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वाह रे राजनीति! सिद्धांत की राजनीति चूल्हे में डाल अखिलेश यादव ने अफजाल को दिया टिकट; पहले था दुत्कारा

ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. जिन अंसारी बंधुओं को आपराधिक छवि का बताकर अपनी पार्टी में कौएद का विलय कराने वाले चाचा शिवपाल यादव को नए-नए अध्यक्ष बने अखिलेश यादव ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया, चाचा को भी अलगा दिया, यहां तक कि पार्टी के संस्थापक रहे अपने पिता पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को भी मंच पर धकिया दिया, पार्टी के कई बड़े व समर्पित नेता अपने वरिष्ठों का अपमान और खुद की उपेक्षा देख पार्टी छोड़ गए, उन्हीं अखिलेश ने दो चुनावों मे हार के बाद अपनी नीति बदल ली।

अल्पसंख्यक वोटों की खातिर शुरू में दिखाई गई अपने सिद्धांत की राजनीति को ताक पर रख दिया। बाद में उन्हीं अंसारी बंधुओं में से सबसे बड़े सिबगतुल्लाह और उनके बेटे को पार्टी में शामिल किया, बेटे को विधायक बनवाया और अब बसपा सांसद अफजाल को गाजीपुर संसदीय क्षेत्र से पार्टी का टिकट दे दिया।

यही नहीं, परिवार पर आपराधिक छवि की मोहर लगाने वाले माफिया डॉन पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उसे एक्स पर अपनी पोस्टों में मसीहा बताने और उसकी मौत पर सियासी आंसू बहाने में लगे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को उसके घर भेज नुकसान हुए वोटों की भरपाई करने में जुटे हैं।

वोटों की राजनीति की खातिर कैसे कोई राजनीतिज्ञ या उसकी विचारधारा नेपथ्य में चली जाती है, उसका साक्षात उदारहण बन गए हैं सपा मुखिया। हाल यह कि पार्टी की जिस युवा लॉबी ने उस दौर में सोशल एकाउंट्स पर पोस्ट कर खुद को समाजवादी की बजाय अखिलेशवादी कहना आरंभ किया और अपराध की राजनीति से अलग होने पर भरपूर समर्थन किया आज उन्हीं युवा समर्थकों की पोस्ट मुख्तार को मसीहा बताने में दिन-रात जुटी हुई है।

बात 2012 से आरंभ होती है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने विदेश से पढकर आए युवा बेटे के हाथों में विरासत सौंप दी। पार्टी ने नया नारा गढ़ा, ‘युवा सोच-युवा जोश’। गांव-गांव, गली-गली, साइकिल चली और अखिलेश के नेतृत्व में सरकार बनी।

डायल 100 पुलिस सेवा, 108 निश्शुल्क एंबुलेंस सेवा, एक्सप्रेस वे आदि देकर अखिलेश ने विकास के रास्ते पर कदम रखा लेकिन पांच वर्ष के कार्यकाल में बढी अपराधों की आंधी और छिन्न-भिन्न कानून व्यवस्था, नौकरियों में घूस आदि ने 2017 के चुनाव में सत्ता से बेदखल करा दिया।

अखिलेश को सच्चाई समझ में आई और उन्होंने अपराधियों से दूरी बनाने का फैसला किया। इसी बीच पार्टी को और मजबूती दिलाने के लिए सदैव से समर्पित रहे चाचा शिवपाल सिंह यादव ने पूर्वांचल की राजनीति में मुस्लिम वोटों पर मजबूत पकड़ रखने वाले मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल का सपा में विलय करा दिया।

पार्टी की छवि सुधारने में लगे अखिलेश को चाचा की यह रणनीति पसंद नहीं आई और उन्होंने अंसारी बंधुओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसे लेकर शिवपाल से मुलायम सिंह यादव तक आहत हुए तो अखिलेश ने उन्हें भी नहीं बख्शा। नतीजा, पार्टी दो फाड़ हो गई। चाचा शिवपाल ने नई पार्टी बना ली।

इस पारिवारिक विवाद में संस्थापक व सर्वमान्य नेता मुलायम सिंह यादव को भी मंच पर अपमानित होना पड़ा। उनसे माइक तक छीन लिया गया। अखिलेश ने उन्हें हटाकर खुद को पार्टी का अध्यक्ष घोषित कर दिया। अब वही अखिलेश अंसारी बंधुओं से राजनीतिक फायदा उठाने के लिए उन सिद्धांतों को पीछे छोड़ चले है। (मीडिया इनपुट्स के साथ)

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