वर्चस्व की जंग और फिर...वह सनसनीखेज मर्डर जिसमें 23 साल बाद मुख्तार को मिली उम्रकैद
ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. वाराणसी का सबसे व्यस्त इलाका लहुराबीर। यहीं चेतगंज थाने के सामने जाने वाली रोड पर बाहुबली अवधेश राय का घर था। 3 अगस्त 1991 की तारीख थी और दिन था शनिवार। दोपहर के एक बज रहे होंगे। अवधेश राय अपने किसी परिचित को देख कर अस्पताल से लौटे और भाई अजय राय (जो वर्तमान में यूपी कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष हैं) और साथी विजय पांडेय के साथ घर के गेट पर ही खड़े होकर बातचीत करने लगे। तभी एक मारुति वैन वहां आकर रुकी। असलहों से लैस पांच लोग वैन से उतरे और अवधेश राय को निशाना बना कर अंधाधुंध फायरिंग कर दी।
पूरा इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा। घटना को अंजाम दे हमलावर वैन से भागे, तो वैन आगे जाकर बिजली के एक खंभे से टकरा गई। वैन सवार पांचों हमलावर वहां से पैदल ही गलियों में फरार हो गए। अजय राय ने उनका पीछा भी किया, लेकिन थोड़ी दूर जाकर वापस लौटे आए। वापस आकर देखा तो उनके भाई यानी अवधेश राय जमीन पर पड़े थे और उनका शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था। अजय भाई को उसी वैन से कबीरचौरा अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने अवधेश राय को मृत घोषित कर दिया।
मुख्तार सहित पांच लोग किए गए थे नामजद
इस हत्याकांड ने पूरे सूबे को हिलाकर रख दिया। बाहुबली अवधेश राय के भाई अजय राय ने चेतगंज थाने में हत्या की एफआईआर दर्ज करवाई। एफआईआर में अजय राय ने माफिया मुख्तार अंसारी, पूर्व विधायक अब्दुल कलाम, भीम सिंह, कमलेश सिंह और राकेश श्रीवास्तव उर्फ राकेश न्यायिक को नामजद करवाया। 80 के दौर में बनारस में अवधेश राय का सिक्का चलता था। उसके ऊपर माफिया डॉन बृजेश सिंह का हाथ था।
वाराणसी के सरकारी ठेके उसी के इशारे पर उठते थे। ठेकेदारी से लेकर रंगदारी तक में अवधेश राय का हस्तक्षेप था और इन सब में सबसे अहम थी चंदासी कोयला मंडी की वसूली। 90 का दशक शुरू होते-होते अवधेश राय का नाम वाराणसी यानी बनारस से निकल कर आस-पास के जिलों में फैलने लगा। राजनीतिक संरक्षण के लिए अवधेश राय ने लखनऊ से लेकर दिल्ली तक अपनी मजबूत पकड़ बना रखी थी। वाराणसी के थानों पर अवधेश राय पर हत्या सहित अन्य आपराधिक मामलों 19 मुकदमे दर्ज थे।
जेल में मुख्तार के गुरु की पिटाई
वरिष्ठ पत्रकार प्रीतम श्रीवास्तव बताते हैं कि मुख्तार अंसारी और अवधेश राय की अदावत जेल में साधु सिंह और मकनू सिंह की पिटाई से शुरू हुई। 1988 का मामला था। वाराणसी जिला जेल में साधु शरण सिंह उर्फ साधु सिंह और राजेश्वर सिंह उर्फ मकनू सिंह भी किसी मामले में बंद थे। अवधेश राय भी उस समय उसी जेल में बंद था। जेल में ही अवधेश राय की साधु-मकनू गिरोह से जेल के भीतर ही लड़ाई हो गई।
जेल के भीतर हुई लड़ाई में अवधेश राय ने कुछ अन्य कैदियों के साथ मिलकर साधु सिंह और मकनू सिंह पर हावी हो गया था। जेल में दोनों पक्षों में मारपीट हुई, ईंट पत्थर चले थे, जिसमें साधु शरण सिंह घायल हो गया था, उसे कुछ दिनों के लिए अस्पताल में रहना पड़ा था। यह वह दौर था, जब ठेके-पट्टे के सिलसिले में साधु सिंह और मकनू सिंह की सरपरस्ती में मुख्तार अंसारी जरायम की दुनिया में प्रवेश कर रहा था।
रंजिश की एक वजह यह भी
मुख्तार और बृजेश सिंह की रंजिश तो जगजाहिर है। ऐसे में बृजेश सिंह का करीबी होना ही, मुख्तार का दुश्मन होने के लिए काफी था। लेकिन, हत्या की वजह यह दुश्मनी नहीं थी। वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार विकास पाठक बताते हैं कि विरोध होने की वजह से वाराणसी में आए दिन दोनों गैंगों में मारपीट होती रहती थी। लेकिन, हत्या की वजह बनी चंदासी कोयला मंडी की वसूली। चंदासी कोयला मंडी में मुख्तार भी घुस चुका था। करीब आधी मंडी के व्यापारी और दुकानदार मुख्तार गैंग को वसूली देते थे। लेकिन, अवधेश राय उसमें भी अड़ंगा बना हुआ था। आए दिन अवधेश राय मुख्तार अंसारी के करीबियों को सरे बाजार बेइज्जत भी किया था।
ऐसे में पूरी कोयला मंडी पर एकछत्र राज बनाने के लिए अवधेश राय की दिन दहाड़े हत्या की गई थी। अवधेश राय की हत्या के बाद मुख्तार अंसारी पूर्वांचल के अपराध जगत में बड़ा नाम हो गया था। यहां यह भी बताना जरूरी है कि बाद में इसी मंडी के बड़े व्यापारी और विश्व हिन्दू परिषद के कोषाध्यक्ष नंद किशोर रुंगटा का अपहरण और हत्या का आरोप भी मुख्तार अंसारी पर लगा था।
मुख्तार को आजीवन कारावास
32 साल तक अदालत में यह मामला चला। इस दौरान हत्याकांड के दो आरोपितों कमलेश सिंह और पूर्व विधायक अब्दुल कलाम की मौत हो गई। इस प्रकरण की सुनवाई पहले बनारस के एडीजे कोर्ट में चल रही थी। 23 नवंबर 2007 को सुनवाई के दौरान अदालत से चंद कदमों की दूरी पर बम ब्लास्ट हुआ। इस पर आरोपित राकेश न्यायिक ने सुरक्षा का हवाला देकर हाई कोर्ट की शरण ली। इसके बाद लंबे समय तक इस मुकदमे की सुनवाई पर रोक लगी रही।
फिर, विशेष न्यायाधीश एमपी-एमएलए कोर्ट का गठन होने पर प्रयागराज में मुकदमे की सुनवाई फिर शुरू हुई। जब वाराणसी में एमपी-एमएलए की विशेष कोर्ट का गठन होने पर मुख्तार के खिलाफ सुनवाई वाराणसी में शुरू हुई, जिसमें कोर्ट ने मुख्तार अंसारी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। जबकि, अलग होने की वजह से आरोपित राकेश न्यायिक और भीम सिंह की पत्रावली अब भी प्रयागराज कोर्ट में लंबित है। खास बात यह कि जब घटना हुई, उस वक्त भी मुख्तार अंसारी विधायक नहीं था और जब सजा सुनाई गई, उस समय भी वह विधायक नहीं है।
केस डायरी भी हुई गायब
इस दौरान अदालत की प्रक्रिया में भी गतिरोध डालने की नाकाम कोशिश की गईं। सुनवाई के दौरान जून 2022 में पता चला कि मूल केस डायरी ही गायब है। वाराणसी से प्रयागराज तक केस डायरी की तलाशी हुई। मूल केस डायरी नहीं मिली। आखिरकार कोर्ट के निर्देश पर मुख्तार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। मूल केस डायरी के गायब करवाने के मामले में मुख्तार अंसारी पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने का आरोप लगा। वर्तमान में मुख्तार अंसारी बांदा जिला जेल में बंद हैं। जबकि, भीम सिंह एक अन्य मामले में गाजीपुर जेल में बंद है।