के सपा में विलय का ऐलान किया गया। 
सीएम अखिलेश यादव उस समय जौनपुर में थे। उन्होंने कहा कि सपा में किसी के विलय की जरूरत नहीं है। हम अपने बलबूते जीतेंगे। शाम को अखिलेश लखनऊ लौटे और बलराम यादव मंत्रिमंडल से बर्खास्त हो गए। कहा जाता है कि बलराम ने कौमी एकता दल के विलय में मध्यस्थता की थी। लगभग, 7 साल बाद वही मुख्तार अखिलेश के अजेंडे में टॉप पर हैं। रविवार को अखिलेश ने गाजीपुर पहुंच न केवल मुख्तार को श्रद्धांजलि दी, बल्कि मौत की जांच सीटिंग जज से करवाने की मांग की है।

यूपी की सियासत में मुख्तार को बसपा से लेकर सपा तक सबका साथ मिला। लेकिन, अखिलेश यादव सीएम रहते हुए सार्वजनिक तौर पर हमेशा दूरी बनाते नजर आते थे। कौमी एकता दल के विलय के ठीक एक दिन पहले मुख्तार को आगरा से लखनऊ जेल ट्रांसफर कर दिया गया था। इस पर भी अखिलेश ने तत्कालीन जेल मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया से नाराजगी जताई थी। विलय के अगले दिन अखिलेश ने कहा कि मुख्तार जैसे लोगों की पार्टी में जरूरत नहीं है। नाराजगी का असर यह रहा कि तीन दिन के भीतर ही विलय रद्द करना पड़ा था।

सत्ता से बाहर होने के कुछ साल बाद ही मुख्तार परिवार को लेकर अखिलेश की हिचक टूटने लगी थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी गाजीपुर से बसपा के उम्मीदवार थे। उस समय सबकी नजर इस पर थी कि अखिलेश अफजाल का प्रचार करने जाएंगे कि नहीं। अखिलेश ने न केवल अफजाल के लिए प्रचार किया, बल्कि 2022 के विधानसभा चुनाव में मुख्तार परिवार से नजदीकी और मुखर हुई। मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी को सुभासपा से मऊ का टिकट दिया गया। भतीजे मन्नू अंसारी को मुहम्मदाबाद से उम्मीदवार बनाया गया। दोनों ही जीत कर विधानसभा पहुंचे।
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