कहानी: सूनी गोद
ट्रिन… ट्रिन… ट्रिन…
टेलीफोन की घंटी बजते ही अपूर्व और स्वाति की नींद उचट गई. अपूर्व ने हाथ बढ़ाकर रिसीवर उठाया. उधर की बात सुनते ही उसके मुंह से घबराहट भरा शब्द निकला, "क्या..?"
स्वाति चौंककर उसका चेहरा देखने लगी. साथ ही उसके चेहरे पर उभरे भाव को पढ़ने व टेलीफोन की बातें सुनने की भी कोशिश करने लगी. कुछ पल बाद अपूर्व रिसीवर क्रेडिल पर रखते हुए बोला, "विवेक का फोन था, मोनू बहुत सीरियस है. हमें तुरंत बनारस चलना होगा."
"क्या हुआ उसे? स्नेहा कैसी है?"
"अभी तक तो वह ठीक-ठाक है. पर अगर… भगवान न करे ऐसा कुछ हो. मोनू को कुछ हो गया, तो तुम समझ सकती हो कि स्नेहा की स्थिति क्या होगी. ऐसी स्थिति में उसके परिवार में एक अजीब संकट उत्पन्न हो जाएगा. स्नेहा का एक ही बेटा है मोनू और वह ऑपरेशन भी करा चुकी है."
"भगवान न करे ऐसा कुछ हो." स्वाति ने पास लेटे सोनू को देखा.
उसके हृदय में सोनू के प्रति असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो गई और उसने सोनू को अपने सीने से भींच लिया.
"चलो, जल्दी तैयार हो जाओ." अपूर्व लिहाफ़ से बाहर निकलने लगा. हालांकि सोनू के प्रति एक पल के लिए उसके हृदय में भी असुरक्षा की भावना उत्पन्न हुई थी, जिसे उसने झटक दिया था. पटना स्टेशन पर ट्रेन में बैठते ही स्वाति ने अपने हृदय में उठ रही भावना को अपूर्व के समक्ष व्यक्त किया, "अगर मोनू को कुछ हो गया तो वे हमसे हमारे सोनू को तो नहीं मांगेंगे न..?"
"सोनू पर अब उनका कैसा अधिकार? सोनू अब तो हमारा बेटा है." अपूर्व ने मानो स्वाति को सांत्वना दी, पर स्वाति को उसके शब्दों से संतोष नहीं हुआ. ट्रेन चलते ही स्वाति धीरे-धीरे अपने वर्तमान से दूर अतीत की ओर जाने लगी. अतीत के दृश्य उसकी आंखों के समक्ष सजीव होने लगे.
लगभग सात साल पहले स्वाति की शादी अपूर्व से अपने ही शहर पटना में हुई थी. स्वाति व अपूर्व दोनों को ही बच्चों से बेहद लगाव था. इसलिए वे बच्चे के लिए बहुत उत्सुक थे. पर शादी के दो साल बाद भी जब स्वाति गर्भवती नहीं हुई, तब दोनों ने डॉक्टर से चेकअप करवाया.
जांच के दौरान पता चला कि स्वाति का गर्भाशय बिल्कुल अविकसित है व उसमें कुछ ऐसी कमियां भी हैं, जो आज के विज्ञान के युग में भी दूर नहीं होंगी अर्थात स्वाति आजीवन प्रसव पीड़ा से वंचित रहेगी और बच्चे को जन्म नहीं दे सकेगी.
स्वाति पर इसका ज़बर्दस्त आघात हुआ. वह स्वयं को अधूरी औरत मानकर गुमसुम रहने लगी. अब तो वह जब भी किसी मासूम बच्चे को देखती, उसके कोमल हृदय से दर्द का गुबार फूट पड़ता, जो आंखों के रास्ते आंसू बनकर बहने लगता. हालांकि ये जानने के बाद भी कि स्वाति कभी मां नहीं बन सकेगी, अपूर्व और उसके माता-पिता ने स्वाति को कभी उपेक्षित नहीं किया, बल्कि जब कभी स्वाति अधिक दुखी हो जाती, तब वे ही उसे समझाते, "स्वाति तुम ख़ुद को कुसूरवार क्यों समझती हो? प्रकृति ने ही तुम्हारे साथ अन्याय किया है. तुम इस स्थिति के लिए दोषी नहीं हो."
ऐसे वक़्त पर स्वाति अपूर्व व मां की गोद में सिर रखकर सुबक पड़ती, "पर मैं तो स्वयं को ही दोषी समझती हूं, क्योंकि मैं एक ऐसी बंजर धरती हूं, जो इस सूने आंगन में खुशियों का एक भी फूल नहीं खिला सकती."
अपूर्व भी दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही स्वाति की स्थिति से चिंतित रहने लगा था. वह स्वाति से बेहद प्यार करता था, स्वाति उसके जीवन में खुशियों की बहार बनकर आई थी. अपूर्व ने तो कभी उम्मीद भी नहीं की थी कि उसके जीवन में ऐसी जीवनसंगिनी आएगी जो उसके जीवन के हर अंग में प्यार और खुशियों का रंग भर देगी. शादी के चंद दिनों बाद से ही स्वाति ने अपने आचरण से सबका मन मोह लिया था. अब स्वाति के बगैर तो अपूर्व जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था, लेकिन अब स्वाति मुर्झाए हुए फूल की भांति होती जा रही थी.
एक रात जब अपूर्व की नींद टूटी तो वह यह देखकर चौंक गया कि स्वाति शून्य में निहारे जा रही थी और उसकी आंखों से निरंतर आंसू बह रहे थे.
"स्वाति, तुम अभी तक जाग रही हो?" अपूर्व ने उसे टोका तो वह चौंक गई. "यूं ही नींद खुल गई थी." उसने कहा.
अपूर्व ने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपनी ओर खींचा, फिर उसकी आंखों में झांकते हुए बोला, "स्वाति क्या हो गया है तुम्हें? क्यों अपने आपको मार डालने पर तुली हुई हो? आख़िर जब हमने तुमसे कभी कोई शिकायत नहीं की, तो फिर तुम क्यों चिंता में रात-दिन घुली जा रही हो?"
"आप सब हमसे कोई शिकायत नहीं करते, ये आप सबकी महानता है. पर क्या मैं आप सबका दर्द नहीं समझती? क्या आप बाप नहीं बनना चाहते? क्या मांजी बाबूजी नहीं चाहते कि उनके भी पोते-पोतियां हों, जो उन्हें दादा-दादी कहें…" स्वाति सिसकने लगी, "…जो उनकी गोद में खेलें, जिनकी किलकारियों से इस घर का सूना आंगन गूंज उठे..."
अपूर्व उसके आंसुओं को पोंछने लगा, "इंसान बहुत कुछ चाहता है स्वाति. पर ये ज़रूरी नहीं कि हर इंसान की हर चाहत पूरी हो ही जाए. ख़ुद पर क़ाबू रखो. इस दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो बच्चों के बगैर भी जी लेते हैं." "पर आख़िर आपका वंश आगे कैसे बढ़ेगा? देखिए एक बात कह रही हूं, आप मेरा मोह छोड़ दीजिए और आप… आप दूसरी शादी कर…"
अपूर्व ने उसके होंठों पर उंगली रख दी, "ख़बरदार जो आज के बाद मेरी दूसरी शादी की बात निकाली तो. मैं… मैं तुम्हारे बगैर जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता." अपूर्व ने उसे अपने सीने से लगा लिया. सिसकती हुई स्वाति भी उसमें समाती चली गई. इसी तरह एक साल और गुज़र गया.
फिर स्वाति की छोटी बहन स्नेहा की शादी बनारस में विवेक से हो गई. शादी के तीन महीने बाद ही स्नेहा गर्भवती हो गई. स्नेहा अतिआधुनिक विचारोंवाली युवती थी. वह जीवन को बिल्कुल मौज-मस्ती के नज़रिए से देखती थी. वह तीन-चार सालों तक ख़ूब मौज-मस्ती, आराम और देश विदेश के सैर-सपाटे सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने पति विवेक के साथ करना चाहती थी अर्थात् वह अपने और विवेक के बीच अभी बच्चा नहीं चाहती थी. इसलिए असावधानीवश गर्भवती हो चुकी स्नेहा ने गर्भपात कराने का फ़ैसला किया. गर्भपात के लिए विवेक भी राजी हो गया था. ये बात स्नेहा ने बातों-बातों में फोन पर अपनी दीदी स्वाति को बता दी. स्वाति ने स्नेहा को ऐसा करने से तुरंत मना कर दिया और भागी-भागी स्नेहा के पास पहुंची, "स्नेह, अगर तू अभी बच्चा नहीं चाहती, तो न सही. पर उसे मार मत. उसे… उसे मुझे दे दे…"
"लेकिन दीदी…" स्नेहा घबरा सी गई.
"अपनी इस अभागिन दीदी पर दया कर मेरी बहन." स्वाति का स्वर भर्रा गया.
"मैं… मैं तुम्हारी भावनाएं समझती हूं. अभी तुमने चंद दिनों तक ही अपने वैवाहिक जीवन का सुख पाया है. पर… पर अपनी दीदी की ख़ुशियों के लिए अपने जीवन के इन अनमोल क्षणों को नौ महीने के लिए मुझे सौंप दे स्नेह. अपना बच्चा मुझे दे दे. मेरी सूनी गोद भर दे." स्वाति अपना आंचल फैला कर रो पड़ी.
"मेरे सूने आंचल में ख़ुशियों की भीख डाल दे मेरी बहन, मैं तेरा ये एहसान जीवनभर नहीं भूलूंगी. मैं… मैं… तेरे बच्चे को अपने कलेजे के टुकड़े की तरह रखूंगी…"
स्नेहा ने कुछ दूरी पर खड़े अपने पति विवेक को प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा. विवेक ने स्वीकृति में सिर हिला दिया.
फिर स्नेहा ने अपने गर्भवती होने के नौ महीने बाद एक नन्हें-मुन्ने सुंदर से बच्चे को जन्म दिया, जिसे स्वाति कुछ दिनों बाद अपने साथ ले गई. अपूर्व व उसके माता-पिता ने उस बच्चे को सहर्ष स्वीकार कर लिया. फिर तो उनके सूने घर में बच्चे की किलकारियां गूंजने लगीं. उसे प्यार से सभी सोनू पुकारने लगे.
सोनू को जन्म देने के दो साल बाद स्नेहा पुनः गर्भवती हो गई. वैसे तो स्नेहा अभी एक-दो साल और बच्चा नहीं चाहती थी, पर विवेक के माता-पिता के दबाव के आगे उसे झुकना पड़ा. फिर उसने मोनू को जन्म दिया, मोनू का जन्म ऑपरेशन से हुआ था. ऐन वक़्त पर स्नेहा और विवेक ने आपस में परामर्श किया और स्नेहा ने ऑपरेशन करा लिया. इस बारे में बाद में जब विवेक के माता-पिता को पता चला, तो उन्होंने इस पर सख़्त आपत्ति प्रकट की, पर अब हो भी क्या सकता था? स्वाति ने भी स्नेहा और विवेक द्वारा जल्दबाज़ी में उठाए गए इस कदम पर दुख व्यक्त किया था. कुछ महीने बाद जब मोनू को निमोनिया हो गया, तब स्नेहा और विवेक को भी अपने निर्णय पर अफ़सोस होने लगा.
ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी, तो स्वाति अतीत से निकलकर वर्तमान में आ गई.
कुछ घंटों के सफ़र के बाद जब वे स्नेहा के बंगले पर पहुंचे तब बाहर खड़े कुछ लोगों के आंसू भरे चेहरे और अंदर से दिल दहला देनेवाली स्नेहा के रूदन से वे सब कुछ समझ गए. स्वाति सोनू को अपूर्व के हाथों में थमाकर अंदर भागी.
स्नेहा पागल सी हो गई थी. स्नेहा के माता-पिता व विवेक उसे संभालने की कोशिश कर रहे थे. स्वाति को क़रीब देखकर वह उससे लिपट गई. दोनों बहनें विलाप करने लगीं.
अपूर्व उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा था. स्वाति ख़ुद पर काबू रखकर स्नेहा को सांत्वना देने लगी. तभी स्नेहा की दृष्टि सोनू पर गई, तो एक पल के लिए उसके आंसू थम गए. उसने अपूर्व की गोद से सोनू को झपट लिया और उसे चूमते हुए पुनः रोने लगी. स्वाति अपलक उन्हें देखती रही. अचानक सोनू रोने लगा. विवेक ने सोनू को उससे ले लेना चाहा, पर स्नेहा ने मना कर दिया और उसे चुप कराने लगी. धीरे-धीरे सोनू चुप हो गया. अपूर्व व स्वाति की दृष्टि मिली और फिर झुक गई. वक़्त गुजरने लगा. स्नेहा धीरे-धीरे सामान्य होने लगी. अब सोनू अधिकांशतः स्नेहा के पास ही रहता. वह स्नेहा को पहचानने लगा था. अपूर्व स्वाति व सोनू को कुछ दिनों के लिए स्नेहा के पास छोड़कर अपने घर चला गया था. इस दौरान घर में हर आने-जाने और रहनेवाला सोनू के संबंध में ये ज़िक्र ज़रूर करता कि सोनू स्नेहा का ही बेटा है. इस तरह की बातें सुन-सुनकर स्वाति का दिल ज़ोरों से धड़कने लगता और उसे घबराहट होने लगती.
एक दिन अपूर्व का फोन आया. उससे बात करने के बाद जब स्वाति पलटी तब पास खड़ी स्नेहा ने उसे प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा.
"कल वो मुझे ले जाने के लिए आ रहे हैं." स्वाति ने कहा, तो स्नेहा उदास हो गई और बिस्तर पर सो रहे सोनू को देखने लगी.
"एक बात कहूं दीदी. तुम सोनू को कुछ दिनों के लिए मेरे पास छोड़ सकती हो क्या?"
स्वाति बस उसे निरंतर देखती रही.
"कुछ दिन सोनू के सहारे स्वयं को भुलाने की कोशिश करूंगी. फिर उसे तुम्हारे पास स्वयं पहुंचा दूंगी. मैं… मैं इसके लिए ज़िद नहीं करूंगी. सोनू पर तुम्हारा ही अधिकार है."
"ऐसी कोई बात नहीं. मैं इसे छोड़ जाऊंगी." स्वाति ने किसी तरह कह तो दिया, पर उसके मन में सोनू के प्रति असुरक्षा की भावना बरबस ही प्रबल होने लगी थी.
अगले दिन अपूर्व आ गया. स्वाति ने जब उसे स्नेहा की इच्छा से अवगत कराया, तब वह भी सोच में पड़ गया, "ऐसी स्थिति में इंकार करना भी तो ठीक नहीं होगा." वह सिर्फ़ इतना ही कह सका. अपूर्व उसी दिन लौट जाना चाहता था, पर स्नेहा ने एक दिन के लिए उसे रोक लिया.
रात के दस बज चुके थे, पर विवेक अभी तक घर नहीं लौटा था. वह किसी काम से बाहर गया हुआ था. अपूर्व व स्वाति स्नेहा के कमरे में बैठे उससे बातें कर रहे थे और विवेक के आने की प्रतीक्षा भी. घर के लगभग सभी सदस्य सो चुके थे. उसी समय पास वाले कमरे से विवेक की मां की आवाज़ सुनाई दी.
"आजकल के लड़के-लड़कियां बगैर लगाम के हो गए हैं. जो मर्ज़ी में आता है, वही करते हैं. हमारी तो कोई सुनता ही नहीं. दोनों बहुत मॉडर्न बन रहे थे. लो अब भुगतो ज़्यादा मॉडर्न बनने का नतीज़ा. दुष्ट लड़की… कहा करती थी कि पहला बच्चा अभी नहीं और दूसरा बच्चा कभी नहीं."
"ज़्यादा चालाक बनने का यही नतीज़ा होता है." ये विवेक के पिताजी की आवाज़ थी.
"अरे, इनकी हिम्मत की तो दाद देनी पड़ेगी." मां कह रही थी, "पहला बच्चा पैदा करके बगैर हमसे कहे-सुने अपनी बांझ बहन को दे दिया और अब ख़ुद ही बांझ हो गई." अपूर्व, स्वाति व स्नेहा की नज़रें मिलीं और फिर झुक गईं.
"मैंने तो सुबह विवेक से साफ़-साफ़ कह दिया था कि यदि अपनी मॉडर्न बीवी को घर में रखना है, तो वह अपनी दीदी से हमेशा के लिए अपना बेटा मांग ले, वरना उसे इस घर से हमेशा के लिए जाना होगा और तुझे दूसरी शादी करनी होगी." मां चिल्ला रही थीं.
"मैंने भी विवेक से साफ़-साफ़ कह दिया है कि यदि अबकी उसने अपनी बीवी का पक्ष लिया और हमारी बात नहीं मानी, तो मैं उसे अपनी सारी संपत्ति से बेदखल कर दूंगा."
बहुत देर से थमा स्नेहा के आंसुओं का बांध टूट गया. स्वाति ने उसे दिलासा दिया, तो वह उसकी गोद में सिर रखकर सिसकने लगी.
"दीदी, हम दोनों के साथ कितनी अजीब बातें जुड़ी हुई हैं. तुम चाहकर भी किसी बच्चे को जन्म न दे सकीं और मैंने न चाहते हुए भी पहली बार तुम्हारे लिए और दूसरी बार अपने सास-ससुर के लिए समय से पहले बच्चे को जन्म दिया, पर वो हमसे हमेशा के लिए रूठ गया. और अब स्थिति ये है कि मैं चाहकर भी मां नहीं बन सकती, जबकि बच्चा ही अब मेरे सुखद भविष्य की गारंटी है. इसके बिना पता नहीं मेरा क्या होगा? दीदी, तुम मां नहीं बन सकीं, तुम्हें यही एकमात्र दर्द था. तुम्हारे पति व सास-ससुर फिर भी तुम्हारे साथ थे. वे तुम्हारी भावनाओं को समझते हैं और समझते रहेंगे, क्योंकि वे महान हैं, पर मेरा भाग्य इन विशेषताओं से वंचित है. विवेक का व्यवहार भी मोनू के जाने के बाद बदला-बदला सा लग रहा है. वे मेरे लाख पक्षधर सही, पर अपने मां-बाप से डरते भी हैं. शायद तभी आज वे भी तुमसे सोनू को मांग लेने को कह रहे थे. पर मैं ऐसा कैसे कर सकती हूं? कैसे तुम्हारी गोद को सूनी कर दूं? सूनी गोद का दर्द क्या होता है. ये मैंने अब ही तो जाना है…"
स्वाति की मनःस्थिति अजीब होती जा रही थी. उसकी समझ में ये नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, क्या नहीं? कुछ देर बाद जब विवेक आ गया तब स्वाति सोनू को लेकर अपूर्व के साथ अपने कमरे में आ गई. काफ़ी देर तक दोनों बिस्तर पर लेटे शून्य में निहारते रहे, फिर अपूर्व ने कहा, "क्या सोच रही हो स्वाति? हमें… हमें सोनू को स्नेहा के हवाले कर ही देना चाहिए…"
"कैसे कर देना चाहिए?" बहुत देर से थमा स्वाति के आंसुओं का बांध भी टूट गया. "मैंने उसे लेकर क्या-क्या सपने देखे हैं. अरे जब मांगना ही था तो दिया क्यों था…?"
"तुम्हारी सूनी गोद भरते वक़्त उस बेचारी को क्या पता था कि उसकी ही गोद सूनी हो जाएगी. आज उसका जीवन एक ऐसे दोराहे पर खड़ा है, जहां से एक रास्ता उसके अंधकारमय भविष्य की ओर जाता है, तो दूसरे रास्ते में सोनू एक उम्मीद की किरण बनकर दिख रहा है. यदि ये किरण उससे दूर हो गयी, तो हो सकता है कि आनेवाले कल में उसे तलाक़ दे दिया जाए. फिर उसका क्या होगा? वैसे भी बंजर धरती को कौन पूछता है." कुछ पल के लिए रुककर उसने पुनः कहा, "ज़रा इस बात पर भी गौर करो स्वाति कि कल को बड़े होने के बाद सोनू को जब ये पता चलेगा कि यदि तुम उसे उसकी मां स्नेहा को सौंप देतीं तो उसे जन्म देनेवाली उसकी मां का जीवन बरबाद होने से बच जाता, ऐसी स्थिति में क्या तुम्हारे प्रति उसका सम्मान कम न हो जाएगा? उसने तुम्हारे लिए अपने बच्चे को नौ महीने अपनी कोख में सींचकर तुम्हारी सूनी गोद भरी थी. आज वक़्त का तक़ाज़ा कह रहा है कि तुम उसी के बेटे से उसकी सूनी गोद भर दो. वैसे भी तुम उसकी बड़ी बहन हो और बड़ी बहन मां जैसी होती है." स्वाति पास लेटे सोनू को आंसू भरी आंखों से निहारती रही, फिर बोली, "मांजी-बाबूजी ने इस निर्णय का विरोध किया तो?"
"वे असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी हैं स्वाति. हमारे फ़ैसले का वे खुले दिल से स्वागत करेंगे. तुम्हारे इस निर्णय से उन्हें तुम पर गर्व होगा…"
सिसकती हुई स्वाति कोई जवाब देने की बजाय सोनू को अपने सीने में इस प्रकार छिपाने लगी मानो कोई उसे छीन लेगा. सुबह विवेक व स्नेहा के साथ अपूर्व व स्वाति स्टेशन के लिए रवाना हो गए. ट्रेन ने जब सीटी दी तब स्वाति, अपूर्व की बांहों से सोनू को लेकर बुरी तरह चूमने और बिलखने लगी.
"स्नेह मेरी बहन, तेरी अमानत मैं हमेशा-हमेशा के लिए तेरे हवाले कर रही हूं. इसे संभालकर रखना." स्वाति ने सोनू और उसके सामान से भरे बैग को स्नेहा के हवाले किया और लगभग दौड़ती हुई चल चुकी ट्रेन में चढ़ गई. उसके पीछे अपूर्व भी ट्रेन में चढ़ गया.
सीट पर बैठते ही स्वाति पुनः फफक उठी. अपूर्व उसके आंसुओं को पोंछने लगा, पर उसकी आंखें भी छलक पड़ी थीं.- अनिल गुप्ता