गाजीपुर में आस्था और विश्वास का केंद्र बना श्री परशुराम मन्दिर, जानें कैसे हुआ मंदिर का निर्माण
ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. गाजीपुर का जमानियां ऋषि और महर्षियों की धरती के नाम से विख्यात है। प्रभु श्रीराम वन गमन के दौरान यहीं से होकर बक्सर ताडका वध के लिए निकले थे। जिससे कि इसका पौराणिक महत्व अपने आप में काफी बढ जाता है। वह कस्बा अंतर्गत बलुआ घाट है। जो महर्षि जमदग्नि की तपोस्थली के नाम से विख्यात है। यही नहीं यह धरती महर्षि भगवान परशुराम की जन्मस्थली के नाम से मशहूर है।
जमानियां कस्बा में हरपुर एक ऐसा गाँव है। जहां महर्षि भगवान परशुराम का विश्व विख्यात एक अलौकिक मन्दिर जिसमें करीब 7 फीट लम्बी मूर्ति है। जो आकर्षण का केन्द्र होने के साथ ही लोगों के आस्था एवं विश्वास का प्रतीक है। हर साल उनके जयंती पर देश-प्रदेश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते है। जहां मेला एवं चेतक प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है।
ग्रामीणों ने बताया कि आज से करीब तीन सौ साल पहले सकलडीहा कोट के तत्कालीन राजा वत्स सिंह ने पूर्ण धार्मिक अनुष्ठान के साथ भगवान परशुराम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की थी। मान्यता है कि एक दिन रात्रि में महर्षि भगवान परशुराम राजा वत्स के स्वप्न में आए कहा कि मेरे पिता जमदग्नि के आश्रम के सामने गंगा में मेरी मूर्ति है। जिसे निकाल 360 धनुष की दूरी पर मुझे स्थापित करने पर क्षेत्र में सुख शान्ति एवं वैभव होगा।
लोगों ने बताया कि उसके बाद राजा ने सुबह मछुआरों से मूर्ति निकलवाकर 360 धनुष की दूरी को नापा तो हरपुर गांव पड़ा। जहां उन्होंने अनुष्ठान के साथ भगवान परशुराम की अलौकिक एवं अद्भुत मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर एक भव्य मंदिर भी बनवाया। मन्दिर अपने आप में अद्भुत है। जो अष्टकोणीय होने के साथ ही पंचायतन है। मन्दिर में गणेश, भाष्कर, भगवती के साथ शंकर जी की मूर्ति स्थापित है। जबकि बीच में महर्षि भगवान परशुराम मूर्ति है।
ग्रामीणों ने बताया की महर्षि भगवान परशुराम का जन्म जमदग्नि ऋषि के आश्रम जमानियां स्थित बलुआ घाट पर हुआ था, यहीं पर उनकी शिक्षा-दीक्षा भी हुई थी। लोगों ने बताया कि मान्यता है कि जमदग्नि ऋषि के दर्शन के लिए गंगा माता ने अपना रूख उत्तर की ओर कर लिया।